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डेली न्यूज़

  • 16 Mar, 2022
  • 52 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी अरब-ईरान संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

यमन में हौथी विद्रोही, इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद, मध्य पूर्वी देशों की भौगोलिक स्थिति, पश्चिम एशिया।

मेन्स के लिये:

सऊदी-ईरान संबंधों में भारत की भूमिका, भारत के हितों पर अन्य देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सऊदी अरब ने आतंकवाद एवं ‘कैपिटल क्राइम’ (ऐसे अपराध जिनके लिये मृत्युदंड का प्रावधान है) के आरोपी सात यमनियों और एक सीरियाई नागरिक सहित 81 लोगों को सामूहिक रूप से फाँसी दी है। इसके कारण ईरान सरकार ने सऊदी अरब के साथ वार्ता स्थगित कर दी है।

  • दोनों देशों के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण राजनयिक संबंध रहे हैं।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों ईरान और सऊदी अरब, जिन्होंने वर्ष 2016 में राजनयिक संबंधों को समाप्त कर दिया था, ने यमन में युद्ध को समाप्त करने हेतु संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्त्व वाले प्रयासों के रूप में वर्ष 2021 में इराक द्वारा आयोजित सीधी वार्ता शुरू की। इराक में दोनों के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है।

Middle-East

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है?

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इजरायल

उत्तर: (b)

सऊदी-अरब ईरान संघर्ष की पृष्ठभूमि:

  • धार्मिक गुटबाज़ी: इन दोनों के बीच दशकों पुराना झगड़ा धार्मिक मतभेदों के कारण और गहरा गया है। इनमें से प्रत्येक देश इस्लाम की दो मुख्य शाखाओं में से एक का पालन करता है।
    • ईरान में बड़े पैमाने पर शिया मुस्लिम हैं, जबकि सऊदी अरब स्वयं को प्रमुख सुन्नी मुस्लिम शक्ति के रूप में देखता है।
  • इस्लामिक दुनिया का नेतृत्वकर्त्ता: ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब राजशाही और इस्लाम धर्म का जन्मस्थान है जो स्वयं को मुस्लिम-विश्व का नेतृत्वकर्त्ता समझता था।
    • हालाँकि इसे वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसने इस क्षेत्र में एक नए प्रकार के राज्य का निर्माण किया- एक तरह का क्रांतिकारी धर्मतंत्र, जिसका इस मॉडल को अपनी सीमाओं से परे निर्यात करने का एक स्पष्ट लक्ष्य था।
  • क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब और ईरान दो शक्तिशाली पड़ोसी हैं जो क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये संघर्षरत हैं।
    • इस विद्रोह ने अरब क्षेत्र के अतिरिक्त दुनिया भर में (2011 में अरब स्प्रिंग के बाद) राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी।
    • ईरान और सऊदी अरब ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये इस उथल-पुथल का फायदा उठाया, विशेष रूप से सीरिया, बहरीन और यमन में आपसी संदेह को और बढ़ावा दिया।
    • इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच संघर्ष को बढ़ाने में अमेरिका और इज़रायल जैसी बाहरी शक्तियों की प्रमुख भूमिका है।
  • छद्म युद्ध (Proxy War): प्रत्यक्ष रूप से ईरान और सऊदी अरब इस युद्ध को नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे इस क्षेत्र के आसपास कई छद्म युद्धों (ऐसा संघर्ष जहाँ वे प्रतिद्वंद्वी पक्षों और रक्षक योद्धाओं का समर्थन करते हैं) में शामिल रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये यमन में हूती विद्रोही। ये समूह अधिक क्षमता प्राप्त करने के साथ इस क्षेत्र में और अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। सऊदी अरब द्वारा ईरान पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया जाता है।
  • प्रदर्शनकारियों द्वारा विद्रोह  2016: सऊदी अरब द्वारा शिया मुस्लिम धर्मगुरु शेख निम्र अल-निम्र  (Nimr al-Nimr) को फाँसी दिये जाने के बाद कई ईरानी प्रदर्शनकारियों ने ईरान में सऊदी राजनयिक मिशनों पर हमला किया।

