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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन

  • 22 Oct 2020
  • 18 min read

संदर्भ:

हाल ही में भारत और श्रीलंका दोनों देशों के प्रधानमंत्री के बीच पहले वर्चुअल द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन विवाद जैसे कई अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई।    

पृष्ठभूमि:

  • भारत और श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों का इतिहास  2,500 वर्षों से भी अधिक पुराना है, दोनों देशों की बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई संबंधों की विरासत है। 
  • हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है।  
  • व्यापार और निवेश के साथ दोनों देशों के बीच अवसंरचना विकास, शिक्षा, संस्कृति तथा रक्षा क्षेत्र सहयोग में वृद्धि हुई है।
  • दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर व्यापक आपसी समझ साझा करते हैं।  
  • ध्यातव्य है कि भारत और श्रीलंका सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) के सदस्य है और सार्क देशों भारत का व्यापार श्रीलंका के साथ सबसे अधिक है।  
  • दिसंबर 1998 में एक अंतर सरकारी पहल के माध्यम से‘भारत-श्रीलंका फाउंडेशन’ (India-Sri Lanka Foundation) की स्थापना की गई, इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच  वैज्ञानिक, तकनीकी, शैक्षिक, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • भारत और श्रीलंका का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 4.5 बिलियन डॉलर का है, जिसमें भारत द्वारा श्रीलंका को किया गया निर्यात लगभग 3.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर और श्रीलंका से भारत को किया गया निर्यात लगभग 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा।   
  • दोनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘मित्र शक्ति’ (Mitra Shakti) और संयुक्त नौसैनिक अभ्यास ‘स्लिनेक्स’ (SLINEX) का आयोजन किया जाता है।     

प्रमुख बिंदु:

  • यह बैठक इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 9 अगस्त, 2020 को महिंद्रा राजपक्षे के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद अपने देश के बाहर किसी अंतर्राष्ट्रीय नेता के साथ हुई उनकी यह पहली द्विपक्षीय बैठक थी।
  • गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2019 में श्रीलंका के सातवें राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने के बाद गोतबाया राजपक्षे भी अपनी पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पर भारत आए थे और फरवरी 2020 में महिंद्रा राजपक्षे भारत यात्रा पर आए थे ।
  • श्रीलंकाई शीर्ष नेतृत्व द्वारा भारत को दी जाने वाली प्राथमिकता श्रीलंका के लिये भारत के महत्त्व को दर्शाता है।
  • इस बैठक के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रीलंका सरकार से संविधान के तेरहवें संशोधन (13th Amendment) के कार्यान्वयन और सुलह/सामंजस्य की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए एक संयुक्त श्रीलंका के भीतर समानता, न्याय, शांति और सम्मान के लिये तमिल लोगों की आकांक्षाओं पर ध्यान देने का आह्वान किया, जिसपर श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भी अपनी सहमति व्यक्त की। 

द्विपक्षीय सहयोग:  

  • इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने भारत की ‘पड़ोसी देश प्रथम नीति’ या ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood First  Policy) और सागर सिद्धांत (SAGAR Doctrine) के तहत श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों को  विशेष और उच्च प्राथमिकता (Special and High Priority) देने की बात कही।
  • ध्यातव्य है कि अगस्त 2020 में चुने गए श्रीलंका के नए विदेश सचिव ने अपनी नई विदेश नीति में ‘भारत प्रथम दृष्टिकोण’ या ‘इंडिया फर्स्ट अप्रोच’ (India First Approach) को अपनाने और भारत के सामरिक रक्षा हितों की सुरक्षा की बात कही थी।

महत्त्वपूर्ण समझौते: 

रक्षा क्षेत्र में:

  • भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए दोनों पक्षों ने आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी, खुफिया जानकारी, सूचना साझाकरण,क्षमता निर्माण आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।   
  • दोनों देशों के बीच एक ‘इंटेलिजेंस शेयरिंग’ (Intelligence Sharing) समझौते पर हस्ताक्षर के लिये चर्चा की गई है।
  • ध्यातव्य है कि हिंद महासागर क्षेत्र के संदर्भ में भारत द्वारा श्रीलंका और मालदीव के साथ समुद्री जागरूकता के क्षेत्र में पहले एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जा चुका है।
    • अभी तक इस समझौते के तहत व्यापारिक जहाज़ों की आवाजाही के संदर्भ में जानकारी साझा की जा रही थी परंतु यदि इस समझौते को और आगे बढ़ाया जाता है तो इसके तहत हिंद महासागर क्षेत्र में युद्धपोतों के आवागमन की जानकारी साझा की जा सकेगी।
  • भारत द्वारा सामरिक सहयोगिता के क्षेत्र में श्रीलंका को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट देने पर विचार किया जा रहा है।
    • इसके तहत श्रीलंका को रक्षा से जुड़े हथियार और दूर-संचार के उपकरणों की आपूर्ति की जाएगी। 
  • अन्य देशों से प्रशिक्षण के लिये भारत आने वाले कुल विदेशी सैनिकों में से 25% सीट श्रीलंका के सैनिकों को दी जाती है, श्रीलंका द्वारा पिछले कुछ समय से इन सीटों की संख्या को बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है। 
  • दोनों देशों के बीच समुद्री अवैध शिकार और मछुआरों की समस्याओं के मुद्दे पर भी सहयोग बढ़ाने की बात कही गई।

