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भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020

  • 30 Sep 2020
  • 14 min read

संदर्भ: 

हाल ही में भारतीय संसद से ‘बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020’ को पारित कर दिया गया है। इस विधेयक में बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 को संशोधित करने के प्रस्ताव किया गया है। इस नए विधेयक का उद्देश्य सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार करना है। इस विधेयक के माध्यम से सहकारी बैंकों की निगरानी हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की शक्तियों में वृद्धि की गई हैं। यह विधेयक जून 2020 में प्रख्यापित बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश को प्रतिस्थापित करेगा।     

प्रमुख बिंदु:  

  • गौरतलब है कि सहकारी बैंकों में अनियमितता के मामलों में वृद्धि को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में  बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश जारी किया गया था। 
  • ‘बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक 2020’ के माध्यम से अन्य व्यावसायिक बैंकों पर लागू होने वाले कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को सहकारी बैंकों पर भी लागू किया जाएगा। 
  • इस विधेयक के तहत प्रस्तावित संशोधन प्राथमिक कृषि ऋण समितियों या ऐसी किसी भी संस्था पर लागू नहीं होगा अपने नाम या अपने व्यवसाय के संबंध में ‘बैंक’, ‘बैंकर’ या ’बैंकिंग’ शब्द का उपयोग नहीं करती है। 
  • ध्यातव्य है कि इससे पहले भी ‘बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1965’ के माध्यम से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली की निगरानी के संदर्भ में RBI को कुछ शक्तियाँ प्रदान की गई थी।
  • हालाँकि इस अधिनियम में RBI सहकारी बैंकों के संदर्भ में वे सभी अधिकार नहीं प्रदान किये गए जो उसे सामान्य व्यावसायिक बैंकों के लिये प्राप्त हैं। 

सहकारी बैंक:  

  • सहकारी बैंक ऐसी सहकारी समितियाँ हैं, जिनका मुख्य कारोबार बैंकिंग होता है। सहकारी बैंकों के सदस्य इसके ग्राहक होते है और इन समितियों पर उनका साझा स्वामित्व होता है। ये सदस्य ही बैंक को प्रमोट, नियंत्रित और प्रबंधित करते हैं। 
  • सहकारी बैंकों का पंजीकरण सहकारी समिति अधिनियम के तहत किया जाता है।   
  • RBI द्वारा ‘बैंकिंग विनियम अधिनियम 1949’ और  ‘बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1955’ के तहत सहकारी बैंकों को विनियमित किया जाता है। 
  • एक रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 1,500 सहकारी बैंक हैं, जिनमें से 75% महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में हैं।
  • देश के विभिन्न सहकारी बैंकों में लोगों द्वारा लगभग 5 लाख करोड़ रुपए जमा किये गए है साथ ही सहकारी बैंकों द्वारा लगभग 3 लाख करोड़ रुपए  का ऋण प्रदान किया जाता है।
    • ध्यातव्य है कि सहकारी बैंकों द्वारा जारी लगभग 90% ऋण 5 लाख रुपए से कम राशि का है।
  • शहरी सहकारी बैंक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के लिये वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं।  

सुधार की आवश्यकता क्यों?

  • सहकारी बैंकों की वर्तमान चुनौतियों का प्रमुख कारण पेशेवर प्रबंधन में कमी, पूंजी का अभाव और कमज़ोर निगरानी प्रणाली है। 
  • RBI द्वारा सामान्य व्यावसायिक बैंकों के लिये निर्धारित कई आवश्यक प्रावधान सहकारी बैंकों पर नहीं लागू होते जिसके कारण सहकारी बैंकों में वित्तीय गड़बड़ियों की सही समय पर निगरानी नहीं हो पाती है।
    • उदाहरण के लिये व्यावसायिक बैंकों के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिये आवेदक को दिवालिया नहीं होना चाहिये और न ही उसे किसी न्यायालय से अपराधी घोषित किया गया हो. इसके साथ ही कुछ मामलों में RBI को किसी व्यावसायिक बैंक के अध्यक्ष को हटाने का भी अधिकार है जबकि सहकारी बैंकों पर ये प्रावधान नहीं लागू होते।
  • स्वतंत्रता के पश्चात संघीय व्यवस्था के तहत देश में बैंकों को केंद्र सरकार के अधिकार में रखा गया था जबकि सहकारी संस्थाओं की स्थापना, प्रबंधन आदि को राज्य के अधिकार क्षेत्र में रखा गया।        
  • परंतु सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी समस्याओं के कारण पिछले कुछ वर्षों में सहकारी बैंकों में वित्तीय गड़बड़ी के मामलों में वृद्धि देखने को मिली थी। 
  • सहकारी बैंकों की स्थापना का उद्देश्य आर्थिक लाभ को प्राथमिकता दिए बगैर जन भागीदारी के द्वारा लोगों की ज़रूरतों के अनुरूप बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना था, परंतु पिछले कुछ वर्षों में सहकारी बैंकों का कारोबार में भारी वृद्धि हुई है।
  • केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, वर्तमान में देश लगभग 277 शहरी सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति कमज़ोर है, जबकि 47 सहकारी बैंकों में निवल संपत्तियाँ ऋणात्मक थी।
  • इसके साथ ही लगभग 328 शहरी सहकारी बैंकों में सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non- Performing Assets- NPA) का अनुपात 15% से अधिक हो गया है।      

