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डेली न्यूज़

  • 16 Feb, 2024
  • 107 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

किसान आंदोलन 2.0 और MSP

प्रिलिम्स के लिये:

न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसान आंदोलन 2.0 और MSP, भूमि अधिग्रहण अधिनियम,2013, विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020, डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

किसान आंदोलन 2.0 और MSP, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों का संग्रहण, विकास, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price - MSP) के लिये कानूनी गारंटी की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान 'दिल्ली चलो' विरोध प्रदर्शन में दिल्ली की ओर मार्च कर रहे हैं।

किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं?

  • किसानों के 12 सूत्रीय एजेंडे में मुख्य मांग सभी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिये एक कानून और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन (मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथन) आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसल की कीमतों का निर्धारण करना है।
    • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को  MSP को उत्पादन की भारित औसत लागत से कम-से-कम 50% अधिक बढ़ाना चाहिये। इसे C2+ 50% फॉर्मूला के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसमें किसानों को 50% रिटर्न देने के लिये पूंजी की अनुमानित लागत और भूमि पर किराया (जिसे 'सी2' कहा जाता है) शामिल है।
      • भूमि, श्रम और पूंजी जैसे संसाधनों के उपयोग की अवसर लागत को ध्यान में रखने के लिये अध्यारोपित लागत (imputed cost) का उपयोग किया जाता है।
      • पूंजी की अध्यारोपित लागत उस ब्याज या रिटर्न को दर्शाती है जो अर्जित किया जा सकता था यदि कृषि में निवेश की गई पूंजी को कहीं और निवेश किया जाता।
  • अन्य मांगें:
    • किसानों और मज़दूरों की पूर्ण क़र्ज़ माफी;
    • भूमि अधिग्रहण अधिनियम,2013 का कार्यान्वयन, जिसमें अधिग्रहण से पहले किसानों से लिखित सहमति और कलेक्टर दर से चार गुना मुआवज़ा देने का प्रावधान है।
      • संग्राहक दर (collector rate) वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर किसी संपत्ति को खरीदते या बेचते समय पंजीकृत किया जा सकता है। वे संपत्तियों के कम मूल्यांकन और कर चोरी को रोकने के लिये एक संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
    • अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों को सज़ा;
    • भारत को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization - WTO) से बाहर हो जाना चाहिये और सभी मुक्त व्यापार समझौतों (free trade agreements - FTAs) पर रोक लगा देनी चाहिये।
    • किसानों और खेतिहर मज़दूरों के लिये पेंशन।
    • वर्ष 2020 में दिल्ली विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के लिये मुआवज़ा, जिसमें परिवार के एक सदस्य के लिये नौकरी भी शामिल है।

सरकार की प्रतिक्रिया क्या है?

  • नवंबर 2021 में भारत सरकार ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के बाद MSP पर एक समिति बनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य MSP पर चर्चा करना, ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देना और फसल पैटर्न पर निर्णय लेना था। इस समिति का गठन जुलाई 2022 में किया गया था और इसने अब तक कोई रिपोर्ट नहीं दी है।
  • कैबिनेट मंत्रियों और किसान संघ के नेताओं के बीच हाल ही में हुई बैठक के दौरान सरकार ने कृषि, ग्रामीण तथा पशुपालन मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के साथ एक नई समिति बनाने की पेशकश की
  • यह समिति किसानों की सभी फसलों के लिये MSP की मांग का समाधान करेगी। सरकार ने वादा किया कि यह नई समिति नियमित रूप से बैठक करेगी और निर्धारित समय सीमा के भीतर काम करेगी।

MSP के कानून में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • जबरन खरीद (Forced Procurement): 
    • सरकार को MSP पर सभी उपज खरीदने का आदेश देने से अत्यधिक उत्पादन हो सकता है, जिससे संसाधनों की बर्बादी और भंडारण की समस्या हो सकती है।
    • यह फसल पैटर्न को भी विकृत(distort) कर सकता है क्योंकि किसान अन्य फसलों की तुलना में MSP वाली फसलों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे जैवविविधता और मिट्टी के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
    • यदि सरकार को उपज खरीदनी पड़ती है क्योंकि MSP की पेशकश करने वाला कोई खरीददार नहीं है, तो उसके पास बड़ी मात्रा में भंडारण करने और बेचने के लिये संसाधन नहीं हैं।
  • किसानों का आपसी भेदभाव (Discrimination Among Farmers): 
    • ऐसा कानून समर्थित फसलें उगाने वाले किसानों और अन्य फसलें उगाने वाले किसानों के बीच असमानता पैदा कर सकता है।
    • बिना समर्थन वाली फसलें उगाने वाले किसानों को बाज़ार पहुँच और सरकारी समर्थन के मामले में नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
  • व्यापारियों का दबाव (Pressure From Traders):
    • फसल कटाई के दौरान, कृषि उपज की कीमतें आमतौर पर सबसे कम होती हैं, जिससे निजी व्यापारियों को फायदा होता है जो इस समय खरीदारी करते हैं। इस वजह से, निजी व्यापारी MSP के किसी भी कानूनी आश्वासन का विरोध करते हैं।
  • वित्तीय बोझ (financial burden):
    • सभी फसलों को MSP पर खरीदने की बाध्यता के कारण बकाया भुगतान और राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • सामाजिक निहितार्थ (Societal Implications): 
    • विकृत फसल पैटर्न और अत्यधिक खरीद के व्यापक सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं, जो खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता तथा समग्र आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।

MSP को कानूनी रूप देने के बजाय किसानों की आय की रक्षा के लिये क्या पहल की जा सकती है?

  • विशेषज्ञ केवल MSP पर निर्भर रहने के बजाय किसानों को सीधे पैसा देने का सुझाव देते हैं। इस तरह, किसानों को स्थिर आय मिलती है, चाहे बाज़ार कैसा भी हो।
    • इसका संबंध कुछ फसलों के लिये कीमतों की गारंटी देने के बजाय किसानों के पास पर्याप्त पैसा नहीं होने की बड़ी समस्या को ठीक करने से है।
  • प्रत्यक्ष आय सहायता को लागू करने में विभिन्न रणनीतियाँ शामिल हो सकती हैं, जैसे कि:
    • प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण: किसानों को उनकी आय बढ़ाने और वित्तीय तनाव कम करने के लिये सीधे नकद भुगतान प्रदान करना।
      • सरकार पूरे मूल्य समर्थन पैकेज और उर्वरक सब्सिडी को शामिल करके तथा राजस्व-तटस्थ तरीके से किसानों को बहुत अधिक पीएम-किसान भुगतान में PM- किसान योजना का विस्तार करने के बारे में सोच सकती है।
      • यह योजना वर्तमान में किसानों को प्रति वर्ष 6000 रुपए सीधे नकद भुगतान प्रदान करती है।
    • बीमा योजनाएँ:
      • ऐसी बीमा योजनाएँ शुरू करना जो फसल की विफलता, मूल्य अस्थिरता या प्रतिकूल मौसमीय स्थिति जैसे कारकों के कारण किसानों की आय के नुकसान की भरपाई करती हैं।
      • कृषि आदानों (inputs), उपकरणों, प्रौद्योगिकी अपनाने और उच्च मूल्य वाली फसलों या वैकल्पिक आजीविका में विविधीकरण का समर्थन करने के लिये सब्सिडी या अनुदान की पेशकश करना।
    • मूल्य-अंतरण भुगतान विकल्प: सरकार MSP और किसानों द्वारा बेची जाने वाली दर के बीच मूल्य अंतर का भुगतान करने पर भी विचार कर सकती है।
      • हरियाणा और मध्य प्रदेश ने भावांतर भरपाई योजना (मूल्य-अंतरण मुआवज़ा योजना) नामक योजना के तहत इस विकल्प को लागू किया है।
      • मध्यप्रदेश की 'भावांतर भुगतान योजना' के तहत किसानों को भुगतान औसत बाज़ार मूल्य और फसलों के MSP के बीच के अंतर को कवर करता है। यदि किसानों को खुले बाज़ार में MSP से नीचे अपनी उपज बेचनी पड़ी, तो उन्हें मुआवज़ा दिया गया।

WTO और FTA से संबंधित किसानों की चिंताएँ क्या हैं?

  • बाज़ार तक पहुँच: 
    • किसानों को चिंता है कि FTA और WTO नियमों से सस्ते कृषि आयात से प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, जिससे घरेलू कीमतें कम हो सकती हैं तथा स्थानीय उत्पादकों को नुकसान हो सकता है।
    • किसान इन समझौतों को छोटे और मध्यम आकार के किसानों के बजाय बहुराष्ट्रीय निगमों तथा बड़े पैमाने के कृषि व्यवसायों के पक्ष में मानते हैं
  • आयातित वस्तुएँ:
    • इन समझौतों से अन्य देशों से सब्सिडी वाले कृषि उत्पादों की आमद होती है, जिससे घरेलू बाज़ार में बाढ़ आ सकती है और स्थानीय रूप से उत्पादित फसलों की कीमतें कम हो सकती हैं।
    • इससे भारतीय किसानों के लिये प्रतिस्पर्धा करना और अपनी आजीविका बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
  • कृषि पद्धतियों पर प्रभाव: 
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते कृषि पद्धतियों पर ऐसे नियम या मानक भी लागू करते हैं जिन्हें भारतीय किसान अपनी पारंपरिक खेती पद्धतियों के साथ बोझिल या असंगत पाते हैं।
    • इसमें कीटनाशकों के उपयोग, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव या पर्यावरण मानकों से संबंधित आवश्यकताएँ शामिल हो सकती हैं।
  • संप्रभुता और स्वायत्तता:
    • कुछ किसान WTO से हटने तथा मुक्त व्यापार समझौतों पर अंकुश लगाने को भारत की कृषि नीतियों पर संपूर्ण प्रभुत्त्व और नियंत्रण हासिल करने के एक तरीके के रूप में देखते हैं।
    • उनका तर्क है कि ऐसे समझौते लघु पैमाने के किसानों के हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियों के कार्यान्वन और नागरिकों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार की क्षमता को सीमित करते हैं।