पर्यटन और सांस्कृतिक संपर्क: 

  • भारत द्वारा दोनों देशों के बीच बौद्ध संपर्क को मज़बूत करने के लिये श्रीलंका को 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान दिये जाने की घोषणा की गई। इस अनुदान का प्रयोग बौद्ध धर्म के क्षेत्र में दोनों देशों के नागरिकों के बीच संबंधों को मज़बूत करने में किया जाएगा, जिसके तहत बौद्ध मठों का निर्माण/नवीकरण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान क्षमता विकास आदि कार्य शामिल हैं। 
  • भारत सरकार द्वारा कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर पहली अंतर्राष्ट्रीय उड़ान के रूप में श्रीलंका के बौद्ध तीर्थयात्रियों के एक प्रतिनिधि मंडल की कुशीनगर यात्रा की व्यवस्था की गई है।    

ऊर्जा के क्षेत्र में: 

  • भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के तहत भी साझेदारी की गई है इसके तहत भारत द्वारा श्रीलंका को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की एक लाइन ऑफ क्रेडिट की सुविधा प्रदान की गई है।
    • इसके तहत श्रीलंका में 20,000 घरों और 1,000 सरकारी भवनों में सोलर पैनल लगाए जाएँगे। इससे लगभग 60 मेगावाट की सौर विद्युत् ऊर्जा उत्पादन का अनुमान है।   

उच्च-प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजना:

  • भारत द्वारा श्रीलंका में उच्च-प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजना (High Impact Community Development Projects- HIDP) को अगले 5 वर्षों (वर्ष 2025) के लिए बढ़ा दिया गया है।
  • इस परियोजना के तहत 10,000 घरों के निर्माण कार्य को पूरा किया जाएगा, जिसकी घोषणा वर्ष 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री की श्रीलंका यात्रा के दौरान की गई थी। इस योजना से सबसे अधिक लाभ बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को प्राप्त होगा। इससे पहले भी भारत द्वारा जाफना में 50,000 घरों का निर्माण किया गया था।    

अन्य सहयोग:

  • इसके साथ  ही दोनों देशों के बीच कृषि, पशुपालन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल और आयुष (AYUSH) के क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग को बढ़ाने और इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को प्रशिक्षित करने पर सहमति व्यक्त की गई।      

चुनौतियाँ:  

श्रीलंका का 13 वाँ संविधान संशोधन: 

  • अगस्त माह में श्रीलंका के संसदीय चुनावों में महिंद्रा राजपक्षे के भारी बहुमत से विजयी होने के बाद यह आशंका व्यक्त की गई कि श्रीलंका सरकार द्वारा संविधान के 13वें संशोधन को रद्द किया जा सकता है, जिससे वहाँ की तमिल आबादी की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ भी बढ़ गई थी। 
  • इस बैठक के बाद जारी साझा वक्तव्य में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने संविधान के 13वें संशोधन को पूरी तरह लागू करने के संदर्भ में भारत के मत का समर्थन किया परंतु इस शिखर सम्मेलन के बाद श्रीलंकाई प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी वक्तव्य में इस बारे में कोई भी बात नहीं कही गई।

चीन की भूमिका:    

  • पिछले कुछ वर्षों में चीन ने श्रीलंका में भारी मात्रा में निवेश (मुख्य रूप से अवसंरचना परियोजनाओं में) किया है, इसे साथ ही चीन ने अन्य कई परियोजनाओं के लिये अरबों डॉलर का ऋण भी उपलब्ध कराया है।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2008 से वर्ष 2012 के बीच श्रीलंका द्वारा लिये गए कुल विदेशी उधार में से 60% चीन से आया था। ध्यातव्य है कि वर्ष 2017 में चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिये की लीज़ पर ले लिया था
  • हिंद महासागर में श्रीलंका की अवस्थिति रणनीतिक रूप से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और श्रीलंका इस तथ्य से भलीभांति परिचित भी है। इसके साथ ही वह चीन तथा भारत दोनों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहता है। 
  • पिछले कुछ वर्षों में चीन ने हिंद महासागर और आस-पास के क्षेत्रों में बंदरगाहों [ग्वादर (पाकिस्तान), चटगाँव (बांग्लादेश, क्युक फलू (म्यांमार) और हम्बनटोटा (श्रीलंका)] के माध्यम से अपनी स्थिति को मज़बूत करने का प्रयास किया है, जो भारत के लिए एक चिंता का विषय है।

