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डेली न्यूज़

  • 14 Mar, 2023
  • 48 min read
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बौद्ध धर्म


भारतीय अर्थव्यवस्था

सेमीकंडक्टर पर भारत-अमेरिका संधि

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सेमीकंडक्टर के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना, सेमीकंडक्टर-चिप के प्रमुख निर्माता।

मेन्स के लिये:

सेमीकंडक्टर पर भारत-अमेरिका संधि।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और अमेरिका ने भारत-अमेरिका 5वें वाणिज्यिक संवाद 2023 के दौरान सेमीकंडक्टर/अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला की स्थापना हेतु समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जो भारत को इलेक्ट्रॉनिक सामानों का केंद्र बनने के लंबे समय से पोषित अपने सपने को साकार करने में मदद कर सकता है।

  • समझौता ज्ञापन (MoU) अमेरिका के चिप्स और विज्ञान अधिनियम तथा भारत के सेमीकंडक्टर मिशन के मद्देनज़र सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन एवं विविधीकरण पर दोनों सरकारों के मध्य एक सहयोगी तंत्र स्थापित करना चाहता है। 

समझौते का महत्त्व:

  • व्यापार हेतु स्वर्णिम अवसर: 
    • अमेरिका और चीन चिप निर्माण में अग्रणी देश हैं। इसलिये सेमीकंडक्टर क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने के लिये अमेरिका के साथ समझौते से वाणिज्यिक अवसरों की सुविधा तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास से भारत को काफी मदद मिलने की संभावना है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति शृंखला: 
    • यह वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति शृंखला में भारत को केंद्रीय भूमिका प्रदान करने में मदद कर सकता है।
  • सेमीकंडक्टर्स की कमी: 
    • सेमीकंडक्टर्स की आपूर्ति में कमी कोविड-19 के दौरान शुरू हुई थी तथा वर्ष 2021 तक आपूर्ति में गिरावट और तीव्र हो गई। गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) की एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि वर्ष 2021 में वैश्विक चिप आपूर्ति की कमी के कारण कम-से-कम 169 उद्योग प्रभावित हुए थे।
    • यह संकट अब कम हो गया है लेकिन आपूर्ति शृंखला में कुछ व्यवधान अभी भी मौजूद हैं।
  • चिप निर्माण की दिशा में पुनः संरेखण: 
    • घरेलू दृष्टिकोण से चिप निर्माण हेतु भारत का वर्तमान नीति दृष्टिकोण इसके संभावित पुनर्गठन को प्रेरित कर सकता है, जो वर्तमान में लगभग पूरी तरह से परिपक्व नोड्स के उत्पादन पर केंद्रित है, जिसे सामान्यतः 40 नैनोमीटर (nm) या उससे ऊपर के चिप के रूप में परिभाषित किया जाता है, हालाँकि अधिक उन्नत नोड्स (40 nm से छोटे) क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास करने से पहले मोटर वाहन उद्योग जैसे क्षेत्र जो कहीं अधिक सामरिक हैं, में असाधारण विनिर्माण क्षमताओं एवं परियोजना निष्पादन कौशल की आवश्यकता है। 

भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

  • उच्च निवेश की आवश्यकता: सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग एक बहुत ही जटिल एवं प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी अवधि तथा पेबैक अवधि तथा प्रौद्योगिकी में तीव्र बदलाव शामिल हैं, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण और निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है।
  • सरकार से न्यूनतम वित्तीय सहायता: सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने हेतु सामान्यतः आवश्यक निवेश के पैमाने की तुलना में वर्तमान में वित्तीय सहायता का स्तर कम है।
  • फैब्रिकेशन क्षमताओं की कमी: भारत में अच्छी चिप डिज़ाइन प्रतिभा है, लेकिन यहाँ कभी भी चिप फैब क्षमता का निर्माण नहीं किया गया। इसरो और DRDO के पास अपने-अपने फैब फाउंड्री हैं लेकिन वे मुख्य रूप से आवश्यकताओं तक ही सीमित हैं, साथ ही दुनिया के संदर्भ में नवीनतम रूप में परिष्कृत नहीं हैं।
    • भारत में केवल सरकारी स्वामित्त्व वाली सेमीकंडक्टर निर्माण इकाई है- इसमें मोहाली, पंजाब में स्थित निजी स्वामित्त्व वाले पुराने निर्माण इकाइयों को भी शामिल किया जा सकता है।
  • काफी महँगा निर्माण सेटअप: एक सेमीकंडक्टर निर्माण इकाई (या फैब) की लागत अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर भी स्थापित करने में इसकी लागत अरबों डॉलर की हो सकती है और यह तकनीक के संदर्भ में एक या दो पीढ़ी पीछे की भी हो सकती है।
  • संसाधन अक्षम क्षेत्र: चिप फैब/इकाई स्थापित करने में लाखों लीटर स्वच्छ पानी, एक अत्यंत स्थिर विद्युत आपूर्ति, बहुत अधिक भूमि और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।

