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G20 जोहान्सबर्ग समिट 2025

प्रिलिम्स के लिये: G20 समिट, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, पेरिस समझौता, विश्व बैंक, अफ्रीकी संघ, G20 कॉमन फ्रेमवर्क

मेन्स के लिये: वैश्विक आर्थिक शासन, वैश्विक दक्षिण के विकास और बहुपक्षवाद में G20 की भूमिका।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2025 का 20वाँ G20 समिट, जो जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित हुआ, अफ्रीकी महाद्वीप पर होने वाला पहला G20 समिट बना। ‘एकजुटता, समानता, स्थिरता’ की थीम के तहत इस समिट ने वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताओं को केंद्र में रखा और G20 जोहान्सबर्ग लीडर्स डिक्लरेशन को अपनाने में सफलता प्राप्त की।

G20 समिट 2025 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • G20 जोहान्सबर्ग लीडर्स डिक्लरेशन: सदस्य देशों ने 122-पैराग्राफ वाले घोषणा-पत्र पर सहमति बनाई, जिसमें जलवायु कार्रवाई, बहुपक्षीय सुधार और न्यायसंगत वैश्विक शासन से जुड़े संदर्भ शामिल हैं।
    • स्पिरिट ऑफ उबंटू और बहुपक्षवाद: घोषणा-पत्र में उबंटू की अफ्रीकी दर्शन-परंपरा (साझी वैश्विक ज़िम्मेदारी और परस्पर जुड़ाव की मान्यता) पर ज़ोर दिया गया है।
      • अभिकर्त्ताओं ने संघर्षों, असमानता और मानवीय पीड़ा से निपटने के लिये मज़बूत बहुपक्षीय सहयोग का आह्वान किया।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार: घोषणा-पत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में परिवर्तन का समर्थन किया गया है, ताकि वह समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित कर सके। इसमें अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और लैटिन अमेरिका जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों के लिये प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग की गई है।
    • आतंकवाद की निंदा: घोषणा-पत्र में सभी प्रकार और स्वरूपों में आतंकवाद की बिना किसी शर्त के निंदा की गई है, जो भारत के दीर्घकालिक रुख को प्रतिबिंबित करता है।
    • विस्तारित जलवायु कार्रवाई प्रतिबद्धताएँ: सदस्य देशों ने वैश्विक जलवायु वित्त को ‘बिलियन्स-टू-ट्रिलियन्स’ स्तर तक बढ़ाने और पेरिस समझौते के तहत अधिक न्यायसंगत संक्रमण को लागू करने पर सहमति जताई।
    • महिलाओं का सशक्तीकरण: घोषणा-पत्र में महिलाओं के सशक्तीकरण पर ज़ोर दिया गया। इसमें बाधाओं को हटाने, निर्णय-निर्माण में समान भागीदारी सुनिश्चित करने और महिलाओं को शांति की दूत के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता बताई गई।
  • ऋण संकट और वैश्विक वित्तीय सुधार: ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग प्रथाओं में सुधार लाने और अफ्रीकी देशों पर लगाए जाने वाले अनुचित ‘अफ्रीकन रिस्क प्रीमियम’ को कम करने के लिये कॉस्ट ऑफ कैपिटल कमीशन की शुरुआत की गई।
    • समिट में अफ्रीका के बढ़ते ऋण बोझ (जो अब 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है) को रेखांकित किया गया, जहाँ उसकी आधे से अधिक आबादी ऐसे देशों में रहती है जो सार्वजनिक सेवाओं की तुलना में ऋण के ब्याज पर अधिक व्यय कर रहे हैं।
  • मिशन 300: समिट में मिशन 300 को प्रमुखता से रेखांकित किया गया, जो विश्व बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक द्वारा संचालित एक पहल है। इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक उप-सहारा अफ्रीका के 300  मिलियन लोगों को विद्युत उपलब्ध कराना है।
  • क्रिटिकल मिनरल्स फ्रेमवर्क: G20 क्रिटिकल मिनरल्स फ्रेमवर्क को अपनाया गया, जिसका उद्देश्य सतत् मूल्य शृंखलाओं को सुरक्षित करना है। इसमें खनिज अन्वेषण में निवेश और विकासशील देशों में स्थानीय मूल्यवर्द्धन पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • युवा एवं लैंगिक लक्ष्य: नेल्सन मंडेला बे टारगेट को अपनाया गया, जिसके तहत वर्ष 2030 तक युवाओं में NEET (यानी वे जो न तो रोज़गार में हैं, न शिक्षा में, न प्रशिक्षण में) की दर को 5% कम करने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही वर्ष 2030 तक कार्यबल में 25% लैंगिक समानता हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई गई।
  • ट्रोइका: वर्तमान G20 ‘ट्रोइका’ में ब्राज़ील (पिछली अध्यक्षता), दक्षिण अफ्रीका (वर्तमान अध्यक्षता) और संयुक्त राज्य अमेरिका (आगामी अध्यक्षता) शामिल हैं।

स्पिरिट ऑफ उबंटू क्या है?

  • परिचय: स्पिरिट ऑफ उबंटू अफ्रीकी दर्शन का एक सिद्धांत है, जो साझा मानवता पर आधारित है और ‘मैं हूँ क्योंकि आप हैं’ जैसी विचारधारा को व्यक्त करता है। यह सामूहिक ज़िम्मेदारी, करुणा और पारस्परिक सहयोग पर बल देता है, यह याद दिलाते हुए कि व्यक्तिगत प्रगति समुदाय की समृद्धि पर निर्भर करती है।
    • नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद के बाद शांतिपूर्ण संक्रमण की ओर ले जाकर उबंटू का उदाहरण प्रस्तुत किया जहाँ उन्होंने प्रतिशोध की बजाय मेल-मिलाप को चुना और विभाजन की बजाय एकता पर ज़ोर दिया।
  • उबंटू और वैश्विक लक्ष्यों के लिये इसकी प्रासंगिकता:
    • सततता: ऐसे विकास का समर्थन करता है जो पर्यावरण की रक्षा करे और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करे।
    • सामान्य विकास: तकनीक, कौशल और अवसरों तक निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित करने की मांग करता है, विशेषकर वैश्विक दक्षिण के देशों के लिये।
    • वैश्विक सुरक्षा: मादक पदार्थों और आतंकवाद जैसी अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करता है।
    • ज्ञान संरक्षण: भावी पीढ़ियों के लिये पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने को बढ़ावा देता है।

