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एडिटोरियल

सामाजिक न्याय

विवाह हेतु कानूनी आयु में बढ़ोतरी

  • 08 Jan 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 06/01/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Minding The Gender Gap” लेख पर आधारित है। इसमें विवाह के लिये कानूनी आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष किये जाने के पक्ष और विपक्ष में दिये जा रहे तर्कों की चर्चा की गई है।

संदर्भ

पुरुषों और महिलाओं की विवाह योग्य आयु में एकरूपता लाने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल का प्रस्ताव निश्चित रूप से ‘सतत् विकास लक्ष्य-5’ को साकार करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है, जहाँ राष्ट्र-राज्यों से लैंगिक समानता की प्राप्ति हेतु नीति-निर्माण की अपेक्षा की गई है।   

लेकिन केवल अच्छा इरादा ही अनुकूल परिणामों की गारंटी तो नहीं देता। व्यापक सामाजिक समर्थन के बिना लागू किये गए कानून प्रायः अपने उद्देश्यों की पूर्ति में तब भी विफल सिद्ध होते हैं जब उनके घोषित उद्देश्य और तर्क व्यापक सार्वजनिक भलाई का लक्ष्य रखते हों।

भारत और न्यूनतम विवाह योग्य आयु

  • वर्तमान कानून: हिंदुओं के लिये, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 विवाह हेतु लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।  
  • लिंग अंतराल को कम करने हेतु भारत के प्रयास: भारत ने वर्ष 1993 में ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन’ (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW) की पुष्टि की थी।  
    • इस कन्वेंशन का अनुच्छेद-16 बाल विवाह का कठोरता से निषेध करता है और सरकारों से महिलाओं के लिये न्यूनतम विवाह आयु का निर्धारण करने एवं उन्हें लागू करने की अपेक्षा करता है।
    • वर्ष 1998 से भारत ने विशेष रूप से मानव अधिकारों की सुरक्षा पर राष्ट्रीय कानून का प्रवर्तन किया है, जिसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 जैसे अंतर्राष्ट्रीय साधनों के अनुरूप तैयार किया गया है।   
  • न्यूनतम आयु निर्धारित करने के कारण: कानून द्वारा विशेष रूप से बाल विवाह को गैर-कानूनी घोषित करने और नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार पर रोक लगाने के लिये विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है।  
    • बाल विवाह महिलाओं को अल्पायु गर्भावस्था (Early pregnancy), कुपोषण और हिंसा (मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक) का शिकार बनाता है।  
    • अल्पायु गर्भावस्था बाल मृत्यु दर में वृद्धि के साथ भी संबद्ध है और माता के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।  

विवाह योग्य कानूनी आयु बढ़ाने के पक्ष में तर्क

  • बुनियादी अधिकारों का संरक्षण: अल्पायु विवाह और बाल विवाह के विरुद्ध महिलाओं की सुरक्षा वस्तुतः उनके बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा है और यह महत्त्वपूर्ण कदम देश की आधी आबादी के लिये व्यापक अधिकार-आधारित ढाँचा प्रदान करने हेतु संबंधित विधायी ढाँचे में परिवर्तन को बल देगा।  
  • लिंग समानता लाना: विशेष विवाह अधिनियम की धारा 2(a) महिलाओं के लिये 18 वर्ष जबकि पुरुषों के लिये 21 वर्ष की विवाह योग्य कानूनी आयु घोषित करती है, लेकिन यह भेद रखने का कोई उचित तर्क मौजूद नहीं है।  
    • जब पुरुषों और महिलाओं के लिये मतदान करने की आयु समान हो सकती है, उनके लिये सहमति, स्वेच्छा और वैध रूप से किसी अनुबंध में प्रवेश करने की आयु भी समान है, तो फिर विवाह के लिये समान आयु क्यों नहीं निर्धारित की जा सकती।
  • समान कानूनों से समानता की उत्पत्ति: समान कानूनों से समानता की उत्पत्ति होती है और सामाजिक परिवर्तन कानूनों के पूर्ववर्ती और उनके परिणाम दोनों ही होते हैं। 
    • प्रगतिशील समाजों में कानून में परिवर्तन सामाजिक धारणाओं में परिवर्तन लाने की भी वृहत संभावना रखता है। 
  • महिला सशक्तीकरण को सबल करना: महिलाओं के विकास के कई संकेतक होते हैं जिनमें उच्च शिक्षा में छात्राओं के नामांकन में वृद्धि एक प्रमुख संकेतक है। 
    • इसके अलावा, उज्ज्वलामुद्रा योजना और प्रधानमंत्री जन-धन योजना जैसी योजनाओं ने महिलाओं को सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के सबसे बड़े वर्ग के रूप में प्रकट किया है।  
    • विवाह योग्य आयु में समानता के प्रवेश से महिला सशक्तीकरण को और बढ़ावा मिलेगा।

