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डेली न्यूज़

  • 08 Feb, 2023
  • 59 min read
प्रारंभिक परीक्षा

केंद्रीय बजट 2023-24

Union-Budget-2023-24-Part-1

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भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रयोगशाला निर्मित हीरे

प्रिलिम्स के लिये:

प्रयोगशाला निर्मित हीरे, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरे, कार्बन के एलोट्रोप, HPHT विधि, CVD विधि। 

मेन्स के लिये:

प्रयोगशाला निर्मित हीरे और इनका महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में प्रयोगशाला निर्मित हीरों (LGD) पर विशेष ध्यान दिया है।

  • न्यूयॉर्क में एक जनरल इलेक्ट्रिक रिसर्च लेबोरेटरी में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों को वर्ष 1954 में दुनिया के पहले प्रयोगशाला निर्मित हीरे के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।

प्रयोगशाला निर्मित हीरे: 

  • परिचय: 
    • LGD प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरे के विपरीत प्रयोगशालाओं में निर्मित होते हैं। हालाँकि दोनों की रासायनिक संरचना और अन्य भौतिक एवं ऑप्टिकल गुण समान होते हैं। 
    • प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरे के निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं; वे तब बनते हैं जब पृथ्वी के भीतर दफन कार्बन अत्यधिक गर्मी और दबाव के संपर्क में आता है।
  • उत्पादन: 
    • वे ज़्यादातर दो प्रक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होते हैं, उच्च दबाव, उच्च तापमान (HPHT) विधि या रासायनिक वाष्प जमाव (CVD) विधि। 
    • HPHT और CVD दोनों तरीकों से कृत्रिम रूप से निर्मित हीरे में एक बीज, दूसरे हीरे के टुकड़े का उपयोग होता है।
      • HPHT प्रक्रिया में शुद्ध ग्रेफाइट कार्बन के साथ बीज को लगभग 1,500 डिग्री सेल्सियस के उच्च दबाव और तापमान के संपर्क में लाया जाता है।
      • कार्बन से भरपूर गैस से भरे सीलबंद कक्ष के अंदर CVD तकनीक का उपयोग करके बीज को लगभग 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। गैस के बीज से जुड़ने के साथ-साथ हीरा धीरे-धीरे बनता जाता है।
  • अनुप्रयोग: 
    • औद्योगिक उपयोगिता के कारण इन्हें मशीनरी और उपकरणों में उपयोग किया जाता है तथा उनकी मज़बूती एवं कठोरता उन्हें कटर के रूप में उपयोगी बनाती है।
    • उच्च शक्ति वाले लेज़र डायोड, लेज़र सरणियाँ और उच्च क्षमता वाले ट्रांज़िस्टर के लिये हीट स्प्रेडर के रूप में शुद्ध सिंथेटिक हीरे का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स में किया जाता है।
  • महत्त्व: 
    • प्रयोगशाला निर्मित हीरे का पर्यावरणीय फुटप्रिंट (Environmental Footprint) प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरे की तुलना में बहुत कम होता है।
    • पर्यावरण के प्रति सचेत LGD निर्माता, डायमंड फाउंड्री की एक रिपोर्ट के अनुसार, विकसित किये जाने वाले हीरे की तुलना में प्राकृतिक हीरा प्राप्त करने में दस गुना अधिक ऊर्जा लगती है।
    • ओपन-पिट खनन, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरों के खनन के सबसे आम तरीकों में से एक है, जिसमें इन कीमती पत्थरों को निकालने हेतु मृदा और चट्टान में खनन शामिल है।

भारत के हीरा उद्योग का परिदृश्य:

  • भारत हीरों के लिये दुनिया का सबसे बड़ा कटिंग और पॉलिशिंग केंद्र है, जो वैश्विक स्तर पर पॉलिश किये गए हीरों के निर्माण का 90% से अधिक हिस्सा है। इसके लिये उच्च कुशल श्रम की आसान उपलब्धता, अत्याधुनिक तकनीक एवं कम लागत जैसे कारक आवश्यक है।  
    • गुजरात राज्य का सूरत, हीरा निर्माण का वैश्विक केंद्र है।
    • इन कटे और पॉलिश किये गए हीरों हेतु अमेरिका सबसे बड़ा बाज़ार है, जिसमें चीन दूसरे नंबर पर है।
  • दुनिया के कुल हीरे के निर्यात में भारत 19% का योगदान करता है।
  • संयुक्त अरब अमीरात भारतीय सोने के आभूषणों का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है, जो दक्षिण एशियाई देश के आभूषण निर्यात के 75% से अधिक है।
  • नवंबर 2022 में भारत का रत्न और आभूषण का कुल निर्यात 2.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि एक वर्ष पहले की इसी अवधि की तुलना में 2.05% अधिक है। 

प्रयोगशाला निर्मित हीरे को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहल:

  • वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में प्रयोगशाला निर्मित हीरे के उत्पादन को लोकप्रिय बनाने के लिये इसके निर्माण में उपयोग किये जाने वाले बीजों पर मूल सीमा शुल्क को कम करने का वादा किया गया है - अपरिष्कृत LGDs के लिये बीजों पर शुल्क 5% से घटाकर शून्य किया जाएगा।  
  • LGDs के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) में से एक को पाँच वर्ष का अनुसंधान अनुदान भी प्रदान किया जाएगा। 
  • MoF ने कृत्रिम हीरा सहित कई उत्पादों की बेहतर पहचान में मदद के लिये नई टैरिफ लाइनों के निर्माण का भी प्रस्ताव दिया है। इस कदम का उद्देश्य व्यापार को सुविधाजनक बनाने के साथ-साथ रियायती आयात शुल्क का लाभ उठाने में स्पष्टता लाना है। 

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय हेतु बजटीय आवंटन में कमी

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम, अल्पसंख्यकों के लिये शिक्षा योजना, USTTAD

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यकों से संबंधित कल्याणकारी योजनाएँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?  