सेमीकंडक्टर बाज़ार में भारत की स्थिति:

  • भारत वर्तमान में सभी प्रकार के चिप्स का आयात करता है और वर्ष 2025 तक इस बाज़ार के 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। हालाँकि सेमीकंडक्टर चिप के घरेलू निर्माण के लिये भारत ने हाल में कई पहलें शुरू की हैं:
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2021 में 'सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र' के विकास में सहायता प्रदान करने के लिये 76,000 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है।
      • नतीजतन डिज़ाइन कंपनियों को चिप डिज़ाइन करने के लिये अच्छी मात्रा में प्रोत्साहन दिया जाएगा।
    • भारत ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और सेमीकंडक्टर्स के विनिर्माण के लिये स्कीम फॉर मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स एंड सेमीकंडक्टर्स भी शुरू की है।
    • वर्ष 2021 में भारत ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये लगभग 10 बिलियन डॉलर की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना की घोषणा की। 
    • वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सेमीकंडक्टर डिज़ाइन में शामिल कम-से-कम 20 घरेलू कंपनियों को शिक्षित करने और अगले 5 वर्षों में 1500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करने की सुविधा के लिये डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना भी शुरू की।
  • केवल भारत में वर्ष 2026 तक इसकी खपत 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है। 

शीर्ष पाँच सेमीकंडक्टर निर्माता देश कौन से हैं? 

  • शीर्ष 5 देश जो सबसे अधिक सेमीकंडक्टरों का निर्माण करते हैं, वे हैं- ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन। 
  • ताइवान और दक्षिण कोरिया में चिप्स के वैश्विक ढलाई कारखाने का लगभग 80% हिस्सा शामिल है। विश्व की सबसे उन्नत चिपमेकर TSMC का मुख्यालय ताइवान में है। 
  • भारतीय सेल्युलर और इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन द्वारा उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, वर्तमान में ताइवान में 70% से अधिक ढलाई कारखाने चिप्स का उपयोग करते हैं, जो भारत के मोबाइल उपकरणों में उपयोग में आते हैं।

आगे की राह  

  • संभावना है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स हब बनने की लंबे समय से पोषित अपनी अपेक्षा और सपने को पूर्ण करेगा एवं यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि सेमीकंडक्टर की मांग-आपूर्ति में कोई अंतर नहीं है।  
  • यह भी संभावना है कि खरीदार को कभी भी अपने वाहनों की दूसरी चाबी के लिये इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। 

 स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


भारतीय राजनीति

73वें और 74वें संशोधन की 30वीं वर्षगाँठ

प्रिलिम्स के लिये:

73वाँ और 74वाँ संशोधन, संविधान की 11वीं अनुसूची, शक्तियों का वितरण, दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC)।

मेन्स के लिये:

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की स्थिति, भारत में विकेंद्रीकरण से संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2023 में भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधन की 30वीं वर्षगाँठ है, फिर भी भारत की स्थानीय सरकार/स्वशासन में कई तकनीकी, प्रशासनिक और वित्तीय सुधार किये जाने की आवश्यकता है।

73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन: 

  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम: 
    • पंचायती राज संस्थान का गठन 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा किया गया।
    • इस अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में एक नया भाग-IX जोड़ा गया और इसमें अनुच्छेद 243 से 243-O तक के प्रावधान शामिल हैं।
    • इस अधिनियम द्वारा संविधान में एक नई 11वीं अनुसूची भी शामिल की गई है और इसमें पंचायतों के 29 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।
  • 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम: 
    • पी.वी. नरसिम्हा राव के शासनकाल के दौरान 74वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से शहरी स्थानीय सरकारों का गठन वर्ष 1992 में किया गया था। यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
    • इसमें भाग IX-A जोड़ा गया है और अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त अधिनियम ने संविधान में 12वीं अनुसूची को भी जोड़ा। इसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक मद शामिल हैं।

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की क्या स्थिति है?  

