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शासन व्यवस्था

चुनावी बॉण्ड

  • 18 Oct 2023
  • 10 min read

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने चुनावी बॉण्ड- 2018 योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया है।

  • केंद्र ने इस योजना को "चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम" करार दिया है जो "पारदर्शिता” और "उत्तरदायित्व" सुनिश्चित करेगी, याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया है कि यह राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है।

नोट: 

न्यायालय मुख्य रूप से चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सहमत हुआ है:

  • राजनीतिक दलों को गुप्त दान की वैधानिकता और राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी के नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन, संभावित रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
  • ये मुद्दे संवैधानिक अनुच्छेद 19, 14 और 21 के उल्लंघन से संबंधित हैं।

चुनावी बॉण्ड:

  • परिचय:
    • चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था।
    • बॉण्ड दानदाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिये व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये एक साधन के रूप में कार्य करते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • भारतीय स्टेट बैंक 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के बॉण्ड जारी करता है।
    • यह ब्याज मुक्त होता है और धारक द्वारा मांगे जाने पर देय होता है।
    • भारतीय नागरिक अथवा भारत में स्थापित संस्थाएँ इसे खरीद सकती हैं।
    • इसे व्यक्तिगत रूप से या संयुक्त रूप से खरीदा जा सकता है।
    • यह जारी होने की तारीख से 15 कैलेंडर दिवसों के लिये वैध होता है।
  • अधिकृत जारीकर्त्ता:
    • भारतीय स्टेट बैंक इसका अधिकृत जारीकर्त्ता है।
    • चुनावी बॉण्ड नामित भारतीय स्टेट बैंक शाखाओं के माध्यम से जारी किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों की पात्रता:
    • केवल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा अथवा विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से- कम 1% वोट हासिल किये हों, चुनावी बॉण्ड खरीदने हेतु पात्र हैं।
  • खरीद और नकदीकरण:
    • चुनावी बॉण्ड डिजिटल अथवा चेक के माध्यम से खरीदे जा सकते हैं।
    • नकदीकरण केवल राजनीतिक दल के अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • राजनीतिक दलों को भारतीय निर्वाचन आयोग के साथ अपने बैंक खाते के विवरणों का खुलासा करना अनिवार्य है।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये बैंकिंग चैनलों के माध्यम से दान दिया जाता है।
    • राजनीतिक दलों को प्राप्त धन के उपयोग का विवरण देना अनिवार्य है।
  • लाभ:
    • राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता में वृद्धि।
    • धन के रूप में प्राप्त दान के उपयोग का खुलासा करने की जवाबदेही।
    • नकदी लेन-देन में कमी।
    • दाता की गोपनीयता का संरक्षण।

चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित चिंताएँ:

  • अपने मूल विचार के विपरीत:
    • चुनावी बॉण्ड योजना की आलोचना का मुख्य कारण यह है कि यह अपने मूल विचार अथवा उद्देश्य, चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने, के बिल्कुल विपरीत काम करती है।
      • उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की गोपनीयता केवल जनता और विपक्षी दलों के लिये है, दान प्राप्त करने वाले दल के लिये नहीं।
  • ज़बरन वसूली की संभावना:
    • तथ्य यह है कि ऐसे बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंक (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, जिससे सरकार को यह पता चल जाता है कि उसके विरोधियों को कौन फंडिंग कर रहा है।
      • यह बदले में वर्तमान सरकार को विशेष रूप से बड़ी कंपनियों से पैसे निकालने की सुविधा देता है या सत्ताधारी पार्टी को धन न देने के लिये उन्हें परेशान करता है- किसी भी तरह से सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करता है।
  • लोकतंत्र पर आघात:
    • वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने से छूट दी है।
      • इसका अर्थ यह है कि मतदाताओं को यह नहीं पता होगा कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को कितनी मात्रा में फंड दिया है।
    • हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों को अपना वोट देते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
  • बड़े व्यवसाइयों के लाभ पर केंद्रित:
    • चुनावी बॉण्ड योजना ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदा और भारतीय तथा विदेशी कंपनियों द्वारा गुप्त वित्तपोषण के द्वार खोल दिये हैं, जिसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर असर हो सकता है।
      • इस योजना के तहत कॉर्पोरेट और यहाँ तक कि विदेशी संस्थाओं द्वारा किये गए दान पर कर में 100% छूट से बड़े व्यवसाइयों को लाभ हुआ।
  • सूचना के अधिकार से समझौता:
  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ:
    • चुनावी बॉण्ड नागरिकों को कोई विवरण नहीं देते हैं।
    • उक्त गुमनामी तत्कालीन सरकार पर लागू नहीं होती है, जो हमेशा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकती है।
  • क्रोनी कैपिटलिज़्म :
    • चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक डोनेशन पर सभी पूर्व-मौजूदा सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी संसाधन वाले निगमों को चुनावों को वित्तपोषित करने की अनुमति देती है, जिससे बाद में क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • क्रोनी कैपिटलिज़्म: यह व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक प्रणाली है।

आगे की राह 

  • भ्रष्टाचार के दुष्चक्र और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
  • संपूर्ण शासन तंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिये मौजूदा कानूनों की खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
  • मतदाता जागरूकता अभियानों की मांग करके भी महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं।
    • यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और दलों को अस्वीकार कर देते हैं जो अधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं, तो लोकतंत्र एक कदम आगे बढ़ जाएगा।

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