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डेली न्यूज़

  • 15 Mar, 2022
  • 68 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फॉस्फोरस बम

प्रिलिम्स के लिये:

फॉस्फोरस बम,डोनबास क्षेत्र, रासायनिक हथियार सम्मेलन (सीडब्ल्यूसी), ऑस्ट्रेलिया समूह।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, रूस-यूक्रेन युद्ध।


चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूक्रेन की पुलिस द्वारा रूसी सेना पर आरोप लगाया गया है कि उसने पूर्वी यूक्रेन के लुगांस्क और डोनेट्स्क क्षेत्रों, जिन्हें सामूहिक रूप से डोनबास (Donbas) के रूप में जाना जाता है, में फॉस्फोरस बम (रासायनिक हथियार) से हमले किये हैं।

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में सफेद/ह्वाइट फास्फोरस के बम के उपयोग को प्रतिबंधित करता है लेकिन खुले स्थानों पर सैनिकों को कवर/सुरक्षा प्रदान करने के लिये इनके इस्तेमाल की अनुमति देता है।

प्रमुख बिंदु

फॉस्फोरस बम:

  • एलोट्रोप्स/अपररूप: सफेद फॉस्फोरस एक ऐसा युद्धक हथियार है जिसमें रासायनिक तत्त्व फॉस्फोरस के किसी अपररूप ( Allotropes) का उपयोग किया जाता है।
  • पायरोफोरिक: सफेद फाॅस्फोरस एक स्वतः ज्वलनशील/पायरोफोरिक (Pyrophoric) तत्त्व है (यह हवा के संपर्क में आने पर प्रज्वलित होता है), यह अत्यधिक ज्वलनशील है जो कपड़ा, ईंधन, गोला-बारूद और अन्य ज्वलनशील पदार्थों को प्रज्वलित कर सकता है।
    • इसके अलावा इसका उपयोग ट्रेसर गोला बारूद (Tracer Ammunition) में रोशनी युक्त धुआँ उत्पन्न करने और ज्वलनशील तत्त्वों के रूप में भी किया जाता है।
  • रासायनिक प्रतिक्रिया: अपनी आक्रामक क्षमताओं के अलावा सफेद फाॅस्फोरस एक अत्यधिक तीव्र धुआंँ-उत्पादक एजेंट (Smoke-Producing Agent) है, जो हवा के साथ प्रतिक्रिया करके तत्काल विषाक्त फॉस्फोरस पेंटोक्साइड वाष्प (Phosphorus Pentoxide Vapour) के आवरण का निर्माण करता है।
  • प्रभाव: फॉस्फोरस से निर्मित पेंटोक्साइड वाष्प के आवरण के टुकड़ों की वजह से गंभीर चोटों के अलावा सफेद फाॅस्फोरस युद्ध सामग्री मुख्य तौर पर दो तरीकों से नुकसान पहुंँचाने का कारण बन सकती है: जलने और वाष्प में साँस लेने से।

रासायनिक हथियार:

  • रासायनिक हथियार एक ऐसा रसायन होता है जिसका उपयोग इसके ज़हरीले गुणों के माध्यम से जान-बूझकर मौत या नुकसान पहुँचाने के लिये किया जाता है।
  • विशेष रूप से ज़हरीले रसायनों से हथियार बनाने के लिये डिज़ाइन की गई युद्ध सामग्री, उपकरण और अन्य हथियार भी रासायनिक हथियारों की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं।

रासायनिक हथियारों के उपयोग के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय कानून:

  • रासायनिक हथियार कन्वेंशन (Chemical Weapons Convention- CWC) रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने और निर्धारित समय के भीतर उनके विनाश हेतु एक बहुपक्षीय संधि है।
  • CWC के लिये वार्ता की शुरुआत वर्ष 1980 में निरस्त्रीकरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में शुरू हुई।
  • इस कन्वेंशन का मसौदा सितंबर 1992 में तैयार किया गया था और जनवरी 1993 में इसे हस्ताक्षर के लिये प्रस्तुत किया गया था। यह अप्रैल 1997 से प्रभावी हुआ।
  • यह पुराने और प्रयोग किये जा चुके रासायनिक हथियारों को नष्ट करना अनिवार्य बनाता है।
  • सभी सदस्य देशों को उनके पास मौजूद दंगा नियंत्रण एजेंट (यानी 'आँसू गैस' आदि) के विषय में भी घोषणा करनी चाहिये।
  • भारत ने जनवरी 1993 में संधि पर हस्ताक्षर किये। रासायनिक हथियार कन्वेंशन अधिनियम, 2000 CWC को लागू करने हेतु पारित किया गया था।
  • यह कन्वेंशन प्रतिबंधित करता है:
    • रासायनिक हथियारों का विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, भंडारण या प्रतिधारण।
    • रासायनिक हथियारों का स्थानांतरण।
    • रासायनिक हथियारों का उपयोग करना।
    • CWC द्वारा निषिद्ध गतिविधियों में शामिल होने के लिये अन्य पक्षों की सहायता करना।
    • दंगा नियंत्रण उपकरणों का उपयोग 'युद्ध सामग्री' के रूप में करना।
  • CWC के अलावा ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ रासायनिक या जैविक हथियारों के प्रसार को भी रोकता है।

‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ क्या है?

  • ऑस्ट्रेलिया समूह (AG) देशों का एक अनौपचारिक मंच है, जो किसी भी ऐसी सामग्री के निर्यात को नियंत्रित कर यह सुनिश्चित करता है कि इसका उपयोग रासायनिक या जैविक हथियारों के विकास में न किया जाए।
  • वर्ष 1985 में ऑस्ट्रेलिया समूह (AG) का गठन ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान इराक द्वारा रासायनिक हथियारों के उपयोग से प्रेरित था।
  • राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण उपाय ऑस्ट्रेलिया समूह के सदस्यों को रासायनिक हथियार कन्वेंशन और जैविक एवं विषाक्त हथियार कन्वेंशन के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने में सहायता करते हैं।
  • इसमें यूरोपीय संघ सहित 43 सदस्य हैं। सदस्य सर्वसम्मति के आधार पर काम करते हैं। इसकी वार्षिक बैठक पेरिस (फ्राँस) में आयोजित की जाती है।
  • भारत 19 जनवरी, 2018 को ऑस्ट्रेलिया समूह में (43वें प्रतिभागी के रूप में) शामिल हुआ था।
  • ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ ने सर्वसम्मति से भारत को सदस्य के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020)

          अंतर्राष्ट्रीय समझौता/सेट-अप              विषय

  1. अल्मा-अता की घोषणा           : लोगों की स्वास्थ्य देखभाल
  2. हेग कन्वेंशन                         : जैविक और रासायनिक हथियार
  3. तालानोआ संवाद                  : वैश्विक जलवायु परिवर्तन
  4. अंडर-2 गठबंधन                  : बाल अधिकार