G20 क्या है और वैश्विक विकास के लिये यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • परिचय: G20 की स्थापना एशियाई वित्तीय संकट (1997–98) के बाद हुई थी, ताकि वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिये एक ऐसा मंच बनाया जा सके जो वैश्विक वित्तीय स्थिरता को मज़बूत करे।
    • समय के साथ इसका दायरा समष्टि अर्थशास्त्र से बढ़कर व्यापार, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा संक्रमण और डिजिटल शासन तक विस्तृत हो गया।
  • लीडर्स स्तर तक उन्नयन (2008–09): इसे वर्ष 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान उच्चतम राजनीतिक स्तर पर समन्वय की आवश्यकता को मान्यता देते हुए लीडर्स स्तर पर उन्नत किया गया।
    • वर्ष 2009 के बाद से वार्षिक G20 लीडर्स समिट एक मानक बन गया है।
  • संरचना: G20 19 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के एक अनौपचारिक समूह के रूप में है, जिसमें यूरोपीय संघ (EU) और अफ्रीकी संघ (AU) भी शामिल हैं। भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है। अन्य देशों को आवश्यकता अनुसार ‘विशेष अतिथि’ के रूप में आमंत्रित किया जा सकता है।
    • साथ मिलकर, G20 सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 85%, विश्व व्यापार का 75% से अधिक और वैश्विक जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • उद्देश्य: यह अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये प्रमुख मंच के रूप में कार्य करता है और विकास, व्यापार, वित्तीय स्थिरता, सतत् विकास, जलवायु कार्रवाई, स्वास्थ्य, ऊर्जा, कृषि एवं भ्रष्टाचार विरोधी उपायों जैसे मुद्दों पर वैश्विक शासन को आकार देता है।
  • संरचना और अध्यक्षता: संयुक्त राष्ट्र के विपरीत, G20 का कोई मुख्यालय या स्थायी कर्मचारी नहीं है। अध्यक्षता प्रत्येक वर्ष सदस्य देशों में घूर्णन (रोटेशन) के आधार पर होती है।
    • ट्रोइका प्रणाली तीन देशों की व्यवस्था के माध्यम से निरंतरता सुनिश्चित करती है: पूर्व अध्यक्ष – वर्तमान अध्यक्ष – आगामी अध्यक्ष
    • दक्षिण अफ्रीका की वर्ष 2025 अध्यक्षता के लिये, इस ट्रोइका में ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

G20 का महत्त्व:

  • वैश्विक आर्थिक शासन को आकार देना: G20 कॉमन फ्रेमवर्क और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, AI और शासन के लिये डेटा पर घोषणा {G20 ट्रोइका (भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका) द्वारा एक संयुक्त विज्ञप्ति} जैसी पहलों के माध्यम से वित्तीय विनियमन, ऋण स्थिरता, वैश्विक कर सुधार, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और जलवायु वित्त पर मानदंड निर्धारित करता है।
  • सतत् विकास एजेंडा: जलवायु कार्रवाई, ऊर्जा परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा प्रतिबद्धताओं और भविष्य के लिये समझौते पर प्रगति का समन्वय करके सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिये एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करता है।
  • वैश्विक दक्षिण की आवाज को बढ़ाता है: भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक नियम-निर्माण में अधिक भूमिका दिलाने में मदद करता है, खासकर आपूर्ति शृंखलाओं, महत्त्वपूर्ण खनिजों, विकास वित्त और प्रौद्योगिकी तक पहुँच से जुड़े क्षेत्रों में।
  • विकास वित्तपोषण के लिये उत्प्रेरक: IMF–विश्व बैंक जैसी बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार, ऋण प्रवाह बढ़ाने और अफ्रीका को प्रतिनिधित्व देने के लिये IMF कार्यकारी बोर्ड में 25वीं सीट सृजित करने जैसे उपायों के ज़रिये अधिक समावेशी प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया जा रहा है।

G20 में भारत ग्लोबल डेवलपमेंट एजेंडा को आगे बढ़ा रहा है?

  • मादक पदार्थ-आतंकवाद का संबंध: भारत ने मादक पदार्थों की तस्करी (विशेषकर फेंटानाइल) को एक बड़ी वैश्विक सुरक्षा चुनौती और आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रमुख स्रोत बताया।
    • भारत ने वित्तीय ट्रैकिंग, सीमा समन्वय और वैश्विक प्रवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हुए मादक पदार्थ-आतंकवाद गठबंधन (ड्रग-टेरर नेक्सस) का मुकाबला करने के लिये G-20 पहल का प्रस्ताव रखा।
  • अफ्रीका-केंद्रित विकास विज़न: भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अफ्रीका को वैश्विक विकास ढाँचे के केंद्र में होना चाहिये।
    • भारत ने 10 वर्षों में अफ्रीका में 1 मिलियन प्रमाणित प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिये G20-अफ्रीका कौशल गुणक पहल का प्रस्ताव रखा।
  • स्वास्थ्य, ज्ञान और अंतरिक्ष सहयोग में नेतृत्व:
    • भारत ने प्रस्ताव रखा:
      • समन्वित वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिये जी20 ग्लोबल हेल्थकेयर रिस्पॉन्स टीम ।
      • स्वदेशी औषधीय ज्ञान को संरक्षित करने और साझा करने के लिये वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार ।
      • कृषि, मत्स्य पालन और आपदा प्रबंधन के लिये अंतरिक्ष-आधारित डेटा साझा करने हेतु ओपन सैटेलाइट डेटा पार्टनरशिप।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज एवं सतत् परिवर्तन: भारत ने पुनर्चक्रण, शहरी खनन और नवाचार के माध्यम से आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज परिपत्र पहल का प्रस्ताव रखा।
    • भारत ने लोकतांत्रिक, पारदर्शी और विविधतापूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं का आह्वान किया, ताकि कुछ देशों पर निर्भरता कम हो सके।
  • ज़िम्मेदार, समावेशी और सुरक्षित AI शासन: भारत ने मानवीय निगरानी, ​​सुरक्षा-द्वारा-डिज़ाइन, पारदर्शिता और डीपफेक, साइबर अपराध और आतंकवाद में AI के दुरुपयोग पर रोक लगाने पर केंद्रित AI पर एक वैश्विक समझौते का समर्थन किया।

एक न्यायसंगत, समतामूलक वैश्विक व्यवस्था के लिये समर्थन: भारत ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का पुरज़ोर समर्थन किया। बहुपक्षवाद और एक वैश्विक नियम-आधारित व्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

  • एक न्यायसंगत, समतामूलक वैश्विक व्यवस्था के लिये समर्थन: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन करते हुए अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने की मांग दोहराई। भारत ने बहुपक्षवाद और नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की भी पुष्टि की।

निष्कर्ष:

