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विशेष/इन-डेप्थ: BS-6 (यूरो-6)...देश का नया ईंधन

  • 06 Apr 2018
  • 18 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
विगत एक-दो वर्षों में बढ़ी स्मॉग और प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये 1 अप्रैल से देश की राजधानी दिल्ली में वाहनों के लिये स्वच्छ ईंधन यानी भारत स्टेज-6 (BS-6) डीज़ल और पेट्रोल की बिक्री होनी शुरू हो गई है। इस प्रकार यह देश का एकमात्र शहर है जहाँ सभी पेट्रोल पंपों पर BS-6 डीज़ल और पेट्रोल बिक रहा है। उल्लेखनीय है कि चिंताजनक स्तर तक बढ़ चुके वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये भारत सरकार ने 2016 में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए BS-5 के बजाय अप्रैल 2020 तक देशभर में BS-6 उत्सर्जन मानकों को लागू करने का निर्णय लिया था। हालाँकि अभी इस नए मानक के हिसाब से नए वाहनों का उत्पादन शुरू होने में समय लगेगा।

क्या हैं भारतीय उत्सर्जन मानक?

  • BS मानक यूरोपीय नियमों पर आधारित हैं। अलग-अलग देशों में ये मानक अलग-अलग होते हैं, जैसे-अमेरिका में ये टीयर-1, टीयर-2 के रूप में होते हैं, तो यूरोप में इन्हें यूरो मानक के रूप में प्रयोग किया जाता है। 
  • भारत में सर्वप्रथम उत्सर्जन नियमों की शुरुआत 1991 में हुई थी और तब ये नियम केवल पेट्रोल इंजन से चलने वाले वाहनों पर लागू होते थे।
  • BS यानी भारत स्टेज वाहन उत्सर्जन मानकों को केंद्र सरकार ने वर्ष 2000 में शुरू किया था। इसके बाद 2005 और 2006 के आसपास वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये BS-2 और BS-3 मानकों की शुरुआत की गई। लेकिन BS-3 मानकों का अनुपालन वर्ष 2010 में शुरू किया जा सका।

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम
वायु गुणवत्ता प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है वायु गुणवत्ता की निगरानी । राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम की शुरुआत वायु गुणवत्ता की मौजूदा स्थिति एवं रुझानों को जानने तथा उद्योगों और अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को विनियमित करने के उद्देश्य से की गई है, ताकि वायु गुणवत्ता के मानक प्राप्त किये जा सकें। यह उद्योगों के सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरण संबंधी प्रभावों के आकलन और शहरी आयोजना के लिये आवश्यक वायु गुणवत्ता डेटा भी उपलब्ध कराता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • भारत स्टेज उत्सर्जन मानक आतंरिक दहन और इंजन तथा स्पार्क इग्निशन इंजन के उपकरण से उत्सर्जित वायु प्रदूषण को विनियमित करने के मानक हैं।
  • इन मानकों का उद्देश्य वाहनों से होने वाले वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना और वातावरण में घुल रहे ज़हर पर रोक लगाना है।
  • वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के BS मानक के आगे संख्या--2, 3 या 4 और अब 6 के बढ़ते जाने का मतलब है उत्सर्जन के बेहतर होते मानक जो पर्यावरण के अनुकूल हैं। अर्थात BS के आगे जितना बड़ा नंबर है, उस गाड़ी से होने वाला प्रदूषण उतना ही कम।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि BS-4 के मुकाबले BS-6 डीज़ल में प्रदूषण फैलाने वाले खतरनाक पदार्थ 70 से 75% तक कम होते हैं। 
  • BS-6 मानक लागू होने से प्रदूषण में काफी कमी होगी, विशेषकर डीज़ल वाहनों से होने वाले प्रदूषण में भारी कमी आएगी। 
  • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर के मामले में BS-6 स्तर का डीज़ल काफी बेहतर होगा।
  • हवा में PM2.5 का अधिकतम स्तर 60 mgcm तक होना चाहिये। BS-6 में यह मात्रा 20 से 40 mgcm होती है, जबकि BS-4 में 120 mgcm तक होती है।
  • 1 अप्रैल से दिल्ली में BS-6 की शुरुआत के बाद सरकार 1 अप्रैल, 2019 से देश के 13 बड़े शहरों में इसे शुरू करने की योजना पर काम कर रही है। 
  • 2020 से यह पूरे देश में लागू हो जाएगा अर्थात 1 अप्रैल, 2020 के बाद जो भी वाहन सड़क पर आएंगे उन्हें BS-6 मानकों पर खरा उतरना होगा।

राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों के लिये कलर कोडेड सूचकांक
मानव गतिविधियों के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक को एक नीति दिशा-निर्देश के रूप में विकसित किया गया है जिससे वातावरण में प्रदूषक उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके। राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक के उद्देश्य हैं--जनसामान्य के स्वास्थ्य, संपत्ति तथा वनस्पतियों की सुरक्षा के लिये वायु की गुणवत्ता के स्तर को उत्तम बनाए रखना, प्रदूषण स्तर को नियंत्रित करने के लिये विभिन्न प्राथमिकताओं को तय करना, राष्ट्रीय स्तर पर वायु की गुणवत्ता का आकलन करने के लिये एकसमान मापदंड बनाना तथा वायु प्रदूषण की निगरानी के कार्यक्रमों का सुचारु संचालन करना।

