इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 24 Aug, 2021
  • 53 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

विश्व संस्कृत दिवस

प्रिलिम्स के लिये

विश्व संस्कृत दिवस, नई शिक्षा नीति, संस्कृत ग्राम 

मेन्स के लिये

विश्व संस्कृत दिवस का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

विश्व संस्कृत दिवस (विश्व संस्कृत दिनम) 22 अगस्त, 2021 को मनाया गया।

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • यह एक वार्षिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के पुनरुद्धार और रखरखाव को बढ़ावा देना है।
  • यह हिंदू कैलेंडर में श्रावण महीने के पूर्णिमा दिवस (पूर्णिमा) को मनाया जाता है।
  • प्राचीन काल की तरह व्यापक रूप से नहीं बोली जाने के बावजूद यह दिवस अनिवार्य रूप से संस्कृत सीखने और जानने के महत्त्व की बात करता है।
  • केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा राज्य और केंद्र सरकारों को अधिसूचना जारी करने के बाद वर्ष 1969 में पहली बार यह दिवस मनाया गया था।
  • संस्कृत संगठन संस्कृत भारती (Sanskrit Organisation Samskrita Bharati) दिवस को बढ़ावा देने का कार्य करता है।

संस्कृत भाषा के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • इसे विश्व की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक माना जाता है। यह एक प्राचीन इंडो-आर्यन भाषा है जिसमें सबसे प्राचीन दस्तावेज़, वेद, वैदिक संस्कृत में हैं।
  • वैदिक काल में संस्कृत एक अखिल भारतीय भाषा हुआ करती थी और देश में अधिकांश भाषाओं का जन्म संस्कृत से हुआ है।
    • यह भाषा किसी-न-किसी तरह की आधुनिक व्युत्पत्तियों और क्षेत्रीय बोलियों के कारण अपना अस्तित्व खोती गई।
  • शास्त्रीय संस्कृत, उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में इस्तेमाल होने वाली वैदिक के करीब की भाषा ग्रंथ पाणिनी (6वीं-5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) द्वारा रचित अष्टाध्याय (आठ अध्याय), अब तक के सबसे बेहतरीन व्याकरण ग्रंथों में से एक है।
  • संस्कृत को देवनागरी लिपि और विभिन्न क्षेत्रीय लिपियों में लिखा गया है, जैसे- उत्तर (कश्मीर) में  शारदा, पूर्व में बांग्ला (बंगाली), पश्चिम में गुजराती व ग्रंथ वर्णमाला सहित विभिन्न दक्षिणी लिपियाँ जिसे विशेष रूप से संस्कृत ग्रंथों के लिये तैयार गया था।
  • इसे एक वैज्ञानिक भाषा माना जाता है और इसे सबसे अधिक कंप्यूटर के अनुकूल भाषा माना जाता है।
    • वर्ष 1786 में अंग्रेज़ी भाषाविद् विलियम जोन्स ने अपनी पुस्तक 'द संस्कृत लैंग्वेज' में बताया है कि ग्रीक और लैटिन भाषा संस्कृत से संबंधित थी। 
  • हालाँकि यह भाषा पूरी तरह से मृत नहीं है। माना जाता है कि कर्नाटक के शिमोगा ज़िले के एक गाँव, जिसे मत्तूर कहा जाता है, ने भाषा को संरक्षित रखा है।
  • विश्व का एकमात्र संस्कृत समाचार पत्र 'सुधर्म' है। यह समाचार पत्र 1970 से कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित हो रहा है और ऑनलाइन भी उपलब्ध है।
  • पाणिनि, पतंजलि, आदि शंकराचार्य, वेद व्यास, कालिदास आदि संस्कृत के कुछ प्रसिद्ध लेखक हैं।

संस्कृत में महत्त्वपूर्ण लेखक और कार्य:

  • भास (उदाहरण के लिये उनके स्वप्नवासवदत्त - वासवदत्त इन ए ड्रीम), जिनके लिये व्यापक रूप से अलग-अलग तिथियाँ निर्धारित की गई हैं, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से कालिदास से पहले कार्य किया है, इनमें उनका उल्लेख मिलता है।
  • कालिदास (पहली शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी तक) के कार्यों में शकुंतला, विक्रमोर्वण्य, कुमारसंभव और रघुवंश शामिल हैं।
  • सूद्रका (Śūdraka) और मच्छकाटिका ("लिटिल क्ले कार्ट") संभवतः तीसरी शताब्दी के काल की हैं।
  • अश्वघोष की बुद्धचरित (Ashvaghosha’s Buddhacarita) बौद्ध साहित्य के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है।
  • भारवी और किरातार्जुन्य (अर्जुन और किरात) लगभग 7वीं शताब्दी के हैं।
  • माघ (Māgha) का शिशुपालवधा ("शिशुपाल का वध") 7वीं शताब्दी के अंत का है।
  • दो महाकाव्य रामायण ("राम का जीवन") और महाभारत ("भारत की महान कथा") भी संस्कृत में रचे गए।

केंद्र सरकार द्वारा संस्कृत को बढ़ावा:

