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सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना को किया रद्द

  • 16 Feb 2024
  • 24 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, चुनावी बॉण्ड, सूचना का अधिकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951, वित्त अधिनियम, 2017, आनुपातिकता परीक्षण, चुनावी ट्रस्ट योजना

मेन्स के लिये: 

सूचना का अधिकार, पारदर्शिता और जवाबदेही, चुनावी बॉण्ड योजना

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉण्ड योजना (Electoral Bond Scheme- EBS) और संबंधित संशोधनों को असंवैधानिक करार दिया, जो भारत में राजनीतिक वित्तपोषण पर व्यापक प्रभाव डालेगा।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनावी बॉण्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

क्या है चुनावी बॉण्ड योजना पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने EBS और वित्त अधिनियम, 2017; लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, (RPA) 1951; आयकर अधिनियम, 1961 और कंपनी अधिनियम, 2013 में किये गए संशोधनों को असंवैधानिक घोषित किया।
    • इन संशोधनों से पहले राजनीतिक दल कठोर अनिवार्यताओं के अधीन योगदान ग्रहण कर सकते थे, जिसमें 20,000 रुपए से अधिक के योगदान की घोषणा और कॉर्पोरेट दान पर एक सीमा शामिल थी।
  • SC द्वारा यथास्थिति की बहाली:
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिये महत्त्वपूर्ण कई कानूनों में वित्त अधिनियम, 2017 से पहले के विधिक ढाँचे को बहाल कर दिया।
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951:
      • धारा 29C में राजनीतिक दलों को दानकर्त्ता की गोपनीयता के साथ सूचना के अधिकार को संतुलित करते हुए 20,000 रुपए से अधिक के दान का खुलासा करना अनिवार्य है।
    • वित्त अधिनियम, 2017 का हस्तक्षेप: 
      • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान को प्रकटीकरण/खुलासे की आवश्यकताओं से छूट देने वाला एक अपवाद प्रस्तुत किया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
      • पारदर्शिता और गोपनीयता संतुलन के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए संशोधन को खारिज कर दिया गया।
    • कंपनी अधिनियम, 2013:
      • धारा 182 ने कॉर्पोरेट दान को प्रतिबंधित कर दिया और एक सीमा निर्धारित (पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत लाभ का 7.5%) की तथा प्रकटीकरण/खुलासे की आवश्यकताओं को लागू किया।
      • वित्त अधिनियम, 2017 का हस्तक्षेप:
        • इसमें कॉर्पोरेट दान के लिये सीमा और प्रकटीकरण के दायित्वों को हटा दिया गया।
      • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
        • चुनावों पर अनियंत्रित कॉर्पोरेट प्रभाव संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए संशोधन को रद्द कर दिया गया
    • आयकर अधिनियम, 1961:
      • धारा 13A(b) के तहत 20,000 रुपए से अधिक के दान का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य किया गया है।
      • वित्त अधिनियम, 2017 का हस्तक्षेप:
        • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का रिकॉर्ड रखने की आवश्यकताओं से छूट दी गई।
      • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
        • मतदाताओं के सूचना के अधिकार को बरकरार रखते हुए संशोधन को रद्द कर दिया।
  • आनुपातिकता परीक्षण:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात का पता लगाने के लिये आनुपातिकता परीक्षण (Proportionality Test) लागू किया कि इस योजना ने मतदाताओं के सूचना के अधिकार और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता का उल्लंघन किया है अथवा नहीं।
    • आनुपातिकता परीक्षण राज्य की कार्रवाई और व्यक्तिगत मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन का मूल्यांकन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण न्यायिक मानक के रूप में कार्य करता है।
      • अनुच्छेद 19(2) सरकार को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।
        • ये प्रतिबंध भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के हित में या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिये उकसाने के संबंध में हो सकते हैं।
          • संविधान भाग III में उल्लिखित मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार [अनुच्छेद 19(1)] भी शामिल है। इन अधिकारों में किसी भी हस्तक्षेप के लिये यह अनिवार्य होगा कि आनुपातिकता परीक्षण के माध्यम से मूल्यांकन किये गए अनुच्छेद 19(2) में निर्दिष्ट "उचित प्रतिबंधों" का पालन किया जाए।
    • आनुपातिकता परीक्षण को के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017 के निर्णय में प्रमुखता दी गई, जिसमें गोपनीयता की पुष्टि मौलिक अधिकार के रूप में की गई।
    • इसे आधार अधिनियम, 2018 के निर्णय में भी बरकरार रखा गया और कहा गया कि आनुपातिकता परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि राज्य की कार्रवाइयाँ वैध सरकारी हितों का अनुसरण करते हुए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती हैं।
    • सरकार का तर्क और राज्य के हित:
      • सरकार ने तर्क दिया कि काले धन पर अंकुश लगाना और दानकर्त्ता की गोपनीयता की रक्षा करना राज्य के वैध हित हैं।
        • दाताओं की गोपनीयता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में बनाए रखने के लिये दाता अनामिकता (दाता से संबंधी जानकारी को उजागर न करना) को अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत किया गया।
      • सरकार ने तर्क दिया कि सूचना का अधिकार उस जानकारी को मांगने तक विस्तारित नहीं है जो राज्य के अधिकार क्षेत्र या जानकारी में नहीं है।
    • सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
      • न्यायालय ने एक वैध राज्य उद्देश्य के रूप में दानकर्त्ता की अनामिकता को खारिज कर दिया और अनामिकता के बजाय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मतदाताओं के सूचना के अधिकार को प्राथमिकता दी।
        • इसमें सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा देने और सरकार को जवाबदेह बनाए रखने में सूचना के अधिकार की महत्त्वपूर्ण  भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने "दोहरी आनुपातिकता" परीक्षण की अवधारणा को लागू किया। इस दृष्टिकोण में प्रतिस्पर्द्धी मौलिक अधिकारों, सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार को संतुलित करना शामिल है।
        • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आनुपातिकता परीक्षण तब लागू होता है जब अधिकारों और राज्य की कार्रवाई के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो। लेकिन दोनों अधिकारों को संतुलित करने के लिये न्यायालय आगे बढ़ता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि राज्य दोनों अधिकारों के लिये कम-से-कम प्रतिबंधात्मक तरीकों का चयन करे और असंगत प्रभावों से बचे
        • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य के उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिये चुनावी ट्रस्ट योजना जैसे कम दखल देने वाले तरीकों की उपलब्धता पर प्रकाश डाला।
  • जारी किये गए दिशा-निर्देश:
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को किसी भी अन्य चुनावी बॉण्ड को जारी करने पर तुरंत रोक लगाने और 12 अप्रैल, 2019 से अब तक राजनीतिक दलों द्वारा खरीदे गए ऐसे बॉण्ड का विवरण भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है। इस तरह के विवरण में प्रत्येक बॉण्ड की खरीद की तिथि, बॉण्ड के खरीदार का नाम और खरीदे गए बॉण्ड का मूल्य शामिल होना चाहिये।
      • बाद में ECI 13 मार्च, 2024 तक SBI द्वारा साझा की गई ऐसी सभी जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
    • ऐसे चुनावी बॉण्ड जो वैधता अवधि के भीतर हैं, लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए नहीं गए, उन्हें जारीकर्त्ता बैंक द्वारा खरीदारों को जारी किये गए रिफंड के साथ वापस किया जाना चाहिये।