संबंधों के सामान्यीकरण का संभावित प्रभाव:

  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान: ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों में सुधार होने से इज़रायल और फिलिस्तीनी मुद्दे से निपटने में सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • तेल बाज़ार का स्थिरीकरण: ईरान और सऊदी अरब साझा हित में अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिये बाज़ार के महत्त्व को देखते हुए तेल की स्थिर कीमतों को साझा करते हैं।
    • संबंधों के सामान्यीकरण से सभी तेल उत्पादक देशों हेतु स्थिर राजस्व के साथ-साथ सऊदी अरब एवं ईरान दोनों के आर्थिक योजनाकारों के लिये अधिक पूर्वानुमान सुनिश्चित होगा।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन-सा खाड़ी सहयोग परिषद (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान
(b) सउदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत

उत्तर: (a)

आगे की राह

  • भारत की भूमिका: ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे राजनयिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों के स्थिर होने से भारत पर इसका मिश्रित प्रभाव पड़ेगा।
    • नकारात्मक पक्ष के रूप में तेल की ऊँची कीमतें भारत में व्यापार संतुलन को प्रभावित करेंगी।
    • इसके सकारात्मक पक्ष के रूप में  यह पूरे क्षेत्र में निवेश, कनेक्टिविटी परियोजनाओं को आसान बना सकता है।
  • ईरान से पारस्परिकता: ईरान को यमन में संघर्ष विराम का सार्वजनिक रूप से समर्थन करके अपने राजनयिक प्रयासों की छाप छोड़ने की आवश्यकता है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील: यदि ईरान-सऊदी अरब संबंधों को सामान्य बनाना है, तो ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर स्पष्टता सबसे महत्त्वपूर्ण है।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017)

(a) अफ्रीकी देशों के साथ भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

UAPA के तहत ज़मानत का प्रावधान

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सर्वोच्च न्यायालय, प्रथम सूचना रिपोर्ट, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो।

मेन्स के लिये:

निर्णय और मामले, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2020 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, (CAA) के विरोध के संबंध में दायर एक गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) मामले में काॅन्ग्रेस (राजनीतिक दल) के एक पूर्व पार्षद को जमानत दे दी है।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

  • CAA पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन छह गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
  • यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है।
    • दोनों अधिनियम अवैध रूप से देश में प्रवेश करने और वीज़ा या परमिट के समाप्त हो जाने पर यहाँ रहने के लिये दंड निर्दिष्ट करते हैं।

क्या था मौजूदा फैसला?

  • अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी, जबकि अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि UAPA की धारा 43 डी (5) में सीमाएँ हैं, इसमें एक ऐसा प्रावधान है जो कि ज़मानत देना लगभग असंभव बनाता है, क्योंकि यह न्यायिक तर्क के लिये बहुत कम गुंजाइश छोड़ता है।
    • बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि UAPA की धारा 43डी केवल प्रतिबंध लगाती है, जबकि इसमें ज़मानत देने पर पूर्ण रूप से रोक लगाने संबंधी प्रावधान नहीं है।

UAPA में ज़मानत संबंधी प्रावधान और मुद्दे:

  • UAPA के साथ प्रमुख समस्या इसकी धारा 43 डी(5) में निहित है, जो किसी भी आरोपी व्यक्ति को ज़मानत पर रिहा करने से रोकता है, इस मामले में यदि पुलिस ने आरोप-पत्र दायर किया है कि यह मानने के लिये उचित आधार हैं और ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है, तो जमानत नहीं दी जा सकती।
    • धारा 43 (डी) (5) का प्रभाव यह है कि एक बार जब पुलिस किसी व्यक्ति पर UAPA के तहत आरोप लगाने का विचार करती है तो ज़मानत देना बेहद मुश्किल हो जाता है। ज़मानत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा और गारंटी है।
  • यह प्रावधान न्यायिक तर्क के लिये बहुत कम गुंजाइश छोड़ता है तथा UAPA के तहत ज़मानत देना लगभग असंभव बना देता है। 
    • जहूर अहमद शाह वटाली के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 में पुष्टि की कि अदालतों को राज्य के मामले को उसकी योग्यता की जाँच किये बिना स्वीकार करना चाहिये।
    • हालाँकि अदालतों ने इस प्रावधान को अलग तरीके से पढ़ा है जिसमें एक त्वरित परीक्षण के अधिकार पर ज़ोर दिया गया है तथा राज्य के लिये UAPA के तहत एक व्यक्ति के लिये मानदंडों को और सशक्त बनाया गया है।

गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967

  • UAPA को 1967 में अधिनियमित किया गया था तथा बाद में वर्ष 2008 और 2012 में सरकार द्वारा आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में मज़बूत किया गया।
  • अगस्त, 2019 में संसद ने अधिनियम में प्रदान किये गए कुछ विशिष्ट आधारों पर किसी विशिष्ट व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में नामित करने हेतु गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 को मंज़ूरी दी।
  • आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये यह सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं से अलग है और एक असाधारण कानून बनाता है जहाँ अभियुक्तों के संवैधानिक सुरक्षा उपायों को कम कर दिया जाता है।
  • वर्ष 2016 और 2019 के बीच, जिस अवधि के लिये राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा UAPA के आँकड़े प्रकाशित किये गए हैं, UAPA  की विभिन्न धाराओं के तहत कुल 4,231 प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थीं, जिनमें से 112 मामलों में दोषसिद्धि हुई है।
    • UAPA लगातार यह इंगित करता है कि भारत में अतीत में अन्य आतंकवाद विरोधी कानूनों जैसे- पोटा (आतंकवाद रोकथाम अधिनियम) 2002 और टाडा (आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम) 1987 की तरह इसका अक्सर दुरुपयोग किया जाता है।
  • UAPA से संबंधित मुद्दे
    • किसी अपराध को "आतंकवादी कृत्य" कहने के लिये विशेष प्रतिवेदक के अनुसार, तीन तत्त्वों का एक साथ होना आवश्यक है:
      • आपराधिक कृत्य में उपयोग किये गए साधन घातक होने चाहिये।
      • कृत्य के पीछे की मंशा समाज के लोगों में भय पैदा करना या किसी सरकार या अंतर्राष्ट्रीय संगठन को कुछ करने या कुछ करने से परहेज के लिये मजबूर करना होना चाहिये।
      • उद्देश्य एक वैचारिक लक्ष्य को आगे बढ़ाना होना चाहिये।
    • दूसरी ओर, UAPA "आतंकवादी गतिविधियों" की व्यापक और अस्पष्ट परिभाषा प्रदान करता है जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु या चोट लगना, किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आदि भी शामिल है।
  • आतंकवादी गतिविधियों की अस्पष्ट परिभाषा: UAPA  के तहत "आतंकवादी गतिविधि" की परिभाषा आतंकवाद का मुकाबला करते हुए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विशेष प्रतिवेदक द्वारा प्रचारित परिभाषा से काफी भिन्न है। 
  • लंबित मुकदमे: भारत में न्याय वितरण प्रणाली की स्थिति को देखते हुए लंबित मुकदमों की दर औसतन 95.5 प्रतिशत है।
    • इसका मतलब यह है कि हर साल 5 प्रतिशत से कम मामलों में मुकदमा चलाया जाता है, जिस कारण आरोपियों को लंबे समय तक कारावास में रहना पड़ता है।
  • स्टेट ओवररीच: इसमें "धमकी देने" या "लोगों में आतंक का डर पैदा करने" जैसा कोई भी कार्य शामिल है, जो सरकार को इन कृत्यों के आधार पर किसी भी सामान्य नागरिक या कार्यकर्त्ता को आतंकवादी  साबित करने के लिये असीमित शक्ति प्रदान करता है।
    • इस प्रकार राज्य खुद को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तुलना में अधिक अधिकार देता है।
  • संघवाद के महत्त्व को कम आँकना: यह देखते हुए कि 'पुलिस' भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत राज्य का विषय है। कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह संघीय ढाँचे के खिलाफ है क्योंकि यह आतंकवाद के मामलों में राज्य पुलिस के अधिकार की उपेक्षा करता है।