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: c

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

MSMEs में NPA की बढ़ोतरी

प्रिलिम्स के लिये:

MSME और संबंधित योजनाएँ।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, MSMEs क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सरकार द्वारा घोषित कई ऋण पुनर्गठन योजनाओं और पैकेजों के बावजूद कोविड महामारी ने ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (MSMEs) को बहुत अधिक प्रभावित किया है।

  • MSMEs की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) या इन उद्यमों द्वारा डिफॉल्ट किये गए ऋण, सितंबर 2021 तक 20,000 करोड़ रुपए बढ़कर 1,65,732 करोड़ रुपए का हो गया, जो सितंबर 2020 में 1,45,673 करोड़ रुपए था।
  • MSMEs के ‘बैड लोन’ अब 17.33 लाख करोड़ रुपए के ‘सकल अग्रिम’ (Gross Advances) का 9.6% है, जबकि सितंबर 2020 में यह 8.2% था।
  • इससे पहले MSME मंत्रालय ने ‘MSME IDEA HACKATHON 2022’ के साथ ‘एमएसएमई इनोवेटिव स्कीम’ (इनक्यूबेशन, डिज़ाइन और IPR) लॉन्च की थी।

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गैर-निष्पादित परिसंपत्ति क्या है?

  • NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है, जो डिफाॅल्ट हो जाते हैं या जिनके मूलधन या ब्याज़ का अनुसूचित भुगतान बकाया होता है।
  • अधिकतर मामलों में ऋण को गैर-निष्पादित के रूप में तब वर्गीकृत किया जाता है, जब ऋण का भुगतान न्यूनतम 90 दिनों की अवधि के लिये न किया गया हो।
  • शुद्ध गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ वह राशि है जो सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से ‘प्रोविज़न अमाउंट’ की कटौती के बाद प्राप्त होती है।

MSMEs पर कोविड-19 का प्रभाव:

  • ‘बैड लोन’ में वृद्धि रिज़र्व बैंक द्वारा जनवरी 2019, फरवरी 2020, अगस्त 2020 और मई 2021 में MSMEs के लिये घोषित चार ऋण पुनर्गठन योजनाओं के बाद भी हुई।
    • इन योजनाओं के तहत 1,16,332 करोड़ रुपए के 24.51 लाख MSMEs खातों के ऋणों का पुनर्गठन किया गया। रिज़र्व बैंक की ओर से जारी मई 2021 के सर्कुलर के तहत 51,467 करोड़ रुपए के ऋणों का पुनर्गठन किया गया।
  • महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक होने के कारण सरकार द्वारा मार्च 2020 में कोविड महामारी के मद्देनज़र देशव्यापी सख्त लॉकडाउन की घोषणा के बाद हज़ारों MSMEs या तो बंद हो गए या उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई।

MSMEs की स्थिति में सुधार हेतु किये गए प्रयास:

  • MSMEs की आर्थिक स्थिति में सुधार करने हेतु रिज़र्व बैंक और सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) सहित कई उपाय पेश किये, जिसके तहत MSMEs और व्यवसायों को 3 लाख करोड़ रुपए का असुरक्षित ऋण प्रदान किया गया।
  • रिज़र्व बैंक ने MSMEs को परिसंपत्ति वर्गीकरण डाउनग्रेड के बिना ऋण के एकमुश्त पुनर्गठन की योजना का लाभ उठाने की अनुमति दी और साथ ही कृषि, एमएसएमई व आवास क्षेत्र को ऋण देने हेतु NBFCs (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों-एमएफआई के अलावा) को अनुमति दी।
  • हालाँकि इन पुनर्गठन योजनाओं और पैकेजों से उन हज़ारों इकाइयों को कुछ भी लाभ नहीं हुआ, जो पहले से ही डिफाॅल्ट थीं।
  • ऐसा इसलिये है, क्योंकि ECLGS योजना के तहत पात्र होने के लिये उधारकर्त्ता का बकाया 29 फरवरी, 2020 तक 60 दिनों से कम या 60 दिनों तक का होना चाहिये ।

NPA/बैड लोन से संबंधित कानून और प्रावधान:

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन समावेशी विकास के सरकार के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है? (2011)

  1. स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देना
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम को लागू करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: d

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

पहला गति शक्ति कार्गो टर्मिनल

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम गति शक्ति योजना, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन।

मेन्स के लिये:

संसाधनों का संग्रहण, सरकारी बजट, राजकोषीय नीति, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, पीएम गति शक्ति योजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री के विज़न "गति शक्ति" (Gati Shakti) के अनुरूप भारतीय रेल का पहला गति शक्ति कार्गो टर्मिनल (Gati Shakti Cargo Terminal-GCT) पूर्वी रेलवे के आसनसोल मंडल (Asansol Division) में शुरू किया गया है।

  • दिसंबर '2021 में GCT नीति के लागू होने बाद से यह भारतीय रेलवे में इस तरह का पहला शक्ति कार्गो टर्मिनल है।
  • इससे भारतीय रेलवे की कमाई में इज़ाफा होने की उम्मीद है। इस टर्मिनल और अन्य ऐसे टर्मिनल्स के चालू होने से देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

प्रमुख बिंदु

प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना:

  • प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना के बारे में:
    • वर्ष 2021 में भारत सरकार ने लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये समन्वित और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के निष्पादन हेतु महत्त्वाकांक्षी गति शक्ति योजना या ‘नेशनल मास्टर प्लान फॉर मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्लान’ लॉन्च किया है।
  • उद्देश्य:
    • ज़मीनी स्तर पर कार्य में तेज़ी लाने, लागत को कम करने और रोज़गार सृजन पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
    • गति शक्ति योजना के तहत वर्ष 2019 में शुरू की गई 110 लाख करोड़ रुपए की ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ को शामिल करना।
    • लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती के अलावा इस योजना का उद्देश्य कार्गो हैंडलिंग क्षमता को बढ़ाना और व्यापार को बढ़ावा देने हेतु बंदरगाहों पर टर्नअराउंड समय को कम करना है।
    • इसका लक्ष्य 11 औद्योगिक गलियारे और दो नए रक्षा गलियारे (एक तमिलनाडु में और दूसरा उत्तर प्रदेश में) बनाना भी है।
    • इसके तहत सभी गाँवों में 4G कनेक्टिविटी का विस्तार किया जाएगा। साथ ही गैस पाइपलाइन नेटवर्क में 17,000 किलोमीटर की क्षमता जोड़ने की योजना बनाई जा रही है।
    • यह वर्ष 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की लंबाई को 2 लाख किलोमीटर तक विस्तारित करना, 200 से अधिक नए हवाई अड्डों, हेलीपोर्ट और वाटर एयरोड्रोम का निर्माण करना शामिल है।