वर्ष 2022-23 की तुलना में वर्ष 2023-24 में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिये बजटीय आवंटन में 38% की कमी आई है।

बजटीय आवंटन में कमी वाले क्षेत्र: 

  • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति, अल्पसंख्यकों के लिये मुफ्त कोचिंग, कौशल विकास और आजीविका कार्यक्रमों (USTTAD योजना, नई मंजिल एवं अल्पसंख्यक महिलाओं की नेतृत्त्व विकास योजना सहित) के लिये आवंटन में बड़ी गिरावट की गई।
  • इसके अतिरिक्त अल्पसंख्यकों के विकास के लिये अंब्रेला कार्यक्रम हेतु आवंटन, जिसमें प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम और मदरसों तथा अल्पसंख्यकों के लिये शिक्षा योजना शामिल है, को 1810 करोड़ रुपए से कम कर  610 करोड़ रुपए कर दिया गया है, जो कि आवंटन में 66.2% की गिरावट को दर्शाता है।

भारत में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये प्रमुख योजनाएँ:  

  • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, योग्यता-सह-साधन आधारित छात्रवृत्ति योजना: छात्रों के शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) मोड।
  • नया सवेरा- निःशुल्क कोचिंग और संबद्ध योजना: इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के छात्रों/उम्मीदवारों को तकनीकी/व्यावसायिक पाठ्यक्रमों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी हेतु निःशुल्क कोचिंग सुविधा प्रदान करना है।
  • पढ़ो परदेश: यह अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के छात्रों को विदेशों में उच्च शिक्षा अध्ययन हेतु शैक्षिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी की योजना है।
  • नई रोशनीः अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं का नेतृत्त्व विकास।
  • सीखो और कमाओ: यह 14-35 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं हेतु एक कौशल विकास योजना है तथा  इसका उद्देश्य मौजूदा श्रमिकों, स्कूल छोड़ने वालों आदि की रोज़गार क्षमता में सुधार लाना है।
  • प्रधानमंत्री जन विकास कार्यकम (PMJVK): यह चिह्नित अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों के विकास की कमियों को दूर करने के लिये तैयार की गई योजना है।
    • PMJVK के तहत कार्यान्वयन के क्षेत्रों की पहचान अल्पसंख्यक आबादी और 2011 की जनगणना के सामाजिक-आर्थिक एवं बुनियादी सुविधाओं के आँकड़ों के आधार पर की गई है जिसे अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों के रूप में जाना जाएगा। 
  • उस्ताद (विकास हेतु पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण का उन्नयन): इसे मई 2015 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य स्वदेशी कारीगरों/शिल्पकारों के पारंपरिक कौशल की समृद्ध विरासत को संरक्षित करना है।  
    • इस योजना के तहत अल्पसंख्यक कारीगरों तथा उद्यमियों को एक राष्ट्रव्यापी विपणन मंच प्रदान करने और रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये पूरे देश में हुनर हाट आयोजित किये जाते हैं।
  • प्रधानमंत्री विरासत का संवर्द्धन (PM VIKAS): बजट 2023 में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में नए PM VIKAS को जोड़ा गया है।
    • यह देश भर में अल्पसंख्यक और कारीगर समुदायों के कौशल, उद्यमिता एवं नेतृत्त्व प्रशिक्षण आवश्यकताओं पर केंद्रित है।
    • इस योजना को कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के 'कौशल भारत मिशन' तथा कौशल भारत पोर्टल (SIP) के साथ एकीकरण के माध्यम से लागू किया जाना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में यदि किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है, तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)

  1. यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है।
  2. भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है।
  3. इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल  2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में दूरसंचार, बीमा, बिजली आदि जैसे क्षेत्रों में स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करता है? (2019)

  1. संसद द्वारा गठित तदर्थ समितियाँ
  2. संसदीय विभाग संबंधी स्थायी समितियाँ
  3. वित्त आयोग
  4. वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग
  5. नीति आयोग

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) केवल 2 और 5

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित संसदीय समितियों में से कौन-सी जाँच करती है और सदन को रिपोर्ट करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियम, नियम, उप-नियम, उप-कानून आदि बनाने की शक्तियों का कार्यपालिका द्वारा ऐसे प्रतिनिधिमंडल के दायरे में उचित प्रयोग किया जा रहा है? (2018) 

(a) सरकारी आश्वासन समिति 
(b) अधीनस्थ विधान संबंधी समिति 
(c) नियम समिति 
(d) कार्य मंत्रणा समिति 

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

परिसीमन पर दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंता

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन, परिसीमन आयोग, लोकसभा।

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, लोकसभा में सीटों की कमी के कारण दक्षिणी राज्यों की समस्याएँ और सिफारिशें, वैधानिक निकाय, परिसीमन प्रक्रिया।

चर्चा में क्यों?

