प्रारंभिक परीक्षा
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सशक्त बनाने हेतु डिजिटल प्लेटफॉर्म
स्रोत: पी.आई.बी
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री ने 3 डिजिटल पहलों- डिपो दर्पण पोर्टल, अन्न मित्र मोबाइल ऐप और अन्न सहायता शिकायत निवारण प्रणाली की शुरुआत की है।
- इन पहलों का उद्देश्य भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में पारदर्शिता, दक्षता और पहुँच में सुधार लाना है, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 81 करोड़ से अधिक लोगों को लाभ मिलेगा।
डिपो दर्पण पोर्टल, अन्न मित्र मोबाइल ऐप और अन्न सहायता क्या हैं?
- डिपो दर्पण पोर्टल: डिपो दर्पण भारतीय खाद्य निगम (FCI) और केंद्रीय भंडारण निगम (CWC) द्वारा प्रबंधित खाद्यान्न डिपो के लिये एक स्व-मूल्यांकन तथा निगरानी पोर्टल है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- तकनीक-संचालित रेटिंग: यह एक समग्र रेटिंग प्रणाली का उपयोग करता है जो अधिभोग, लाभप्रदता, भंडारण दक्षता, सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और वैधानिक अनुपालन का मूल्यांकन करता है , जो IoT सेंसर, CCTV, लाइव वीडियो फीड एवं वास्तविक समय विश्लेषण द्वारा समर्थित है ।
- इस पोर्टल के परिणामस्वरूप भारतीय खाद्य निगम को 275 करोड़ रुपए की बचत होने तथा भंडारण स्थान और परिचालन को अनुकूलित करके केंद्रीय भंडारण निगम (CWC) को 140 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है।
- अन्न मित्र ऐप: अन्न मित्र एक मोबाइल ऐप है जिसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत उचित मूल्य दुकान (FPS) डीलरों, ज़िला खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारियों (DFSO) और खाद्य निरीक्षकों के लिये बनाया गया है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- भूमिका-आधारित कार्यक्षमताएँ: यह FPS डीलरों को स्टॉक प्राप्तियों, बिक्री और अलर्ट को ट्रैक करने में सक्षम बनाता है; DFSO को FPS प्रदर्शन की निगरानी करने, शिकायतों को सँभालने एवं लाभार्थी डेटा तक पहुँचने में सक्षम बनाता है; तथा निरीक्षकों को जियो-टैग किये गए निरीक्षण करने में सक्षम बनाता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से इस ऐप को असम, उत्तराखंड, त्रिपुरा तथा पंजाब में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है तथा यह हिंदी व अंग्रेज़ी में उपलब्ध है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- अन्न सहायता मंच: अन्न सहायता PMGKAY और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के लाभार्थियों के लिये एक शिकायत निवारण मंच है, जो 81 करोड़ से अधिक लोगों को शामिल करता है।
- यह व्हाट्सएप, IVRS और स्वचालित स्पीच रिकॉग्निशन (ASR) के माध्यम से शिकायत पंजीकरण को सक्षम बनाता है, जिससे पहुँच, जवाबदेही एवं दक्षता में सुधार होता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) क्या है?