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  • अपेक्षित परिणाम:
    • यह योजना मौजूदा और प्रस्तावित कनेक्टिविटी परियोजनाओं की मैपिंग में मदद करेगी।
    • साथ ही इसके माध्यम से देश में विभिन्न क्षेत्रों और औद्योगिक केंद्रों को जोड़ने संबंधी योजना भी स्पष्ट हो सकेगी।
    • यह समग्र एवं एकीकृत परिवहन कनेक्टिविटी रणनीति ‘मेक इन इंडिया’ का समर्थन करेगी और परिवहन के विभिन्न तरीकों को एकीकृत करेगी।
    • इससे भारत को विश्व की व्यापारिक राजधानी बनने में मदद मिलेगी।
  • एकीकृत बुनियादी अवसंरचना के विकास की आवश्यकता:
    • समन्वय एवं उन्नत सूचना साझाकरण की कमी के कारण वृहतस्तरीय नियोजन और सूक्ष्म स्तरीय कार्यान्वयन के बीच एक व्यापक अंतर मौजूद है, क्योंकि विभाग प्रायः अलगाव की स्थिति में कार्य करते हैं।
    • एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 13% है, जो कि विकसित देशों की तुलना में काफी अधिक है।
      • इस उच्च लॉजिस्टिक लागत के कारण भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बहुत कम हो जाती है।
    • विश्व स्तर पर यह स्वीकार किया जाता है कि सतत् विकास के लिये गुणवत्तापूर्ण बुनियादी अवसंरचना का निर्माण काफी महत्त्वपूर्ण है, जो विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से व्यापक पैमाने पर रोज़गार पैदा करता है।
    • इस योजना का कार्यान्वयन ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (NMP) के साथ समन्वय स्थापित कर किया जाएगा।
      • ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ को मुद्रीकरण हेतु एक स्पष्ट ढाँचा प्रदान करने और संभावित निवेशकों को बेहतर रिटर्न की प्राप्ति के लिये संपत्तियों की एक सूची निर्मित करने हेतु शुरू किया गया है।

संबद्ध चिंताएँ:

  • लो क्रेडिट ऑफ-टेक: हालाँकि सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने के लिये कई सुधार किये हैं और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता ने खराब ऋणों पर लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए की वसूली की, इसके बावजूद ऋण लेने की प्रवृत्ति में गिरावट को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।
    • भविष्य की आय और मौजूदा बाज़ार के प्रमाण के माध्यम से भविष्य की परियोजनाओं के वित्तपोषण में व्यवसायों की मदद करने के लिये बैंक क्रेडिट ऑफ-टेक की सुविधा देते हैं।
  • मांग में कमी: कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में निजी मांग और निवेश की कमी देखी गई है।
  • संरचनात्मक समस्याएँ: भूमि अधिग्रहण में देरी और मुकदमेबाज़ी के मुद्दों के कारण देश में वैश्विक मानकों की तुलना में परियोजनाओं के कार्यान्वयन की दर बहुत धीमी है।
    • इसके अतिरिक्त भूमि प्रयोग और पर्यावरण मंज़ूरी के मामले में विलंब, अदालत में लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे आदि अवसंरचना परियोजनाओं में देरी के कुछ प्रमुख कारण हैं।

आगे की राह

  • PM गति शक्ति सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। हालाँकि इसके उच्च सार्वजनिक व्यय से उत्पन्न संरचनात्मक और व्यापक आर्थिक स्थिरता संबंधी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।
    • इस प्रकार आवश्यक है कि यह पहल एक स्थिर और पूर्वानुमेय नियामक एवं संस्थागत ढाँचे पर आधारित हो।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्र. हाल ही में भारत का पहला 'राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र' कहाँ स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था? (2016)

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) महाराष्ट्र
(d) उत्तर प्रदेश

उत्तर: (a)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, 2070 तक भारत का शुद्ध शून्य लक्ष्य, कोप-26, अक्षय ऊर्जा लक्ष्य।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के लाभ और संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) तथा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) द्वारा संयुक्त रूप से वानिकी संबंधी पहलों के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report- DPR) जारी की गई है।

  • 13 प्रमुख नदियों में झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

DPRs के पीछे का विचार:

  • इसे वर्ष 2015-16 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG) के हिस्से के रूप में किये गए कार्यों की तर्ज पर यह स्वीकार करते हुए तैयार किया गया है कि बढ़ता जल संकट नदी के पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण का कारण है।
  • यह परियोजना रिपोर्ट एक बहु-स्तरीय, बहु-हितधारक, बहु-विषयक और समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है ताकि 'अविरल धारा' (Uninterrupted Flow), 'निर्मल धारा' (Clean Water) और पारिस्थितिक कायाकल्प के व्यापक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

शामिल क्षेत्र/परिदृश्य:

  • 13 नदियांँ सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी. के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
  • परियोजना के अंतर्गत 202 सहायक नदियों सहित 13 नदियों की कुल लंबाई 42,830 किमी. है।
    • ब्रह्मपुत्र रिवरस्केप में सर्वाधिकसहायक नदियाँ (30) और 1,54,456 वर्ग किमी. का क्षेत्र शामिल हैं।
  • दस्तावेज़ों में नदियों के परिदृश्य में वानिकी पहलों का प्रस्ताव किया गया है जिसमे लकड़ी की प्रजातियों, औषधीय पौधों, घास, झाड़ियों व ईंधन, चारा और फलों वाले पेड़ों सहित वानिकी वृक्षारोपण के विभिन्न मॉडलों द्वारा जल स्तर को बढ़ाना, भूजल में वृद्धि के साथ ही क्षरण को रोकना शामिल है।

नियोजित हस्तक्षेप:

  • DPR तीन प्रकार के परिदृश्यों में वानिकी हस्तक्षेप और आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिये एक समग्र रिवरस्केप दृष्टिकोण अपनाने की क्षमता की पहचान करती है।
  • ये कार्य नीति स्तरीय हस्तक्षेप, रणनीतिक और अनुकूली अनुसंधान, क्षमता विकास, जागरूकता निर्माण, परियोजना प्रबंधन एवं भागीदारी निगरानी तथा मूल्यांकन जैसी सहायक गतिविधियों के साथ किये जाते हैं।

प्रस्तावित हस्तक्षेपों के संभावित लाभ:

  • वन आवरण में वृद्धि:
    • इससे 13 नदियों के परिदृश्य में 7,417.36 वर्ग किमी. के संचयी वन क्षेत्र में वृद्धि होने की संभावना है।
  • CO2 के पृथक्करण में सहायता:
    • प्रस्तावित हस्तक्षेप से 10 साल पुराने वृक्षारोपण से 50.21 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड और 20 साल पुराने वृक्षारोपण से 74.76 मिलियन कार्बन डाइऑक्साइड कम करने में मदद मिलेगी।
  • भूजल पुनर्भरण में सहायता:
    • वे भूजल पुनर्भरण में मदद के साथ अवसादन को कम करेंगे, इसके अलावा गैर-लकड़ी और अन्य वन उपज से 449.01 करोड़ रुपए की आय होने की संभावना है।
  • रोज़गार सृजन:
    • उनसे लगभग 344 मिलियन मानव-दिवस कार्य के माध्यम से रोज़गार सृजन की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान की भी संभावना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना:
    • इन प्रयासों से भारत को अपनी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी:
      • संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 समकक्ष का एक अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना;
      • वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर खराब पड़ी भूमि को पुनर्स्थापित करना।
      • कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) और सतत् विकास लक्ष्यों के तहत वर्ष 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकना।
    • COP-26 में भारत ने वर्ष 2030 तक अपने अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन कम करने, वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा के माध्यम से 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने, वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने, इसकी कार्बन तीव्रता को कम करने एवं वर्ष 2030 तक 45% अर्थव्यवस्था और वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का वादा किया।
    • बॉन चैलेंज के तहत भारत ने वर्ष 2015 में वर्ष 2030 तक 50 लाख हेक्टेयर निम्‍नीकृत भूमि को बहाल करने का भी वादा किया था।

विगत वर्षों के प्रश्न

‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” किसके द्वारा शुरू की गई एक पहल है? (2018)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(b) यूएनईपी सचिवालय
(c) यूएनएफसीसीसी सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: c

संबंधित चुनौतियाँ

  • नदी पारिस्थितिक तंत्र के सिकुड़ने और क्षरण के कारण पीने योग्य जल संसाधनों के घटने से बढ़ता जल संकट पर्यावरण, संरक्षण, जलवायु परिवर्तन व सतत् विकास से संबंधित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है।
  • परियोजना की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें वृक्षारोपण की सही विधि और जलवायु में परिवर्तन शामिल हैं।

आगे की राह

  • वृक्षारोपण के जोखिमों एवं जलवायु में परिवर्तन से बचने के लिये वन विभाग को ‘रोपण स्टॉक की गुणवत्ता, विशेष रूप से आयु एवं आकार जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा, साथ ही जोखिम को और कम करने के लिये वृक्षारोपण से पहले मिट्टी एवं नमी का संरक्षण सुनिश्चित किया जाना भी आवश्यक है।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन 'राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ (NGRBA) की प्रमुख विशेषताएँ हैं? (2016)

  1. नदी बेसिन, नियोजन एवं प्रबंधन की इकाई है।
  2. यह राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण के प्रयासों का नेतृत्व करता है।
  3. उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक जिस राज्य से गंगा बहती है, चक्रानुक्रम के आधार पर NGRBA के अध्यक्ष बनते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

फ्लड प्लेन ज़ोनिंग

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लड प्लेन ज़ोनिंग, बाढ़, भारत की बाढ़ के प्रति संवेदनशीलता।

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन, फ्लड प्लेन ज़ोनिंग के लिये मॉडल बिल की चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया है कि मणिपुर, राजस्थान, उत्तराखंड और तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्यों ने फ्लड प्लेन ज़ोनिंग नीति लागू की थी।

  • हालाँकि बाढ़ के मैदानों का परिसीमन और सीमांकन किया जाना बाकी है।
  • इससे पहले भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने केरल विधानसभा में बाढ़ की तैयारी और प्रतिक्रिया पर एक रिपोर्ट पेश की।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों को फ्लड प्लेन ज़ोनिंग कानून के लिये एक मॉडल ड्राफ्ट बिल परिचालित किये जाने के 45 वर्ष बाद राज्यों ने अभी तक फ्लड प्लेन ज़ोनिंग कानून नहीं बनाया है।

flood-zones

फ्लड प्लेन ज़ोनिंग:

  • परिचय:
    • फ्लड प्लेन ज़ोनिंग को बाढ़ प्रबंधन के लिये एक प्रभावी गैर-संरचनात्मक उपाय के रूप में मान्यता दी गई है।
    • फ्लड प्लेन ज़ोनिंग की मूल अवधारणा का उद्देश्य बाढ़ से होने वाले नुकसान को सीमित करने के लिये बाढ़ के मैदानों में भूमि उपयोग को विनियमित करना है।
  • विशेषताएँ:
    • विकासात्मक गतिविधियों का निर्धारण: इसका उद्देश्य विकासात्मक गतिविधियों के लिये स्थानों और क्षेत्रों की सीमा को इस तरह से निर्धारित करना है कि नुकसान कम-से-कम हो।
    • सीमाओं का निर्धारण: इसमें असुरक्षित और संरक्षित दोनों क्षेत्रों के विकास पर सीमाएँ निर्धारित करने की परिकल्पना की गई है।
      • असंरक्षित क्षेत्रों में अंधाधुंध विकास को रोकने के लिये जिन क्षेत्रों में विकासात्मक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा, उनकी सीमाएँ निर्धारित की जानी हैं।
      • संरक्षित क्षेत्रों में केवल ऐसी विकासात्मक गतिविधियों को अनुमति दी जा सकती है, जिनमें सुरक्षात्मक उपाय विफल होने की स्थिति में भारी क्षति शामिल नहीं होगी।
    • उपयोगिता: ज़ोनिंग मौजूदा स्थितियों का समाधान नहीं कर सकता है, हालाँकि यह निश्चित रूप से विकास कार्यों में बाढ़ के कारण होने वाली क्षति को कम करने में मदद करेगा।
      • फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग न केवल नदियों द्वारा आने वाली बाढ़ के मामले में आवश्यक है, बल्कि यह विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में जल जमाव से होने वाले नुकसान को कम करने में भी उपयोगी है।

बाढ़ के प्रति संवेदनशीलता की भारत की स्थिति:

  • भारत के उच्च जोखिम और भेद्यता को इस तथ्य से आकलित किया गया है कि 3290 लाख हेक्टेयर के भौगोलिक क्षेत्र में से 40 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रवण क्षेत्र है।
  • बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष औसतन 75 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है तथा लगभग 1600 लोगों की मृत्यु हो जाती है एवं इसके कारण फसलों व मकानों तथा जन-सुविधाओं को होने वाली क्षति 1805 करोड़ रुपए की है।

फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग के लिये मॉडल ड्राफ्ट बिल:

  • परिचय: यह बिल/विधेयक बाढ़ क्षेत्र प्राधिकरण, सर्वेक्षण और बाढ़ के मैदानी क्षेत्र के परिसीमन, बाढ़ के मैदानों की सीमाओं की अधिसूचना, बाढ़ के मैदानों के उपयोग पर प्रतिबंध, मुआवज़े व सबसे महत्वपूर्ण रूप से जल के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये इन बाधाओं को दूर करने के बारे में प्रविष्टि प्रदान करता है।
    • इसके तहत बाढ़ प्रभावी क्षेत्रों के निचले इलाकों के आवासों को पार्कों और खेल मैदानों में प्रतिस्थापित किया जाएगा क्योंकि उन क्षेत्रों में मानव बस्ती की अनुपस्थिति की वजह से जान-माल की हानि में कमी आएगी।
  • कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
    • संभावित विधायी प्रक्रिया के साथ-साथ बाढ़ के मैदानों के प्रबंधन हेतु विभिन्न पहलुओं का पालन करने के दृष्टिकोण से राज्यों की ओर से प्रतिरोध किया गया है।
      • राज्यों की अनिच्छा मुख्य रूप से जनसंख्या दबाव और वैकल्पिक आजीविका प्रणालियों की कमी के कारण है।
    • बाढ़ के मैदानों के संबंध में नियमों को लागू करने और इन्हें लागू करने के प्रति राज्यों की उदासीन प्रतिक्रिया के चलते बाढ़ क्षेत्रों के अतिक्रमण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसमें कभी-कभी अधिकृत और नगर नियोजन अधिकारियों द्वारा विधिवत अनुमोदित अतिक्रमण के मामले देखने को मिलते हैं।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान और अन्य उपाय:

  • सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 17 के रूप में जल निकासी और तटबंधों/बांँधों को शामिल करने के आधार पर "अंतर-राज्यीय नदियों एवं नदी के विनियमन और विकास" के मामले को छोड़कर, बाढ़ नियंत्रण कार्य राज्य सरकार के दायरे में आता है। 'घाटियों', का उल्लेख सूची I (संघ सूची) की प्रविष्टि 56 में किया गया है।
    • फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग राज्य सरकार के दायरे में है क्योंकि यह नदी के किनारे की भूमि से संबंधित है और सूची II की प्रविष्टि 18 के तहत भूमि राज्य का विषय है।
    • केंद्र सरकार की भूमिका केवल परामर्श देने तथा दिशा-निर्देश के निर्धारण तक ही सीमित हो सकती है।
  • संविधान में शामिल सातवीं अनुसूची की तीन विधायी सूचियों में से किसी में भी बाढ़ नियंत्रण और शमन (Flood Control and Mitigation) का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया है।
  • वर्ष 2008 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण "गैर-संरचनात्मक उपाय" के रूप में बाढ़ के मैदान क्षेत्र के लिये राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • इसने सुझाव दिया कि ऐसे क्षेत्र जहाँ 10 वर्षों में बाढ़ की आवृत्ति के कारण प्रभावित होने की संभावना है, उन क्षेत्रों को पार्कों, उद्यानों जैसे हरे क्षेत्रों के रूप में आरक्षित किया जाना चाहिये तथा इन क्षेत्रों में कंक्रीट संरचनाओं (Concrete Structures) की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • इसमें बाढ़ के अन्य क्षेत्रों के बारे में भी बात की गई जैसे- 25 साल की अवधि में बाढ़ की आवृत्ति वाले क्षेत्रों में राज्यों को उन क्षेत्र-विशिष्ट योजना बनाने के लिये कहा गया।

आगे की राह:

  • चूंँकि बाढ़ से हर साल जान-माल की बड़ी क्षति होती है, इसलिये समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक दीर्घकालिक योजना तैयार करें जो बाढ़ को नियंत्रित करने हेतु तटबंधों के निर्माण तथा ड्रेजिंग जैसे उपायों से बढ़कर हो।
  • एक एकीकृत बेसिन प्रबंधन योजना (Integrated Basin Management Plan) की आवश्यकता है जो सभी नदी-बेसिन साझा करने वाले देशों के साथ-साथ भारतीय राज्यों को भी जोड़े।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

भारत में मातृ मृत्यु दर

प्रिलिम्स के लिये:

मातृ मृत्यु अनुपात, भारत का रजिस्ट्रार जनरल, विश्व स्वास्थ्य संगठन


मेन्स के लिये:

महिलाओं से संबंधित मुद्दे, स्वास्थ्य, मानव संसाधन ,मातृ मृत्यु अनुपात से संबंधित पहलें।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Office of the Registrar General’s Sample Registration System-SRS) के कार्यालय ने भारत में वर्ष 2017-19 में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio-MMR) पर एक विशेष बुलेटिन जारी किया है।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, गर्भवती होने पर या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिनों के भीतर गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से हुई किसी महिला की मृत्यु को मातृ मृत्यु में शामिल किया जाता है।
  • प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु को मातृत्व मृत्यु दर (MMR) कहते हैं।

रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया:

  • यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • जनसंख्या की गणना करने और देश में मृत्यु और जन्म के पंजीकरण के कार्यान्वयन के अलावा यह नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) का उपयोग करके प्रजनन व मृत्यु दर के संबंध में अनुमान प्रस्तुत करता है।
  • SRS देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सर्वेक्षण है जिसमें अन्य संकेतक राष्ट्रीय प्रतिनिधि नमूने के माध्यम से मातृ मृत्यु दर का प्रत्यक्ष अनुमान प्रदान करते हैं।
  • वर्बल ऑटोप्सी (Verbal Autopsy-VA) उपकरणों को नियमित आधार पर SRS के तहत दर्ज मौतों के लिये प्रबंधित किया जाता है, ताकि देश में एक विशिष्ट कारण से होने वाली मृत्यु दर का पता लगाया जा सके।

MMR को लेकर भारत की स्थिति?

  • भारत के मातृ मृत्यु दर में 10 अंक की गिरावट आई है। यह वर्ष 2016-18 के 113 से घटकर वर्ष 2017-18 में 103 (8.8% गिरावट) हो गई है।
  • देश में MMR में वर्ष 2014-2016 में 130, वर्ष 2015-17 में 122, वर्ष 2016-18 में 113 और वर्ष 2017-19 में 103 में उत्तरोत्तर कमी देखी गई।
    • भारत वर्ष 2020 तक 100/लाख जीवित जन्मों के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) के लक्ष्य को प्राप्त करने के काफी करीब था और निश्चित रूप से वर्ष 2030 तक 70/लाख जीवित जन्मों के संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर था।
  • कई विकसित देशों ने सफलतापूर्वक MMR को एकल अंकों में ला दिया है। इटली, नॉर्वे, पोलैंड और बेलारूस में दो का न्यूनतम MMR है, जबकि जर्मनी और यूके दोनों में यह सात है, कनाडा में 10 और अमेरिका में 19 है।
  • भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों- नेपाल (186), बांग्लादेश (173) और पाकिस्तान (140)- का MMR अधिक है। हालाँकि, चीन और श्रीलंका क्रमश: 18.3 व 36 MMR के साथ काफी बेहतर स्थिति में हैं।