आगे की राह

  • कथित दुरुपयोग के मामलों की सावधानीपूर्वक जाँच करने हेतु न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है। न्यायिक समीक्षा के माध्यम से कानून के तहत मनमानी और व्यक्तिपरकता की जाँच की जानी चाहिये।
  • व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में नामित किये जाने के खिलाफ अपील करने के अधिकार के तहत, न्यायपालिका को निष्पक्ष प्रक्रिया के मूल सिद्धांत का पालन करना चाहिये और नकली सबूतों का निर्माण करके व्यक्ति को फँसाने संबंधी कार्यपालिका के किसी भी इरादे से सतर्क रहना चाहिये।
  • कानून के तहत शक्तियों के किसी भी दुरुपयोग के दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों को सख्त सज़ा दी जानी चाहिये।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिये राज्य के दायित्व के बीच रेखा खींचना अत्यधिक दुविधा का विषय है। संवैधानिक स्वतंत्रता एवं आतंकवाद विरोधी गतिविधियों की अनिवार्यता के बीच संतुलन बनाना राज्य, न्यायपालिका, नागरिक समाज पर निर्भर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रोजेक्ट डॉल्फिन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, गंगा डॉल्फिन, डॉल्फिन के संरक्षण हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम।

मेन्स के लिये:

संरक्षण, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रोजेक्ट डॉल्फिन और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ हेतु अनुमोदन प्रक्रिया की धीमी गति पर नाराज़गी व्यक्त की है।

क्या है ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’?

  • इस पहल को वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ (NGC) की पहली बैठक में सैद्धांतिक मंज़ूरी मिली थी।
    • ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ वर्ष 2019 में स्वीकृत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी अंतर-मंत्रालयी पहल- ‘अर्थ गंगा’ के तहत नियोजित गतिविधियों में से एक है।
  • ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ को ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की तर्ज़ पर शुरू किया गया है, ज्ञात हो कि ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ का उद्देश्य बाघों की आबादी बढ़ाने में मदद करना है।
  • इसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लागू किया गया है।
    • गंगा डॉल्फिन, जो कि एक राष्ट्रीय जलीय जानवर है और कई राज्यों में विस्तृत गंगा नदी के लिये संकेतक प्रजाति भी है, के लिये एक विशेष संरक्षण कार्यक्रम शुरू किये जाने की आवश्यकता है।
      • संकेतक प्रजातियाँ अक्सर सूक्ष्मजीव या पौधा होते हैं, जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में मौजूद पर्यावरणीय परिस्थितियों की माप के रूप में कार्य करते हैं।
    • चूँकि गंगा डॉल्फिन खाद्य शृंखला के शीर्ष पर है, प्रजातियों और उसके आवास की रक्षा करने से नदी के जलीय जीवन का संरक्षण सुनिश्चित होगा।
    • अब तक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG), जो सरकार की प्रमुख योजना नमामि गंगे को लागू करती है, डॉल्फिन को बचाने हेतु पहल कर रहा है।
  • वैश्विक अनुभव: राइनो संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय आयोग (ICPR) के राइनो एक्शन प्लान (1987), जिसमें स्विट्ज़रलैंड, फ्राँस, जर्मनी, लक्ज़मबर्ग और नीदरलैंड शामिल हैं, के कारण सैल्मन मछली (एक संकेतक प्रजाति) के संरक्षण में मदद मिली।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन-सा एक भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणी है? (2015)