चुनावी बॉण्ड  क्या हैं?

  • परिचय:
    • वर्ष 2018 में शुरू की गई चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीके से फंडिंग की अनुमति देती है।
      • ये बॉण्ड वित्तीय साधनों के रूप में कार्य करते हैं और इन्हें वचन-पत्र या वाहक बॉण्ड के समान, विशेष रूप से राजनीतिक दलों को योगदान देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • EBS की घोषणा पहली बार वर्ष 2017 के बजट सत्र में की गई थी। बाद में इसे जनवरी 2018 में चुनावी बॉण्ड को सक्षम करने के लिये वित्त अधिनियम 2017, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, आयकर अधिनियम 1961 और कंपनी अधिनियम 2013 में संशोधन के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में अधिसूचित किया गया था। 
      • इन संशोधनों ने कंपनियों के लिये दान की सीमा को पूरी तरह से समाप्त करके और चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने तथा उसका रिकॉर्ड रखने की आवश्यकताओं को हटाते हुए चुनावी बॉण्ड को लेकर राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर कई प्रतिबंधों में कटौती करने की अनुमति दी।
  • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान:
    • चुनावी बॉण्ड भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और इसकी नामित शाखाओं द्वारा जारी किए जाते हैं और 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए तथा 1 करोड़ रुपए के कई मूल्यवर्ग में बेचे जाते हैं।
    • दानकर्त्ता अपने ग्राहक को जानें (Know Your Customer- KYC) अनुपालक खाते के माध्यम से चुनावी बॉण्ड खरीद सकते हैं और बाद में राजनीतिक दलों को धन हस्तांतरित कर सकते हैं।
    • दानकर्त्ता, चाहे व्यक्ति हों या कंपनियाँ, इन बॉण्डों को खरीद सकते हैं और दानदाताओं की पहचान बैंक और प्राप्तकर्त्ता राजनीतिक दलों दोनों के लिये गोपनीय रहती है।
    • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से किये गए दान पर योजना के तहत 100% कर छूट का लाभ मिलता है।
    • विशेष रूप से किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा खरीदे जाने वाले चुनावी बॉण्ड की संख्या की कोई सीमा नहीं निर्धारित नहीं है।
  • चुनावी बॉण्ड के माध्यम से धन प्राप्त करने हेतु पात्रता:
    • केवल RPA, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और जिन्होंने लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनावों में डाले गए वोटों का 1% से कम वोट हासिल नहीं किया है, वे चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।