  • नई शिक्षा नीति (NEP) ने भाषा को "मुख्यधारा" में लाने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी मार्ग निर्धारित किया है। इसके तहत स्कूलों में संस्कृत के अध्ययन की पेशकश करना है, जिसमें त्रि-भाषा सूत्र के साथ-साथ उच्च शिक्षा में एक भाषा विकल्प भी शामिल है।
    • NEP में यह भी कहा गया है कि संस्कृत विश्वविद्यालयों को उच्च शिक्षा के बहु-विषयक संस्थानों में बदल दिया जाएगा।
  • संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये एक नोडल प्राधिकरण के रूप में दिल्ली में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान की स्थापना की गई है।
  • साथ ही आदर्श संस्कृत महाविद्यालय/शोध संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • महाविद्यालय स्तर पर संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थियों को योग्यता के आधार पर छात्रवृत्ति प्रदान करना।
  • विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं/कार्यक्रमों के लिये गैर-सरकारी संगठनों/संस्कृत के उच्च शिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता देना।
  • शास्त्र चूड़ामणि योजना (Shastra Chudamani Scheme) के तहत अध्यापन के लिये सेवानिवृत्त प्रख्यात संस्कृत विद्वान कार्यरत हैं।
  • भारतीय संस्थानों, प्रौद्योगिकी, आयुर्वेद संस्थानों, आधुनिक कॉलेजों और विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में गैर-औपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्रों की स्थापना करके गैर-औपचारिक संस्कृत शिक्षा (Non-formal Sanskrit Education- NFSE) कार्यक्रम के माध्यम से भी संस्कृत पढ़ाया जाता है।
  • संस्कृत भाषा के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार प्रतिवर्ष 16 वरिष्ठ विद्वानों और 5 युवा विद्वानों को प्रदान किया जाता है।
  • प्रकाशन के लिये वित्तीय सहायता और दुर्लभ संस्कृत पुस्तकों का पुनर्मुद्रण।
  • संस्कृत के विकास के लिये अठारह परियोजनाओं वाली अष्टादशी को लागू करना।

स्रोत: पीआईबी


सामाजिक न्याय

दत्तक ग्रहण (प्रथम संशोधन) विनियमन, 2021

प्रिलिम्स के लिये

दत्तक ग्रहण विनियम, 2017, भारतीय राजनयिक मिशन

मेन्स के लिये

दत्तक ग्रहण विनियम में संशोधन की आवश्यकता और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

बच्चों को कानूनी तौर पर गोद लेने संबंधी नियमों के एक नए प्रावधान के अनुसार, विदेशों में भारतीय राजनयिक मिशन अब उन गोद लिये गए बच्चों की सुरक्षा के प्रभारी होंगे, जिनके माता-पिता गोद लेने के दो साल के भीतर बच्चे के साथ विदेश चले गए हैं।

  • अब तक भारतीय मिशनों की भूमिका अंतर-देशीय गोद लेने की प्रकिया में केवल अनिवासी भारतीयों (NRIs), भारत के प्रवासी नागरिकों या विदेशी माता-पिता तक ही सीमित थी।

प्रमुख बिंदु

दत्तक ग्रहण (प्रथम संशोधन) विनियमन, 2021

  • यह दत्तक ग्रहण विनियम, 2017 में संशोधन करता है।
  • इस संशोधन को ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015’ की संबंधित धाराओं के अनुसार अधिसूचित किया गया है।
  • इसे ‘केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण’ (CARA) द्वारा बनाया गया है और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है।
    • ‘केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण’ (CARA), महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का एक वैधानिक निकाय है। यह भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिये नोडल निकाय के रूप में कार्य करता है और देश में गोद लेने की प्रकिया की निगरानी और विनियमन के लिये उत्तरदायी है।

आवश्यकता

  • हाल ही में कुछ मामले ऐसे देखने को मिले हैं जिसमें भारत में माता-पिता द्वारा भारतीय बच्चों को गोद लिया गया और जो बाद में विदेश चले गए, इसलिये वे भारतीय अधिकारियों के दायरे से बाहर हो गए और वे विदेशों में भारतीय मिशनों के दायरे में नहीं आते थे।
    • ऐसे बच्चे काफी संवेदनशील हो जाते हैं क्योंकि इन बच्चों का शोषण और दुर्व्यवहार आसानी से हो सकता है।

भारतीय मिशनों का वर्तमान उत्तरदायित्व:

  • भारतीय राजनयिक मिशन (Indian Diplomatic Mission) वर्तमान में गोद लिये गए बच्चे की प्रगति रिपोर्ट पहले वर्ष में त्रैमासिक आधार पर और दूसरे वर्ष में छह-मासिक आधार पर दूसरे देश में बच्चे के आगमन की तारीख से भेजते हैं।
  • अनिवासी भारतीय या भारत के प्रवासी नागरिकों या विदेशी माता-पिता द्वारा गोद लिये गए भारतीय मूल के बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मिशनों को दूसरे देशों में केंद्रीय प्राधिकरण या अन्य अधिकारियों से संपर्क करने की भी उम्मीद है।
  • गोद लेने में व्यवधान के मामले में विदेशी मिशन जल्द-से-जल्द एक रिपोर्ट भेजेंगे और आवश्यक सहायता प्रदान करेंगे तथा यदि आवश्यक हो तो बच्चे के प्रत्यावर्तन की सुविधा प्रदान करेंगे।

दत्तक ग्रहण विनियम, 2017 के अंतर्गत बच्चे को गोद लेने के लिये पात्र व्यक्ति:

  • भावी दत्तक माता-पिता (Prospective Adoptive Parent) को "शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्थिर तथा आर्थिक रूप से सक्षम होना चाहिये एवं जीवन को खतरे में डालने वाली चिकित्सा स्थिति नहीं होनी चाहिये।"
  • एक व्यक्ति अपनी वैवाहिक स्थिति की परवाह किये बिना बच्चे को गोद ले सकता है और चाहे उसका जैविक बेटा या बेटी हो या नहीं।
  • एक अकेली महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है लेकिन एकल पुरुष लड़की को गोद लेने के लिये पात्र नहीं होगा। विवाहित जोड़े के मामले में दोनों पति-पत्नी को गोद लेने के लिये अपनी सहमति देनी चाहिये।
  • गोद लेने के मामले में दंपत्ति को कोई बच्चा तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि उनका कम-से-कम दो वर्ष का स्थिर वैवाहिक संबंध न हो।
  • विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को रखने और सौतेले माता-पिता द्वारा गोद लेने के मामले के सिवाय गोद लेने के लिये तीन या अधिक बच्चों वाले दंपत्तियों पर विचार नहीं किया जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री मूँगों में प्रतिरक्षित कोशिकाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवाल, फागोसाइटोसिस, समुद्र एनीमोन, ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, प्रवाल विरंजन

मेन्स के लिये:

प्रवाल भित्तियों के लाभ और खतरा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक नए अध्ययन ने पहली बार पहचान की है कि समुद्री मूँगों और एनीमोन (Anemone) की कुछ किस्मों में विशेष प्रतिरक्षित कोशिकाएँ (Immune Cell- फागोसाइटिक कोशिकाएँ) मौजूद होती हैं।

  • यह इस बात को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा कि कैसे प्रवाल निर्माता मूँगा और अन्य प्रवाल जंतु बैक्टीरिया एवं वायरस जैसे विदेशी आक्रमणकारियों से खुद को बचाते हैं।

फागोसाइटोसिस

  • यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कुछ जीवित कोशिकाएँ जिन्हें फागोसाइट (Phagocyte) कहा जाता है, अन्य कोशिकाओं या कणों को निगलती हैं।
  • फागोसाइट एक मुक्त जीवित एकल कोशिका वाला जीव हो सकता है, जैसे कि अमीबा।
  • पशु जीवन के कुछ रूपों जैसे- अमीबा, स्पंज आदि के लिये फागोसाइटोसिस भोजन का एक साधन है।
  • बड़े जानवरों में फागोसाइटोसिस मुख्य रूप से एंटीजन द्वारा संक्रमण और शरीर पर  आक्रमण के खिलाफ एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया है।

Animone

समुद्री एनीमोन

  • इन्हें कभी-कभी 'समुद्री फूल' भी कहा जाता है, ये वास्तव में सुंदर जानवर हैं जो मूँगा और जेलिफिश के करीबी वंशज हैं तथा एक्टिनियारिया क्रम के समुद्री शिकारी जानवर हैं।
  • ये सभी महासागरों के ज्वारीय क्षेत्र से 10,000 मीटर से अधिक की गहराई तक पाए जाते हैं।

प्रमुख बिंदु

प्रवाल:

  • प्रवाल आनुवंशिक रूप से समान जीवों से बने होते हैं जिन्हें ‘पॉलीप्स’ कहा जाता है। इन पॉलीप्स में सूक्ष्म शैवाल होते हैं जिन्हें ज़ूजैन्थेले (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं।
    • प्रवाल और शैवाल में परस्पर संबंध होता है।
    • प्रवाल, ज़ूजैन्थेले को प्रकाश संश्लेषण हेतु आवश्यक यौगिक प्रदान करता है। बदले में ज़ूजैन्थेले कार्बोहाइड्रेट की तरह प्रकाश संश्लेषण के जैविक उत्पादों की प्रवाल को आपूर्ति करता है, जो उनके कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के संश्लेषण हेतु प्रवाल पॉलीप्स द्वारा उपयोग किया जाता है।
    • यह प्रवाल को आवश्यक पोषक तत्त्वों को प्रदान करने के अलावा इसे अद्वितीय और सुंदर रंग प्रदान करता है।
  • उन्हें "समुद्र का वर्षावन" भी कहा जाता है।
  • प्रवाल दो प्रकार के होते हैं:
    • कठोर, उथले पानी के प्रवाल।
    • ‘सॉफ्ट’ प्रवाल और गहरे पानी के प्रवाल जो गहरे ठंडे पानी में रहते हैं।

प्रवालों से लाभ:

  • आवास: 
    • प्रवाल 1 मिलियन से अधिक विविध जलीय प्रजातियों का घर है, जिनमें हज़ारों मछलियों की प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • आय: 
    • प्रवाल भित्ति और संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों का वैश्विक अनुमानित मूल्य 2.7 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है, यह सभी वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्यों का 2.2% है, इसमें पर्यटन और भोजन शामिल हैं।
  • तटीय सुरक्षा: 
    • प्रवाल भित्ति तरंगों से ऊर्जा को अवशोषित करके तटरेखा क्षरण को कम करते हैं। वे तटीय आवास, कृषि भूमि और समुद्र तटों की रक्षा कर सकते हैं।
  • चिकित्सा: 
    • ये भित्तियाँ उन प्रजातियों का घर है, जिनमें दुनिया की कुछ सबसे प्रचलित और खतरनाक बीमारियों के इलाज की क्षमता है।

खतरा:

  • अत्यधिक मत्स्ययन और मछली पकड़ने का गलत तरीका:
    • अत्यधिक मत्स्ययन प्रवाल के पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता को प्रभावित कर सकता है।
    • डायनामाइट, साइनाइड, बॉटम ट्रॉलिंग और मूरो अमी (लाठी से भित्ति पर वार करना) के साथ मछली पकड़ना पूरी भित्ति को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मनोरंजक गतिविधियाँ:
    • अनियमित मनोरंजक गतिविधियाँ और पर्यटन, जिस पर उद्योग निर्भर करते हैं, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • तटीय विकास:
    • उष्णकटिबंधीय देशों में तटीय क्षेत्रों में विकास दर सबसे तेज़ है। हवाई अड्डे और इमारतों को अक्सर समुद्री भूमि पर बनाया जाता है।
  • प्रदूषण:
    • शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, कृषि रसायन एवं तेल प्रदूषण प्रवाल भित्तियों को ज़हरीला बना रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • प्रवाल विरंजन: जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल ज़ूजैन्थेले को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं।
    • महासागरीय अम्लीकरण: महासागरों की बढ़ती अम्लता प्रवाल भित्तियों के कंकाल निर्माण में कठिनाई उत्पन्न करती है जिससे यह प्रवाल भित्तियों के निर्माण हेतु खतरा है।