(a) खारे पानी का मगर
(b) ऑलिव रिड्ले टर्टल (कूर्म)
(c) गंगा नदी डॉल्फिन
(d) घड़ियाल

उत्तर: (c)

गंगा डॉल्फिन से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु:dolphin

  • वैज्ञानिक नाम: प्लैटनिस्टा गैंगेटिका (Platanista gangetica)
  • खोज: आधिकारिक तौर पर इसकी खोज वर्ष 1801 में की गई थी।
  • आवास: ये नेपाल, भारत और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में रहती हैं।
    • गंगा नदी डॉल्फिन केवल मीठे/ताज़े जल में रह सकती है और यह वास्तव में दृष्टिहीन होती है।
    • ये पराश्रव्य ध्वनियों का उत्सर्जन करके शिकार करती हैं, जो मछलियों और अन्य शिकार से टकराकर वापस लौटती है तथा उन्हें अपने दिमाग में एक छवि "देखने" में सक्षम बनाती है। इन्हें 'सुसु' (Susu) भी कहा जाता है।
  • आबादी: इस प्रजाति की वैश्विक आबादी अनुमानतः 4,000 है और इनमें से लगभग 80% भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है।
  • महत्त्व:
    • यह संपूर्ण नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का एक विश्वसनीय संकेतक है।
  • खतरा:
    • अवांछित शिकार: लोगों की तरह ही ये डॉल्फिन नदी के उन क्षेत्रों में रहना पसंद करती हैं जहाँ मछलियाँ बहुतायत मात्रा में हों और पानी का प्रवाह धीमा हो।
      • इसके कारण लोगों को मछलियाँ कम मिलती हैं और मछली पकड़ने के जाल में गलती से फँस जाने के कारण गंगा डॉल्फिन की मृत्यु हो जाती है, जिसे बायकैच (Bycatch) के रूप में भी जाना जाता है।
    • प्रदूषण: औद्योगिक, कृषि एवं मानव प्रदूषण इनके प्राकृतिक निवास स्थान के क्षरण का एक और गंभीर कारण है।
    • बाँध: बाँधों और सिंचाई से संबंधित अन्य परियोजनाओं का निर्माण उन्हें सजातीय प्रजनन (Inbreeding) के लिये संवेदनशील बनाने के साथ अन्य खतरों के प्रति भी सुभेद्य बनाता है क्योंकि ऐसे निर्माण के कारण वे अन्य क्षेत्रों में नहीं जा सकती हैं
      • एक बाँध के अनुप्रवाह में भारी प्रदूषण, मछली पकड़ने की गतिविधियों में वृद्धि और पोत यातायात से डॉल्फिन के लिये खतरा उत्पन्न होता है। इसकी वजह से उनके लिये भोजन की भी कमी होती है क्योंकि बाँध मछलियों और अन्य शिकारों के प्रवासन, प्रजनन चक्र तथा निवास स्थान को प्रभावित करता है।
  • संरक्षण स्थिति:
    • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I
    • IUCN रेड लिस्ट: संकटग्रस्त (Endangered)
    • ‘वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय’ (CITES): परिशिष्ट-I
    • वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS): परिशिष्ट II (प्रवासी प्रजातियाँ जिन्हें संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता है या जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से काफी लाभ होगा)।
  • संरक्षण हेतु अन्य पहल:
    • राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र (NDRC): लुप्तप्राय गंगा नदी डॉल्फिन के संरक्षण के लिये पटना विश्वविद्यालय के परिसर में 4,400 वर्ग मीटर भूमि के भूखंड पर NDRC की स्थापना की जा रही है।
    • डॉल्फिन अभयारण्य: बिहार के भागलपुर ज़िले में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य की स्थापना की गई है।
    • राष्ट्रीय गंगा डॉल्फिन दिवस: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा प्रतिवर्ष 5 अक्तूबर को गंगा डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • संरक्षण योजना: ‘गंगा डॉल्फिन संरक्षण कार्य योजना 2010-2020’ गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के प्रयासों में से एक है, इसके तहत गंगा डॉल्फिन और उनकी आबादी के लिये प्रमुख खतरों के रूप में नदी में यातायात, सिंचाई नहरों और शिकार की कमी आदि की पहचान की गई है।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. गंगा नदी डॉल्फिन की समष्टि में ह्रास के लिये शिकार-चोरी के अलावा और क्या संभव कारण हैं? (2014)

