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शासन व्यवस्था

UAPA की सीमाओं का निर्धारण: दिल्ली उच्च न्यायालय

  • 17 Jun 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967

मेन्स के लिये

UAPA की आवश्यकता, इसकी प्रासंगिकता और आलोचना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के एक मामले में छात्र कार्यकर्त्ताओं को जमानत दे दी है।

  • इस निर्णय के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिनियम की धारा-15 की ‘अस्पष्ट’ सीमाओं को पुनः परिभाषित किया।

प्रमुख बिंदु

उच्च न्यायालय का निर्णय

  • आतंकवादी गतिविधि की सीमा
    • सामान्य दंडात्मक अपराधों को अधिनियम के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि’ की व्यापक परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता है।
      • ऐसा करके उच्च न्यायालय ने राज्य के लिये किसी व्यक्ति पर UAPA लागू करने हेतु सीमा निर्धारित कर दी है।
    • आतंकवादी गतिविधि की सीमा एक सामान्य अपराध के प्रभाव से परे होनी चाहिये और इसमें केवल कानून-व्यवस्था या सार्वजनिक व्यवस्था में अशांति पैदा करने संबंधी गतिविधियों को शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
      • इसके तहत ‘आतंकवाद’ की परिभाषा में उन गतिविधियों को शामिल किया जाना चाहिये, जिनसे निपटने के लिये एजेंसियाँ सामान्य कानूनों के तहत सक्षम नहीं हैं।
  • गैर-कानूनी गतिविधियों को परिभाषित करते समय सावधानी
    • देश भर के विभिन्न न्यायालयों को UAPA की धारा 15 में प्रयुक्त निश्चित शब्दों और वाक्यांशों को उनके पूर्ण शाब्दिक अर्थों में नियोजित करते समय सावधानी बरतनी चाहिये, साथ ही उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिये कि पारंपरिक और जघन्य अपराध किस प्रकार आतंकवाद से अलग हैं।
      • UAPA की धारा 15 ‘आतंकवादी कृत्यों’ को परिभाषित करती है और इसके लिये कम-से-कम पाँच वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान करती है। यदि आतंकवादी कृत्य के परिणामस्वरूप किसी की मृत्यु हो जाती है, तो सज़ा मृत्यु या आजीवन कारावास है।
      • न्यायालय ने उल्लेख किया कि किस प्रकार स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने ‘करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य’ वाद (1994) में एक अन्य आतंकवाद विरोधी कानून ‘आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1987’ (1995 में व्यपगत) के दुरुपयोग के विरुद्ध इसी तरह की चिंता ज़ाहिर की थी।
  • UAPA लागू करने का उद्देश्य
    • इस अधिनियम को लागू करने का एकमात्र उद्देश्य आतंकवादी गतिविधि को सीमित करने और ‘भारत की रक्षा’ पर गंभीर प्रभाव डालने वाले मामलों से निपटना होना चाहिये।.
    • इस अधिनियम का उद्देश्य और इरादा सामान्य प्रकार के अपराधों को कवर करना नहीं था, चाहे वे कितने भी गंभीर, असाधारण या जघन्य ही क्यों न हों।
  • विरोध प्रदर्शन का अधिकार
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकारी और संसदीय कार्यों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करना पूर्णतः वैध है और यद्यपि इस तरह के विरोध प्रदर्शनों के शांतिपूर्ण और अहिंसक होने की उम्मीद होती है, किंतु ऐसी स्थिति में भी प्रदर्शनकारियों के लिये कानून की सीमा को आघात पहुँचाना कोई असामान्य घटना नहीं है।
    • न्यायालय के मुताबिक, विरोध के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद-19) और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ धुंधली होती दिख रही है।

निर्णय का महत्त्व

  • यह पहला उदाहरण है जब किसी न्यायालय ने उन मामलों में व्यक्तियों के विरुद्ध UAPA के कथित दुरुपयोग की बात कही है, जो ज़ाहिर तौर पर ‘आतंकवाद’ की श्रेणी में नहीं आते हैं।
    • मार्च में संसद में गृह मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में UAPA के तहत कुल 1126 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2015 में इनकी संख्या 897 ही थी।

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967

  • UAPA को वर्ष 1967 में पारित किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में गैर-कानूनी गतिविधियों का प्रभावी रोकथाम सुनिश्चित करना है।
    • गैरकानूनी गतिविधि किसी व्यक्ति या संघ द्वारा भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को बाधित करने के उद्देश्य से की गई किसी भी कार्रवाई को संदर्भित करती है।
  • यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके माध्यम से यदि केंद्र सरकार किसी गतिविधि को गैर-कानूनी मानती है तो वह आधिकारिक राजपत्र के माध्यम से इसकी घोषणा कर उसे अधिनियम के तहत अपराध बना सकती है। 
    • इसमें अधिकतम सज़ा के तौर पर मृत्युदंड और आजीवन कारावास का प्रावधान हैं।
  • यह अधिनियम भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों पर लागू होता है। यह अपराधियों पर एकसमान रूप से ही लागू होता है, भले ही वह अपराध भारत के बाहर किसी विदेशी भूमि पर ही क्यों न किया गया हो।
  • UAPA के तहत जाँच एजेंसी गिरफ्तारी के बाद अधिकतम 180 दिनों में चार्जशीट दाखिल कर सकती है और न्यायालय को सूचित करने के बाद उस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
  • वर्ष 2004 में किये गए संशोधन के तहत आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न संगठनों पर प्रतिबंध लगाने हेतु अपराधों की सूची में ‘आतंकवादी कृत्यों’ को भी शामिल कर लिया गया, जिसके पश्चात् कुल 34 संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • वर्ष 2004 तक ‘गैर-कानूनी’ गतिविधियों के तहत अलगाव और अधिग्रहण संबंधित कृत्यों को ही शामिल किया जाता था।
  • अगस्त, 2019 में संसद ने अधिनियम में प्रदान किये गए कुछ विशिष्ट आधारों पर किसी विशिष्ट व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में नामित करने हेतु गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 को मंज़ूरी दी।
    • यह अधिनियम मामले की जाँच के दौरान ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ (NIA) के महानिदेशक को संपत्ति की ज़ब्ती या कुर्की करने की मंज़ूरी देने का अधिकार देता है।
    • यह अधिनियम NIA के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को राज्य में DSP या ASP या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी से संबंधित मामलों के अतिरिक्त आतंकवाद के सभी मामलों की जाँच करने का अधिकार देता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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