प्रवालों के संरक्षण हेतु की गई पहलें:

  • वैश्विक पहल:
    • अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल
    • ग्लोबल कोरल रीफ मॉनीटरिंग नेटवर्क (GCRMN)
    • ग्लोबल कोरल रीफ अलायंस (GCRA)
    • ग्लोबल कोरल रीफ आर एंड डी एक्सेलेरेटर प्लेटफॉर्म
  • भारतीय पहल: 
    • भारत ने तटीय क्षेत्र अध्ययन (Coastal Zone Studies) के अंतर्गत प्रवाल भित्तियों पर अध्ययन को शामिल किया है।
    • भारत में ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI), गुजरात के वन विभाग की मदद से "बायोरॉक" या खनिज अभिवृद्धि तकनीक का उपयोग करके प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया का प्रयास कर रहा है।
    • देश में प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा और रखरखाव के लिये राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम (National Coastal Mission Programme) चलाया जा रहा है।

भारत में मूँगे के प्रमुख स्थान

  • प्रवाल भित्तियाँ कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप द्वीप समूह तथा मालवन के क्षेत्रों में मौजूद हैं।

Indian-Ocean

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भूगोल

भूकंपीय वेधशालाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

भूकंपीय वेधशालाएँ, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जियोमैग्नेटिज़्म एंड एरोनॉमी, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सीस्मोलॉजी एंड फिजिक्स ऑफ द अर्थ इंटीरियर 

मेन्स के लिये:

भारत के संदर्भ में भूकंपीय वेधशालाओं की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि भारत में वर्ष 2021 के अंत तक 35 और भूकंप वेधशालाएँ तैयार हो जाएंगी तथा वर्ष 2026 तक 100 भूकंप वेधशालाओं को शामिल करने का लक्ष्य है।

  • यह घोषणा इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जियोमैग्नेटिज़्म एंड एरोनॉमी (International Association of Geomagnetism and Aeronomy- IAGA)- इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सीस्मोलॉजी एंड फिजिक्स ऑफ द अर्थ इंटीरियर (International Association of Seismology and Physics of the Earth Interior- IASPEI) की संयुक्त वैज्ञानिक सभा के उद्घाटन समारोह में की गई।

प्रमुख बिंदु:

भूकंप वेधशालाओं के बारे में:

  • राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत) देश में भूकंप गतिविधि की निगरानी के लिये भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।
  • वर्तमान में भारत में केवल 115 भूकंप वेधशालाएँ हैं।
    • भूकंप वेधशाला का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू भूकंप के समय की सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम होना है।

भूकंप वेधशालाओं की आवश्यकता:

  • भूकंप की घटना मानव शक्ति से परे एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसलिये बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है।
  • इसके अलावा भारतीय उपमहाद्वीप को भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात और सुनामी के मामले में विश्व के सबसे अधिक आपदा संभावित क्षेत्रों में से एक माना जाता है।

IAGA और IASPEI के संदर्भ में:

  • IAGA पृथ्वी के चुंबकत्व और वायु विज्ञान, सौरमंडल के अन्य निकायों तथा अंतर्ग्रहीय माध्यम एवं इन निकायों के साथ पारस्परिक विचार-विमर्श हेतु अनुसंधान में शामिल होने के लिये वैज्ञानिकों का स्वागत करता है।
  • IASPEI भूकंप और अन्य भूकंपीय स्रोतों, भूकंपीय तरंगों के प्रसार तथा पृथ्वी की आंतरिक संरचना, गुणों एवं प्रक्रियाओं के अध्ययन को बढ़ावा देता है।
  • यह इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोडेसी एंड जियोफिजिक्स (IUGG) के तहत अर्द्ध-स्वायत्त संघ है।
    • IUGG वर्ष 1919 में स्थापित एक गैर-सरकारी, वैज्ञानिक संगठन है।
    • इसका सचिवालय जर्मनी के पॉट्सडैम में है।
    • IUGG अंतरिक्ष में पृथ्वी (भौतिक, रासायनिक और गणितीय) और इसके पर्यावरण के वैज्ञानिक अध्ययन के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार तथा समन्वय के लिये समर्पित है। इन अध्ययनों में शामिल हैं:
      • पृथ्वी का आकार।
      • गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र।
      • पृथ्वी की आंतरिक संरचना, संयोजन और विवर्तनिकी।
      • भूकंप और लोचदार तरंग प्रसार।
      • मैग्मा, ज्वालामुखी और चट्टान निर्माण की उत्पत्ति।
      • बर्फ और बर्फ सहित जल विज्ञान चक्र।
      • महासागरों के सभी पहलू, वायुमंडल, आयनोस्फीयर, मैग्नेटोस्फीयर और सौर-स्थलीय संबंध।
      • चंद्रमा और अन्य ग्रहों से संबंधित समरूप समस्याएँ।
  • IAGA और IASPEI की संयुक्त वैज्ञानिक सभा समाज को विज्ञान का प्रतिपादन करने से संबंधित मुद्दों पर कार्य करने के लिये वैश्विक समुदाय के अधिक-से-अधिक शोधकर्त्ताओं और चिकित्सकों को बोर्ड में शामिल करने हेतु उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी।

