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सामाजिक न्याय

भारत में बाल विवाह का खतरा

  • 27 Nov 2021
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 26/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Save Her Childhood” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में बाल विवाह के कारणों, हाल के निष्कर्षों और बाल विवाह के उन्मूलन से संबद्ध मुद्दों की चर्चा की गई है।

संदर्भ

बाल विवाह एक वैश्विक मुद्दा है, जो लैंगिक असमानता, गरीबी, सामाजिक मानदंडों और असुरक्षा से प्रेरित है और दुनिया भर में इसके विनाशकारी परिणाम देखने को मिलते हैं। बाल विवाह के उच्च स्तर समाज में महिलाओं और बालिकाओं के प्रति भेदभाव और अवसरों की कमी को दर्शाते हैं।

भारत में विभिन्न वैधानिक प्रावधानों और सशर्त नकद हस्तांतरण (Conditional Cash Transfer- CCT) कार्यक्रमों जैसी पहलों के बावजूद, अधिक प्रगति नहीं हो सकी है। राष्ट्रव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन ने परिदृश्य को और बदतर कर दिया।

भारत में बाल विवाह

  • व्यापकता: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) के आकलन से पता चलता है कि भारत में हर साल 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जो वैश्विक संख्या का एक तिहाई है और इस प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारत में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या मौजूद है।   
  • बालिका विवाह (Girl Child Marriage) के मूल कारण: बाल विवाह के कारणों को प्रायः सामाजिक एवं आर्थिक संदर्भ में देखा जाना चाहिये, जो महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति और पत्नी एवं माता के रूप में उनकी भूमिका के बारे में प्रचलित विभिन्न मान्यताओं में अंतर्निहित होते हैं।   
    • महिलाओं द्वारा किये जाने वाले घरेलू श्रम और देखभाल कार्य, लड़कियों की सुरक्षा और बचाव के लिये उनकी जल्दी शादी कराने की धारणा, और परिवार के सम्मान को जोखिम की आशंकाएँ या आर्थिक बोझ जैसी अन्य वास्तविकताएँ भी इससे जुड़ी हुई हैं।    
    • एक अन्य कारण में पुत्रों को प्राथमिकता देना शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप पुत्रियों की संख्या इच्छा से अधिक हो जाती है। 
      • यह समस्या अमीर परिवारों में अधिक मौजूद नहीं है जो अधिक बच्चे पैदा करने का खर्च उठा सकते हैं।
      • लेकिन गरीब परिवारों के लिये एक उपाय यह होता है कि इन बेटियों की समय से पहले शादी करा दी जाए, और इस प्रकार बाल वधुओं और बच्चे की आपूर्ति का दुष्चक्र लगातार बना रहता है।
    • कुछ माता-पिता 15-18 की आयु को अनुत्पादक मानते हैं, विशेषकर लड़कियों के लिये, और इसलिये वे इस आयु के दौरान अपने बच्चे के लिये साथी ढूँढना शुरू कर देते हैं। 
      • लड़कों की तुलना में कम उम्र लड़कियों के बाल विवाह की संभावना अधिक होती है।
      • इसके अलावा, शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है।  
  • बाल विवाह के विषय में NFHS के निष्कर्ष: वर्ष 2015-16 में आयोजित ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS4) के चौथे दौर के आँकड़े से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक चार लड़कियों में से एक की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो रही थी। 
    • सर्वेक्षण अवधि के दौरान 15-19 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 8% महिलाएँ माता थीं या गर्भवती थीं।
      • विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार कोविड महामारी के दौरान बाल विवाहों की संख्या में वृद्धि देखी गई। 
    • NFHS-5 (2019-20) के पहले चरण के निष्कर्ष भी बाल विवाह के उन्मूलन की दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं दिखाते हैं। 

बाल विवाह - संबद्ध मुद्दे

  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: बाल विवाह लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और उन्हें नीति निर्धारण के लिये लगभग अदृश्य बना देता है। 
    • इन बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार, आराम और अवकाश का अधिकार, मानसिक या शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार (बलात्कार एवं यौन शोषण सहित) शामिल हैं।  
  • महिलाओं का अशक्तीकरण: चूँकि बालिकाएँ अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाती हैं, इसलिये वे आश्रित और शक्तिहीन बनी रहती हैं, जो लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य करती है।   
  • संबद्ध समस्याएँ: बाल विवाह के साथ ही किशोर गर्भावस्था एवं चाइल्ड स्टंटिंग , जनसंख्या वृद्धि, बच्चों के खराब लर्निंग आउटकम और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी की हानि जैसे परिणाम भी जुड़ जाते हैं।    
    • घर में किशोर पत्नियों का निम्न दर्जा आमतौर पर उन्हें लंबे समय तक घरेलू श्रम, बदतर पोषण और एनीमिया की समस्या, सामाजिक अलगाव, घरेलू हिंसा और घरेलू विषयों में निर्णय लेने की कम शक्तियों की ओर धकेलता है।     
    • कमज़ोर शिक्षा, कुपोषण, और कम आयु में गर्भावस्था बच्चों के जन्म के समय कम वजन का कारण बनती है, जिससे कुपोषण का अंतर-पीढ़ी चक्र बना रहता है।  
  • बाल विवाह के उन्मूलन में CCT की अक्षमता: सशर्त नकद हस्तांतरण (CCT) कार्यक्रम परिवारों को इस शर्त पर धन देते हैं कि वे कुछ पूर्वनिर्धारित आवश्यकताओं का अनुपालन करते हों। 
    • CCT पिछले दो दशकों में बाल विवाह के उन्मूलन के लिये अधिकांश राज्यों द्वारा शुरू किया गया मुख्य नीति साधन रहा है।
    • हालाँकि, केवल इन कार्यक्रमों से सामाजिक मानदंडों को नहीं बदला जा सकता। सबके लिये एक ही तरह की शर्तें हमेशा ही किशोर लड़कियों की व्यावहारिक वास्तविकताओं के प्रति उत्तरदायी नहीं हो सकता है।  