जैसा कि भारत अगली जनगणना की तैयारी कर रहा है, यह पर्यवेक्षण का विषय है कि जनसंख्या के आधार पर राज्यों की लोकसभा सीटों का परिसीमन और केंद्रीय धन का एक छोटा हिस्सा आवंटित करना उन दक्षिणी राज्यों के लिये अनुचित हो सकता है, जिन्होंने उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया है।

  • तर्क यह है कि दक्षिणी राज्यों को उनकी सफलता पर हतोत्साहित किये जाने के बजाय जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के उनके प्रयासों के लिये पहचाना और पुरस्कृत किया जाना चाहिये। हालाँकि राष्ट्रीय परिसीमन प्रक्रिया ने लोकसभा में राज्यों के असमान प्रतिनिधित्त्व के बारे में चिंता को उजागर किया है।

परिसीमन:  

  • परिचय:  
    • परिसीमन से तात्पर्य किसी देश में आबादी का प्रतिनिधित्त्व करने हेतु किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है। 
    • परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 में अधिनियमित किया गया था।
      • केंद्र सरकार अधिनियम लागू होने के बाद परिसीमन आयोग का गठन करती है।
    • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 एवं 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • पहला परिसीमन वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति द्वारा (चुनाव आयोग की मदद से) किया गया था।
  • पृष्ठिभूमि: 
    • लोकसभा की राज्यवार संरचना को बदलने वाला अंतिम परिसीमन प्रयास वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1976 में पूरा हुआ।
    • भारत का संविधान यह आदेश देता है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर होना चाहिये ताकि सभी राज्यों में सीटों का जनसंख्या से अनुपात समान हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का मूल्य लगभग समान हो, भले ही वे किसी भी राज्य में रहते हों। 
      • हालाँकि इस प्रावधान से जनसंख्या नियंत्रण में कम दिलचस्पी लेने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। 
    • इन परिणामों से बचने के लिये वर्ष 1976 में इंदिरा गांधी के आपातकालीन शासन के दौरान वर्ष 2001 तक परिसीमन को निलंबित करने हेतु संविधान में संशोधन किया गया था। एक अन्य संशोधन ने इसे वर्ष 2026 तक स्थगित कर दिया। यह आशा की गई थी कि देश इस समय तक एक समान जनसंख्या वृद्धि दर हासिल कर लेगा।
  • आवश्यकता: 
    • जनसंख्या के समान वर्गों को समान प्रतिनिधित्त्व प्रदान करना। 
    • भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन ताकि चुनाव में एक राजनीतिक दल को दूसरों की अपेक्षा लाभ न हो। 
    • "एक वोट एक मूल्य" के सिद्धांत का पालन करना।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है।
    • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission):

दक्षिणी राज्यों हेतु परिसीमन किस प्रकार अनुचित है? 

  • विकास: 
    • 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से दक्षिणी राज्यों की आर्थिक स्थिति में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है। वर्ष 1990 के दशक से पहले उत्तरी राज्य आय और गरीबी के स्तर के मामले में दक्षिणी राज्यों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे।
      • हालाँकि हाल के वर्षों में दक्षिणी राज्यों ने अपने आर्थिक प्रदर्शन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिसके कारण गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है और आय के स्तर में वृद्धि हुई है।
    • इस आर्थिक बदलाव का इस क्षेत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है तथा दक्षिणी राज्यों की वृद्धि एवं विकास में मदद मिली है। 
    • केवल तीन राज्यों- कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पूर्व के 13 राज्यों से अधिक है।  
  • शैक्षिक और स्वास्थ्य परिणाम:
    • पिछली शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) के आँकड़ों से पता चलता है कि दक्षिणी राज्यों ने स्कूलों में नामांकित बच्चों के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है और उनके उत्तरी समकक्षों की तुलना में सीखने के बेहतर परिणाम आए हैं।
    • इसके अलावा दक्षिणी राज्यों में स्नातकों का एक उच्च अनुपात कौशल के एक विशिष्ट सेट के अधिक प्रसार को इंगित करता है।  
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश की केवल 5% आबादी स्नातक थी, जबकि तमिलनाडु में लगभग 8% आबादी स्नातक थी।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान तमिलनाडु में दिसंबर 2021 तक 78.8 मिलियन की आबादी के लिये 314 परीक्षण केंद्र थे और उत्तर प्रदेश में 235 मिलियन की आबादी के लिये केवल 305 कोविड परीक्षण केंद्र थे, जो स्पष्ट रूप से अपर्याप्त थे।
  • शासन संबंधी कारक: 
    • यदि दक्षिणी राज्यों में शिक्षा और स्वास्थ्य के परिणाम बेहतर हैं, तो इसका अर्थ यह भी है कि वहाँ परखने और निर्णय लेने की क्षमता की गुणवत्ता काफी बेहतर होनी चाहिये।
    • दक्षिणी राज्यों में बेहतर सार्वजनिक सेवाओं और उच्च नागरिक सक्रियता से पता चलता है कि वहाँ के मतदाताओं की उत्तर की तुलना में बेहतर शासन के लिये मतदान करने की अधिक संभावना है।
  • उत्तरी राज्यों के लिये लाभ: 
    • जनसंख्या पैटर्न के आधार पर राज्यों में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का मौजूदा वितरण उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे आबादी वाले राज्यों के पक्ष में झुका हुआ है, जबकि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या कम है।
    • यदि परिसीमन होता है, तो अगले परिसीमन प्रक्रिया के दौरान दक्षिणी राज्यों को उत्तरी राज्यों की तुलना में उन्हें आवंटित सीटों की संख्या में कमी का सामना करना पड़ेगा।
      • इसलिये चुनावी प्रतिनिधित्त्व के दौरान यह ध्यान रखा जाना चाहिये कि लोगों की संख्या नहीं अपितु उनकी गुणवत्ता है जो निर्णायक कारक होनी चाहिये।

