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संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020

  • 16 Oct 2020
  • 14 min read

संदर्भ:

हाल ही में संसद द्वारा ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता’ (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधनों की मंज़ूरी दी गई है। संसद के दोनों सदनों से ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020’ पास कर दिया गया है। इस नए संशोधन के तहत 25 मार्च, 2020 के बाद अगले 6 महीने तक किसी भी कंपनी के खिलाफ इनसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया न शुरू करने की बात कही गई है। इसके साथ ही इस संशोधन के माध्यम से IBC की कुछ अन्य धाराओं में भी संशोधन किया गया है।       

प्रमुख बिंदु:

  • इस संशोधन के तहत ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC), 2016’ की धारा 7, 9 और 10 को निलंबित कर दिया गया है।  
  • यह विधेयक जून 2020 में लागू किये गए ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को प्रतिस्थापित करेगा।  
  • 24 सितंबर, 2020 को केंद्रीय कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार इंसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया स्थगित करने के प्रावधान को अगले तीन माह के लिये और बढ़ा दिया गया है। 
  • ध्यातव्य है कि 25 मार्च, 2020 से ही केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन को लागू करने की घोषणा की गई थी। 

उद्देश्य: 

  • COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई अनिश्चितता के बीच उद्योगों का बाज़ार और उत्पादन की आपूर्ति श्रृंखला में बने रहना बहुत ही आवश्यक है।  
  • इस संशोधन के माध्यम से सरकार का उद्देश्य COVID-19 से प्रभावित हुए औद्योगिक क्षेत्र को पुनः गति प्रदान करने हेतु सहयोग देना और साथ ही कंपनियों को बंद होने से बचाना है।       
  • गौरतलब है कि औद्योगिक क्षेत्र द्वारा लंबे समय से इस संशोधन की मांग की जा रही थी।    

इंसाॅल्वेंसी (Insolvency):

  • दिवाला या इंसाॅल्वेंसी (Insolvency) एक ऐसी स्थिति है, जहां कोई व्यक्ति या कंपनी अपना बकाया कर्ज नहीं चुका पाती हैं।   

कानूनी प्रावधान:

  • वर्ष 1985 तक भारत में कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी और दिवालियापन से निपटने के लिये केवल एक ही कानून (कंपनी अधिनियम, 1956) था।   
  • वर्ष 1985 में ‘रूग्ण औद्योगिक कंपनी अधिनियम, 1985 (Sick Industrial Companies Act- SICA) के बाद वर्ष 1993 में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को शोध्य ऋण वसूली अधिनियम (Recovery Of Debts Due To Banks And Financial Institutions Act, 1993) लागू किया गया, जिसके तहत ऋण वसूली न्यायाधिकरणों की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2002 में सरफेसी अधिनियम (Sarfaesi Act) को लागू किया गया और इसी दौरान RBI द्वारा कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन हेतु एक योजना प्रस्तुत की गई जिसमें बैंकों के लिये व्यापक दिशा-निर्देश शामिल किये गए थे। 
  • इन प्रावधानों के बाद भी वर्ष 2015 तक इंसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया को पूरा करने में औसतन 4.5 वर्ष लगते थे, जो विश्व के अन्य देशों [यूनाइटेड किंगडम (1 वर्ष), अमेरिका (1.5 वर्ष),दक्षिण अफ्रीका (2 वर्ष) और पाकिस्तान (2.7 वर्ष)] की तुलना में काफी अधिक है।    
  • इंसाॅल्वेंसी प्रक्रिया में देरी और कानूनी जटिलताओं जैसी समस्याओं को दूर करने के लिये वर्ष 2016 में ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC), 2016’ को लागू किया गया।  
  • यह कोड ऋणधारक कंपनियों और व्यक्तियों दोनों पर लागू होता है। साथ ही यह कोड इंसाॅल्वेंसी के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया का निर्धारण करता है।  

पृष्ठभूमि:

  • COVID-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण औद्योगिक क्षेत्र को भारी क्षति हुई है, व्यावसायिक गतिविधियों के प्रभावित होने से वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में देश की जीडीपी में लगभग 24% की गिरावट देखने को मिली है। 
  • गौरतलब है कि 13 अप्रैल, 2020 विश्व बैंक समूह द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में उद्योगों के लिये IBC नियमों में राहत देने की बात कही गई थी।
  • औद्योगिक क्षेत्र में आई गिरावट को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया को स्थगित करने के लिये एक अध्यादेश जारी किया गया था। 

स्थगित की गई धाराएँ:

  • IBC की धारा-7:  यह धारा किसी कंपनी द्वारा ऋण न चुका पाने की स्थिति में ऋणदाता द्वारा उसके खिलाफ काॅर्पोरेट इंसाॅल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने प्रावधानों को निर्धारित करती है।
  • IBC की धारा-9: इसके तहत यदि वित्तीय या परिचालन ऋणदाता को IBC की धारा-8 (1) के तहत ऋणधारक को नोटिस भेजने के 10 दिनों के अंदर कोई भुगतान अथवा IBC की धारा-8 (2) के तहत काॅर्पोरेट का नोटिस नहीं प्राप्त होता है तो वह कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिये न्यायालय में अपील कर सकता है।
  • IBC की धारा-10: इसके तहत कॉर्पोरेट देनदार द्वारा स्वयं अपने विरुद्ध कॉर्पोरेट इंसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया का शुरू करने हेतु राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal-NCLT) के समक्ष आवेदन देने का प्रावधान किया गया है।   

