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सामाजिक न्याय

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम

  • 07 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

बाल विवाह से संबंधित मुद्दे, बाल विवाह और भारतीय समाज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 की धारा 9 में उल्लिखित बिंदुओं को पुनर्व्याख्यायित किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति मोहन एम शांतानागौदर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 की पुनर्व्याख्या करते हुए कहा है कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत 18 से 21 वर्ष की आयु के पुरुष को वयस्क महिला से विवाह करने के लिये दंडित नहीं किया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 के अनुसार, यदि अठारह वर्ष से अधिक आयु का वयस्क पुरुष बाल-विवाह करेगा तो उसे कठोर कारावास, जिसके अंतर्गत दो साल की जेल या एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह अधिनियम न तो विवाह करने वाले किसी अवयस्क पुरुष को दंड देता है और न ही अवयस्क पुरुष से विवाह करने वाली महिला के लिये दंड का प्रावधान करता है। क्योंकि यह माना जाता है कि विवाह का फैसला सामान्यतः लड़के या लड़की के परिवार वालों द्वारा लिया जाता है और उन फैसलों में उनकी भागीदारी नगण्य होती है|
  • गौरतलब है कि इस प्रावधान का एकमात्र उद्देश्य एक पुरुष को नाबालिग लड़की से विवाह करने के लिये दंडित करना है। न्यायालय ने इस संदर्भ में तर्क दिया कि बाल विवाह करने वाले पुरुष वयस्कों को दंडित करने के पीछे मंशा केवल नाबालिग लड़कियों की रक्षा करना है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम 18 वर्ष से 21 वर्ष के बीच के लड़कों को विवाह न करने लिये भी एक विकल्प प्रदान करता है।
  • गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले के संदर्भ में दिया है जिसमें उच्च न्यायालय ने 17 वर्ष के एक लड़के को 21 वर्ष की लड़की से विवाह करने पर इस कानून के तहत दोषी ठहराया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए कहा कि धारा 9 के पीछे की मंशा बाल विवाह के अनुबंध के लिये किसी बच्चे को दंडित करना नहीं है।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे समाज में बाल विवाह को रोकने हेतु लागू किया गया है।

अधिनियम के मुख्य प्रावधान

  • इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है।
  • साथ ही बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत किये गए अपराध संज्ञेय और गैर ज़मानती होंगे।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है।

स्रोत: द हिंदू

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