राज्य-विशिष्ट आँकड़े:

  • सतत् विकास लक्ष्य हासिल करने वाले राज्यों की संख्या अब पाँच से बढ़कर सात हो गई है, ये हैं- केरल (30), महाराष्ट्र (38), तेलंगाना (56), तमिलनाडु (58), आंध्र प्रदेश (58), झारखंड (61) और गुजरात (70)।
    • केरल ने सबसे कम एमएमआर दर्ज किया है जो केरल को राष्ट्रीय एमएमआर 103 से आगे रखता है।
    • केरल के मातृ मृत्यु दर में 12 अंक की गिरावट आई है। पिछले SRS बुलेटिन (2015-17) ने राज्य के MMR को 42 के स्तर पर रखा था, जिसे बाद में समायोजित कर 43 कर दिया गया था।
  • अब नौ राज्य ऐसे हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति द्वारा निर्धारित एमएमआर लक्ष्य को हासिल कर लिया है, जिसमें उपरोक्त सात और कर्नाटक (83) एवं हरियाणा (96) शामिल हैं।
  • उत्तराखंड (101), पश्चिम बंगाल (109), पंजाब (114), बिहार (130), ओडिशा (136) और राजस्थान (141) में एमएमआर 100-150 के बीच है, जबकि छत्तीसगढ़ (160), मध्य प्रदेश ( 163), उत्तर प्रदेश (167) तथा असम (205) का एमएमआर 150 से ऊपर है।

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कुछ संबंधित सरकारी पहलें:

आगे की राह

  • किसी क्षेत्र की मातृ मृत्यु दर उस क्षेत्र में महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक पैमाना है।
  • WHO पहले ही मातृ मृत्यु दर को कम करने के भारत के प्रयासों की सराहना कर चुका है। भारत को उच्च एमएमआर वाले राज्यों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

चिकित्सा और कल्याण पर्यटन हेतु राष्ट्रीय रणनीति और रोडमैप

प्रिलिम्स के लिये:

मेडिकल वीज़ा, चिकित्सा एवं कल्याण पर्यटन।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, चिकित्सा एवं कल्याण पर्यटन हेतु राष्ट्रीय रणनीति तथा रोडमैप, एक चिकित्सा एवं कल्याण पर्यटन स्थल के रूप में भारत की स्थिति।


चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यटन मंत्रालय ने चिकित्सा एवं कल्याण पर्यटन हेतु राष्ट्रीय रणनीति और रोडमैप तैयार किया है।

  • इस नीति के तहत भारत में मेडिकल वैल्यू ट्रैवल (MVT) और वेलनेस डेस्टिनेशन को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है।

चिकित्सा और कल्याण पर्यटन का अर्थ:

  • चिकित्सा और कल्याण पर्यटन को 'चिकित्सा हस्तक्षेप के माध्यम से स्वास्थ्य को बनाए रखने, उसमें सुधार या बहाल करने के उद्देश्य से गंतव्य क्षेत्र में कम-से-कम एक रात ठहरने वाले विदेशी पर्यटक की यात्रा और मेज़बानी से संबंधित गतिविधियों' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

रोडमैप के प्रमुख बिंदु:

  • मिशन: भारत में मेडिकल वैल्यू ट्रैवल (MVT) और वेलनेस डेस्टिनेशन को बढ़ावा देने हेतु केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों तथा निजी क्षेत्र के मंत्रालयों के बीच एक मज़बूत ढाँचा और तालमेल बनाना।
  • नई एजेंसी: पर्यटन मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय चिकित्सा और कल्याण पर्यटन बोर्ड बनाया जाएगा।
    • यह स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये एक समर्पित संस्थागत ढाँचा प्रदान करेगा।
  • प्रमुख रणनीतिक स्तंभ: रणनीति के तहत निम्नलिखित प्रमुख स्तंभों की पहचान की गई है:
    • भारत के लिये एक वेलनेस डेस्टिनेशन के रूप में एक ब्रांड विकसित करना।
    • चिकित्सा और स्वास्थ्य पर्यटन के लिये पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना।
    • ऑनलाइन MVT पोर्टल स्थापित करके डिजिटलीकरण को सक्षम करना।
    • MVT के लिये पहुँच में वृद्धि।
    • वेलनेस टूरिज्म को बढ़ावा देना।
    • शासन और संस्थागत ढाँचा।

भारत में चिकित्सा पर्यटन का SWOT विश्लेषण

शक्तियाँ-S
  • भारत में विश्व स्तरीय डॉक्टर और अस्पताल हैं।
  • उपचार की लागत स्रोत बाज़ारों में भी लागत का ही एक भाग है।
  • पश्चिम में पर्यटन स्थल के रूप में भारत की बढ़ती लोकप्रियता।
    • भारत मेडिकल वैल्यू ट्रैवलर को पर्यटन स्थलों की यात्रा के साथ उपचार के संयोजन के लिये पर्यटन के कई अवसर प्रदान करता है।
  • वेस्टर्न मेडिसिन की विशेषज्ञता के साथ-साथ ईस्टर्न हेल्थकेयर विज़्डम।
    • ईस्टर्न: पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सा जैसे- योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा।
    • वेस्टर्न: एलोपैथी
  • फास्ट ट्रैक नियुक्तियाँ।
कमियाँ-W
  • असंगठित MVT फ्रेमवर्क: MVT क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिये कोई नियम नहीं हैं, जिससे इस क्षेत्र की असंगठित प्रकृति और सेवाओं की गुणवत्ता की निगरानी संबंधी कमी रह जाती है।
  • चिकित्सा संबंधी मूल्यों का नेतृत्त्व करने के लिये एक नोडल निकाय का अभाव।
  • MVT गंतव्य के रूप में भारत के लिये कोई अभियान नहीं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अस्पतालों के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएच) मान्यता के बारे में जागरूकता की कमी।
  • अस्पतालों में समान मूल्य निर्धारण नीतियों का अभाव।
  • भारत के संबंध में एक अस्वच्छ देश के रूप में पश्चिमी धारणा।
अवसर-O
  • उम्रदराज़ आबादी वाले देशों से मांग।
  • स्वास्थ्य और वैकल्पिक इलाज की मांग।
  • विकसित देशों में लंबी प्रतीक्षा अवधि।
  • अविकसित चिकित्सा सुविधाओं वाले देशों से मांग।
  • भारत का एक विशाल प्रवासी जनसमूह है और वे चिकित्सा उपचार के साथ अपनी भारत यात्रा को जोड़ सकते हैं।
  • बेहतर कनेक्टिविटी।
खतरे-T
  • क्षेत्रीय प्रतियोगिता।
  • अंतर्राष्ट्रीय मान्यता का अभाव।
  • विदेशी चिकित्सा देखभाल बीमाकर्त्ता द्वारा कवर नहीं की जाती है।
  • बिचौलियों द्वारा शोषण।