वायु गुणवत्ता सूचना के प्रसार के लिये वायु गुणवत्ता सूचकांक में वायु गुणवत्ता की 6 श्रेणियाँ हैं--अच्छी, संतोषजनक, थोड़ा प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और विभिन्न रंग आयोजना के साथ गंभीर। ये सभी श्रेणियाँ स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने से जुड़ी हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक 8 प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा PB) पर विचार करता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • BS-6 ईंधन का उपयोग शुरू करने के साथ ही भारत भी एशिया-प्रशांत राष्‍ट्रों यथा-जापान, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, ऑस्‍ट्रेलिया, न्‍यूजीलैंड, फिलीपींस और चीन की सूची में शामिल हो गया है। लेकिन चीन में केवल भारी वाहनों में ही BS-6 ईंधन का उपयोग होता है।
  • उत्सर्जन मानकों को लागू करने के मामले में भारत विश्व के अन्य देशों से पीछे है। अधिकांश देश जहाँ उत्सर्जन मानक-6 के स्तर का अनुपालन कर रहे हैं, वहीं भारत में अभी भी BS-3 स्तर के वाहनों का प्रयोग हो रहा है।
  • देश में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) इन मानकों की निगरानी करने और इन्हें जारी करने वाली नोडल एजेंसी है। 

कौन तय करता है मानक?
BS मानक CPCB तय करता है और देश में चलने वाली हर गाड़ी के लिये इन मानकों पर खरा उतरना ज़रूरी है। इसके ज़रिये ही गाड़ियों से निकलने वाले धुएँ से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रण में रखा जाता है। भारत में शुरुआत BS-2 से हुई थी, जो BS-3, BS-4 से होती हुई अब BS-6 हो गया है। कहा जा सकता है कि देश में पिछले वर्षों में वाहन प्रदूषण घटा है और अब सरकार ने तय किया है कि BS-4 के बाद सीधे BS-6 मानक लागू किया जाएगा यानी गाड़ियों के इंजन की क्वालिटी और बेहतर होगी और प्रदूषण भी कम होगा।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
CPCB एक सांविधिक संगठन है। इसका गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत सितंबर, 1974 में किया गया था। इसके अलावा, इसे वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अधीन भी शक्तियाँ और कार्य सौंपे गए हैं। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक फील्ड संघटन का काम करता है तथा मंत्रालय को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उपबंधों के बारे में तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है। जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 में निर्धारित किये गए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों में जल प्रदूषण निवारण, नियंत्रण तथा न्यूनीकरण द्वारा राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नदियों और कुओं की स्वच्छता को बढ़ावा देना तथा देश की वायु गुणवत्ता में सुधार करना एवं वायु प्रदूषण का निवारण, नियंत्रण और न्यूनीकरण करना शामिल है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

BS-6 से होने वाले लाभ 

  • इसका सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि प्रदूषण का स्तर नियंत्रित रहेगा जिससे साँस लेने के लिये स्वच्छ हवा मिल सकेगी। दरअसल, वाहन उत्सर्जन से चार प्रकार के प्रदूषक तत्त्व निकलते हैं--कार्बन मोनोक्साइड (CO), हाइड्रोकार्बन (HC), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) और पार्टिकुलेट मैटर (PM)। 
  • पेट्रोल इंजन से कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन अधिक होता है तथा डीज़ल इंजन से नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर्स का। BS-4 मानक के मुकाबले BS-6 मानक वाले वाहनों के उत्सर्जन से इन सभी प्रदूषकों की मात्रा में भारी कमी आएगी।
  • PM2.5 की वैल्यू 400 mgcm जाती है तो उसमें 120 mgcm से ज़्यादा ज्यादा का योगदान वाहनों से होने वाले प्रदूषण कणों से होता है। BS-6 ईंधन आने से इसमें इनकी हिस्सेदारी 20 से 40 mgcm रह जाएगी, लेकिन इसका पूरा लाभ तब मिलेगा, जब वाहन भी पूरी तरह से BS-6 तकनीक पर तैयार होने लगेंगे। 
  • BS-6 ईंधन में अपने पूर्ववर्ती BS-4 की तुलना में सल्‍फर का स्‍तर पाँच गुना कम है। इसका उपयोग करने से सल्फर के उत्सर्जन में 80% प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है, इसीलिये इसे अत्‍यंत स्‍वच्‍छ ईंधन माना जा रहा है। 
  • इससे सड़कों पर चलने वाले वर्तमान वाहनों, यहाँ तक कि पुराने वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी काफी कम हो जाएगा। 