MSP और किसानों की मांग की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • मौजूदा MSP बनाम कृषकों की मांगे:
    • रबी मार्केटिंग सीज़न 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित गेहूँ का MSP 2,275 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है जो किसानों द्वारा मांगी गई लागत यानी C2 प्लस 50% से अधिक है।
    • हालाँकि MSP A2+FL फॉर्मूला पर आधारित है जिसमें केवल किसानों द्वारा भुगतान की गई लागत शामिल है जिसके परिणामस्वरूप C2 प्लस 50% की तुलना में MSP कम है।
  • CACP की अनुशंसाएँ और कार्यप्रणाली:
    • कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) A2+FL फॉर्मूले के आधार पर MSP निर्धारित करने की अनुशंसा करता है जिसमें केवल भुगतान की गई लागत तथा पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य शामिल होता है।
      • यह C2 फॉर्मूले से भिन्न है जिसमें किसान के स्वामित्व वाली भूमि के किराये और स्थिर पूंजी पर ब्याज़ जैसे अतिरिक्त कारक शामिल हैं।
  • उत्पादन लागत पर रिटर्न:
    • पंजाब में गेहूँ का उत्पादन लागत (C2) 1,503 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,275 रुपए प्रति क्विंटल है।
      • इसका अर्थ यह है कि किसानों को उत्पादन लागत से 772 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिलता है जो उत्पादन लागत पर 51.36% का रिटर्न दर्शाता है।
    • इसी प्रकार पंजाब में धान की उत्पादन लागत पर रिटर्न 49% का था और A2+FL पर यह 152% था।

विश्व भर में किसान विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?

  • दक्षिण अमेरिका:
    • किसान निर्यात के लिये प्रतिकूल विनिमय दर, अधिरोपित उच्च कर, आर्थिक मंदी और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं जैसे कारकों के कारण विरोध कर रहे हैं जिनसे फसलें प्रभावित होती हैं तथा कृषि उत्पादन कम होता है।
      • ब्राज़ील में कृषक वर्ग आनुवंशिक रूप से संशोधित मक्का के परिणामस्वरूप होने वाली अनुचित प्रतिस्पर्द्धा के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
      • वेनेज़ुएला में किसान सहायिकी युक्त डीज़ल की मांग कर रहे हैं।
      • कोलंबियाई धान उत्पादक अपनी फसल के लिये कीमतों में वृद्धि करने की मांग कर रहे हैं।
  • यूरोप:
    • किसान फसल की कम कीमतों, बढ़ती लागत, अल्प लागत वाले आयात और यूरोपीय संघ द्वारा अधिरोपित सख्त पर्यावरण नियमों का विरोध कर रहे हैं।
      • फ्राँस में अल्प लागत वाले आयात, अपर्याप्त सहायिकी और उच्च उत्पादन लागत के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं।
  • उत्तर और मध्य अमेरिका:
    • मैक्सिकन किसान मक्के और गेहूँ की फसल के लिये दिये जाने वाले अनुचित कीमतों का विरोध कर रहे हैं जबकि कोस्टा रिका के किसान कर्ज़ के बोझ से छुटकारा पाने के लिये अधिक सरकारी सहायता की मांग कार रहे हैं।
    • मेक्सिको के चिहुआहुआ प्रांत में संयुक्त राज्य अमेरिका को सीमित जल आपूर्ति निर्यात करने की योजना पर विरोध प्रदर्शन हुआ।
  • एशिया:
    • भारतीय किसान फसल की गारंटीकृत कीमतों, आय दोगुनी करने और ऋण माफी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
    • नेपाल में आयातित भारतीय सब्ज़ियों की अनुचित कीमतों के कारण विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।
    • मलेशियाई और नेपाली किसान क्रमशः चावल तथा गन्ने की कम कीमतों का विरोध कर रहे हैं।
  • ओशिनिया:
    • न्यूज़ीलैंड के किसान खाद्य उत्पादकों को प्रभावित करने वाले सरकारी नियमों का विरोध करते हैं जबकि ऑस्ट्रेलियाई किसान अपनी कृषि भूमि से गुज़रने वाली हाई-वोल्टेज विद्युत लाइनों का विरोध कर रहे हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है?

  • परिचय:
    • MSP वह गारंटीकृत राशि है जो किसानों को तब दी जाती है जब सरकार उनकी फसल खरीदती है।
    • MSP कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) की सिफारिशों पर आधारित है, जो उत्पादन लागत, मांग तथा आपूर्ति, बाज़ार मूल्य रुझान, अंतर-फसल मूल्य समानता आदि जैसे विभिन्न कारकों पर विचार करता है।
      • CACP कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है। इसका गठन जनवरी 1965 में किया गया।
    • भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) MSP के स्तर पर अंतिम निर्णय (अनुमोदन) लेती है।
    • MSP का उद्देश्य उत्पादकों को उनकी फसल के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना है।
  • MSP के तहत फसलें:
    • CACP, 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये MSP और गन्ने के लिये उचित तथा लाभकारी मूल्य (FRP) की सिफारिश करता है।
    • अधिदिष्ट फसलों में खरीफ सीज़न की 14 फसलें, 6 रबी फसलें और 2 अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।
  • उत्पादन लागत के तीन प्रकार:
    • CACP प्रत्येक फसल के लिये राज्य और अखिल भारतीय औसत स्तर पर तीन प्रकार की उत्पादन लागत का अनुमान लगाता है।
      • ‘A2’: इसके तहत किसान द्वारा बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों, श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए प्रत्यक्ष व्यय को शामिल किया जाता है। 
      • A2+FL': इसके तहत ‘A2’ के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अधिरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
      • ‘C2’: यह एक अधिक व्यापक लागत है, क्योंकि इसके अंतर्गत ‘A2+FL’ में किसान की स्वामित्व वाली भूमि और स्थिर संपत्ति के किराए तथा ब्याज़ को भी शामिल किया जाता है। 
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय CACP द्वारा ‘A2+FL’ और ‘C2’ दोनों लागतों पर विचार किया जाता है। 
      • CACP द्वारा ‘A2+FL’ लागत की ही गणना प्रतिफल के लिये की जाती है। 
      • जबकि ‘C2’ लागत का उपयोग CACP द्वारा मुख्य रूप से बेंचमार्क लागत के रूप में किया जाता है, यह देखने के लिये कि क्या उनके द्वारा अनुशंसित MSP कम-से-कम कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में इन लागतों को कवर करते हैं।
  • MSP की आवश्यकता: 
    • वर्ष 2014 और वर्ष 2015 में लगातार दो सूखे (Droughts) कि घटनाओं के कारण किसानों को वर्ष 2014 के बाद से वस्तु की कीमतों में लगातार गिरावट का सामना करना पड़ा। 
    • विमुद्रीकरण (Demonetisation) एवं  ‘वस्तु एवं सेवा कर ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था, मुख्य रूप से गैर-कृषि क्षेत्र के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। 
    • वर्ष 2016-17 के बाद अर्थव्यवस्था में जारी मंदी और उसके बाद कोविड महामारी के कारण अधिकांश किसानों के लिये परिदृश्य विकट बना हुआ है। 
    • डीज़ल, बिजली एवं उर्वरकों के लिये उच्च इनपुट कीमतों ने उनके संकट को और बढ़ाया है। 
    • यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिले, जिससे कृषि संकट एवं निर्धनता को कम करने में मदद मिलती है। यह उन राज्यों में विशेष रूप से प्रमुख है जहाँ कृषि आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है।

भारत में MSP व्यवस्था से संबद्ध समस्याएँ:

  • सीमितता:
    • 23 फसलों के लिये MSP की आधिकारिक घोषणा के विपरीत केवल दो- चावल और गेहूँ की खरीद की जाती है क्योंकि इन्हीं दोनों खाद्यान्नों का वितरण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत किया जाता है। शेष अन्य फसलों के लिये यह अधिकांशतः तदर्थ व महत्त्वहीन ही है। 
    • शेष अन्य फसलों के लिये यह अधिकांशतः तदर्थ व महत्त्वहीन है। इसका अर्थ यह है कि गैर-लक्षित फसलें उगाने वाले अधिकांश किसानों को MSP से लाभ नहीं मिलता है।
  • अप्रभावी कार्यान्वयन:
    • वर्ष 2015 की शांता कुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को MSP का मात्र 6% ही प्राप्त हुआ।
    • जिसका अर्थ यह है कि देश के 94% किसान MSP के लाभ से वंचित रहे। इसका मुख्य कारण किसानों के लिये अपर्याप्त खरीद तंत्र और बाज़ार पहुँच है।
  • प्रवण फसल का प्रभुत्व:  
    • चावल और गेहूँ के लिये MSP पर ध्यान केंद्रित करने से इन दो प्रमुख खाद्य पदार्थों के पक्ष में फसल पैटर्न में बदलाव आया है। इन फसलों पर अत्यधिक बल देने से पारिस्थितिक, आर्थिक और पोषण संबंधी प्रभाव पड़ सकते हैं।
    • यह बाज़ार की मांगों के अनुरूप नहीं हो सकता है, जिससे किसानों के लिये आय की संभावना सीमित हो सकती है।
  • बिचौलियों पर निर्भरता:
    • MSP-आधारित खरीद प्रणाली में प्रायः बिचौलिये, कमीशन एजेंट और कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC) के अधिकारी जैसे बिचौलिये शामिल होते हैं।
    • विशेष रूप से छोटे किसानों के लिये इन चैनलों तक पहुँच चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिससे अक्षमताएँ उत्पन्न होंगी और उनके लिये लाभ कम हो जाएगा।
  • सरकार पर बोझ:
    • सरकार MSP समर्थित फसलों के बफर स्टॉक की खरीद और रखरखाव में एक वृहत वित्तीय बोझ उठाती है। इससे उन संसाधनों का विचलन हो जाता है जिन्हें अन्य कृषि या ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिये आवंटित किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने और चावल व गेहूँ के प्रभुत्व को कम करने के लिये सरकार धीरे-धीरे MSP समर्थन हेतु पात्र फसलों की सूची का विस्तार कर सकती है। इससे किसानों को अधिक विकल्प मिलेंगे और बाज़ार की मांग के अनुरूप फसलों की खेती को बढ़ावा मिलेगा।
  • MSP मुद्दे का समाधान करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें किसानों के हितों और व्यापक आर्थिक निहितार्थ कोई शामिल किया जाना चाहिये।
    • MSP परिकलन पद्धति पर पुनः विचार करने और MSP निर्धारित करने के लिये एक निष्पक्ष तथा पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करने से किसानों द्वारा उठाई गई कुछ चिंताओं को दूर करने में मदद मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. सभी अनाजों, दालों एवं तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर प्रापण भारत के किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (यू.टी.) में असीमित होता है। 
  2. अनाजों एवं दालों का MSP किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर निर्धारित किया जाता है, जिस स्तर पर बाज़ार मूल्य कभी नहीं पहुँच पाते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: d 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)  

