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भारतीय राजव्यवस्था

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

  • 10 Jan 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अधीनस्थ विधान संबंधी समिति, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, 1985 का असम समझौता

मेन्स के लिये:

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 से संबंधित विशेषताएँ और मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय (MHA) नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) के तहत नियमों को अधिसूचित करने की समय सीमा से चूक गया।

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 से संबंधित चिंताओं और बेहतर स्पष्टता के लिये लोकसभा तथा राज्यसभा में दो संसदीय समितियों (अधीनस्थ कानून संबंधी समितियों) ने गृह मंत्रालय से कानून को नियंत्रित करने वाले नियमों के निर्माण की मांग की थी।
  • अगर सरकार नियम और कानून नहीं बनाती है, तो कोई कानून या उसके कुछ हिस्सों को लागू नहीं किया जाएगा। वर्ष 1988 का बेनामी लेन-देन अधिनियम एक ऐसे ही कानून का उदाहरण है, जो नियमों के अभाव में लागू नहीं किया गया है।

अधीनस्थ विधान संबंधी समिति:

  • इस समिति द्वारा जाँच की जाती है और यह सदन को रिपोर्ट प्रस्तुत करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों और उप-नियमों आदि को बनाने की शक्तियों का इस तरह के प्रतिनिधिमंडल के दायरे में कार्यपालिका द्वारा उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है।
  • इस समिति में दोनों सदनों के सदस्य मौजूद होते हैं।
  • इसमें 15 सदस्य होते हैं।
  • इस समिति में किसी मंत्री को मनोनीत नहीं किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • CAA के बारे में: 
    • CAA पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
    • यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है।
      • दोनों अधिनियम अवैध रूप से देश में प्रवेश करने और वीजा या परमिट के समाप्त हो जाने पर यहाँ रहने के लिये दंड निर्दिष्ट करते हैं।
  • CAA के साथ संबद्ध चिंताएँ:
    • एक विशेष समुदाय को लक्षित करना: ऐसी आशंकाएँ हैं कि CAA के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का देशव्यापी संकलन होगा यह प्रस्तावित नागरिक रजिस्टर से बाहर किये गए गैर-मुसलमानों को लाभान्वित करेगा, जबकि बहिष्कृत मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
    • उत्तर-पूर्व के मुद्दे: यह वर्ष 1985 के असम समझौते का खंडन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों को चाहे वे किसी भी धर्म के हों निर्वासित कर दिया जाएगा।
      • असम में अनुमानित 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं और उन्होंने राज्य के संसाधनों तथा अर्थव्यवस्था पर गंभीर दबाव डालने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी को बदल दिया है।
    • मौलिक अधिकारों के खिलाफ: आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है व नागरिकों और विदेशियों दोनों पर लागू होता है) तथा संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
    • प्रकृति में भेदभावपूर्ण: भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका के तमिल और म्याँमार के हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं। वे इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • प्रशासन में कठिनाई: सरकार के लिये अवैध प्रवासियों और प्रभावित लोगों के बीच अंतर करना मुश्किल होगा।
    • द्विपक्षीय संबंधों में बाधा: यह अधिनियम धार्मिक उत्पीड़न पर प्रकाश डालता है जो कि इन तीन देशों में हुआ है और हो रहा है तथा इस प्रकार उनके साथ हमारे द्विपक्षीय संबंध खराब हो सकते हैं।

आगे की राह 

  • भारत की एक समृद्ध सभ्यता रही है। इसलिये यह उन लोगों की रक्षा करने का एक नया प्रयास है जिन पर इसके पड़ोस में मुकदमा चलाया जाता है। हालाँकि तरीके संविधान की भावना के अनुसार होने चाहिये।
  • इस प्रकार MHA को CAA नियमों को अत्यंत पारदर्शिता के साथ अधिसूचित करना चाहिये और सीएए से जुड़ी आशंकाओं को दूर करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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