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जैव विविधता और पर्यावरण

IPCC AR6 सिंथेसिस रिपोर्ट

  • 21 Mar 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

IPCC, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, GHG, CCH, कुरूपता

मेन्स के लिये:

IPCC AR6 सिंथेसिस रिपोर्ट।

चर्चा में क्यों?

छठी आकलन रिपोर्ट (Sixth Assessment Report- AR6) के तहत जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की चौथी और अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, कई क्षेत्रों और स्थानों में पर्यावरण को पर्याप्त रूप से समायोजित करने में विफलता के अधिक प्रमाण मिले हैं।

  • सिंथेसिस रिपोर्ट तीन कार्य समूहों और तीन विशेष रिपोर्टों के योगदान के आधार पर AR6 चक्र के प्रमुख निष्कर्षों का संश्लेषण करती है।

प्रमुख बिंदु 

  • अभूतपूर्व ग्लोबल वार्मिंग: 
    • मानव गतिविधियों के कारण ग्लोबल वार्मिंग में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि ने जलवायु परिवर्तन को प्रेरित किया है जो हाल के मानव इतिहास में अभूतपूर्व है।
    • पहले से ही वैश्विक तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ जलवायु प्रणाली में परिवर्तन जो सदियों से सहस्राब्दियों तक अद्वितीय रहे हैं, के कारण अब दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र में समुद्र के बढ़ते स्तर से लेकर अधिक चरम मौसम की घटनाओं एवं तेज़ी से समुद्री बर्फ पिघलने की घटनाएँ देखी जा रही हैं।
  • अधिक व्यापक जलवायु प्रभाव:
    • लोगों और पारिस्थितिक तंत्रों पर जलवायु के प्रभाव अनुमानित स्तर से अधिक व्यापक और गंभीर हैं, भविष्य के खतरे वार्मिंग की हर मामूली तीव्रता अथवा स्तर के साथ तेज़ी से बढ़ेंगे।
  • अनुकूलन के उपाय: 
    • अनुकूलन रणनीतियों के माध्यम से सुनम्यता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है, परंतु इसके लिये अधिक धन की आवश्यकता होती है।
    • कम-से-कम 170 देशों में जलवायु नीतियाँ अब अनुकूलन को प्राथमिक उपाय मानती हैं, लेकिन कई देशों में योजना से लेकर क्रियान्वयन तक इन प्रयासों को किये जाने की आवश्यकता है। सुनम्यता बढ़ाने के अधिकांश उपाय अभी भी छोटे पैमाने के तथा प्रतिक्रियाशील और वृद्धिशील हैं, जो मुख्य रूप से अल्पकालिक प्रभावों अथवा खतरों पर केंद्रित होते हैं।
    • अनुकूलन के लिये वर्तमान वैश्विक धन प्रवाह, विशेष रूप से विकासशील देशों में अनुकूलन समाधानों के कार्यान्वयन के लिये अपर्याप्त हैं।
  • वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस पार कर सकता है: 
    • अध्ययन किये गए परिदृश्यों को देखते हुए इस बात की 50% से अधिक संभावना है कि वर्ष 2021 और 2040 के बीच वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाएगी या उससे अधिक भी हो सकती है। वर्तमान उच्च-उत्सर्जन स्तर को देखते हुए यह वर्ष 2037 तक ही इस सीमा तक पहुँच सकती है।
  • दर अनुकूलन: 
    • भारत में दर अनुकूलन के ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसके परिणामस्वरूप कमज़ोर समुदाय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अनुकूलन करने में सक्षम होने के बजाय अधिक असहाय हो जाते हैं।
      • दर अनुकूलन को प्राकृतिक या मानव प्रणालियों में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया गया है जो अनजाने में जलवायु उत्तेजनाओं के प्रति भेद्यता को बढ़ाता है।
      • यह एक अनुकूलन उपाय है जो भेद्यता को कम करने में सफल नहीं होता है बल्कि इसके बजाय इसे बढ़ाता है।  
    • ओडिशा देश के सबसे सक्रिय तटों में से एक है, जहाँ समुद्र का जल स्तर देश के बाकी हिस्सों के औसत से अधिक दर से बढ़ रहा है। यह भारत में सबसे अधिक चक्रवात-प्रवण राज्य भी है।

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सिफारिशें:

  • विश्व को जल्द-से-जल्द जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को सीमित करना होगा क्योंकि जीवाश्म ईंधन जलवायु संकट का प्रमुख कारण है।
  • मौजूदा जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढाँचे को समाप्त करने, नई परियोजनाओं को रद्द करने, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) प्रौद्योगिकियों के साथ जीवाश्म ईंधन वाले विद्युत संयंत्रों को पुनः संयोजित करने तथा  सौर एवं पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने जैसी रणनीतियों का एक संयोजन, कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद कर सकता है।
  • शुद्ध-शून्य, जलवायु-परिवर्तन संबंधी भविष्य को सुरक्षित करने के लिये तत्काल प्रणालीगत परिवर्तनों की आवश्यकता है।
  • जबकि जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत है। जलवायु संकट से निपटने के लिये उत्सर्जन में भारी कटौती आवश्यक है। 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC): 

  • IPCC जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान के आकलन के लिये संयुक्त राष्ट्र की संस्था है।  
  • यह 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों एवं भविष्य के जोखिमों तथा अनुकूलन व शमन के विकल्पों के नियमित आकलन हेतु स्थापित किया गया था।

IPCC

स्रोत: डाउन टू अर्थ  

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