- परिचय: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) एक खाद्य सुरक्षा तंत्र है, जो कमज़ोर जनसंख्या को आवश्यक खाद्यान्न रियायती दरों पर उपलब्ध कराता है।
- यह NFSA, 2013 द्वारा संचालित है, जो जनगणना 2011 के आधार पर लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को कवर करता है।
- PDS मुख्य रूप से गेहूँ, चावल, चीनी और केरोसिन वितरित करता है, जबकि कुछ राज्य दालें, खाद्य तेल तथा नमक भी वितरित करते हैं।
- कार्यान्वयन: इसे केंद्र और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है। केंद्र सरकार (FCI के माध्यम से) खाद्यान्न की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन की देखरेख करती है।
- वहीं राज्य सरकारें स्थानीय वितरण, लाभार्थियों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना तथा उचित मूल्य दुकान (FPS) का संचालन करती हैं।
- भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार हेतु पहलें: पहल:
- अन्न चक्र PDS के लिये एक आपूर्ति शृंखला अनुकूलन उपकरण है, जो परिवहन दूरी को 15–50% तक कम करता है और प्रतिवर्ष लगभग 250 करोड़ रुपए की बचत करता है।
- स्कैन (कंप्यूटरीकृत आवंटन और अधिसूचना प्रणाली) एकीकृत, स्वचालित और नियम-आधारित पोर्टल के माध्यम से खाद्य सब्सिडी दावों की प्रक्रिया को सरल बनाता है।
- वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC)
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रौद्योगिकी आधारित सुधार:
- स्मार्ट-PDS योजना (2023–2026) का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के एंड-टू-एंड तक कंप्यूटरीकरण और एकीकृत प्रबंधन (ImPDS) में प्रौद्योगिकी को उन्नत करना है।
- कंप्यूटरीकृत FPS और अनाज वितरण की वास्तविक समय में प्रमाणीकरण एवं निगरानी के लिये POS मशीनों का उपयोग।
- आधार लिंकिंग से लाभार्थियों की पहचान में सुधार होता है; DBT के माध्यम से नकद अंतरण संभव होता है।
- अनाज वितरण की GPS ट्रैकिंग तथा नागरिकों को प्रेषण और आगमन के बारे में अद्यतन करने के लिये SMS अलर्ट।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'जलवायु-अनुकूली कृषि के लिये वैश्विक सहबंध' (ग्लोबल एलायन्स फॉर क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) (GACSA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
प्रारंभिक परीक्षा
कोर-मेंटल कनेक्टिविटी
स्रोत: एल.एस.
चर्चा में क्यों?
जर्मन शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन में पता चला है कि सोना, प्लेटिनम और रुथेनियम जैसी कीमती धातुएँ पृथ्वी के कोर से ज्वालामुखीय गतिविधियों के माध्यम से सतह तक रिस रही हैं। यह निष्कर्ष लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती देता है कि पृथ्वी का कोर भू-रासायनिक रूप से पृथक है।
पृथ्वी के कोर और मेंटल के बीच अंतःक्रिया पर हालिया अध्ययनों से प्राप्त प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- कोर-मेंटल सामग्री का विनिमय: शोधकर्त्ताओं ने हवाई से प्राप्त ज्वालामुखीय चट्टानों का अध्ययन किया, जो कोर-मेंटल सीमा से उठने वाले मेंटल प्लूम्स (गर्म चट्टान स्तंभ) द्वारा निर्मित हुए थे।
- यह पहले की अपेक्षा कोर और मेंटल के बीच अधिक संपर्क को उजागर करता है।