राजनीतिक दलों की फंडिंग पर क्या सिफारिशें हैं?

  • चुनावों के राज्य वित्तपोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति, 1998:
    • कम वित्तीय संसाधनों वाली पार्टियों के लिये निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा स्थापित करने के लिये चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण का समर्थन किया गया।
    • अनुशंसित सीमाएँ:
      • राज्य निधि केवल आवंटित प्रतीकों वाले राष्ट्रीय और राज्य दलों को आवंटित की जाएगी, स्वतंत्र उम्मीदवारों को नहीं।
      • प्रारंभ में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों को कुछ सुविधाएँ प्रदान करते हुए राज्य वित्तपोषण वस्तु के रूप में प्रदान किया जाना चाहिये
      • आर्थिक बाधाओं को स्वीकार किया गया, पूर्ण राज्य वित्तपोषण के बजाय आंशिक वित्तपोषण का समर्थन किया।
  • निर्वाचन आयोग की सिफारिशें:
    • निर्वाचन आयोग की 2004 की रिपोर्ट में राजनीतिक दलों के लिये अपने खातों को सालाना प्रकाशित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया, जिससे आम जनता और संबंधित संस्थाओं द्वारा जाँच की अनुमति मिल सके।
      • नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा अनुमोदित फर्मों के माध्यम से ऑडिट किये जाने के साथ, सटीकता सुनिश्चित करते हुए ऑडिट किये गए खातों को सार्वजनिक किया जाना चाहिये।
  • विधि आयोग, 1999:
    • चुनावों के लिये कुल राज्य वित्तपोषण को इस शर्त के तहत "वांछनीय" बताया गया कि राजनीतिक दलों को अन्य स्रोतों से धन प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है।
    • विधि आयोग की 1999 की रिपोर्ट में RPA, 1951 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया, जिसमें गैर-अनुपालन के लिये दंड के साथ, राजनीतिक दल के खातों के प्रबंधन, ऑडिट और प्रकाशन के लिये धारा 78A पेश की गई।

वैश्विक राजनीतिक फंडिंग भारत में फंडिंग से किस प्रकार भिन्न है?