BS-6 मानकों के अनुरूप वाहनों का निर्माण 
भारत में अभी कारें BS-4 उत्सर्जन मानकों पर चलती हैं, लेकिन भारत में कार बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां यूरो-6 के अनुरूप इंजन बना रही हैं। सरकार द्वारा BS-5 को छोड़कर 2020 से सीधे BS-6 मानक लागू करने के निर्णय का एक बड़ा कारण यह भी है कि BS-5 और BS-6 ईंधन में सल्फर की मात्रा बराबर होती है। भारत स्टेज-4 ईंधन में 50 पीपीएम सल्फर होता है, BS-5 व 6 दोनों तरह के ईंधनों में सल्फर की मात्रा 10 पीपीएम ही होती है। सरकार ने यह निर्णय इसलिये भी लिया है कि भारत में कार बनाने वाली अधिकांश कंपनियां यूरो-6 के अनुरूप इंजन बना रही हैं और उनका निर्यात भी कर रही हैं। उनके पास तकनीक है और 2020 तक का समय भी है।

BS-6 मानकों के तहत...

  • वाहनों में विशेष प्रकार के डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर लगाए जाएंगे, जिससे 80 से 90% PM2.5 जैसे कण हवा में आने से रोके जा सकेंगे।
  • इसमें सिलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होगी, जिससे नाइट्रोजन ऑक्साइड को काबू में किया जा सकेगा।
  • BS-6 मानकों के लागू होने पर कारों के साथ-साथ ट्रकों, बसों जैसे भारी वाहनों में भी फिल्टर लगाने ज़रूरी होंगे।

मौजूदा BS-4 और BS-3 मानकों के तहत यह शर्तें लागू नहीं होतीं और काफी प्रदूषण होता है। फिलहाल पूरे उत्तर भारत में BS-4 ईंधन की आपूर्ति होती है, जबकि देश के अन्य हिस्सों में अब भी भारत स्टेज-3 ग्रेड का ही इस्तेमाल हो रहा है। पूरे भारत में भारत स्टेज-4 मानक 2017 से लागू करने का सरकार का प्रस्ताव था। इसके बाद 2019 में BS-5 और 2023 में BS-6 मानकों को लागू किया जाना था।

दिल्ली में वाहन प्रदूषण का स्तर बेहद चिंताजनक 

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों से होने वाला प्रदूषण है। राजधानी में होने वाले कुल वायु प्रदूषण में लगभग 37% वाहनों की वज़ह से होता है।
  • विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के एक अध्‍ययन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दिल्‍ली में हर वर्ष 10,000-30,000 लोगों की मौत हो जाती है। 
  • दिल्‍ली में वायु प्रदूषण की स्थिति अत्यंत चिंताजनक हो जाने के तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए राजधानी में BS-6 ईंधन का उपयोग अप्रैल 2020 के बजाय अप्रैल 2018 से ही करने का निर्णय सरकार ने लिया।

दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण के मद्देनज़र कई प्रकार के कदम उठाए जाते रहे हैं: 

  • निजी वाहनों के लिये ऑड-ईवन योजना 
  • दिल्ली शहर में ट्रकों के प्रवेश पर रोक 
  • दिल्ली-एनसीआर में निर्माण और कचरा जलाने पर प्रतिबंध
  • नगर निगमों द्वारा पार्किंग शुल्क चार गुना किया जाना  
  • सडकों और पेड़ों पर पानी का छिडकाव 
  • कृत्रिम वर्षा कराने के विकल्प पर विचार

दिल्ली में 2016-17 में पेट्रोल की खपत 9 लाख 6 हजार टन और डीज़ल की 12.6 लाख टन हुई थी। रिफाइनरियों ने BS-3/4 ईंधन के उत्पादन के लिये 55,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का निवेश किया था और अब 2020 तक इसे अपग्रेड करके BS-6 मानक का बनाने के लिये लगभग 30 हज़ार करोड़ रुपए का अतिरिक्त निवेश कर रही हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर तक पहुँच चुका है और ऐसे में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने की ज़रूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। वाहनों की संख्या काफी अधिक होने के कारण राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर देश में सबसे अधिक है। दिल्ली में वाहनों की संख्या 1 करोड़ से अधिक है, जिनमें से 60% डीज़ल वाहन हैं। ऐसे में दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर है।

इसके मद्देनज़र सरकार ने 'क्लीन फ्यूल' कहलाने वाले BS-6 मानकों को वर्ष 2020 से पूरे देश में लागू करने की योजना के क्रम में 1 अप्रैल से इसकी शुरुआत दिल्ली से की है। निश्चित तौर पर इसका असर आने वाले समय में तब दिखेगा, जब BS-6 इंजन से चलने वाले वाहन सड़क पर आ जाएंगे। तब BS-4 की तुलना में आधे से भी कम प्रदूषण होगा। वाहनों से होने वाला प्रदूषण दमा, श्वांस रोग, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण हो सकता है तथा वाहनों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड वातावरण में मौजूद हाइड्रोकार्बनों के साथ रिएक्शन कर जमीनी स्तर पर खतरनाक ओज़ोन गैस बनाती है। इनके लिये मूल रूप से डीज़ल इंजन ही सबसे अधिक जिम्मेदार हैं तथा  2020 से लाए जा रहे BS-6 मानक आ जाने से प्रदूषण काफी हद तक काबू में आएगा।

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