इस संबंध में मुद्दे:

  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्त्व: वर्ष 2019 के शोध पत्र इंडियाज़ इमर्जिंग क्राइसिस ऑफ रिप्रेज़ेंटेशन के अनुसार, यदि परिसीमन को जनगणना (2026 के बाद सबसे पहले निर्धारित) वर्ष 2031 के अनुसार किया जाता है, तो अकेले बिहार और उत्तर प्रदेश को कुल मिलाकर 21 सीटों का लाभ होगा, जबकि तमिलनाडु तथा केरल को कुल मिलाकर 16 सीटों का नुकसान होगा।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को प्रभावित करना: परिसीमन और सीटों के पुन: आवंटन से न केवल दक्षिणी राज्यों को सीटों का नुकसा न हो सकता है, बल्कि उत्तर में उनके समर्थन वाले राजनीतिक दलों के लिये सीटों में वृद्धि का कारण भी हो सकता है। यह संभावित रूप से उत्तर की ओर और दक्षिण से दूर शक्ति के बदलाव का कारण बन सकता है।
    • यह कवायद प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों के विभाजन को भी प्रभावित करेगी। 
  • अपर्याप्त धन: 15वें वित्त आयोग द्वारा वर्ष 2011 की जनगणना को अपनी सिफारिश के आधार के रूप में प्रयोग करने के बाद दक्षिणी राज्यों द्वारा संसद में धन एवं प्रतिनिधित्त्व कम होने के बारे में चिंताएँ उठाई गईं।
    • इससे पहले वर्ष 1971 की जनगणना का उपयोग राज्यों को वित्तपोषण और कर हस्तांतरण सिफारिशों के आधार के रूप में प्रयोग किया गया था। 
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: आपातकाल के दौरान वर्ष 2001 की जनगणना तक के लिये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1976 में सीटों के संशोधन को निलंबित कर दिया गया था। संविधान (84वें संशोधन) अधिनियम, 2001 के अनुसार, यह प्रतिबंध वर्ष 2001 में संसद द्वारा 2026 के बाद की दशकीय जनगणना तक बढ़ाया गया था, जो 2031 के लिये निर्धारित है।
    • यदि वर्ष 2031 के बाद लोकसभा सीटों के पुनर्वितरण का निर्णय लिया जाता है तो विधायिका और नीति निर्धारकों को पिछले 60 वर्षों के दौरान देश के जनसांख्यिकीय एवं राजनीतिक परिवर्तनों को ध्यान में रखना होगा

Population-Projection

सुझाव:

  • एक ठोस योजना का निर्माण: राजनीतिक अथवा नीतिगत चुनौतियों के कारण बिना किसी और देरी के वर्ष 2031 के बाद संसाधनों को फिर से आवंटित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता। यह वित्त और प्रतिनिधित्त्व के मामले में दक्षिणी राज्यों के लिये निश्चितता और स्थिरता प्रदान करेगा।
  • सीटों की संख्या में वृद्धि: लोकसभा में सीटों की संख्या में वृद्धि किये जाने से लाभ यह है कि संसद सदस्य (सांसद) छोटे निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व कर सकेंगे। अधिक तेज़ी से और प्रभावी ढंग से निर्णय लेने के लिये प्रशासनिक एजेंसियों पर बड़ी आबादी का बोझ नहीं पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप शासन अधिक कुशल होगा।
    • जैसा कि राजनेताओं के लिये विशेष क्षेत्रों या राज्यों में सीटों को छोड़ देने के बजाय सीटों को बढ़ाने के लिये सहमत होना आसान है, सीटों की संख्या में वृद्धि को राजनीतिक रूप से अधिक व्यवहार्य विकल्प माना जाता है।
  • मौजूदा स्थिति को बनाए रखना: संसद में सीटों की कुल संख्या बढ़ाने को लेकर यह सुनिश्चित करने के लिये विचार किया जा सकता है कि कोई भी राज्य वर्तमान में मौजूद सीटों को नहीं खोता है। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के विचाराधीन हो सकता है। 
  • पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व: खबरों के मुताबिक, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के नए लोकसभा डिज़ाइनरों को निचले सदन में कम-से-कम 888 सीटों को ध्यान में रखते हुए निर्माण करने का निर्देश दिया गया था।
    • यह सभी राज्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व की सुविधा प्रदान करेगा और किसी भी राज्य की मौजूदा सीटों की संख्या में कमी को रोकेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