भारत में भूकंप:

  • भूकंप में प्रायः पृथ्वी की सतह और उस पर मौजूद संरचनाओं में कंपन शामिल होता है।
  • ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ के अनुसार, यह गतिमान लिथोस्फेरिक या क्रस्टल प्लेटों के बीच संचरित दबाव के मुक्त होने के कारण होता है।
  • पृथ्वी की क्रस्ट 7 बड़ी प्लेटों में विभाजित है, जो 50 मील तक मोटी हैं।
  • ये बड़ी प्लेटें धीरे-धीरे और स्थिर रूप से पृथ्वी के आंतरिक भाग तथा कई छोटी प्लेटों के बीच गति करती हैं। भूकंप मूल रूप से टेक्टोनिक होते हैं यानी ज़मीन में कंपन के लिये मुख्य रूप से गतिमान प्लेटें उत्तरदायी होती हैं।
  • भारत में अधिकांश भूकंप हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में देखे जाते हैं।
    • हालाँकि शहरीकरण, व्यापक अवैज्ञानिक निर्माण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों में भी भूकंपों की संख्या में वृद्धि हुई है।
  • भूकंपीय ज़ोनिंग मैपिंग के अनुसार, भूकंप क्षेत्रों को भूकंप की तीव्रता के आकलन के आधार पर विभाजित किया जाता है।
    • इस लिहाज से भारत को 4 ज़ोन में बाँटा गया है: ज़ोन 2, ज़ोन 3, ज़ोन 4 और ज़ोन 5।
    • इसमें ज़ोन 2 सबसे ‘कम खतरनाक’ है, वहीं ज़ोन 5 सबसे अधिक ‘खतरनाक’ है।
    • भारत का लगभग 59% भूमि क्षेत्र मध्यम से गंभीर भूकंपीय खतरे की चेतावनी के अधीन है, जिसका अर्थ है कि भारत 7 और उससे अधिक तीव्रता के भूकंपों के लिये प्रवण है।
  • भारतीय उपमहाद्वीप में आए कुछ प्रमुख भूकंप: शिलांग (1897), बिहार-नेपाल (1934), असम (1950), भुज (2001), कश्मीर (2005), सिक्किम (2011) और मणिपुर (2016)।

Seismic-Zone

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नई एचआईवी वैक्सीन के लिये मानव परीक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

एचआईवी, mRNA वैक्सीन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, mRNA-1644 

मेन्स के लिये:

एचआईवी, रोकथाम और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

मैसाचुसेट्स स्थित अमेरिकी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी मॉडर्ना, एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) के लिये mRNA वैक्सीन (mRNA-1644) हेतु मानव परीक्षण शुरू करेगी।

  • कोविड-19 के साथ mRNA वैक्सीन की सफलता के बाद एचआईवी के लिये एमआरएनए वैक्सीन का यह पहला परीक्षण है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार, वर्ष 2020 तक लगभग 37.7 मिलियन लोग एचआईवी पॉज़िटिव थे।

प्रमुख बिंदु

mRNA वैक्सीन बनाम पारंपरिक टीके:

  • टीके रोग पैदा करने वाले कारकों जैसे- वायरस या बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित प्रोटीन को पहचानने और प्रतिक्रिया करने के लिये शरीर को प्रशिक्षित करने का काम करते हैं।
  • पारंपरिक टीके रोग पैदा करने वाले कारक या उसके द्वारा पैदा होने वाले प्रोटीन की छोटी या निष्क्रिय खुराक से बने होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रतिक्रिया देने के लिये उत्तेजित करने हेतु शरीर में डाले जाते हैं।
  • mRNA टीके शरीर को कुछ वायरल प्रोटीनों (Viral Protein) का उत्पादन करने के लिये प्रेरित करते हैं।
    • ये mRNA या मैसेंजर आरएनए का उपयोग करके काम करते हैं, जो अणु हैं  और डीएनए निर्देशों को क्रियाशील बनाते हैं । एक सेल के अंदर mRNA का उपयोग प्रोटीन बनाने के लिये नमूना के रूप में किया जाता है।

एचआईवी के लिये mRNA वैक्सीन:

  • इस वैक्सीन को शरीर की कोशिकाओं को एचआईवी वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करके कोविड-19 वैक्सीन के समान काम करने की उम्मीद है।
  • बी कोशिकाओं (B Cell) को उत्तेजित करने का बड़ा उद्देश्य व्यापक रूप से बेअसर करने वाले एंटीबॉडी (bnAbs) को उत्पन्न करना है जो विशेष रक्त प्रोटीन होते हैं और एचआईवी के सतही प्रोटीन से जुड़ते हैं तथा इन्हें निष्क्रिय कर देते हैं।
    • बी कोशिकाएँ एंटीबॉडी नामक वाई-आकार के प्रोटीन बनाकर बैक्टीरिया और वायरस से लड़ती हैं, जो प्रत्येक रोगजनक के लिये विशिष्ट होते हैं और हमलावर कोशिका को रोकने में सक्षम होते हैं तथा इसे अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा विनाश के लिये चिह्नित करते हैं।
  • पिछले दशक में एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों से नए bnAbs की पहचान करने में प्रगति हुई है जिन्हें एचआईवी के बाहरी आवरण में विशिष्ट जगहों को लक्षित करने के लिये देखा गया था।
  • लैब-आधारित विश्लेषण और जानवरों पर परीक्षणों ने इस समझ में सुधार किया है कि इन जगहों के ज्ञान का उपयोग इम्युनोजेन्स बनाने के लिये कैसे किया जा सकता है।
    • इम्युनोजेन ऐसे अणु को संदर्भित करता है जो जीव की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम होता है, जबकि एंटीजन उस अणु को संदर्भित करता है जो उस प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के उत्पाद के लिये बाध्य करने में सक्षम होता है।
    • अतः एक प्रतिरक्षी (Antigen) अनिवार्य रूप से एक प्रतिजन (Immunogen) है, लेकिन एक प्रतिजन आवश्यक रूप से एक प्रतिरक्षी नहीं हो सकता है।