G20 समिट 2025 वैश्विक शासन के लिये एक निर्णायक क्षण साबित हुआ, जिसमें अफ्रीका और व्यापक ग्लोबल साउथ को बहुपक्षीय प्राथमिकताओं के केंद्र में स्थान दिया गया। जोहान्सबर्ग घोषणा ने एक अधिक समानता-आधारित, सुरक्षित और सतत् वैश्विक व्यवस्था की दिशा में आधार तैयार किया।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. G20 जोहान्सबर्ग लीडर्स डिक्लेरेशन वैश्विक दक्षिण के एजेंडे की ओर एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। विवेचन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. G20 जोहान्सबर्ग लीडर्स’ डेक्लरेशन क्या है?
यह G20 2025 में अपनाया गया 122 पैरा वाला सर्वसम्मति दस्तावेज़ है, जो एकजुटता, समानता और स्थिरता की थीम के तहत जलवायु कार्रवाई, बहुपक्षीय सुधार, अफ्रीका के विकास, ऋण स्थिरता और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण को प्राथमिकता देता है।

2. मिशन 300 क्या है और यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
मिशन 300 विश्व बैंक–अफ्रीकी विकास बैंक द्वारा संचालित पहल है, जिसका लक्ष्य 2030 तक उप-सहारा अफ्रीका के 300 मिलियन लोगों तक विद्युत पहुँच सुनिश्चित करना है।

3. डेक्लरेशन जलवायु वित्त को किस प्रकार संबोधित करती है?
जलवायु वित्त को ‘बिलियंस से ट्रिलियंस’ तक बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है, अनुकूलन (adaptation) और लॉस एंड डैमेज के क्रियान्वयन पर बल दिया गया है तथा अनुमान लगाया गया है कि विकासशील देशों को वर्ष 2030 से पहले अपने NDC लक्ष्यों को पूरा करने के लिये लगभग 5.8–5.9 ट्रिलियन USD की आवश्यकता होगी।

4. अफ्रीका के लिये वैश्विक वित्त में सुधार हेतु G20 ने क्या प्रस्ताव दिये?
समिट ने एक कॉस्ट ऑफ कैपिटल कमीशन की शुरुआत की, उप-सहारा अफ्रीका के लिये IMF में 25वीं बोर्ड कुर्सी बनाई, जिससे ‘अफ्रीकन रिस्क प्रीमियम’ को कम किया जा सके और क्षेत्र की प्रतिनिधित्व क्षमता तथा रियायती वित्त तक पहुँच मज़बूत हो सके।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "G20 कॉमन फ्रेमवर्क" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. यह G20 और उसके साथ पेरिस क्लब द्वारा समर्थित पहल है।  
  2. यह अधारणीय ऋण वाले निम्न आय देशों को सहायता देने की पहल है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं?

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की

(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड

(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम

(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


आंतरिक सुरक्षा

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट का खतरा

प्रीलिम्स के लिए: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA), राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट

मेन्स के लिये: भारत के काउंटर-टेररिज़्म प्रयासों में बढ़ती डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट की चुनौतियाँ, संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

दिल्ली के लाल किले के पास हुई कार विस्फोट की घटना ने आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट के बढ़ते खतरे को उजागर किया है। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की जाँच से पता चलता है कि आतंकी मॉड्यूल अब हमलों की योजना बनाने के लिये एन्क्रिप्टेड ऐप्स, एनॉनिमस सर्वर और जासूस-शैली की डिजिटल तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं।

  • यह एन्क्रिप्टेड और विकेंद्रीकृत संचार नेटवर्क का पता लगाने के लिये मज़बूत साइबर फॉरेंसिक्स और विशेष क्षमताओं की आवश्यकता को उजागर करता है।

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट क्या है?

  • परिचय: आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ़्ट आधुनिक ऑनलाइन तकनीकों का वह समूह है, जिसका उपयोग आतंकवादी समूह अपनी पहचान छुपाने, सुरक्षित संचार करने, नए सदस्यों को कट्टरपंथी बनाने, धन का लेन-देन करने तथा हमलों की योजना बनाने के लिये करते हैं। 
    • यह एक इंटेलिजेंस ट्रेडक्राफ्ट है, जो एन्क्रिप्टेड, एनॉनिमस और विकेंद्रीकृत डिजिटल सिस्टम के माध्यम से कार्य करता है।
  • डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट के मुख्य तत्त्व:
    • एन्क्रिप्टेड संचार: आतंकवादी समूह बिना किसी अवरोध के हमलों की योजना बनाने के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड ऐप्स (जैसे, थ्रीमा (फोन नंबर या ईमेल की आवश्यकता नहीं है), टेलीग्राम, सिग्नल) का उपयोग करते हैं।
    • गुमनामी उपकरण: वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क, टोर ब्राउज़र, बर्नर डिवाइस और प्रॉक्सी सर्वर जैसी तकनीकें स्थानों और पहचानों को छिपाने में मदद करती हैं।
    • विकेंद्रीकृत प्लेटफॉर्म: डार्क वेब फोरम, अनाम होस्टिंग सेवाएँ, अस्थायी ईमेल आईडी और स्व-विनाशकारी संदेशों का उपयोग।
    • डिजिटल निगरानी से बचना: सामरिक तरीके जैसे मेटाडेटा ट्रेल्स से बचना, ऑफलाइन संचार (ब्लूटूथ मेष, वाई-फाई डेड ड्रॉप्स) और एंटी-ट्रैकिंग टूल का उपयोग करना।
      • साझा ईमेल का उपयोग: आतंकियों ने एक साझा ईमेल अकाउंट का इस्तेमाल किया, जिसमें ड्राफ्ट में बिना भेजे हुए संदेश छोड़कर आपस में संवाद किया जाता था, ताकि कोई ‘सेंट मेल’ रिकॉर्ड न बने। यह एक क्लासिक डेड-ड्रॉप तकनीक है, जिसमें डिजिटल फुटप्रिंट न्यूनतम रह जाता है।
    • ऑनलाइन कट्टरपंथ और भर्ती: सोशल मीडिया, गेमिंग प्लेटफॉर्म, एन्क्रिप्टेड चैनल और AI-जनित सामग्री का उपयोग करके व्यक्तियों को निशाना बनाना और विचारधारा से प्रभावित करना।
    • वित्तीय लेन-देन को छुपाना: क्रिप्टोकरेंसी, प्रीपेड वॉलेट, फर्जी चैरिटी के माध्यम से क्राउडफंडिंग और डिजिटल भुगतान से जुड़े नेटवर्क का उपयोग।
    • ऑपरेशनल प्लानिंग: टारगेट की पहचान करने के लिये ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT), सैटेलाइट मैप, AI टूल्स और साइबर रेकी का उपयोग।