बाल विवाह पर राज्यव्यापी कार्यवाही

प्रिलिम्स के लिये:

लड़कियों के लिये विवाह की कानूनी उम्र बढ़ाना, बाल विवाह, जया जेटली समिति, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006, बाल विवाह से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

न्यूनतम विवाह आयु संबंधी मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

असम सरकार ने पिछले कुछ दिनों में राज्य में हुए बाल विवाह के खिलाफ एक अभियान में 2,000 से अधिक पुरुषों को गिरफ्तार किया है।  

  • पुलिस पिछले सात वर्षों में बाल विवाह में शामिल लोगों को भूतलक्षी रूप से गिरफ्तार करेगी, साथ ही विवाहों को आयोजित करने वाले "मुल्ला, काज़ी और पुजारी" पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह गिरफ्तारी मुस्लिम महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र पर बढ़ती बहस की पृष्ठभूमि में की गई है।

गिरफ्तारी से संबंधित कानून:

  • 14 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों को बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (POCSO) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया जाएगा और 14 से 18 साल के बीच की लड़कियों से शादी करने वालों पर बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। 
  •  बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (POCSO) अधिनियम: 
    • POCSO अधिनियम, 2012 एक नाबालिग और एक वयस्क के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। कानून नाबालिग की सहमति को वैध नहीं मानता है।
    • पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है। इसका तात्पर्य है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।  
      • इसलिये 14 वर्ष से कम आयु की नाबालिग लड़कियों से जुड़े बाल विवाह के मामलों में यौन उत्पीड़न की संभावना का अनुमान लगाया जा रहा है।
    • वे यौन उत्पीड़न, जो कि पेनिट्रेटिव नहीं हैं, में न्यूनतम तीन वर्ष की सज़ा हो सकती है जिसे ज़ुर्माने के साथ पाँच वर्ष तक के लिये बढ़ाया जा सकता है। 
    • धारा 19 के तहत यह अधिनियम "अनिवार्य रिपोर्टिंग दायित्त्व" लागू करता है, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति जिसे किसी बच्चे के खिलाफ किये जा रहे यौन अपराध के संबंध में संदेह या जानकारी हो, उसे पुलिस या विशेष किशोर पुलिस इकाई को अनिवार्य रूप से इसकी रिपोर्ट करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर कारावास, ज़ुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है। 
  • PCMA, 2006: 
    • कानून के अनुसार, बाल विवाह अवैध है लेकिन शून्य नहीं है। बाल विवाह नाबालिग के विवेक पर शून्य हो सकते हैं यदि वह विवाह को अमान्य घोषित करने के लिये न्यायालय में याचिका दायर करता/करती है।
      • अधिनियम लड़कियों के लिये न्यूनतम विवाह योग्य आयु 18 वर्ष, जबकि पुरुषों के लिये 21 वर्ष निर्धारित करता है।
    • अधिनियम में बाल विवाह के लिये कठोर कारावास की सज़ा है जिसकी अवधि दो साल या एक लाख रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
      • यह सज़ा ऐसे सभी व्यक्तियों के लिये है जो बाल विवाह को करता है, संचालित करता है, निर्देशित करता है या उकसाता है। 

मुसलमानों की शादी की उम्र पर बहस:

  • मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत युवा परिपक्वता अवस्था प्राप्त करने वाली दुल्हन के विवाह पर विचार किया जाता है।  
    • तरुण अथवा यौवन (Puberty) की शुरुआत तब मानी जाती है जब कोई व्यक्ति पंद्रह वर्ष का हो जाता है।
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ और विशिष्ट कानूनों के बीच यह अंतर बाल विवाह या नाबालिगों को यौन गतिविधियों में शामिल होने से रोकता है, ऐसे विवाहों की वैधता पर संदेह पैदा करता है।

अन्य धर्मों के व्यक्तिगत कानून: 

  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच संपत्ति विरासत के दिशा-निर्देश देता है।
  • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 पारसियों द्वारा उनकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार पालन किये जाने वाले नियमों को निर्धारित करता है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानूनों को संहिताबद्ध किया था।

केंद्र सरकार का पक्ष:

  • भारत की स्वतंत्रता के समय न्यूनतम विवाह योग्य आयु लड़कियों हेतु 15 वर्ष और पुरुषों के लिये 18 वर्ष थी।  
    • वर्ष 1978 में सरकार ने इसे बढ़ाकर लड़कियों के लिये 18 और पुरुषों हेतु 21 वर्ष कर दिया।  
  • वर्ष 2008 में विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये न्यूनतम विवाह योग्य आयु 18 वर्ष होनी चाहिये।
  • वर्ष 2020 में जया जेटली समिति की स्थापना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी, जिसने प्रजनन स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जैसे कारकों पर भी अपनी सिफारिश में प्रकाश डाला।
  • वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने सभी धर्मों की महिलाओं के लिये विवाह की आयु को 18 से 21 वर्ष तक बढ़ाने के लिये बाल विवाह रोकथाम (संशोधन) विधेयक 2021 पेश करने की मांग की थी। 
    • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री के अनुसार, यह संशोधन देश के सभी समुदायों पर लागू होगा और एक बार अधिनियमित हो जाने के बाद यह मौजूदा विवाह एवं व्यक्तिगत कानूनों का स्थान लेगा। 