  1. नदियों पर बाँधों और बैराजों का निर्माण
  2. नदियों में मगरमच्छों की समष्टि में वृद्धि
  3. संयोग से मछली पकड़ने के जालों में फँस जाना
  4. नदियों के आस-पास के फसल-खेतों में संश्लिष्ट उर्वरकों और अन्य कृषि रसायनों का इस्तेमाल

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

WPI और CPI मुद्रास्फीति दरें

प्रिलिम्स के लिये:

थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, मौद्रिक नीति समिति, भारतीय रिज़र्व बैंक।

मेन्स के लिये:

मुद्रास्फीति और इसका प्रभाव, मौद्रिक नीति।

चर्चा में क्यों?

सरकार द्वारा जारी आँकड़ों से पता चला है कि भारत में थोक मुद्रास्फीति (WPI) बढ़कर 13.11% हो गई, जबकि भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति दर फरवरी 2022 में 6.07% पर आ गई है।

थोक मूल्य सूचकांक (WPI):

  • यह थोक व्यवसायों द्वारा अन्य व्यवसायों को बेची जाने वाली वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को मापता है।
  • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार (Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है।
  • इस सूचकांक की सबसे प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।
  • वर्ष 2017 में भारत के लिये WPI का आधार वर्ष 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI):

  • ह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य में हुए परिवर्तन को मापता है तथा इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
  • यह उन वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिन्हें भारतीय उपभोक्ता उपयोग के लिये खरीदते हैं।
  • इसके कई उप-समूह हैं जिनमें खाद्य और पेय पदार्थ, ईंधन तथा प्रकाश, आवास एवं कपड़े, बिस्तर व जूते शामिल हैं।
  • इसके निम्नलिखित चार प्रकार हैं:
    • औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers- IW) के लिये CPI 
    • कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer- AL) के लिये CPI
    • ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer- RL) के लिये CPI
    • CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
  • इनमें से प्रथम तीन के आँकड़े श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (Labor Bureau) द्वारा संकलित किये जाते हैं, जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation-CSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
  • CPI का आधार वर्ष 2012 है।
  • मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) मुद्रास्फीति (रेंज 4+/-2% के भीतर) को नियंत्रित करने के लिये CPI डेटा का उपयोग करती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2014 में  CPI को मुद्रास्फीति के अपने प्रमुख उपाय के रूप में अपनाया था।

विगत वर्षों के प्रश्न

भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

1. भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) केवल मासिक आधार पर उपलब्ध है।
2. औद्योगिक कामगारों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) की तुलना में थोक मूल्य सूचकांक खाद्य वस्तुओं को कम महत्त्व देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1  
(b) केवल 2  
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

थोक मूल्य सूचकांक बनाम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक:

  • WPI, उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति को ट्रैक करता है, जबकि CPI उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
  • WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को नहीं मापता, जबकि CPI में सेवाओं को भी ध्यान में रखा जाता है।
  • WPI में विनिर्मित वस्तुओं को अधिक वेटेज दिया जाता है, जबकि CPI में खाद्य पदार्थों को अधिक वेटेज दिया जाता है।

मुद्रास्फीति:

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन और परिवहन इत्यादि की कीमतों में होने वाली वृद्धि से है।
  • मुद्रास्फीति के तहत समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य में होने वाले परिवर्तन को मापा जाता है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत होती है।
    • इससे अंततः आर्थिक विकास में कमी आ सकती है।
  • हालाँकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये मुद्रास्फीति का एक आवश्यक स्तर बनाए रखना आवश्यक होता है।
  • भारत में मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकों- थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापा जाता है जो कि क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तन को मापते हैं।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. खाद्य वस्तुओं का ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) भार (Wegitage) उनके ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान हेतु तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

पीएम-दक्ष योजना

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम-दक्ष योजना, कौशल विकास से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, हाशिये पर रह रहे समूहों को कौशल प्रदान करने में पीएम-दक्ष योजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि वर्ष 2020-21 तथा वर्ष 2021-22 के दौरान पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्ष और कुशल संपन्न हितग्राही) योजना के तहत क्रमशः 44.79 करोड़ एवं 79.48 करोड़ रुपए की धनराशि निर्धारित की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • पीएम-दक्ष योजना वर्ष 2020-21 से लागू की गई है।
    • इसके तहत पात्र लक्ष्य समूहों के कौशल विकास हेतु अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसे अप-स्किलिंग/रिस्किलिंग; उद्यमिता विकास कार्यक्रम और दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
      • ये प्रशिक्षण कार्यक्रम सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा गठित क्षेत्र कौशल परिषदों एवं अन्य विश्वसनीय संस्थानों के माध्यम से कार्यान्वित किये जा रहे हैं।
  • अर्हता:
    • अनुसूचित जाति (SC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग, विमुक्त जनजाति, कचरा बीनने वाले, हाथ से मैला ढोने वाले, ट्रांसजेंडर और अन्य समान श्रेणियों के हाशिये पर रहने वाले व्यक्ति।
  • कार्यान्वयन:
    • यह कार्य मंत्रालय के तहत तीन निगमों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है:
      • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (NSFDC),
      • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम ((NBCFDC),
      • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (NSKFDC)
  • लक्षित समूहों के कौशल विकास प्रशिक्षण की स्थिति:
    • पिछले 5 वर्षों में लक्षित समूहों के 2,73,152 लोगों को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया गया है।
    • वर्ष 2021-22 के दौरान इन तीनों निगमों के माध्यम से लक्षित समूहों के लगभग 50,000 लोगों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

योजना का महत्त्व:

  • न्यूनतम आर्थिक संपत्ति:
    • लक्षित समूहों के अधिकांश व्यक्तियों के पास न्यूनतम आर्थिक संपत्ति है, इसलिये, हाशिये पर स्थित इन लक्षित समूहों के आर्थिक सशक्तीकरण/उत्थान हेतु प्रशिक्षण का प्रावधान करना और उनकी दक्षताओं को बढ़ाना आवश्यक है।
  • कारीगरों की ग्रामीण श्रेणी की सहायता:
    • लक्षित समूहों के कई व्यक्ति ग्रामीण कारीगरों की श्रेणी से संबंधित हैं जो बाज़ार में बेहतर तकनीकों के आने के कारण हाशिये पर चले गए हैं।
  • महिलाओं का सशक्तीकरण:
    • महिलाओं को उनकी समग्र घरेलू मजबूरियों के कारण मज़दूरी, रोज़गार में शामिल नहीं किया जा सकता है जिसमें आमतौर पर लंबे समय तक काम करने के घंटे और कभी-कभी दूसरे शहरों में प्रवास करना शामिल होता है, इन लक्षित समूहों के मध्य महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।

कौशल विकास से संबंधित पहलें:

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. ‘पूर्व अधिगम की मान्यता स्कीम (रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग स्कीम)’ का कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में उल्लेख किया जाता है?

