बंगाल की खाड़ी में फाइटोप्लैंकटन बायोमास की प्रवृत्तियाँ

प्रिलिम्स के लिये 

क्लोरोफिल-ए, फाइटोप्लैंकटन, सुपोषण 

मेन्स के लिये 

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

चर्चा में क्यों? 

अनुसंधानकर्त्ताओं ने बंगाल की खाड़ी में वास्तविक समय में क्लोरोफिल-ए की मात्रा को मापने के तरीके की खोज की है। क्लोरोफिल-ए फाइटोप्लैंकटन कोशिका में पाया जाने वाला एक प्रमुख वर्णक है जो महासागर के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है। यह अनुसंधान ‘इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इनफॉर्मेशन सर्विसेज़’ (Indian National Centre for Ocean Information Services-INCOIS) के वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा किया गया।

अनुसंधान के बारे में 

  • वैज्ञानिकों के दल ने बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पश्चिमी भाग में क्लोरोफिल-ए की दीर्घकालिक प्रवृत्तियों को नजदीक से अवलोकित किया। अनुसंधानकर्त्ताओं ने क्लोरोफिल-ए में वृद्धि के प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कारकों का भी अध्ययन किया। निष्कर्षों को ‘पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान’ जर्नल  में प्रकाशित किया गया था। 
  • INCOIS के वैज्ञानिकों ने ‘एक्वा सैटेलाइट’ (Aqua satellite) पर कार्यरत संयुक्त राज्य अमेरिका के नासा (National Aeronautics and Space Administration-NASA) के ‘मॉडरेट रेज़ोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर’ (Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer-MODIS) सेंसर से 36 स्पेक्ट्रल बैंड्स में डेटा प्राप्त करते हुए क्लोरोफिल-ए की वृद्धि की प्रवृत्तियों के विश्लेषण के लिये डेटा एकत्रित करना प्रारंभ किया था। 
  • सूओमी नेशनल पोलर परिक्रमा साझेदारी (National Polar orbiting Partnership -NPP) उपग्रह पर परिचालित नासा के VIIRS (Visible Infrared Imaging Radiometer Suite) औ ओशनसैट-2 उपग्रह पर कार्यरत इसरो (Indian Space Research Organisation) के OCM-2 (Ocean Colour Monitor-2) द्वारा अतिरिक्त डेटा प्राप्त किये गए।
  • INCOIS वैज्ञानिकों ने नासा के SeaDAS (Sea-Viewing Wide Field-of-View Data Analysis System) सॉफ्टवेयर का उपयोग करके उपग्रह डेटा को प्रसंस्कृत किया, जिसके द्वारा महासागर में क्लोरोफिल-ए वर्णक की सांद्रता के बारे में जानकारी एकत्रित की गई।
  • बंगाल की खाड़ी के तटीय जल में क्लोरोफिल-ए की सांद्रता के बारे में जानकारी के संदर्भ में नासा के MODIS सेंसर से प्राप्त डेटा अधिक विश्वसनीय और सटीक हैं।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

  • यह अध्ययन पिछले 16 वर्षों के दौरान प्राप्त इन-सीटू (In-situ) और उपग्रह डेटा पर आधारित था। अध्ययन के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूर्व के समय में क्लोरोफिल-ए की सांद्रता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। 
  • अध्ययन किये गए अन्य पैमानों में कुल निलंबित पदार्थ (Total Suspennded Matters-TSM) और रंगीन विघटित कार्बनिक पदार्थ (Coloured Dissolved Organic Matters-CDOM) थे, जो जल में प्रकाशीय रूप से सक्रिय पदार्थ हैं। 
  • बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पश्चिमी भाग के जल में दक्षिण-पश्चिम मानसून अवधि के दौरान TSM और CDOM की मात्रा में अधिकतम स्थानिक परिवर्तनशीलता देखी गई। क्लोरोफिल-ए की सांद्रता निम्न समयावधि के दौरान अधिकतम थी- 
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूर्व के समय में आवर्ती फाइटोप्लैंकटन ब्लूम के कारण।  
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून के अंतिम समय के दौरान। 
  • अध्ययन में पाया गया कि फाइटोप्लैंकटन के अतिरिक्त क्लोरोफिल-ए की वृद्धि को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में भौतिक बल, जैसे- जल का ऊपर की ओर बढ़ना, पवनों द्वारा ऊर्ध्वाधर मिश्रण, संवहन और स्थानीय परिसंचरण प्रतिरूप आदि थे। नदी/स्थलीय अपवाह द्वारा विभिन्न स्रोतों से विघटित रासायनिक पदार्थों की आपूर्ति के साथ-साथ इन कारकों ने भी क्लोरोफिल-ए की सांद्रता को प्रभावित किया। 
  • फाइटोप्लैंकटन ब्लूम से क्लोरोफिल-ए की वृद्धि के कारण महासागरीय पर्यावरणीय मापदंडों पर जानकारी महत्त्वपूर्ण हो गई है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन, नदी में जल बहाव की मात्रा और महासागरों में प्रदूषण के प्रभाव की निगरानी के लिये एक आधार के रूप में कार्य करता हैं।
  • इस तरह की प्रवृत्तियों का विश्लेषण महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र की समग्र रूप से बेहतर स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं। सुपोषण (Eutrophication) के कारण फाइटोप्लैंकटन ब्लूम से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँच सकता है।
  • कृषि भूमि से अपवाह के माध्यम से तटीय जल में पोषक तत्वों के एकत्रित होने से फाइटोप्लैंक्टन ब्लूम के कारण समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है। जल में ऑक्सीजन के स्तर में कमी से समुद्री जीव, जैसे- मछलियाँ आदि बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। 

फाइटोप्लैंकटन के बारे में

  • फाइटोप्लैंकटन समुद्र में पाए जाने वाले सूक्ष्म पौधे हैं। ये महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संकेतक हैं, जो महासागरों में जीवन को नियंत्रित करते हैं। 
  • फाइटोप्लैंकटन सूर्य के प्रकाश को क्लोरोफिल के माध्यम से रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिये प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में भाग लेते है। ये कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं।
  • सभी फाइटोप्लैंकटन प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में भाग लेते हैं, लेकिन कुछ फाइटोप्लैंकटन अन्य जीवों के उपभोग से भी अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
  • फाइटोप्लैंकटन मानव द्वारा श्वसन की प्रक्रिया में सम्मिलित आधे से अधिक ऑक्सीजन में योगदान करते हैं। इसके अतरिक्त ये मानव-प्रेरित और निस्सृत कार्बन डाइऑक्साइड (ग्रीनहाउस गैस) को अवशोषित करके जलवायु को नियंत्रित करते हैं। फाइटोप्लैंकटन समुद्री खाद्य शृंखला के आधार के रूप में भी कार्य करते हैं।

आगे की राह 

फाइटोप्लैंकटन की अधिकता के कारण सुपोषण की घटना से सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पन्न व्यवधान से निपटने के लिये सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र की सतत् निगरानी शमन प्रणाली तैयार किये जाने की आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