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डेली न्यूज़

  • 29 Mar, 2024
  • 72 min read
शासन व्यवस्था

ब्लैक कार्बन उत्सर्जन और PMUY

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लैक कार्बन, कार्बन तटस्थता, नवीकरणीय ऊर्जा, बायोमास, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जीवाश्म ईंधन, वायु प्रदूषक, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, द्रवित पेट्रोलियम गैस, उज्ज्वला 2.0, BS-VI मानदंड, इथेनॉल सम्मिश्रण, वहनीय परिवहन के लिये सतत् विकल्प, संपीड़ित बायो-गैस, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, FAME योजना

मेन्स के लिये:

शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के प्रयास में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) का योगदान

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित किये गए UNFCCC COP26 जलवायु वार्ता के दौरान भारत ने कार्बन तटस्थता की दिशा में कार्य करने करने हेतु स्वयं को एक अग्रणी देश के रूप में प्रदर्शित करते हुए वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई।

  • नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy) के अनुसार वर्ष 2023 तक भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 180 गीगावॉट से अधिक है तथा वर्ष 2030 तक ऊर्जा क्षमता में वृद्धि कर इसे 500 गीगावॉट करने की लक्ष्य प्राप्ति के लिये प्रयासरत है।
  • भारत सरकार की योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम कर शुद्ध शून्य उत्सर्जन की लक्ष्य प्राप्ति में अहम योगदान दे सकती है।

ब्लैक कार्बन (BC) क्या है ?

  • परिचय:
    • ब्लैक कार्बन एक काले रंग का कालिखयुक्त पदार्थ होता है जो बायोमास और जीवाश्म ईंधन के पूर्ण रूप से दहन नहीं होने की अवस्था में अन्य प्रदूषकों के साथ उत्सर्जित होता है।
    • BC एक अल्पकालिक प्रदूषक है जिसका कार्बन डाइऑक्साइड के बाद ग्रह के ताप को बढ़ाने में दूसरा सबसे बड़ा योगदान है।
      • अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC तीव्रता से समाप्त हो जाता है और यदि इसके उत्सर्जन की रोकथाम की जाती है तो इसे वायुमंडल से पूर्ण रूप से समाप्त किया जा सकता है।
      • अन्य कार्बन उत्सर्जन के विपरीत इसके उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत स्थानीय होता है जिसका मुख्य रूप से स्थानीय प्रभाव पड़ता है।
      • ब्लैक कार्बन एक प्रकार का एयरोसोल है।
  • प्रभाव:
    • एयरोसोल (जैसे- ब्राउन कार्बन, सल्फेट्स) में ब्लैक कार्बन को जलवायु परिवर्तन के लिये दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण मानवजनित एजेंट और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को समझने हेतु प्राथमिक एजेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
      • ब्लैक कार्बन सौर ऊर्जा को अवशोषित करता है तथा वातावरण को ऊष्मित करता है। वर्षण की बूँदों के साथ पृथ्वी के संपर्क में आने से यह हिम और बर्फ की सतह को काला कर देता है जिससे उनका एल्बिडो (सतह की परावर्तक क्षमता) कम हो जाती है जिससे हिम ऊष्मित हो जाता है तथा उसके विगलन की गति तीव्र हो जाती है।
    • यह ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है और गंभीर जोखिम उत्पन्न करता है। किये गए अध्ययनों के अनुसार ब्लैक कार्बन के संपर्क में आने से हृदय रोग, जन्म संबंधी जटिलताएँ और असमय मृत्यु के उच्च जोखिम जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • स्रोत:
    • भारत में अधिकांश ब्लैक कार्बन उत्सर्जन पारंपरिक चूल्हों में गाय के उपलों अथवा पुआल जैसे बायोमास के उपयोग से होता है।
    • यह गैस और डीज़ल इंजन, कोयला चालित ऊर्जा संयंत्रों तथा जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होता है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो एक वायु प्रदूषक है।
    • वर्ष 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, आवासीय क्षेत्र भारत के कुल ब्लैक कार्बन उत्सर्जन में 47% योगदान देता है।
    • इसमें उद्योगों का योगदान 22%, डीज़ल चालित वाहनों का 17%, मुक्त वायुमंडल में दहन से 12% और अन्य स्रोतों का 2% है।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2016 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) द्वारा ऐसे ग्रामीण तथा वंचित परिवारों, जोकि ईंधन के रूप में जलावन लकड़ी, कोयला, गोबर के उपले आदि जैसे पारंपरिक खाना पकाने के ईंधन का उपयोग कर रहे थे, के लिये LPG जैसे स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक प्रमुख योजना के रूप में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) की शुरुआत की गई।
      • भोजन पकाने के पारंपरिक ईंधन के प्रयोग से पार्टिकुलेट मैटर और ब्लैक कार्बन के भारी उत्सर्जन के कारण ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव पड़ा। 
  • उद्देश्य:
    • अधिक ब्लैक कार्बन उत्सर्जित करने वाले भोजन पकाने के इस अशुद्ध ईंधन के कारण भारत में होने वाली मौतों की संख्या को कम करना।
    • जीवाश्म ईंधन दहन और ब्लैक कार्बन उत्सर्जन से घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण के कारण होने वाली गंभीर श्वसन बीमारियों से छोटे बच्चों को बचाना।
    • ग्रामीण और गरीब परिवारों को भोजन पकाने का स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराना एवं भोजन पकाने के पारंपरिक ईंधन पर उनकी निर्भरता को कम करना।
    • LPG कनेक्शन के साथ बुनियादी ढाँचा स्थापित करना, जिसमें मानार्थ गैस स्टोव, LPG सिलेंडर के लिये जमा राशि प्रदान करना और वितरण नेटवर्क स्थापित करना शामिल है।
  • विशेषताएँ:
    • यह योजना BPL परिवारों को प्रत्येक LPG कनेक्शन के लिये 1600 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • जमा-मुक्त LPG कनेक्शन के साथ, उज्ज्वला 2.0 लाभार्थियों को पहली रिफिल और एक हॉटप्लेट मुफ्त प्रदान करता है।
  • BC उत्सर्जन शमन में योजना की चुनौतियाँ:
    • ऊर्जा आवश्यकताएँ और पारंपरिक ईंधन: PMUY से लाभान्वित परिवारों की ऊर्जा ज़रूरतों का आधा हिस्सा अभी भी पारंपरिक ईंधन से पूरा होता है, जो उच्च स्तर का ब्लैक कार्बन उत्सर्जित करता है।
      • RTI आँकड़ों के अनुसार, सत्र 2022-23 में, सभी PMUY लाभार्थियों में से 25% ने या तो शून्य LPG रिफिल या केवल एक LPG रिफिल का लाभ उठाया, जिसका अर्थ है कि वे अभी भी भोजन पकाने के लिये पूरी तरह से पारंपरिक बायोमास ईंधन पर निर्भर हैं, जिससे ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन बढ़ जाता है।
    • स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रभाव: LPG की कमी और पारंपरिक ईंधन पर बढ़ती निर्भरता महिलाओं एवं बच्चों को असंगत रूप से प्रभावित करती है, जिससे ब्लैक कार्बन व अन्य प्रदूषकों, स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं तथा समय से पूर्व मौतों के कारण इनडोर वायु प्रदूषण बढ़ जाता है।
    • LPG सब्सिडी और सामर्थ्य: अक्तूबर 2023 में, सरकार ने LPG सब्सिडी को ₹200 से बढ़ाकर ₹300 कर दिया। हालाँकि, इस समायोजन के बावजूद 14.2 किलोग्राम LPG सिलेंडर की कीमत लगभग ₹600 बनी हुई है, जिससे कई PMUY लाभार्थियों के लिये गाय के गोबर और जलाऊ लकड़ी जैसे निःशुल्क विकल्पों की तुलना में सामर्थ्य संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
      • PMUY लाभार्थियों के लिये गाय का गोबर और जलाऊ लकड़ी अधिक किफायती हैं, इसलिये इनका प्रयोग अधिक प्रचलित है, जिससे ब्लैक कार्बन की समस्या बढ़ रही है।
    • अंतिम-मील कनेक्टिविटी बाधा: LPG वितरण नेटवर्क में अंतिम-मील कनेक्टिविटी की कमी ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने में PMUY की सफलता के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, विशेष रूप से बायोमास जलाने पर निर्भर दूरदराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों को प्रभावित करती है जो कि ब्लैक कार्बन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। 

ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये किये गए अन्य उपाय

  • स्वच्छ ईंधन का परिचय: गैसीय ईंधन (CNG, LPG आदि), इथेनॉल मिश्रण जैसे स्वच्छ/वैकल्पिक ईंधन का परिचय।
  • SATAT योजना: 5000 कंप्रेस्ड बायो-गैस उत्पादन संयंत्र स्थापित करने और CBG को उपयोग के लिये बाज़ार में उपलब्ध कराने हेतु एक नई पहल सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन शुरू की गई है।
  • फसल अवशेषों का प्रबंधन: इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है तथा साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत का 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम: CPCB के तहत सरकार वर्ष 2026 तक योजना के तहत शामिल किये गए शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (PM) की सघनता में 40% की कमी का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया है, साथ ही वर्ष 2024 तक 20 से 30% की कमी के पहले के लक्ष्य को अद्यतन किया है।
    • ये योजनाएँ शहर के विशिष्ट वायु प्रदूषण स्रोतों (मृदा और सड़क की धूल, वाहन, घरेलू ईंधन, नगर निगम के ठोस अपशिष्ट को जलाना, निर्माण सामग्री एवं उद्योग आदि) को नियंत्रित करने के लिये समयबद्ध लक्ष्यों को परिभाषित करती हैं।
  • FAME योजना: फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स फेज-2 योजना शुरू की गई है।                          

आगे की राह

  • कोल-बेड मीथेन: कंपोस्टिंग ईंधन के निर्माण स्थल पर कोल-बेड मीथेन (Coal-bed Methane- CBM) गैस का उत्पादन होता है। CBM कम ब्लैक-कार्बन उत्सर्जन और निवेश के साथ एक अधिक स्वच्छ ईंधन है।
  • पंचायतें स्थानीय स्तर पर CBM के उत्पादन की पहल कर सकती हैं। जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रत्येक ग्रामीण घर तक सुरक्षित खाना पकाने के लिये ईंधन की समुचित पहुँच हो।
  • LPG अपनाने को बढ़ावा देना: स्वास्थ्य और पर्यावरण पर इसके सकारात्मक प्रभाव पर ज़ोर देते हुए, पारंपरिक ईंधन की तुलना में LPG के लाभों को बढ़ावा देने के लिये जागरूकता अभियान बढ़ाएँ।
  • आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार: LPG वितरण नेटवर्क में अंतिम-मील कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना, विशेष रूप से दूरदराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक विश्वसनीय पहुँच सुनिश्चित करना।  
  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना: खाना पकाने के प्रयोजनों के लिये बायोगैस या सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का पता लगाना, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ LPG की पहुँच सीमित है।
  • सामुदायिक व्यस्तता: स्वच्छ ऊर्जा अपनाने से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं और युवाओं को शामिल करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनकी ज़रूरतों तथा प्राथमिकताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)

  1. कसावा
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
  3. मूँगफली के बीज
  4. कुलथी
  5. सड़ा आलू
  6. चुकंदर

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. “वहनीय (ऐफोर्डेबल) विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस. डी. जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है। भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


भूगोल

समुद्री तल के खनन स्पर्द्धा में श्रीलंका के साथ भारत भी शामिल

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर सीबेड, कोबाल्ट-समृद्ध अफानसी निकितिन सीमाउंट (AN सीमाउंट), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण, समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, आंतरिक जल, प्रादेशिक सागर, सन्निहित क्षेत्र, विशेष आर्थिक क्षेत्र, कॉन्टिनेंटल सेल्फ, बंगाल की खाड़ी

मेन्स के लिये:

हिंद महासागर के समुद्री तल का पता लगाने के अधिकार का आर्थिक और कूटनीतिक महत्त्व 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने कोबाल्ट-समृद्ध अफानसी निकितिन सीमाउंट (AN सीमाउंट) सहित अपने अधिकार क्षेत्र से परे हिंद महासागर के समुद्र तल का अन्वेषण करने के अधिकार के लिये आवेदन किया था। 

  • इस क्षेत्र पर अधिकारों का दावा श्रीलंका द्वारा पहले ही कानूनों के एक अलग समूह के तहत किया जा चुका है।

अफानसी निकितिन सीमाउंट (AN सीमाउंट) क्या है?

  • AN सीमाउंट मध्य भारतीय बेसिन में एक संरचनात्मक विशेषता (400 किमी. लंबी और 150 किमी. चौड़ी) है, जो भारत के तट से लगभग 3,000 किमी. दूर स्थित है।
  • लगभग 4,800 किमी. की समुद्री गहराई से यह लगभग 1,200 मीटर तक बढ़ जाता है और यह कोबाल्ट, निकल, मैंगनीज तथा ताँबे के भंडार से समृद्ध है।
  • निष्कर्षण के साथ आगे बढ़ने के लिये इच्छुक पार्टियों/देशों को पहले अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) को अन्वेषण लाइसेंस हेतु आवेदन करना होगा। यह संगठन समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) के तहत स्वायत्त रूप से संचालित होता है।
  • ये अधिकार उन क्षेत्रों के लिये विशिष्ट हैं जो खुले महासागर का हिस्सा हैं। विश्व के लगभग 60% समुद्र खुले महासागर हैं और हालाँकि विभिन्न प्रकार की खनिज संपदा से समृद्ध माना जाता है, लेकिन निष्कर्षण की लागत तथा चुनौतियाँ निषेधात्मक हैं।

 

किन देशों को अन्वेषण लाइसेंस प्रदान किये गए हैं? 