चिकित्सा और स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम:

  • ‘अतुल्य भारत' ब्रांड लाइन के तहत पर्यटन मंत्रालय द्वारा विदेशों में महत्त्वपूर्ण और संभावित बाज़ारों में वैश्विक प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन मीडिया अभियान (global print, electronic and online media campaigns) को जारी किया गया है।
  • 'मेडिकल वीज़ा' (Medical Visa) पेश किया गया है, जो चिकित्सा उपचार हेतु भारत आने वाले विदेशी यात्रियों को विशिष्ट उद्देश्यों के लिये दिया जा सकता है।
    • 156 देशों के लिये 'ई-मेडिकल वीज़ा' (E- Medical Visa) और 'ई-मेडिकल अटेंडेंट वीज़ा' (E-Medical Attendant Visa) भी शुरू किये गए हैं।
  • पर्यटन मंत्रालय चिकित्सा/पर्यटन गतिविधियों में भाग लेने के लिये ‘अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं हेतु राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड’ (National Accreditation Board for Hospitals & Healthcare Providers- NABH) द्वारा मान्यता प्राप्त चिकित्सा पर्यटन सेवा प्रदाताओं को बाज़ार विकास सहायता योजना (Market Development Assistance Scheme) के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

पर्यटन मंत्रालय की अन्य प्रमुख योजनाएंँ:

आगे की राह

  • 'एक भारत एक पर्यटन' दृष्टिकोण: पर्यटन के क्षेत्र में कई मंत्रालयों की सहभागिता है जो कई राज्यों की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अत: इस प्रकार केंद्र और अन्य राज्यों के साथ सामूहिक प्रयासों व सहयोग की आवश्यकता होती है।
  • पर्यटन की सुगमता को बढ़ावा देना: वास्तव में एक निर्बाध पर्यटक परिवहन अनुभव सुनिश्चित करने के लिये हमें सभी अंतर्राज्यीय सड़क करों को मानकीकृत करने और उन्हें एक ही बिंदु पर देय बनाने की आवश्यकता है जो व्यवसाय को आसान बनाने हेतु सुविधा प्रदान करेगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

सूक्ष्म वित्तीय ऋणों के लिये आरबीआई का नियामक ढाँचा

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, लघु वित्त बैंक, गैर-सरकारी संगठन, स्वयं सहायता समूह, गैर बैंकिंग वित्त कंपनी, माइक्रोफाइनेंस संस्थान

मेन्स के लिये:

माइक्रोफाइनेंस ऋण और इसके लाभों के लिये आरबीआई का नियामक ढाँचा, माइक्रोफाइनेंस संस्थान और इसके कार्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFI) को उन ब्याज दरों को निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी, जो वे उधारकर्त्ताओं से वसूलते हैं, तथा यह चेतावनी भी दी है कि दरें अधिक नहीं होनी चाहिये।

  • ये दिशा-निर्देश 1 अप्रैल 2022 से प्रभावी होंगे।
  • इससे पहले वर्ष 2021 में RBI ने MFI पर ब्याज दर कैप को उठाने का प्रस्ताव रखा था।

दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ:

  • माइक्रोफाइनेंस ऋण की परिभाषा:
    • 3 लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाले परिवार को दिये गए संपार्श्विक-मुक्त ऋण को इंगित करने हेतु आरबीआई ने माइक्रोफाइनेंस ऋण की परिभाषा को संशोधित किया।
      • इससे पहले ऊपरी सीमा ग्रामीण कर्जदारों के लिये 1.2 लाख रुपए और शहरी कर्जदारों के लिये 2 लाख रुपए थी।
  • विनियमित संस्थाओं के लिये:
    • संशोधित मानदंडों के अनुसार, विनियमित संस्थाओं (आरई) को माइक्रोफाइनेंस ऋणों के मूल्य निर्धारण, ब्याज दर की उच्चतम सीमा और माइक्रोफाइनेंस ऋणों पर लागू होने वाले अन्य सभी शुल्कों के संबंध में एक बोर्ड-अनुमोदित नीति बनानी चाहिये।
    • प्रत्येक विनियमित संस्था को एक मानकीकृत, सरलीकृत फैक्टशीट में संभावित उधारकर्त्ता को मूल्य निर्धारण संबंधी जानकारी का खुलासा करना होगा।
  • माइक्रोफाइनेंस ऋण पर ज़ुर्माना:
    • माइक्रोफाइनेंस ऋणों पर कोई पूर्व भुगतान दंड नहीं होगा।
    • विलंबित भुगतान के लिये जुर्माना, यदि कोई हो तो वह अतिदेय राशि पर लागू होगा न कि संपूर्ण ऋण राशि पर।
    • ब्याज दर या किसी अन्य शुल्क में कोई भी परिवर्तन होने पर’उधारकर्त्ता को अग्रिम रूप से सूचित किया जाएगा और ये परिवर्तन केवल संभावित रूप से प्रभावी होंगे।
  • ऋणों की वसूली:
    • RE को पुनर्भुगतान से संबंधित कठिनाइयों का सामना करने वाले उधारकर्त्ताओं की पहचान करने, ऐसे उधारकर्त्ताओं के साथ जुड़ाव और उन्हें उपलब्ध सहायता के बारे में आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु एक तंत्र स्थापित करना होगा।
      • यह तंत्र उचित नोटिस और प्राधिकरण सुनिश्चित करने हेतु RE वसूली प्रक्रिया शुरू करते समय उधारकर्त्ता को वसूली एजेंटों (Recovery Agents) का विवरण प्रदान करेगा।

दिशा-निर्देशों की प्रयोज्यता:

विगत वर्षों के प्रश्न:

भारत में कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिये ऋण के वितरण में निम्नलिखित में से किसका हिस्सा सबसे अधिक है? (2011)

(a) वाणिज्यिक बैंक
(b) सहकारी बैंक
(c) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
(d) माइक्रोफाइनेंस संस्थान

उत्तर: (a)

होने वाले लाभ:

  • बाज़ार का विस्तार: 3 लाख रुपए की आय कैप में संशोधन से बाज़ार के अवसर का विस्तार होगा और इंटरेस्ट रेट कैप (Interest Rate Cap) को समाप्त करने से जोखिम आधारित बीमा को बढ़ावा मिलेगा।
  • स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा: यह विभिन्न प्रकार के ऋणदाताओं हेतु नियामक ढांँचे के सामंजस्य द्वारा स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और ग्राहकों को उनकी क्रेडिट ज़रूरतों के बारे में एक सूचित विकल्प निर्मित करने हेतु दीर्घ अवधि में मदद करेगा।
  • वित्तीय समावेशन: नया ढांँचा उद्योग को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, बेहतर जोखिम शमन और वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करेगा।
  • एक समान स्तर का निर्माण: यह एक समान स्तर को निर्मित करेगा और उधारकर्त्ताओं और ऋणदाताओं दोनों के पास अब विकल्प होंगे।
  • ज़रूरतमंदों की मदद: यह उधारकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करेगा और इस क्षेत्र में ज़रूरतमंद उधारकर्त्ताओं की मदद करेगा।

माइक्रोफाइनेंस संस्थान क्या है?

