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जलवायु परिवर्तन से भारत के चाय उद्योग को खतरा

  • 26 Nov 2025
  • 62 min read

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

असम के चाय उगाने वाले क्षेत्रों में अक्तूबर के बाद भी लंबे समय तक गर्मी, देर से बारिश और लगातार नमी बनी हुई है, जिसने असम में 12 लाख से अधिक श्रमिकों की आजीविका को खतरे में डाल दिया है और भारत की चाय अर्थव्यवस्था का भविष्य खतरे में पड़ रहा है।

भारत के चाय उद्योग को जलवायु परिवर्तन किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?

  • बढ़ता तापमान और अत्यधिक गर्मी: यह सीधे तौर पर चाय के पौधों पर दबाव डालता है, जिससे पत्तियाँ काली पड़ जाती हैं, मुरझा जाती हैं तथा पौधों का झड़ना अनियमित हो जाता है। अत्यधिक गर्मी चाय के पौधों के पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने की क्षमता को बाधित करती है, जिससे झाड़ियाँ कमज़ोर हो जाती हैं।
  • अनियमित वर्षा: शुष्क मौसम और सर्दियों में बारिश की कमी प्रत्यक्ष तौर पर मिट्टी की नमी को कम कर रही है जिससे चाय की खेती का मूल आधार कमज़ोर हो रहा है। इसके विपरीत, अत्यधिक वर्षा मिट्टी कटाव और जलभराव का कारण बनती है, जिससे पानी प्रभावी रूप से अवशोषित नहीं हो पाता।
  • बढ़ते क्षेत्रों की परिवर्तित उपयुक्तता: बढ़ती गर्मी और अनियमित वर्षा का संचयी प्रभाव एक मौलिक भौगोलिक बदलाव है। 
    • बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा का समग्र प्रभाव भौगोलिक परिवर्तन को जन्म देता है। असम के प्रमुख क्षेत्रों, जैसे साउथ बैंक और अपर असम की उपयुक्तता कम हो सकती है, जिससे चाय की खेती ऊँचाई वाले क्षेत्रों जैसे कार्बी आंगलोंग और डिमा हासाओ की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
  • आर्थिक विरोधाभास में वृद्धि: चाय की कीमतें 30 वर्षों में केवल 4.8% प्रतिवर्ष बढ़ी हैं, जो मुद्रास्फीति  गेहूॅं और चावल (10%) जैसी प्रमुख खाद्य वस्तुओं से काफी कम है - जबकि उत्पादन लागत बढ़ती जा रही है। 
    • चाय की कीमतों में पिछले 30 वर्षों में केवल 4.8% वार्षिक वृद्धि हुई है, जो मुद्रास्फीति  गेहूँ व चावल जैसी अन्य आवश्यक वस्तुओं (10%) से काफी कम है, जबकि उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है। 
    • यह कठिन परिस्थिति किसानों को बाज़ार से लाभ कमाने या जलवायु-प्रतिरोधी उपायों में निवेश करने तथा पुराने पौधों को पुनः रोपण करने में असमर्थ बना देती है।
  • पर्याप्त जलवायु संरक्षण नीतियों का अभाव: अन्य प्रमुख फसल किसानों के विपरीत, चाय उत्पादकों को सूखे या गर्म हवाओं के लिये न्यूनतम सरकारी सहायता मिलती है, जिससे उद्योग को तेज़ी से गंभीर जलवायु परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है।

भारत के चाय उद्योग के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • चाय: चाय एक व्यापक रूप से सेवन किया जाने वाला पेय है जो कैमेलिया साइनेंसिस पौधे से बनाया जाता है तथा यह पानी के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक सेवन किया जाने वाला पेय है।
  • विकास आवश्यकताएँ: 
    • तापमान: 13°C से 28°C की एक संकीर्ण वार्षिक सीमा, जिसमें इष्टतम वृद्धि 23-25°C के औसत तापमान पर होती है।
    • वर्षा: लगातार और समान रूप से वितरित वर्षा, औसतन 1,500 से 2,500 मिमी प्रति वर्ष, ताकि मिट्टी नम बनी रहे लेकिन जलजमाव न हो।
      • पौधों के विकास चक्र को विनियमित करने के लिये विशिष्ट और पूर्वानुमानित मौसम महत्त्वपूर्ण होते हैं, जिसमें महत्त्वपूर्ण ‘फ्लश’ अवधि भी शामिल है जब नई पत्तियों की कटाई की जाती है। 
        • यह परिशुद्धता प्रीमियम चाय के विशिष्ट स्वाद और सुगंध को विकसित करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
  • मिट्टी: गहरी, भुरभुरी (आसानी से टूटने वाली) और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर
  • भारतीय चाय बोर्ड: 1953 के चाय अधिनियम के तहत स्थापित भारतीय चाय बोर्ड, वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है जो चाय की खेती, उत्पादन और विपणन के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। 
    • इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा इसके विदेशी कार्यालय लंदन, दुबई और मॉस्को में हैं।
  • भारत का चाय बाज़ार: 
    • मुख्य उत्पादक: भारत चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है तथा तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक हैकेन्या चाय निर्यात में अग्रणी है, जबकि चीन दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
    • चाय उत्पादक क्षेत्र: प्रमुख चाय उत्पादक राज्य असम (असम घाटी, कछार), पश्चिम बंगाल (डूआर्स, तराई, दार्जिलिंग), तमिलनाडु और केरल भारत के कुल उत्पादन का लगभग 96% हिस्सा पैदा करते हैं।
    • उपभोग: भारत अपनी चाय का 80% घरेलू रूप से उपभोग करता है और प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत लगभग 840 ग्राम है।
    • निर्यात: भारत 25 से अधिक देशों को चाय निर्यात करता है, जिनमें रूस, ईरान, यूएई, यूएसए, यूके, जर्मनी और चीन शामिल हैं। निर्यात में लगभग 96% हिस्सा ब्लैक टी का होता है, साथ ही रेगुलर, ग्रीन, हर्बल, मसाला और लेमन टी भी निर्यात की जाती है।

भारत के चाय उद्योग को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक सहिष्णु कैसे बनाया जा सकता है?

