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डेली न्यूज़

  • 01 Apr, 2024
  • 52 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

मध्य प्रदेश में भारत की पहली लघु-स्तरीय LNG इकाई

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में पहली लघु-स्तरीय तरलीकृत प्राकृतिक गैस इकाई, प्राकृतिक गैस, LNG और CNG की संरचना, BioCNG, LNG के प्रमुख अनुप्रयोग।

मेन्स के लिये:

LNG से संबंधित चुनौतियाँ, लघु-स्तरीय LNG इकाई की आवश्यकता।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री ने हाल ही में मध्य प्रदेश में गेल (इंडिया) लिमिटेड के विजयपुर परिसर में भारत की पहली लघु-स्तरीय तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Small-Scale Liquefied Natural Gas- SSLNG) इकाई का उद्घाटन किया।

  • यह विकास विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस के उपयोग को बढ़ावा देने और वर्ष 2030 तक देश के प्राथमिक ऊर्जा मिश्रण में इसकी हिस्सेदारी को 15% तक बढ़ाने की सरकार की व्यापक पहल का हिस्सा है।

LNG और SSLNG क्या है?

  • परिचय: तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) एक ऐसी प्राकृतिक गैस है जिसे भंडारण और परिवहन को आसान तथा सुरक्षित बनाने के लिये लगभग -260°F (-162°C) तरल अवस्था में ठंडा किया जाता है।
    • प्राकृतिक गैस का प्राथमिक घटक मीथेन है, जो इसकी संरचना का 70-90% हिस्सा है।
      • प्राकृतिक गैस कोयला और तेल जैसे पारंपरिक हाइड्रोकार्बन का एक स्वच्छ तथा अधिक किफायती विकल्प है, जो इसे भारत के हरित ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण में महत्त्वपूर्ण बनाता है।
    • IEA के अनुसार, प्राकृतिक गैस वैश्विक बिजली उत्पादन का लगभग एक चौथाई हिस्सा है।
      • वर्तमान में भारत में ऊर्जा बास्केट में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 6.7% है।
    • शीर्ष प्राकृतिक गैस उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और ईरान हैं।
  • लघु-स्तरीय LNG: SSLNG में छोटे पैमाने पर प्राकृतिक गैस को द्रवित करना और परिवहन करना, विशेष ट्रकों तथा जहाज़ों का उपयोग करके पाइपलाइन कनेक्शन के बिना क्षेत्रों में आपूर्ति करना शामिल है।
    • बड़े पैमाने पर LNG आयात टर्मिनलों से शुरू होकर, SSLNG क्रायोजेनिक रोड टैंकरों या छोटे जहाज़ों के माध्यम से या तो पारंपरिक उपयोग के लिये तरल या पुनर्गैसीकृत के रूप में उपभोक्ताओं को सीधे LNG की आपूर्ति कर सकता है।
    • इससे महँगे गैस आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी, खासकर अगर यह डीज़ल की खपत के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की भरपाई करती है, जिससे विदेशी मुद्रा की पर्याप्त बचत होगी।
      • यह स्वच्छ ऊर्जा को भी बढ़ावा देता है और टिकाऊ ईंधन स्रोतों की ओर भारत के परिवर्तन का समर्थन करता है।
  • प्रमुख अनुप्रयोग:
    • परिवहन:
      • समुद्री ईंधन: पारंपरिक समुद्री ईंधन की तुलना में सल्फर ऑक्साइड (SOx) और पार्टिकुलेट मैटर के कम उत्सर्जन के कारण LNG का उपयोग विशेष रूप से उत्सर्जन-नियंत्रित क्षेत्रों में जहाज़ों के लिये ईंधन के रूप में किया जा रहा है।
      • सड़क परिवहन: LNG का उपयोग ट्रकों, बसों और अन्य भारी वाहनों के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है जिसके उपयोग से डीज़ल की तुलना में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), पार्टिकुलेट मैटर तथा ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन होता है।
    • औद्योगिक अनुप्रयोग:
      • ऊर्जा उत्पादन: LNG का उपयोग गैस चालित ऊर्जा संयंत्रों से विद्युत का उत्पादन करने के लिये किया जाता है जो प्रदूषकों के कम उत्सर्जन के साथ कोयले अथवा तेल से चलने वाले विद्युत संयंत्रों के लिये एक स्वच्छ विकल्प प्रदान करता है।
      • तापन और शीतलन: LNG का उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे- विनिर्माण, खाद्य प्रसंस्करण और प्रशीतन (Refrigeration) में तापन तथा शीतलन (Heating and Cooling) जैसे उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
    • ऊर्जा भंडारण और बैकअप:
      • नवीकरणीय/अक्षय ऊर्जा एकीकरण: नवीकरणीय उर्जा उत्पादन में रुकावट अथवा अनुपलब्धता की स्थिति में LNG बैकअप पावर प्रदान करके पवन और सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के पूरक की भूमिका निभा सकता है।
  • संबंधित चुनौतियाँ:
    • उच्च लागत: LNG द्रवीकरण एवं पुनर्गैसीकरण सुविधाओं के निर्माण की लागत उच्च होती है। इसके अतिरिक्त, परिवहन प्रक्रिया के लिये विशेष क्रायोजेनिक (सुपर कोल्ड) वाहक की आवश्यकता होती है, जिससे लागत और बढ़ जाती है।
      • चीन जैसे देशों ने वाणिज्यिक वाहनों में LNG के प्रयोग को सफलतापूर्वक एकीकृत किया है किंतु भारत को LNG वाहनों की सीमित उपलब्धता, उच्च प्रारंभिक लागत और LNG के लिये वित्तपोषण एवं खुदरा नेटवर्क की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: कोयले की तुलना में स्वच्छ होने के बावजूद, LNG के उत्पादन की प्रक्रिया और परिवहन हेतु इसके प्रयोग से मीथेन उत्सर्जन होता है जो इसके पर्यावरणीय प्रभाव को दर्शाता है।
      • CO2 के बाद मानवजनित GHG में दूसरा सबसे बड़ा योगदान मीथेन का है। हालाँकि मीथेन वायुमंडल में CO2 की तुलना में तेज़ी से क्षयित होती है किंतु इसका ग्रहीय तापन प्रभाव कहीं अधिक होता है।
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: LPG अत्यधिक ज्वलनशील होती है और उपयुक्त प्रयोग न करने के दशा में सुरक्षा जोखिम उत्पन्न कर सकती है। इसके अनुचित भंडारण, रख-रखाव अथवा उपयोग से रिसाव, आग अथवा विस्फोट जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

संपीड़ित प्राकृतिक गैस क्या है?

  • परिचय: CNG का तात्पर्य उच्च दबाव में संपीड़ित की गई प्राकृतिक गैस से है जिससे ईंधन टैंक में कम मात्रा में इसका भंडारण संभव होता है।
    • यह सामान्य रूप से 200 से 250 किग्रा/सेमी.² के दबाव पर संपीड़ित होती है, जिससे वायुमंडलीय दबाव पर इसकी मात्रा इसके आकार के 1% से भी कम हो जाती है।
      • LPG के विपरीत, जो संपीड़ित प्रोपेन एवं ब्यूटेन का मिश्रण है, CNG में मुख्य रूप से गैसीय अवस्था में 80 से 90% मीथेन होता है।
    • CNG और LNG के बीच अंतर उनकी भौतिक अवस्था में निहित होता है: CNG एक गैस के रूप में जबकि LNG एक तरल के रूप में होती है जिसे बाद में उपयोग के लिये पुन: गैसीकृत किया जाता है।
  • CNG के लाभ:
    • हवा से हल्की, रिसाव की स्थिति में तेज़ी से फैल जाती है।
    • न्यूनतम अवशिष्टों के साथ स्वच्छ दहन, इंजन रखरखाव को कम करना। 
    • पेट्रोल या डीज़ल की तुलना में कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन।
    • इसके उच्च ऑटो-इग्निशन तापमान के कारण उच्च सुरक्षा।
    • पेट्रोल और डीज़ल की तुलना में उच्च कैलोरी मान के साथ लागत प्रभावी।
  • CNG के नुकसान:
    • बड़े ईंधन टैंक की आवश्यकता है।
    • प्रति भरण सीमित सीमा।
    • कम फिलिंग स्टेशन उपलब्ध हैं।
    • पुराने वाहनों को CNG  के लिये रेट्रोफिट करना चुनौतीपूर्ण है।
  • BioCNG: बायोसीएनजी, जिसे बायोमेथेन के रूप में भी जाना जाता है, जैविक अपशिष्ट से बना एक नवीकरणीय, स्वच्छ जलने वाला परिवहन ईंधन है। इसका उत्पादन बायोगैस को प्राकृतिक गैस की गुणवत्ता में अपग्रेड करके किया जाता है।

आगे की राह 

  • LNG अवसंरचना विकास: LNG उपलब्धता बढ़ाने के लिये LNG आयात टर्मिनलों और पुनर्गैसीकरण सुविधाओं के विस्तार में निवेश करना चाहिये।
    • इसके अलावा, पाइपलाइन कनेक्शन के बिना क्षेत्रों तक पहुँचने के लिये विशेष ट्रकों, जहाज़ों और भंडारण सुविधाओं सहित एक मज़बूत SSLNG बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना चाहिये।
  • बाज़ार विकास: उद्योगों, वाणिज्यिक उपयोगकर्त्ताओं और परिवहन क्षेत्र के बीच LNG तथा SSLNG के लाभों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना एवं उन्हें बढ़ावा देना चाहिये।
    • LNG से चलने वाले वाहनों और उपकरणों में निवेश को प्रोत्साहित करना, अपनाने के लिये प्रोत्साहन तथा वित्तपोषण विकल्प की पेशकश करनी चाहिये।
  • नियामक समर्थन: LNG और SSLNG संचालन के लिये स्पष्ट नियामक ढाँचे तथा मानकों का विकास करना, सुरक्षा, पर्यावरण अनुपालन व गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना चाहिये।
  • नवाचार हेतु निवेश: दक्षता में सुधार और लागत कम करने के लिये क्रायोजेनिक भंडारण व परिवहन समाधान जैसी उन्नत LNG प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये दबाव: COP28 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ने प्राकृतिक गैस की ओर संकेत करते हुए पहले ग्लोबल स्टॉकटेक के अपने परिणाम में ऊर्जा सुरक्षा के लिये "संक्रमणकालीन ईंधन" का उल्लेख किया।
    • LNG व्यापार, बुनियादी ढाँचे के विकास और नीति सामंजस्य के लिये क्षेत्रीय एवं वैश्विक पहल में भाग लेने से वैश्विक LNG बाज़ार में भारत की स्थिति मज़बूत हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)

प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों  (एस० डी० जी०) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


जैव विविधता और पर्यावरण

निर्माण क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता

प्रिलिम्स के लिये:

इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान, इको-निवास संहिता, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE), ऊर्जा संरक्षण बिल्डिंग कोड, ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2022

मेन्स के लिये:

निर्माण क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता, संरक्षण, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत के निर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व उछाल ने आर्थिक विकास के नए अवसर सृजित किये हैं और साथ ही जीवन स्तर में सुधार भी किये हैं, लेकिन इससे बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी उत्त्पन्न हुई हैं। इस परिदृश्य के बीच आवासीय भवनों में ऊर्जा अक्षमता का समाधान करना भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

भारत के निर्माण क्षेत्र में ऊर्जा अक्षमता का समाधान करना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • आर्थिक विकास, शहरीकरण, ऊष्मा द्वीपों तथा जलवायु परिवर्तन के कारण भारत की बढ़ती ऊर्जा एवं कूलिंग डिमांड को देखते हुए, आवासीय भवनों में ऊर्जा दक्षता का समाधान करना आवश्यक है।
  • भारत में निर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व उछाल देखा जा रहा है, जिसमें वार्षिक स्तर पर 300,000 से अधिक आवास इकाइयाँ बनाई जा रही हैं। यह वृद्धि आर्थिक अवसर एवं बेहतर जीवन स्तर का निर्माण करती है किंतु साथ-ही-साथ बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी उत्पन्न करती है।
    • भारत के विद्युत उपयोग में भवन निर्माण क्षेत्र का हिस्सा 33% से अधिक है, जो पर्यावरणीय क्षरण के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
  • इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान में वर्ष 2017 से वर्ष 2037 के बीच कूलिंग डिमांड में आठ गुना वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें सक्रिय कूलिंग डिमांड को कम करते हुए थर्मल कम्फर्ट की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
  • ऊर्जा दक्षता में सुधार ऊर्जा की खपत साथ संबद्ध ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
    • अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई, ऊर्जा-कुशल इमारतें बेहतर इनडोर वायु गुणवत्ता, थर्मल कम्फर्ट एवं प्राकृतिक प्रकाश प्रदान करती हैं, जो इसमें रहने वालों के लिये लाभकारी होती है।

नोट:

  • वैश्विक स्तर पर भवन क्षेत्र ऊर्जा-संबंधी CO2 उत्सर्जन में लगभग 37% योगदान करता है।
  • वैश्विक ऊर्जा मांग का 34% से अधिक हिस्सा घरों एवं व्यवसायों के निर्माण, हीटिंग, कूलिंग तथा प्रकाश व्यवस्था के लिये ज़िम्मेदार है।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) का सुझाव है कि इमारतों के निर्माण में में दक्षता नीतियों के प्रयोग से विकसित देश GHG उत्सर्जन में 90% एवं विकासशील देश 80% तक की कटौती कर सकते हैं।
    • ऐसी नीतियों के कार्यान्वयन से विकासशील देशों में 2.8 बिलियन लोगों को ऊर्जा गरीबी से बाहर निकालने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

निर्माण क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता के संबंध में भारत की पहल क्या हैं?

  • इको-निवास संहिता (ENS):
    • ECO निवास संहिता दिसंबर 2018 में विद्युत मंत्रालय द्वारा आवासीय भवनों के लिये एक ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC-R) लॉन्च किया गया है।
      • संहिता का उद्देश्य निवासियों और पर्यावरण के लाभ के लिये घरों, अपार्टमेंटों तथा टाउनशिप के डिज़ाइन एवं निर्माण में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना है।
    • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) ऊर्जा दक्षता और संरक्षण में नीतियों तथा कार्यक्रमों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार वैधानिक निकाय है।
    • ENS ने रेजिडेंशियल एनवलप ट्रांसमिटेंस वैल्यू (RETV) पेश किया, जो एक इमारत के लिफाफे (दीवारों, छत और खिड़कियों) के माध्यम से गर्मी हस्तांतरण को मापने वाला एक मीट्रिक है।
      • कम RETV मूल्यों से इनडोर वातावरण ठंडा हो जाता है और शीतलन के लिये ऊर्जा का उपयोग कम हो जाता है।
    • ENS इष्टतम दक्षता, बेहतर रहने वाले आराम और कम उपयोगिता व्यय के लिये 15W/m² या उससे कम का RETV बनाए रखने की सिफारिश करता है।
  • ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC):
    • वर्ष 2007 में ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) द्वारा शुरू किया गया और वर्ष 2017 में अद्यतन किया गया ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC), वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करता है।
      • इसका लक्ष्य अनुपालन वाली इमारतों में 25 से 50% की ऊर्जा बचत हासिल करना है और यह महत्त्वपूर्ण कनेक्टेड लोड वाले वाणिज्यिक भवनों पर लागू होता है।
    • ECBC मुख्य रूप से भवन डिज़ाइन के छह घटकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें लिफाफा, प्रकाश व्यवस्था, हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (HVAC) सिस्टम एवं विद्युत ऊर्जा सिस्टम शामिल हैं।
    • अद्यतन 2017 संहिता नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण, अनुपालन में आसानी, निष्क्रिय भवन डिज़ाइन रणनीतियों को शामिल करने और डिज़ाइनरों के लिये लचीलेपन को प्राथमिकता देता है।
      • यह अनुपालन स्तरों के आधार पर ECBC से लेकर सुपर ECBC तक की दक्षता के टैग प्रदान करता है।
  • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022:
    • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 एम्बेडेड कार्बन, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, सामग्री और संसाधन दक्षता, स्वच्छ ऊर्जा की तैनाती एवं परिपत्रता से संबंधित उपायों को शामिल करके ECBC को ऊर्जा संरक्षण व स्थिरता निर्माण कोड में परिवर्तित करने का प्रावधान करता है।
    • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 आवासीय भवन ऊर्जा संहिता, ECO निवास संहिता को भी अनिवार्य बनाता है।
  • NEERMAN पुरस्कार:
  • भवनों के लिये BEE स्टार रेटिंग:
    • भवनों के लिये BEE स्टार रेटिंग एक अनूठा उपकरण है जिसे वाणिज्यिक भवनों में ऊर्जा दक्षता की स्थिति का आकलन करने के लिये विकसित किया गया है।
      • यह रेटिंग प्रणाली 100 किलोवाट अथवा इससे अधिक के कनेक्टेड लोड वाले भवनों पर लागू होती है।
      • मूल्यांकन की इस प्रणाली के तहत, भवन में ऊर्जा के उपयोग के आधार पर 1-5 सितारे प्रदान किये जाते हैं।
    • यह रेटिंग विभिन्न मानदंडों पर आधारित है जिसमें निर्मित क्षेत्र, वातानुकूलित और गैर-वातानुकूलित क्षेत्र, भवन का प्रकार, एक दिन में भवन के संचालन की अवधि, जलवायु क्षेत्र तथा सुविधा से संबंधित अन्य विविध जानकारी शामिल है।
  • ग्रीन रेटिंग फॉर इंटिग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (GRIHA):
    • GRIHA ग्रीन बिल्डिंग के लिये एक राष्ट्रीय रेटिंग प्रणाली है जिसका प्रयोग नए भवनों के डिज़ाइन और मूल्यांकन के दौरान किया जाता है। इस उपकरण को नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा अपनाया गया है।
  • भारतीय हरित भवन परिषद (IGBC):
    • IGBC, भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) का हिस्सा है जिसका गठन वर्ष 2001 में किया गया था। इस परिषद का विज़न "सभी के लिये सतत् रूप से निर्मित वातावरण सुनिश्चित करना और भारत को वर्ष 2025 तक सतत् रूप से निर्मित वातावरण वाले अग्रणी देशों से रूप में स्थापित करना” है।

निर्माण क्षेत्र को किस प्रकार ऊर्जा दक्ष बनाया जा सकता है?

  • ऑटोक्लेव्ड एयरेटेड कंक्रीट (AAC) ब्लॉक का उपयोग:
    • भारत के चार ऊष्म जलवायु वाले शहरों में एक विश्लेषण के माध्यम से ऑटोक्लेव्ड एरेटेड कंक्रीट (AAC) ब्लॉक, लाल ईंटों, फ्लाई ऐश और मोनोलिथिक कंक्रीट (मिवान) जैसी सामग्रियों की लोकप्रियता की तुलना की गई।
      • AAC एक प्रकार का कंक्रीट होता है जिसका निर्माण क्लोज़्ड एयर पॉकेट को बनाए रखने के लिये किया जाता है। AAC का वज़न कंक्रीट पाँचवें हिस्से के बराबर होता है।
    • AAC ब्लॉक विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में बेहतर थर्मल दक्षता प्रदर्शित करते हैं।
      • अन्य सामग्रियों की तुलना में इनकी RETV सबसे कम है जो इनकी ऊर्जा दक्षता की क्षमता को दर्शाता है।
    • AAC ब्लॉक लाल ईंटों और मोनोलिथिक कंक्रीट की तुलना में सन्निहित ऊर्जा तथा निर्माण समय के बीच
    • हतर संतुलन प्रदान करते हैं।
  • भवन निर्माण हेतु नवोन्वेषी सामग्री की खोज:
    • भारत में नवीन निर्माण सामग्री के लिये अप्रयुक्त क्षमता मौजूद है।
    • स्थिरता विशेषज्ञों के साथ अंतःविषय सहयोग ऊर्जा-कुशल भवन डिज़ाइन के लिये नीतियों के अनुकूलन में मदद कर सकता है।
  • संधारणीयता संबंधी चिंताओं का समाधान:
    • मोनोलिथिक कंक्रीट जैसी सामग्रियों के लिये निर्माण उद्योग की प्राथमिकता उच्च सन्निहित कार्बन और थर्मल असुविधा के कारण चिंता पैदा करती है।
      • मोनोलिथिक निर्माण एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा दीवारों और स्लैबों का निर्माण एक साथ किया जाता है।
    • टिकाऊ निर्माण के लिये लागत प्रभावी और लचीले समाधान विकसित करने हेतु निर्माताओं से नवाचार की आवश्यकता होती है।
  • सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना:
    • निर्माण प्रथाओं की फिर से कल्पना करना और स्थिरता की संस्कृति को बढ़ावा देना ऊर्जा दक्षता तथा पर्यावरणीय स्थिरता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।
    • लागत प्रभावी, टिकाऊ और जलवायु-लचीली निर्माण सामग्री जीवन की गुणवत्ता में सुधार तथा पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप योगदान कर सकती है।
  • स्मार्ट बिल्डिंग सिस्टम को अपनाना:
    • ऊर्जा खपत को अनुकूलित करने के लिये स्मार्ट बिल्डिंग सिस्टम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 3डी प्रिंटिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) को निर्माण परियोजनाओं में एकीकृत किया जाना चाहिये।
      • बुद्धिमान HVAC सिस्टम तैनात करना जो रहने वालों के आराम को सुनिश्चित करते हुए ऊर्जा की खपत को कम करने के लिये अधिभोग के आधार पर समायोजित करना।
    • न्यूनतम सामग्री अपशिष्ट के साथ ऊर्जा-कुशल भवन घटक बनाने के लिये 3D प्रिंटिंग को अपनाना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

  1. प्रश्न. ईंधन के रूप में कोयले का उपयोग करने वाले बिजली संयंत्रों से प्राप्त 'फ्लाई ऐश' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)
  2. फ्लाई ऐश का उपयोग भवन निर्माण के लिये ईंटों के उत्पादन में किया जा सकता है।
  3. फ्लाई ऐश का उपयोग कंक्रीट की कुछ पोर्टलैंड सीमेंट अंश के स्थानापत्र (रिप्लेसमेंट) के रूप में किया जा सकता है।
  4. फ्लाई ऐश केवल सिलिकॉन डाइऑक्साइड तथा कैल्शियम ऑक्साइड से बनी होती है और इसमें कोई विषाक्त (टॉक्सिस) तत्त्व नहीं होते।

नीचे दिये गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "तीव्रतर एवं समावेशी आर्थिक संवृद्धि के लिये आधारिक-अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।" भारतीय के अनुभव के परिपेक्ष्य में विवेचना कीजिये। (2021)


भारतीय विरासत और संस्कृति

MP के 6 नए स्थल और यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर स्थलों की सूची

प्रिलिम्स के लिये:

ग्वालियर किला, धमनार का ऐतिहासिक समूह, भोजेश्वर महादेव मंदिर, चंबल घाटी के रॉक कला स्थल, खूनी भंडारा, बुरहानपुर, और रामनगर, मंडला के गोंड स्मारक, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, भारत के विश्व धरोहर स्थल।

मेन्स के लिये:

हाल ही में WHS की अस्थायी यूनेस्को सूची में जोड़ी गई साइटों की मुख्य विशेषताएँ, धरोहर स्थलों के प्रकार।

स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश के 6 नए स्थलों को विश्व धरोहर स्थलों (World Heritage Sites- WHS) की अस्थायी यूनेस्को सूची में जगह मिली है।

  • नई सूची में शामिल स्थलों में ग्वालियर का किला, धमनार का ऐतिहासिक समूह भोजेश्वर महादेव मंदिर, चंबल घाटी के रॉक कला स्थल, खूनी भंडारा, बुरहानपुर और रामनगर, मंडला के गोंड स्मारक शामिल हैं।

हाल ही में WHS की अस्थायी यूनेस्को सूची में जोड़ी गई साइटों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ग्वालियर किला: यह अपनी दुर्जेय दीवारों के लिये प्रसिद्ध है, यह एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है जो आस-पास के शहर का मनोरम दृश्य प्रदान करता है।
    • ऐतिहासिक रूप से, यह माना जाता है कि किले की पहली नींव छठी शताब्दी ईस्वी में राजपूत योद्धा सूरज सेन द्वारा रखी गई थी।
      • सूरज सेन स्थानीय सरदार थे जो गंभीर कुष्ठ रोग से पीड़ित थे लेकिन ग्वालिपा नामक एक साधु-संत ने उन्हें ठीक कर दिया था। इस घटना के प्रति आभार प्रकट करते हुए सूरज सेन ने उनके नाम पर ग्वालियर शहर की स्थापना की।
    • ग्वालियर किले का आक्रमणों और पुनर्निर्माणों का उथल-पुथल भरा इतिहास रहा, विशेष रूप से वर्ष 1398 में तोमर शासक मान सिंह के शासनकाल में, जिन्होंने इसके परिसर में कई स्मारक जोड़े।
      • मानसिंह तोमर के शासनकाल के बाद, ग्वालियर इब्राहिम लोदी, फिर मुगल सल्तनत के अधीन आ गया। 1550 ई. में अकबर ने पुनः नियंत्रण प्राप्त कर लिया। बाद में सिंधिया के नेतृत्व में मराठों ने सत्ता संभाली।
      • दूसरे मराठा युद्ध के दौरान यह किला थोड़े समय के लिये जनरल व्हाइट के अधीन रहा, लेकिन 1805 ई. में 1857 तक वापस सिंधिया ने इस पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
        • यह 1886 ई. तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, इसके बाद इसे झाँसी के बदले सिंधिया राजवंश को लौटा दिया गया।
    • किले में कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें तेली का मंदिर (Teli ka Mandir) भी शामिल है जो शिव, विष्णु और मातृकाओं को समर्पित है। 
      • चतुर्भुज मंदिर अपने गणितीय महत्त्व के लिये उल्लेखनीय है, जो गणित में शून्य के सबसे पुराने संदर्भों में से एक है।
      • सास बहू मंदिर (Sas Bahu Temples), जिनमें से बड़ा मंदिर विष्णु को समर्पित है, 1150 ई.पू. के हैं और अपने जटिल शिलालेखों के लिये जाने जाते हैं।
      • इसके अतिरिक्त गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ (Gurdwara Data Bandi Chhor) छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब की स्मृति में मनाया जाता है।
    • बेसाल्ट चट्टानी पहाड़ियों पर इसकी रणनीतिक स्थिति के अनुसार, पुराने संस्कृत शिलालेखों में इसका उल्लेख गोपाचल, गोपगिरि के रूप में किया गया है।

  • धमनार का ऐतिहासिक समूह: इसमें 7वीं शताब्दी ई.पू. की 51 चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएँ, स्तूप, चैत्य और आवास शामिल हैं।
    • इनमें गौतम बुद्ध की निर्वाण मुद्रा में विशाल प्रतिमा एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है।
    • उल्लेखनीय गुफाओं में उत्तरी तट पर बारी कचेरी और भीमा बाज़ार शामिल हैं, जो अपने ऐतिहासिक महत्त्व तथा स्थापत्य विशेषताओं के लिये जाने जाते हैं।
    • इन स्मारकों का सबसे पहला विवरण जेम्स टॉड से मिलता है, जिन्होंने वर्ष 1821 में दौरा किया था, उसके बाद वर्ष 1845 में जेम्स फर्ग्यूसन और वर्ष 1864-1865 के बीच अलेक्जेंडर कनिंघम ने दौरा किया था।
    • धमनार नाम का कोई ऐतिहासिक या साहित्यिक आधार नहीं है, लेकिन सबूत बताते हैं कि बौद्ध काल में इसे चंदननगरी-महाविहार के नाम से जाना जाता था।
      • विद्वान के. सी. जैन ने सुझाव दिया कि 'धमनार' शैव शब्द 'धर्मनाथ' से आया है, जो मध्यकालीन वैष्णव मंदिर में लिंग से जुड़ा है।

  • भोजेश्वर महादेव मंदिर: यह भगवान शिव को समर्पित है और इसमें एक ही पत्थर से बना विशाल लिंग है।
    • 11वीं शताब्दी में राजा भोज द्वारा बनवाया गया यह मंदिर अपनी भव्यता और अद्वितीय वास्तुकला के लिये प्रतिष्ठित है।
      • राजा भोज परमार वंश के एक प्रसिद्ध शासक थे जो अपने समरांगणसूत्रधार के वास्तुशिल्प ग्रंथ के लिये जाने जाते थे।
    • मंदिर की वास्तुकला भूमिजा शैली का अनुसरण करती है जो इसके विशाल शिखर और अलंकृत नक्काशी तथा मूर्तियों की विशेषता है।
      • इसके अलावा मंदिर के मुख्य भाग और इसके शिखर में मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली से प्रभावित घटक हैं।

  • चंबल घाटी के रॉक कला स्थल: यह विश्व के सबसे बड़े रॉक कला स्थलों की मेज़बानी करता है, जो विभिन्न ऐतिहासिक काल और सभ्यताओं के दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं।
    • मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में विस्तृत ये स्थल प्राचीन मानव जीवन एवं सांस्कृतिक विकास के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
      • बेसिन में रॉक कला में मेसोलिथिक शिकारी-संग्रहकर्त्ताओं के साथ प्रोटोहिस्टोरिक और उसके बाद के काल के शिकार एवं संग्रह दृश्यों के चित्रण शामिल हैं।
    • विंध्य, सतपुड़ा एवं कैमूर पर्वतों के पहाड़ी हिस्से, जिनकी विशेषता हरी-भरी वनस्पति तथा समानांतर पर्वतमालाएँ हैं, जो उनके विकास के लिये आदर्श हैं।
    • चंबल बेसिन में प्रमुख रॉक कला स्थलों में भीमलत महादेव, चतुर्भुजनाथ नाला, गराडिया महादेव, बुक्की माता, चट्टानेश्वर और कान्यदेय आदि शामिल हैं।

  • बुरहानपुर का खूनी भंडारा: यह एक भूमिगत जल प्रबंधन प्रणाली है, जिसमें ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर में अब्दुर्रहीम खानखाना द्वारा निर्मित आठ जलकुंड शामिल हैं।
    • इसे फारसी कनात दृष्टिकोण का उपयोग करके बनाया गया था और साथ ही इसे फारसी भूविज्ञानी, तब्कुतुल अर्ज़ द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
      • मुगल काल के दौरान, ईरान और इराक से फारसी कनात जैसी तकनीकों को उपयोगी सार्वजनिक उपयोगिताओं के रूप में भारत में आयात किया गया था।
    • 1900 के दशक की शुरुआत में इन भूमिगत नलिकाओं के 8 सेटों की खुदाई की गई और उनका पता लगाया गया, जिनमें से 6 आज तक बरकरार हैं।
      • इस खनिज समृद्ध जल में लाल रंग के संकेत के कारण इसे खूनी नाम दिया गया।

  • रामनगर, मंडला का गोंड स्मारक: यह क्षेत्र पहले भारत के मध्य प्रांत के रूप में जाना जाता था और साथ ही वर्तमान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र राज्यों के कुछ हिस्सों को कवर करता था; इसे ऐतिहासिक रूप से गोंडवाना कहा जाता था, जो भारत की सबसे बड़ी गोंड जनजाति का घर था।
    • स्मारकों के समूह में निम्नलिखित शामिल हैं:
      • मोती महल
      • रायभगत की कोठी!
      • सूरज मंदिर (विष्णु मंदिर)
      • बेगम महल
      • दलबादल महल

नोट: मध्य प्रदेश के 3 स्थल पहले से ही यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल हैं। इनमें खजुराहो स्मारक समूह (1986), साँची के बौद्ध स्मारक (1989) तथा भीमबेटका के रॉक शेल्टर (2003) शामिल हैं।

विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी UNESCO सूची क्या है?

  • विश्व धरोहर स्थल: विश्व धरोहर स्थल दुनिया भर में विशेष स्थान हैं जिन्हें मानवता के लिये उत्कृष्ट मूल्य का माना जाता है।
  • विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी UNESCO सूची: यह अलग-अलग देशों द्वारा अपने देश के चुने गए स्थलों की एक सूची है जिनका उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है और वे विश्व विरासत सूची में शामिल होने हेतु  उपयुक्त हो सकते हैं।
    • इसे वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • धरोहर स्थलों के प्रकार: इसमें तीन प्रकार के स्थल- सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित शामिल हैं।
    • सांस्कृतिक धरोहर स्थलों में कलाकृतियाँ, स्मारक, इमारतों और स्थलों का एक समूह तथा संग्रहालय शामिल हैं जिनमें प्रतीकात्मक, ऐतिहासिक, कलात्मक, सौंदर्यशास्त्र, नृवंशविज्ञान अथवा मानवशास्त्रीय, वैज्ञानिक एवं सामाजिक महत्त्व सहित मूल्यों की विविधता है।
    • प्राकृतिक धरोहर स्थलों में असाधारण पारिस्थितिक और विकासवादी प्रक्रियाओं, अद्वितीय प्राकृतिक घटनाओं, दुर्लभ अथवा संकटापन्न प्रजातियों से संबंधित आवासों आदि वाले असाधारण प्राकृतिक क्षेत्र शामिल हैं।
    • मिश्रित धरोहर स्थलों में प्राकृतिक और सांस्कृतिक महत्त्व दोनों पहलु शामिल होते हैं तथा साथ ही इनमें असाधारण प्राकृतिक विशेषताओं अथवा पारिस्थितिक प्रक्रियाओं के साथ ऐतिहासिक भवनों अथवा पुरातात्त्विक स्थलों जैसे तत्त्वों का मिश्रण होता है।
  • भारत में विश्व धरोहर स्थल: भारत में वर्तमान में 42 UNESCO विश्व विरासत स्थल हैं। सबसे हालिया विश्व विरासत स्थल निम्नलिखित हैं:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2021)

(a) अजंता की गुफाएँ वाघोरा नदी के घाट में स्थित हैं।
(b) साँची स्तूप चंबल नदी के घाट में स्थित है।
(c) पांडु-लेणा गुफा मंदिर नर्मदा नदी के घाट में स्थित हैं।
(d) अमरावती स्तूप गोदावरी नदी के घाट में स्थित है।

उत्तर: (a)


भारतीय अर्थव्यवस्था

कोर सेक्टर उद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

कोर सेक्टर, कोयला, प्राकृतिक गैस, आठ कोर उद्योग सूचकांक (ICI) , भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), औद्योगिक उत्पादन सूचकांक

मेन्स के लिये:

वृद्धि और विकास, कोर सेक्टर की वृद्धि और इसका व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

स्रोत: हिंदू

चर्चा में क्यों? 

फरवरी 2024 में भारत के कोर सेक्टर आउटपुट में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई और विकास दर तीन महीने के उच्चतम स्तर 6.7% पर पहुँच गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से कोयला, प्राकृतिक गैस और सीमेंट उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि से प्रेरित थी।

कोर सेक्टर क्या है?

  • परिचय:
    • भारत के मुख्य क्षेत्र में आठ कोर सेक्टर शामिल हैं: कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली।
      • कोर सेक्टर की विकास दर भारतीय अर्थव्यवस्था के समग्र स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है। मुख्य क्षेत्र में मज़बूत विकास दर अक्सर सकारात्मक आर्थिक दृष्टिकोण का संकेत देती है।
    • ICI राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, एनएसओ द्वारा आईआईपी जारी करने से पहले 'कोर' प्रकृति के उद्योगों के उत्पादन प्रदर्शन पर अग्रिम संकेत प्रदान करता है। 
    • आठ प्रमुख उद्योगों से सामान्य आर्थिक गतिविधियों और औद्योगिक गतिविधियों के प्रभावित होने की संभावना है। 
  • महत्त्व:
    • कोर सेक्टर के प्रदर्शन को देश के समग्र औद्योगिक और आर्थिक प्रदर्शन का एक प्रमुख संकेतक माना जाता है, जो अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को मापने तथा भविष्य के आर्थिक रुझानों के पूर्वानुमान हेतु बैरोमीटर के रूप में कार्य करता है। उदाहरणतः स्टील निर्माण, ऑटोमोबाइल एवं मशीनरी के लिये एक महत्त्वपूर्ण सामग्री है। बिजली कारखानों, घरों व व्यवसायों को बिजली देने के लिये आवश्यक है।
      • कोर सेक्टर के उद्योगों का अन्य क्षेत्रों के साथ महत्त्वपूर्ण अंतर्संबंध होता है। यह परस्पर निर्भरता एक गुणक प्रभाव पैदा करती है, जहाँ मुख्य क्षेत्र की वृद्धि या संकुचन में परिवर्तन पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
      • किसी देश के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये सेक्टर उद्योग आवश्यक हैं। सड़कों, पुलों और बिजली संयंत्रों के निर्माण हेतु स्टील, सीमेंट तथा बिजली का उत्पादन आवश्यक है।

कोर सेक्टर ग्रोथ क्या है?

  • कोर सेक्टर ग्रोथ से तात्पर्य किसी निश्चित अवधि में किसी अर्थव्यवस्था के प्रमुख उद्योगों से होने वाली वृद्धि दर अथवा आउटपुट/उत्पादन में वृद्धि से है जिसे प्रायः वार्षिक अथवा मासिक आधार पर मापा जाता है।
  • कोर उद्योग के समग्र सूचकांक (ICI) में उक्त संबंधित भार का उपयोग करके, इन व्यक्तिगत उद्योगों की विकास दर को मिलाकर कोर सेक्टर की वृद्धि की गणना की जाती है।
  • कोर सेक्टर की वृद्धि की गणना करने के लिये कोर इंडस्ट्रीज़ के समग्र सूचकांक (ICI) में प्रत्येक के विकास को ध्यान में रखते हुए इन अलग-अलग उद्योगों की विकास दर को संयोजित किया जाता है।
  • आठ प्रमुख उद्योगों का सूचकांक (ICI):
    • आठ प्रमुख उद्योगों का सूचकांक (Index of Eight Core Industries- ICI) प्रत्येक माह तैयार किया जाता है और आर्थिक सलाहकार (OEA), उद्योग संवर्धन तथा आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) एवं वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है।
    • ICI में विभिन्न घटक शामिल हैं जो सामूहिक रूप से भारत के औद्योगिक क्षेत्र के प्रदर्शन को दर्शाते हैं। इसमें निम्नलिखित घटक शामिल हैं:
      • कोयला: कोकिंग कोल के अतिरिक्त कोयला उत्पादन।
      • विद्युत: थर्मल, परमाणु, जल स्रोतों से विद्युत उत्पादन और भूटान से किया गया आयात।
      • कच्चा तेल: कच्चे तेल का कुल उत्पादन।
      • सीमेंट: बड़े संयंत्रों और लघु संयंत्रों दोनों में सीमेंट का कुल उत्पादन।
      • प्राकृतिक गैस: प्राकृतिक गैस का कुल उत्पादन।
      • इस्पात: केवल मिश्र धातु और गैर-मिश्र धातु इस्पात का उत्पादन।
      • रिफाइनरी उत्पाद: कुल रिफाइनरी उत्पादन।
      • उर्वरक: यूरिया, अमोनियम सल्फेट, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट, जटिल ग्रेड उर्वरक, एकल सुपरफॉस्फेट, आदि का उत्पादन।
    • आठ प्रमुख उद्योगों का वर्तमान योगदान इस प्रकार है: पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पाद (28.04%), विद्युत (19.85%), इस्पात (17.92%), कोयला (10.33%), कच्चा तेल (8.98%), प्राकृतिक गैस (6.88%), सीमेंट (5.37%), उर्वरक (2.63%)।
    • किसी संदर्भ माह के लिये ICI एक महीने के समय अंतराल के साथ अगले महीने के आखिरी दिन जारी किया जाता है, जो संदर्भ माह के लिये औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) जारी होने से लगभग बारह दिन पूर्व होता है।
    • ICI के आधार वर्ष का चुनाव IIP के लिये आधार वर्ष की पसंद के अनुसार होता है।
      • ICI की वर्तमान शृंखला में आधार वर्ष 2011-12 है।
    • ICI का व्यापक रूप से नीति निर्माताओं द्वारा उपयोग किया जाता है, जिसमें वित्त मंत्रालय, अन्य मंत्रालय और विभाग, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का वित्तपोषण करने वाले बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) तथा रेलवे बोर्ड शामिल हैं।

नोट:

  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) एक निश्चित अवधि में अर्थव्यवस्था के विभिन्न उद्योग समूहों में विकास दर को मापने के लिये एक प्रमुख संकेतक है।
    • यह एक समग्र सूचकांक है जो चयनित आधार अवधि की तुलना में औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में अल्पकालिक परिवर्तन दिखाता है।
    • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल वस्तुओं का भार 40 प्रतिशत से अधिक आठ कोर उद्योगों से आता है।
  • संदर्भ माह समाप्त होने के छह सप्ताह बाद केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा मासिक रूप से सूचकांक संकलित और प्रकाशित किया जाता है। यह सरकार के लिये नीति नियोजन और विश्लेषण हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • IIP का स्तर वर्तमान आधार वर्ष 2011-12 के साथ एक संदर्भ अवधि की तुलना में औद्योगिक उत्पादन की स्थिति को दर्शाने वाली एक अमूर्त संख्या है।

कोर सेक्टर में हालिया रुझान क्या हैं?

  • फरवरी 2024 में भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों की उत्पादन वृद्धि में 6.7% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
    • यह वृद्धि मुख्य रूप से कोयला, प्राकृतिक गैस एवं सीमेंट उत्पादन में दोहरे अंक की वृद्धि के कारण हुई।
  • समग्र वृद्धि के बावजूद, फरवरी 2024 में उर्वरकों के उत्पादन में 9.5% की गिरावट आई, जो मई 2021 के बाद से सर्वाधिक तीव्र गिरावट है।
  • वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये मुख्य क्षेत्र में संचयी वृद्धि 7.7% पर मज़बूती के साथ रही है, जो वर्ष 2022-2023 में दर्ज 6.8% की वृद्धि दर को पार कर गई है। यह औद्योगिक गतिविधि में समग्र लचीलेपन एवं सकारात्मक गति को दर्शाता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत् उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. आम तौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


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