नोट: 

  • भारतीय कानूनों और संवैधानिक प्रावधानों के साथ-साथ आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं परंपराएँ देशों को विवाह के लिये न्यूनतम कानूनी उम्र निर्धारित करने का आदेश देती हैं लेकिन बाल विवाह को भारत के बड़े हिस्से में धार्मिक मान्यता प्राप्त है।
  • कुछ सम्मेलन निम्नलिखित हैं: 
    • विवाह के लिये सहमति पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) अभिसमय (1962)
    • विवाह के लिये न्यूनतम आयु और विवाह का पंजीकरण (1962)
    • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (1979)
    • बीजिंग घोषणा (1995)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके क्रियान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये।। (मुख्य परीक्षा, 2016)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामले

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस।

मेन्स के लिये:

भारत में आत्महत्याओं की स्थिति, आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक, आत्महत्याओं को कम करने के लिये संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 से स्पष्ट है कि वर्ष 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों द्वारा आत्महत्याओं में भारी वृद्धि हुई थी और यह पिछले पाँच वर्षों से लगातार बढ़ रही है।

Student-Suicides

छात्रों द्वारा आत्महत्या की वर्तमान स्थिति:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 के अनुसार, वर्ष 2020 में 12,526 मौतों से 4.5% की वृद्धि के साथ भारत में वर्ष 2021 तक प्रतिदिन 35 से अधिक की औसत से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई जिसमें 10,732 आत्महत्याओं में से 864 का कारण "परीक्षा में विफलता" थी।
    • वर्ष 1995 के बाद से देश में वर्ष 2021 में आत्महत्या के कारण सबसे अधिक छात्रों की मृत्यु हुई, जबकि पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या करने वाले छात्रों का आँकड़ा लगभग 2 लाख है।
      • वर्ष 2017 में 9,905 छात्रों की आत्महत्या के कारण मृत्यु हुई थी, उसके बाद से आत्महत्या से होने वाली छात्रों की मृत्यु में 32.15% की वृद्धि हुई है।
    • महाराष्ट्र में वर्ष 2021 में 1,834 मामलों के साथ छात्रों की आत्महत्या की संख्या सबसे अधिक थी, इसके बाद मध्य प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान था।
    • रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि महिला छात्रों की आत्महत्या का प्रतिशत 43.49% के साथ पाँच वर्ष के निचले स्तर पर था, जबकि पुरुष छात्रों की आत्महत्या कुल छात्र आत्महत्याओं का 56.51% थी।
      • वर्ष 2017 में 4,711 छात्राओं ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2021 में ऐसी मौतों की संख्या बढ़कर 5,693 हो गई।
  • शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-21 में IIT, NIT, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की।
    • 122 में से 68 अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के थे।
  • इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के जाने-माने केंद्र कोटा, भारत में होने वाली आत्महत्याएँ एक बढ़ती हुई चिंता है।
    • जनवरी 2023 तक कोटा में वर्ष 2022 से अब तक 22 छात्रों की मौत हो चुकी है और वर्ष 2011 से लगभग 121 की मौत हो चुकी है।

आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक:

  • शैक्षणिक दबाव:
    • माता-पिता, शिक्षकों और समाज की उच्च अपेक्षाओं के अनुरूप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अत्यधिक तनाव और दबाव इसका कारण बन सकता है।
    • असफल होने का यह दबाव कुछ छात्रों पर भारी पड़ सकता है, जिससे असफलता और निराशा की भावना पैदा होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या:  
    • अवसाद, चिंता और बाईपोलर विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का कारण हो सकती हैं।
      • ये स्थितियाँ तनाव, अकेलापन और समर्थन की कमी से और भी बदतर हो सकती हैं।
  • अलगाव और अकेलापन:  
    • शैक्षिक केंद्रों में कई छात्र दूर-दूर से आते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों से दूर रहते हैं।
    • यह अलगाव और अकेलेपन की भावना को जन्म दे सकता है, जो एक अपरिचित और प्रतिस्पर्द्धी माहौल में विशेष रूप से कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • वित्तीय चिंताएँ:  
    • वित्तीय कठिनाइयाँ, जैसे ट्यूशन फीस या रहने का खर्च वहन करने में सक्षम न होना, छात्रों के लिये बहुत अधिक तनाव और चिंता पैदा कर सकता है।
    • इससे निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती है। 
  • साइबर बुलिंग:  
    • साइबर बुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न की घटनाएँ तेज़ी से आम होती जा रही हैं तथा छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के कारणों को बढ़ा सकती हैं।
      • साइबर बुलिंग के कई रूप हो सकते है, जैसे- उत्पीड़न, साइबर स्टॉकिंग या सोशल मीडिया के माध्यम से डराना-धमकाना। 
  • मादक पदार्थों का सेवन: 
    • मादक द्रव्यों और शराब का सेवन छात्र को आत्महत्या के कारणों में वृद्धि कर सकता है। मादक द्रव्यों के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, वित्तीय कठिनाइयाँ और कानूनी समस्याएँ हो उत्पन्न हो सकती हैं, जो छात्रों को भारी पड़ सकती हैं।
  • आपसी संबंध को लेकर समस्या:  
    • रिश्ते से संबंधित समस्याएँ, जैसे कि अलगाव, पारिवारिक संघर्ष और मित्रता के मुद्दे भी छात्र आत्महत्याओं में योगदान दे सकते हैं।
    • इन समस्याओं से निपटना उन छात्रों के लिये विशेष रूप से कठिन हो सकता है जो घर से दूर हैं और कम समर्थ है।
  • समर्थन की कमी:  
    • शिक्षण संस्थानों में कई छात्र कठिनाइयों का सामना करते समय सहायता लेने में संकोच करते हैं। 
      • यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, अपमान या न्याय के डर के कारण हो सकता है। 
    • समर्थन की इस कमी से निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती हैं। 