- उन्होंने रूथेनियम-100 (^100Ru) के उच्च स्तर का पता लगाया, जो मुख्य रूप से पृथ्वी के कोर में पाया जाने वाला एक आइसोटोप है, जो दर्शाता है कि कोर सामग्री मेंटल प्लूम्स के माध्यम से ऊपर की ओर जाती है।
- यह पहले की अपेक्षा कोर और मेंटल के बीच अधिक संपर्क को उजागर करता है।
- पृथ्वी के कोर में मौजूद कीमती धातुएँ: पृथ्वी के कोर में ग्रह के कुल सोने का 99.999% से अधिक भाग मौजूद है, साथ ही इसमें प्लेटिनम, इरिडियम और रूथेनियम जैसे अन्य साइडरोफाइल (लौह-प्रेमी) तत्त्व भी पाए जाते हैं।
- परंपरागत रूप से इन धातुओं को अप्राप्य माना जाता था, क्योंकि कोर को मेंटल और क्रस्ट से अलग करने वाली मोटी चट्टानों की परत मौजूद है।
पृथ्वी के मेंटल और कोर से जुड़े प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- मेंटल:
- संरचना: मेंटल पृथ्वी के आयतन का लगभग 83% और द्रव्यमान का 67% भाग बनाता है। यह मोहो असंततता (लगभग 7-35 किमी. गहराई) से प्रारंभ होकर कोर-मेंटल सीमा तक फैला होता है, जिसकी गहराई लगभग 2,900 किमी. होती है।
- यह मुख्यतः लौह और मैग्नीशियम से भरपूर सिलिकेट चट्टानों से बना होता है, जिसकी तत्वीय संरचना लगभग 45% ऑक्सीजन, 21% सिलिकॉन तथा 23% मैग्नीशियम होती है।
- मेंटल में पाए जाने वाले सामान्य सिलिकेट्स में ओलिवाइन, गार्नेट और पाइरॉक्सीन शामिल हैं।
- यह मुख्यतः लौह और मैग्नीशियम से भरपूर सिलिकेट चट्टानों से बना होता है, जिसकी तत्वीय संरचना लगभग 45% ऑक्सीजन, 21% सिलिकॉन तथा 23% मैग्नीशियम होती है।
- घनत्व और स्थिति: घनत्व और अवस्था: ऊपरी मेंटल का घनत्व 2.9 से 3.3 ग्राम/सेमी³ तक होता है, जबकि निचले मेंटल का घनत्व 3.3 से 5.7 ग्राम/सेमी³ तक होता है।
- एस्थेनोस्फीयर ऊपरी मैंटल की एक परत है, जबकि निचला मैंटल पृथ्वी में गहराई तक फैला हुआ है।
- यद्यपि एस्थेनोस्फीयर आंशिक रूप से पिघला हुआ है और बह सकता है, लेकिन निचले मेंटल में अत्यधिक दाब के कारण उच्च तापमान के बावजूद यह ठोस अवस्था में बना रहता है।
- तापमान प्रवणता और संवहन: तापमान भू-पर्पटी के पास लगभग 200°C से बढ़कर कोर-मेंटल सीमा पर लगभग 4,000°C हो जाता है।
- यह तापमान अंतर मेंटल संवहन को प्रेरित करता है, जहाँ ठोस सिलिकेट चट्टान प्लास्टिक की तरह व्यवहार करती है और धीरे-धीरे प्रसारित होती है।
- यह संवहन सतह पर टेक्टोनिक प्लेटों की गति के लिये मूलभूत है।
- भूकंपीयता: उच्च दाब की स्थितियों के बावजूद, जो सामान्यतः भूकंपीय गतिविधि को बाधित करती है, उपद्रवण क्षेत्रों (Subduction Zones) में मेंटल की गहराई तक लगभग 670 किमी. तक भूकंप आते हैं।
- संरचना: मेंटल पृथ्वी के आयतन का लगभग 83% और द्रव्यमान का 67% भाग बनाता है। यह मोहो असंततता (लगभग 7-35 किमी. गहराई) से प्रारंभ होकर कोर-मेंटल सीमा तक फैला होता है, जिसकी गहराई लगभग 2,900 किमी. होती है।
- पृथ्वी का कोर:
- संरचना: पृथ्वी का कोर मेंटल के नीचे स्थित है जो लगभग 2,900 किमी. की गहराई से शुरू होकर लगभग 6,371 किमी पर ग्रह के केंद्र तक फैला हुआ है।
- यह मुख्यतः लोहे और निकल तथा कुछ हल्के तत्त्वों से बना है।
- बाह्य कोर: 2,900 किमी. से लेकर लगभग 5,150 किमी. गहराई तक फैला हुआ, बाह्य कोर एक पिघली हुई तरल परत है जो लगभग 2,250 किमी. मोटी है तथा इसका तापमान 4,000°C से 6,000°C के बीच है।
- इसके तरल लोहे की गति जियोडायनेमो प्रक्रिया के माध्यम से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करती है। तरल अवस्था के कारण इसका घनत्व आंतरिक कोर से कम है।
