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भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली

  • 14 Mar 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली, साइबर सुरक्षा, स्मार्ट ग्रिड, डिस्कॉम, CEA 

मेन्स के लिये:

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ऊर्जा मंत्रालय ने भारत में भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली को अपनाने के लिये टास्क फोर्स रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। 

  • पॉवरग्रिड (POWERGRID) की अध्यक्षता में विद्युत मंत्रालय द्वारा सितंबर 2021 में पारेषण क्षेत्र के आधुनिकीकरण के तरीके सुझाने तथा स्मार्ट और भविष्य आधारित तैयारी हेतु टास्क फोर्स का गठन किया गया था।

प्रमुख सुझाव क्या हैं? 

  • टास्क फोर्स ने तकनीकी और डिजिटल समाधानों की सिफारिश की है, जिसके अंतर्गत निम्नलिखित सिफारिशें शामिल है, 
    • मौजूदा पारेषण प्रणाली के आधुनिकीकरण की श्रेणियाँ 
    • निर्माण तथा पर्यवेक्षण एवं संचालन और प्रबंधन में उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग 
    • स्मार्ट और भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली, 
    • कार्यबल की दक्षता में सुधार   
  • टास्क फोर्स ने केंद्रीकृत दूरस्थ निगरानी, SCADA (सुपरवाइज़री कंट्रोल एंड डेटा एक्विज़िशन), फ्लेक्सिबल एसी ट्रांसमिशन डिवाइसेस (FACTs), साइबर सुरक्षा, ड्रोन और रोबोट सहित उप-स्टेशनों का संचालन/ट्रांसमिशन एसेट्स के निर्माण/निरीक्षण आदि की सिफारिश की है।
  • साथ ही वैश्विक पारेषण उपयोगिताओं के प्रदर्शन के आधार पर पारेषण नेटवर्क उपलब्धता और वोल्टेज नियंत्रण के लिये मानदंड की सिफारिश की। 

भविष्य आधारित पारेषण प्रणाली की आवश्यकता क्यों है?

  • बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करना:  
    • भारत की जनसंख्या बढ़ने और अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है।  
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली नए विद्युत उत्पादन स्रोतों से वितरण नेटवर्क तक विद्युत के पारेषण को सक्षम कर इस मांग को पूरा करने में मदद कर सकती है। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण:
    • भारत ने वर्ष 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली विद्युत का कुशल पारेषण और वितरण सुनिश्चित कर ग्रिड में बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने में मदद कर सकती है।
  • बेहतर ग्रिड स्थिरता:
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली स्मार्ट ग्रिड, एनर्जी स्टोरेज प्रणाली और डिमांड रिस्पांस प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों का एकीकरण ग्रिड स्थिरता में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • दक्षता में वृद्धि:
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली, पारेषण घाटे को कम करने में मदद कर सकती है जो वर्तमान में भारत में उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 22% है। पारेषण हानि को कम कर ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण मात्रा बचा सकता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है। 
  • ग्रिड के लचीलेपन को बढ़ाना:
    • भविष्य के लिये तैयार पारेषण प्रणाली आपात स्थितियों के दौरान बैकअप पावर प्रदान करके प्राकृतिक आपदाओं के दौरान विद्युत की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकती है एवं ब्लैकआउट को रोककर ग्रिड के लचीलेपन को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
  • सतत् लक्ष्यों को पूरा करना:
    • लोगों को 24x7 विश्वसनीय और सस्ती विदयुत प्रदान करने तथा स्थिरता लक्ष्यों की प्राप्ति के सरकार के दृष्टिकोण के लिये आधुनिक पारेषण ग्रिड महत्त्वपूर्ण हैं।
    • आधुनिक संचरण प्रणालियाँ नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार करके स्थायी लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद कर सकती हैं।

भारत में पारेषण प्रणाली हेतु चुनौतियाँ:

  • जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा:  
    • कोयला, प्राकृतिक गैस और डीज़ल जैसे जीवाश्म ईंधन पर आधारित थर्मल पावर का योगदान देश में कुल उत्पादन का 80% हिस्सा है।
    • इसके अलावा भारत में अधिकांश संयंत्र पुराने और अक्षम हैं।
  • ईंधन की उच्च लागत:  
    • राज्य द्वारा संचालित कोल इंडिया से कोयले की निकासी में बाधा पर्यावरणीय मंज़ूरी में देरी, भूमि अधिग्रहण की समस्याओं और उन्नत तकनीकों में कम निवेश के कारण है।
    • कई विद्युत कंपनियों को विदेशों में कोयला खदानों की तलाश करनी पड़ती है, साथ ही देश में प्रचुर मात्रा में कोयला भंडार होने के बावजूद अधिक महँगा कोयला आयात करना पड़ता है। 
  • घाटे में डिस्कॉम: 
    • कृषि क्षेत्र में सब्सिडी लागत को शामिल करने हेतु टैरिफ को वर्षों से पर्याप्त नहीं बढ़ाया गया  है। इसके अलावा उच्च सकल तकनीकी और वाणिज्यिक (Aggregate Technical and Commercial- AT&C) घाटे के कारण विद्युत वितरकों को कुछ राज्यों में 40% का नुकसान हुआ है, जबकि देशव्यापी औसत 27% है।

पारेषण सेक्टर की क्षमता:

  • 31 अक्तूबर, 2022 तक 408.71 GW की स्थापित विद्युत क्षमता के साथ भारत दुनिया भर में विद्युत का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
    • 31 अक्तूबर, 2022 तक भारत की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता (हाइड्रो सहित) 165.94 GW थी, जो कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 40.6% है। 
  • भारत सरकार वर्ष 2022 तक सोलर रूफटॉप परियोजनाओं के माध्यम से 40 गीगावाट विद्युत उत्पादन के अपने लक्ष्य का समर्थन करने हेतु 'रेंट ए रूफ' नीति तैयार कर रही है। यह 15,700 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता के साथ वर्ष 2031 तक 21 नए नाभिकीय ऊर्जा रिएक्टर स्थापित करने की भी योजना बना रही है।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA) का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत को 817 गीगावाट विद्युत की आवश्यकता होगी। साथ ही यह भी अनुमान है कि वर्ष 2029-30 तक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की हिस्सेदारी 18% से बढ़कर 44% हो जाएगी, जबकि तापीय ऊर्जा का हिस्सा 78% से घटकर 52% तक कम होने की उम्मीद है। 

आगे की राह 

  • आधुनिक पारेषण प्रणालियों में निवेश कर भारत देश की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करते हुए अपने स्थायी ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
  • वर्तमान दशक (2020-2029) में भारतीय विद्युत क्षेत्र में मांग में वृद्धि, ऊर्जा मिश्रण और बाज़ार संचालन के संबंध में एक बड़ा परिवर्तन देखे जाने की संभावना है।
  • भारत का प्रयास है कि प्रत्येक की पहुँच पर्याप्त विद्युत तक सुनिश्चित की जा सके, साथ ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके तथा पर्यावरण के अधिक अनुकूल, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की ओर बढ़ते हुए स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को गति दी जाए।
  • व्यवहार्य वित्तीय संरचना, अनुकूल नीति और अवसंरचना पर सरकार द्वारा ध्यान केंद्रित किये जाने से भविष्य में निवेश में और अधिक वृद्धि होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. देश में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के संदर्भ में इनकी वर्तमान स्थिति और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों का विवरण दीजिये। प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के महत्त्व की विवेचना संक्षेप में कीजिये। (2016) 

स्रोत: पी.आई.बी.

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