  1. भारत सरकार काले तिल नाइजर (गुइज़ोटिया एबिसिनिका) के बीजों के लिये न्यूनतम समर्थन कीमत उपलब्ध कराती है।  
  2. काले तिल की खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है। 
  3. भारत के कुछ जनजातीय लोग काले तिल के बीजों का तेल भोजन पकाने के लिये प्रयोग में लाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय फंदे से किस प्रकार बचाव करेगा? (2018)

प्रश्न. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति किस प्रकार प्रभावित करती है? लघु और सीमांत कृषकों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (2017)

प्रश्न. धान-गेहूँ प्रणाली को सफल बनाने के लिये कौन-से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं? इस सफलता के बावजूद यह प्रणाली भारत में अभिशाप कैसे बन गई है? (2020)

प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ) एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जहाँ लिये गए निर्णय देशों को गहराई से प्रभावित करते हैं। डब्ल्यू.टी.ओ का क्या अधिदेश (मैंडेट) है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी हैं? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2014)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध, द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT), विदेशी प्रत्यक्ष निवेश(FDI), भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारा (IMEC)

मेन्स के लिये:

भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध, भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध का आर्थिक और रणनीतिक महत्त्व, द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के उपाय

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने निवेश, विद्युत व्यापार और डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिये आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।

हस्ताक्षरित समझौते की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्मों को आपस में जोड़ना:
    • UPI और AANI की इंटरलिंकिंग:
    • घरेलू डेबिट/क्रेडिट कार्ड (RuPay और JAYWAN) को इंटरलिंक करना:
      • दोनों देशों ने घरेलू डेबिट/क्रेडिट कार्ड- RuPay (भारत) को JAYWAN (UAE) को आपस में जोड़ने हेतु समझौता किया।
      • यह वित्तीय क्षेत्र में सहयोग के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण कदम है और इससे संपूर्ण संयुक्त अरब अमीरात में RuPay की सार्वभौमिक स्वीकृति बढ़ेगी।
        • UAE का घरेलू कार्ड JAYWAN डिजिटल RuPay क्रेडिट और डेबिट कार्ड स्टैक पर आधारित है।
  • द्विपक्षीय निवेश संधि:
    • दोनों देशों ने द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) पर हस्ताक्षर किये। यह समझौता दोनों देशों में निवेश को और बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
    • भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में UAE का निवेश महत्त्वपूर्ण रहा है।
      • वर्ष 2022-2023 में संयुक्त अरब अमीरात ने भारत में चौथे सबसे बड़े विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) निवेशक के रूप में योगदान किया। इसने भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई।
  • भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारे (IMEC) पर अंतर सरकारी ढाँचा समझौता:
    • इसका उद्देश्य भारत-संयुक्त अरब अमीरात सहयोग को बढ़ावा देना तथा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाने के लिये भारत और संयुक्त अरब अमीरात सहयोग को बढ़ाना है। IMEC की घोषणा सितंबर वर्ष 2023 में नई दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी।
  • ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग:
    • दोनों पक्षों ने इलेक्ट्रिकल इंटरकनेक्शन और व्यापार के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता किया जो ऊर्जा सुरक्षा तथा ऊर्जा व्यापार सहित ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के नए क्षेत्रों को उजागर करता है।
    • संयुक्त अरब अमीरात कच्चे तेल और LPG के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है तथा भारत ने LNG के लिये दीर्घकालिक अनुबंध की योजना बनाई है।
  • सांस्कृतिक सहयोग:
    • दोनों देशों ने “दोनों देशों के राष्ट्रीय अभिलेखागार के बीच सहयोग प्रोटोकॉल” पर हस्ताक्षर किये यह प्रोटोकॉल अभिलेखीय सामग्री की बहाली और संरक्षण सहित इस क्षेत्र में व्यापक द्विपक्षीय सहयोग को आकार देगा।
    • विरासत और संग्रहालयों के क्षेत्र में सहयोग के लिये समझौता किया गया जिसका उद्देश्य लोथल, गुजरात में राष्‍ट्रीय समुद्री विरासत परिसर में सहयोग करना है।
  • BAPS मंदिर निर्माण के लिये आभार:
    • भारत ने अबू धाबी में BAPS मंदिर के निर्माण के लिये भूमि प्रदान करने में समर्थन के लिये संयुक्त अरब अमीरात को धन्यवाद दिया और मंदिर के निर्माण को संयुक्त अरब अमीरात-भारत मित्रता तथा सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक बताया।
  • पत्तन अवसंरचना विकास:
    • भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच पत्तन के बुनियादी ढाँचे तथा कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिये राइट्स (RITES) लिमिटेड एवं गुजरात मैरीटाइम बोर्ड ने अबू धाबी पोर्ट्स कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • भारत मार्ट:
    • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत मार्ट की आधारशिला रखी गई जो दुबई में जेबेल अली मुक्त व्यापार क्षेत्र में खुदरा, भंडारण और रसद सुविधाएँ प्रदान करेगा।
    • भारत मार्ट संभावित रूप से भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्रों को पश्चिम एशिया, खाड़ी, अफ्रीका तथा यूरेशिया में अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों तक पहुँचाने में एक मंच प्रदान करेगा जो उनके निर्यात को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

BAPS मंदिर क्या है?

  • परिचय:
    • BAPS (बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था) मंदिर हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय स्वामीनारायण संप्रदाय से संबद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र हैं। 
      • स्वामीनारायण संप्रदाय का सिद्धांत भगवान स्वामीनारायण द्वारा दिया गया था जो पारंपरिक हिंदू ग्रंथों में निहित है।BAPS के पास दुनिया भर में लगभग 1,550 मंदिरों का नेटवर्क है, जिसमें नई दिल्ली और गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर तथा लंदन, ह्यूस्टन, शिकागो, अटलांटा, टोरंटो, लॉस एंजिल्स एवं नैरोबी में स्वामीनारायण मंदिर शामिल हैं।
  • विशेषताएँ:
    • पारंपरिक वास्तुकला: अबू धाबी मंदिर सात शिखरों वाला एक पारंपरिक पत्थर वाला हिंदू मंदिर है। पारंपरिक नागर शैली में निर्मित, मंदिर के सामने के पैनल में सार्वभौमिक मूल्यों, विभिन्न संस्कृतियों के सद्भाव की कहानियों, हिंदू आध्यात्मिक नेताओं और अवतारों को दर्शाया गया है। 
      • मंदिर की ऊँचाई 108 फीट, लंबाई 262 फीट और चौड़ाई 180 फीट है, जबकि बाहरी हिस्से में राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है, जबकि आंतरिक हिस्से में इतालवी संगमरमर का उपयोग किया गया है।
  • वास्तुशिल्प विशेषताएँ:
    • मंदिर में अलौह सामग्री (जो जंग का प्रतिरोध करती है) का उपयोग किया गया है।
    • जबकि मंदिर में कई अलग-अलग प्रकार के खंभे देखे जा सकते हैं जैसे गोलाकार और षट्कोणीय, वहीं एक विशेष स्तंभ है, जिसे 'स्तंभों का स्तंभ' कहा जाता है, जिसमें लगभग 1,400 छोटे खंभे उकेरे हुए हैं।
    • मंदिर में भारत के चारों कोनों के देवताओं को चित्रित किया गया है। इनमें भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान, भगवान शिव, पार्वती, गणपति, कार्तिकेय, भगवान जगन्नाथ, भगवान राधा-कृष्ण, अक्षर-पुरुषोत्तम महाराज (भगवान स्वामीनारायण और गुणातीतानंद स्वामी), तिरुपति बालाजी तथा पद्मावती एवं भगवान अयप्पा शामिल हैं।
    • भारतीय सभ्यता की 15 मूल्यवान कहानियों के अलावा, माया सभ्यता, एज़्टेक सभ्यता, मिस्र की सभ्यता, अरबी सभ्यता, यूरोपीय सभ्यता, चीनी सभ्यता और अफ्रीकी सभ्यता की कहानियों को चित्रित किया गया है।

भारत-संयुक्त अरब अमीरात के द्विपक्षीय संबंध:

  • परिचय:
    • भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने वर्ष 1972 में राजनयिक संबंध स्थापित किये।
    • द्विपक्षीय संबंधों को तब और अधिक बढ़ावा मिला जब अगस्त 2015 में भारत के प्रधानमंत्री की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा ने दोनों देशों के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी की नींव रखी।
    • इसके अलावा, जनवरी 2017 में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अबू धाबी के क्राउन प्रिंस की भारत यात्रा के दौरान यह सहमति हुई कि द्विपक्षीय संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया जाएगा।
  • आर्थिक संबंध:
    • भारत और UAE के बीच आर्थिक साझेदारी विकसित हुई है, वर्ष 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
      • इसका उद्देश्य पाँच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार को 100 बिलियन अमरीकी डालर से ऊपर और सेवा व्यापार को 15 बिलियन अमरीकी डालर तक बढ़ाना है।
    • अनेक भारतीय कंपनियों ने संयुक्त अरब अमीरात में सीमेंट, निर्माण सामग्री, कपड़ा, इंजीनियरिंग उत्पाद, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं आदि के लिये संयुक्त उद्यम के रूप में या विशेष आर्थिक क्षेत्रों में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित की हैं।
    • भारत की संशोधित FTA रणनीति के तहत, सरकार ने निपटने के लिये कम-से-कम छह देशों/क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है, जिसमें अर्ली हार्वेस्टिंग डील (या अंतरिम व्यापार समझौते) के लिये संयुक्त अरब अमीरात सूची में सबसे ऊपर है, अन्य ब्रिटेन और यूरोपियन संघ हैं। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इज़राइल और खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council - GCC) में देशों का एक समूह।
      • UAE ने भी भारत और सात अन्य देशों (ब्रिटेन, तुर्की, दक्षिण कोरिया, इथियोपिया, इंडोनेशिया, इज़राइल और केन्या) के साथ द्विपक्षीय आर्थिक समझौतों को आगे बढ़ाने के अपने इरादे की घोषणा की थी।
  • सांस्कृतिक संबंध:
    • संयुक्त अरब अमीरात 3.3 मिलियन से अधिक भारतीयों का घर है और अमीराती भारतीय संस्कृति से अच्छी तरह परिचित हैं तथा इसके प्रति नरम स्वभाव हैं। भारत ने अबू धाबी अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला 2019 में सम्मानित अतिथि देश के रूप में भाग लिया।
    • भारतीय सिनेमा/टी.वी./रेडियो चैनल आसानी से उपलब्ध हैं और इनकी दर्शक संख्या अच्छी है; संयुक्त अरब अमीरात के प्रमुख थिएटर/सिनेमा हॉल व्यावसायिक हिंदी, मलयालम तथा तमिल फिल्में दिखाते हैं।
    • अमीराती समुदाय हमारे वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रमों में भी भाग लेता है और संयुक्त अरब अमीरात में योग तथा ध्यान केंद्रों के विभिन्न स्कूल सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
  • फिनटेक सहयोग:
    • अगस्त 2019 से UAE में रुपे कार्ड की स्वीकृति और रुपया-दिरहम निपटान प्रणाली के संचालन जैसी पहल डिजिटल भुगतान प्रणालियों में पारस्परिक अभिसरण को प्रदर्शित करती है।
      • भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच लेनदेन के लिये स्थानीय मुद्राओं के उपयोग की रूपरेखा का उद्देश्य स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली (Local Currency Settlement System - LCSS) स्थापित करना है।
      • RBI के अनुसार, LCSS के निर्माण से निर्यातकों और आयातकों को अपनी संबंधित घरेलू मुद्राओं में चालान तथा भुगतान करने में सक्षम बनाया जाएगा, जो बदले में एक INR-AED (संयुक्त अरब अमीरात दिरहम) विदेशी मुद्रा बाज़ार के विकास को सक्षम करेगा।
  • ऊर्जा सुरक्षा सहयोग:
    • संयुक्त अरब अमीरात भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, भारत के मंगलुरु में सामरिक तेल भंडार (strategic oil reserves) संग्रहित सुविधा है।
  • सामरिक क्षेत्रीय सहभागिता:

भारत-UAE संबंधों में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • व्यापार बाधाएँ भारतीय निर्यात को प्रभावित कर रही हैं:
    • गैर-टैरिफ बाधाएँ जैसे स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी (Sanitary and Phytosanitary- SPS) उपाय तथा व्यापार में तकनीकी बाधाएँ (Technical Barriers to Trade - TBT) विशेष रूप से अनिवार्य हलाल प्रामाणीकरण ने विशेष रूप से पोल्ट्री, माँस एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों जैसे क्षेत्रों में भारतीय निर्यात को बाधित किया है।
      • भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन बाधाओं के कारण हाल के वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात को प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात में लगभग 30% की उल्लेखनीय गिरावट आई है।
  • संयुक्त अरब अमीरात में चीनी आर्थिक प्रभाव:
    • चीन की "चेक बुक डिप्लोमेसी", जो कम ब्याज वाले ऋण के प्रस्ताव की विशेषता है, ने संयुक्त अरब अमीरात और मध्य-पूर्व में भारतीय आर्थिक प्रयासों को प्रभावित किया है।
  • कफाला प्रणाली की चुनौतियाँ:
    • संयुक्त अरब अमीरात की कफाला प्रणाली नियोक्ताओं को आप्रवासी मज़दूरों, विशेषकर अल्प वेतन वाले रोज़गार में नियोजित श्रमिकों के संबंध में अनुचित अधिकार प्रदान करती है जो मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी चिंताएँ प्रस्तुत करती है।
      • इस प्रणाली के तहत प्रवासी श्रमिकों को पासपोर्ट ज़ब्त होने, वेतन मिलने में देरी और दयनीय जीवन-यापन की स्थिति जैसे परिणामों का सामना करना पड़ता है।
  • संयुक्त अरब अमीरात द्वारा पाकिस्तान को प्रदत्त वित्तीय सहायता संबंधी चिंताएँ:
    • पाकिस्तान को UAE द्वारा पर्याप्त वित्तीय सहायता इन फंडों के संभावित दुरुपयोग के बारे में आशंका उत्पन्न करती है क्योंकि पाकिस्तान प्राप्त वित्तीय सहायता को भारत के विरुद्ध सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करने के लिये इस्तेमाल करता रहा है। 
  • क्षेत्रीय संघर्षों के बीच राजनयिक संतुलन:
    • ईरान और अरब देशों, विशेषकर संयुक्त अरब अमीरात के बीच चल रहे संघर्ष के कारण भारत को राजनयिक संतुलन स्थापित करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
    • इज़रायल और हमास के बीच जारी संघर्षों ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप प्रस्तावित IMEC प्रभावित हो सकता है।

आगे की राह

  • भारत और UAE को गैर-प्रशुल्क प्रतिबंधों का समाधान करने के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये जो भारतीय, विशेषकर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ जैसे क्षेत्रों में, निर्यात को बाधित करते हैं। दोनों देशों को नियमों को सुव्यवस्थित करने और सुचारू व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये विचार विमर्श करना चाहिये।
  • संयुक्त अरब अमीरात के प्रमुख क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि कर और संयुक्त उद्यमों तथा साझेदारी के अवसरों की खोज कर भारत अपना आर्थिक प्रभुत्व बढ़ा सकता है। अनुकूल व्यावसायिक परिवेश को बढ़ावा देने और उद्यमिता को प्रोत्साहन प्रदान करने से अधिक भारतीय व्यवसायों को संयुक्त अरब अमीरात में आकर्षित किया जा सकता है।
  • भारत और UAE पारदर्शिता, स्थिरता तथा निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देकर संबद्ध क्षेत्र में चीनी आर्थिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिये सहयोग कर सकते हैं।
  • दोनों देशों को कफाला प्रणाली में सुधार के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात में प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और कल्याण में सुधार की दिशा में कार्य करना चाहिये जिससे उचित वेतन, गारिमामय जीवन तथा श्रमिकों के अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान
(b) ओमान
(c) सऊदी अरब
(d) कुवैत

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न: डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल हो जाना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है? (2015)

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)


जैव विविधता और पर्यावरण

आर्कटिक महासागर में समुद्री हीटवेव

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीनहाउस गैस (GHG), आर्कटिक महासागर, समुद्री हीटवेव, खाद्य शृंखलाएँ।

मेन्स के लिये:

आर्कटिक महासागर में समुद्री हीटवेव, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट।

स्रोत:डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक है- 'ग्रीनहाउस गैसों द्वारा तीव्र आर्कटिक समुद्री हीटवेव और अचानक समुद्री बर्फ पिघलना', जो दर्शाता है कि यह वर्ष 2007 के बाद आर्कटिक महासागर में अभूतपूर्व समुद्री हीटवेव (MHW) की घटना है।

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • आर्कटिक समुद्री हीटवेव (MHWs) विशेषताएँ:
    • वर्ष 2007 से 2021 तक आर्कटिक में 11  MHW घटनाएँ हुई हैं, जो लंबे समय तक उच्च समुद्री सतह तापमान (SST) की विशेषता है।
    • ये घटनाएँ आर्कटिक सागर की बर्फ में रिकॉर्ड गिरावट के साथ मेल खाती हैं।
      • स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट, 2022 रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में आर्कटिक में वसंत से शरद ऋतु तक लापतेव और ब्यूफोर्ट समुद्र में गंभीर तथा चरम समुद्री हीटवेव देखी गई।

  • बर्फ के आवरण में कमी:
    • 1990 के दशक के मध्य से आर्कटिक महासागर के ऊपर ग्रीष्मऋतु और शीतऋतु में समुद्री बर्फ के आवरण में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जो सौर ऊर्जा को प्रतिबिंबित करता है।
    • वर्ष 2007 के बाद से एक उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है, जो मोटे और अधिक विकृत बर्फ के आवरण से पतले बर्फ के आवरण की ओर बढ़ रहा है।
      • पतली बर्फ कम मज़बूत होती है और अधिक तेज़ी से पिघलती है, जिससे आने वाली सौर विकिरण जल की सतह को गर्म कर देती है।
  • आर्कटिक MHWs के ड्राइवर:
    • आर्कटिक MHW मुख्य रूप से सीमांत सागरों पर होते हैं, जिनमें कारा, लापतेव, पूर्वी साइबेरियाई और चुकची सागर शामिल हैं।
    • इन स्थानों पर उथली मिश्रित परत की गहराई और मुख्य रूप से प्रथम वर्ष के बर्फ के आवरण के कारण MHW के विकास हेतु परिस्थितियाँ अनुकूल हैं।
      • प्रथम वर्ष की बर्फ समुद्री बर्फ है जो एक ही सर्दियों के मौसम में विकसित होने के साथ बढ़ती है और आमतौर पर गर्मियों के मौसम में पूरी तरह से पिघल जाती है।
    • अचानक समुद्री बर्फ का पीछे हटना एक और चिंता का विषय है क्योंकि इससे समुद्री हीटवेव की घटनाएँ शुरू हो सकती हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस (GHG) का प्रभाव:
    • GHG के बिना, 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की समुद्री हीटवेव नहीं चल सकती।
      • 66-99% संभावना के साथ GHG मध्यम समुद्री हीटवेव का पर्याप्त कारण हैं।
  • दीर्घकालिक रुझान:
    • आर्कटिक में दीर्घकालिक उष्मीय प्रवृत्ति स्पष्ट है, जिसमें वर्ष 1996 से वर्ष 2021 तक SST प्रति दशक 1.2 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है।
    • पिछले दो दशकों में पूर्वी आर्कटिक सीमांत समुद्रों में चरम SST घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
  • चिंताएँ:
    • अध्ययन में समुद्री हीटवेव के नाटकीय परिणामों जैसे खाद्य शृंखलाओं, मछली भंडार पर प्रभाव एवं समग्र जैवविविधता में कमी की चेतावनी दी गई है।
  • अध्ययन में प्रयुक्त तकनीक:
    • आर्कटिक MHW में ग्रीनहाउस गैस (GHG) की भूमिका का आकलन करने के लिये अध्ययन एक एक्सट्रीम इवेंट एट्रिब्यूशन (EEA) तकनीक का उपयोग करता है।
    • EEA तकनीक यह निर्धारित करती है कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन किस हद तक विशिष्ट चरम मौसम की घटनाओं की संभावना और गंभीरता को प्रभावित करता है।

समुद्री हीटवेव्स (MHW) क्या हैं?