आत्महत्याओं को रोकने हेतु संभावित पहल: 

  • बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ:
    • छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने से आत्महत्या को रोकने में मदद मिल सकती है।  
      • इसके अतिरिक्त स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिये।
  • मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को आत्मसात करना:  
    • मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • समग्र व्यक्तित्त्व विकास पर ध्यान देना: 
    • व्यक्तित्त्व विकास के लिये एक समग्र दृष्टिकोण के साथ शैक्षिक संस्थान एक सहायक और समावेशी वातावरण बना सकते हैं जो छात्रों को अकादमिक एवं भावनात्मक रूप से आगे बढ़ने में मदद कर सकता है तथा आत्महत्याओं को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • खेलों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना:  
    • खेल आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए तनाव की स्थिति में एक सकारात्मक सोच प्रदान कर आत्महत्याओं को रोकने में मदद कर सकते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को संबोधित करना:  
    • छात्रों के समग्र कल्याण में सुधार और तनाव, चिंता एवं अवसाद को कम करने हेतु गरीबी, बेघर तथा बेरोज़गारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जाना चाहिये।
  • कठोर साइबर बुलिंग नीतियाँ:  
    • कठोर साइबर बुलिंग नीतियों को लागू करने और ऑनलाइन उत्पीड़न पर नकेल कसने से छात्र आत्महत्याओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें सोशल मीडिया साइटों की निगरानी करना, साइबर बुलिंग के बारे में शिक्षा प्रदान करना और साइबर बुलिंग करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शामिल हो सकती है।
  • मादक द्रव्यों के सेवन रोकथाम कार्यक्रम:  
    • मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम के कार्यक्रमों को लागू करने से छात्र आत्महत्याओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें छात्रों को मादक द्रव्यों के सेवन के खतरों के बारे में शिक्षित करना, नशे के आदी लोगों को सहायता प्रदान करना एवं ड्रग्स तथा शराब की उपलब्धता को कम करने हेतु कदम उठाना शामिल हो सकता है।
  • सकारात्मक संबंध बनाना:  
    • छात्रों को सकारात्मक संबंध और संपर्क बनाने के लिये प्रोत्साहित करना, संबंध परामर्श सेवाओं की पेशकश करना तथा छात्रों को मदद हेतु प्रोत्साहित करना आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।
  • परिवार का सहयोग:  
    • छात्रों को उनके परिवारों द्वारा सहयोग प्रदान किये जाने से आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें परिवारों के लिये सहायता और संसाधनों की पेशकश करना एवं छात्रों को अपने परिवारों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।

आत्महत्याओं को कम करने हेतु संबंधित पहलें:

  • वैश्विक पहल: 
    • विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD): यह प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है, WSPD की स्थापना वर्ष 2003 में WHO के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी। यह स्टिग्मा को कम करता है और संगठनों, सरकार एवं जनता के बीच जागरूकता बढ़ाता है, साथ ही यह संदेश देता है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है।
      • WSPD का 2021-2023 के लिये "कार्रवाई के माध्यम से आशा पैदा करना" त्रैवार्षिक विषय है। यह विषय एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है इसका उद्देश्य हम सभी में आशा और आशावाद जगाना है।
    • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: 10 अक्तूबर को प्रत्येक वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का समग्र उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। 
      • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 की थीम “मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को सभी के लिये वैश्विक प्राथमिकता बनाना” है
  • भारतीय पहल:
    • मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम (MHA), 2017:
      • MHA 2017 का उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
    • किरण (KIRAN): 
      • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से परेशान लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "किरण" शुरू की है।
    • मनोदर्पण पहल:
      • मनोदर्पण आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
        • इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
    • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति:
      • वर्ष 2023 में घोषित राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति देश में अपनी तरह की पहली योजना है, जो वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग है।
        • यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व-एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।
    • उद्देश्य:  
      • यह रणनीति का लक्ष्य मोटे तौर पर अगले तीन वर्षों के भीतर आत्महत्या के लिये प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करना है।
      • मनोरोग बाह्य रोगी विभाग स्थापित करना, जो अगले पाँच वर्षों के भीतर सभी ज़िलों में ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से आत्महत्या रोकथाम सेवाएँ प्रदान करेगा।
      • इसका उद्देश्य अगले आठ वर्षों के भीतर सभी शैक्षणिक संस्थानों में एक मानसिक विकास पाठ्यक्रम को शामिल करना है।
      • यह आत्महत्या संबंधी मामलों की ज़िम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने की परिकल्पना करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

गूगल का बार्ड: AI जनरेटिव चैटबॉट

प्रिलिम्स के लिये:

LaMDA, ChatGPT, जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। 

मेन्स के लिये:

गूगल का बार्ड: AI जनरेटिव चैटबॉट, ChatGPT 

चर्चा में क्यों? 