दोहरी नियंत्रण की चुनौती:  

  • बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1965’ के तहत सहकारी बैंकों विनियमन की दोहरी प्रणाली की व्यवस्था दी गई है।
  • इसके तहत सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को बैंकों के निगमन, पंजीकरण, प्रबंधन, विलय, परिसमापन आदि का अधिकार दिया गया जबकि RBI को सहकारी बैंकों की बैंकिंग प्रणाली (लाइसेंसिंग, ब्याज दर का निर्धारण आदि) की निगरानी का कार्य दिया गया था।

प्रमुख सुधार:  

  • प्रबंधन से जुड़े सुधार: 
    • इस विधेयक के माध्यम से RBI को सहकारी बैंकों के अध्यक्ष की नियुक्ति की शर्तें और योग्यता निर्धारित करने का अधिकार होगा।
    • RBI सहकारी बैंकों को ऐसे अध्यक्ष को हटा सकता है जो उसके मापदंडों के अनुरूप उपयुक्त नहीं है तथा उसके स्थान पर नए अध्यक्ष की नियुक्ति भी कर सकता है।
    • इसके साथ ही RBI योग्य सदस्यों की पर्याप्त संख्या को सुनिश्चित करने के लिये निदेशक मंडल के पुनर्गठन का निर्देश भी दे सकता है।   
    • यह विधेयक RBI द्वारा अधिस्थगन (Moratorium) लगाए बगैर बैंक के पुनर्गठन और एकीकरण की प्रक्रिया शुरू कर करने का अधिकार प्रदान करता है।    
    • इस विधेयक के प्रावधानों के तहत RBI को राज्य सरकार की सलाह पर किसी सहकारी बैंक के निदेशक मंडल को ‘सुपरसीड’ (Supersede) कर सकता है।   
  • शेयर और प्रतिभूति से जुड़े सुधार:
    • इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, सहकारी बैंकों को अपने सदस्यों या संचालन क्षेत्र में किसी अन्य व्यक्ति को इक्विटी या विशेष शेयर जारी करने का अधिकार होगा।  
    • साथ ही बैंक ऐसे व्यक्तियों को दस या अधिक वर्षों की परिपक्वता अवधि के साथ डिबेंचर, बॉन्ड या प्रतिभूतियाँ भी जारी कर सकते हैं। हालांकि, इसके लिये RBI से पूर्व अनुमोदन अनिवार्य होगा। 
    • विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, शेयर कैपिटल को सरेंडर करने के बदले सदस्य भुगतान की मांग नहीं कर सकेंगे।  

विधेयक के लाभ:       

  • इस विधेयक के एक कानून के रूप में लागू होने के बाद RBI को सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली के बारे में बेहतर जानकारी उपलब्ध हो पाएगी जिससे RBI को इन बैंकों के विनियमन में आसानी होगी।
  • इस विधेयक के लागू होने के बाद सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल में शामिल 51% सदस्यों के पास बैंकिंग, विधि, अर्थशास्त्र आदि क्षेत्रों में विशेष अनुभव होना अनिवार्य हो जाएगा, जिससे सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार होगा।
  • इन सुधारों के माध्यम से सहकारी बैंक शेयर और ऋण-पत्र के माध्यम से अधिक पूँजी की व्यवस्था कर सकेंगे।
  • इस विधेयक के माध्यम से RBI को सहकारी बैंकों के ऑडिट (Audit) से जुड़े अधिकार भी दे दिए जाएंगे जिससे सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।
  • इस विधेयक के माध्यम से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में आवश्यक सुधार किये जा सकेंगे जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी और जनता में सहकारी बैंकों के प्रति विश्वास बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।  

चुनौतियाँ:  

  • इस विधेयक में प्रस्तावित सुधारों के पहले भी सहकारी बैंकों की बैंकिंग गतिविधियों की निगरानी का दायित्व RBI के अधिकार क्षेत्र (शहरी बैंक विभाग के माध्यम से) में होने के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में इन बैंकों में भारी वित्तीय गड़बड़ियाँ देखने को मिली है। 
  • विधेयक में प्रस्तावित सुधारों के साथ RBI के निगरानी तंत्र में भी आवश्यक सुधारों की आवश्यकता होगी।   
  • सहकारी बैंकों की निगरानी के संदर्भ में RBI की शक्तियों में वृद्धि से RBI पर कार्य का दबाव बढ़ेगा।

समाधान:

  • सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये सहकारी बैंकों की वित्तीय गतिविधियों की नियमित समीक्षा की जानी चाहिये।
  • RBI की शक्ति में वृद्धि के साथ सहकारी बैंकों के संदर्भ में RBI की निगरानी प्रणाली में आवश्यक सुधार किये जाने चाहिये, जिससे ऐसे मामलों को पहले ही रोका जा सके। 
  • सहकारी बैंक देश में पारंपरिक बैंकों की सेवाओं से वंचित लोगों (मुख्य रूप से निम्न आय वर्ग के बीच) तक बैंकिंग सेवाएँ पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ऐसे में सहकारी बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने और पेशेवर दृष्टिकोण अपनाते हुए इनकी कार्य-क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिये।  

अभ्यास प्रश्न: सहकारी बैंकों में वर्तमान चुनौतियों के मुख्य कारणों का उल्लेख करते हुए इन्हें दूर करने में ‘बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020’ की भूमिका की समीक्षा कीजिये

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