  • परिचय:
    • MHW एक विषम मौसमी घटना है जो समुद्र के किसी विशेष क्षेत्र की सतह का ताप निरंतर पाँच दिनों के लिये औसत तापमान से 3 अथवा 4 डिग्री सेल्सियस अधिक होने पर होती है।
    • नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार MHW की निरंतरता सप्ताह, माह अथवा वर्षों तक बनी रह सकती है।
  • प्रभाव:
    • महासागर पर प्रभाव: औसत तापमान में 3 अथवा 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि समुद्री जीवन के लिये विनाशकारी हो सकती है।
      • वर्ष 2010 और वर्ष 2011 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई तट पर MHW के कारण बड़ी मात्रा में मछलियों की मौत हुई जो एक अल्प अवधि में तथा मुख्य रूप से एक विशेष क्षेत्र में कई मछलियों अथवा अन्य जलीय जीवों की अचानक एवं अप्रत्याशित मौत को दर्शाता है।
      • MHW ने समुद्री केल्प वनों को नष्ट कर दिया और तट के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया।
        • केल्प्स की मौजूदगी सामान्य तौर पर शीतल जल में पाई जाती है जो कई समुद्री जीवों के लिये आवास और भोजन प्रदान करते हैं।
    • प्रवाल विरंजन/कोरल ब्लीचिंग: वर्ष 2005 में उष्णकटिबंधीय अटलांटिक और कैरेबियन में समुद्र के तापमान में हुई वृद्धि से उत्पन्न गर्मी के कारण बड़े पैमाने पर कोरल ब्लीचिंग की घटना हुई।
      • प्रवाल जल के तापमान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। जल के तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने की स्थिति में वे अपने ऊतकों में मौजूद जूजैंथिली नामक शैवाल को बाहर निकाल देते हैं जिससे उनका रंग पूरी तरह से सफेद हो जाते हैं। इसे प्रवाल विरंजन कहा जाता है।
    • मनुष्यों पर प्रभाव: समुद्री तापमान में वृद्धि से MHW की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे तूफान और उष्णकटिबंधीय चक्रवात जैसी गंभीर घटनाएँ हो सकती हैं।
      • तापमान में वृद्धि के साथ वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है और महासागरों से वायुमंडल में गर्मी का संचरण भी बढ़ जाता है। जब तूफान गर्म महासागरों के संपर्क में आते हैं तो वे अधिक जलवाष्प और ऊष्मा एकत्र करते हैं।
      • इसके परिणामस्वरूप अधिक शक्तिशाली पवनें, भारी वर्षा और अधिक बाढ़ आती है जो मनुष्यों के लिये विनाश का कारण बन सकती है।

समुद्री हीटवेव के अन्य प्रभाव क्या हैं?

  • पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना पर प्रभाव:
    • समुद्री हीटवेव कुछ प्रजातियों के लाभकारी किंतु अन्य के विनाशकारी होती हैं जिससे पारिस्थितिक तंत्र की संरचना पर प्रभाव पड़ता है।
    • अकशेरुकी जीवों के संदर्भ में समुद्री हीटवेव के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं जिससे इन प्रजातियों का व्यवहार प्रभावित हो सकता है जिससे संभावित रूप से वन्यजीवों को अत्यधिक क्षति का सामना करना पड़ सकता है।
  • पर्यावास पर प्रभाव:
    • समुद्री हीटवेव के कुछ प्रजातियों के पर्यावास बदल सकता है जैसे कि दक्षिणपूर्वी ऑस्ट्रेलिया में कांटेदार समुद्री अर्चिन केल्प वनों के विनाश के परिणामस्वरूप तस्मानिया में दक्षिण की ओर अग्रसर हो रहा है।
  • आर्थिक हानि:
    • समुद्री हीटवेव मत्स्य पालन और जलीय कृषि को प्रभावित कर आर्थिक क्षति पहुँचा सकती हैं।
  • जैवविविधता पर प्रभाव:
    • समुद्री हीटवेव से जैवविविधता अत्यधिक प्रभावित हो सकती है।
      • समुद्री हीटवेव के कारण तमिलनाडु तट के पास मन्नार की खाड़ी में 85% प्रवाल का विरंजन हुआ।
  • डीऑक्सीजनेशन और अम्लीकरण का खतरा:
    • समुद्र का अम्लीकरण, डीऑक्सीजनेशन जैसे अन्य कारक समुद्री हीटवेव से संबंधित हैं।
    • ऐसे मामलों में समुद्री हीटवेव न केवल पर्यावास को और अधिक नुकसान पहुँचाते हैं बल्कि डीऑक्सीजनेशन तथा अम्लीकरण का खतरा भी बढ़ाते हैं।

आर्कटिक के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • आर्कटिक महासागर में बैरेंट्स सागर, कारा सागर, लापतेव सागर, चुकची सागर, ब्यूफोर्ट सागर, वांडेल सागर, लिंकन सागर शामिल हैं।
    • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
      • आर्कटिक में आर्कटिक महासागर, एड्जेसेंट सागर और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस तथा स्वीडन के कुछ हिस्से शामिल हैं।
    • आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसम के अनुसार अलग-अलग बर्फ और उसका आवरण होता है।

  • आर्कटिक पर वार्मिंग का पारिस्थितिक प्रभाव:
    • बर्फ के नष्ट होने और पानी के गर्म होने से समुद्र का स्तर, लवणता का स्तर, अचानक उठे तूफान तथा वर्षा के पैटर्न पर असर पड़ेगा।
    • टुंड्रा दलदल में लौट रहा है, पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है, अचानक आने वाले तूफान समुद्रतटों को तबाह कर रहे हैं और वनाग्नि कनाडा तथा रूस के अंदरूनी हिस्सों को तबाह कर रही है।
      • टुंड्रा: एक प्रकार की वनस्पति, जो आर्कटिक वृत्त के उत्तर और अंटार्कटिक वृत्त के दक्षिण के क्षेत्रों में पाई जाती है। ये वृक्षविहीन क्षेत्र हैं।
    • आर्कटिक लगभग 40 विभिन्न देशज समूहों का भी घर है, जैसे- रूस में चुक्ची, अलास्का में अलेउत, युपिक और इनुइट।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. जून की 21वीं तारीख को सूर्य

(a) उत्तरध्रुवीय वृत्त पर क्षितिज के नीचे नहीं डूबता है
(b) दक्षिणध्रुवीय वृत्त पर क्षितिज के नीचे नहीं डूबता है
(c) मध्याह्न में भूमध्यरेखा पर ऊर्ध्वाधर रूप से व्योमस्थ चमकता है
(d) मकर-रेखा पर ऊर्ध्वाधर रूप से व्योमस्थ चमकता है

उत्तर: (a)


प्रश्न. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?

भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मेथैन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
2. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
3. वायुमंडल के अंदर मेथैन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या: 

  • अशांत समुद्र के नीचे मेथैन हाइड्रेट्स के निक्षेप एक बड़े पारिस्थितिक खतरे को उत्पन्न कर सकते है। यहाँ तक कि अगर इन मेथैन हाइड्रेट निक्षेपों का एक छोटा-सा हिस्सा भी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से विघटित हो जाता है, तो भूमंडलीय तापन के कारण बड़ी मात्रा में मेथैन गैस निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है। अतः कथन 1 सही है ।
  • मेथैन हाइड्रेट्स महाद्वीपीय ढलानों के निचले सीमांत क्षेत्रों के साथ निर्मित होते हैं, जहाँ समुद्र अधस्तल अपेक्षाकृत उथले शेल्फ से नीचे रहता है, आमतौर पर समुद्र की सतह से लगभग 150 मीटर नीचे। जलवायु के लिये गैस हाइड्रेट्स की संवेदनशीलता, तापन घटना की अवधि, समुद्र अधस्तल या टुंड्रा सतह के नीचे गैस हाइड्रेट्स गहराई और गैस हाइड्रेट्स को पृथक करने हेतु तलछट को गर्म करने के लिये आवश्यक तापन की मात्रा पर, निर्भर करती है। अतः कथन 2 सही है।
  • मेथैन के साथ समस्या यह है कि यह बिना अपने अवशेष छोड़े नष्ट नहीं होती है, भले ही यह कम अवधि के लिये वातावरण में रहती हो जो कि औसतन 10 वर्ष है। मुक्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में, कार्बन का एक मेथैन अणु अपने चार हाइड्रोजन परमाणुओं से कार्बन डाइऑक्साइड बनने के लिये अलग हो जाता है। अतः कथन 3 सही है।

मेन्स:

प्रश्न. वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर के प्रभाव का, उदाहरणों के साथ, आकलन कीजिये। (2019)

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग(वैश्विक तापन) पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये।(2022)


जैव विविधता और पर्यावरण

सस्टेनेबल फैशन की चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

सस्टेनेबल फैशन की चुनौतियाँ, बायोडिग्रेडेबल, संयुक्त राष्ट्र, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC)

मेन्स के लिये:

सस्टेनेबल फैशन की चुनौतियाँ, स्वस्थ और समावेशी वातावरण के लिये सस्टेनेबल फैशन की आवश्यकता, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अधिकांश कपड़े और फैशन उत्पाद अब "पुनर्नवीनीकरण सामग्री" से बने होने का दावा करते हैं। हालाँकि इस दृष्टिकोण की प्रभावशीलता और स्थिरता को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।

सस्टेनेबल फैशन क्या है?

