जैव विविधता और पर्यावरण
क्लाइमेट फाइनेंस रोड से COP29 तक
प्रिलिम्स के लिये:लॉस एंड डैमेज फंड, पार्टियों का सम्मेलन (COP 28), नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य, जीवाश्म ईंधन मेन्स के लिये:जलवायु वित्त और इसका महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा के क्यों?
शर्म अल-शेख, मिस्र में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने विकासशील देशों में जलवायु आपदा क्षतिपूर्ति के लिये एक लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना की।
- UNFCCC COP 28 (दुबई)- 2023 ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का वादा करते हुए जीवाश्म ईंधन से संक्रमण पर ध्यान केंद्रित किया।
- जैसे-जैसे बाकू में COP29 की तैयारी तेज़ होती जा रही है, ध्यान अब वित्त संबंधी चर्चाओं, विशेष रूप से नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) पर केंद्रित किया जा रहा है।
नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य क्या है?
- NCQG एक नया वार्षिक वित्तीय लक्ष्य है जिसे विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये वर्ष 2025 से पूरा करना होगा।
- यह प्रति वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डॉलर की पिछली प्रतिबद्धता का स्थान लेगा जिसे विकसित देशों ने वर्ष 2009 में देने का वादा किया था लेकिन पूरा करने में विफल रहे।
- नवंबर 2024 में बाकू, अज़रबैजान में COP29 शिखर सम्मेलन में अंतिम NCQG राशि वार्ता का केंद्रीय बिंदु होने की उम्मीद है।
- NCQG वार्ता का उद्देश्य एक उच्च सामूहिक राशि निर्धारित करना है जिसे विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील गरीब देशों में शमन, अनुकूलन एवं अन्य जलवायु कार्रवाई प्रयासों के लिये सालाना जुटाने की आवश्यकता होगी।
- विकासशील देशों के लिये पर्याप्त NCQG आँकड़ा सुरक्षित करना बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पर्याप्त जलवायु वित्त की कमी प्रभावी जलवायु योजनाओं को लागू करने एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के विरुद्ध आघातसह बनाने में एक बड़ी बाधा रही है।
प्रभावी जलवायु कार्रवाई के लिये कितने धन की आवश्यकता है?
- विशेषकर विकासशील देशों में अपर्याप्त वित्तपोषण के कारण, वैश्विक जलवायु कार्रवाई में एक महत्त्वपूर्ण बाधा का सामना करना पड़ रहा है।
- वार्षिक जलवायु वित्त प्रवाह वर्ष 2020 के बाद से विकसित देशों द्वारा 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के वादे से काफी कम है।
- यदि वह राशि उपलब्ध भी होती, तो यह विश्व को वर्ष 2030 तक 1.5°C मार्ग पर रखने के लिये आवश्यक धनराशि का केवल एक छोटा-सा अंश होगा।
- वर्तमान आकलन से पता चलता है कि वार्षिक वित्तीय आवश्यकताएँ कई खरबों डॉलर की हैं।
- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट- 2021 में अनुमान लगाया गया है कि विकासशील देशों को अपनी जलवायु कार्य योजनाओं को लागू करने के लिये वर्ष 2030 तक सालाना लगभग 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी। अद्यतन रिपोर्टों से यह आँकड़ा बहुत हद तक बढ़ने की उम्मीद है।
- शर्म अल-शेख में अंतिम समझौते में यह रेखांकित किया गया कि कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिये वर्ष 2050 तक वार्षिक 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता हो सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा संघ के अनुसार, दुबई में सहमति के अनुसार नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने पर वर्ष 2030 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत आने का अनुमान है।
- इन अनुमानों को मिलाकर 5-7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वार्षिक आवश्यकता का पता चलता है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 5-7% के बराबर है, जो निष्क्रियता की बढ़ती लागत को उजागर करता है।
एक यथार्थवादी नए वार्षिक जलवायु वित्त लक्ष्य की संभावनाएँ
- परिचर्चा के तहत सटीक मात्रा वर्तमान में जनता के लिये गोपनीय है। पिछले प्रदर्शन को देखते हुए, यह अपेक्षा कि विकसित देश काफी अधिक मात्रा में निवेश हेतु प्रतिबद्ध हैं, अवास्तविक मानी जाती है।
- भारत ने NCQG को मुख्य रूप से अनुदान और रियायती वित्त में प्रतिवर्ष कम-से-कम 1 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर निवेश करने हेतु कहा है।
- हालाँकि यह संभावना नहीं है कि विकसित देश मूल्यांकन की गई आवश्यकताओं के करीब राशि के लिये प्रतिबद्ध होंगे, क्योंकि वे वार्षिक 100 बिलियन अमरीकी डॉलर भी जुटाने में विफल रहे हैं।
- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव ने विकसित देशों से जलवायु वित्त को "बड़ा और बेहतर" बनाने का आग्रह किया है, जिसमें "अरबों नहीं बल्कि खरबों" की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
जलवायु वित्त के संबंध में चुनौतियाँ क्या हैं?