(a) निर्माण कार्य में लगे कर्मकारों के पारंपरिक मार्गों से अर्जित कौशल का प्रमाणन।
(b) दूरस्थ अधिगम कार्यक्रमों के लिये विश्वविद्यालयों में व्यक्तियों को पंजीकृत करना।
(c) सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों में ग्रामीण और नगरीय निर्धन लोगों के लिये कुछ कुशल कार्य आरक्षित करना।
(d) राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अधीन प्रशिक्षणार्थियों द्वारा अर्जित कौशल का प्रमाणन।

उत्तर: (a)

प्र. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

1. यह श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय की फ्लैगशिप स्कीम है।
2. यह अन्य चीजों के साथ-साथ, सॉफ्ट स्किल, उद्यमवृत्ति, वित्त्तीय और डिजिटल साक्षरता में भी प्रशिक्षण उपलब्ध कराएगी।
3. यह देश के अविनियमित कार्यबल की कार्यकुशलता को राष्ट्रीय योग्यता ढाँचे (नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क) के साथ जोड़ेगी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), बेरोज़गारी दर, श्रम बल।

मेन्स के लिये:

रोज़गार, वृद्धि एवं विकास, मानव संसाधन, भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, बेरोज़गारी से लड़ने हेतु सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) से पता चलता है कि महामारी की पहली लहर के दौरान वर्ष 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी दर में तेज़ी से वृद्धि हुई थी।

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत सांख्यिकीय सेवा अधिनियम 1980 के तहत सरकार की केंद्रीय सांख्यिकीय एजेंसी है।

बेरोज़गारी दर क्या है?

  • बेरोज़गारी दर: बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • श्रम बल: करेंट वीकली स्टेटस (CWS) के अनुसार, श्रम बल का आशय सर्वेक्षण की तारीख से पहले एक सप्ताह में औसत नियोजित या बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या से है।
  • CWS दृष्टिकोण: शहरी बेरोज़गारी PLFS, CWS के दृष्टिकोण पर आधारित है।
    • CWS के तहत एक व्यक्ति को बेरोज़गार तब माना जाता है यदि उसने सप्ताह के दौरान किसी भी दिन एक घंटे के लिये भी काम नहीं किया, लेकिन इस अवधि के दौरान किसी भी दिन कम-से-कम एक घंटे के लिये काम की मांग की या काम उपलब्ध था।
    • वर्ष 2021 की अप्रैल-जून तिमाही में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिये शहरी क्षेत्रों में वर्तमान साप्ताहिक स्थिति में श्रम बल भागीदारी दर 46.8% थी।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रच्छन्न बेरोज़गारी का मतलब होता है: (2013)

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर: c

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS):

  • अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की।
  • PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं:
  • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
  • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस) और CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।

बेरोज़गारी से निपटने हेतु सरकार की पहल:

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार

प्रच्छन्न बेरोज़गारी

यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।

  • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में व्याप्त है।
मौसमी बेरोज़गारी

यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।

  • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम कार्य होता है।
संरचनात्मक बेरोज़गारी

यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।

  • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है तथा शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
चक्रीय बेरोज़गारी

यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।

  • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
तकनीकी बेरोज़गारी

यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।

  • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात वर्ष-दर-वर्ष 69% है।
घर्षण बेरोज़गारी

घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।

  • दूसरे शब्दों में एक कर्मचारी को नई नौकरी खोजने या नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिये समय की आवश्यकता होती है, यह अपरिहार्य समय की देरी घर्षण बेरोज़गारी का कारण बनती है।
  • इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोज़गारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं।
सुभेद्य रोज़गार

इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से कार्य कर रहे हैं तथा इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।

  • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी नहीं बनाया जाता हैं।
  • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न: निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि आर्थिक विकास के उच्च स्तर का संकेत नहीं देती है, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ समन्वय बनाए रखने में विफल रहता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ समन्वय बनाए रखने में विफल रहता है।
(c) गरीबी और बेरोज़गारी में वृद्धि।
(d) निर्यात की तुलना में आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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