  • सस्टेनेबल फैशन से तात्पर्य इस तरह से फैशन उत्पाद  बनाने की अवधारणा से है जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है और संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के दौरान सामाजिक ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देता है। इसका उद्देश्य ऐसे फैशन आइटम बनाना है जो पर्यावरण के अनुकूल, सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार और आर्थिक रूप से व्यवहार्य हों
  • इको-फैशन का प्राथमिक फोकस उत्पादन में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों पर है। सस्टेनेबल फैशन ऊन, लिनन और कपास जैसी प्राकृतिक तथा जैविक सामग्रियों के उपयोग पर बल देता है, जिन्हें हानिकारक कीटनाशकों और रसायनों के बिना उत्पादित किया जाता है।
  • ये सामग्रियाँ बायोडिग्रेडेबल हैं और लैंडफिल में कचरे के निर्माण में योगदान नहीं करती हैं।

सस्टेनेबल फैशन का क्या महत्त्व है?

  • पर्यावरणीय प्रभाव: 
    • फैशन उद्योग वैश्विक कार्बन उत्सर्जन, पानी की खपत और अपशिष्ट उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्त्ता है।
    • सस्टेनेबल फैशन का लक्ष्य नवीकरणीय सामग्रियों का उपयोग करके, संसाधन खपत को कम करने के साथ-साथ पर्यावरण-अनुकूल उत्पादन प्रक्रियाओं को लागू करके इन प्रभावों को कम करना है।
  • अपशिष्ट में कमी: 
    • पारंपरिक फैशन के कारण अक्सर बड़ी मात्रा में कपड़े लैंडफिल में चले जाते हैं या जला दिये जाते हैं। सस्टेनेबल फैशन सर्कुलरिटी को बढ़ावा देता है, जहाँ सामग्रियों का पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण या बायोडिग्रेडेशन किया जाता है, जिससे अपशिष्ट कम होता है और संसाधनों का संरक्षण होता है।
  • स्वास्थ्य एवं सुरक्षा: 
    • पारंपरिक कपड़ा उत्पादन में कठोर रसायनों के उपयोग से श्रमिकों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
    • सस्टेनेबल फैशन विषाक्त रसायनों के उपयोग से बचाता है या कम करता है, साथ ही सभी के लिये सुरक्षित और स्वस्थ उत्पादों को बढ़ावा देता है।
  • उपभोक्ता जागरूकता: 
    • सस्टेनेबल फैशन उपभोक्ताओं को अपने वस्त्रों की पसंद के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव पर विचार करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • जागरूकता बढ़ाने और सचेत उपभोग को बढ़ावा देकर, यह व्यक्तियों को अधिक जानकारीपूर्ण एवं नैतिक खरीदारी संबंधी निर्णय लेने के लिये भी सशक्त बनाता है।

सस्टेनेबल फैशन के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • कपड़ा पुनर्चक्रण जटिलता:
    • कपड़ा पुनर्चक्रण काँच या कागज़ जैसी पुनर्चक्रण सामग्री की तुलना में अधिक जटिल है।
    • पुनर्नवीनीकृत वस्त्रों की अधिकता (93%) प्लास्टिक की बोतलों या PET बोतलों (पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट) से आती है, जो जीवाश्म ईंधन से निर्मित होते हैं।
    • हालाँकि प्लास्टिक की बोतलों के विपरीत, जिन्हें कई बार पुनर्चक्रण किया जा सकता है, पुनर्चक्रण पॉलिएस्टर से बनी टी-शर्ट को दोबारा पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता है।
      • यूरोप में अधिकांश कपड़ा अपशिष्ट को या तो फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है, केवल 22% का पुनर्चक्रण किया जाता है। हालाँकि कपड़ों के उत्पादन में पुन: उपयोग किये जाने के बजाय, पुनर्नवीनीकरण किये गए वस्त्रों को अक्सर इन्सुलेशन, गद्दे भरने या कपड़े साफ करने में पुन: उपयोग किया जाता है।
      • कपड़ों के उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले 1% से भी कम कपड़ों को नए कपड़ों में पुनर्चक्रित किया जाता है।
  • महँगा और श्रमसाध्य:
    • दो से अधिक फाइबर वाले कपड़ों को रिसाइकल नहीं किया जा सकता।
    • पुनर्चक्रण योग्य कपड़ों के रंग की छँटाई और ज़िप, बटन, स्टड तथा अन्य सामग्रियों को हटाना होगा। यह प्रक्रिया आमतौर पर महँगी और श्रम-गहन है।
  • गुणवत्ता में गिरावट:
    • जब सामग्रियों का पुनर्चक्रण किया जाता है, विशेषकर कपास जैसे वस्त्रों के मामले में तब गुणवत्ता प्राय: कम हो जाती है।
    • यह कम गुणवत्ता पुनर्नवीनीकरण सामग्री के अनुप्रयोगों को सीमित कर सकती है और साथ ही पुनर्चक्रण के उद्देश्य को विफल करते हुए नई सामग्रियों के साथ मिश्रण की आवश्यकता हो सकती है।
  • संदूषण: 
    • पुनर्चक्रण योग्य सामग्री प्लास्टिक कंटेनरों या कपड़ा रंगों में खाद्य अवशेषों सहित अन्य सामग्रियों से दूषित हो सकती है।
    • संदूषण पुनर्चक्रित सामग्री की गुणवत्ता को खराब कर सकता है और साथ ही पुनर्चक्रण प्रक्रिया को भी जटिल बना सकता है।
  • प्रौद्योगिकीय सीमाएँ: 
    • विशेष रूप से कुछ सामग्रियों जैसे अशुद्ध प्लास्टिक या मिश्रित फाइबर वाले वस्त्रों के लिये पुनर्चक्रण प्रक्रियाएँ लगातार विकसित हो रही हैं। इसलिये पुनर्चक्रण तकनीकें कम सफल और कुशल हो सकती हैं।
  • कार्बन फुटप्रिंट:
    • कई पुनर्चक्रण योग्य वस्तुएँ जिन्हें पश्चिमी उपभोक्ता पुनर्चक्रण से छोड़ देते हैं,उन्हें सेकेंड हैंड सामान के रूप में बेचा जाता है।  ये मुख्य रूप से मिश्रित और पॉलिएस्टर आदि के रूप में खुले लैंडफिल में घाना और अन्य अफ्रीकी देशों की सड़कों पर समाप्त हो जाते हैं
    • यूरोप में एकत्र किये गए कपड़ों में लगभग 41% एशिया में कचरे के रूप भेजा जाता है, मुख्य रूप से निर्दिष्ट आर्थिक क्षेत्रों में जहाँ इसे छँटाई और प्रसंस्करण से गुज़रना पड़ता है।
    • एशिया भेजा गया यूरोप का कपड़ा कचरा निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों में पहुँच जाता है, जो ढीले श्रम मानकों और पर्यावरण नियमों के लिये विख्यात है।
    • छँटाई के लिये कम श्रम लागत वाले देशों में कपड़े निर्यात करना भी परिवहन से जुड़े कार्बन फुटप्रिंट के बारे में चिंता उत्पन्न करते है।

सस्टेनेबल फैशन के लिये क्या समाधान हो सकता है?

  • पॉलिएस्टर पर निर्भरता कम करना:
    • उत्पादन से लेकर पुनर्चक्रण तक इसके हानिकारक पर्यावरणीय प्रभाव के कारण विशेषज्ञ पॉलिएस्टर पर निर्भरता को पूरी तरह से कम करने की वकालत करते हैं। 
  • वैकल्पिक फाइबर को अपनाना:
    • कुछ फैशन ब्रांड अधिक टिकाऊ विकल्प के रूप में वैकल्पिक फाइबर की खोज कर रहे हैं, जैसे कि अनानास के पत्तों से बना पिनाटेक्स। हालाँकि सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इन तंतुओं को अभी भी सामंजस्य के लिये थर्मोप्लास्टिक सामग्री की आवश्यकता हो सकती है, जिससे पुनर्चक्रण सीमित हो सकता है।
  • अत्यधिक उपभोग को संबोधित करना:
    • अंततः, फैशन उद्योग में स्थिरता प्राप्त करने के लिये अत्यधिक खपत से निपटना आवश्यक माना जाता है। पर्यावरण समर्थकों द्वारा उपभोक्ताओं से कम कपड़े खरीदने और मरम्मत, पुन: उपयोग और अपसाइक्लिंग को प्राथमिकता देने का आह्वान किया गया है।

सस्टेनेबल फैशन से संबंधित क्या पहल हैं?