  • सकारात्मक परिप्रेक्ष्य:  
    • स्थानीय समुदायों का सशक्तीकरण: लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ने स्थानीय समुदायों को निर्णयन प्रक्रिया में भाग लेने और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं तथा प्राथमिकताओं के अनुसार विकास परियोजनाओं को लागू करने की अधिक शक्ति दी है।
      • इससे गवर्नेंस और निर्णयन प्रक्रियाओं में नागरिकों की अधिक भागीदारी हुई है। 
    • ज़वाबदेही और पारदर्शिता: विकेंद्रीकरण से शासन में अधिक ज़वाबदेही और पारदर्शिता आई है।  
      • स्थानीय सरकारें  प्रत्यक्ष रूप से नागरिकों के प्रति अधिक ज़वाबदेह होती हैं और निर्णयन की प्रक्रियाएँ अधिक पारदर्शी होती हैं तथा सार्वजनिक जाँच के लिये खुली होती हैं। 
    • विविधता और समावेशिता को बढ़ावा: लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ने निर्णयन प्रक्रियाओं में हाशिये के समुदायों के अधिक प्रतिनिधित्त्व की अनुमति दी है।  
      • इसने अधिक समावेशी नीतियों को जन्म दिया है जो सभी नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना उनकी ज़रूरतों और हितों को संबोधित करती हैं। 
  • भारत में विकेंद्रीकरण से संबंधित चुनौतियाँ:  
    • शक्ति और संसाधनों का असमान वितरण: विकेंद्रीकरण को भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में असमान रूप से लागू किया गया है, जिससे शक्ति और संसाधनों के वितरण में असमानताएँ पैदा हुई हैं।
      • कुछ राज्य और क्षेत्र दूसरों की तुलना में विकेंद्रीकरण को लागू करने में अधिक सफल रहे हैं, जिससे विकास के असमान परिणाम सामने आए हैं। 
    • महापौर को औपचारिक दर्जा: दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने उल्लेख किया कि अधिकांश राज्यों में शहरी स्थानीय सरकार में महापौर को मुख्य रूप से औपचारिक दर्जा प्राप्त है।
      • अधिकांश मामलों में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नगर आयुक्त के पास सभी शक्तियाँ होती हैं और निर्वाचित महापौर अधीनस्थ की भूमिका निभाता है।
    • ढाँचागत खामियाँ: कई ग्राम पंचायतों के पास स्वयं के भवन की कमी है और वे स्कूलों, आँगनबाड़ी और अन्य संस्थाओं के साथ स्थान साझा करते हैं।
      • जबकि कुछ के पास अपना भवन है, उनमें शौचालय, पेयजल और विद्युत जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
      • हालाँकि पंचायतों के पास इंटरनेट कनेक्शन हैं, किंतु वे सदैव कार्य नहीं करते हैं। पंचायत के अधिकारियों को डाटा एंट्री के लिये प्रखंड विकास कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिससे कार्य में देरी होती है.

आगे की राह 

  • स्थानीय सरकारी संस्थानों को मज़बूत बनाना: भारत में स्थानीय शासन के लिये संस्थागत ढाँचे को अधिक स्वायत्तता, संसाधन और शक्तियाँ प्रदान करके मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • यह स्थानीय सरकारों के कामकाज़ को बाधित करने वाले कानूनों, विनियमों और प्रक्रियाओं को संशोधित करके किया जा सकता है
  • क्षमता निर्माण: स्थानीय सरकार के अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने के लिये प्रशिक्षित एवं आवश्यक कौशल तथा ज्ञान से लैस करने की आवश्यकता है।
    • यह प्रशिक्षण कार्यक्रमों, विचारों का आदान-प्रदान और सलाह के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है।
  • सामुदायिक भागीदारी: लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सफलता निर्णय लेने और स्थानीय विकास योजनाओं के कार्यान्वयन में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है।
    • जागरूकता अभियानों, सार्वजनिक बैठकों और परामर्शों के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है:(2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्योजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b) 


प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015) 

  1. विकास में जन-भागीदारी
  2. राजनीतिक जवाबदेही
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4. वित्तीय संग्रहण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत में स्थानीय सरकार के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों की खोज कर सकती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2018)

प्रश्न. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन-परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली, साइबर सुरक्षा, स्मार्ट ग्रिड, डिस्कॉम, CEA 

मेन्स के लिये:

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ऊर्जा मंत्रालय ने भारत में भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली को अपनाने के लिये टास्क फोर्स रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। 

  • पॉवरग्रिड (POWERGRID) की अध्यक्षता में विद्युत मंत्रालय द्वारा सितंबर 2021 में पारेषण क्षेत्र के आधुनिकीकरण के तरीके सुझाने तथा स्मार्ट और भविष्य आधारित तैयारी हेतु टास्क फोर्स का गठन किया गया था।

प्रमुख सुझाव क्या हैं? 