- अपर्याप्त कोष:
- जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु आवश्यक धनराशि और जलवायु-संबंधित परियोजनाओं तथा पहलों के लिये उपलब्ध वास्तविक संसाधनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर है।
- कई विकासशील देशों और कमज़ोर समुदायों के पास जलवायु वित्त तक सीमित पहुँच है, जिससे अनुकूलन तथा शमन उपायों को लागू करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
- UNFCCC जैसे कई संगठन वर्तमान में आधे से भी कम वित्त पोषित बजट के साथ गंभीर वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- महत्त्वाकांक्षा का अभाव:
- विकसित देश जलवायु संकट से निपटने के लिये, विशेष रूप से विकासशील देशों को अनुदान और रियायती वित्त प्रदान करने हेतु, आवश्यक वित्त पोषण के पैमाने पर प्रतिबद्ध होने के लिये अनिच्छुक रहे हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही:
- जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं की वितरण की निगरानी और माप के लिये पारदर्शी तथा समावेशी प्रक्रियाओं की आवश्यकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि धन समान रूप से वितरित किया जाए एवं प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
- समानता और न्याय सुनिश्चित करना:
- जलवायु वित्त के वितरण और उपयोग में सबसे कमज़ोर समुदायों तथा हाशिए पर रहने वाले समूहों की ज़रूरतों एवं प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए समानता व न्याय को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जो जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित हैं।
- निजी वित्त जुटाना:
- जबकि विकसित देशों से सार्वजनिक वित्त महत्त्वपूर्ण है, निजी क्षेत्र के निवेश को जुटाना और नवीन वित्तीय साधनों का लाभ उठाना जलवायु वित्त को बढ़ाने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण:
- विकासशील देशों द्वारा जलवायु कार्रवाई को प्रभावी ढंग से लागू करने और निम्न-कार्बन उत्सर्जन वाले देशों के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सक्षम बनाने के लिये जलवायु वित्तपोषण में न केवल मौद्रिक समर्थन अपितु क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- ऋण का बोझ:
- जलवायु वित्त आवश्यकताओं के कारण कई विकासशील देशों का ऋण बोझ और अधिक बढ़ जाता है जिससे जलवायु कार्रवाई के लिये आवश्यक निधि प्राप्त करने तथा उसे चुकाने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- आर्थिक प्रभाव:
- वैश्विक आर्थिक मंदी और प्रतिस्पर्द्धी प्राथमिकताएँ विकसित देशों के लिये जलवायु वित्त के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधन आवंटित करना चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC की बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में सी.ओ.पी. 26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरंभ की गई हारित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आई.एस.ए.) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021) |
शासन व्यवस्था
भारत में हरित निर्वाचन
प्रिलिम्स के लिये:भारत का निर्वाचन आयोग (ECI), गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री, हरित निर्वाचन, कार्बन फूटप्रिंट, एकल-उपयोग प्लास्टिक सामग्री, बायोडिग्रेडेबल सामग्री मेन्स के लिये:हरित निर्वाचन का महत्त्व और भारत के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के संबंध में इसकी उपयोगिता। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने चुनावों में गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों के उपयोग से जुड़े पर्यावरणीय जोखिमों पर अपनी चिंता व्यक्त की।
- यह वर्ष 1999 से पार्टियों और उम्मीदवारों से चुनाव अभियान के दौरान चुनाव सामग्री की तैयारी के लिये प्लास्टिक/पॉलिथीन के उपयोग से बचने का आग्रह करता रहा है।
हरित चुनाव की ओर बदलाव की आवश्यकता क्यों है?
- पारंपरिक चुनावों के पर्यावरणीय फूटप्रिंट: पारंपरिक चुनाव प्रक्रियाओं के विभिन्न कारकों के कारण महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय परिणाम होते हैं:
- अभियान उड़ानें: चुनाव के दौरान अभियान उड़ानों से होने वाला उत्सर्जन समग्र कार्बन फूटप्रिंट में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- उदाहरण के लिये: वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में, केवल एक उम्मीदवार की अभियान उड़ानों से उत्सर्जन 500 अमेरिकियों के वार्षिक कार्बन फूटप्रिंट के बराबर था।
- निर्वनीकरण और अन्य मुद्दे: मतपत्रों, अभियान साहित्य और प्रशासनिक दस्तावेज़ों के लिये कागज़-आधारित सामग्रियों पर निर्भरता से निर्वनीकरण तथा ऊर्जा-गहन उत्पादन प्रक्रियाएँ होती हैं।
- ऊर्जा की बचत: लाउडस्पीकर, प्रकाश व्यवस्था और अन्य ऊर्जा खपत वाले उपकरणों के साथ बड़े पैमाने पर चुनावी रैलियाँ ऊर्जा की खपत एवं उत्सर्जन में योगदान करती हैं।
- अपशिष्ट उत्पादन: अभियानों के दौरान उपयोग किये जाने वाले PVC फ्लेक्स बैनर, होर्डिंग्स और डिस्पोज़ेबल आइटम अपशिष्ट उत्पादन व पर्यावरणीय प्रभाव को बढ़ाते हैं।
- अभियान उड़ानें: चुनाव के दौरान अभियान उड़ानों से होने वाला उत्सर्जन समग्र कार्बन फूटप्रिंट में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
कार्बन फुटप्रिंट क्या है?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट जीवाश्म ईंधन जलाने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन पर मानव गतिविधियों के प्रभाव का आकलन करता है, जिसे आमतौर पर मीट्रिक टन CO2 उत्सर्जन में मापा जाता है।
- इसका आकलन वार्षिक CO2 उत्सर्जन के संदर्भ में किया जाता है, एक मीट्रिक जिसमें अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसें जैसे मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य CO2-समतुल्य गैसें शामिल हो सकती हैं।
- यह एक व्यापक उपाय हो सकता है या किसी व्यक्ति, परिवार, घटना, संगठन या यहाँ तक कि पूरे देश के कार्यों पर लागू किया जा सकता है।
हरित निर्वाचन की अवधारणा क्या है?
