प्रारंभिक परीक्षा
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन की मांग
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
केरल ने केंद्र सरकार से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन का अनुरोध किया है ताकि उन जंगली जानवरों के नियंत्रित शिकार की अनुमति दी जा सके जो मानव जीवन या कृषि के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष तीव्र होता जा रहा है, जिसमें केरल ने वर्ष 2016 से 2025 के बीच कई जनहानियों को दर्ज किया है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंध: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध प्रजातियों को उच्च स्तर का संरक्षण प्राप्त है, जिसके कारण खतरनाक जानवरों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई करना कठिन हो जाता है।
- घातक उपायों पर विचार करने से पहले यह पुष्टि करनी होती है कि संबंधित जानवर को पकड़ना या उसके स्थानांतरण की संभावना नहीं है और इसके बाद ही अनुमोदन प्राप्त किया जा सकता है।
- तत्काल कार्रवाई का अभाव: यद्यपि ज़िला कलेक्टर सार्वजनिक उपद्रव घोषित कर सकते हैं, लेकिन न्यायालयों के आदेश वन्यजीव संघर्षों में उनकी त्वरित कार्रवाई की क्षमता को सीमित कर देते हैं।
- अनुसूची I के पशुओं, जैसे कि बोनेट मैकाक, के लिये कानून वन्यजीव वार्डन को सक्रिय कार्रवाई करने से रोकता है, जिससे आवश्यक हस्तक्षेप में देरी होती है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 क्या है?
- परिचय: यह वन्यजीवों, पक्षियों और पौधों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन व वन्यजीवों एवं संबंधित उत्पादों के व्यापार के विनियमन हेतु एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- अधिनियम में पौधों और पशुओं की अनुसूचियाँ सूचीबद्ध की गई हैं, जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर पर संरक्षण तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
- अनुसूचियाँ: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 में छह अनुसूचियाँ हैं:
- अनुसूची I और II: इन अनुसूचियों में लुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं तथा उन्हें पूर्ण संरक्षण प्रदान किया गया है।
- अनुसूची III और IV: इनमें ऐसे जीव शामिल हैं जो विलुप्त होने के खतरे में नहीं हैं तथा इनके लिये दंड अनुसूची I व II की तुलना में कम कठोर हैं।
- अनुसूची V: इस अनुसूची में बत्तख और हिरण जैसे जीवों की सूची दी गई है, जिनका शिकार लाइसेंस के साथ किया जा सकता है।
- अनुसूची VI: यह पौधों के संरक्षण से संबंधित है और संरक्षित पशु पार्कों की स्थापना का समर्थन करती है।
- प्रमुख प्रावधान:
- धारा 9: कोई भी व्यक्ति अनुसूचियों I, II, III और IV में सूचीबद्ध किसी भी वन्य जीव का शिकार नहीं करेगा, सिवाय उन मामलों के जिनकी अनुमति धारा 11 और 12 के अंतर्गत दी गई हो।
- धारा 11: मुख्य वन्यजीव वार्डन को अनुमति दी जा सकती है, यदि कोई पशु मानव जीवन के लिये खतरा हो या वह असाध्य रोग से ग्रस्त हो और उसे पकड़ा या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
- धारा 62: केंद्रीय सरकार किसी भी वन्यजीव को, जिसे अनुसूची-I और अनुसूची-II के भाग-II में शामिल नहीं किया गया है, को किसी विशिष्ट क्षेत्र एवं अवधि के लिये, अधिसूचना के माध्यम से, एक पीड़क जंतु घोषित कर सकती है। जब तक अधिसूचना प्रभाव में रहती है, तब तक ऐसे वन्य प्राणी को अनुसूची-V में सम्मिलित माना जाएगा।
- धारा 50: वन अधिकारी या पुलिस अवैध शिकार में उपयोग की गई वस्तुओं को ज़ब्त कर सकते हैं; स्थानीय अधिकारियों को कोई आपातकालीन अधिकार नहीं दिये गए हैं।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022
- सरलीकरण के उद्देश्य से अनुसूचियों की संख्या 6 से घटाकर 4 कर दी गई है:
- अनुसूची-I: उन प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई है।
- अनुसूची-II: उन प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें अपेक्षाकृत कम स्तर की सुरक्षा प्राप्त है।
- अनुसूची-III: संरक्षित पौधों की प्रजातियाँ।
- अनुसूची-IV: वे जीव-नमूने जो CITES (वन्य जीवों और वनस्पतियों की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार) के अंतर्गत सूचीबद्ध हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित रक्षित क्षेत्रों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त में से कौन-से बाघ-आरक्षित क्षेत्र घोषित है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