श्रीलंका का 13 वाँ संविधान संशोधन: 

  • श्रीलंका के संविधान का 13वाँ संशोधन वर्ष 1987-1990 के दौरान श्रीलंका में भारत के हस्तक्षेप का परिणाम है।  
  • गौरतलब है कि श्रीलंका में लागू वर्ष 1978 के तहत सभी शक्तियाँ केंद्र सरकार में निहित थी।
  • 29 जुलाई, 1987 को हुए भारत-श्रीलंका समझौते (India-Sri Lanka Accord) के तहत प्रस्तावित किये गए इस संशोधन का उद्देश्य श्रीलंका के तत्कालीन पूर्वोत्तर प्रांत (जिसमें तमिल बाहुल्य क्षेत्र शामिल थे) में राजनीतिक शक्तियों के हस्तांतरण हेतु एक नया मार्ग तलाशना था।  
  • इस समझौते के तहत श्रीलंकाई संसद में 13 वाँ संविधान संशोधन प्रस्तुत किया गया, इसके तहत श्रीलंका में निर्वाचित प्रांतीय परिषद की प्रणाली लागू करने की अवधारणा प्रस्तुत की गई। 
  • इसके तहत न सिर्फ पूर्वोत्तर प्रांत में  बल्कि श्रीलंका के सभी प्रांतों में प्रांतीय परिषद के गठन की बात कही गई।
  • इसके पश्चात  पूर्वोत्तर प्रांत को छोड़कर (गृह युद्ध और क्षेत्रीय हिंसा के कारण) देश के अन्य सभी हिस्सों में प्रांतीय परिषदों का चुनाव हुआ।
  • वर्ष 2007 में उत्तरी और पूर्वी प्रांत अलग हो गए और वर्ष 2008 में पूर्वी प्रांत में प्रांतीय परिषद के चुनाव हुए परंतु उत्तरी प्रांत में प्रांतीय परिषद के पहले चुनाव वर्ष 2013 में ही आयोजित किये गए।

विवाद:

  • श्रीलंका के अधिकांश सिंहला राष्ट्रवादी जनता द्वारा 13वें संविधान संशोधन को भारत द्वारा अधिरोपित प्रावधान के रूप में देखा जाता है। 
  • वर्ष 2009 में LTTE के विरुद्ध गृहयुद्ध में श्रीलंका सरकार की विजय के बाद की अधिकांश सिंहला समुदाय के लोगों ने  संविधान के 13वें संशोधन को न लागू करने की मांग की, उनके अनुसार, क्योंकि तमिल समुदाय ने अपनी मांगों के लिये हिंसा का रास्ता अपनाया था ऐसे में इसे पूरी तरह लागू करने को अनावश्यक नहीं है।
    • गौरतलब है कि श्रीलंका में सिंहली समुदाय की आबादी 74.9% है जबकि श्रीलंकाई तमिलों की आबादी मात्र 11.2% ही है। 
  • हालाँकि भारत ने हमेशा से इस संशोधन का समर्थन किया है और श्रीलंका में सभी समुदाय के लोगों के लिये सम्मान और समानता के साथ रहने का अधिकार देने की बात कही है। 

आगे की राह:

  • भारत को श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा हेतु संविधान संशोधन जैसी घटनाओं पर नज़र रखनी होगी साथ ही उन्हें मुख्य धारा के जोड़ने में सहयोग के रूप में शुरू की गई विकास योजनाओं को निर्धारित समयसीमा में पूरा करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।   
  • वर्तमान में श्रीलंका बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा का केंद्र बन गया है, साथ ही भारत और श्रीलंका को एक सूत्र से जोड़ने में बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है, ऐसे में भारत सरकार द्वारा बौद्ध धर्म के माध्यम से दोनों देशों के नागरिक संबंधों को मज़बूत करने का प्रयास किया जाना चाहिये।   
  • दोनों देशों के बीच मछुआरों से जुड़े विवाद पर मिलकर स्थायी समाधान का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • श्रीलंका नेतृत्व ने कई मौकों पर भारतीय निजी कंपनियों द्वारा श्रीलंका में निवेश की इच्छा जाहिर की है श्रीलंका के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्रों में उपलब्ध संभावनाओं को देखते हुए निवेश के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने का प्रयास किया जाना चाहिये।    
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