अपेक्षित लाभ:

  • आरएनए-आधारित टीकाकरण को एक महत्त्वपूर्ण विकल्प माना जाता है, क्योंकि उनमें एक जीवित वायरस का उपयोग शामिल नहीं होता है और इसे अपेक्षाकृत आसानी से विकसित किया जा सकता है तथा इसे प्रयोग करना भी काफी आसान व सुरक्षित होता है।

चुनौतियाँ

  • पहुँच संबंधी मुद्दे
    • ‘मॉडर्ना’ और ‘फाइज़र’ के टीकों के अनुभव से पता चलता है कि जिन क्षेत्रों में उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है, वहाँ उनकी उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है।
      • एचआईवी से संक्रमित दो-तिहाई से अधिक लोग अफ्रीका में मौजूद हैं। एचआईवी महामारी को नियंत्रित करने में किसी भी सफलता के लिये यह आवश्यक है कि वहाँ संचरण की दरों में भारी कटौती की जाए।
  • तापमान के प्रति संवेदनशील
    • mRNA टीके भंडारण के दौरान तापमान के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं और इस प्रकार की सुविधाएँ विकसित करना विकासशील देशों के लिये एक चुनौती है।
  • एचआईवी का उत्परिवर्तन:
    • एचआईवी कई रूपों में उत्परिवर्तित हो गया है, ऐसे में mRNA दृष्टिकोण की सफलता के निश्चित प्रमाण प्राप्त करने में कई वर्ष लग सकते हैं।

ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV)

  • एचआईवी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में CD-4, जो कि एक प्रकार का व्हाइट ब्लड सेल (T-Cells) होता है, पर हमला करता है। 
    • टी-कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ होती हैं जो कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाने के लिये शरीर में घूमती रहती हैं।
  • शरीर में प्रवेश करने के बाद एचआईवी वायरस की संख्या में तीव्रता से वृद्धि होती है और यह CD-4 कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, इस प्रकार यह मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। एक बार जब यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है तो इसे कभी नहीं हटाया जा सकता है।
  • एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति की CD-4 की संख्या में काफी कमी आ जाती है। एक स्वस्थ शरीर में CD-4 की संख्या 500-1600 के बीच होती है, लेकिन एक संक्रमित शरीर में यह संख्या 200 तक कम हो सकती है।
  • कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एक व्यक्ति में संक्रमण और कैंसर की संभावना अधिक रहती है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के लिये मामूली चोट या बीमारी से भी उबरना मुश्किल हो जाता है।
  • समुचित उपचार से एचआईवी के गंभीर प्रभाव को रोका जा सकता है।
  • संबंधित पहलें: एचआईवी एवं एड्स रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, 2017’, ‘प्रोजेक्ट सनराइज़’, ‘90-90-90’, ‘द रेड रिबन’, ‘ग्लोबल फंड टू फाइट एड्स, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया’ (GFATM)।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

दिल्ली में 'स्मॉग टॉवर'

प्रिलिम्स के लिये

स्मॉग टॉवर और उसकी कार्यप्रणाली

मेन्स के लिये

स्मॉग टॉवर का महत्त्व और इसकी आवश्यकता, प्रदूषण रोकने के संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कनॉट प्लेस में देश के पहले 'स्मॉग टॉवर' का उद्घाटन किया है।

  • इसका उद्घाटन राष्ट्रीय राजधानी में किसानों द्वारा फसल अपशिष्ट (पराली) को जलाने के कारण होने वाले प्रदूषण से निपटने हेतु किया गया है।

Smog-Tower

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (CPCB) और दिल्ली सरकार को वायु प्रदूषण से निपटने के लिये स्मॉग टॉवर स्थापित करने हेतु योजना बनाने का निर्देश दिया था।
  • इसके पश्चात आईआईटी-बॉम्बे ने CPCB के समक्ष टॉवरों के लिये एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
  • जनवरी 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अप्रैल तक दो टॉवर लगाए जाएँ।
  • कनॉट प्लेस (CP) में स्मॉग टॉवर इस पायलट परियोजना के तहत स्थापित पहला टॉवर है। पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार सीपीसीबी के सहयोग से दूसरा टॉवर स्थापित किया जा रहा है।

स्मॉग टॉवर

  • स्मॉग टॉवर का आशय व्यापक पैमाने पर एयर प्यूरीफायर के रूप में काम करने के लिये डिज़ाइन की गई संरचनाओं से है।
  • इसमें प्रायः एयर फिल्टर की कई परतें मौजूद होती हैं, जो प्रदूषित हवा को साफ करते हैं।
  • चीन में दुनिया का सबसे बड़ा स्मॉग टॉवर मौजूद है।