कैट्रिन प्रयोग
स्रोत: द हिंदू
कार्लस्रूहे ट्रिटियम न्यूट्रिनो (KATRIN) प्रयोग ने न्यूट्रिनो के द्रव्यमान का अनुमान लगाने के लिये आणविक ट्रिटियम के क्षय का गहन विश्लेषण किया।
- जर्मनी में स्थित, KATRIN प्रयोग को न्यूट्रिनो के निरपेक्ष द्रव्यमान को मापने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो ब्रह्मांड के सबसे अस्पष्ट कणों में से एक हैं।
न्यूट्रिनो:
- परिचय: ये उपपरमाण्विक कण होते हैं, जिन्हें अक्सर "भूत कण" कहा जाता है। इनका कोई विद्युत आवेश नहीं होता, कोई आकार नहीं होता, द्रव्यमान अत्यंत सूक्ष्म होता है तथा ये पदार्थ के साथ न्यूनतम अंतर्क्रिया करते हैं।
- मुख्य विशेषताएँ: ये ब्रह्मांड में फोटॉनों के बाद दूसरे सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले कण हैं तथा सभी पदार्थ कणों में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
- इनका पता लगाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि ये केवल दुर्बल नाभिकीय बल के माध्यम से ही अंतर्क्रिया करते हैं।
- यहाँ तक कि सबसे प्रबल चुंबकीय क्षेत्रों का भी इन पर कोई प्रभाव नहीं होता है तथा ये अपने स्रोत से सीधी रेखा में गमन करते हैं।
प्रकार:
और पढ़ें: सर्वाधिक ऊर्जावान न्यूट्रिनो की खोज
रैपिड फायर
एटलिन जलविद्युत परियोजना
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत वन सलाहकार समिति (FAC) ने 3,097 मेगावाट की एटालिन रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना के लिये सैद्धांतिक रूप से वन स्वीकृति दे दी है।
- स्थान: एटलिन जलविद्युत परियोजना अरुणाचल प्रदेश के दिबांग घाटी में स्थित है, जो पूर्वी हिमालय वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा है, जो विश्व भर में 36 ऐसे हॉटस्पॉट में से एक है।
- नदियाँ: इस परियोजना में दो गुरुत्त्व बाँध शामिल हैं, एक ड्री नदी पर और दूसरा तालो (तांगोन) नदी पर, दोनों ही दिबांग नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी) की सहायक नदियाँ हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- वनों की कटाई: इस परियोजना के लिये 270,000 वृक्षों को काटना होगा तथा 1,100 हेक्टेयर से अधिक अवर्गीकृत वन भूमि को अन्यत्र स्थानांतरित करना होगा।
- इसे स्थानीय इदु मिश्मी समुदाय से लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
- वनों की कटाई: इस परियोजना के लिये 270,000 वृक्षों को काटना होगा तथा 1,100 हेक्टेयर से अधिक अवर्गीकृत वन भूमि को अन्यत्र स्थानांतरित करना होगा।
- जैवविविधता: यह क्षेत्र 6 वैश्विक रूप से संकटग्रस्त स्तनपायी प्रजातियों का आवास स्थल है, जिनमें से 3 लुप्तप्राय हैं और 3 असुरक्षित हैं। यहाँ भारत की लगभग 56% पक्षी प्रजातियाँ भी पाई जाती है, जिनमें 3 दुर्लभ, सीमित-सीमा वाली स्थानिक पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं।
- इस क्षेत्र में बाघ, तेंदुए, हिम तेंदुए, काले भालू, कस्तूरी मृग और मिशमी ताकिन जैसी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
रन-ऑफ-द-रिवर (ROR) जलविद्युत परियोजना:
- यह जलविद्युत उत्पादन प्रणाली है, जो किसी नदी के प्राकृतिक प्रवाह एवं गिरावट का उपयोग विद्युत उत्पादन हेतु करती है, जिसमें बड़े बाँध या व्यापक जलाशय के निर्माण की आवश्यकता नहीं होती।
FAC:
- FAC वन (संरक्षण) अधिनयम, 1980 के तहत गठित, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
- यह समिति खनन, औद्योगिक परियोजनाओं और टाउनशिप जैसे गैर-वनीय उपयोगों के लिये वन भूमि के उपयोग के प्रस्तावों की जाँच करती है तथा सरकार को वन स्वीकृति देने के बारे में सलाह देती है। इसकी भूमिका सलाहकार प्रकृति की है।
और पढ़ें: एटलिन जलविद्युत परियोजना
रैपिड फायर
पुदुचेरी में NeVA डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च
स्रोत: पीआईबी
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री ने पुदुच्चेरी विधानसभा के लिये राष्ट्रीय ई-विधान एप्लिकेशन (NeVA) प्लेटफॉर्म का उद्घाटन किया।
NeVA प्लेटफार्म
- परिचय: NeVA एक वर्कफ्लो-आधारित (कार्य-प्रवाह पर आधारित) डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसे "वन नेशन, वन एप्लीकेशन" पहल के तहत कागज़ रहित, कुशल एवं पारदर्शी तरीके से विधायी कार्यप्रणाली को डिजिटल बनाने के लिये लॉन्च किया गया है।