  • भारत, फ्राँस, रूस, जर्मनी, चीन, सिंगापुर और UK की राज्य-स्वामित्व वाली तथा सरकार-प्रायोजित दोनों कंपनियों ने खुले समुद्र में खनिजों की खोज के लिये अनुमति मांगी थी।
  • लाइसेंस प्रदान किया गया:
    • प्रशांत महासागर के लिये चार लाइसेंस दिये गए हैं, हवाई और मैक्सिको के बीच क्लेरियन क्लिपरटन ज़ोन तथा उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में मैगलन सीमाउंट।
    • दो लाइसेंस हिंद महासागर रिज के लिये हैं, जबकि एक दक्षिणी अटलांटिक में रियो ग्रांडे राइज हेतु है।
  • भारत के अन्वेषण अनुप्रयोग: AN सीमाउंट के लिये आवेदन के साथ, भारत ने 3,00,000 वर्ग किमी. में फैले एक अन्य क्षेत्र का पता लगाने की अनुमति हेतु भी आवेदन किया है, जिसे पॉलीमेटैलिक सल्फाइड की जाँच के लिये मध्य हिंद महासागर में कार्ल्सबर्ग रिज को कहा जाता है, जो हाइड्रोथर्मल वेंट के पास बड़े धूम्रपान माउंड हैं जो कथित तौर पर ताँबे, जस्ता, सोने और चाँदी से समृद्ध हैं।
  • पिछले अन्वेषण प्रयास: भारत ने पहले मध्य हिंद महासागर में दो अन्य बड़े बेसिनों में अन्वेषण अधिकार सुरक्षित कर लिया है और समुद्री अन्वेषण तथा संसाधन मूल्यांकन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया है।
    • भारत लगभग दो दशकों से राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography- NIO) और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (National Institute of Ocean Technology- NIOT) जैसे संस्थानों के माध्यम से समुद्र तल का अध्ययन तथा परीक्षण कर रहा है।

समुद्र तल में खनन क्या है?

  • समुद्र तल में खनन में सतह से 200 से 6,500 मीटर की गहराई तक समुद्र तल से मूल्यवान खनिज भंडार निकालना शामिल है।
    • इन खनिज भंडारों में ताँबा, कोबाल्ट, निकल, जस्ता, चाँदी, सोना और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व जैसी सामग्रियाँ शामिल हैं।
    • NIO ने 512 मीटर की गहराई तक गहरे समुद्र में खनन प्रणालियों का परीक्षण किया है और 6,000 मीटर तक की प्रणालियों पर काम कर रहा है।
  • समुद्र तल में खदानें स्थापित करना पहले भूमि आधारित खनन की तुलना में अधिक महँगा माना जाता था।
  • पेट्रोलियम उद्योग के अंडरवाटर रोबोटिक्स में नवाचारों ने समुद्र तल में खनन की संभावनाओं में सुधार किया है।

विभिन्न समुद्री क्षेत्र क्या हैं?

  • आधार रेखा (Baseline):   
    • आधार रेखा (Baseline) एक रेखा को संदर्भित करती है, जो अक्सर समुद्र तट के साथ होती है, जो किसी राज्य के क्षेत्रीय समुद्र और अन्य समुद्री क्षेत्रों, जैसे कि उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र की बाहरी सीमाओं को मापने के लिये एक संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य करती है।
    • आमतौर पर यह आधार रेखा तटीय राज्य के कम पानी के निशान को प्रतिबिंबित करती है। ऐसे मामलों में जहाँ समुद्र तट गहराई से इंडेंटेड है, इसमें किनारे के करीब द्वीप हैं या महत्त्वपूर्ण अस्थिरता प्रदर्शित करते हैं, इसके बजाय सीधी आधार रेखाएँ स्थापित की जा सकती हैं।
  • आंतरिक जल:
    • आंतरिक जल वे जल होते हैं जो आधार रेखा के भू-भाग पर स्थित होते हैं और जिससे प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है।
    • प्रत्येक तटीय देश की अपने भूमि क्षेत्र की तरह अपने आंतरिक जल पर पूर्ण संप्रभुता होती है। आंतरिक जल के उदाहरणों में खाड़ी, बंदरगाह, इनलेट, नदियाँ और यहाँ तक कि समुद्र से जुड़ी झीलें भी शामिल हैं।
    • आंतरिक जल से इनोसेंट पैसेज के गुज़रने का कोई अधिकार नहीं है।
      • इनोसेंट पैसेज का तात्पर्य उन जल से गुज़रना है जो शांति और सुरक्षा के प्रतिकूल नहीं हैं। हालाँकि राष्ट्रों को इसे निलंबित करने का अधिकार है।
  • प्रादेशिक सागर:
    • प्रादेशिक समुद्र अपनी आधार रेखा से समुद्र की ओर 12 नॉटिकल मील (NM) तक विस्तृत होता है।   
      • प्रादेशिक समुद्र पर तटीय देशों की संप्रभुता और न्यायाधिकार का क्षेत्र है। ये अधिकार न केवल समुद्री सतह पर बल्कि समुद्री आधार, हवाई क्षेत्र तक विस्तृत होते हैं।