- हरित निर्वाचन: हरित निर्वाचन ऐसी प्रथाएँ है जिसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है। इनमें पुनर्चक्रित सामग्रियों का उपयोग करना, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को बढ़ावा देना और उम्मीदवारों को स्थायी अभियान प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना जैसे उपाय शामिल हैं।
- हरित चुनाव का उद्देश्य निम्नलिखित के माध्यम से चुनावी प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है:
- पर्यावरण-मित्र अभियान सामग्री: उम्मीदवार और पार्टियाँ पुनर्नवीनीकरण कागज, बायोडिग्रेडेबल बैनर तथा पुन: प्रयोज्य सामग्री जैसे टिकाऊ विकल्प अपना सकते हैं।
- ऊर्जा की खपत कम करना: रैलियों के दौरान ऊर्जा-कुशल प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि प्रणाली और परिवहन का विकल्प चुनने से कार्बन पदचिह्न को कम करने में मदद मिल सकती है।
- डिजिटल अभियान को बढ़ावा देना: प्रचार के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म (वेबसाइट, सोशल मीडिया और ईमेल) का लाभ उठाने से कागज़ का उपयोग और ऊर्जा की खपत कम हो जाती है।
पर्यावरण मित्र (Eco friendly) चुनावी पहल के उदाहरण क्या हैं?
- भारत के संदर्भ में उदाहरण:
- केरल का हरित अभियान:
- वर्ष 2019 के आम चुनाव के दौरान, केरल राज्य चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से अपने अभियानों के दौरान एकल उपयोग वाली प्लास्टिक सामग्री से बचने का आग्रह करके एक सक्रिय कदम उठाया।
- एकल-उपयोग प्लास्टिक एक डिस्पोजेबल सामग्री है जिसे फेंकने या पुनर्नवीनीकरण करने से पहले केवल एक बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक बैग, पानी की बोतलें, सोडा की बोतलें, स्ट्रॉ, प्लास्टिक प्लेटें, कप, अधिकांश खाद्य पैकेजिंग और कॉफी स्टिरर एकल उपयोग वाली प्लास्टिक सामग्री के स्रोत हैं।
- इसके बाद, केरल उच्च न्यायालय ने चुनाव प्रचार में फ्लेक्स और गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों पर प्रतिबंध लगा दिया।
- एक विकल्प के रूप में, दीवार भित्तिचित्र और कागज़ के पोस्टर उभरे, जो अधिक टिकाऊ दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त, सरकारी निकायों ने पर्यावरण-मित्र प्रथाओं पर बल देते हुए हरित निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिये तिरुवनंतपुरम में ज़िला प्रशासन के साथ सहयोग किया। जागरूकता बढ़ाने और पर्यावरण के प्रति जागरूक व्यवहार को बढ़ावा देने के लिये चुनाव कार्यकर्त्ताओं के लिये गाँवों में प्रशिक्षण सत्र भी आयोजित किये गए।
- वर्ष 2019 के आम चुनाव के दौरान, केरल राज्य चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से अपने अभियानों के दौरान एकल उपयोग वाली प्लास्टिक सामग्री से बचने का आग्रह करके एक सक्रिय कदम उठाया।
- गोवा के कारीगरों द्वारा तैयार किये गए पर्यावरण-मित्र बूथ
- वर्ष 2022 में, गोवा राज्य जैवविविधता बोर्ड ने विधानसभा चुनावों के लिये पर्यावरण-मित्र चुनाव बूथ शुरू करके एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
- इन बूथों का निर्माण सत्तारी और पोंडा के स्थानीय पारंपरिक कारीगरों द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों का उपयोग करके किया गया था।
- ये सामग्रियाँ न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि ये स्थानीय कारीगरों की भी मदद करती हैं।
- श्रीलंका का कार्बन-सेंसिटिव अभियान
- वर्ष 2019 में श्रीलंका की पोदुजना पेरामुना (SLPP) पार्टी ने विश्व का पहला कार्बन-सेंसिटिव पर्यावरण अनुकूल चुनाव अभियान शुरू किया।
- उन्होंने वाहनों और बिजली के उपयोग सहित अभियान गतिविधियों से कार्बन उत्सर्जन को सावधानीपूर्वक मापा।
- इन उत्सर्जनों की भरपाई करने के लिये उन्होंने प्रत्येक ज़िले में वृक्षारोपण पहल में जनता को शामिल किया।
- इस अभिनव दृष्टिकोण ने न केवल अभियान के कार्बन पदचिह्न को कम किया बल्कि वन आवरण के महत्त्व के बारे में जागरूकता भी बढ़ाई।
- केरल का हरित अभियान:
- सीमापारीय उदाहरण:
- एस्टोनिया की डिजिटल वोटिंग क्रांति
- एस्टोनिया ने पारंपरिक कागज़-आधारित विधि के विकल्प के रूप में डिजिटल वोटिंग का प्रयोग किया।
- इस दृष्टिकोण ने पर्यावरणीय प्रभाव को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करते हुए मतदाता भागीदारी को प्रोत्साहित किया।
- निर्वाचन के दौरान सुदृढ़ सुरक्षा उपायों को कार्यान्वित करके, एस्टोनिया ने प्रदर्शित किया कि डिजिटल वोटिंग पर्यावरण-अनुकूल और मतदाता-अनुकूल दोनों हो सकती है। इस दृष्टिकोण की सफलता से पता चलता है कि अन्य लोकतंत्र देश भी इसका अनुसरण कर सकते हैं।
- एस्टोनिया की डिजिटल वोटिंग क्रांति
- ये उदाहरण दर्शाते हैं कि निर्वाचन प्रक्रियाओं में पर्यावरणीय उद्देश्यों को प्राथमिकता देना अन्य देशों के लिये एक उदाहरण स्थापित कर सकता है और अधिक संधारणीय भविष्य में योगदान दे सकता है।
हरित निर्वाचन के अंगीकरण से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?