  • कृषि और खेत स्तर पर अनुकूलन: गहरी जड़ों और उच्च उपज वाली सहिष्णु चाय की किस्मों को बढ़ावा दें, साथ ही मल्चिंग, कवर क्रॉप्स, सूक्ष्म-सिंचाई एवं वर्षा जल संचयन के माध्यम से मृदा तथा जल प्रबंधन में सुधार करें।
    • ऊष्मा तनाव को कम करने, मृदा के तापमान को संतुलित रखने और कीट नियंत्रण के लिये  छायादार वृक्षों तथा सहायक फसलों के साथ कृषि-वनीकरण को अपनाना।
  • आर्थिक और बाज़ार-आधारित समाधान: ‘ट्रस्टी’ सस्टेनेबल टी कोड जैसे सतत् प्रमाणन कार्यक्रमों का विस्तार करें, ताकि उत्पादन प्रथाओं का सत्यापन हो सके, बाज़ार तक पहुँच बढ़े और जलवायु-अनुकूलन मज़बूत हो।
    • प्रत्यक्ष-उपभोक्ता व्यापार (जैसे ई-कॉमर्स एकीकरण) को बढ़ावा दें, ताकि पारंपरिक नीलामी प्रणालियों को पार करते हुए उत्पादकों का लाभ मार्जिन बढ़ाया जा सके।
  • नीति और संरचनात्मक समर्थन: चाय को अन्य फसलों के समान दर्जा देने के लिये नीतिगत समर्थन को प्रोत्साहित करें, जिसमें आपदा राहत, सब्सिडी और जलवायु-अनुकूल कृषि हेतु निरंतर अनुसंधान वित्तपोषण शामिल हो।
    • छोटे उत्पादकों को संधारणीय कृषि प्रथाओं और आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षण देकर क्षमता निर्माण को मज़बूत करें।
  • अन्य देशों से सीखना: किसानों को सतत् और उच्च-गुणवत्ता वाली चाय उत्पादन के लिये आवश्यक कौशल प्रदान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। केन्या की केन्या टी डेवलपमेंट एजेंसी (KTDA), किसान फील्ड स्कूल (FFS) का प्रयोग करके रोपण करने, सूक्ष्म तोड़ाई (Fine-plucking) और प्रमाणन की तैयारी में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।

निष्कर्ष

असम के चाय उद्योग को जलवायु परिवर्तन, कीट हमलों और स्थिर कीमतों जैसी अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे 12 लाख से अधिक कामगारों की आजीविका संकट में है। चाय उत्पादन, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और असम के आर्थिक आधार को सुरक्षित रखने के लिये सहिष्णु कृषि, सतत् प्रथाओं और नीतिगत समर्थन को मज़बूत करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि भारत की $10 बिलियन की चाय अर्थव्यवस्था के लिये सतत् भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन भारत की चाय अर्थव्यवस्था के लिये एक अस्तित्वगत खतरा बन रहा है। प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और इस क्षेत्र के लिये सतत् अनुकूलन रणनीति के ढाँचे पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. असम में चाय की कृषि के लिये आदर्श जलवायु क्या है?
चाय का उत्तम विकास और प्रीमियम स्वाद पाने के लिये सामान्य तापमान 23–25º C, वार्षिक वर्षा 1,500–2,500 मिमी तथा हल्की अम्लीय मृदा (pH 4.5–5.5) की आवश्यकता होती है।

2. 'ट्रस्टी' कार्यक्रम क्या है?
यह इंडिया सस्टेनेबल टी कोड है, जो एक बहु-हितधारक पहल है। इसका उद्देश्य छोटे चाय उत्पादकों के बीच सतत् प्रथाओं का सत्यापन करना और आपूर्ति शृंखला में जलवायु अनुकूलन बढ़ाना है।

3. भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य कौन-सा है?
असम भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है, जो देश के कुल उत्पादन का आधे से अधिक योगदान देता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न: भारत में ‘चाय बोर्ड’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. चाय बोर्ड सांविधिक निकाय है। 
  2.  यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न नियामक निकाय है। 
  3.  चाय बोर्ड का प्रधान कार्यालय बंगलूरू में स्थित है। 
  4.  इस बोर्ड के दुबई और मॉस्को में विदेश स्थित कार्यालय हैं।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3 और 4        
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न. ब्रिटिश बागान मालिकों ने असम से हिमाचल प्रदेश तक शिवालिक और लघु हिमालय के चारों ओर चाय बागान विकसित किये थे, जबकि वास्तव में वे दार्जिलिंग क्षेत्र से आगे सफल नहीं हुए। चर्चा कीजिये। (2014)

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