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जैव विविधता और पर्यावरण

CITES के पक्षकारों का 19वाँ सम्मेलन

  • 24 Nov 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

CITES, शीशम, समुद्री ककड़ी, रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल, CoP 19, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972

मेन्स के लिये:

CITES, COP-19 के परिणाम, संरक्षण प्रयास।

चर्चा में क्यों?

पनामा सिटी में वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के लिये पक्षकारों के सम्मेलन (CoP) की 19वीं बैठक आयोजित की जा रही है।

  • COP-19 को विश्व वन्यजीव सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • इसमें 52 प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर नियमों को प्रभावित करेगा: शार्क, सरीसृप, दरियाई घोड़ा, सोंगबर्ड्स, गैंडे, 200 पेड़ पर रहने वाली प्रजातियाँ, ऑर्किड, हाथी, कछुए आदि।
  • भारत के शीशम (डाल्बर्गिया सिस्सू) को सम्मेलन के परिशिष्ट II में शामिल किया गया है, जिससे प्रजातियों के व्यापार के लिये CITES नियमों का पालन करने की आवश्यकता होती है।
    • डाल्बर्गिया सिस्सू आधारित उत्पादों के निर्यात के लिये CITES नियमों को आसान बनाकर राहत प्रदान की गई। इससे भारतीय हस्तशिल्प निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • सम्मेलन ने कन्वेंशन के परिशिष्ट II में समुद्री खीरे (थेलेनोटा) को शामिल करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
    • वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी-इंडिया (WCS- India) द्वारा सितंबर, 2022 में प्रकाशित एक विश्लेषण से पता चला है कि वर्ष 2015-2021 के दौरान भारत में समुद्री खीरे (Sea Cucumber) सबसे अधिक तस्करी की जाने वाली समुद्री प्रजातियाँ थीं।
    • विश्लेषण के अनुसार, तमिलनाडु राज्य में इस अवधि के दौरान समुद्री वन्यजीवों की बरामदगी की सबसे अधिक संख्या दर्ज़ की गई थी। इसके बाद महाराष्ट्र, लक्षद्वीप और कर्नाटक का स्थान रहा।
  • मीठे जल के कछुए बाटागुर कचुगा (रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल) को शामिल करने के भारत के प्रस्ताव को CITES के COP-19 में पार्टियों का व्यापक समर्थन मिला। इसे पार्टियों द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया और पेश किये जाने पर अच्छी तरह से स्वीकार किया गया।
    • ऑपरेशन टर्टशील्ड, वन्यजीव अपराध पर अंकुश लगाने के भारत के प्रयासों की सराहना की गई
    • भारत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कछुओं और मीठे जल के कछुओं की कई प्रजातियाँ जिन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय, लुप्तप्राय, कमज़ोर या निकट खतरे के रूप में पहचाना जाता है, उन्हें पहले से ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में शामिल किया गया है और उन्हें उच्च स्तर की सुरक्षा दी गई है।
  • भारत ने मौजूदा सम्मेलन में हाथीदाँत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को फिर से खोलने के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान नहीं करने का फैसला किया है।

वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES):

  • CITES, सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसमें वर्तमान में 184 सदस्य हैं, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली पशुओं और पौधों की प्रजातियों के अस्तित्व को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये खतरे में न डाला जाए।
  • इसका पहला सम्मेलन वर्ष 1975 में हुआ और भारत वर्ष 1976 में 25वाँ भागीदार देश बन गया।
  • वे देश जो CITES में शामिल होने के लिये सहमत हुए हैं, उन्हें पार्टियों के रूप में जाना जाता है।
  • यद्यपि CITES पार्टियों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है, दूसरे शब्दों में इन पार्टियों के लिये कन्वेंशन को लागू करना बाध्यकारी है लेकिन यह राष्ट्रीय कानूनों की जगह नहीं लेता।
  • CITES के तहत आने वाली प्रजातियों के सभी आयात-निर्यात और पुन: निर्यात को परमिट प्रणाली के माध्यम से अधिकृत किया जाना चाहिये।
  • इसके तीन परिशिष्ट हैं:
    • परिशिष्ट-I:
      • इसमें वे प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जो CITES द्वारा सूचीबद्ध वन्यजीवों एवं पौधों में सबसे अधिक संकटापन्न स्थिति में हैं।
      • उदाहरणतः इसमें गोरिल्ला, समुद्री कछुए, अधिकांश ऑर्किड प्रजातियाँ एवं विशाल पांडा शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 1082 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।
      • इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है एवं CITES इन प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है, सिवाय  जब इसके आयात का उद्देश्य व्यावसायिक न होकर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये किया जाता हो।
    • परिशिष्ट II:
      • इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
      • इस परिशिष्ट में अधिकांश CITES प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जिनमें अमेरिकी जिनसेंग, पैडलफिश, शेर, अमेरिकी मगरमच्छ, महोगनी एवं कई प्रवाल शामिल हैं। वर्तमान में 34,419 प्रजातियाँ इसमें सूचीबद्ध हैं।
      • इसमें तथाकथित ‘एक जैसी दिखने वाली प्रजातियाँ (look-alike species)’ भी शामिल हैं अर्थात् ऐसी प्रजातियाँ जो एक समान दिखती हैं उन्हें व्यापार संरक्षण कारणों से सूचीबद्ध किया गया है।
    • परिशिष्ट III:
      • यह उन प्रजातियों की सूची है जिन्हें  किसी पक्षकार के अनुरोध पर शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार पक्षकार द्वारा पहले से ही विनियमित किया जा रहा है तथा शामिल की गईं प्रजातियों के अधारणीय एवं अत्यधिक दोहन रोकने के लिये दूसरे देशों के सहयोग की आवश्यकता है।
      • इनमें मैप टर्टल, वालरस और केप स्टैग बीटल शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 211 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।
      • इस परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को केवल उपयुक्त परमिट या प्रमाण पत्र की प्रस्तुति पर ही अनुमति प्रदान की जाती है।
    • प्रजातियों को केवल पक्षकारों के सम्मेलन द्वारा परिशिष्ट I और II में शामिल किया जा सकता है या हटाया जा सकता है अथवा उनके मध्य स्थानांतरित किया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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