जोड़ी गई धाराएँ:

  • धारा-10 (A): IBC कि धारा-10 (A) के तहत 25 मार्च, 2020 के बाद ऋण न चुका पाने वाले कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ कॉर्पोरेट इंसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया को अगले 6 माह या सरकार द्वारा निर्धारित अन्य अवधि (जो एक वर्ष से अधिक न हो) न शुरू करने प्रावधान किया गया है। 
    • हालाँकि इस अवधि के दौरान 25 मार्च, 2020 से पहले ऋण न चुकाने के कारण डिफाल्ट की स्थिति में कंपनियों की इंसाॅल्वेंसी हेतु IBC के प्रावधान पूर्ववत ही लागू होंगे।
  • धारा-66 (3): इस धारा के अनुसार, धारा-10 (A) के तहत किसी भी डिफाॅल्ट के संबंध में धारा-66 (2) के अंतर्गत आवेदन दिये जाने को निषेध करता है, जिसके संबंध में कॉर्पोरेट इंसाॅल्वेंसी के प्रवर्तन को निलंबित कर दिया गया है।         

अन्य प्रयास:

  • इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने कुछ अन्य सुधारों की भी घोषणा की है।
  • गौरतलब है कि हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने कामथ समिति की सिफारिशों के अनुरूप कुल 26 क्षेत्रों में ऋण के एकमुश्त पुनर्गठन हेतु आवश्यक मापदंडों पर दिशा निर्देश जारी किये थे।
  • केंद्र सरकार द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत विभिन्न क्षेत्रों के लिये राहत पैकेज की घोषणा की गई थी।   
  • इसके अतिरिक्त RBI द्वारा COVID-19 से प्रभावित कंपनियों को अतिरिक्त छूट और अन्य आवश्यक सहयोग देने की भी बात कही गई है।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत ही केंद्र सरकार ने छोटे उद्योगों के लिये लगभग 3.5 लाख करोड़ के ऋण पर बैंक गारंटी देने की घोषणा की थी।  

लाभ:   

  • इस संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने 25 मार्च के बाद डिफाॅल्ट के नए मामलों में इंसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया को पूरी तरह स्थगित कर दिया है, जिससे COVID-19 के कारण प्रभावित हुए व्यवसायों जो अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए अतिरिक्त समय प्राप्त हो सकेगा।
  • IBC की धारा-10 को स्थगित करना इसलिये भी आवश्यक था क्योंकि धारा-7 और 9 के स्थगन की स्थिति में ऋणदाता कॉर्पोरेट देनदार पर स्वयं को दिवालिया घोषित करने का दबाव बना सकते थे। इसके माध्यम से वर्तमान स्थिति में कॉर्पोरेट देनदार के शोषण पर अंकुश लगाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • इंसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया को अगले तीन महीनों तक स्थगित करना भी बहुत आवश्यक था क्योंकि सरकार द्वारा 25 मार्च के बाद दी गई 6 माह की अवधि के दौरान यदि RBI के प्रावधानों के अनुरूप ऋण का पुनर्गठन नहीं शुरू किया जाता तो उस स्थिति में ऋणदाता IBC की प्रक्रिया की शुरुआत कर सकते थे।    
  • RBI द्वारा चिह्नित 26 क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य सभी क्षेत्रों को भी ऋण पुनर्गठन की सुविधा प्राप्त होगी, जिससे कंपनियों पर वित्तीय दबाव कम होगा।  

चुनौतियाँ:

  • उद्योगों को ऋण के संदर्भ में क्षमता से अधिक छूट देने से बैंकिग क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • सरकार को इस बात पर भी विशेष ध्यान देना होगा कि औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े लोगों द्वारा इस छूट का दुरुपयोग न किया जाए।
  • COVID-19 की चुनौती से निपटने हेतु किसी वैक्सीन के अभाव में उत्पन्न हुई अनिश्चितता अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।   

आगे की राह:   

  • सरकार और बैंकों द्वारा उद्योगों को ऋण पुनर्गठन के साथ ही इस आपदा से उबरने के लिये छोटे उद्योगों के सामान ही उनके लिये भी नए ऋण पर बैंक गारंटी या ऐसी ही अन्य योजनाओं की शुरू करने पर विचार करना चाहिये।
  • साथ ही सरकार द्वारा IBC से दी गई छूट की अवधि के दौरान RBI को अधिक-से-अधिक संस्थानों के ऋण के पुनर्गठन का प्रयास करना चाहिये, जिसे उद्योगों को होने वाली क्षति को कम किया जा सके।
  • सरकार को IBC से जुड़े संस्थानों में व्याप्त कमियों को चिह्नित कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिये, जिससे पूर्व में हुई गलतियों की पुनरावृत्ति से बचा जा सके। 
  • COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई अनिश्चितता के बीच कंपनियों को भी परिस्थितियों के अनुरूप अपनी कार्यप्रणाली में आवश्यक बदलाव करना होगा। 

अभ्यास प्रश्न:  COVID-19 के कारण औद्योगिक क्षेत्र में उत्पन्न हुई वित्तीय चुनौती से निपटने हेतु केंद्र सरकार द्वारा ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता’ में संशोधन करने के निर्णय की समीक्षा करते हुए इसके लाभ तथा चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।

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