  • सन्निहित क्षेत्र (Contiguous Zone):
    • सन्निहित क्षेत्र का विस्तार आधार रेखा से 24 नॉटिकल मील तक विस्तृत होता है।
    • यह प्रादेशिक समुद्र और उच्च समुद्र के बीच स्थित एक मध्यस्थ क्षेत्र होता है।
    • तटीय देशों को अपने क्षेत्र के भीतर राजकोषीय, आव्रजन, स्वच्छता और सीमा शुल्क कानूनों के उल्लंघन को रोकने तथा दंडित करने का अधिकार होता है।
    • प्रादेशिक समुद्र के विपरीत, सन्निहित क्षेत्र पर संबद्ध देश का क्षेत्राधिकार केवल समुद्र की सतह और तल तक सीमित होता है। यह क्षेत्राधिकार वातावरण और वायुमंडल पर लागू नहीं होता है।
  • अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone- EEZ):
    • प्रत्येक तटीय राज्य अपने क्षेत्रीय समुद्र से परे और उसके निकट आधार रेखा से 200 नॉटिकल मील दूर तक विस्तृत EEZ का दावा कर सकता है।
    • EEZ के भीतर एक तटीय राज्य को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं:
      • समुद्र तल और उपमृदा के सजीव अथवा निर्जीव प्राकृतिक संसाधनों का अन्वेषण, दोहन, संरक्षण तथा प्रबंधन करने का संप्रभु अधिकार।
      • संबद्ध क्षेत्र के जल, धाराओं और वायु से ऊर्जा के उत्पादन करने जैसी गतिविधियों का अधिकार।  
    • प्रादेशिक समुद्र और सन्निहित क्षेत्र के विपरीत, EEZ केवल उपर्युक्त संसाधन अधिकारों की अनुमति देता है। यह किसी तटीय राज्य को बहुत सीमित अपवादों के अधीन नौवहन अथवा ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित अथवा सीमित करने का अधिकार नहीं देता है।
  • महाद्वीपीय शेल्फ:
    • महाद्वीपीय शेल्फ का तात्पर्य समुद्र के नीचे स्थित महाद्वीप के किनारे से है। महाद्वीपीय शेल्फ का विस्तार महाद्वीप के समुद्र तट से एक ड्रॉप-ऑफ बिंदु तक होता है जिसे शेल्फ अवकाश (Shelf Break) कहा जाता है।
      • ब्रेक से, शेल्फ गभीर महासागरीय तली (Deep Ocean Floor) की ओर विस्तृत होता है जिसे महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope) कहा जाता है।
  • हाई सीज़ (High Seas):
    • EEZ से अलग समुद्र की सतह और जल स्तंभ को ‘हाई सीज़’ कहा जाता है।
    • इसे "सभी मानव जाति की साझा विरासत" के रूप में माना जाता है और यह किसी भी राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे है।
    • देश इन क्षेत्रों में गतिविधियों का संचालन तब तक कर सकते हैं जब तक कि वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये हों, जैसे कि पारगमन, समुद्री विज्ञान और समुद्र की सतह के नीचे की खोज।

महाद्वीपीय शेल्फ से संबंधित दावे और अन्वेषण अधिकार क्या हैं?

  • महाद्वीपीय शेल्फ पर विशेष अधिकार: देशों के पास उनकी सीमाओं से 200 नॉटिकल मील तक विस्तृत क्षेत्र पर विशेष अधिकार होते हैं जिसमें अंतर्निहित समुद्र तल भी शामिल है। यह क्षेत्राधिकार संबद्ध क्षेत्र के भीतर संसाधनों की खोज और उनके दोहन की अनुमति प्रदान करते हैं।
  • महाद्वीपीय शेल्फ विस्तार: समुद्र की सीमा से लगे कुछ राज्यों में 200 नॉटिकल मील से अधिक विस्तृत एक प्राकृतिक भूमि संरचना हो सकती है जो उनकी सीमा को गहरे समुद्र के किनारे से जोड़ती है। इस विस्तार को महाद्वीपीय शेल्फ के नाम से जाना जाता है।
  • विशेष प्रावधान: बंगाल की खाड़ी के किनारे से लगने वाले देशों को अपने महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर दावा करने के लिये अलग मानदंड लागू करने की अनुमति देने का प्रावधान किया गया है।
    • उदाहरण: विशेष प्रावधान का उपयोग करते हुए श्रीलंका ने अपने महाद्वीपीय शेल्फ को 500 नॉटिकल मील तक विस्तृत करने का दावा किया जो निर्धारित 350 नॉटिकल मील की सामान्य सीमा से अधिक है।     
  • दावे के लिये तर्कसंगत समर्थन: 200 नॉटिकल मील से अधिक महाद्वीपीय शेल्फ पर विशेष अधिकार का दावा करने के लिये संबद्ध देश को समुद्र के नीचे के मानचित्रों और सर्वेक्षणों द्वारा समर्थित एक विस्तृत वैज्ञानिक तर्क प्रदान करना होगा। यह जानकारी अंतर्राष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी (ISBA) द्वारा नियुक्त एक वैज्ञानिक आयोग को प्रस्तुत की जाती है।
    • यदि दावा आयोग द्वारा अनुमोदित किया जाता है तो देश को विस्तारित महाद्वीपीय शेल्फ के भीतर सजीव और निर्जीव दोनों संसाधनों की खोज करने तथा उनका दोहन करने की अनुमति प्रदान की जाती है।

डीप सी माइनिंग का क्या महत्त्व है?

  • संसाधन की उपलब्धता: गहरे समुद्र में खनन के माध्यम से तीव्रता से दुर्लभ होते जा रहे मूल्यवान संसाधनों का अन्वेषण किया जा सकता है। इन संसाधनों में पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स, पॉलीमेटैलिक सल्फाइड और कोबाल्ट-समृद्ध फेरोमैंगनीज क्रस्ट शामिल हैं जिनमें ताँबा, निकल, कोबाल्ट तथा दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे खनिजों की उच्च सांद्रता होती है।
    • समय के साथ स्थलीय भंडारों के समाप्त होने की दशा में गहरे समुद्र में खनन महत्त्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करता है।
  • तकनीकी प्रगति: गहरे समुद्र में खनन के लिये प्रौद्योगिकियों का विकास नवाचार और तकनीकी उन्नति के अवसर प्रस्तुत करता है। इसमें उच्च दाब, अंधेरे और निम्न तापमान जैसी विषम समुद्री परिस्थितियों में कार्य करने में सक्षम विशेष उपकरणों को डिज़ाइन करना शामिल है।
    • कुशल और सुरक्षित खनन कार्यों के लिये रोबोटिक्स, दूर से संचालित वाहन (ROV) तथा ऑटोनोमस अंडरवॉटर व्हीकल्स (AUV) में उन्नति करना आवश्यक है।
  • आर्थिक क्षमता: गहरे समुद्र में खनन से माध्यम से संबद्ध देश और कंपनियाँ एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक लाभ अर्जित कर सकते हैं।
    • समुद्र तल से मूल्यवान खनिजों का निष्कर्षण आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकता है, रोज़गार के अवसर सृजित कर सकता है और करों, रॉयल्टी तथा संसाधन-साझाकरण समझौतों के माध्यम से राष्ट्रीय राजस्व में योगदान कर सकता है। 

डीप सी माइनिंग से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • समुद्री पारितंत्र की क्षति: गहरे समुद्र में खनन करने से समुद्री पारितंत्र को नुकसान हो सकता है। खनन से होने वाली क्षति में शोर, कंपन और प्रकाश प्रदूषण, साथ ही खनन प्रक्रिया में उपयोग किये जाने वाले ईंधन तथा अन्य रसायनों के संभावित रिसाव एवं फैलाव शामिल हो सकते हैं।
    • यह समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा सकता है।
  • तलछट प्लम का निर्माण: खनन से समुद्र तल पर महीन तलछट की उत्पत्ति हो सकती है जिससे निलंबित कणों के प्लम का निर्माण होगा। खनन द्वारा मूल्यवान सामग्री के निष्कर्षण के पश्चात् गारा तलछट के ढेर को कभी-कभी वापस समुद्र में डाल दिया जाता है।
    • यह प्रवाल और स्पंज जैसी फिल्टर-फीडिंग प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकता है और कुछ अन्य प्राणियों को प्रभावित कर सकता है।
  • समुद्री जीवों पर व्यापक प्रभाव: गहरे समुद्र में खनन से समुद्र तल को नुकसान पहुँचने के अतिरिक्त, मछलियों की संख्या, समुद्री स्तनपायी जीवों और जलवायु को विनियमित करने में गहरे समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र की भूमिका पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
  • खुदाई और मापन: मशीनों द्वारा समुद्र तल की खुदाई और मापन गहन समुद्र की पारिस्थितिकी को बदल या नष्ट कर सकता है एवं गहन समुद्र में निवास करने वाली अज्ञात प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकता है।

समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1982

  • परिचय:
    • UNCLOS एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो विश्व के समुद्रों और महासागरों के उपयोग के लिये एक नियामक फ्रेमवर्क प्रदान करती है।
    • यह विश्व के महासागरों और समुद्रों में कानून एवं व्यवस्था की एक व्यापक व्यवस्था स्थापित करता है तथा महासागरों व उनके संसाधनों के सभी उपयोगों को नियंत्रित करने वाले नियम स्थापित करता है।
    • यह इस धारणा को स्थापित करता है कि महासागर क्षेत्र की सभी समस्याएँ आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई हैं और इन्हें समग्र रूप से हल करने की आवश्यकता है।
  • अनुसमर्थन:
    • यह कन्वेंशन दिसंबर 1982 में मोंटेगो बे, जमैका में हस्ताक्षर के लिये आयोजित किया गया था।
    • कन्वेंशन को 168 पार्टियों द्वारा अनुमोदित किया गया है, जिसमें 167 राज्य (164 संयुक्त राष्ट्र (UN) सदस्य देश और संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक राज्य फिलिस्तीन, साथ ही कुक आइलैंड्स तथा नीयू) एवं यूरोपीय संघ शामिल हैं। अतिरिक्त 14 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों ने सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की है।
    • जबकि भारत ने वर्ष 1995 में संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानून का अनुमोदन किया था, अमेरिका अब तक ऐसा करने में विफल रहा है।
  • भारतीय कानून:
    • भारत के प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय शेल्फ, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और अन्य समुद्री क्षेत्र अधिनियम, 1976 के अनुसार:
      • सभी विदेशी जहाज़ों (पनडुब्बियों और अन्य ऐसे वाहनों सहित युद्धपोतों के अलावा) को क्षेत्रीय जल के माध्यम से सरल मार्ग का अधिकार प्राप्त होगा।
        • सरल मार्ग: यह वह मार्ग है जो भारत की शांति, अच्छी व्यवस्था या सुरक्षा के लिये प्रतिकूल नहीं है। 

अन्य ब्लू इकॉनमी पहल क्या हैं?

आगे की राह 

  • नियामक ढाँचे में वृद्धि: ज़िम्मेदार और टिकाऊ गहन समुद्र में खनन प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये नियमों तथा अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को मज़बूत करना आवश्यक है। इसमें शोर, कंपन और प्रकाश प्रदूषण के लिये कड़े दिशा-निर्देश स्थापित करना, साथ ही खनन उप-उत्पादों तथा रसायनों के प्रबंधन एवं निपटान के लिये सख्त प्रोटोकॉल शामिल हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: खनन लाइसेंस देने से पहले संपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करना महत्त्वपूर्ण है। इन आकलनों में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र, जैवविविधता और आवासों को संभावित नुकसान के साथ-साथ मछली की जीव-संख्या एवं समुद्री स्तनधारियों पर दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • शमन उपाय: गहन समुद्र में खनन गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी शमन उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें ध्वनि और प्रकाश प्रदूषण को कम करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना, निलंबित कणों के प्रसार को रोकने के लिये तलछट नियंत्रण उपायों को नियोजित करना एवं अपशिष्ट प्रबंधन व निपटान के लिये नवीन तरीकों का विकास करना शामिल हो सकता है।
  • निगरानी और प्रवर्तन: गहरे समुद्र में खनन कार्यों के पर्यावरणीय प्रभाव को ट्रैक करने के लिये मज़बूत निगरानी तंत्र स्थापित करना आवश्यक है। नियमों के नियमित निरीक्षण और प्रवर्तन से पर्यावरण मानकों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकता है एवं किसी भी उल्लंघन के मामले में त्वरित हस्तक्षेप किया जा सकता है।

और पढ़ें: गहन समुद्र में खनन, गहन समुद्र में खनन और इसके खतरे, भारत का डीप ओशन मिशन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q1. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ [इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल कोऑपरेशन (IOR-ARC)]' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना अत्यंत हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (ऑयलस्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IOR-ARC) हिंद महासागर रिम देशों की एक क्षेत्रीय सहयोग पहल है जिसे अपने सदस्यों के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मार्च 1997 में मॉरीशस में स्थापित किया गया था। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • IOR-ARC एकमात्र अखिल-हिंद महासागर समूह है। इसके 23 सदस्य देश और 9 संवाद भागीदार हैं।
  • इसका उद्देश्य हिंद महासागर परिधि क्षेत्र में व्यापार, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग के लिये एक मंच तैयार करना है, जिसकी आबादी लगभग दो अरब लोगों की है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • हिंद महासागर परिधि रणनीतिक और बहुमूल्य खनिजों, धातुओं व अन्य प्राकृतिक संसाधनों, समुद्री संसाधनों एवं ऊर्जा से समृद्ध है, जो सभी विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ), महाद्वीपीय भंडारों तथा गहन समुद्र तल से प्राप्त की जा सकती हैं। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

Q2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. वैश्विक सागर आयोग (ग्लोबल ओशन कमीशन) अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र-संस्तरीय (सीबेड) खोज़ और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करता है।
  2. भारत ने अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र-संस्तरीय खनिज की खोज़ के लिये लाइसेंस प्राप्त किया है।
  3. 'दुर्लभ मृदा खनिज (रेअर अर्थ मिनरल)' अंतर्राष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्र अधस्तल पर उपलब्ध है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

Q. विश्व के संसाधन संकट से निपटने के लिये महासागरों के विभिन्न संसाधनों, जिनका उपयोग किया जा सकता है, का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO

प्रिलिम्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, बेरोज़गारी दर, मानव विकास संस्थान (IHD), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR), बेरोज़गारी दर (UR) 

मेन्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव विकास संस्थान (IHD) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 'भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारत के युवा बढ़ती बेरोज़गारी दर से जूझ रहे हैं।

