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पैठणी साड़ी

  • 30 Jul 2025
  • 11 min read

स्रोत: AIR

भारत के प्रधानमंत्री ने पैठणी साड़ियों (महाराष्ट्र राज्य में महावस्त्र के रूप में जानी जाती हैं) के सांस्कृतिक महत्त्व और पारंपरिक शिल्प कौशल पर प्रकाश डाला।

  • पैठणी साड़ी का उद्गम पैठन, छत्रपती संभाजीनगर (महाराष्ट्र) में लगभग 6वीं शताब्दी ई.पू. में हुआ था। 
  • पैठणी साड़ियाँ हथकरघा से बुनी गई रेशमी साड़ियाँ होती हैं, जिनमें समृद्ध ज़री (सोने या चाँदी के धागों) का कार्य किया जाता है। ये अपनी चमकदार पल्लू और आकर्षक डिज़ाइनों (जैसे मोर और कमल) के लिये जानी जाती हैं, जिनकी प्रेरणा अजंता–एलोरा की गुफाओं की कला और पौराणिक कथाओं से मिली है।
  • पैठणी साड़ियों और वस्त्रों को उनकी विशिष्टता और सांस्कृतिक महत्त्व के कारण वर्ष 2010 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया था।
  • इस हस्तकला की 2000 वर्षों की विरासत है, जो सातवाहन काल तक जाती है, जब पैठन रेशम के निर्यात का एक प्रमुख केंद्र था, जिसका व्यापार रोम साम्राज्य तक फैला हुआ था।
    • वाकाटक, राष्ट्रकूट, तुगलक, मुगल और मराठा जैसे राजवंशों ने भी इस शिल्प को संरक्षण और बढ़ावा दिया।
  • महाराष्ट्र की एक अन्य GI टैग प्राप्त साड़ी है – कर्वाठी काटी टसर सिल्क साड़ी, जो केवल विदर्भ क्षेत्र में हस्तनिर्मित रूप से बुनी जाती है। इन साड़ियों की डिज़ाइन में रामटेक मंदिर की वास्तुकला की प्रेरणा दिखती है, विशेषकर विमान (मंदिर के शिखर) जैसे मंदिर-आकार की किनारियाँ (बॉर्डर) प्रमुख विशेषता हैं।

Paithani_Sarees

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