  • माइक्रोफाइनेंस संस्थान एक ऐसा संगठन है, जो अल्प आय वाली आबादी को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करता है।
    • इन सेवाओं में सूक्ष्म ऋण, सूक्ष्म बचत और सूक्ष्म बीमा आदि शामिल हैं।
  • MFI वित्तीय कंपनियाँ उन लोगों को छोटे ऋण प्रदान करती हैं, जिनकी बैंकिंग सुविधाओं तक पहुँच नहीं होती है।
  • ज़्यादातर मामलों में ब्याज दरें सामान्य बैंकों द्वारा वसूल की जाने वाली दरों से कम होती हैं। अतः कुछ लोगों ने इन माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं पर गरीब लोगों के पैसे में हेरफेर करके लाभ कमाने का आरोप लगाया है।
  • पिछले कुछ दशकों में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र तेज़ी से बढ़ा है और वर्तमान में इनके पास भारत की गरीब आबादी के लगभग 102 मिलियन खाते (बैंकों और लघु वित्त बैंकों सहित) हैं।
  • गरीब लोगों के लिये विभिन्न प्रकार के वित्तीय सेवा प्रदाता उभरे हैं, जिसमें गैर-सरकारी संगठन (NGO), सहकारिता, स्व-सहायता समूह, क्रेडिट यूनियन, सामुदायिक-आधारित विकास संस्थान, वाणिज्यिक और राज्य बैंक, बीमा तथा क्रेडिट कार्ड कंपनियाँ, डाकघर आदि शामिल हैं।
  • भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और MFIs का नियमन रिज़र्व बैंक के गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी -माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (रिज़र्व बैंक) निर्देश, 2011 द्वारा किया जाता है।

विगत वर्षों के प्रश्न

माइक्रोफाइनेंस के तहत निम्न आय वर्ग के लोगों के लिये वित्तीय सेवाओं का प्रावधान है। इसमें उपभोक्ता एवं स्वरोज़गार दोनों शामिल हैं। माइक्रोफाइनेंस के तहत प्रदान की जाने वाली सेवाएँ हैं:

  1. क्रेडिट की सुविधा
  2. बचत की सुविधा
  3. बीमा सुविधाएँ
  4. फंड ट्रांसफर की सुविधा

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

भारत में रोहिंग्या मुस्लिम

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जांँच एजेंसी, रोहिंग्या मुस्लिम, संयुक्त राष्ट्र, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क), 1951 का शरणार्थी सम्मेलन और इसका 1967 का प्रोटोकॉल।

मेन्स के लिये:

भारत और उसके पड़ोसी देशों से संबंधित सुरक्षा चिंता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने छह लोगों को गिरफ्तार किया है जो कथित रूप से रोहिंग्या मुस्लिमों की भारतीय क्षेत्र में अवैध तस्करी में शामिल एक सिंडिकेट का हिस्सा थे।

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प्रमुख बिंदु

रोहिंग्या मुस्लिम:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों को दुनिया में सबसे अधिक सताए गए अल्पसंख्यक के रूप में वर्णित किया गया है।
  • वर्ष 2017 में ये म्यांँमार सेना की कथित कार्रवाई से बचने के लिये अपने घर छोड़कर भाग गए थे।
  • दशकों से बौद्ध-बहुल देश म्यांँमार में भेदभाव और हिंसा से बचने के लिये अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी देश बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों में भाग गए।

भारत की सुरक्षा से संबंधी मुद्दे और चिंताएँ

  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा: भारत में रोहिंग्याओं के अवैध अप्रवास की निरंतरता और उनके भारत में रहने से राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और यह गंभीर सुरक्षा खतरे पैदा करता है।
  • हितों का टकराव: यह उन क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के हितों को प्रभावित करता है जो बड़े पैमाने पर अप्रवासियों के अवैध रूप से प्रवेश का सामना करते हैं।
  • राजनीतिक अस्थिरता: यह राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ाता है जब नेता राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिये अभिजात वर्ग द्वारा प्रवासियों के खिलाफ देश के नागरिकों की धारणा को लामबंद करना शुरू करते हैं।
  • उग्रवाद का उदय: अवैध प्रवासियों के रूप में माने जाने वाले मुस्लिमों के खिलाफ लगातार होने वाले हमलों ने कट्टरपंथ का मार्ग प्रशस्त किया है।
  • मानव तस्करी: हाल के दशकों में सीमाओं पर महिलाओं और मानव तस्करी की घटनाओं में काफी वृद्धि देखी गई है।
  • कानून-व्यवस्था में गड़बड़ी: अवैध और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त अवैध प्रवासियों द्वारा देश की कानून व्यवस्था और अखंडता को कमज़ोर किया जाता है।

‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ क्या है?

  • इसका गठन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008 के तहत किया गया था। यह ऐसे अपराधों की जाँच करने और मुकदमा चलाने हेतु एक केंद्रीय एजेंसी है, जो अपराध हैं:
    • भारत की संप्रभुता, सुरक्षा एवं अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध को प्रभावित करने वाले अपराध।
    • परमाणु और परमाणु प्रतिष्ठानों के विरुद्ध अपराध।
    • उच्च गुणवत्तायुक्त नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय संधियों, समझौतों, अभिसमयों (Conventions) और संयुक्त राष्ट्र, इसकी एजेंसियों ​​तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रस्तावों का कार्यान्वयन करती है।
  • इसका उद्देश्य भारत में आतंकवाद का मुकाबला करना भी है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

आगे की राह

  • शरणार्थी संरक्षण ढाँचे की आवश्यकता: वर्ष 1951 के शरणार्थी अभिसमय और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का एक पक्ष नहीं होने के बावजूद भारत दुनिया में शरणार्थियों के सबसे बड़े प्राप्तकर्त्ताओं में से एक रहा है।
    • इसलिये यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता, तो यह पड़ोस में किसी भी दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत में पलायन करने से रोक सकता था।
  • शरणार्थियों पर सार्क ढाँचा: भारत को दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) में अन्य देशों को सार्क सम्मेलन या शरणार्थियों पर घोषणा के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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