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आंतरिक सुरक्षा

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट का खतरा

  • 26 Nov 2025
  • 78 min read

प्रीलिम्स के लिए: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA), राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट

मेन्स के लिये: भारत के काउंटर-टेररिज़्म प्रयासों में बढ़ती डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट की चुनौतियाँ, संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

दिल्ली के लाल किले के पास हुई कार विस्फोट की घटना ने आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट के बढ़ते खतरे को उजागर किया है। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की जाँच से पता चलता है कि आतंकी मॉड्यूल अब हमलों की योजना बनाने के लिये एन्क्रिप्टेड ऐप्स, एनॉनिमस सर्वर और जासूस-शैली की डिजिटल तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं।

  • यह एन्क्रिप्टेड और विकेंद्रीकृत संचार नेटवर्क का पता लगाने के लिये मज़बूत साइबर फॉरेंसिक्स और विशेष क्षमताओं की आवश्यकता को उजागर करता है।

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट क्या है?

  • परिचय: आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ़्ट आधुनिक ऑनलाइन तकनीकों का वह समूह है, जिसका उपयोग आतंकवादी समूह अपनी पहचान छुपाने, सुरक्षित संचार करने, नए सदस्यों को कट्टरपंथी बनाने, धन का लेन-देन करने तथा हमलों की योजना बनाने के लिये करते हैं। 
    • यह एक इंटेलिजेंस ट्रेडक्राफ्ट है, जो एन्क्रिप्टेड, एनॉनिमस और विकेंद्रीकृत डिजिटल सिस्टम के माध्यम से कार्य करता है।
  • डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट के मुख्य तत्त्व:
    • एन्क्रिप्टेड संचार: आतंकवादी समूह बिना किसी अवरोध के हमलों की योजना बनाने के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड ऐप्स (जैसे, थ्रीमा (फोन नंबर या ईमेल की आवश्यकता नहीं है), टेलीग्राम, सिग्नल) का उपयोग करते हैं।
    • गुमनामी उपकरण: वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क, टोर ब्राउज़र, बर्नर डिवाइस और प्रॉक्सी सर्वर जैसी तकनीकें स्थानों और पहचानों को छिपाने में मदद करती हैं।
    • विकेंद्रीकृत प्लेटफॉर्म: डार्क वेब फोरम, अनाम होस्टिंग सेवाएँ, अस्थायी ईमेल आईडी और स्व-विनाशकारी संदेशों का उपयोग।
    • डिजिटल निगरानी से बचना: सामरिक तरीके जैसे मेटाडेटा ट्रेल्स से बचना, ऑफलाइन संचार (ब्लूटूथ मेष, वाई-फाई डेड ड्रॉप्स) और एंटी-ट्रैकिंग टूल का उपयोग करना।
      • साझा ईमेल का उपयोग: आतंकियों ने एक साझा ईमेल अकाउंट का इस्तेमाल किया, जिसमें ड्राफ्ट में बिना भेजे हुए संदेश छोड़कर आपस में संवाद किया जाता था, ताकि कोई ‘सेंट मेल’ रिकॉर्ड न बने। यह एक क्लासिक डेड-ड्रॉप तकनीक है, जिसमें डिजिटल फुटप्रिंट न्यूनतम रह जाता है।
    • ऑनलाइन कट्टरपंथ और भर्ती: सोशल मीडिया, गेमिंग प्लेटफॉर्म, एन्क्रिप्टेड चैनल और AI-जनित सामग्री का उपयोग करके व्यक्तियों को निशाना बनाना और विचारधारा से प्रभावित करना।
    • वित्तीय लेन-देन को छुपाना: क्रिप्टोकरेंसी, प्रीपेड वॉलेट, फर्जी चैरिटी के माध्यम से क्राउडफंडिंग और डिजिटल भुगतान से जुड़े नेटवर्क का उपयोग।
    • ऑपरेशनल प्लानिंग: टारगेट की पहचान करने के लिये ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT), सैटेलाइट मैप, AI टूल्स और साइबर रेकी का उपयोग।