  • वैश्विक स्तर पर:
    • सस्टेनेबल फैशन के लिये संयुक्त राष्ट्र गठबंधन:
    • सस्टेनेबल गारमेंट और फुटवियर के लिये अभिगम्यता: इस पहल के हिस्से के रूप में UNECE (यूरोप के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग) ने "द सस्टेनेबिलिटी प्लेज" लॉन्च किया है, जिसमें सरकारों, परिधान और जूते निर्माताओं तथा उद्योग के हितधारकों को कार्यवाही हेतु उपायों  को लागू करने एवं पर्यावरण और नैतिक साख क्षेत्र में सुधार की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने के लिये आमंत्रित किया गया है। 
    • विश्व कपास दिवस (7 अक्तूबर): यह अल्प विकसित देशों से कपास और कपास से संबंधित उत्पादों के लिये बाज़ार पहुंँच की आवश्यकता के बारे में जागरूकता उत्पन्न करता है, स्थायी व्यापार नीतियों को बढ़ावा देता है तथा विकासशील देशों को कपास मूल्य शृंखला के हर चरण से अधिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर: 
    • प्रोजेक्ट SU.RE: SU.RE का तात्पर्य 'सस्टेनेबल रिज़ॉल्यूशन' है। यह भारतीय वस्त्र उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण स्थिरता लक्ष्यों को स्थापित करने के लिये एक व्यापक ढाँचे को क्रमिक रूप से पेश करने की दिशा में पहला समग्र प्रयास है। इसे वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था।
      • उद्देश्य: परियोजना का लक्ष्य सतत् फैशन की ओर अग्रसर होना है जो स्वच्छ वातावरण में योगदान देता है।
    • खादी प्रोत्साहन: खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) खादी उत्पादों को बढ़ावा देता है। उन्होंने खादी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख ब्रांडों के साथ समझौता किया है।
    • ब्राउन कॉटन: ब्राउन कॉटन, देसी कपास की एक स्थानीय (कर्नाटक की) स्वदेशी किस्म है जो अपने प्राकृतिक भूरे रंग के लिये जानी जाती है। यह प्रयास एक व्यापक समावेशी प्रयास है जिसमें पर्यावरण, अर्थव्यवस्था संबंधी लक्ष्यों के साथ-साथ स्थानीय समुदाय की भागीदारी भी शामिल है।

आगे की राह

  • समाग विश्व में लोगों को जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये जिससे वे पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिये अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन सुनिश्चित करें।
  • पर्यावरणविदों द्वारा उन कंपनियों के विरुद्ध सार्वजनिक अभियान चलाया जाना चाहिये जो पर्यावरण मानकों का अनुपालन नहीं करती हैं और उनके द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद को खरीदने से बचना चाहिये। 
  • संपूर्ण देश की सरकारों को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) में वृद्धि करनी चाहिये जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंँचाने पर कंपनियों को भुगतान करने की आवश्यकता होती है। यह उन्हें सतत् प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रेरित करेगा।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. 'अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions)’ पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में  देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य-पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिये गए वचन।
(b) जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना।
(c) एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) की स्थापना करने में सदस्य राष्ट्रों द्वारा किया गया पूंजी योगदान। 
(d) धारणीय विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना।

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • ‘अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान’, UNFCCC के तहत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये व्यक्त की गई प्रतिबद्धता को बताता है।
  • CoP 21 में दुनिया भर के देशों ने सार्वजनिक रूप से उन कार्रवाइयों की रूपरेखा तैयार की, जिन्हें वे अंतर्राष्ट्रीय समझौते अंतर्गत क्रियान्वयित करना चाहते थे। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है जो "वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को बढ़ावा देता हैऔर इस शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है।" अतः विकल्प (b) सही है।


शासन व्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना को किया रद्द

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, चुनावी बॉण्ड, सूचना का अधिकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951, वित्त अधिनियम, 2017, आनुपातिकता परीक्षण, चुनावी ट्रस्ट योजना

मेन्स के लिये: 

सूचना का अधिकार, पारदर्शिता और जवाबदेही, चुनावी बॉण्ड योजना

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉण्ड योजना (Electoral Bond Scheme- EBS) और संबंधित संशोधनों को असंवैधानिक करार दिया, जो भारत में राजनीतिक वित्तपोषण पर व्यापक प्रभाव डालेगा।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनावी बॉण्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

क्या है चुनावी बॉण्ड योजना पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने EBS और वित्त अधिनियम, 2017; लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, (RPA) 1951; आयकर अधिनियम, 1961 और कंपनी अधिनियम, 2013 में किये गए संशोधनों को असंवैधानिक घोषित किया।
    • इन संशोधनों से पहले राजनीतिक दल कठोर अनिवार्यताओं के अधीन योगदान ग्रहण कर सकते थे, जिसमें 20,000 रुपए से अधिक के योगदान की घोषणा और कॉर्पोरेट दान पर एक सीमा शामिल थी।
  • SC द्वारा यथास्थिति की बहाली:
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिये महत्त्वपूर्ण कई कानूनों में वित्त अधिनियम, 2017 से पहले के विधिक ढाँचे को बहाल कर दिया।
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951:
      • धारा 29C में राजनीतिक दलों को दानकर्त्ता की गोपनीयता के साथ सूचना के अधिकार को संतुलित करते हुए 20,000 रुपए से अधिक के दान का खुलासा करना अनिवार्य है।
    • वित्त अधिनियम, 2017 का हस्तक्षेप: 
      • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान को प्रकटीकरण/खुलासे की आवश्यकताओं से छूट देने वाला एक अपवाद प्रस्तुत किया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
      • पारदर्शिता और गोपनीयता संतुलन के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए संशोधन को खारिज कर दिया गया।
    • कंपनी अधिनियम, 2013:
      • धारा 182 ने कॉर्पोरेट दान को प्रतिबंधित कर दिया और एक सीमा निर्धारित (पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत लाभ का 7.5%) की तथा प्रकटीकरण/खुलासे की आवश्यकताओं को लागू किया।
      • वित्त अधिनियम, 2017 का हस्तक्षेप:
        • इसमें कॉर्पोरेट दान के लिये सीमा और प्रकटीकरण के दायित्वों को हटा दिया गया।
      • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
        • चुनावों पर अनियंत्रित कॉर्पोरेट प्रभाव संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए संशोधन को रद्द कर दिया गया
    • आयकर अधिनियम, 1961:
      • धारा 13A(b) के तहत 20,000 रुपए से अधिक के दान का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य किया गया है।
      • वित्त अधिनियम, 2017 का हस्तक्षेप:
        • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का रिकॉर्ड रखने की आवश्यकताओं से छूट दी गई।
      • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
        • मतदाताओं के सूचना के अधिकार को बरकरार रखते हुए संशोधन को रद्द कर दिया।
  • आनुपातिकता परीक्षण:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात का पता लगाने के लिये आनुपातिकता परीक्षण (Proportionality Test) लागू किया कि इस योजना ने मतदाताओं के सूचना के अधिकार और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता का उल्लंघन किया है अथवा नहीं।
    • आनुपातिकता परीक्षण राज्य की कार्रवाई और व्यक्तिगत मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन का मूल्यांकन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण न्यायिक मानक के रूप में कार्य करता है।
      • अनुच्छेद 19(2) सरकार को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।
        • ये प्रतिबंध भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के हित में या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिये उकसाने के संबंध में हो सकते हैं।
          • संविधान भाग III में उल्लिखित मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार [अनुच्छेद 19(1)] भी शामिल है। इन अधिकारों में किसी भी हस्तक्षेप के लिये यह अनिवार्य होगा कि आनुपातिकता परीक्षण के माध्यम से मूल्यांकन किये गए अनुच्छेद 19(2) में निर्दिष्ट "उचित प्रतिबंधों" का पालन किया जाए।
    • आनुपातिकता परीक्षण को के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017 के निर्णय में प्रमुखता दी गई, जिसमें गोपनीयता की पुष्टि मौलिक अधिकार के रूप में की गई।
    • इसे आधार अधिनियम, 2018 के निर्णय में भी बरकरार रखा गया और कहा गया कि आनुपातिकता परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि राज्य की कार्रवाइयाँ वैध सरकारी हितों का अनुसरण करते हुए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती हैं।
    • सरकार का तर्क और राज्य के हित:
      • सरकार ने तर्क दिया कि काले धन पर अंकुश लगाना और दानकर्त्ता की गोपनीयता की रक्षा करना राज्य के वैध हित हैं।
        • दाताओं की गोपनीयता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में बनाए रखने के लिये दाता अनामिकता (दाता से संबंधी जानकारी को उजागर न करना) को अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत किया गया।
      • सरकार ने तर्क दिया कि सूचना का अधिकार उस जानकारी को मांगने तक विस्तारित नहीं है जो राज्य के अधिकार क्षेत्र या जानकारी में नहीं है।
    • सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
      • न्यायालय ने एक वैध राज्य उद्देश्य के रूप में दानकर्त्ता की अनामिकता को खारिज कर दिया और अनामिकता के बजाय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मतदाताओं के सूचना के अधिकार को प्राथमिकता दी।
        • इसमें सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा देने और सरकार को जवाबदेह बनाए रखने में सूचना के अधिकार की महत्त्वपूर्ण  भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने "दोहरी आनुपातिकता" परीक्षण की अवधारणा को लागू किया। इस दृष्टिकोण में प्रतिस्पर्द्धी मौलिक अधिकारों, सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार को संतुलित करना शामिल है।
        • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आनुपातिकता परीक्षण तब लागू होता है जब अधिकारों और राज्य की कार्रवाई के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो। लेकिन दोनों अधिकारों को संतुलित करने के लिये न्यायालय आगे बढ़ता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि राज्य दोनों अधिकारों के लिये कम-से-कम प्रतिबंधात्मक तरीकों का चयन करे और असंगत प्रभावों से बचे
        • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य के उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिये चुनावी ट्रस्ट योजना जैसे कम दखल देने वाले तरीकों की उपलब्धता पर प्रकाश डाला।
  • जारी किये गए दिशा-निर्देश:
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को किसी भी अन्य चुनावी बॉण्ड को जारी करने पर तुरंत रोक लगाने और 12 अप्रैल, 2019 से अब तक राजनीतिक दलों द्वारा खरीदे गए ऐसे बॉण्ड का विवरण भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है। इस तरह के विवरण में प्रत्येक बॉण्ड की खरीद की तिथि, बॉण्ड के खरीदार का नाम और खरीदे गए बॉण्ड का मूल्य शामिल होना चाहिये।
      • बाद में ECI 13 मार्च, 2024 तक SBI द्वारा साझा की गई ऐसी सभी जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
    • ऐसे चुनावी बॉण्ड जो वैधता अवधि के भीतर हैं, लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए नहीं गए, उन्हें जारीकर्त्ता बैंक द्वारा खरीदारों को जारी किये गए रिफंड के साथ वापस किया जाना चाहिये।

चुनावी बॉण्ड  क्या हैं?