स्मॉग टॉवर की कार्यप्रणाली

  • यह एक 'डाउनड्राफ्ट एयर क्लीनिंग सिस्टम’ का उपयोग करता है, जहाँ प्रदूषित हवा को तकरीबन 24 मीटर की ऊँचाई से प्राप्त किया जाता है और फिल्टर की गई हवा को टॉवर के नीचे, ज़मीन से लगभग 10 मीटर की ऊँचाई पर छोड़ा जाता है।
    • यह चीन में उपयोग की जाने वाली प्रणाली से अलग है, जहाँ 60 मीटर का स्मॉग टॉवर एक 'अपड्राफ्ट' सिस्टम का उपयोग करता है, जिसमें हवा को ज़मीन के पास से प्राप्त किया जाता है और हीटिंग तथा संवहन द्वारा ऊपर की ओर बढ़ाया जाता है। फिल्टर की गई हवा टॉवर के शीर्ष पर छोड़ी जाती है।

निर्माण:

  • इस टॉवर को टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (TPL) ने आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी- दिल्ली के तकनीकी सहयोग से बनाया है, जो इसके डेटा का विश्लेषण करेगा।
  • इस परियोजना का प्रबंधन सलाहकार राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) इंडिया लिमिटेड है।
  • दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति इस परियोजना की प्रभारी थी।

आवश्यकता:

  • CPCB की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009 से दिल्ली में PM10 की सांद्रता में 258% से 335% की वृद्धि देखी गई है।
  • लेकिन दिल्ली और आसपास के इलाकों में सबसे प्रमुख प्रदूषक PM2.5 है।
    • PM2.5 का अर्थ है सूक्ष्म कण जो शरीर में प्रवेश करते हैं और फेफड़ों तथा श्वसन मार्ग में सूजन को बढ़ावा देते हैं, जिससे कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली सहित हृदय एवं श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा होता है।
  • एक स्विस समूह की रिपोर्ट (जिसने शहरों को उनकी वायु गुणवत्ता के आधार पर अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर के स्तर के आधार पर मापा) के अनुसार, दिल्ली लगातार तीसरी बार वर्ष 2020 में विश्व का सबसे प्रदूषित राजधानी शहर था।

चुनौतियाँ:

  • यह एक छोटे से क्षेत्र में वायु प्रदूषण से तत्काल राहत प्रदान कर सकता है, लेकिन यह महँगा त्वरित समाधान उपाय हैं।
  • इससे 1 किमी. तक की हवा की गुणवत्ता पर असर हो सकता है।
    • हालाँकि दो वर्ष के अध्ययन में आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी-दिल्ली द्वारा वास्तविक प्रभाव का आकलन किया जाएगा, जो यह भी निर्धारित करेगा कि विभिन्न मौसम की स्थितियों में टॉवर कैसे काम करता है तथा हवा के प्रवाह के साथ PM2.5 का स्तर कैसे बदलता है।

दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये उठाए गए अन्य कदम:

  • टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है। 
  • BS-VI वाहनों की शुरुआत इलेक्ट्रिक वाहनों (EV),  ऑड-ईवन को एक आपातकालीन उपाय के रूप में वाहनों के प्रदूषण को कम करने के लिये पूर्वी और पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के निर्माण हेतु प्रेरित करती है।
  • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) का कार्यान्वयन। यह हवा की गुणवत्ता में गिरावट के रूप में चरणों में शुरू होने वाले प्रतिबंधों का एक समूह है, जो अक्तूबर-नवंबर की अवधि के लिये विशिष्ट है।
  • कम उत्सर्जन वाले पटाखों (ग्रीन क्रैकर्स) का प्रयोग।
  • CPCB के तत्त्वावधान में सार्वजनिक सूचना के लिये राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का विकास।

आगे की राह

  • चूँकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो इसकी दक्षता को साबित करता है, सरकारों को इसके बजाय मूल कारणों को संबोधित करना चाहिये और वायु प्रदूषण से निपटने व उत्सर्जन को कम करने के लिये अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिये।
  • यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण होगा यदि अन्य शहर किसी दावे का पालन करने और इन महँगे, अप्रभावी टावरों को स्थापित करने का निर्णय लेते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

शहरी सहकारी बैंकों के लिये चार स्तरीय संरचना

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय रिज़र्व बैंक, शहरी सहकारी बैंक, जोखिम भारित संपत्ति अनुपात, अम्ब्रेला संगठन, पर्यवेक्षी कार्रवाई ढाँचा, बेसल III

मेन्स के लिये

शहरी सहकारी बैंक की अवधारणा और इसमें सुधार की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने शहरी सहकारी बैंकों (UCB) के लिये एक चार स्तरीय संरचना का सुझाव दिया है।

  • केंद्र सरकार ने जून 2020 में सभी शहरी और बहु-राज्य सहकारी बैंकों को RBI की सीधी निगरानी में लाने के लिये एक अध्यादेश को मंज़ूरी दी थी।
  • RBI ने जनवरी 2020 में UCB के लिये पर्यवेक्षी कार्रवाई ढाँचा (SAF) को संशोधित किया।

प्रमुख बिंदु

शहरी सहकारी बैंकों का वर्गीकरण:

  • बैंकों की सहकारिता, पूंजी की उपलब्धता और अन्य कारकों के आधार पर शहरी सहकारी बैंकों को नियामक उद्देश्यों के लिये चार स्तरों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • टियर 1: सभी यूनिट यूसीबी और वेतन पाने वाले यूसीबी (जमा आकार के बावजूद) तथा अन्य सभी यूसीबी जिनके पास 100 करोड़ रुपए तक जमा हैं।
    • टियर 2: 100 करोड़ रुपए से 1,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले यूसीबी।
    • टियर 3: 1,000 करोड़ रुपए से 10,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले यूसीबी।
    • टियर 4: 10,000 करोड़ रुपए से अधिक की जमा राशि वाले यूसीबी।
  • इनके लिये जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (Capital to Risk-Weighted Assets Ratio) हेतु न्यूनतम पूंजी 9% से 15% तक और टियर 4 शहरी सहकारी बैंकों के लिये बेसल III निर्धारित मानदंडों में भिन्न हो सकती है।

