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सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम

  • 14 Oct 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, केंद्रीय सूचना आयोग

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, पारदर्शिता और जवाबदेही

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम के तहत सूचना आयोगों में अपील या शिकायतों के लंबित मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • लंबित मामले:
    • वर्तमान में भारत भर में 26 सूचना आयोगों के पास लगभग 3.15 लाख शिकायतें या अपील लंबित हैं।
    • वर्ष 2019 में लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या 2,18,347 थी जो 2022 में बढ़कर 3,14,323 हो गई।
    • सबसे अधिक लंबित मामले महाराष्ट्र में थे, उसके बाद उत्तर प्रदेश, कर्नाटक में थे।
  • निष्क्रिय सूचना आयोग:
    • देश भर में 29 सूचना आयोगों में से दो पूरी तरह से निष्क्रिय हैं, चार बगैर प्रमुख अधिकारी के संचालित हो रहे हैं और केवल 5% पदों पर ही महिलाएँ हैं।
      • झारखंड और त्रिपुरा क्रमशः 29 महीने और 15 महीने से पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। मणिपुर, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश में सूचना आयोग कार्यालय प्रमुख अधिकारी के बिना संचालित हो रहे हैं।
  • जुर्माना:
    • आयोगों ने उन 95% मामलों में जुर्माना नहीं लगाया जहाँ जुर्माना संभावित रूप से आवश्यक था।
  • मामलों का विलंबित निपटान:
    • रिपोर्ट में कई आयोगों में मामलों के विलंबित निपटान दरों और उनके कामकाज में पारदर्शिता की कमी के बारे में भी चिंता व्यक्त की गई है।
  • RTI आवेदनों के लिये ई-फाइलिंग सुविधा:
    • 29 में से केवल 11 सूचना आयोग RTI आवेदनों या अपीलों के लिये ई-फाइलिंग की सुविधा प्रदान करते हैं, जिनमें से केवल पाँच ही कार्यरत हैं।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम:

  • परिचय:
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सरकारी सूचना के लिये नागरिकों के प्रश्नों का समय पर जवाब देना अनिवार्य बनाता है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को रोकना तथा वास्तविक अर्थों में हमारे लोकतंत्र का लोगों के लिये कार्य करना है।
  • सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019:
    • इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिये पद धारण करेंगे। इस संशोधन से पहले इनका कार्यकाल 5 साल के लिये तय किया गया था।
    • इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
      • इस संशोधन से पूर्व, मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान थीं और सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें एक चुनाव आयुक्त (राज्यों के मामले में राज्य चुनाव आयुक्त) के समान थीं।
    • इसने मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, और राज्य सूचना आयुक्त के लिये पेंशन या किसी अन्य सेवानिवृत्ति लाभ के कारण वेतन कटौती से संबंधित खंडों को समाप्त कर दिया, जो उन्हें उनके सरकारी नौकरी के लिये प्राप्त हुए थे।
    • RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 की आलोचना कानून को कमज़ोर करने और केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ देने के आधार पर की गई थी।
  • कार्यान्वयन में समस्याएँ:
    • सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रोएक्टिव डिस्क्लोज़र में गैर-अनुपालन।नागरिकों के प्रति लोक सूचना अधिकारियों (PIO) का शत्रुतापूर्ण रवैया और सूचना छिपाने के लिये सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या करना।
    • जनहित और निजता के अधिकार के संबंध में स्पष्टता का अभाव।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और खराब बुनियादी ढाँचा।
    • सार्वजनिक महत्त्व के आवश्यक मामलों पर सक्रिय नागरिकों द्वारा किये गए सूचना अनुरोधों की अस्वीकृति।
    • RTI कार्यकर्त्ताओं और आवेदकों की आवाज दबाने के लिये उनके खिलाफ हमलों और धमकियों जैसे अन्य साधन।

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC):

  • स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
  • सदस्य: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और दस से अधिक सूचना आयुक्त नहीं हो सकते हैं।
  • नियुक्ति: उन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
  • क्षेत्राधिकार: आयोग का अधिकार क्षेत्र सभी केंद्रीय लोक प्राधिकरणों तक है।
  • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रह सकता है।
    • वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
  • CIC की शक्तियाँ और कार्य:
    • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
    • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
    • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।

आगे की राह

  • सूचना आयोगों का समुचित कामकाज:
    • लोगों को सूचना के अधिकार का एहसास कराने के लिये सूचना आयोगों का उचित कामकाज महत्त्वपूर्ण है।
    • RTI कानून के तहत सूचना आयोग अंतिम अपीलीय प्राधिकरण हैं और लोगों के सूचना के मौलिक अधिकार की रक्षा एवं सुविधा के लिये अनिवार्य हैं।
  • पारदर्शिता:
    • पारदर्शिता पर्यवेक्षकों को अधिक प्रभावी और पारदर्शी तरीके से कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • प्रणाली का डिजिटलीकरण:
    • डिजिटल RTI पोर्टल (वेबसाइट या मोबाइल एप) अधिक कुशल और नागरिक-अनुकूल सेवाएँ प्रदान कर सकता है जो पारंपरिक माध्यम से संभव नहीं है।
    • यह पारदर्शिता चाहने वालों और सरकार दोनों के लिये फायदेमंद होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को पुनःपरिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (2018)

स्रोत: द हिंदू

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