  • परिचय:
    • वर्ष 2018 में शुरू की गई चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीके से फंडिंग की अनुमति देती है।
      • ये बॉण्ड वित्तीय साधनों के रूप में कार्य करते हैं और इन्हें वचन-पत्र या वाहक बॉण्ड के समान, विशेष रूप से राजनीतिक दलों को योगदान देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • EBS की घोषणा पहली बार वर्ष 2017 के बजट सत्र में की गई थी। बाद में इसे जनवरी 2018 में चुनावी बॉण्ड को सक्षम करने के लिये वित्त अधिनियम 2017, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, आयकर अधिनियम 1961 और कंपनी अधिनियम 2013 में संशोधन के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में अधिसूचित किया गया था। 
      • इन संशोधनों ने कंपनियों के लिये दान की सीमा को पूरी तरह से समाप्त करके और चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने तथा उसका रिकॉर्ड रखने की आवश्यकताओं को हटाते हुए चुनावी बॉण्ड को लेकर राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर कई प्रतिबंधों में कटौती करने की अनुमति दी।
  • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान:
    • चुनावी बॉण्ड भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और इसकी नामित शाखाओं द्वारा जारी किए जाते हैं और 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए तथा 1 करोड़ रुपए के कई मूल्यवर्ग में बेचे जाते हैं।
    • दानकर्त्ता अपने ग्राहक को जानें (Know Your Customer- KYC) अनुपालक खाते के माध्यम से चुनावी बॉण्ड खरीद सकते हैं और बाद में राजनीतिक दलों को धन हस्तांतरित कर सकते हैं।
    • दानकर्त्ता, चाहे व्यक्ति हों या कंपनियाँ, इन बॉण्डों को खरीद सकते हैं और दानदाताओं की पहचान बैंक और प्राप्तकर्त्ता राजनीतिक दलों दोनों के लिये गोपनीय रहती है।
    • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से किये गए दान पर योजना के तहत 100% कर छूट का लाभ मिलता है।
    • विशेष रूप से किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा खरीदे जाने वाले चुनावी बॉण्ड की संख्या की कोई सीमा नहीं निर्धारित नहीं है।
  • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से धन प्राप्त करने हेतु पात्रता:
    • केवल RPA, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और जिन्होंने लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनावों में डाले गए वोटों का 1% से कम वोट हासिल नहीं किया है, वे चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।

राजनीतिक दलों की फंडिंग पर क्या सिफारिशें हैं?

  • चुनावों के राज्य वित्तपोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति, 1998:
    • कम वित्तीय संसाधनों वाली पार्टियों के लिये निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा स्थापित करने के लिये चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण का समर्थन किया गया।
    • अनुशंसित सीमाएँ:
      • राज्य निधि केवल आवंटित प्रतीकों वाले राष्ट्रीय और राज्य दलों को आवंटित की जाएगी, स्वतंत्र उम्मीदवारों को नहीं।
      • प्रारंभ में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों को कुछ सुविधाएँ प्रदान करते हुए राज्य वित्तपोषण वस्तु के रूप में प्रदान किया जाना चाहिये
      • आर्थिक बाधाओं को स्वीकार किया गया, पूर्ण राज्य वित्तपोषण के बजाय आंशिक वित्तपोषण का समर्थन किया।
  • निर्वाचन आयोग की सिफारिशें:
    • निर्वाचन आयोग की 2004 की रिपोर्ट में राजनीतिक दलों के लिये अपने खातों को सालाना प्रकाशित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया, जिससे आम जनता और संबंधित संस्थाओं द्वारा जाँच की अनुमति मिल सके।
      • नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा अनुमोदित फर्मों के माध्यम से ऑडिट किये जाने के साथ, सटीकता सुनिश्चित करते हुए ऑडिट किये गए खातों को सार्वजनिक किया जाना चाहिये।
  • विधि आयोग, 1999:
    • चुनावों के लिये कुल राज्य वित्तपोषण को इस शर्त के तहत "वांछनीय" बताया गया कि राजनीतिक दलों को अन्य स्रोतों से धन प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है।
    • विधि आयोग की 1999 की रिपोर्ट में RPA, 1951 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया, जिसमें गैर-अनुपालन के लिये दंड के साथ, राजनीतिक दल के खातों के प्रबंधन, ऑडिट और प्रकाशन के लिये धारा 78A पेश की गई।

वैश्विक राजनीतिक फंडिंग भारत में फंडिंग से किस प्रकार भिन्न है?

  • पार्टियों को महत्त्व बनाम उम्मीदवार:
    • वैश्विक उदाहरण: 
      • संयुक्त राज्य अमेरिका में, राजनीतिक फंडिंग प्रायः व्यक्तिगत उम्मीदवारों के इर्द-गिर्द केंद्रित होती है, जिसमें उनके अभियानों का समर्थन करने के लिये व्यापक स्तर पर धन प्राप्त करने के प्रयास होते हैं।
    • भारत का संदर्भ: 
      • इसके विपरीत, भारत और अन्य संसदीय प्रणालियाँ राजनीतिक दलों पर केंद्रित फंडिंग फ्रेमवर्क को प्राथमिकता देती हैं, जहाँ दान को सामूहिक रूप से पार्टी की गतिविधियों और अभियानों का समर्थन करने के लिये प्रसारित किया जाता है।
  • दान का विनियमन:
    • वैश्विक पद्धति:
      • इसके विपरीत, यूनाइटेड किंगडम जैसे देश दान की सीमा निर्धारित नहीं करते हैं, बल्कि विनियमन की एक विधि के रूप में व्यय सीमा का विकल्प चुनते हैं।
      • कई न्यायक्षेत्र राजनीतिक फंडिंग में अनुचित प्रभाव को रोकने के लिये विदेशी संस्थाओं या निगमों जैसे कुछ दानदाताओं पर प्रतिबंध या सीमाएँ आरोपित करते हैं।
      • उदाहरण के लिये अमेरिका का संघीय कानून दाता के प्रकार के आधार पर दान की अलग-अलग सीमाएँ निर्धारित करता है।
    • भारत का संदर्भ:
      • भारत दान को नियंत्रित करता है लेकिन यहाँ व्यक्तिगत दान पर विशिष्ट सीमाओं का अभाव है। यह विरोधाभास भारतीय राजनीति में बड़े दानदाताओं के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता पैदा करता है।
  • व्यय सीमा:
    • वैश्विक मानदंड:
      • यूनाइटेड किंगडम जैसे क्षेत्राधिकार राजनीतिक दलों पर व्यय सीमा लागू करते हैं, जैसे प्रति सीट 30,000 यूरो (लगभग 30 लाख रुपए) से अधिक खर्च न करने जैसी सीमा
      • वित्तीय प्रभुत्व को कम करने और उम्मीदवारों या पार्टियों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक फंडिंग ढाँचे में व्यय सीमा सामान्य है।
    • भारत का संदर्भ:
      • भारत के विनियामक परिदृश्य में पार्टियों पर कानूनी व्यय सीमा का अभाव है, जिससे उन्हें चुनावी अभियानों पर स्वतंत्र रूप से खर्च करने की अनुमति मिलती है, जो संभावित रूप से चुनावी परिणामों को विकृत करती है।
  • सार्वजनिक वित्तपोषण:
    • वैश्विक पद्धति: 
      • कई देश विभिन्न मानदंडों के आधार पर राजनीतिक दलों के लिये सार्वजनिक धन की पेशकश करते हैं।
      • उदाहरण के लिये जर्मनी में पार्टियों को पिछले चुनाव प्रदर्शन, सदस्यता शुल्क और निजी दान जैसे कारकों के आधार पर धन मिलता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दल फाउंडेशन्स को राज्य से धन प्राप्त होता है।
      • सिएटल, अमेरिका में "डेमोक्रेसी वाउचर" का प्रयोग किया जाता है, जहाँ पात्र मतदाताओं को अपने चुने हुए उम्मीदवारों को दान देने के लिये वाउचर प्राप्त होते हैं।
    • भारतीय संदर्भ: 
      • भारत के सार्वजनिक वित्तपोषण तंत्र सीमित हैं, चुनावी बॉण्ड योजना जैसी पहल से पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • पारदर्शिता और गुमनामी को संतुलित करना:
    • अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास:
      • कई न्यायक्षेत्रों का उद्देश्य छोटे दानदाताओं को गुमनाम रहने की अनुमति देकर पारदर्शिता और गुमनामी को संतुलित करना है, जबकि बड़े दान के लिये खुलासे की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण के लिये यूके में पार्टियों को एक कैलेंडर वर्ष में 7,500 पाउंड से अधिक के दान की सूचना देनी होती है, जबकि जर्मनी में यह सीमा 10,000 यूरो है।
        • इस दृष्टिकोण के पीछे तर्क यह है कि छोटे दानदाताओं के महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की संभावना कम होती है और वे उत्पीड़न के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जबकि बड़े दानदाताओं की बदले में यथास्थिति व्यवस्था (Quid pro quo arrangements) में शामिल होने की अधिक संभावना होती है।
    • भारतीय संदर्भ: 
      • इसके विपरीत भारत में व्यक्तियों पर दान सीमा और पार्टियों पर कानूनी व्यय सीमा का अभाव है, जिससे अभियानों पर अप्रतिबंधित खर्च की अनुमति मिलती है।
  • चिली द्वारा किया गया प्रयोग:
    • चिली के प्रयोग का उद्देश्य प्रतिदान व्यवस्था को रोकने के लिये पार्टी फंडिंग में गुमनामी हासिल करना था।
      • इस प्रणाली के तहत दानकर्त्ता निर्वाचन सेवा को धन हस्तांतरित कर सकते हैं, जो दानकर्त्ता की पहचान उजागर किये बिना इसे पार्टी को भेज देगा।
      • हालाँकि जैसा कि 2014-15 की घटनाओं से पता चला, दानकर्त्ताओं और पार्टियों के 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ‘निजता का अधिकार’ संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद-15                
(b)  अनुच्छेद-19
(c) अनुच्छेद-21                
(d)  अनुच्छेद-29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यत्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युत्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. "सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनपर्रिभाषित करता है।" विवेचना कीजिये। (2018)

प्रश्न. निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)


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