भारत के आतंकवाद-रोधी प्रयासों के लिये बढ़ते डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पुराना कानूनी ढाँचा: मौजूदा आतंकवाद-रोधी कानून, आतंकवादी मॉड्यूलों द्वारा उपयोग किये जाने वाले विकेंद्रीकृत, एन्क्रिप्टेड और स्व-होस्टेड प्लेटफॉर्मों के अनुरूप नहीं हैं।
    • भारत में केवल ड्राफ्ट ईमेल और अल्पकालिक संदेश जैसे डिजिटल व्यापार विधियों का पता लगाने, जाँच करने और उन पर मुकदमा चलाने के लिये विशिष्ट कानूनी प्रावधानों का अभाव है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद, थ्रीमा तक VPN के माध्यम से पहुँच बनाई गई, जिससे पता चलता है कि अकेले प्रतिबंध अपर्याप्त हैं।
  • सीमित उन्नत साइबर-फॉरेंसिक क्षमताएँ: कई एजेंसियों के पास मेमोरी डंप, सर्वर फॉरेंसिक और एन्क्रिप्टेड-नेटवर्क मैपिंग के लिये विशेष उपकरणों का अभाव है, जबकि निजी स्व-होस्टेड एन्क्रिप्टेड सर्वर वारंट के साथ भी वैध पहुँच को अवरुद्ध करते हैं। 
    • VPN, प्रॉक्सी और अनामीकरण उपकरण उपयोगकर्त्ता के स्थान को छिपा देते हैं, जिससे डिजिटल फुटप्रिंट खंडित हो जाते हैं और पहचान स्थापित करना तथा फॉरेंसिक जाँच करना कठिन हो जाता है।
    • प्रशिक्षित साइबर खुफिया कर्मियों की लगातार कमी के कारण तेज़ी से उन्नत होती आतंकवादी तकनीकों के मुकाबले हमारी क्षमता का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है।
  • पेशेवर और शैक्षणिक क्षेत्रों में कट्टरपंथ: डॉक्टरों और शिक्षित व्यक्तियों की फसंलिप्तता दर्शाती है कि कट्टरपंथ उच्च-कौशल, कम-संदेह वाले वातावरण की ओर बढ़ रहा है। सुरक्षा संस्थानों में पेशेवरों के वैचारिक बदलावों का पता लगाने के लिये प्रभावी तंत्र का अभाव है।
  • कमज़ोर अंतर्राष्ट्रीय समन्वय: मुख्य साक्ष्य प्राय: विदेशी सर्वरों या भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर के एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म पर स्थित होते हैं, जिससे सीधे पहुँच कठिन हो जाती है।
    • सीमापार डेटा साझा करने वाले सीमित समझौते वास्तविक समय में खुफिया जानकारी के प्रवाह को और धीमा कर देते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय आतंक नेटवर्क को ट्रैक करने तथा विफल करने में विलंब उत्पन्न होता है।

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने के लिये भारत को कौन-से कदम उठाने चाहिये?

  • उन्नत साइबर फॉरेंसिक क्षमताओं को मज़बूत करना: NIA, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) तथा राज्य आतंकवाद विरोधी दस्तों (ATS) के भीतर विशेष इकाइयाँ स्थापित करें, जो मेमोरी फॉरेंसिक्स, एन्क्रिप्टेड नेटवर्क मैपिंग और सर्वर विश्लेषण पर केंद्रित हों।
  • कानूनी और विनियामक ढाँचे का आधुनिकीकरण: विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 को अद्यतन करें ताकि इसमें डिजिटल व्यापार कौशल विधियों को स्पष्ट रूप से शामिल किया जा सके, जैसे कि केवल ड्राफ्ट ईमेल, सेल्फ-होस्टेड एन्क्रिप्टेड सर्वर और गुमनाम पहचान।
    • संचार ऐप्स द्वारा उपयोग किये जाने वाले निजी सर्वरों के लिये न्यूनतम अनुपालन मानकों को अनिवार्य करने वाला नीतिगत ढाँचा विकसित किया जाए। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की भूमिका को मज़बूत करें ताकि वह आतंकवादी गतिविधियों के लिये उपयोग की जाने वाली अनामिकरण सेवाओं और VPN गेटवे की निगरानी कर सके।
  • संस्थागत क्षमता और प्रतिभा शृंखला का निर्माण: क्रिप्टोग्राफी, डिजिटल फॉरेंसिक्स, मैलवेयर विश्लेषण और ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) में विशेषीकृत पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये IITs, IIITs, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
    • कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना और इसे आतंकवाद विरोधी खुफिया के लिये अनुकूलित करना।
  • तकनीकी कूटनीति को सुदृढ़ करना: एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म होस्ट करने वाले देशों (जैसे: थ्रीमा के लिये स्विट्ज़रलैंड) के साथ पारस्परिक कानूनी सहायता संधियाँ (MLATs) और डेटा-साझाकरण समझौते किये जाएँ।
  • उच्च-कौशल वाले वातावरण में उग्रवाद-निरोध: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) को चरमपंथी व्यवहार की प्रारंभिक पहचान हेतु परामर्शात्मक रूपरेखाएँ जारी करने के लिये सशक्त बनाया जाए।
    • राष्ट्रीय एकता परिषद और ज़िला-स्तरीय सुरक्षा समितियों के तहत समुदाय-आधारित निगरानी को मज़बूत किया जाए।

निष्कर्ष

भारत को पारंपरिक निगरानी से आगे बढ़कर एक बहु-स्तरीय डिजिटल आतंकवाद विरोधी प्रणाली का निर्माण करना चाहिये। मज़बूत कानून, उन्नत संस्थान, उन्नत साइबर फॉरेंसिक्स और गहरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है ताकि एन्क्रिप्टेड, विकेंद्रीकृत और तेज़ी से विकसित हो रहे आतंकवादी नेटवर्क का मुकाबला किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  एन्क्रिप्टेड और विकेंद्रीकृत संचार प्लेटफार्म के बढ़ते उपयोग ने भारत में आतंकवाद के खतरे के परिदृश्य को कैसे बदल दिया है, इसका विश्लेषण कीजिये। प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आवश्यक सुधार सुझाएँ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. आतंकवाद में ‘डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट’ क्या है?
‘डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट’ से तात्पर्य एन्क्रिप्टेड ऐप्स, निजी/स्व-होस्टेड सर्वर, VPN तथा जासूसी-शैली की तकनीकों (जैसे केवल ड्राफ्ट में सेव किये गए ईमेल) का उपयोग करके आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाना, समन्वय करना तथा उन्हें छिपाने से है।

2. भारत में एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म को वर्तमान में कौन-से कानून विनियमित करते हैं?
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (विशेषकर धारा 69A के अंतर्गत नियम) ऑनलाइन सामग्री और ब्लॉकिंग को नियंत्रित करते हैं; जबकि UAPA आतंकवादी कृत्यों से संबंधित है लेकिन दोनों को विकेंद्रीकृत/एन्क्रिप्टेड ट्रेडक्राफ्ट को स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिये अद्यतन करने की आवश्यकता है।