भारत के आतंकवाद-रोधी प्रयासों के लिये बढ़ते डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पुराना कानूनी ढाँचा: मौजूदा आतंकवाद-रोधी कानून, आतंकवादी मॉड्यूलों द्वारा उपयोग किये जाने वाले विकेंद्रीकृत, एन्क्रिप्टेड और स्व-होस्टेड प्लेटफॉर्मों के अनुरूप नहीं हैं।
    • भारत में केवल ड्राफ्ट ईमेल और अल्पकालिक संदेश जैसे डिजिटल व्यापार विधियों का पता लगाने, जाँच करने और उन पर मुकदमा चलाने के लिये विशिष्ट कानूनी प्रावधानों का अभाव है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद, थ्रीमा तक VPN के माध्यम से पहुँच बनाई गई, जिससे पता चलता है कि अकेले प्रतिबंध अपर्याप्त हैं।
  • सीमित उन्नत साइबर-फॉरेंसिक क्षमताएँ: कई एजेंसियों के पास मेमोरी डंप, सर्वर फॉरेंसिक और एन्क्रिप्टेड-नेटवर्क मैपिंग के लिये विशेष उपकरणों का अभाव है, जबकि निजी स्व-होस्टेड एन्क्रिप्टेड सर्वर वारंट के साथ भी वैध पहुँच को अवरुद्ध करते हैं। 
    • VPN, प्रॉक्सी और अनामीकरण उपकरण उपयोगकर्त्ता के स्थान को छिपा देते हैं, जिससे डिजिटल फुटप्रिंट खंडित हो जाते हैं और पहचान स्थापित करना तथा फॉरेंसिक जाँच करना कठिन हो जाता है।
    • प्रशिक्षित साइबर खुफिया कर्मियों की लगातार कमी के कारण तेज़ी से उन्नत होती आतंकवादी तकनीकों के मुकाबले हमारी क्षमता का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है।
  • पेशेवर और शैक्षणिक क्षेत्रों में कट्टरपंथ: डॉक्टरों और शिक्षित व्यक्तियों की फसंलिप्तता दर्शाती है कि कट्टरपंथ उच्च-कौशल, कम-संदेह वाले वातावरण की ओर बढ़ रहा है। सुरक्षा संस्थानों में पेशेवरों के वैचारिक बदलावों का पता लगाने के लिये प्रभावी तंत्र का अभाव है।
  • कमज़ोर अंतर्राष्ट्रीय समन्वय: मुख्य साक्ष्य प्राय: विदेशी सर्वरों या भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर के एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म पर स्थित होते हैं, जिससे सीधे पहुँच कठिन हो जाती है।
    • सीमापार डेटा साझा करने वाले सीमित समझौते वास्तविक समय में खुफिया जानकारी के प्रवाह को और धीमा कर देते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय आतंक नेटवर्क को ट्रैक करने तथा विफल करने में विलंब उत्पन्न होता है।

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने के लिये भारत को कौन-से कदम उठाने चाहिये?

  • उन्नत साइबर फॉरेंसिक क्षमताओं को मज़बूत करना: NIA, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) तथा राज्य आतंकवाद विरोधी दस्तों (ATS) के भीतर विशेष इकाइयाँ स्थापित करें, जो मेमोरी फॉरेंसिक्स, एन्क्रिप्टेड नेटवर्क मैपिंग और सर्वर विश्लेषण पर केंद्रित हों।
  • कानूनी और विनियामक ढाँचे का आधुनिकीकरण: विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 को अद्यतन करें ताकि इसमें डिजिटल व्यापार कौशल विधियों को स्पष्ट रूप से शामिल किया जा सके, जैसे कि केवल ड्राफ्ट ईमेल, सेल्फ-होस्टेड एन्क्रिप्टेड सर्वर और गुमनाम पहचान।
    • संचार ऐप्स द्वारा उपयोग किये जाने वाले निजी सर्वरों के लिये न्यूनतम अनुपालन मानकों को अनिवार्य करने वाला नीतिगत ढाँचा विकसित किया जाए। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की भूमिका को मज़बूत करें ताकि वह आतंकवादी गतिविधियों के लिये उपयोग की जाने वाली अनामिकरण सेवाओं और VPN गेटवे की निगरानी कर सके।
  • संस्थागत क्षमता और प्रतिभा शृंखला का निर्माण: क्रिप्टोग्राफी, डिजिटल फॉरेंसिक्स, मैलवेयर विश्लेषण और ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) में विशेषीकृत पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये IITs, IIITs, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
    • कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना और इसे आतंकवाद विरोधी खुफिया के लिये अनुकूलित करना।
  • तकनीकी कूटनीति को सुदृढ़ करना: एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म होस्ट करने वाले देशों (जैसे: थ्रीमा के लिये स्विट्ज़रलैंड) के साथ पारस्परिक कानूनी सहायता संधियाँ (MLATs) और डेटा-साझाकरण समझौते किये जाएँ।
  • उच्च-कौशल वाले वातावरण में उग्रवाद-निरोध: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) को चरमपंथी व्यवहार की प्रारंभिक पहचान हेतु परामर्शात्मक रूपरेखाएँ जारी करने के लिये सशक्त बनाया जाए।
    • राष्ट्रीय एकता परिषद और ज़िला-स्तरीय सुरक्षा समितियों के तहत समुदाय-आधारित निगरानी को मज़बूत किया जाए।