विवाह योग्य कानूनी आयु बढ़ाने के विपक्ष में तर्क

  • आर्थिक रूप से आश्रित महिलाओं को लाभ की संभावना नहीं: विवाह योग्य कानूनी आयु में वृद्धि का उद्देश्य भावना के स्तर पर तो अच्छा दिखता है, लेकिन सामाजिक जागरूकता में वृद्धि और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार किये बिना यह महिलाओं को अधिक लाभ नहीं दे सकेगा। वस्तुस्थिति यह है कि युवा महिलाएँ अभी तक आर्थिक रूप से स्वतंत्र एवं सबल नहीं हो सकी हैं और पारिवारिक एवं सामाजिक दबाव में रहते हुए अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रता का उपभोग करने में असमर्थ हैं।   
  • कड़े कानूनों के बावजूद बाल विवाह का उच्च प्रचलन: 18 वर्ष से कम आयु के विवाह पर निषेध रखने वाला कानून किसी-न-किसी रूप में 1900 के दशक से ही प्रवर्तित रहा है, फिर भी वर्ष 2005 तक बाल विवाह पर लगभग कोई रोक नहीं लगी थी और 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं में से लगभग आधी महिलाओं का विवाह न्यूनतम कानूनी आयु से पहले हो गया था। 
  • अल्पायु विवाह का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं: भले ही प्रत्येक पाँच में से एक विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले संपन्न हुआ हो, लेकिन देश के आपराधिक रिकॉर्ड में अधिनियम के उल्लंघन का कोई उल्लेख शायद ही प्रकट हुआ हो।  
  • बाल विवाह के उन्मूलन का कोई आश्वासन नहीं: प्रभावित होने वाली विवाह योग्य आयु की महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है, जिनमें से 60% से अधिक का 21 वर्ष से पहले विवाह हो जाता है।  
    • 18 वर्ष की आयु से पहले महिलाओं के विवाह का उन्मूलन कर सकने की असमर्थता इस बात का कोई आश्वासन नहीं देती कि इस आयु को बढ़ाकर 21 किये जाने से अल्पायु विवाह का उन्मूलन हो सकेगा। 
  • माता-पिता द्वारा कानूनों का दुरुपयोग: महिला अधिकार कार्यकर्त्ताओं के अनुसार माता-पिता प्रायः इस अधिनियम का दुरूपयोग अपनी इच्छा से विवाह करने वाली या बलात विवाह, घरेलू हिंसा और शिक्षा सुविधाओं के अभाव से बचने के लिये भाग जाने वाली अपनी बेटियों को दंडित करने के लिये करते हैं।   
    • इस प्रकार, पितृसत्तात्मक व्यवस्था में अधिक संभावना यह है कि आयु सीमा में परिवर्तन से युवा वयस्कों पर माता-पिता की अधिकारिता में और वृद्धि ही होगी।

आगे की राह

  • वस्तुनिष्ठ समानता सुनिश्चित करना: जैविक, सामाजिक या डेटा एवं शोध-आधारित—कोई भी तर्क वैध विवाह में प्रवेश करने हेतु पुरुषों और महिलाओं के बीच आयु में असमानता को उचित नहीं ठहरा सकता है। 
    • भारत ने वर्ष 1954 में विशेष विवाह अधिनियम के साथ निर्णय लिया था कि आयु एक वैध विवाह की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक होनी चाहिये। इस संबंध में समानता का नहीं होना एकमात्र दोष था जिसे अब बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 में संशोधन के माध्यम से दूर किया जा रहा है।
  • वंचित महिलाओं का सशक्तीकरण: वंचित महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये उनके प्रजनन अधिकारों का सम्मान किया जाना और अल्पायु विवाह की शिकार महिलाओं की बुनियादी संरचनात्मक वंचनाओं को दूर करने हेतु अधिकाधिक निवेश सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।     
    • सरकार को समानता के मुद्दों को संबोधित करने में भी अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। उसे ऐसे उपाय करने होंगे जो वंचितों को अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम बनाए, उन्हें कॅॅरियर परामर्श प्रदान करे और कौशल एवं जॉब प्लेसमेंट को प्रोत्साहित करे।     
      • सार्वजनिक परिवहन सहित सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा के विषय को भी संबोधित करने की ज़रूरत है।  
    • माता-पिता में व्यवहार परिवर्तन भी आवश्यक है, क्योंकि वे ही अंततः अधिकांश महिलाओं के लिये विवाह संबंधी निर्णय लेते हैं। 
  • महिलाओं में जागरूकता बढ़ाना: घोषित उद्देश्य को प्राप्त करने का एक अच्छा (किंतु कठिन) तरीका यह होगा कि बालिकाओं को अल्पायु गर्भधारण के खतरों के प्रति जागरूक बनाया जाए और उन्हें अपने स्वास्थ्य में सुधार हेतु तंत्र प्रदान किया जाए।  
    • महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के संबंध में सामाजिक जागरूकता पैदा करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि बालिकाएँ स्कूल या कॉलेज छोड़ने के लिये बाध्य न की जाएँ।  

अभ्यास प्रश्न: ‘‘यद्यपि महिलाओं की विवाह योग्य कानूनी आयु को बढ़ाना लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है, लेकिन मौजूदा नीतिगत ढाँचे और कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान देना अधिक महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये। 

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