  • मानव विकास संस्थान (IHD) की स्थापना वर्ष 1998 में इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (ISLE) के तत्त्वावधान में की गई थी, यह एक गैर-लाभकारी स्वायत्त संस्थान है जिसका उद्देश्य एक ऐसे समाज के निर्माण में योगदान देना है जो समावेशी विकास को बढ़ावा देता है और एक समावेशी सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को महत्त्व देता है जो गरीबी एवं अभावों से मुक्त हो।

नोट: 

भारत रोज़गार रिपोर्ट, 2024 श्रम और रोज़गार के मुद्दों पर IHD द्वारा नियमित प्रकाशनों की शृंखला में तीसरा है। युवा रोज़गार, शिक्षा और कौशल पर यह रिपोर्ट भारत में उभरते आर्थिक, श्रम बाज़ार, शैक्षिक एवं कौशल परिदृश्य व पिछले दो दशकों में हुए बदलावों के संदर्भ में युवा रोज़गार की चुनौती की जाँच करती है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • रोज़गार की खराब स्थितियाँ: 
    • समग्र श्रम बल भागीदारी और रोज़गार दरों में सुधार के बावजूद, भारत में रोज़गार की स्थिति खराब बनी हुई है, जिसमें स्थिर या घटती मज़दूरी, महिलाओं के बीच स्व-रोज़गार में वृद्धि एवं युवाओं के बीच अवैतनिक पारिवारिक काम का उच्च अनुपात जैसे मुद्दे शामिल हैं।
    • भारत के बेरोज़गार कार्यबल में लगभग 83% युवा हैं और कुल बेरोज़गारों में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 65.7% हो गई है।

  • युवा रोज़गार चुनौतियाँ:
    • वर्ष 2000 और वर्ष 2019 के बीच युवा रोज़गार तथा अल्परोज़गार में वृद्धि हुई, शिक्षित युवाओं को बेरोज़गारी के उच्च स्तर का अनुभव हुआ।
    • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) और बेरोज़गारी दर (UR) में वर्ष 2000 तथा वर्ष 2018 के बीच दीर्घकालिक गिरावट देखी गई लेकिन वर्ष 2019 के बाद सुधार देखा गया।
    • यह सुधार दो शीर्ष कोविड-19 तिमाहियों को छोड़कर, कोविड-19 से पहले और बाद में आर्थिक संकट की अवधि के साथ मेल खाता है।

  • विरोधाभासी सुधार:
    • पिछले दो दशकों में, भारत के नौकरी बाज़ार में कुछ श्रम संकेतकों में कुछ सुधार देखा गया है, लेकिन समग्र रोज़गार की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
    • वर्ष 2018 से पहले कृषि रोज़गार की तुलना में गैर-कृषि रोज़गार तेज़ी से बढ़ने के बावजूद, गैर-कृषि क्षेत्र कृषि से श्रमिकों को अवशोषित करने के लिये पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुए हैं।
    • अधिकांश श्रमिक, लगभग 90%, अनौपचारिक कार्य में लगे हुए हैं और नियमित रोज़गार का अनुपात, जो वर्ष 2000 के बाद लगातार बढ़ रहा था, वर्ष 2018 के बाद घटने लगा।
    • भारत के बड़े युवा कार्यबल को, जिसे अक्सर जनसांख्यिकीय लाभ के रूप में देखा जाता है, आवश्यक कौशल की कमी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
      • युवाओं के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से में बुनियादी डिजिटल साक्षरता कौशल का अभाव है, जिसमें 75% संलग्नक के साथ ईमेल भेजने में असमर्थ हैं, 60% फ़ाइलों को कॉपी और पेस्ट करने में असमर्थ हैं तथा 90% गणितीय सूत्र डालने जैसे बुनियादी स्प्रेडशीट कार्य करने में असमर्थ हैं।
  • मज़दूरी और कमाई में कमी:
    • जबकि वर्ष 2012-22 के दौरान आकस्मिक मज़दूरों की मज़दूरी में मामूली वृद्धि का रुझान बना रहा, नियमित श्रमिकों की वास्तविक मज़दूरी या तो स्थिर रही या गिरावट आई। वर्ष 2019 के बाद स्व-रोज़गार की वास्तविक कमाई में भी गिरावट आई।
    • कुल मिलाकर मज़दूरी कम बनी हुई है। अखिल भारतीय स्तर पर अकुशल आकस्मिक कृषि श्रमिकों में से 62% और निर्माण क्षेत्र में 70% ऐसे श्रमिकों को वर्ष 2022 में निर्धारित दैनिक न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिली।
  • औद्योगिक रोज़गार की संरचना में परिवर्तन:
    • डिजिटल रूप से मध्यस्थता वाले गिग और प्लेटफॉर्म कार्य का परिचय तेज़ी से हुआ है, जो प्लेटफॉर्म द्वारा एल्गोरिथम द्वारा नियंत्रित होते हैं तथा श्रम प्रक्रिया के नियंत्रण में नई सुविधाएँ लेकर आए हैं।
    • तेज़ी से, प्लेटफ़ॉर्म और गिग कार्य का विस्तार हो रहा है, लेकिन यह काफी हद तक, अनौपचारिक कार्य का विस्तार है, जिसमें शायद ही कोई सामाजिक सुरक्षा प्रावधान है।
  • भविष्य में प्रवासन बढ़ने की संभावना: 
    • भविष्य में शहरीकरण और प्रवासन की दरों में काफी वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2030 में भारत में प्रवासन दर लगभग 40% होने की उम्मीद है और शहरी आबादी लगभग 607 मिलियन होगी।
    • शहरी विकास में इस वृद्धि का बड़ा हिस्सा प्रवासन से आएगा। प्रवासन का पैटर्न श्रम बाज़ारों में क्षेत्रीय असंतुलन को भी दर्शाता है।
    • सामान्यतः प्रवास की दिशा पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और मध्य क्षेत्रों से दक्षिणी, पश्चिमी तथा उत्तरी क्षेत्रों की ओर होती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • विभिन्न राज्यों में रोज़गार परिणामों में महत्त्वपूर्ण भिन्नताएँ मौजूद हैं, कुछ राज्य रोज़गार संकेतकों में लगातार निचले स्थान पर हैं।
    • बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पिछले कुछ वर्षों में खराब रोज़गार परिणामों से जूझ रहे हैं, जो क्षेत्रीय नीतियों के प्रभाव को दर्शाता है।
  • बढ़ता लिंग अंतर:
    • महिला श्रम बल भागीदारी की कम दर के साथ, भारत श्रम बाज़ार में पर्याप्त लिंग अंतर की चुनौती का सामना कर रहा है।
    • युवा महिलाओं, विशेषकर उच्च शिक्षित महिलाओं के बीच बेरोज़गारी की चुनौती बहुत बड़ी है।
    • सकारात्मक कार्रवाई और लक्षित नीतियों के बावजूद सामाजिक असमानताएँ भी बनी हुई हैं, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति को बेहतर नौकरी के अवसरों तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
      • यद्यपि सभी समूहों में शैक्षिक उपलब्धि में सुधार हुआ है, सामाजिक पदानुक्रम कायम है, जिससे रोज़गार असमानता बढ़ गई है।
  • नीति सिफारिशें:
    • उत्पादन बढ़ाने और रोज़गार पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकास को बढ़ावा देने के लिये नीतिगत सिफारिशें प्रस्तावित हैं:
    • व्यापक आर्थिक नीतियों में रोज़गार सृजन के एजेंडे को एकीकृत करना, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादक गैर-कृषि रोज़गार पर ज़ोर देना।
    • अकुशल श्रम को अवशोषित करने और चयनित सेवाओं के साथ पूरक करने के लिये श्रम-गहन विनिर्माण को प्राथमिकता देना।
    • विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों को समर्थन देने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • कृषि उत्पादकता बढ़ाना, गैर-कृषि रोज़गार के अवसर पैदा करना और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
    • रोज़गार की पर्याप्त संभावनाओं को अनलॉक करने के लिये रणनीतिक निवेश, क्षमता निर्माण पहल और नीति ढाँचे का लाभ उठाते हुए हरित तथा नीली अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करना।
  • कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु रणनीतियों की अनुशंसा: 
    • स्वास्थ्य देखभाल उद्योग और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में निवेश करने तथा उन्हें विनियमित करने की आवश्यकता है जो युवा लोगों के लिये रोज़गार के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में भूमिका निभा सकते हैं।
    • शहरी क्षेत्रों में सभ्य रोज़गार के अवसरों की तलाश करने वाले युवाओं द्वारा विशेष रूप से भारत में शहरीकरण और प्रवासन दरों में अनुमानित वृद्धि को देखते हुए एक समावेशी शहरीकरण तथा प्रवासन नीति को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
    • श्रम नीति और विनियमन के लिये एक सुदृढ़ सहायक भूमिका सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें रोज़गार गुणवत्ता के न्यूनतम मानक की गारंटी और सभी क्षेत्रों में श्रमिकों के मूलभूत अधिकारों का संरक्षण शामिल है।
  • श्रम बाज़ार की असमानताओं को दूर करने के लिये प्रमुख दृष्टिकोण:
    • गुणवत्तापूर्ण रोज़गार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये नीतियाँ लागू करने की आवश्यकता है।
    • आर्थिक रूप से वंचित समूहों के उत्थान और रोज़गार क्षमता को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा में उच्च गुणवत्ता वाले कौशल प्रशिक्षण को एकीकृत करना आवश्यक है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी तक पहुँच में सुधार कर और डिजिटल अंतराल को पाटना। महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव का समाधान कर एक निष्पक्ष श्रम बाज़ार स्थापित करना