  • टास्क फोर्स ने तकनीकी और डिजिटल समाधानों की सिफारिश की है, जिसके अंतर्गत निम्नलिखित सिफारिशें शामिल है, 
    • मौजूदा पारेषण प्रणाली के आधुनिकीकरण की श्रेणियाँ 
    • निर्माण तथा पर्यवेक्षण एवं संचालन और प्रबंधन में उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग 
    • स्मार्ट और भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली, 
    • कार्यबल की दक्षता में सुधार   
  • टास्क फोर्स ने केंद्रीकृत दूरस्थ निगरानी, SCADA (सुपरवाइज़री कंट्रोल एंड डेटा एक्विज़िशन), फ्लेक्सिबल एसी ट्रांसमिशन डिवाइसेस (FACTs), साइबर सुरक्षा, ड्रोन और रोबोट सहित उप-स्टेशनों का संचालन/ट्रांसमिशन एसेट्स के निर्माण/निरीक्षण आदि की सिफारिश की है।
  • साथ ही वैश्विक पारेषण उपयोगिताओं के प्रदर्शन के आधार पर पारेषण नेटवर्क उपलब्धता और वोल्टेज नियंत्रण के लिये मानदंड की सिफारिश की। 

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली की आवश्यकता क्यों है?

  • बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करना:  
    • भारत की जनसंख्या बढ़ने और अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है।  
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली नए विद्युत उत्पादन स्रोतों से वितरण नेटवर्क तक विद्युत के पारेषण को सक्षम कर इस मांग को पूरा करने में मदद कर सकती है। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण:
    • भारत ने वर्ष 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली विद्युत का कुशल पारेषण और वितरण सुनिश्चित कर ग्रिड में बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने में मदद कर सकती है।
  • बेहतर ग्रिड स्थिरता:
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली स्मार्ट ग्रिड, एनर्जी स्टोरेज प्रणाली और डिमांड रिस्पांस प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों का एकीकरण ग्रिड स्थिरता में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • दक्षता में वृद्धि:
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली, पारेषण घाटे को कम करने में मदद कर सकती है जो वर्तमान में भारत में उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 22% है। पारेषण हानि को कम कर ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण मात्रा बचा सकता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है। 
  • ग्रिड के लचीलेपन को बढ़ाना:
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली आपात स्थितियों के दौरान बैकअप पावर प्रदान करके प्राकृतिक आपदाओं के दौरान विद्युत की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकती है एवं ब्लैकआउट को रोककर ग्रिड के लचीलेपन को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
  • सतत् लक्ष्यों को पूरा करना:
    • लोगों को 24x7 विश्वसनीय और सस्ती विदयुत प्रदान करने तथा स्थिरता लक्ष्यों की प्राप्ति के सरकार के दृष्टिकोण के लिये आधुनिक पारेषण ग्रिड महत्त्वपूर्ण हैं।
    • आधुनिक संचरण प्रणालियाँ नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार करके स्थायी लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद कर सकती हैं।

भारत में पारेषण प्रणाली हेतु चुनौतियाँ:

  • जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा:  
    • कोयला, प्राकृतिक गैस और डीज़ल जैसे जीवाश्म ईंधन पर आधारित थर्मल पावर का योगदान देश में कुल उत्पादन का 80% हिस्सा है।
    • इसके अलावा भारत में अधिकांश संयंत्र पुराने और अक्षम हैं।
  • ईंधन की उच्च लागत:  
    • राज्य द्वारा संचालित कोल इंडिया से कोयले की निकासी में बाधा पर्यावरणीय मंज़ूरी में देरी, भूमि अधिग्रहण की समस्याओं और उन्नत तकनीकों में कम निवेश के कारण है।
    • कई विद्युत कंपनियों को विदेशों में कोयला खदानों की तलाश करनी पड़ती है, साथ ही देश में प्रचुर मात्रा में कोयला भंडार होने के बावजूद अधिक महँगा कोयला आयात करना पड़ता है। 
  • घाटे में डिस्कॉम: 
    • कृषि क्षेत्र में सब्सिडी लागत को शामिल करने हेतु टैरिफ को वर्षों से पर्याप्त नहीं बढ़ाया गया  है। इसके अलावा उच्च सकल तकनीकी और वाणिज्यिक (Aggregate Technical and Commercial- AT&C) घाटे के कारण विद्युत वितरकों को कुछ राज्यों में 40% का नुकसान हुआ है, जबकि देशव्यापी औसत 27% है।

पारेषण सेक्टर की क्षमता:

  • 31 अक्तूबर, 2022 तक 408.71 GW की स्थापित विद्युत क्षमता के साथ भारत दुनिया भर में विद्युत का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
    • 31 अक्तूबर, 2022 तक भारत की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता (हाइड्रो सहित) 165.94 GW थी, जो कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 40.6% है। 
  • भारत सरकार वर्ष 2022 तक सोलर रूफटॉप परियोजनाओं के माध्यम से 40 गीगावाट विद्युत उत्पादन के अपने लक्ष्य का समर्थन करने हेतु 'रेंट ए रूफ' नीति तैयार कर रही है। यह 15,700 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता के साथ वर्ष 2031 तक 21 नए नाभिकीय ऊर्जा रिएक्टर स्थापित करने की भी योजना बना रही है।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA) का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत को 817 गीगावाट विद्युत की आवश्यकता होगी। साथ ही यह भी अनुमान है कि वर्ष 2029-30 तक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की हिस्सेदारी 18% से बढ़कर 44% हो जाएगी, जबकि तापीय ऊर्जा का हिस्सा 78% से घटकर 52% तक कम होने की उम्मीद है। 

आगे की राह 

  • आधुनिक पारेषण प्रणालियों में निवेश कर भारत देश की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करते हुए अपने स्थायी ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
  • वर्तमान दशक (2020-2029) में भारतीय विद्युत क्षेत्र में मांग में वृद्धि, ऊर्जा मिश्रण और बाज़ार संचालन के संबंध में एक बड़ा परिवर्तन देखे जाने की संभावना है।
  • भारत का प्रयास है कि प्रत्येक की पहुँच पर्याप्त विद्युत तक सुनिश्चित की जा सके, साथ ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके तथा पर्यावरण के अधिक अनुकूल, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की ओर बढ़ते हुए स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को गति दी जाए।
  • व्यवहार्य वित्तीय संरचना, अनुकूल नीति और अवसंरचना पर सरकार द्वारा ध्यान केंद्रित किये जाने से भविष्य में निवेश में और अधिक वृद्धि होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. देश में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के संदर्भ में इनकी वर्तमान स्थिति और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों का विवरण दीजिये। प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के महत्त्व की विवेचना संक्षेप में कीजिये। (2016) 

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

LDC पर दोहा राजनीतिक घोषणा

प्रिलिम्स के लिये:

दोहा राजनीतिक घोषणा, अल्प विकसित देश, संयुक्त राष्ट्र, SDG, जलवायु परिवर्तन, कोविड-19।

मेन्स के लिये:

SDG पर दोहा राजनीतिक घोषणा।

चर्चा में क्यों?

विश्व के नेताओं द्वारा 'दोहा राजनीतिक घोषणा (Doha Political Declaration)' को अपनाने के साथ अल्प विकसित देशों (Least Developed Countries- LDC5) पर 5वाँ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन संपन्न हुआ।

  • यह घोषणा कतर में "संभावना से समृद्धि तक" विषय पर आयोजित LDC5 सम्मेलन के दूसरे भाग का महत्त्वपूर्ण परिणाम है।

प्रमुख बिंदु 

  • दोहा कार्ययोजना: 
    • यह दोहा कार्ययोजना (Doha Programme of Action- DPoA) को लागू करने पर केंद्रित है, जो दुनिया के 46 सबसे कमज़ोर देशों के लिये सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) को प्राप्त करने हेतु 10 वर्षीय योजना है। 
      • न्यूयॉर्क, अमेरिका में मार्च 2022 में LDC5 सम्मेलन के पहले भाग के दौरान दशक (2022-2031) के लिये DPoA पर सहमति जताई गई थी। 
    • DPoA (2022-2031) के छह केंद्रीय बिंदु: 
      • गरीबी उन्मूलन
      • बहुआयामी कमज़ोरियों से लड़ने और सतत् विकास लक्ष्य हासिल करने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की क्षमता का लाभ उठाना
      • जलवायु परिवर्तन से निपटना
      • पर्यावरणीय क्षरण
      • कोविड-19 से उबरना और भविष्य के जोखिमों/आपदाओं के प्रति समझ को विकसित करते हुए सतत् विकास करना।
  • घोषणा की आवश्यकता: 
    • 46 अल्प विकसित देश (LDC) कोविड-19 महामारी, जलवायु संकट, बढ़ती असमानताओं, बढ़ते कर्ज़ के बोझ और आर्थिक समस्याओं सहित कई संकटों से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
    • कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में उनका योगदान न्यूनतम है, परंतु वे जलवायु परिवर्तन के परिणामों से अन्य देशों की भाँति ही प्रभावित होते हैं। 
    • ये देश, जिनमें 33 अफ्रीकी देश शामिल हैं, आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के लिये अपर्याप्त नकदी के साथ-साथ उच्च ऋण लागत की चुनौती का सामना करते हैं।
    • सतत् विकास रिपोर्ट 2022 के अनुसार, सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में हुई प्रगति में LDCs का प्रदर्शन सबसे खराब है।

अल्प विकसित देश (LDC) से क्या तात्पर्य है? 