- इसे संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा 100% केंद्रीय सहायता के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है, जिसे NIC क्लाउड-मेघराज पर होस्ट किया गया।
- नगालैंड वर्ष 2022 में NeVA लागू करने वाला पहला राज्य था।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- डिवाइस-तटस्थ (Device-neutral), सदस्य-केंद्रित (member-centric) प्लेटफॉर्म, जो टैबलेट और हैंडहेल्ड डिवाइस के माध्यम से सुलभ है।
- नियमों, सूचनाओं/नोटिसों, बिज़नेस लिस्ट्स/कार्यसूचियों, बिलों/विधेयकों, बुलेटिनों, प्रश्नों, रिपोर्टों आदि तक वास्तविक समय (रियल-टाइम) पर पहुँच प्रदान करता है।
- विधायकों के लिये प्रश्न और सूचनाएँ प्रस्तुत करने हेतु यह एक सुरक्षित पोर्टल है।
- पारदर्शिता बढ़ाने और नागरिकों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये यह लाइव-स्ट्रीमिंग सुविधा प्रदान करता है।
- सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के विधायी डेटा का एकल डिजिटल भंडार (Unified digital repository), जो अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स की आवश्यकता को समाप्त करता है।
- mNeVA मोबाइल ऐप (एंड्रॉइड/iOS) विधायी डेटा तक 24x7 पहुँच प्रदान करता है।
- महत्त्व: इस पहल से प्रतिवर्ष 3-5 टन कागज़ की बचत होगी, जिससे डिजिटल इंडिया, गो ग्रीन और सुशासन को बढ़ावा मिलेगा तथा यह संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप भी है।
और पढ़ें: डिजिटल इंडिया पहल के नौ वर्ष
रैपिड फायर
ग्रीन निकल
स्रोत: द हिंदू
निकेल निष्कर्षण की एक नवीन हाइड्रोजन प्लाज़्मा-आधारित पद्धति हरित धातुकर्म में एक महत्त्वपूर्ण सफलता का संकेत देती है, जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन में 84% की कटौती और ऊर्जा दक्षता में 18% की वृद्धि करती है।
- यह सफलता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि निकल - जो इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरियों जैसी स्वच्छ तकनीकों के लिये आवश्यक है (वर्ष 2040 तक >6 मिलियन टन/वर्ष मांग अनुमानित) - वर्तमान में प्रति टन निकल उत्पादन पर >20 टन CO₂ उत्सर्जित करता है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों के पर्यावरणीय लाभ प्रभावित होते हैं।
- परिचय: निकल एक चाँदी जैसी सफेद धात्विक तत्त्व है, जो पृथ्वी पर पाँचवाँ सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्त्व है। यह भू-पर्पटी (80 ppm) में व्यापक रूप से उपलब्ध है तथा निकल-लौह मिश्रधातु के रूप में पृथ्वी के क्रोड का एक प्रमुख घटक है। यह उल्कापिंडों, मृदा और जल में भी पाया जाता है तथा पादपों के लिये एक आवश्यक पोषक तत्त्व है।
- विशेषताएँ: संक्षारण-प्रतिरोधकता, उच्च-तापमान स्थिरता, सामर्थ्य, तन्यता, सुघट्यता (टफनेस), पुनर्चक्रणीयता तथा उत्प्रेरक एवं विद्युतचुंबकीय गुण।
- भंडार: ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील, कनाडा और चीन के पास विश्व के सबसे बड़े निकल भंडार हैं।
- भारत में निकल, ओडिशा के सुकिंडा घाटी की लैटराइट निक्षेपों में पाया जाता है, किंतु प्राथमिक स्रोतों से इसका उत्पादन नहीं होता है।
- झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले में ताँबे के खनिजीकरण के साथ निकल सल्फाइड के रूप में भी पाया जाता है।
- भारत की संपूर्ण निकल मांग आयात के माध्यम से पूरी की जाती है, जबकि झारखंड में HCL की घाटशिला कॉपर स्मेल्टर में निकल सल्फेट उप-उत्पाद के रूप में इसकी सीमित पुनर्प्राप्ति की जाती है।
- भारत में निकल, ओडिशा के सुकिंडा घाटी की लैटराइट निक्षेपों में पाया जाता है, किंतु प्राथमिक स्रोतों से इसका उत्पादन नहीं होता है।
- अयस्क: निकेल के अयस्कों को मुख्य रूप से दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है - सल्फाइड अयस्क और लेटराइट अयस्क।
- सल्फाइड अयस्क: पेंटलैंडाइट, मिलेराइट और गर्सडॉर्फाइट।
- लैटेराइट अयस्क: गार्नियराइट, निकलयुक्त लिमोनाइट और सैप्रोलाइट।
- उपयोग: स्टेनलेस स्टील उत्पादन, रिचार्जेबल बैटरी (उदाहरण के लिये, EV की लिथियम-आयन बैटरियाँ), मिश्र धातु (उदाहरण के लिये, एयरोस्पेस ), इलेक्ट्रोप्लेटिंग, सिक्का निर्माण और रासायनिक उद्योगों में उत्प्रेरक।
- निकल को भारत के 30 क्रिटिकल मिनरल्स की सूची में शामिल किया गया है, जिसमें बिस्मथ, कोबाल्ट, ताँबा, गैलियम, जर्मेनियम और ग्रेफाइट जैसे अन्य खनिज भी सम्मिलित हैं।
और पढ़ें: नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन