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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इतालवी मरीन मामला: एक सबक

  • 08 Jul 2020
  • 12 min read

प्रीलिम्स के लिये:

एनरिका लेक्सी मामला, परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, UNCLOS के नियम तथा सामुद्रिक सीमा, UNCLOS-PCA संबंध, सामुद्रिक सीमा,  UNCLOS तथा देश का न्याधिकरण, UNCLOS का अनुच्छेद 100, SUA कन्वेंशन

मेन्स के लिये:

इतालवी मरीन मामला

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (Permanent Court of Arbitration-PCA) ने ‘एनरिका लेक्सी मामला’ (Enrica Lexie Case) मामले में अपना अंतिम  निर्णय देते हुए इटली के दो नौसेनिकों पर भारतीय मछुआरों की हत्या का आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर भारत के तर्क को खारिज़ कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) ने भारत को इटली के दोनों नौसेनिकों के विरुद्ध सभी प्रकार की आपराधिक कार्यवाहियों को रोकने का आदेश दिया है।
  • PCA ने, ‘एनरिका लेक्सी’ नामक तेल टैंकर जहाज़ पर तैनात इटली के दो नौसैनिकों पर दो भारतीय मछुआरों को गोली मार कर हत्या करने के आरोप पर सुनवाई पर करते हुए यह निर्णय दिया है। 

PCA का निर्णय:

  • PCA ने अपने निर्णय में कहा कि भारत के पास इटली के दोनों नौसेना अधिकारियों पर ‘एनरिका लेक्सी’ मामले में किसी भी प्रकार का आपराधिक मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे दोनों नौसैनिक एक राष्ट्र की ओर से कार्य कर रहे थे, न कि व्यक्तिगत तौर पर। 
  • PCA ने माना कि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही ने भारत के नेविगेशन की स्वतंत्रता से संबंधित अधिकार का उल्लंघन किया है, जिसके कारण भारत मुआवज़े का हकदार है, क्योंकि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही के कारण भारत को जान-माल का नुकसान हुआ है।

‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) तथा PCA के बीच संबंध:

  • UNCLOS-1982 एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो विश्व के समुद्रों और महासागरों के उपयोग के लिये एक नियामक ढाँचा प्रदान करती है, जिसे 16 नवंबर, 1994 से प्रभावी बनाया गया। 
  • यह समुद्री संसाधनों और समुद्री पर्यावरण के संरक्षण तथा समान उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करता है।
  • UNCLOS निम्नलिखित मामलों को भी संबोधित करता है:
    • देशों की संप्रभुता से जुड़े मामले; 
    • विभिन्न सामुद्रिक ज़ोनों में उपयोग के अधिकारों का निर्धारण; 
    • देशों के नौसैनिक अधिकार;
  • UNCLOS का भाग XV, संबंधित देशों के बीच विवादों के समाधान के लिये नियम निर्धारित करता है।
  • UNCLOS के अनुच्छेद 287 (1) के अनुसार, संबधित देश ऐसे विवादों को निपटाने के लिये निम्नलिखित में से एक या अधिक साधनों का चयन करने की घोषणा कर सकता है:
    • 'समुद्र के कानून के लिये अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण' (International Tribunal for the Law of the Sea- ITLOS)- हैम्बर्ग, जर्मनी; 
    • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (International Court of Justice-ICJ)- हेग; 
    • ‘तदर्थ मध्यस्थता’ (UNCLOS के अनुबंध VII के अनुसार);
      • मध्यस्थता विवाद निपटान प्रणाली का प्रयोग तब किया जाता है जब विवाद में शामिल देशों द्वारा उपलब्ध विवाद समाधान साधनों के संबंध में कोई वरीयता व्यक्त नहीं की गई है।
    • या विवादों की कुछ श्रेणियों के लिये एक 'विशेष मध्यस्थ न्यायाधिकरण' का गठन।

UNCLOS में ‘एनरिका लेक्सी’ विवाद:

  • वर्ष 2012 में ‘एनरिका लेक्सी’ घटना के बाद प्रारंभ में दोनों देशों द्वारा घरेलू स्तर पर मामले को निपटाने का प्रयास किया गया। 
  • इटली द्वारा वर्ष 2015 में ‘इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ द सी’ (International Tribunal for Law of the Sea-ITLOS) के समक्ष याचिका दायर की गई , ITLOS ने वर्ष 2015 में मामले में अपना निर्णय सुनाया।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ITLOS ने अपने निर्णय में भारत तथा इटली को ‘एनरिका लेक्सी’ मामले के संबंध में घरेलू स्तर पर चल रहे सभी मामलों को निलंबित करने का आदेश दिया था।
  • ITLOS के निर्णय के बाद इटली इस मामले को ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) के समक्ष लेकर गया।

UNCLOS का अनुच्छेद 100:

  • यह अनुच्छेद सामुद्रिक पायरेसी के संबंध में देशों पर सहयोग करने का दायित्त्व आरोपित करता है। 
  • PCA ने इटली के इस तर्क को खारिज कर दिया कि भारत ने इतालवी पोत को अपने क्षेत्राधिकार में ले जाकर नौसैनिकों को गिरफ्तार कर अनुच्छेद- 100 का उल्लंघन किया है। अर्थात मामले को एक पायरेसी की घटना के रूप में नहीं देखा गया है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत में लोगों द्वारा घटना को एक निर्दयी हत्याकांड के रूप में देखा गया था, जबकि इटली द्वारा इसे समुद्री डकैती की घटना के रूप में प्रचारित करने का प्रयास किया गया था।

UNCLOS के नियम तथा सामुद्रिक सीमा:

  • UNCLOS के तहत समुद्र के संसाधनों को निम्नलिखित क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है- 

आधार रेखा (Baseline)

  • यह तट के साथ-साथ तटवर्ती देश द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त निम्न-जल रेखा है।

आंतरिक जल (Internal Waters):

  • यह बेसलाइन की भूमि के किनारे पर होता है तथा इसमें खाड़ी और छोटे खंड शामिल हैं।

प्रादेशिक सागर (Territorial Sea):

  • यह बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी तक विस्तारित होता होता है।
  • प्रादेशिक समुद्र पर तटीय देशों की संप्रभुता और न्यायाधिकार का क्षेत्र है। 
  • ये अधिकार न केवल समुद्री सतह पर बल्कि समुद्री आधार, हवाई क्षेत्र तक विस्तृत होते हैं।
  • लेकिन तटीय देशों के अधिकार प्रादेशिक समुद्र से गुजरने वाले सामुद्रिक मार्गों के मामलों में सीमित होते हैं।

सन्निहित क्षेत्र (Contiguous Zone):

  • सन्निहित क्षेत्र का विस्तार बेसलाइन से 24 नॉटिकल मील तक विस्तृत होता है।
  • तटीय देशों को अपने क्षेत्र के भीतर राजकोषीय, आव्रजन, स्वच्छता और सीमा शुल्क कानूनों के उल्लंघन को रोकने और दंडित करने का अधिकार होता है।
  • इसमें संबंधित देश को अपनी सीमा में न्याधिकारिता का अधिकार होता है। लेकिन यह हवाई और अंतरिक्ष क्षेत्र पर लागू नहीं होता है।

अनन्य आर्थिक क्षेत्र ( Exclusive Economic Zone-EEZ): 

  • EEZ बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक फैला होता है। इसमें तटीय देशों को सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है।

Continental-Shelf

UNCLOS तथा देश का न्याधिकरण:

  • भारतीय नौसेना के अनुसार, जब यह घटना हुई तब इटली का ‘एनरिका लेक्सी’ तेल टैंकर भारत के तट से लगभग 20.5  नॉटिकल माइल (Nautical Miles) दूर था।
  • चूंकि यह घटना सन्निहित क्षेत्र ( बेसलाइन से 24 नॉटिकल मील) की सीमा में हुई थी, अत: स्पष्ट था कि घरेलू कानून के तहत अपराधियों की गिरफ्तारी की होती तथा मुकदमा चलाया जाता।

भारत के लिये सीख (Lesson for india):

  • मामले की सुनवाई में देरी के कारण प्रारंभ में इतावली नागरिक भारत से बाहर निकलने में सफल रहे । अत: ऐसे मामलों में मुकदमा सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में चलाना चाहिये और त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • 'राष्ट्रीय जाँच एजेंसी' (National Investigation Agency- NIA) ने 'सप्रेशन ऑफ अनलॉफुल एक्ट अगेंस्ट सेफ़्टी ऑफ़ मैरीटाइम नेविगेशन एण्ड  फिक्स्ड प्लेटफ़ॉर्म ऑन कॉन्टिनेंटल शेल्फ एक्ट’ (Suppression of Unlawful Acts against Safety of Maritime Navigation and Fixed Platforms on Continental Shelf Act)- 2002 को लागू किया। जिससे देशों के मध्य कूटनीतिक रोष पैदा हो गया क्योंकि इसमें मृत्युदंड का प्रावधान शामिल है। अत: इस प्रकार की त्वरित कार्यवाई से बचना चाहिये। 

SUA कन्वेंशन:

  • ‘कन्वेंशन फॉर द सप्रेशन ऑफ अनलॉफुल एक्ट ऑफ वॉइलेंस अगेंस्ट द सेफ़्टी ऑफ मैरीटाइम नेविगेशन’ (CONVENTION FOR THE SUPPRESSION OF  UNLAWFUL ACTS OF VIOLENCE AGAINST  THE SAFETY OF MARITIME NAVIGATION) को SUA कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसे 10 मार्च, 1988 को अपनाया गया तथा 1 मार्च 1992 से यह प्रभावी हुआ।
  • यह समुद्री नेविगेशन की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने तथा दंडित करने से संबंधित कन्वेंशन है।  

निर्णय के निहितार्थ:

  • PCA का निर्णय अंतिम है और भारत द्वारा इसे स्वीकार किया गया है। अत: अब दोनों नौसैनिकों को अब भारत में आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं करना होगा। अब मामले की सुनवाई इटली में घरेलू कानूनों के तहत की जाएगी।
  • विशेषज्ञ का मानना है कि PCA के हालिया निर्णय का प्रभाव आने वाले समय में ऐसे ही किसी अन्य मामले पर देखने को मिल सकता है और अपराधी इसी प्रकार PCA के हालिया निर्णय का सहारा लेकर आसानी से बच सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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