  • LDCs संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहचाने गए देशों का एक समूह है जिनका सामाजिक, आर्थिक विकास संकेतक सबसे निम्न है। इन देशों में गरीबी का उच्च स्तर, मानव पूंजी का निम्न स्तर एवं स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुँच है।  
  • वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की LDC की सूची में 46 देश शामिल हैं।  
    • अफ्रीका (33) 
    •  एशिया (9) 
    •  कैरेबियन (1): हैती 
    • पेसिफिक (3): किरिबाती, सोलोमन द्वीप और तुवालु 
  • LDC की सूची की समीक्षा प्रत्येक तीन वर्ष में विकास नीति समिति (CDP) द्वारा की जाती है, जो स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक समूह है तथा संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) को रिपोर्ट करता है।  
  • सूची की त्रिवार्षिक समीक्षा के बाद, CDP, ECOSOC को अपनी रिपोर्ट में, सूची में सम्मिलित होने वाले या अल्प विकसित देशों की स्थिति में सुधार हेतु देशों की सिफारिश कर सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


आंतरिक सुरक्षा

SoO समझौते से हटी मणिपुर सरकार

प्रिलिम्स के लिये:

संचालन का निलंबन (SoO) समझौता, कुकी नेशनल आर्मी, ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी 

मेन्स के लिये:

पूर्वोत्तर भारत में विद्रोह के मुद्दे।

चर्चा में क्यों?  

10 मार्च, 2023 को मणिपुर सरकार ने वन अतिक्रमणकारियों के बीच आंदोलन को उकसाने में दो उग्रवादी समूहों, कुकी नेशनल आर्मी (KNA) और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (ZRA) की भागीदारी को देखते हुए उनके साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समझौते से हटने का फैसला किया है।

कुकी विद्रोह:  

  • कुकी विद्रोह वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में मणिपुर के नगाओं के साथ जातीय संघर्षों के बाद शुरू हुआ, जिसमें कुकी लोगों ने नगा आक्रमण के खिलाफ खुद को तैयार किया।
  • इस विद्रोह का मुख्य कारण मणिपुर की पहाड़ियों में कुकी लोगों द्वारा उनकी "मातृभूमि" के रूप में दावा की गई भूमि ग्रेटर नगालैंड अथवा नगालिम की काल्पनिक नगा मातृभूमि के साथ लगी है।
  • वर्तमान में मणिपुर में लगभग 30 कुकी विद्रोही समूह सक्रिय हैं, जिनमें से 25 भारत सरकार और राज्य के साथ त्रिपक्षीय SoO के तहत संचालित हैं।  
  • कुकी संगठनों ने शुरू में एक अलग कुकी राज्य की मांग की थी, लेकिन अब वे 'कुकीलैंड प्रादेशिक परिषद' की मांग कर रहे हैं

ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (ZRA) क्या है?  

  • ZRA उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य मणिपुर में सक्रिय एक उग्रवादी समूह है।  
    • समूह का गठन 1996 में क्षेत्र में रहने वाले एक स्वदेशी समुदाय, ज़ोमी लोगों के लिये अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया था। 
  • ZRA को बड़े ज़ोमी नेशनलिस्ट मूवमेंट (ZNM) का एक छोटा समूह माना जाता है, जो 1980 और 1990 के दशक में सक्रिय था।  

सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (SoO) संधि क्या है?  

  • परिचय:  
    • SoO समझौते पर वर्ष 2008 में भारत सरकार और पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर एवं नगालैंड में सक्रिय विभिन्न कुकी उग्रवादी समूहों के मध्य संघर्ष विराम समझौते के रूप में हस्ताक्षर किये गए थे।
    • समझौते के तहत कुकी आतंकवादी समूह हिंसक गतिविधियों को बंद करने और सुरक्षा बलों द्वारा निगरानी रखने के लिये नामित शिविरों में आने पर सहमत हुए।
      • बदले में भारत सरकार कुकी समूहों के खिलाफ अपने आभियान को निलंबित करने के लिये सहमत हुई। 
  • SoO संधि की शर्तें:
    • संयुक्त निगरानी समूह (JMG) समझौते के प्रभावी कार्यान्वयन की देखरेख करता है।  
      • राज्य और केंद्रीय बलों के साथ-साथ भूमिगत गतिविधियों सहित सुरक्षा बल किसी भी प्रकार का अभियान शुरू नहीं कर सकते हैं।
    • UPF और KNO के हस्ताक्षरकर्त्ता भारत के संविधान, देश के कानूनों और मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता का पालन करते हैं। 
      • उन्हें क्रूरता और ज़बरन वसूली करने से प्रतिबंधित किया गया है। 
      • उग्रवादी समूहों को विशिष्ट शिविरों में अलग कर दिया जाता है और उनके हथियारों को डबल-लॉकिंग सिस्टम जैसे सुरक्षित स्थानों में रखा जाता है।
      • इन समूहों को केवल अपने शिविरों की रक्षा करने और अपने नेताओं की सुरक्षा हेतु हथियार दिये जाते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत का उत्तर-पूर्वी प्रदेश बहुत लंबे समय से विद्रोह-ग्रसित है। इस प्रदेश में सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारणों का विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