- संरचना: पृथ्वी का कोर मेंटल के नीचे स्थित है जो लगभग 2,900 किमी. की गहराई से शुरू होकर लगभग 6,371 किमी पर ग्रह के केंद्र तक फैला हुआ है।
- आंतरिक कोर: पृथ्वी के केंद्र से लगभग 5,150 किमी. की गहराई पर स्थित, आंतरिक कोर लगभग 1,220 किमी. की त्रिज्या वाला एक ठोस गोला है।
- 5,000°C से 7,000°C तक के अत्यंत उच्च तापमान के बावजूद, यह ऊपरी परतों द्वारा डाले गए अत्यधिक दबाव के कारण ठोस बना रहता है।
- मुख्य रूप से लौह-निकल मिश्र धातु से बना आंतरिक कोर अत्यधिक घना है और पृथ्वी के आंतरिक ताप स्थानांतरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र को भी प्रभावित करता है, हालाँकि जियोडायनेमो प्रभाव (चुंबकीय क्षेत्र निर्माण) मुख्य रूप से बाहरी कोर में घूमते तरल लोहे द्वारा संचालित होता है।
- आंतरिक कोर उच्च तापीय और विद्युत चालकता प्रदर्शित करता है तथा पृथ्वी की सतह की तुलना में पूर्व की ओर थोड़ा अधिक तेज़ी से घूमता है तथा लगभग प्रत्येक 1,000 वर्ष में एक अतिरिक्त चक्कर पूरा करता है।
- यह बाहरी कोर से लेहमैन असंततता नामक सीमा द्वारा अलग होता है।
एस्थेनोस्फीयर:
- एस्थेनोस्फीयर ऊपरी मेंटल परत है जो 80 से 200 किमी. गहराई पर स्थित है, जो कठोर स्थलमंडल के नीचे स्थित है।
- यह लचीला, यांत्रिक रूप से कमज़ोर और अत्यधिक चिपचिपा है, जिसका घनत्व भू-पर्पटी से ज़्यादा है। ये गुण टेक्टोनिक प्लेट की गति और आइसोस्टेटिक समायोजन को सुविधाजनक बनाते हैं।
- यह ज्वालामुखी विस्फोटों के लिये मैग्मा का मुख्य स्रोत भी है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. पृथ्वी ग्रह की संरचना में प्रावार (मेंटल) के नीचे, कोर मुख्य रूप से निम्नलिखित में से एक से बना है? (2009) (a) एल्युमीनियम उत्तर: (c) |
रैपिड फायर
अमृत भारत स्टेशन योजना
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रधानमंत्री ने अमृत भारत स्टेशन योजना (ABSS) के अंतर्गत 18 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 86 ज़िलों में स्थित 103 पुनर्विकसित रेलवे स्टेशनों का उद्घाटन किया।
अमृत भारत स्टेशन योजना (ABSS)
- परिचय: रेलवे मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2022 में प्रारंभ की गई अमृत भारत स्टेशन योजना (ABSS) का उद्देश्य भारत भर में 1,309 रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास कर उन्हें आधुनिक एकीकृत परिवहन केंद्रों के रूप में विकसित करना है।
- इसका उद्देश्य क्षेत्रीय वास्तुकला का समावेश, यात्री सुविधाओं में वृद्धि, समावेशिता को बढ़ावा देना तथा नगरीय विकास को समर्थन प्रदान करना भी है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- विशेषीकृत एवं सांस्कृतिक रूप से एकीकृत पुनर्विकास: स्टेशनों का पुनर्विकास चरणबद्ध ढंग से, स्थान-विशिष्ट योजनाओं के साथ किया जाता है, जिसमें आधुनिक सुविधाओं को क्षेत्रीय वास्तुकला विषयों के साथ जोड़ा जाता है।
- उदाहरण: द्वारका (द्वारकाधीश मंदिर), अहमदाबाद (मोढेरा सूर्य मंदिर), कुंभकोणम (चोल शैली) और गुरुग्राम (आधुनिक नगरीय डिज़ाइन)।
- यात्री सुविधाएँ: स्टेशनों पर आधुनिक प्रतीक्षालय, स्वच्छ शौचालय, छत युक्त प्लेटफॉर्म, सुव्यवस्थित प्रवेश और निकास मार्ग, साथ ही वाई-फाई, एस्केलेटर, लिफ्ट, कार्यकारी लाउंज, व्यावसायिक क्षेत्र तथा बेहतर संकेतक व्यवस्था जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, ताकि यात्रियों को सहज यात्रा अनुभव मिल सके।