3. निजी/सेल्फ-होस्टेड सर्वर जाँच एजेंसियों के लिये चुनौती क्यों हैं?
निजी सर्वरों को इस प्रकार कॉन्फिगर किया जा सकता है कि उनमें कोई मेटाडाटा न रहे और वे सामान्य प्रदाता लॉगिंग व्यवस्था से बाहर कार्य करें। इससे वैधानिक अनुमति के बावजूद डेटा तक पहुँच कठिन हो जाती है और फॉरेंसिक पुनर्निर्माण भी लगभग असंभव हो जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. 'हैंड-इन-हैंड 2007' संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सेना के अधिकारियों और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (2008)

(a) चीन
(b) जापान
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (a) 


मेन्स

प्रश्न. भारत के समक्ष आने वाली आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियुक्त केंद्रीय खुफिया और जाँच एजेंसियों की भूमिका बताइये। (2023)

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. जम्मू और कश्मीर में 'जमात-ए-इस्लामी' पर पाबंदी लगाने से आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं (ओ० जी० डब्ल्यू०) की भूमिका ध्यान का केंद्र बन गई है। उपप्लव (बगावत) प्रभावित क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका का परीक्षण कीजिये। भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के उपायों की चर्चा कीजिये। (2019) 


सामाजिक न्याय

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का उन्मूलन

प्रिलिम्स के लिये: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस, CEDAW, विश्व स्वास्थ्य संगठन, मिशन शक्ति, स्वाधार गृह योजना

मेन्स के लिये: लैंगिक-आधारित हिंसा के प्रति कानूनी सुधार और आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रतिक्रियाएँ, महिलाओं से संबंधित मुद्दे

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस, जिसे 25 नवंबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा निर्धारित एक दिवस है जिसका उद्देश्य लैंगिक आधारित हिंसा पर वैश्विक जागरूकता बढ़ाना और महिलाओं एवं लड़कियों की सुरक्षा के लिये मज़बूत कार्रवाई की अपील करना है। वर्ष 2025 की थीम है - “सभी महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध डिजिटल हिंसा को समाप्त करने के लिये एकजुट होना।”

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस

  • पृष्ठभूमि: हालाँकि संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW), 1979 को अपनाया था (जिसे भारत ने भी अनुमोदित किया है), फिर भी पूरे विश्व में लैंगिक आधारित हिंसा व्यापक रूप से बनी हुई है।
    • वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 48/104 को अपनाया, जिसके माध्यम से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के उन्मूलन पर घोषणा की गई और वैश्विक कार्रवाई के लिये  आधार तैयार किया गया।
    • वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने औपचारिक रूप से 25 नवंबर को महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया और सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा नागरिक समाज से प्रतिवर्ष जागरूकता अभियान आयोजित करने का आग्रह किया।
  • दिवस का महत्त्व: यह दिवस इसलिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा वैश्विक स्तर पर व्यापक है, पूरे विश्व में 30% महिलाएँ शारीरिक और/या यौन हिंसा का सामना करती हैं तथा कई देशों में घरेलू हिंसा अब भी अपराध नहीं मानी जाती।
    • महिलाओं के विरुद्ध हिंसा मानव इतिहास की सबसे पुरानी और व्यापक अन्यायपूर्ण प्रथाओं में से एक है, फिर भी यह उन मुद्दों में से है जिन पर सबसे कम कार्रवाई होती है। विश्व के 30 से अधिक देशों में बलात्कारी पीड़िता से विवाह करके दंड से बचने की संभावना है, जबकि 40 से अधिक देशों में घरेलू हिंसा के विरुद्ध कोई कानून नहीं है।
    • यह दिवस मज़बूत सुरक्षा उपायों, बेहतर रोकथाम रणनीतियों और पीड़ित-केंद्रित सहयोग की आवश्यकता पर तत्काल वैश्विक ध्यान आकर्षित करता है।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक क्या हैं?

  • व्यक्ति-स्तरीय कारक: कम शिक्षा, बचपन में गलत व्यवहार, हानिकारक शराब का सेवन और असामाजिक व्यवहार से हिंसा करने तथा उसका सामना करने की संभावना बढ़ जाती है।  
  • संबंध-स्तरीय कारक: विवादपूर्ण संबंध, अपर्याप्त संवाद, पूर्व में हिंसा का अनुभव और पुरुषों का नियंत्रक व्यवहार घरेलू साथी द्वारा हिंसा के जोखिम को बढ़ा देते हैं।
    • घरों के भीतर शक्ति असंतुलन प्राय: बलपूर्वक नियंत्रण और शोषण को सामान्य मान लेता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत में 15-49 आयु वर्ग की हर पाँचवीं महिला घरेलू साथी द्वारा हिंसा का शिकार हुईं, जबकि लगभग 30% महिलाएँ अपने जीवनकाल में इस प्रकार की हिंसा का सामना कर चुकी हैं।
  • समुदाय-स्तरीय कारक: जिन समुदायों में स्थायी लैंगिक भेदभाव, कमज़ोर कानून प्रवर्तन, महिलाओं के लिये सीमित रोज़गार और समर्थन सेवाओं तक कमज़ोर पहुँच होती है, वहाँ हिंसा का स्तर अधिक पाया जाता है।
  • सामाजिक-स्तरीय कारक: पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएँ, भेदभावपूर्ण कानून और सम्मान, पवित्रता तथा पुरुष अधिकारों से जुड़ी सांस्कृतिक मान्यताएँ हिंसा को बढ़ावा देती हैं।
    • कानूनों का कमज़ोर दंड और अपर्याप्त कार्यान्वयन निवारक प्रभाव को कम कर देता है।
  • डिजिटल मीडिया और प्रौद्योगिकी-संचालित कारक: संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर आधारित गुमनामी और कमज़ोर जवाबदेही ने ऑनलाइन दुरुपयोग को और तीव्र कर दिया है।
    • वैश्विक स्तर पर, 1.8 बिलियन महिलाएँ और लड़कियाँ अभी भी डिजिटल उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी सुरक्षा से वंचित हैं।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ने से साइबरस्टॉकिंग, डीपफेक, डॉक्सिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न जैसे नए प्रकार के दुरुपयोग सामने आए हैं।
    • डीपफेक का दुरुपयोग बढ़ गया है, जिसमें ऑनलाइन डीपफेक का 95% गैर-सहमति वाले अश्लील (पोर्नोग्राफिक) सामग्री है और उन पर लक्षित 99% महिलाएँ हैं। 
    • महिला-विरोधी भावनाओं का एल्गोरिदम-आधारित प्रचार, अपराधियों की गुमनामी और साइबर कानून प्रवर्तन में अंतर ने प्रौद्योगिकी-संचालित लैंगिक आधारित हिंसा को एक बढ़ते हुए खतरे के रूप में प्रस्तुत किया है।

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भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिये क्या उपाय हैं?

  • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): वर्ष 1992 में स्थापित, NCW भारत की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था है जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करती है।
    • यह कानूनी सुरक्षा की समीक्षा करता है, सुधार की सिफारिशें देता है और शिकायतों को ऑफलाइन तथा ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से सॅंभालता है। अधिकांश राज्यों ने भी समान ज़िम्मेदारियों के साथ राज्य महिला आयोग (SCWs) का गठन किया है।
    • NCW एक 24×7 घरेलू हिंसा हेल्पलाइन भी संचालित करता है, जो महिलाओं को पुलिस, अस्पताल, कानूनी सहायता और काउंसलर से जोड़ती है। यह सेवा डिजिटल इंडिया के तहत इंटरैक्टिव वॉइस रिस्पॉन्स (IVR)-आधारित सिस्टम के माध्यम से उपलब्ध है।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023: इसने भारतीय दंड संहिता (IPC) को प्रतिस्थापित किया और यौन अपराधों के लिये कड़ी सजा लागू की, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार के लिये आजीवन कारावास शामिल है।
    • BNS, 2023 यौन अपराधों की परिभाषाओं का विस्तार करता है, पीड़िता के बयानों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य करता है तथा महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को मुकदमेबाजी में प्राथमिकता देता है।
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA): इस अधिनियम में ‘पीड़ित व्यक्ति’ को किसी भी महिला के रूप में परिभाषित किया गया है, जो घरेलू संबंध में अपने शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचने का सामना करती है।
    • PWDVA के तहत, घरेलू हिंसा में शारीरिक, यौन, भावनात्मक और आर्थिक दुरुपयोग शामिल हैं, साथ ही दहेज संबंधित उत्पीड़न भी शामिल है। यह अधिनियम किसी भी ऐसे व्यवहार को शामिल करता है जो साझा घरेलू वातावरण में महिला की सुरक्षा या भलाई के लिये खतरा उत्पन्न करता हो।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH): यह अधिनियम सभी महिलाओं को हर कार्यस्थल पर सुरक्षा प्रदान करता है और नियोक्ताओं को आंतरिक शिकायत समिति बनाने के लिये बाध्य करता है, जबकि छोटे प्रतिष्ठानों के लिये सरकार स्थानीय समिति गठित करती है।
    • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) इसके क्रियान्वयन की निगरानी करता है और SHe-Box पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन शिकायतों को प्राप्त करता है, जिन्हें 90 दिनों के भीतर निवारित किया जाना आवश्यक है।

महिला सुरक्षा हेतु प्रमुख संस्थागत सहायता प्रणालियाँ

योजना / संस्था

                                      कार्य

मिशन शक्ति 

"महिला-नेतृत्व विकास" की दृष्टि के साथ महिलाओं के जीवनचक्र में सुरक्षा और सशक्तीकरण हेतु एक समग्र योजना।

स्वाधार गृह योजना

कठिन परिस्थितियों में महिलाओं को आश्रय, भोजन, परामर्श, विधिक सहायता और पुनर्वास प्रदान करती है।

वन स्टॉप सेंटर

हिंसा का सामना कर रही महिलाओं के लिये समेकित सहायता—पुलिस सुविधा, चिकित्सकीय सहायता, विधिक सहायता, परामर्श और अस्थायी आश्रय—प्रदान करते हैं।

स्त्री मनोरक्षा

पीड़िताओं के लिये मानसिक स्वास्थ्य और मनो-सामाजिक समर्थन पर OSC कर्मियों को प्रशिक्षित करती है।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSC)

बलात्कार और POCSO मामलों की तीव्र सुनवाई सुनिश्चित करता है; निर्भया फंड के तहत समर्पित न्यायालयों को वित्तीय सहायता मिलती है।

महिला हेल्प डेस्क (WHD)

महिलाओं के लिये संवेदनशील रिपोर्टिंग, FIR में सहायता और परामर्श हेतु पुलिस स्टेशनों में विशेष डेस्क।

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महिलाओं के खिलाफ हिंसा को किस प्रकार रोका जा सकता है?

WHO और UN Women का “RESPECT” फ्रेमवर्क देशों को SDG 5.2 की दिशा में तेज़ी से प्रगति करने में मदद करने के लिये सात मुख्य रणनीतियाँ पेश करता है, जिसका लक्ष्य महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना है।

  • R - Relationship Skills Strengthened (संबंध कौशल सुदृढ़ करना): व्यक्तियों, दंपतियों या समुदायों को लक्षित कार्यक्रमों के माध्यम से संघर्ष प्रबंधन, संचार और निर्णय लेने के कौशल को बढ़ाना। यह स्वस्थ, गैर-हिंसात्मक संबंधों को बढ़ावा देता है।
  • E - Empowerment of Women (महिलाओं का सशक्तीकरण): महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना, जैसे संपत्ति का स्वामित्व, माइक्रोफाइनेंस प्रोग्राम, लैंगिक प्रशिक्षण और मेंटरिंग। 
    • सशक्त महिलाएँ हिंसा का सामना करने और शिकायत दर्ज कराने में अधिक सक्षम होती हैं।
  • S - Services Ensured (सेवाओं की सुनिश्चितता): पुलिस, कानूनी मदद, स्वास्थ्य सुविधाएँ, वन-स्टॉप केंद्र और सामाजिक सहायता जैसी आवश्यक सेवाओं तक पीड़ितों की आसान पहुँच सुनिश्चित करना, जिससे वे पुनर्वास और न्याय पा सकें।
  • P - Poverty Reduced (गरीबी में कमी): हिंसा में योगदान देने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित करना, विशेषकर गरीबी, जो रिश्तों में तनाव और निर्भरता बढ़ाती है। 
    • ये उपाय वित्तीय स्थिरता प्रदान करने और आर्थिक तनाव से उत्पन्न हिंसा को कम करने का प्रयास करते हैं।
  • E - Environments Made Safe (परिसरों को सुरक्षित बनाना): महिलाओं के लिये स्कूल, कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थान और घरों में सुरक्षित वातावरण बनाना। 
    • यह उपाय हिंसा के जोखिम को कम करने और महिलाओं की दैनिक जीवन में शारीरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखते हैं।
  • C - Child and Adolescent Abuse Prevented (बाल और किशोरों के खिलाफ दुर्व्यवहार रोका जाना): बाल दुर्व्यवहार को रोकने, सकारात्मक पालन-पोषण को बढ़ावा देने और पारिवारिक संबंधों को मज़बूत करने वाले कार्यक्रम।  यह हस्तक्षेप लड़कों और लड़कियों दोनों को लक्षित करता है ताकि हिंसा का जोखिम कम हो सके।
  • T - Transformed Attitudes, Beliefs, and Norms (रूढ़िवादी दृष्टिकोण, विश्वास और मान्यताओं में बदलाव): हानिकारक लैंगिक मानदंडों, दृष्टिकोणों और विश्वासों को बदलना जो हिंसा को स्वीकार करते हैं तथा पुरुष प्रभुत्व को बढ़ावा देते हैं। इसके लिये ऐसे अभियानों और शिक्षा पहलों की आवश्यकता होती है जो रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती दें, लैंगिक समानता को बढ़ावा दें तथा हिंसा के पीड़ितों के प्रति सामाजिक असुरक्षा को कम करें।