भारत के हथियारों का आयात: SIPRI

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में हथियारों का आयात, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट, रूस-यूक्रेन युद्ध, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण। 

मेन्स के लिये:

भारत में हथियारों का आयात और निर्यात। 

चर्चा में क्यों?

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के ट्रेंड्स इन इंटरनेशनल आर्म्स ट्रांसफर 2022 रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2018 से 2022 तक विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक बना रहा, इसके बाद सऊदी अरब और यूक्रेन का स्थान रहा।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ: 

  • वैश्विक हथियार हस्तांतरण: 
    • वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय हथियारों के हस्तांतरण में 5.1% की कमी आई है, यूक्रेन में युद्ध की पृष्ठभूमि में वर्ष 2013-17 और वर्ष 2018-22 के बीच यूरोपीय देशों द्वारा प्रमुख हथियारों के आयात में 47% की वृद्धि हुई है।
    • वैश्विक हथियारों के निर्यात में अमेरिकी हिस्सेदारी 33% से बढ़कर 40% हो गई जबकि रूस की हिस्सेदारी 22% से गिरकर 16% हो गई। 
    • वर्ष 2013-17 और वर्ष 2018-22 के बीच पाकिस्तान द्वारा हथियारों के आयात में 14% की वृद्धि हुई और वर्ष 2018-22 में पाकिस्तान के 77% हथियारों की आपूर्ति करने वाले चीन के साथ वैश्विक कुल का 3.7% हिस्सा रहा। 
  • भारत का हथियार आयात, आउटलुक: 
    • भारत वर्ष 2018-22 में हथियारों का विश्व में सबसे बड़ा आयातक था, जो कुल वैश्विक आयात का 11% हिस्सा था।
    • वर्ष 2013-17 और 2018-22 के मध्य अपने हथियारों के आयात में 11% की गिरावट के बावजूद भारत शीर्ष आयातक बना रहा।
  • भारत को हथियार आपूर्तिकर्त्ता:
    • रूस 2013-17 और 2018-22 के मध्य भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता था, किंतु भारत में हथियारों के आयात में इसकी हिस्सेदारी 64% से गिरकर 45% हो गई, जबकि फ्राँस वर्ष 2018-22 के मध्य भारत के लिये दूसरे सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्त्ता (29%) के रूप में उभरा, उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका (11%) पर है।
      • भारत के मुख्य हथियार आपूर्तिकर्त्ता के रूप में रूस की स्थिति अन्य आपूर्तिकर्त्ता देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण दबाव में है जबकि भारतीय हथियारों के उत्पादन में वृद्धि हुई है तथा वर्ष 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से रूस के हथियारों के निर्यात में बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं।
    • भारत ने इन पाँच वर्ष की अवधि के दौरान इज़रायल, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका से भी हथियार आयात किये, जो वैश्विक स्तर पर शीर्ष हथियार निर्यातकों में से हैं।
  • हथियार आयात के चालक कारक: 
    • पाकिस्तान और चीन के साथ भारत का तनाव हथियारों के आयात की उसकी मांग को काफी हद तक प्रभावित करता है।
  • हथियार आयात में कमी के कारण: 
    • हथियारों के आयात में गिरावट हेतु भारत की धीमी और जटिल हथियारों की खरीद प्रक्रिया और इसके हथियारों के आपूर्तिकर्त्ताओं में विविधता लाने के प्रयासों सहित कई कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • भारत से हथियार की आपूर्ति: 
    • रूस और चीन के बाद इस अवधि के दौरान भारत, म्याँमार का तीसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता था जो इसके आयात का 14% हिस्सा था।
      • वर्ष 2018-22 में चीन ने पाकिस्तान को 77% हथियारों की आपूर्ति की।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI): 

  • यह एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो आयुध, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण में अनुसंधान हेतु समर्पित है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।
  • यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और इच्छुक जनता को खुले स्रोतों के आधार पर डेटा, विश्लेषण एवं सिफारिशें प्रदान करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में जंगली जानवरों के स्थानांतरण/आयात की निगरानी हेतु समिति

प्रिलिम्स के लिये:

पैंगोलिन, इंडियन स्टार टर्टल, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972।

मेन्स के लिये:

भारत में वन्यजीवों से संबंधित मुद्दे।  

चर्चा में क्यों?  