आगे की राह

  • नीतिगत हस्तक्षेप: भारत से बालिका विवाह और समग्र रूप से बाल विवाह के उन्मूलन की दिशा में कानूनों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
    • कर्नाटक ने वर्ष 2017 में बाल विवाह निषेध अधिनियम में संशोधन किया है, जहाँ प्रत्येक बाल विवाह को उसके आरंभ से ही अमान्य घोषित कर दिया गया, इसे एक संज्ञेय अपराध बनाया गया है, और बाल विवाह संपन्न कराने में योगदान करने वाले सभी व्यक्तियों के लिये कठोर कारावास की न्यूनतम अवधि तय की गई है। केंद्रीय स्तर पर भी ऐसा ही किया जा सकता है।    
  • सामाजिक परिवर्तन के लिये सरकारी कार्रवाई: शिक्षकों, आँगनवाड़ी पर्यवेक्षकों, पंचायत एवं राजस्व कर्मचारियों सहित विभिन्न विभागों के ज़मीनी स्तर के नौकरशाह—जिनका ग्रामीण समुदायों के साथ अंतर्संपर्क होता है, को बाल विवाह निषेध अधिकारी (Child Marriage Prohibition Officers) के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिये।  
    • इसके अलावा, जन्म और विवाह पंजीकरण का विकेंद्रीकरण ग्राम पंचायतों में किये जाने से आयु और विवाह के आवश्यक दस्तावेजों के साथ महिलाओं और लड़कियों की रक्षा होगी, और इस प्रकार वे अपने अधिकारों का दावा करने में अधिक सक्षम बन सकेंगी।  
  • सामाजिक परिवर्तन के प्रेरकों की मौलिक भूमिका: इनमें माध्यमिक शिक्षा का विस्तार, सुरक्षित एवं सस्ते सार्वजनिक परिवहन तक पहुँच और युवा महिलाओं को आजीविका कमाने के लिये अपनी शिक्षा का उपयोग करने के लिये सहयोग देना शामिल हैं। 
    • शिक्षा का विस्तार महज़ उस तक पहुँच तक ही सीमित नहीं है। लड़कियों को नियमित रूप से स्कूल जा सकने, स्कूल में बने रहने और उपलब्धियाँ पाने में सक्षम होना चाहिये। 
      • राज्य यह सुनिश्चित करने के लिये विशेष रूप से निम्न-सुविधा-संपन्न क्षेत्रों में आवासीय स्कूलों, बालिका छात्रावासों और सार्वजनिक परिवहन के अपने नेटवर्क का लाभ उठा सकते हैं ताकि सुनिश्चित हो सके कि किशोर लड़कियाँ शिक्षा से बहिर्वेशित न की जाएँ।   
    • उच्च विद्यालय की लड़कियों और लड़कों के साथ नियमित रूप से लैंगिक समानता पर संवाद जारी रखने की आवश्यकता है ताकि एक प्रगतिशील दृष्टिकोण को आकार दिया जा सके जो उनके वयस्क आयु में भी साथ बना रहेगा।  
  • सशक्तीकरण के उपाय: बाल विवाह को समाप्त करने के लिये महिला समाख्या जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक संलग्नता की भी आवश्कयता है।   
    • भारत भर की ग्राम पंचायतों में बच्चों की ग्राम सभाएँ बच्चों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान कर सकती हैं।  
  • बाल विवाह की रोकथाम के लिये आर्थिक विकास आवश्यक: बालिका विवाह पर रोक और उपयुक्त आयु पर लड़कियों के विवाह को सुनिश्चित करने के लिये भारत को न केवल सांस्कृतिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी विकसित होने की आवश्यकता है।  
    • इस दिशा में कुछ प्रगति हुई भी है, जहाँ समृद्धि बढ़ने और चरम गरीबी के स्तर में गिरावट आने के साथ-साथ बाल वधुओं की संख्या में कमी आई है।
    • आर्थिक विकास भारतीय बालिकाओं को बाल विवाह से बचाएगा। लैंगिक वरीयता के विषय में शैक्षिक और सांस्कृतिक जागरूकता (जिसमें निस्संदेह समय लगेगा) के साथ आर्थिक सफलता ही एक स्थायी समाधान लेकर आएगी।

निष्कर्ष

बालिका विवाह के उन्मूलन के संबंध में शिक्षा, कानूनी प्रावधान और जागरूकता पहलों जैसे सामाजिक परिवर्तन के प्रेरकों को अभी भी लंबा रास्ता तय करना होगा। इसके साथ ही यह ऐसा बदलाव है जिसे इसके अंदर से ही घटित होना है।

अभ्यास प्रश्न: बालिका विवाह के उन्मूलन के संबंध में शिक्षा, कानूनी प्रावधान और जागरूकता पहलों जैसे सामाजिक परिवर्तन के प्रेरकों को अभी भी लंबा रास्ता तय करना है। टिप्पणी कीजिये।

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