Protection_of_women

निष्कर्ष:

कोई भी समाज तब तक न्यायसंगत नहीं हो सकता जब उसकी आधी आबादी डर में जीवनयापन कर रही हो। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को समाप्त करना केवल नीति का उद्देश्य नहीं, बल्कि गरिमा, समानता और मौलिक मानवाधिकार का प्रश्न है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: तकनीक ने लैंगिक आधारित उत्पीड़न की पहुँच और प्रभाव दोनों को बढ़ा दिया है। इस पर चर्चा कीजिये और सुझाव दीजिये कि भारत को किन नियामक और नीतिगत उपायों को अपनाना चाहिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. महिलाओं के प्रति हिंसा उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस क्या है?
यह 25 नवंबर को मनाया जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित दिन है, जिसका उद्देश्य लैंगिक आधारित हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाना और कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है।

2. भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने कौन-सा बड़ा बदलाव पेश किया?
इसने यौन अपराधों की परिभाषा का विस्तार किया, पीड़िता के बयान का ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य किया तथा नाबालिगों के साथ बलात्कार के लिये आजीवन कारावास समेत कड़ी सजा का प्रावधान किया।

3. भारत महिलाओं की सुरक्षा सुधारने के लिये तकनीक का उपयोग करता है?
भारत SHe-Box (कार्यस्थल शिकायतें), ITSSO (इन्वेस्टीगेशन ट्रैकिंग), NDSO (यौन अपराधियों का रजिस्ट्री) और राष्ट्रीय हेल्पलाइन (181) जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है ताकि रिपोर्टिंग, ट्रैकिंग और विभिन्न एजेंसियों की प्रतिक्रिया तेज़ हो सके।

4. RESPECT फ्रेमवर्क क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
RESPECT (Relationship skills; Empowerment; Services; Poverty reduction; Environments safe; Child/adolescent protection; Transform norms-रिलेशनशिप स्किल्स, एम्पावरमेंट, सर्विसेज़, पावर्टी रिडक्शन, एनवायरनमेंट सेफ, चाइल्ड/किशोरों की सुरक्षा, ट्रांसफॉर्म नॉर्म्स) UN Women की सात-बिंदु रणनीति है, जिसका उद्देश्य हिंसा को रोकना तथा SDG 5.2 पर प्रगति को तेज़ करना है।

5. RESPECT फ्रेमवर्क क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
रिस्पेक्ट (रिलेशनशिप स्किल्स; एम्पावरमेंट, सर्विसेज़, गरीबी कम करना; सुरक्षित माहौल; बच्चों/किशोरों की सुरक्षा; नॉर्म्स बदलना) हिंसा को रोकने और SDG 5.2 पर प्रोग्रेस को तेज़ करने के लिए UN विमेंस की सात-पॉइंट स्ट्रैटेजी है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

मेन्स:

प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014)


मुख्य परीक्षा

जलवायु परिवर्तन से भारत के चाय उद्योग को खतरा

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

असम के चाय उगाने वाले क्षेत्रों में अक्तूबर के बाद भी लंबे समय तक गर्मी, देर से बारिश और लगातार नमी बनी हुई है, जिसने असम में 12 लाख से अधिक श्रमिकों की आजीविका को खतरे में डाल दिया है और भारत की चाय अर्थव्यवस्था का भविष्य खतरे में पड़ रहा है।

भारत के चाय उद्योग को जलवायु परिवर्तन किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?

  • बढ़ता तापमान और अत्यधिक गर्मी: यह सीधे तौर पर चाय के पौधों पर दबाव डालता है, जिससे पत्तियाँ काली पड़ जाती हैं, मुरझा जाती हैं तथा पौधों का झड़ना अनियमित हो जाता है। अत्यधिक गर्मी चाय के पौधों के पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने की क्षमता को बाधित करती है, जिससे झाड़ियाँ कमज़ोर हो जाती हैं।
  • अनियमित वर्षा: शुष्क मौसम और सर्दियों में बारिश की कमी प्रत्यक्ष तौर पर मिट्टी की नमी को कम कर रही है जिससे चाय की खेती का मूल आधार कमज़ोर हो रहा है। इसके विपरीत, अत्यधिक वर्षा मिट्टी कटाव और जलभराव का कारण बनती है, जिससे पानी प्रभावी रूप से अवशोषित नहीं हो पाता।
  • बढ़ते क्षेत्रों की परिवर्तित उपयुक्तता: बढ़ती गर्मी और अनियमित वर्षा का संचयी प्रभाव एक मौलिक भौगोलिक बदलाव है। 
    • बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा का समग्र प्रभाव भौगोलिक परिवर्तन को जन्म देता है। असम के प्रमुख क्षेत्रों, जैसे साउथ बैंक और अपर असम की उपयुक्तता कम हो सकती है, जिससे चाय की खेती ऊँचाई वाले क्षेत्रों जैसे कार्बी आंगलोंग और डिमा हासाओ की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
  • आर्थिक विरोधाभास में वृद्धि: चाय की कीमतें 30 वर्षों में केवल 4.8% प्रतिवर्ष बढ़ी हैं, जो मुद्रास्फीति  गेहूॅं और चावल (10%) जैसी प्रमुख खाद्य वस्तुओं से काफी कम है - जबकि उत्पादन लागत बढ़ती जा रही है। 
    • चाय की कीमतों में पिछले 30 वर्षों में केवल 4.8% वार्षिक वृद्धि हुई है, जो मुद्रास्फीति  गेहूँ व चावल जैसी अन्य आवश्यक वस्तुओं (10%) से काफी कम है, जबकि उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है। 
    • यह कठिन परिस्थिति किसानों को बाज़ार से लाभ कमाने या जलवायु-प्रतिरोधी उपायों में निवेश करने तथा पुराने पौधों को पुनः रोपण करने में असमर्थ बना देती है।
  • पर्याप्त जलवायु संरक्षण नीतियों का अभाव: अन्य प्रमुख फसल किसानों के विपरीत, चाय उत्पादकों को सूखे या गर्म हवाओं के लिये न्यूनतम सरकारी सहायता मिलती है, जिससे उद्योग को तेज़ी से गंभीर जलवायु परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है।