- समावेशी एवं सुलभ डिज़ाइन: सुगम्य भारत अभियान के अनुरूप स्टेशनों पर रैम्प, लिफ्ट, ब्रेल संकेतक, स्पर्शनीय पथ, सुलभ शौचालय तथा लिफ्ट युक्त सबवे/फुट ओवर ब्रिज (FOB) जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
- नगरीय विकास पर ध्यान: स्टेशनों को मल्टीमॉडल सिटी सेंटर के रूप में विकसित किया गया है, जो बस और मेट्रो प्रणालियों के साथ एकीकृत होंगे, नगरों के दोनों ओर जुड़ेंगे तथा नगरीय गतिशीलता को समर्थन देने के लिये पर्यावरण अनुकूल, शोर कम करने वाली अवसंरचना को शामिल करेंगे।
- विशेषीकृत एवं सांस्कृतिक रूप से एकीकृत पुनर्विकास: स्टेशनों का पुनर्विकास चरणबद्ध ढंग से, स्थान-विशिष्ट योजनाओं के साथ किया जाता है, जिसमें आधुनिक सुविधाओं को क्षेत्रीय वास्तुकला विषयों के साथ जोड़ा जाता है।
और पढ़ें: अमृत भारत स्टेशन योजना
रैपिड फायर
स्वदेशी हींग की कृषि में महत्त्वपूर्ण सफलता
स्रोत: द हिंदू
लगभग 5 वर्षों की निरंतर प्रयासों के बाद, पालमपुर स्थित IHBT में हींग (Asafoetida) के पहले पुष्पन और बीज रोपण की सफलतापूर्वक रिपोर्ट की गई। यह उपलब्धि हींग की कृषि में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जो यह दर्शाती है कि इस पौधे को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जा सकता है।
- वर्ष 2020 में, पालमपुर स्थित CSIR-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (IHBT) ने हींग की कृषि को शुरू करने के लिये एक राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की। इसके तहत लाहौल घाटी (हिमाचल प्रदेश) के क्वारिंग गाँव में हींग का रोपण किया गया, जिसमें ईरान और अफगानिस्तान से प्राप्त बीजों का उपयोग किया गया।
हींग
- परिचय: यह पौधा एक बारहमासी जड़ी-बूटी है, जो अम्बेलीफेरिया (Apiaceae) से संबंधित है।
- पौधे की मोटी जड़ से, लगभग 5 वर्षों की परिपक्वता के बाद निकाला गया ओलियो-गम रेज़िन ही वह खाद्य हींग होती है जिसका उपयोग पाक कला और औषधीय प्रयोजनों में किया जाता है।
- आदर्श पर्यावरणीय परिस्थितियाँ: हींग शीत और शुष्क जलवायु क्षेत्रों में अच्छी तरह पनपती है, जैसे कि ईरान, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया में पाया जाता है।
- इस पौधे के लिये रेतीली, अच्छी जल निकासी वाली मृदा अनुकूल होती है, जिसमें आर्द्रता बहुत कम हो। इसकी वृद्धि के लिये तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच उपयुक्त होता है, लेकिन यह 40 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी और -4 डिग्री सेल्सियस की ठंड भी सहन कर सकता है।
- इसके इष्टतम विकास के लिये बहुत कम वर्षा (वार्षिक 300 मिमी. से कम) की भी आवश्यकता होती है ।
- भारत में लाहौल-स्पीति और उत्तरकाशी जैसे क्षेत्र हींग की कृषि के लिये उपयुक्त हैं, क्योंकि यहाँ की जलवायु अर्ध-शुष्क तथा उच्च हिमालयी है।
- महत्त्व: यह प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी महाभारत, चरक संहिता और पाणिनी के ग्रंथों में उल्लिखित है। इसे पाचन लाभों के लिये अत्यंत मूल्यवान माना जाता है — यह पेट दर्द को दूर करती है, स्वाद बढ़ाती है और पाचन में सहायक होती है।
- विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के बावजूद, भारत पिछले दशक के प्रारंभ तक पूरी तरह से अफगानिस्तान, ईरान और उज़्बेकिस्तान से आयात पर निर्भर था।