माइक्रोसॉफ्ट के ChatGPT के जवाब में Google जल्द ही अपने नए AI चैटबॉट बार्ड का अनावरण करेगा।

Chatgpt

बार्ड:

  • परिचय: 
    • बार्ड भाषा मॉडल फॉर डायलॉग एप्लीकेशन (LaMDA) पर आधारित है, जो गूगल का अपना संवादात्मक AI चैटबॉट है।  
    • यह अत्यंत सटीकता के साथ संवादात्मक और निबंध-शैली में उत्तर देगा जैसे ChatGPT अभी करता है।  
    • हालाँकि, मॉडल वर्तमान में LaMDA का "हल्का" संस्करण है और इसे "काफी कम कंप्यूटिंग शक्ति की आवश्यकता होती है, जिससे इसे अधिक उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँच स्थापित करने हेतु सक्षम बनाया जा सके। 
  • विशेषता: 
    • यह ट्रांसफॉर्मर तकनीक पर बनाया गया है, जो ChatGPT और अन्य AI बॉट्स की रीढ़ है।
      • ट्रांसफॉर्मर तकनीक को Google द्वारा अग्रणी बनाया गया था और वर्ष 2017 में इसे सभी के लिये ओपन सोर्स के रूप में शुरू कर दिया गया था। 
    • ट्रांसफार्मर प्रौद्योगिकी एक न्यूरल नेटवर्क आर्किटेक्चर(Neural Network Architecture) है, जो इनपुट के आधार पर भविष्यवाणियाँ करने में सक्षम है और मुख्य रूप से प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण तथा कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में इसका उपयोग किया जाता है।
      • आर्किटेक्चर यह निर्धारित करता है कि नेटवर्क कैसे सूचना को संसाधित करता है और किसी विशेष समस्या को हल करने में इसकी सटीकता एवं दक्षता को किस प्रकार प्रभावित करता है। सामान्य आर्किटेक्चर में फीडफॉर्वर्ड नेटवर्क, आवर्तक नेटवर्क और कन्वेन्शनल न्यूरल नेटवर्क सम्मिलित हैं।

ChatGPT और बार्ड में अंतर: 

  • ChatGPT ने सटीकता की अलग-अलग डिग्री के साथ जटिल प्रश्नों का जवाब देने की अपनी क्षमता से प्रभावित किया है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी शायद यह है कि यह इंटरनेट से वास्तविक समय की जानकारी तक नहीं पहुँच सकता है। 
    • लेकिन माइक्रोसॉफ्ट ने हाल ही में Bing के एक नए संस्करण का अनावरण किया जो ChatGPT द्वारा संचालित है, साथ ही ChatGPT के संस्करण में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है। 
  • ChatGPT के भाषा मॉडल को इनपुट के आधार पर पाठ उत्पन्न करने हेतु एक विशाल डेटासेट पर प्रशिक्षित किया गया था, हालाँकि डेटासेट में केवल वर्ष 2021 तक की जानकारी शामिल है।
  • बार्ड एक प्रतिक्रिया को संश्लेषित करेगा जो प्रश्नों के लिये अलग-अलग राय को दर्शाता है जहाँ स्पष्ट उत्तर नहीं हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये प्रश्न- "क्या पियानो या गिटार सीखना आसान है?" इसके जवाब में "कुछ कहते हैं कि पियानो सीखना आसान है, क्योंकि उंगली और हाथ की गति अधिक स्वाभाविक है। दूसरों का कहना है कि गिटार पर कॉर्ड सीखना आसान है।"

AI-आधारित जनरेटिव चैटबॉट्स की चिंताएँ: 

  • विशेषज्ञों ने बताया है कि Google और OpenAI से टेक्स्ट जनरेशन सॉफ्टवेयर आकर्षक और वाकपटु होने के साथ-साथ अशुद्धियों से ग्रस्त हो सकता है।
  • यह अभद्र भाषा और नस्लीय एवं लैंगिक पक्षपात तथा रूढ़िवादिता जैसी सामग्री सहित वास्तविक समय में इंटरनेट पर खोज करने की क्षमता, समस्याओं का कारण बन सकती है, साथ ही इन नए उत्पादों के महत्त्व को कम कर सकती है।  
  • प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण के साथ भी वे ग्राहक के इनपुट को पूरी तरह समझ नहीं सकते हैं और असंगत उत्तर प्रदान कर सकते हैं।
  • कई चैटबॉट भी प्रश्नों के दायरे में सीमित होते हैं जिनका वे जवाब देने में सक्षम होते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न 1. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमता निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना  
  2. सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना  
  3. रोगों का निदान  
  4. टेक्स्ट-से-स्पीच में परिवर्तन  
  5. विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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