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक वर्मा के नेतृत्त्व वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अधिकार क्षेत्र और शक्तियों का विस्तार किया है, जो भारत में जंगली जानवरों के आयात, हस्तांतरण, खरीद, बचाव और पुनर्वास पर आवश्यक जांँच करेगी, जिसमें कैद में रखे गए जानवर भी शामिल हैं।

  • समिति की शक्तियाँ पहले केवल त्रिपुरा और गुजरात तक ही सीमित थीं, किंतु अब इसका विस्तार पूरे भारत में कर दिया गया है।

समिति के अधिकार क्षेत्र में प्रमुख परिवर्तन: 

  • राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन भी समिति का हिस्सा होंगे और यह इस मुद्दे पर वर्तमान और भविष्य की सभी शिकायतों को संभालेगा। 
  • समिति पूरे भारत में बचाव केंद्रों या चिड़ियाघरों द्वारा जंगली जानवरों के कल्याण के बारे में अनुमोदन, विवाद या शिकायत के अनुरोधों पर भी विचार कर सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य के अधिकारियों को जंगली जानवरों की जब्ती या कैद जंगली जानवरों को छोड़े जाने की रिपोर्ट समिति को देने का आदेश दिया है।

भारत में बंदी जंगली जानवरों से संबंधित प्रमुख मुद्दे:  

  • पर्याप्त सुविधाओं का अभाव: भारत में कई चिड़ियाघर और बचाव केंद्र बंदी जानवरों की उचित देखभाल प्रदान करने हेतु आवश्यक सुविधाओं और संसाधनों के आभाव का सामना कर रहें हैं।
    • खाद्य विषाक्तता के अलावा पशु-मानव संघर्ष और हेपेटाइटिस, टिक बुखार (Tick Fever) आदि जैसी बीमारियों हेतु पशु चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण चिड़ियाघर के जानवर भी पीड़ित हैं।
      • कैग ऑडिट रिपोर्ट 2020 के अनुसार बंगलुरु और अन्य राज्य चिड़ियाघरों में पशु स्वास्थ्य देखभाल में स्पष्ट अंतराल देखा जा सकता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण अकेले दिल्ली चिड़ियाघर ने बाघों और शेरों सहित लगभग 450 जानवरों को खो दिया है।
  • अवैध व्यापार: भारत में जंगली जानवरों का बड़ा अवैध व्यापार है, जिसमें कई जानवरों को पकड़ा जाता है और उनके फर, त्वचा, या पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग हेतु बेचा जाता है। 
    • इससे कई प्रजातियों में कमी आई है और माना जाता है कि कई बंदी जानवरों को अवैध रूप से अधिग्रहित किया गया है।
    • उदाहरण: पैंगोलिन और इंडियन स्टार टर्टल का भारत में अवैध रूप से उनके मांँस, त्वचा या पालतू जानवरों के रूप में व्यापार किया जाता है, जिससे उनकी आबादी में गिरावट आई है।
  • अपर्याप्त पुनर्वास: कई बचाए गए जानवरों को वापस जंगल में छोड़े जाने से पहले ठीक से पुनर्वास नहीं किया जाता है। इससे उनके अस्तित्त्व और उनके प्राकृतिक आवास के अनुकूलन में समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।

आगे की राह  

  • बेहतर विनियमन: 1972 का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण विनियमन है। हालाँकि, बदलती परिस्थितियों के साथ बने रहने के लिये इस कानून को मज़बूत और अद्यतन करने की आवश्यकता है।
  • प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा: वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों की रक्षा करना उनके अस्तित्व के लिये महत्त्वपूर्ण है। इसमें वनों की कटाई, अवैध शिकार और उनके प्राकृतिक आवासों के लिये अन्य खतरों को रोकने के प्रयास शामिल हैं।
  • बहुक्षेत्रीय सहयोग: भारत में बंदी वन्य जीवों के कल्याण में सुधार के लिये सरकारी एजेंसियों, गैर- सरकारी संगठनों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग महत्त्वपूर्ण है।  
    • एक साथ काम करके, वे इन वन्य जीवों के सामने आने वाली समस्याओं के प्रभावी समाधानों की पहचान कर सकते हैं और उन्हें कार्यान्वित कर सकते हैं।

 स्रोत : द हिंदू  


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