और पढ़ें: भारत में हींग कृषि परियोजना
रैपिड फायर
भारतीय ग्रे वुल्फ
स्रोत: डाउन टू अर्थ
दिल्ली में यमुना के बाढ़ के मैदानों के पास भारतीय ग्रे वुल्फ (भेड़िया) (Canis lupus pallipes) देखा गया, जो 1940 के दशक के बाद से दिल्ली में पहली बार देखा गया दुर्लभ भेड़िया है।
भारतीय ग्रे वुल्फ:
- भारतीय ग्रे वुल्फ: भारतीय ग्रे वुल्फ, ग्रे वुल्फ की एक उप-प्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पश्चिम एशिया में पाई जाती है।
- यह रात्रिचर और शीर्ष शिकारी है जो छोटे समूहों में शिकार करता है तथा अन्य भेड़िया उप-प्रजातियों की तुलना में कम मुखर है।
- उपस्थिति: यह कैनिडे परिवार का एक मांसाहारी जीव है जो आकार में तिब्बती और अरब भेड़ियों के बीच का होता है एवं गर्म जलवायु के अनुकूल होने के कारण इसमें शीत ऋतु के लिये मोटी खाल की कमी होती है।
- आवास एवं वितरण: पश्चिम में इज़रायल से लेकर पूर्व में भारतीय उपमहाद्वीप तक, झाड़ियों, घास के मैदानों, चरागाह कृषि-पारिस्थितिकी तंत्रों और गर्म क्षेत्रों में अर्द्ध-शुष्क कृषि-पारिस्थितिकी तंत्रों में पाए जाते हैं।
- संरक्षण स्थिति:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची I
- खतरे: इस प्रजाति को कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें कृषि और औद्योगिक विस्तार के कारण घास के मैदानों का खत्म होना, आवास स्थल में परिवर्तन, प्राकृतिक शिकार में कमी तथा जंगली कुत्तों से होने वाली बीमारियों का फैलना शामिल है।
और पढ़ें: भारतीय ग्रे वुल्फ
रैपिड फायर
तमिलनाडु में मिला 800 वर्ष पुराना शिव मंदिर
स्रोत: द हिंदू
तमिलनाडु में परवर्ती पांड्य काल (1216-1345) का 800 वर्ष पुराना शिव मंदिर खोजा गया है, जो क्षेत्र की ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी देता है।
- शिलालेख और शिल्प शास्त्र से पुष्टि होती है कि थेन्नावनीश्वरम नामक मंदिर भगवान शिव को समर्पित था।
- इसका निर्माण 1217-1218 ई. में मारवर्मन सुंदर पांड्या के शासनकाल के दौरान हुआ था और यह उस गाँव में स्थित है जिसे पहले अत्तूर (अब उदमपट्टी) कहा जाता था।
- थेन्नावन पांड्यों द्वारा प्रयुक्त एक उपाधि है जो यह दर्शाती है कि मंदिर को शाही समर्थन प्राप्त था।
- शिलालेखों में नागनकुडी नामक जलाशय को 64 कासू (सिक्कों) में बेचे जाने का उल्लेख है।
- भूमि कर का भुगतान तेन्नावानीश्वरम के भगवान को किया जाना था, जिससे मंदिर की वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके।
- परवर्ती पांड्यों: आरंभिक पांड्यों (ईसा पूर्व चौथी से तीसरी शताब्दी) ने कालभ्रों के हाथों अपनी शक्ति खो दी, छठी शताब्दी में इसे पुनः प्राप्त किया, 9वीं शताब्दी में चोलों के अधीन हो गए तथा 12वीं शताब्दी में परवर्ती पांड्यों के रूप में पुनः शासन किया।
- उनके रोमन साम्राज्य, यूनानियों, चीनियों और मिस्रियों के साथ संबंध थे तथा मार्को पोलो (13वीं शताब्दी के इतालवी यात्री) जैसे यात्रियों ने उनकी प्रशंसा की थी।
- 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आक्रमण के बाद उनका राज्य समाप्त हो गया और वे विजयनगर साम्राज्य में सम्मिलित हो गए।
- पांड्यों द्वारा संरक्षित मंदिर: मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), अरंगनाथर मंदिर (श्रीरंगम), विजयनारायण मंदिर (नांगुनेरी), लक्ष्मी नारायण मंदिर (अथुर)।
और पढ़ें: संगम युग