रोज़गार से संबंधित सरकार की क्या पहल हैं?

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियों को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्यतापूर्ण कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
  • वर्ष 1919 में वर्सेल्स/वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई और वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
  • मुख्यालय: इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।

 

और पढ़ें…NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि: (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)


जैव विविधता और पर्यावरण

सुंदरबन

प्रिलिम्स:

सुंदरबन, एश्चुरिन क्रोकोडाइल, वॉटर मॉनिटर लिज़ार्ड , गंगा डॉल्फिन, ओलिव रिडले कछुआ, बंगाल की खाड़ी

मेन्स:

सुंदरबन, सुंदरबन से संबंधित चुनौतियाँ, प्रकृति-आधारित समाधान।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

सुंदरबन को स्वच्छ जल की कमी, माइक्रोप्लास्टिक्स और रसायनों से प्रदूषण तथा तटीय कटाव सहित कई पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे इसकी सुरक्षा के लिये स्थायी समाधान तलाशना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

सुंदरबन क्या है?

  • परिचय:
    • सुंदरबन विश्व के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों का आवास है, जो बंगाल की खाड़ी पर गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित है।
      • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भूमि तथा समुद्र के बीच एक विशेष वातावरण है।
  • वनस्पति जीव:
    • यह वनस्पतियों की 84 प्रजातियों को आश्रय प्रदान करता है, जिनमें 26 मैंग्रोव प्रजातियाँ, जीवों की 453 प्रजातियाँ, मछलियों की 120 प्रजातियाँ, पक्षियों की 290 प्रजातियाँ, स्तनधारियों की 42 प्रजातियाँ, 35 सरीसृप और आठ उभयचर प्रजातियाँ शामिल हैं। 12 मिलियन से अधिक लोग - भारत में 4.5 मिलियन और बांग्लादेश में 7.5 मिलियन - इस डेल्टा पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करते हैं।
    • सुंदरबन में कई जानवरों की प्रजातियाँ प्राकृतिक रूप से निवास करती हुई पाई गई हैं, जहाँ वे भोजन करते हैं, प्रजनन करते हैं और आश्रय पाते हैं।
  • संरक्षण:
    • सुंदरबन का 40% हिस्सा भारत में और शेष बांग्लादेश में स्थित है। सुंदरबन को वर्ष 1987 (भारत) और 1997 (बांग्लादेश) में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया था।
    • जनवरी 2019 में रामसर कन्वेंशन के तहत भारत के सुंदरबन वेटलैंड को 'अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड' के रूप में मान्यता दी गई थी।
    • प्रोजेक्ट टाइगर: प्रोजेक्ट टाइगर सुंदरबन के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में सबसे महत्त्वपूर्ण कदमों में से एक है, क्योंकि इसने रॉयल बंगाल टाइगर की आबादी को संरक्षित करके संपूर्ण जंगल की रक्षा की है।
    • सुंदरबन के संरक्षण पर भारत और बांग्लादेश के बीच समझौता ज्ञापन: वर्ष 2011 में भारत और बांग्लादेश दोनों ने सुंदरबन की निगरानी तथा संरक्षण की आवश्यकता को पहचानते हुए सुंदरबन के संरक्षण पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
    • बायोस्फीयर रिज़र्व:

सुंदरबन के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • ताज़े जल की कमी: 
    • नदियों की मुख्य रूप से खारी प्रकृति के कारण सुंदरबन में मीठे पानी की कमी का अनुभव होता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और निवासियों की आजीविका दोनों प्रभावित होती हैं।
      • विशेषज्ञों की टिप्पणियों के अनुसार, ताज़ा भूजल 250 मीटर से अधिक गहराई में पाया जा सकता है और कुछ मामलों में, सुंदरबन में भूजल प्रकृति में खारा है।
  • प्रदूषण और कटाव:
    • माइक्रोप्लास्टिक्स, औद्योगिक गतिविधियों से रसायन और अपशिष्ट निपटान सहित विभिन्न स्रोतों से प्रदूषण, सुंदरबन के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र तथा इसके निवासियों के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।
      • कुछ अध्ययन रिपोर्टों में यह पाया गया कि बांग्लादेश और भारत की विभिन्न नदियों से प्रति वर्ष चार मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक बंगाल की खाड़ी तथा सुंदरबन में छोड़ा जाता है।
    • सुंदरबन मैंग्रोव प्रणाली में बहुत कम ताज़ा (मीठा) पानी प्रवेश करता है। प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक नदी कटाव और वन संसाधनों का दोहन हैं।
      • इसके अलावा मैंग्रोव वनीकरण के लिये गैर-वन भूमि का उपयोग स्थिति को और भी खराब कर देता है।
  • समुद्री स्तर में वृद्धि:
    • अन्य तटीय क्षेत्रों की तुलना में सुंदरबन को समुद्र के स्तर में लगभग दोगुनी वृद्धि का सामना करना पड़ता है।
    • साथ ही इस क्षेत्र में चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता इसकी कार्बन पृथक्करण क्षमता तथा इस मैंग्रोव वन की अन्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये एक गंभीर खतरा पैदा करती है।
    • बढ़ते तापमान, समुद्र का स्तर और जलवायु परिवर्तन के कारण जैवविविधता में परिवर्तन सुंदरबन पारिस्थितिकी तंत्र तथा इसके निवासियों पर अतिरिक्त दबाव डाल रहे हैं।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष:
    • मनुष्यों और जानवरों के बीच संघर्ष, विशेष रूप से बाघ जैसी प्रजातियों के साथ, संरक्षण प्रयासों तथा स्थानीय समुदायों की सुरक्षा दोनों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • संदूषण:
    • बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह और भारत के लेदर एस्टेट के कारण हाइड्रोकार्बन तथा समुद्री पेंट जैसे रसायन नदियों एवं जल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित करते हैं।

सुंदरबन की सुरक्षा हेतु क्या किया जा सकता है?

  • स्ट्रीमबैंक की सुरक्षा:
    • वेटिवर जैसी गैर-स्थानीय प्रजातियों को शामिल करने के बजाय, वाइल्ड राइस (पोर्टेरेसिया कोर्कटाटा), मायरियोस्टैच्या वाइटियाना, बिस्किट ग्रास (पास्पलम वेजिनाटम) और साल्ट काउच ग्रास (स्पोरोबोलस वर्जिनिकस) जैसी देशी घास प्रजातियों की खेती करने से स्ट्रीमबैंक को स्थिर करने तथा कटाव को रोकने में मदद मिल सकती है।
      • वेटिवर स्थानीय प्रजातियाँ नहीं हैं और न ही लवण-सहिष्णु (Salt-Tolerant) हैं।
  • सतत् कृषि को बढ़ावा देना:
    • मृदा-सहिष्णु (Soil-Tolerant) धान की किस्मों जैसे दरसल, नोना बोकरा, तालमुगुर आदि की खेती को प्रोत्साहित करना और जैविक कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है।
    • इसके अतिरिक्त जैविक कृषि को बढ़ावा देने से किसानों को पर्यावरणीय स्वास्थ्य बनाए रखते हुए अपनी आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
      • वर्षा जल संचयन और वाटरशेड विकास पहलों को लागू करने से कृषि उत्पादन में तथा वृद्धि होगी।
  • गैर-काष्ठ वन संसाधनों का उपयोग:
    • आर्थिक विकास के लिये गैर-काष्ठ वन संसाधनों का उपयोग प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए सतत् विकास को बढ़ावा दे सकता है।
      • मैंग्रोव जलवायु संरक्षक और आजीविका के स्रोत हो सकते हैं। इस क्षेत्र में बायेन, गर्जन, गोलपाटा, होगला, हेतल, कांकरा, कुंभी, कायोरा, नोना झाऊ, पोसुर, गोरान, गेवोया, सुंदरी आदि कई मैंग्रोव हैं।
      • इन मैंग्रोवों का आर्थिक के साथ-साथ औषधीय महत्त्व भी है। हेतल, कायोरा और गोलपाटा के ऐसे फल व्यावसायिक बाज़ारों में बेचे जा सकते हैं।
        • होगला के फूलों का उपयोग खाद्य उद्योग में स्वादिष्ट व्यंजन बनाने के लिये किया जा सकता है और सूखी पत्तियों से रस्सियाँ तैयार की जा सकती हैं।
  • अपशिष्ट जल का उपचार:
    • अपशिष्ट जल उपचार के लिये लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और प्रकाश संश्लेषक बैक्टीरिया सहित प्राकृतिक प्रक्रियाओं तथा सूक्ष्मजीवों का उपयोग, पानी की गुणवत्ता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
  • जैवविविधता संरक्षण:
    • मेजर कार्प जैसी स्वदेशी मछली प्रजातियों सहित जैवविविधता के संरक्षण को बढ़ावा देना, सुंदरबन के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बहाल करने और बनाए रखने में सहायता कर सकता है।
  • भारत-बांग्लादेश सहयोग:  
    • भारत-बांग्लादेश संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group - JWG) को सुंदरबन की जलवायु लचीलेपन और इस पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर समुदायों के कल्याण की योजना बनाने तथा लागू करने के लिये एक संयुक्त उच्च शक्ति बोर्ड एवं अंतःविषय विशेषज्ञों के एक समूह में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • संस्थागत तंत्र को कई क्षेत्रों में काम करने के लचीलेपन के साथ मिश्रित किया जाना चाहिये, जिससे ज़मीनी मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपटने के लिये स्थानीय लोगों को शामिल किया जा सके।

निष्कर्ष

  • ये प्रकृति-आधारित समाधान सुंदरबन पारिस्थितिकी तंत्र के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों का समाधान करने के लिये प्रकृति के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसके साथ काम करने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।
  • विकास योजनाओं और नीतियों में प्रकृति आधारित दृष्टिकोण को एकीकृत करके, हितधारक सुंदरबन तथा इसके निवासियों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य एवं स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

Q. निम्नलिखित संरक्षित क्षेत्रों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. बांदीपुर
  2.  भितरकनिका
  3.  मानसी
  4.  सुंदरबन

उपर्युक्त में से किसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया है?

 (A) केवल 1 और 2
(B) केवल 1, 3 और 4
(C) केवल 2, 3 और 4
(D) 1, 2, 3 और 4

 उत्तर: (B)


Q. भारत की जैवविविधता के संदर्भ में सीलोन फ्रॉगमाउथ, कॉपरस्मिथ बार्बेट, ग्रे-चिन्ड मिनिवेट और ह्वाइट-थ्रोटेड रेडस्टार्ट क्या है?

(a) पक्षी
(b) प्राइमेट
(c) सरीसृप
(d) उभयचर

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न."भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानिकीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)

प्रश्न. "विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों और साझेदारों के मध्य नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के संरक्षण तथा उसके निम्नीकरण की रोकथाम' अपर्याप्त रही है।" सुसंगत उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2018)


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