निष्कर्ष

भारत को पारंपरिक निगरानी से आगे बढ़कर एक बहु-स्तरीय डिजिटल आतंकवाद विरोधी प्रणाली का निर्माण करना चाहिये। मज़बूत कानून, उन्नत संस्थान, उन्नत साइबर फॉरेंसिक्स और गहरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है ताकि एन्क्रिप्टेड, विकेंद्रीकृत और तेज़ी से विकसित हो रहे आतंकवादी नेटवर्क का मुकाबला किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  एन्क्रिप्टेड और विकेंद्रीकृत संचार प्लेटफार्म के बढ़ते उपयोग ने भारत में आतंकवाद के खतरे के परिदृश्य को कैसे बदल दिया है, इसका विश्लेषण कीजिये। प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आवश्यक सुधार सुझाएँ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. आतंकवाद में ‘डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट’ क्या है?
‘डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट’ से तात्पर्य एन्क्रिप्टेड ऐप्स, निजी/स्व-होस्टेड सर्वर, VPN तथा जासूसी-शैली की तकनीकों (जैसे केवल ड्राफ्ट में सेव किये गए ईमेल) का उपयोग करके आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाना, समन्वय करना तथा उन्हें छिपाने से है।

2. भारत में एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म को वर्तमान में कौन-से कानून विनियमित करते हैं?
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (विशेषकर धारा 69A के अंतर्गत नियम) ऑनलाइन सामग्री और ब्लॉकिंग को नियंत्रित करते हैं; जबकि UAPA आतंकवादी कृत्यों से संबंधित है लेकिन दोनों को विकेंद्रीकृत/एन्क्रिप्टेड ट्रेडक्राफ्ट को स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिये अद्यतन करने की आवश्यकता है।

3. निजी/सेल्फ-होस्टेड सर्वर जाँच एजेंसियों के लिये चुनौती क्यों हैं?
निजी सर्वरों को इस प्रकार कॉन्फिगर किया जा सकता है कि उनमें कोई मेटाडाटा न रहे और वे सामान्य प्रदाता लॉगिंग व्यवस्था से बाहर कार्य करें। इससे वैधानिक अनुमति के बावजूद डेटा तक पहुँच कठिन हो जाती है और फॉरेंसिक पुनर्निर्माण भी लगभग असंभव हो जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. 'हैंड-इन-हैंड 2007' संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सेना के अधिकारियों और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (2008)

(a) चीन
(b) जापान
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (a) 


मेन्स

प्रश्न. भारत के समक्ष आने वाली आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियुक्त केंद्रीय खुफिया और जाँच एजेंसियों की भूमिका बताइये। (2023)

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. जम्मू और कश्मीर में 'जमात-ए-इस्लामी' पर पाबंदी लगाने से आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं (ओ० जी० डब्ल्यू०) की भूमिका ध्यान का केंद्र बन गई है। उपप्लव (बगावत) प्रभावित क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका का परीक्षण कीजिये। भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के उपायों की चर्चा कीजिये। (2019) 

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