भारत के चाय उद्योग के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • चाय: चाय एक व्यापक रूप से सेवन किया जाने वाला पेय है जो कैमेलिया साइनेंसिस पौधे से बनाया जाता है तथा यह पानी के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक सेवन किया जाने वाला पेय है।
  • विकास आवश्यकताएँ: 
    • तापमान: 13°C से 28°C की एक संकीर्ण वार्षिक सीमा, जिसमें इष्टतम वृद्धि 23-25°C के औसत तापमान पर होती है।
    • वर्षा: लगातार और समान रूप से वितरित वर्षा, औसतन 1,500 से 2,500 मिमी प्रति वर्ष, ताकि मिट्टी नम बनी रहे लेकिन जलजमाव न हो।
      • पौधों के विकास चक्र को विनियमित करने के लिये विशिष्ट और पूर्वानुमानित मौसम महत्त्वपूर्ण होते हैं, जिसमें महत्त्वपूर्ण ‘फ्लश’ अवधि भी शामिल है जब नई पत्तियों की कटाई की जाती है। 
        • यह परिशुद्धता प्रीमियम चाय के विशिष्ट स्वाद और सुगंध को विकसित करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
  • मिट्टी: गहरी, भुरभुरी (आसानी से टूटने वाली) और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर
  • भारतीय चाय बोर्ड: 1953 के चाय अधिनियम के तहत स्थापित भारतीय चाय बोर्ड, वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है जो चाय की खेती, उत्पादन और विपणन के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। 
    • इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा इसके विदेशी कार्यालय लंदन, दुबई और मॉस्को में हैं।
  • भारत का चाय बाज़ार: 
    • मुख्य उत्पादक: भारत चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है तथा तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक हैकेन्या चाय निर्यात में अग्रणी है, जबकि चीन दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
    • चाय उत्पादक क्षेत्र: प्रमुख चाय उत्पादक राज्य असम (असम घाटी, कछार), पश्चिम बंगाल (डूआर्स, तराई, दार्जिलिंग), तमिलनाडु और केरल भारत के कुल उत्पादन का लगभग 96% हिस्सा पैदा करते हैं।
    • उपभोग: भारत अपनी चाय का 80% घरेलू रूप से उपभोग करता है और प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत लगभग 840 ग्राम है।
    • निर्यात: भारत 25 से अधिक देशों को चाय निर्यात करता है, जिनमें रूस, ईरान, यूएई, यूएसए, यूके, जर्मनी और चीन शामिल हैं। निर्यात में लगभग 96% हिस्सा ब्लैक टी का होता है, साथ ही रेगुलर, ग्रीन, हर्बल, मसाला और लेमन टी भी निर्यात की जाती है।

भारत के चाय उद्योग को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक सहिष्णु कैसे बनाया जा सकता है?

  • कृषि और खेत स्तर पर अनुकूलन: गहरी जड़ों और उच्च उपज वाली सहिष्णु चाय की किस्मों को बढ़ावा दें, साथ ही मल्चिंग, कवर क्रॉप्स, सूक्ष्म-सिंचाई एवं वर्षा जल संचयन के माध्यम से मृदा तथा जल प्रबंधन में सुधार करें।
    • ऊष्मा तनाव को कम करने, मृदा के तापमान को संतुलित रखने और कीट नियंत्रण के लिये  छायादार वृक्षों तथा सहायक फसलों के साथ कृषि-वनीकरण को अपनाना।
  • आर्थिक और बाज़ार-आधारित समाधान: ‘ट्रस्टी’ सस्टेनेबल टी कोड जैसे सतत् प्रमाणन कार्यक्रमों का विस्तार करें, ताकि उत्पादन प्रथाओं का सत्यापन हो सके, बाज़ार तक पहुँच बढ़े और जलवायु-अनुकूलन मज़बूत हो।
    • प्रत्यक्ष-उपभोक्ता व्यापार (जैसे ई-कॉमर्स एकीकरण) को बढ़ावा दें, ताकि पारंपरिक नीलामी प्रणालियों को पार करते हुए उत्पादकों का लाभ मार्जिन बढ़ाया जा सके।
  • नीति और संरचनात्मक समर्थन: चाय को अन्य फसलों के समान दर्जा देने के लिये नीतिगत समर्थन को प्रोत्साहित करें, जिसमें आपदा राहत, सब्सिडी और जलवायु-अनुकूल कृषि हेतु निरंतर अनुसंधान वित्तपोषण शामिल हो।
    • छोटे उत्पादकों को संधारणीय कृषि प्रथाओं और आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षण देकर क्षमता निर्माण को मज़बूत करें।
  • अन्य देशों से सीखना: किसानों को सतत् और उच्च-गुणवत्ता वाली चाय उत्पादन के लिये आवश्यक कौशल प्रदान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। केन्या की केन्या टी डेवलपमेंट एजेंसी (KTDA), किसान फील्ड स्कूल (FFS) का प्रयोग करके रोपण करने, सूक्ष्म तोड़ाई (Fine-plucking) और प्रमाणन की तैयारी में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।

निष्कर्ष

असम के चाय उद्योग को जलवायु परिवर्तन, कीट हमलों और स्थिर कीमतों जैसी अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे 12 लाख से अधिक कामगारों की आजीविका संकट में है। चाय उत्पादन, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और असम के आर्थिक आधार को सुरक्षित रखने के लिये सहिष्णु कृषि, सतत् प्रथाओं और नीतिगत समर्थन को मज़बूत करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि भारत की $10 बिलियन की चाय अर्थव्यवस्था के लिये सतत् भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन भारत की चाय अर्थव्यवस्था के लिये एक अस्तित्वगत खतरा बन रहा है। प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और इस क्षेत्र के लिये सतत् अनुकूलन रणनीति के ढाँचे पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. असम में चाय की कृषि के लिये आदर्श जलवायु क्या है?
चाय का उत्तम विकास और प्रीमियम स्वाद पाने के लिये सामान्य तापमान 23–25º C, वार्षिक वर्षा 1,500–2,500 मिमी तथा हल्की अम्लीय मृदा (pH 4.5–5.5) की आवश्यकता होती है।

2. 'ट्रस्टी' कार्यक्रम क्या है?
यह इंडिया सस्टेनेबल टी कोड है, जो एक बहु-हितधारक पहल है। इसका उद्देश्य छोटे चाय उत्पादकों के बीच सतत् प्रथाओं का सत्यापन करना और आपूर्ति शृंखला में जलवायु अनुकूलन बढ़ाना है।

3. भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य कौन-सा है?
असम भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है, जो देश के कुल उत्पादन का आधे से अधिक योगदान देता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न: भारत में ‘चाय बोर्ड’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. चाय बोर्ड सांविधिक निकाय है। 
  2.  यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न नियामक निकाय है। 
  3.  चाय बोर्ड का प्रधान कार्यालय बंगलूरू में स्थित है। 
  4.  इस बोर्ड के दुबई और मॉस्को में विदेश स्थित कार्यालय हैं।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3 और 4        
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न. ब्रिटिश बागान मालिकों ने असम से हिमाचल प्रदेश तक शिवालिक और लघु हिमालय के चारों ओर चाय बागान विकसित किये थे, जबकि वास्तव में वे दार्जिलिंग क्षेत्र से आगे सफल नहीं हुए। चर्चा कीजिये। (2014)


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