अम्ब्रेला संगठन:

  • इस समिति ने सहकारी बैंकों की देखरेख के लिये एक अम्ब्रेला संगठन (Umbrella Organisation) स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है तथा सुझाव दिया है कि यदि ये सभी नियामक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं तो इन्हें और शाखाएँ खोलने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • अम्ब्रेला संगठन आर्थिक रूप से मज़बूत होना चाहिये और एक पेशेवर बोर्ड तथा वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा अच्छी तरह से शासित होना चाहिये।

पुनर्निर्माण:

  • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत आरबीआई अनिवार्य समामेलन या यूसीबी के पुनर्निर्माण की योजना तैयार कर सकता है, जैसे बैंकिंग कंपनियों का निर्माण करता है।

पर्यवेक्षी कार्रवाई ढाँचा (SAF):

  • SAF को मौजूदा ट्रिपल संकेतकों के बजाय दोहरे संकेतक दृष्टिकोण का पालन करना चाहिये यानी इसे नेट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स और CRAR के माध्यम से मापी गई संपत्ति की गुणवत्ता और पूंजी पर विचार करना चाहिये।
    • SAF का उद्देश्य किसी बैंक के वित्तीय तनाव के लिये समयबद्ध उपाय खोजना होना चाहिये।
  • यदि कोई ‘शहरी विकास बैंक’ लंबे समय तक SAF के सख्त चरण में रहता है, तो इसका उसके संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और इसकी वित्तीय स्थिति और खराब हो सकती है।

सुधार की आवश्यकता:

  • प्रतिबंधात्मक नीतियाँ:
    • 'पूंजी' सहित संरचनात्मक मुद्दों और वैधानिक ढाँचे में अंतराल के कारण नियामक सुगमता के वांछित स्तर की कमी के कारण सहकारी बैंकों के लिये नियामक नीतियाँ उनके व्यवसाय संचालन के संबंध में प्रतिबंधात्मक रही हैं, जो काफी हद तक उनके विकास को प्रभावित कर रहा है।
  • वित्तीय समावेशन
    • वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने में इस क्षेत्र के महत्त्व तथा इसके ग्राहक आधार की बड़ी संख्या को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस क्षेत्र के नियमन हेतु अपनाई गई रणनीतियों की व्यापक समीक्षा की जाए ताकि इसके लचीलेपन को बढ़ाया जा सके और इसे सतत् एवं स्थायी विकास के लिये एक सक्षम वातावरण प्रदान किया जा सके।

सहकारी बैंक

परिचय:

  • सहकारी बैंक, जो वाणिज्यिक बैंकों से अलग हैं, सहकारी ऋण समितियों की अवधारणा से पैदा हुए थे, जहाँ एक समुदाय, समूह के सदस्य एक-दूसरे को अनुकूल शर्तों पर ऋण देने के लिये एक साथ थे।
  • सहकारी बैंकों को उनके परिचालन क्षेत्र के आधार पर आमतौर पर शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों में वर्गीकृत किया गया है।
  • वे संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत हैं।
  • सहकारी बैंक निम्नलिखित द्वारा शासित होते हैं:
    • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
    • बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1955

सहकारी बैंकों की विशेषताएँ:

  • ग्राहक के स्वामित्व वाली संस्थाएँ: सहकारी बैंक के सदस्य बैंक के ग्राहक और मालिक दोनों होते हैं।
  • डेमोक्रेटिक मेंबर कंट्रोल: इन बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण सदस्यों के पास होता है, जो लोकतांत्रिक तरीके से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं। "एक व्यक्ति, एक वोट" के सहकारी सिद्धांत के अनुसार, सदस्यों के पास आमतौर पर समान मतदान अधिकार होते हैं।
  • लाभ आवंटन: वार्षिक लाभ, लाभ या अधिशेष का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आमतौर पर भंडार बनाने के लिये आवंटित किया जाता है और इस लाभ का एक हिस्सा सहकारी सदस्यों को भी कानूनी तथा वैधानिक सीमाओं के साथ वितरित किया जा सकता है।
  • वित्तीय समावेशन: इन्होंने बैंक रहित ग्रामीण जनता के वित्तीय समावेशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये ग्रामीण क्षेत्रों में जनता को सस्ता ऋण प्रदान करते हैं।

बेसल III मानदंड

  • परिचय:
    • बेसल III मानक बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। ये मानक बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों की एक शृंखला प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा बैंकों के विनियमों में सुधार, जोखिम प्रबंधन और बैंकों का पर्यवेक्षण किया जाता है।
    • BCBS सदस्य समिति द्वारा स्थापित समय-सीमा के भीतर अपने अधिकार क्षेत्र में मानकों को लागू करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • तीन स्तंभ: बेसल 3 मानक तीन स्तंभों पर आधारित हैं:
    • स्तंभ 1: वित्तीय और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले उतार-चढ़ाव को अवशोषित करने के लिये बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता में सुधार करना।
    • स्तंभ 2: बैंकिंग क्षेत्र की जोखिम प्रबंधन क्षमता और शासन में सुधार करना।
    • स्तंभ 3: बैंकों की पारदर्शिता और प्रकटीकरण को मज़बूत करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2