- नई प्रौद्योगिकियों तक पहुँच और अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण: सभी मतदाताओं की नई प्रौद्योगिकियों तक उचित पहुँच सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि इसके लिये निर्वाचन अधिकारियों को प्रशिक्षण देने और मतदाताओं को नई प्रणालियों के संबंध में शिक्षित करने के संदर्भ में पर्याप्त प्रयासों की आवश्यकता है। इससे संबंधित कुछ विशिष्ट चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
- प्रशिक्षण और अभ्यास: निर्वाचन अधिकारियों को नई तकनीक के संचालन और समस्या निवारण के संबंध में कुशल होने की आवश्यकता है। संबंद्ध जानकारी के अंतराल को पाटने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षण कार्यक्रम आवश्यक हैं।
- न्यायसंगत पहुँच: दूरवर्ती अथवा वंचित क्षेत्रों के मतदाताओं सहित सभी मतदाताओं तक प्रौद्योगिकी की पहुँच और उपयोग सुनिश्चित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता में असमानताओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
- वित्तीय बाधाएँ और अग्रिम लागत: पर्यावरण-अनुकूल सामग्री और उन्नत प्रौद्योगिकी को नियोजित करने में अमूमन महत्त्वपूर्ण अग्रिम लागत आती है। सरकारों, विशेषकर सीमित बजट वाली सरकारों को वित्तीय बाधाओं के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- बजट आवंटन: अन्य आवश्यक सेवाओं को संतुलित करते हुए प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये धन आवंटित करना एक संवेदनशील कार्य है। बजट सीमाओं के भीतर आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- दीर्घकालिक बचत: हालाँकि प्रारंभिक लागत अधिक हो सकती है, दीर्घकालिक लाभों (जैसे- कागज़ का कम उपयोग और सुव्यवस्थित प्रक्रिया) पर ज़ोर देने से निवेश को उचित रूप देने में मदद मिल सकती है।
- सांस्कृतिक जड़ता और मतदाता व्यवहार: परंपरागत रूप से, मतदान को मतदान केंद्रों पर भौतिक उपस्थिति से जोड़ा गया है। सफल आधुनिकीकरण के लिये सांस्कृतिक जड़ता पर काबू पाना और मतदाता व्यवहार में बदलाव आवश्यक है।
- शारीरिक मतदान का अनुमानित महत्त्व: कई मतदाता शारीरिक रूप से मतदान करने जाने को एक पवित्र नागरिक कर्त्तव्य के रूप में देखते हैं। उन्हें यह समझाना कि डिजिटल विकल्प भी समान रूप से मान्य हैं, चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- नई प्रणालियों में विश्वास: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणालियों में विश्वास को हासिल करना महत्त्वपूर्ण है। सुरक्षा, गोपनीयता और संभावित हेरफेर के बारे में जनता के संदेह को पारदर्शिता तथा मज़बूत सुरक्षा उपायों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और समझौते: ऑनलाइन वोटिंग या ब्लॉकचेन-आधारित सिस्टम जैसे नए दृष्टिकोण पेश करने से मत सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं:
- साइबर सुरक्षा ज़ोखिम: यह सुनिश्चित करना कि मतदान प्रणालियाँ साइबर खतरों से सुरक्षित हैं, सर्वोपरि है। कोई भी समझौता जनता के विश्वास और चुनाव की अखंडता को कमज़ोर कर सकता है।
- सुरक्षा और पहुँच को संतुलित करना: मज़बूत सुरक्षा उपायों और उपयोगकर्त्ता के अनुकूल इंटरफेस के बीच सही संतुलन बनाना एक चुनौती है। कठोर सुरक्षा प्रोटोकॉल के उपयोग में आसानी में बाधा नहीं आनी चाहिये।
आगे की राह
- इस हरित परिवर्तन में राजनीतिक दलों, निर्वाचन आयोग, सरकार, मतदाताओं, मीडिया और नागरिक समाज जैसे सभी हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिये।
- हरित परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये शीर्ष स्तर के निर्देशों को ज़मीनी स्तर की पहल के साथ एकीकृत करना अनिवार्य है।
- राजनीतिक दलों को इसका नेतृत्व करना चाहिये। यह यात्रा पर्यावरण-अनुकूल निर्वाचन प्रथाओं को अनिवार्य करने वाला कानून बनाकर शुरू हो सकती है, जिसमें निर्वाचन आयोग उन्हें आदर्श आचार संहिता में शामिल करेगा।
- इसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म या घर-घर जाकर प्रचार करना (ऊर्जा-गहन सार्वजनिक रैलियों को कम करना) और निर्वाचन कार्य के लिये सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- मतदान केंद्रों के लिये प्लास्टिक और कागज़-आधारित सामग्रियों के प्रतिस्थापन को प्राकृतिक वस्त्र, पुनर्नवीनीकृत कागज़ और कम्पोस्टेबल प्लास्टिक जैसे टिकाऊ स्थानीय विकल्पों के साथ प्रोत्साहित करने से अपशिष्ट प्रबंधन में सहायता मिलेगी तथा स्थानीय कारीगरों को समर्थन मिलेगा।
- निर्वाचन आयोग डिजिटल वोटिंग पर ज़ोर दे सकता है, भले ही इसके लिये अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता हो।
- डिजिटल चुनावी प्रक्रिया में सभी मतदाताओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सरकार को मतदाताओं को शिक्षित और समर्थन करना चाहिये तथा डिजिटल प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.1 'लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक ही साथ चुनाव, चुनाव-प्रचार की अवधि और व्यय को तो सीमित कर देंगे, परंतु ऐसा करने से लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।' चर्चा कीजिये। (2017) |
शासन व्यवस्था
निर्वाचन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग
प्रिलिम्स:जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GAI), आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) डीपफेक, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF’s), आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI)। मेन्स:निर्वाचन के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग की चिंताएँ, जेनरेटिव कृत्रिम बुद्धिमत्ता- लाभ, खतरे और आगे का राह। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GAI) से आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) की ओर बढ़ने के साथ, निर्वाचन पर इसके संभावित प्रभाव को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। निर्वाचन पर इसका प्रभाव, जिसका उदाहरण भारत के आगामी चुनावों से मिलता है, जो इसके संभावित प्रभाव को संबोधित करने की अनिवार्यता को रेखांकित करता है।
- आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस कार्यों और डोमेन की एक विस्तृत शृंखला में मानव बुद्धि के समान ज्ञान को समझने, सीखने तथा लागू करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता की काल्पनिक क्षमता को संदर्भित करता है।
- आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस का लक्ष्य मनुष्यों की संज्ञानात्मक क्षमताओं, जैसे तर्क, समस्या-समाधान, धारणा और प्राकृतिक भाषा को समझना, को दोहराना है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता निर्वाचन परिदृश्य से कैसे जुड़ी है?
- अभियान रणनीति और लक्ष्यीकरण:
- राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने अभियान संदेशों को अनुकूलित करने तथा विशिष्ट मतदाता समूहों को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिये जनसांख्यिकी, सोशल मीडिया गतिविधि एवं पूर्व मतदान व्यवहार सहित मतदाताओं के बारे में अधिक डेटा का विश्लेषण करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम का उपयोग कर सकते हैं।
- पूर्वानुमानित विश्लेषण:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित पूर्वानुमानित विश्लेषण मतदान डेटा, आर्थिक संकेतक और सोशल मीडिया से लोगों के रुख का विश्लेषण जैसे विभिन्न कारकों का विश्लेषण करके निर्वाचन परिणामों की पूर्वानुमान लगा सकता है।
- इससे दलों को रणनीतिक रूप से संसाधन आवंटित करने और प्रमुख चुनाव क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिल सकती है।
- मतदाता सहभागिता:
- AI चैटबॉट व वर्चुअल असिस्टेंट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मतदाताओं के साथ जुड़ सकते हैं, सवालों के जवाब दे सकते हैं, उम्मीदवारों तथा नीतियों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं तथा यहाँ तक कि मतदाता मतदान को प्रोत्साहित भी कर सकते हैं।
- इससे मतदाताओं की भागीदारी और चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ सकती है।
- सुरक्षा और अखंडता:
- मतदाता दमन, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम के साथ छेड़छाड़ और दुष्प्रचार के प्रसार सहित चुनावी धोखाधड़ी का पता लगाने तथा रोकने के लिये AI-संचालित उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है। डेटा में पैटर्न और विसंगतियों का विश्लेषण करके AI एल्गोरिदम चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।
- विनियमन और निरीक्षण:
- सरकारें और चुनाव अधिकारी राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी तथा विनियमन करने, अभियान वित्त कानूनों के उल्लंघन की पहचान करने एवं चुनावी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये AI का उपयोग कर सकते हैं। AI-संचालित उपकरण चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लागू करने में मदद कर सकते हैं।
- वर्ष 2021 में बिहार चुनाव आयोग ने पंचायत चुनावों के दौरान गिनती बूथों से CCTV फुटेज का विश्लेषण करने के लिये ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR) के साथ वीडियो एनालिटिक्स का उपयोग करने हेतु AI फर्म स्टैक के साथ समझौता किया।
- इस प्रणाली ने बिहार चुनाव आयोग को पूर्ण पारदर्शिता हासिल करने और हेरफेर की किसी भी संभावना को खत्म करने में सक्षम बनाया।
- सरकारें और चुनाव अधिकारी राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी तथा विनियमन करने, अभियान वित्त कानूनों के उल्लंघन की पहचान करने एवं चुनावी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये AI का उपयोग कर सकते हैं। AI-संचालित उपकरण चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लागू करने में मदद कर सकते हैं।
चुनावी उद्देश्यों हेतु AI को तैनात करने की चिंताएँ क्या हैं?
- चुनावी व्यवहार में हेरफेर:
- AI मॉडल, विशेष रूप से जेनेरेटिव AI तथा AGI का उपयोग दुष्प्रचार फैलाने, डीप फेक इलेक्शन एवं अत्यधिक व्यक्तिगत प्रचार के साथ मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये किया जा सकता है, जिससे भ्रम पैदा हो सकता है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हेरफेर हो सकता है।
- AI का उपयोग करके विरोधियों की छवि खराब करने के लिये उनके डीपफेक वीडियो बनाए जा सकते हैं।
- शब्द "डीप फेक इलेक्शन" का तात्पर्य AI सॉफ्टवेयर के उपयोग से है जो विश्वसनीय नकली वीडियो, ऑडियो और अन्य सामग्री तैयार करता है जो मतदाताओं को धोखा दे सकता है तथा उनके निर्णयों को प्रभावित कर सकता है।
- यह घटना चुनावों की अखंडता के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है और चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को कम करती है।
- इस तरह के हेरफेर के संभावित खतरों को उजागर करने वाला एक प्रमुख उदाहरण कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाला है।
- कैंब्रिज एनालिटिका, जो अब बंद हो चुकी राजनीतिक परामर्श कंपनी है, ने वर्ष 2016 के संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव तथा वैश्विक स्तर पर अन्य अभियानों के दौरान लक्षित राजनीतिक विज्ञापन बनाने और मतदाता व्यवहार को प्रभावित करने के लिये फेसबुक डेटा का कुख्यात शोषण किया।
- संदेश और प्रचार:
- AI टूल को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये प्रशिक्षित किया जा सकता है जिसका उपयोग उम्मीदवार अपने अभियान में माइक्रोटार्गेटिंग हेतु कर सकते हैं।
- माइक्रोटार्गेटिंग एक विपणन रणनीति है जो हाल के तकनीकी विकास का उपयोग करती है और विस्तृत जनसांख्यिकीय, मनोवैज्ञानिक, व्यवहारिक या अन्य डेटा के आधार पर बड़े दर्शकों के विशिष्ट खंडों तक पहुँचती है।
- AI का उपयोग स्थानीय बोली और मतदाता आधार की जनसांख्यिकी के आधार पर राजनीतिक अभियानों को अनुकूलित करने के लिये भी किया जा सकता है।
- AI टूल को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये प्रशिक्षित किया जा सकता है जिसका उपयोग उम्मीदवार अपने अभियान में माइक्रोटार्गेटिंग हेतु कर सकते हैं।
- दुष्प्रचार फैलाना:
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) का वैश्विक जोखिम धारणा सर्वेक्षण में शीर्ष 10 जोखिमों में गलत सूचना और दुष्प्रचार को स्थान दिया गया है, जिसमें बड़े पैमाने पर एआई मॉडल के उपयोग में आसान इंटरफेस हैं, जो परिष्कृत वॉयस क्लोनिंग से नकली वेबसाइटों तक झूठी जानकारी तथा "सिंथेटिक" सामग्री में उछाल को सक्षम करते हैं।
- AI का उपयोग बड़े पैमाने पर वैयक्तिकृत प्रचार के साथ मतदाताओं को लुभाने के लिये किया जा सकता है, जिससे कैंब्रिज एनालिटिका घोटाला दिखाई दे सकता है, क्योंकि AI मॉडल की प्रेरक क्षमता बॉट्स और स्वचालित सोशल मीडिया खातों से कहीं बेहतर होगी जो अब दुष्प्रचार के लिये आधारभूत उपकरण हैं।
- फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के द्वारा अपनी तथ्य-जाँच तथा चुनाव अखंडता टीमों में उल्लेखनीय रूप से कटौती करने से जोखिम बढ़ गया है।
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) का वैश्विक जोखिम धारणा सर्वेक्षण में शीर्ष 10 जोखिमों में गलत सूचना और दुष्प्रचार को स्थान दिया गया है, जिसमें बड़े पैमाने पर एआई मॉडल के उपयोग में आसान इंटरफेस हैं, जो परिष्कृत वॉयस क्लोनिंग से नकली वेबसाइटों तक झूठी जानकारी तथा "सिंथेटिक" सामग्री में उछाल को सक्षम करते हैं।
- अशुद्धियाँ और अविश्वसनीयता:
- AGI समेत AI मॉडल अचूक नहीं हैं और अशुद्धियाँ तथा विसंगतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
- व्यक्तियों और व्यक्तित्वों को गलत तरीके से, गलती से या अन्यथा चित्रित करने के लिये भारत सहित विश्व भर में Google AI मॉडल पर सार्वजनिक आक्रोश है। ये 'रन-अवे' AI के खतरों को अच्छी तरह दर्शाते हैं।
- विसंगतियाँ और निर्भरता कई AI मॉडलों पर हावी रहती हैं तथा समाज के लिये अंतर्निहित खतरे उत्पन्न करती हैं। जैसे-जैसे इसकी क्षमता और उपयोग ज्यामितीय अनुपात में बढ़ता है, खतरे का स्तर बढ़ना तय है।
- नैतिक चिंताएँ:
- चुनावों में AI का उपयोग गोपनीयता, पारदर्शिता और निष्पक्षता के बारे में नैतिक प्रश्न उठाता है।
- AI एल्गोरिदम अनजाने में प्रशिक्षण डेटा में मौजूद पूर्वाग्रहों को कायम रख सकता है, जिससे मतदाताओं के कुछ समूहों के खिलाफ अनुचित व्यवहार या भेदभाव हो सकता है।
- इसके अलावा, AI निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी चुनावी परिणामों में जनता के विश्वास और भरोसे को कम कर सकती है।
- बेहतर संसाधन वाली पार्टियाँ कम संसाधन वाले छोटे और क्षेत्रीय दलों की तुलना में AI का बेहतर उपयोग कर सकती हैं, जो चुनावों में समान अवसर को बाधित कर सकता है।
- नियामक चुनौतियाँ:
- तकनीकी प्रगति की तीव्र गति और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की वैश्विक प्रकृति के कारण चुनावी अभियानों में AI के उपयोग को विनियमित करना महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
- सरकारें और चुनाव अधिकारी विकसित AI तकनीकों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये संघर्ष कर रहे हैं तथा AI-संचालित चुनावी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये आवश्यक विशेषज्ञता की कमी हो सकती है।
- यदि डीपफेक का उपयोग करके फर्जी खबरें फैलाई जाती हैं तो प्राथमिक कानून जो संभावित रूप से ट्रिगर हो सकते हैं, वे हैं, भारत दंड संहिता, 1860 (या उचित समय में भारतीय न्याय संहिता, 2023) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000; और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021।
- हालाँकि ऐसा कोई विशिष्ट कानून मौजूद नहीं है जो केवल AI और डीपफेक तकनीक से निपटता हो तथा इसे बनाने वाले व्यक्ति को लक्षित करता हो।
चुनावों पर AI के प्रभाव से किस प्रकार निपटें?
- AI के दुरुपयोग से निपटने करने के लिये MCC जैसे दिशा-निर्देश जारी करना:
- गलत सूचना का खतरा लंबे समय से मौजूद है और AI तकनीक के आगमन ने फर्ज़ी खबरों के प्रसार को बढ़ावा दिया है।
- लोकसभा चुनाव वर्ष 2024 के संदर्भ में, AI-जनित गलत सूचना का एक संभावित समाधान भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश होंगे।
- ऐसे नियमों को लागू करने की आवश्यकता है जिनके लिये राजनीतिक उद्देश्यों हेतु AI एल्गोरिदम के उपयोग में पारदर्शिता की आवश्यकता है।
- इसमें राजनीतिक विज्ञापनों के लिये धन के स्रोतों का खुलासा करना और प्लेटफॉर्मों को यह बताना शामिल है कि एल्गोरिदम उपयोगकर्त्ताओं द्वारा देखी जाने वाली सामग्री को किस प्रकार निर्धारित करते हैं।
- गलत सूचना का खतरा लंबे समय से मौजूद है और AI तकनीक के आगमन ने फर्ज़ी खबरों के प्रसार को बढ़ावा दिया है।
- शिक्षा और मीडिया साक्षरता:
- नागरिकों को यह सिखाने के लिये शैक्षिक कार्यक्रमों में निवेश कने की आवश्यकता है कि ऑनलाइन जानकारी का आलोचनात्मक मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए और दुष्प्रचार व फर्जी सूचनाओं की पहचान किस प्रकार की जाए।
- मतदाताओं को सूचना के विश्वसनीय और अविश्वसनीय स्रोतों के बीच अंतर करने में मदद करने के लिये मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिये।
- उन्नत तथ्य-जाँच:
- चुनावों के दौरान फर्जी खबरों, डीप फेक और अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम की स्थापना करना महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि यह अपरिहार्य है कि फर्जी वीडियो और गलत सूचनाएँ सामने आएँगी, लेकिन इससे पहले कि वे आगे बढ़ें और व्यापक रूप से प्रसारित हो जाएँ, मुख्यरूप से उनसे शीघ्र अतिशीघ्र निपटने की आवश्यकता है।
- ऑनलाइन प्रसारित होने वाली जानकारी की सटीकता को सत्यापित करने के लिये स्वतंत्र संगठनों और पत्रकारों को संसाधन प्रदान करके तथ्य-जाँच प्रयासों को मज़बूत करना चाहिये।
- भ्रामक सामग्री का अभिनिर्धारण करने और चिह्नित करने के लिये AI-संचालित उपकरण विकसित करना चाहिये।
- चुनावों के दौरान फर्जी खबरों, डीप फेक और अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम की स्थापना करना महत्त्वपूर्ण है।
- प्रति-आख्यान और डिबंकिंग अभियान:
- जन जागरूकता अभियान चलाए जाएँ जो गलत सूचनाओं को खारिज कर सकें और सटीक जवाबी आख्यान प्रदान करें।
- प्रचलित गलत सूचनाओं की पहचान करने और प्रति-संदेशों को प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिये AI का उपयोग करना।
- नैतिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता विकास:
- पूर्वाग्रह को कम करने, गोपनीयता की रक्षा करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने जैसे नैतिक विचारों को ध्यान में रखते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करें।
- राजनीतिक संदर्भों में AI के ज़िम्मेदार उपयोग के लिये मानक और दिशा-निर्देश स्थापित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- AI-संचालित दुष्प्रचार अभियानों से उत्पन्न वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये सरकारों, तकनीकी कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव हस्तक्षेप से निपटने के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके प्रयासों का समन्वय आवश्यक है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?
निष्कर्ष
- चुनावों के अतिरिक्त, भारत, जो तकनीकी रूप से सबसे अधिक कुशल देशों में से एक है, को कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक नवीन अवधारणा के रूप में देखना जारी रखना चाहिये।
- हालाँकि AI सहायक भूमिका निभाता है किंतु राष्ट्र और उसके नेताओं को इससे संबंधित व्यवधान की जानकारी होनी चाहिये।
- यह AGI के लिये विशेष रूप से सच है और उन्हें उचित सावधानी के साथ कार्य करना चाहिये। डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं में भारत का नेतृत्व लाभकारी और हानिकारक दोनों हो सकता है क्योंकि AGI कई लाभ प्रदान करता है किंतु कुछ दशाओं में यह हानिकारक भी हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में IT उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं? (2022) |
आंतरिक सुरक्षा
बदलती गतिशीलता के बावजूद भारत हथियारों के आयात में विश्व में प्रथम
प्रिलिम्स:स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट, भारत के हथियार आयात गतिशीलता, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ, रक्षा औद्योगिक गलियारे, रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार। मेन्स:हथियार उद्योग से संबंधित भारत सरकार की हालिया पहल |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अंतर्राष्ट्रीय हथियार हस्तांतरण के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत वर्ष 2019 से 2023 की अवधि के दौरान वैश्विक स्तर पर अग्रणी हथियार आयातक के रूप में उभरा है।
- इस समय-सीमा के दौरान, वर्ष 2014 से 2018 की अवधि की तुलना में भारत के आयात में 4.7% की वृद्धि हुई।
वर्तमान SIPRI डेटा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- हथियार आयातक: वर्ष 2019-23 में 10 सबसे बड़े हथियार आयातकों में से नौ, जिनमें भारत, सऊदी अरब और कतर शीर्ष 3 में शामिल हैं, जो कि एशिया तथा ओशिनिया या मध्य पूर्व के देशों में थे।
- गौरतलब है, कि इस समय यूक्रेन दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हथियार आयातक बनकर उभरा है।
- हथियार निर्यातक: संयुक्त राज्य अमेरिका, वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता, ने वर्ष 2014-18 और वर्ष 2019-23 की अवधि के बीच हथियारों के निर्यात में 17% की वृद्धि देखी।
- समवर्ती रूप से, फ्राँस विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता बन गया।
- मज़बूत सैन्य-औद्योगिक क्षमता के साथ, यूरोप के पास वैश्विक हथियार निर्यात का एक तिहाई हिस्सा है।
- इसके विपरीत, रूस में -53% की कमी के साथ आधे से अधिक की बहुत बड़ी गिरावट देखी गई।
- भारत के हथियार आयात की गतिशीलता: यद्यपि रूस भारत का प्राथमिक हथियार आपूर्तिकर्त्ता बना रहा, जो इसके हथियारों के आयात का 36% हिस्सा था, यह वर्ष 1960-64 के बाद पहली 5 वर्ष की अवधि थी जहाँ रूसी हथियार वितरण भारत के कुल हथियार आयात के आधे से भी कम थी।
- भारत अब अपनी बढ़ती रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये फ्राँस और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों की ओर रुख कर रहा है, साथ ही अपने घरेलू हथियार उद्योग को भी बढ़ावा दे रहा है।
SIPRI क्या है?
- यह एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण पर अनुसंधान के लिये समर्पित है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।
- यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और इच्छुक जनता को खुले स्रोतों पर आधारित डेटा, विश्लेषण एवं सिफारिशें प्रदान करता है।
हथियारों के आयात को कम करने के लिये भारत सरकार की हालिया पहल क्या हैं?
- परिचय: भारत का दूसरा सबसे बड़ा सशस्त्र बल रक्षा क्षेत्र क्रांति के शिखर पर है।
- अंतरिम बजट 2024-25 में रक्षा मंत्रालय को कुल 6.2 लाख करोड़ रुपए का आवंटन प्राप्त हुआ।
- इस आवंटन के भीतर, ₹17.2 लाख करोड़ विशेष रूप से नई खरीद के लिये पूंजीगत व्यय के लिये नामित किये गए थे।
- यह पूंजी आवंटन 2023-24 के बजट अनुमान की तुलना में 5.78% की वृद्धि दर्शाता है।
- पहल:
- सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ: सरकार उन विशिष्ट घटकों और उप-प्रणालियों की पहचान करने के लिये सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी करती है जिनका निर्माण घरेलू स्तर पर किया जाना चाहिये।
- सैन्य मामलों के विभाग ने हाल ही में 5वीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की है जिसमें 98 वस्तुएँ शामिल हैं, जो रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी विनिर्माण को और बढ़ावा देती हैं।
- रक्षा क्षेत्र में बढ़ी FDI सीमा: इसे वर्ष 2020 में ऑटोमैटिक रूट से 74% और सरकारी रूट से 100% तक बढ़ा दिया गया है।
- रक्षा औद्योगिक गलियारा: रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में दो समर्पित रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किये गए हैं।
- उत्तर प्रदेश कॉरिडोर में आगरा, अलीगढ़, चित्रकूट, झाँसी, कानपुर और लखनऊ के नोड शामिल हैं।
- तमिलनाडु कॉरिडोर में चेन्नई, कोयंबटूर, होसुर, सलेम और तिरुचिरापल्ली के नोड शामिल हैं।
- रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (idEX): iDEX का लक्ष्य रक्षा और एयरोस्पेस में नवाचार तथा प्रौद्योगिकी विकास के लिये एक पारितंत्र विकसित करना है।
- यह उद्योगों, MSME, स्टार्टअप्स, इनोवेटर्स, अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं और शिक्षाविदों जैसे विभिन्न हितधारकों को शामिल करते हुए उन्हें भारतीय रक्षा तथा एयरोस्पेस आवश्यकताओं के लिये अनुसंधान एवं विकास के लिये अनुदान, वित्त पोषण और समर्थन प्रदान करता है।
- इस पहल को कंपनी अधिनियम 2013 के तहत एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में स्थापित डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइज़ेशन (DIO) द्वारा वित्त पोषित और प्रबंधित किया जाता है।
- सृजन पोर्टल: यह विक्रेताओं के लिये उन रक्षा उपकरणों के निर्माण के अवसर खोजने के लिये वन-स्टॉप शॉप है जो पहले आयात किये जाते थे।
- रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (DPSU) और अन्य सरकारी एजेंसियाँ उन विशिष्ट वस्तुओं के संबंध में विवरण पोस्ट करने के लिये सृजन का उपयोग कर सकती हैं जिनका वे देशज रूप से विकसित करना चाहते हैं।
- इससे भारतीय कंपनियों को अपनी रुचि व्यक्त करने और उत्पादन में सहयोग करने का अवसर मिलता है।
- सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ: सरकार उन विशिष्ट घटकों और उप-प्रणालियों की पहचान करने के लिये सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी करती है जिनका निर्माण घरेलू स्तर पर किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- रक्षा नवाचार क्षेत्र: विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों को रक्षा नवाचार क्षेत्र के रूप में नामित करना, रक्षा स्टार्टअप और उच्च तकनीक कंपनियों को आकर्षित करने के लिये बुनियादी ढाँचे का समर्थन तथा नियामक लचीलेपन की पेशकश करना।
- सुव्यवस्थित खरीद प्रक्रिया: घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये स्वदेशी रक्षा उत्पादों की खरीद प्रक्रिया को सरल और तेज़ बनाना।
- स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं को प्राथमिकता देने वाली पारदर्शी और कुशल खरीद नीतियों को लागू करना।
- स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहन: स्वदेशी रक्षा विनिर्माण में लगी कंपनियों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन, कर लाभ और सब्सिडी प्रदान करना। रक्षा स्टार्टअप और छोटे पैमाने के उद्यमों के समृद्ध बनने हेतु एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना।
- निर्यात को बढ़ावा देना: एक मज़बूत रक्षा निर्यात उद्योग का निर्माण करना जो आगे के अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करने के लिये राजस्व उत्पन्न कर सके और इज़रायल के मॉडल के समान केवल घरेलू बजट पर निर्भरता को कम कर सके।