  • पार्टियों को महत्त्व बनाम उम्मीदवार:
    • वैश्विक उदाहरण: 
      • संयुक्त राज्य अमेरिका में, राजनीतिक फंडिंग प्रायः व्यक्तिगत उम्मीदवारों के इर्द-गिर्द केंद्रित होती है, जिसमें उनके अभियानों का समर्थन करने के लिये व्यापक स्तर पर धन प्राप्त करने के प्रयास होते हैं।
    • भारत का संदर्भ: 
      • इसके विपरीत, भारत और अन्य संसदीय प्रणालियाँ राजनीतिक दलों पर केंद्रित फंडिंग फ्रेमवर्क को प्राथमिकता देती हैं, जहाँ दान को सामूहिक रूप से पार्टी की गतिविधियों और अभियानों का समर्थन करने के लिये प्रसारित किया जाता है।
  • दान का विनियमन:
    • वैश्विक पद्धति:
      • इसके विपरीत, यूनाइटेड किंगडम जैसे देश दान की सीमा निर्धारित नहीं करते हैं, बल्कि विनियमन की एक विधि के रूप में व्यय सीमा का विकल्प चुनते हैं।
      • कई न्यायक्षेत्र राजनीतिक फंडिंग में अनुचित प्रभाव को रोकने के लिये विदेशी संस्थाओं या निगमों जैसे कुछ दानदाताओं पर प्रतिबंध या सीमाएँ आरोपित करते हैं।
      • उदाहरण के लिये अमेरिका का संघीय कानून दाता के प्रकार के आधार पर दान की अलग-अलग सीमाएँ निर्धारित करता है।
    • भारत का संदर्भ:
      • भारत दान को नियंत्रित करता है लेकिन यहाँ व्यक्तिगत दान पर विशिष्ट सीमाओं का अभाव है। यह विरोधाभास भारतीय राजनीति में बड़े दानदाताओं के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता पैदा करता है।
  • व्यय सीमा:
    • वैश्विक मानदंड:
      • यूनाइटेड किंगडम जैसे क्षेत्राधिकार राजनीतिक दलों पर व्यय सीमा लागू करते हैं, जैसे प्रति सीट 30,000 यूरो (लगभग 30 लाख रुपए) से अधिक खर्च न करने जैसी सीमा
      • वित्तीय प्रभुत्व को कम करने और उम्मीदवारों या पार्टियों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक फंडिंग ढाँचे में व्यय सीमा सामान्य है।
    • भारत का संदर्भ:
      • भारत के विनियामक परिदृश्य में पार्टियों पर कानूनी व्यय सीमा का अभाव है, जिससे उन्हें चुनावी अभियानों पर स्वतंत्र रूप से खर्च करने की अनुमति मिलती है, जो संभावित रूप से चुनावी परिणामों को विकृत करती है।
  • सार्वजनिक वित्तपोषण:
    • वैश्विक पद्धति: 
      • कई देश विभिन्न मानदंडों के आधार पर राजनीतिक दलों के लिये सार्वजनिक धन की पेशकश करते हैं।
      • उदाहरण के लिये जर्मनी में पार्टियों को पिछले चुनाव प्रदर्शन, सदस्यता शुल्क और निजी दान जैसे कारकों के आधार पर धन मिलता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दल फाउंडेशन्स को राज्य से धन प्राप्त होता है।
      • सिएटल, अमेरिका में "डेमोक्रेसी वाउचर" का प्रयोग किया जाता है, जहाँ पात्र मतदाताओं को अपने चुने हुए उम्मीदवारों को दान देने के लिये वाउचर प्राप्त होते हैं।
    • भारतीय संदर्भ: 
      • भारत के सार्वजनिक वित्तपोषण तंत्र सीमित हैं, चुनावी बॉण्ड योजना जैसी पहल से पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • पारदर्शिता और गुमनामी को संतुलित करना:
    • अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास:
      • कई न्यायक्षेत्रों का उद्देश्य छोटे दानदाताओं को गुमनाम रहने की अनुमति देकर पारदर्शिता और गुमनामी को संतुलित करना है, जबकि बड़े दान के लिये खुलासे की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण के लिये यूके में पार्टियों को एक कैलेंडर वर्ष में 7,500 पाउंड से अधिक के दान की सूचना देनी होती है, जबकि जर्मनी में यह सीमा 10,000 यूरो है।
        • इस दृष्टिकोण के पीछे तर्क यह है कि छोटे दानदाताओं के महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की संभावना कम होती है और वे उत्पीड़न के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जबकि बड़े दानदाताओं की बदले में यथास्थिति व्यवस्था (Quid pro quo arrangements) में शामिल होने की अधिक संभावना होती है।
    • भारतीय संदर्भ: 
      • इसके विपरीत भारत में व्यक्तियों पर दान सीमा और पार्टियों पर कानूनी व्यय सीमा का अभाव है, जिससे अभियानों पर अप्रतिबंधित खर्च की अनुमति मिलती है।
  • चिली द्वारा किया गया प्रयोग:
    • चिली के प्रयोग का उद्देश्य प्रतिदान व्यवस्था को रोकने के लिये पार्टी फंडिंग में गुमनामी हासिल करना था।
      • इस प्रणाली के तहत दानकर्त्ता निर्वाचन सेवा को धन हस्तांतरित कर सकते हैं, जो दानकर्त्ता की पहचान उजागर किये बिना इसे पार्टी को भेज देगा।
      • हालाँकि जैसा कि 2014-15 की घटनाओं से पता चला, दानकर्त्ताओं और पार्टियों के 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ‘निजता का अधिकार’ संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद-15                
(b)  अनुच्छेद-19
(c) अनुच्छेद-21                
(d)  अनुच्छेद-29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यत्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युत्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. "सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनपर्रिभाषित करता है।" विवेचना कीजिये। (2018)

प्रश्न. निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)

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