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भारतीय अर्थव्यवस्था

दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021

  • 27 Jul 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्विस चैलेंज, कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण

मेन्स के लिये:

दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 के प्रावधान एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने लोकसभा में दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 पेश किया।

दिवाला और दिवालियापन संहिता:

  • इसे वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था। यह व्यावसायिक फर्मों के दिवाला समाधान से संबंधित विभिन्न कानूनों को समाहित करता है।
  • यह दिवालियापन की समस्या के समाधान के लिये सभी वर्गों के देनदारों और लेनदारों को एकसमान मंच प्रदान करने के लिये मौजूदा विधायी ढाँचे के प्रावधानों को मज़बूत करता है।

नोट

  • इन्सॉल्वेंसी: यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने बकाया ऋण चुकाने में असमर्थ होती है।
  • बैंकरप्सी: यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी सक्षम न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति या संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और न्यायालय द्वारा इसका समाधान करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश दिया गया हो। यह किसी कंपनी अथवा व्यक्ति द्वारा ऋणों का भुगतान करने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।

प्रमुख बिंदु

प्रमुख प्रावधान:

  • संकटग्रस्त कॉर्पोरेट देनदारों (Distressed Corporate Debtor) को नए तंत्र के अंतर्गत बकाया ऋण की समस्या को हल करने के लिये अपने दो-तिहाई लेनदारों के अनुमोदन के साथ एक PIRP शुरू करने की अनुमति है।
    • कॉर्पोरेट देनदार वह व्यक्ति है जो किसी अन्य व्यक्ति को कर्ज़ देता है।
  • यदि परिचालक लेनदारों को उनकी बकाया राशि का 100% भुगतान नहीं करता है, तो PIRP संकटग्रस्त कॉर्पोरेट देनदार द्वारा प्रस्तुत समाधान योजना के लिये स्विस चैलेंज (Swiss Challenge) की भी अनुमति देता है।
    • स्विस चैलेंज बोली लगाने का एक तरीका है, जिसे अक्सर सार्वजनिक परियोजनाओं में इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें इच्छुक पार्टी अनुबंध के लिये प्रस्ताव या परियोजना हेतु बोली प्रक्रिया शुरू करती है।

PIRP के विषय में:

  • यह सार्वजनिक बोली प्रक्रिया के बजाय सुरक्षित लेनदारों और निवेशकों के बीच समझौते के माध्यम से संकटग्रस्त कंपनी के ऋण का समाधान करता है।
    • दिवाला कार्यवाही की यह प्रणाली पिछले एक दशक में ब्रिटेन और यूरोप में दिवाला समाधान के लिये तेज़ी से लोकप्रिय तंत्र बन गई है।
  • इसका उद्देश्य मुख्य रूप से MSMEs को अपनी देनदारियों के पुनर्गठन का अवसर प्रदान करना और पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हुए उन्हें शुरू करना है ताकि लेनदारों को भुगतान करने से बचने के लिये फर्मों द्वारा सिस्टम का दुरुपयोग न किया जाए।
  • PIRP के दौरान देनदार कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Resolution Process) के विपरीत अपनी संकटग्रस्त फर्म के नियंत्रण में रहते हैं।
  • PIRP सिस्टम के अंतर्गत वित्तीय लेनदार संभावित निवेशक के साथ शर्तों के लिये सहमत होंगे और राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal) से समाधान योजना का अनुमोदन प्राप्त करेंगे।

प्री-पैक की आवश्यकता:

  • CIRP एक अधिक समय लेने वाला प्रस्ताव है। दिसंबर 2020 के अंत में चल रही 1717 दिवाला समाधान कार्यवाहियों में से 86% से अधिक ने 270 दिन की समयावधि को पार कर लिया था।
    • IBC के तहत हितधारकों को दिवाला कार्यवाही शुरू होने के 330 दिनों के भीतर CIRP को पूरा करना आवश्यक है।
    • CIRPs में विलंब के प्रमुख कारणों में से एक पूर्ववर्ती प्रमोटरों और संभावित बोली लगाने वालों द्वारा लंबे समय तक मुकदमेबाज़ी करना है।

प्री-पैक की मुख्य विशेषताएंँ:

  • दिवाला व्यावसायिक:
    • प्री-पैक के तहत आमतौर पर प्रक्रिया के संचालन हेतु हितधारकों की सहायता के लिये एक दिवाला व्यवसायी  (Insolvency Practitioner) की सेवाओं की आवश्यकता होती है।
    • व्यवसायी के अधिकार की सीमा विभिन्न क्षेत्राधिकार में भिन्न होती है।
  • सहमति प्रक्रिया:
    • यह एक सहमति प्रक्रिया की परिकल्पना करता है जिसमें प्रक्रिया के औपचारिक भाग को लागू करने से पहले, सहमति प्रक्रिया में तनाव को समाप्त करने हेतु कार्रवाई के दौरान हितधारकों के मध्य पूर्व समझ विकसित करना या अनुमोदन शामिल है।
  • न्यायालय के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं:
    • इसे लागू करने हेतु हमेशा न्यायालय की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है। जहांँ भी इसे अनुमोदन की आवश्यकता होती है, वहाँ न्यायालय  की कार्यवाही अक्सर पार्टियों के व्यावसायिक ज्ञान से निर्देशित होती है।
    • न्यायालय द्वारा अनुमोदित प्री-पैक प्रक्रिया का परिणाम सभी हितधारकों के लिये बाध्यकारी है।

प्री-पैक का महत्त्व:

  • त्वरित समाधान
    • यह अधिकतम 120 दिनों तक सीमित होता है, जिसमें 90 दिन हितधारकों के लिये ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (NCLT) के समक्ष समाधान योजना प्रस्तुत करने के लिये होते हैं।
    • MSMEs को अपने ऋणों के पुनर्गठन के लिये मार्ग प्रदान करने के अलावा प्री-पैक योजना सामान्य CIRPs की तुलना में तीव्र समाधान तंत्र प्रदान कर NCLT के बोझ को कम कर सकती है।
  • व्यवसाय में कम-से-कम व्यवधान
    • समाधान पेशेवरों के बजाय प्री-पैक के मामले में कंपनी का नियंत्रण मौजूदा प्रबंधन के पास ही रहता है, इसलिये व्यवसाय में व्यवधान को कम किया जा सकता है और कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों तथा निवेशकों के विश्वास को बनाए रखा जा सकता है।
  • यह संपूर्ण देयता पक्ष को संबोधित करता है:
    • PIRP कॉर्पोरेट देनदारों को उधारदाताओं की सहमति से पुनर्गठन करने और कंपनी के संपूर्ण दायित्व को संबोधित करने में मदद करेगा।

PIRP की चुनौतियाँ:

  • अतिरिक्त पूंजी जुटाना:
    • प्रारंभ में कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor) निवेशकों या बैंकों से अतिरिक्त पूंजी या ऋण नहीं जुटा सकती हैं, क्योंकि इन निवेशकों और उधारदाताओं द्वारा प्रदान किये जा रहे धन की वसूली में जोखिम शामिल है। 
  • लघु समयावधि:
    •  PIRP के तहत समाधान योजना 90 दिनों की है तथा योजना के समर्थन के लिये  निर्णायक प्राधिकरण (AA) को अतिरिक्त 30 दिन दिये गए हैं।  लेनदारों की समिति (COC) के सदस्यों के लिये इस छोटी अवधि के भीतर बिना किसी व्यापक पैरामीटर के समाधान योजना पर निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण है, जिस पर समाधान योजना को मंज़ूरी दी जाए।

आगे की राह 

  • जबकि PIRP व्यवहार्य MSMEs की रक्षा के लिये एक सामयिक प्रयास है, यह संभावना जताई जाती है कि अब केवल MSMEs के लिये इसे चालू करना एक अच्छे प्री-पैक की दिशा में पहला कदम हो सकता है जो BC की तरह भविष्य में बहुत व्यापक कवरेज की ओर ले जाएगा तथा इसके समय और न्यायशास्त्र के साथ विकसित होने की अपेक्षा की जाती है।
  • सरकार को प्री-पैक समाधान योजनाओं से निपटने के लिये एनसीएलटी की विशिष्ट बेंच स्थापित करने पर विचार करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें समयबद्ध तरीके से लागू किया गया है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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