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सामाजिक न्याय

शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामले

  • 08 Feb 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस।

मेन्स के लिये:

भारत में आत्महत्याओं की स्थिति, आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक, आत्महत्याओं को कम करने के लिये संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 से स्पष्ट है कि वर्ष 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों द्वारा आत्महत्याओं में भारी वृद्धि हुई थी और यह पिछले पाँच वर्षों से लगातार बढ़ रही है।

Student-Suicides

छात्रों द्वारा आत्महत्या की वर्तमान स्थिति:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट 2021 के अनुसार, वर्ष 2020 में 12,526 मौतों से 4.5% की वृद्धि के साथ भारत में वर्ष 2021 तक प्रतिदिन 35 से अधिक की औसत से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई जिसमें 10,732 आत्महत्याओं में से 864 का कारण "परीक्षा में विफलता" थी।
    • वर्ष 1995 के बाद से देश में वर्ष 2021 में आत्महत्या के कारण सबसे अधिक छात्रों की मृत्यु हुई, जबकि पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या करने वाले छात्रों का आँकड़ा लगभग 2 लाख है।
      • वर्ष 2017 में 9,905 छात्रों की आत्महत्या के कारण मृत्यु हुई थी, उसके बाद से आत्महत्या से होने वाली छात्रों की मृत्यु में 32.15% की वृद्धि हुई है।
    • महाराष्ट्र में वर्ष 2021 में 1,834 मामलों के साथ छात्रों की आत्महत्या की संख्या सबसे अधिक थी, इसके बाद मध्य प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान था।
    • रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि महिला छात्रों की आत्महत्या का प्रतिशत 43.49% के साथ पाँच वर्ष के निचले स्तर पर था, जबकि पुरुष छात्रों की आत्महत्या कुल छात्र आत्महत्याओं का 56.51% थी।
      • वर्ष 2017 में 4,711 छात्राओं ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2021 में ऐसी मौतों की संख्या बढ़कर 5,693 हो गई।
  • शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-21 में IIT, NIT, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की।
    • 122 में से 68 अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के थे।
  • इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के जाने-माने केंद्र कोटा, भारत में होने वाली आत्महत्याएँ एक बढ़ती हुई चिंता है।
    • जनवरी 2023 तक कोटा में वर्ष 2022 से अब तक 22 छात्रों की मौत हो चुकी है और वर्ष 2011 से लगभग 121 की मौत हो चुकी है।

आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक:

  • शैक्षणिक दबाव:
    • माता-पिता, शिक्षकों और समाज की उच्च अपेक्षाओं के अनुरूप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अत्यधिक तनाव और दबाव इसका कारण बन सकता है।
    • असफल होने का यह दबाव कुछ छात्रों पर भारी पड़ सकता है, जिससे असफलता और निराशा की भावना पैदा होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या:  
    • अवसाद, चिंता और बाईपोलर विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का कारण हो सकती हैं।
      • ये स्थितियाँ तनाव, अकेलापन और समर्थन की कमी से और भी बदतर हो सकती हैं।
  • अलगाव और अकेलापन:  
    • शैक्षिक केंद्रों में कई छात्र दूर-दूर से आते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों से दूर रहते हैं।
    • यह अलगाव और अकेलेपन की भावना को जन्म दे सकता है, जो एक अपरिचित और प्रतिस्पर्द्धी माहौल में विशेष रूप से कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • वित्तीय चिंताएँ:  
    • वित्तीय कठिनाइयाँ, जैसे ट्यूशन फीस या रहने का खर्च वहन करने में सक्षम न होना, छात्रों के लिये बहुत अधिक तनाव और चिंता पैदा कर सकता है।
    • इससे निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती है। 
  • साइबर बुलिंग:  
    • साइबर बुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न की घटनाएँ तेज़ी से आम होती जा रही हैं तथा छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के कारणों को बढ़ा सकती हैं।
      • साइबर बुलिंग के कई रूप हो सकते है, जैसे- उत्पीड़न, साइबर स्टॉकिंग या सोशल मीडिया के माध्यम से डराना-धमकाना। 
  • मादक पदार्थों का सेवन: 
    • मादक द्रव्यों और शराब का सेवन छात्र को आत्महत्या के कारणों में वृद्धि कर सकता है। मादक द्रव्यों के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, वित्तीय कठिनाइयाँ और कानूनी समस्याएँ हो उत्पन्न हो सकती हैं, जो छात्रों को भारी पड़ सकती हैं।
  • आपसी संबंध को लेकर समस्या:  
    • रिश्ते से संबंधित समस्याएँ, जैसे कि अलगाव, पारिवारिक संघर्ष और मित्रता के मुद्दे भी छात्र आत्महत्याओं में योगदान दे सकते हैं।
    • इन समस्याओं से निपटना उन छात्रों के लिये विशेष रूप से कठिन हो सकता है जो घर से दूर हैं और कम समर्थ है।
  • समर्थन की कमी:  
    • शिक्षण संस्थानों में कई छात्र कठिनाइयों का सामना करते समय सहायता लेने में संकोच करते हैं। 
      • यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, अपमान या न्याय के डर के कारण हो सकता है। 
    • समर्थन की इस कमी से निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती हैं। 

आत्महत्याओं को रोकने हेतु संभावित पहल: 

  • बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ:
    • छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने से आत्महत्या को रोकने में मदद मिल सकती है।  
      • इसके अतिरिक्त स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिये।
  • मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को आत्मसात करना:  
    • मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • समग्र व्यक्तित्त्व विकास पर ध्यान देना: 
    • व्यक्तित्त्व विकास के लिये एक समग्र दृष्टिकोण के साथ शैक्षिक संस्थान एक सहायक और समावेशी वातावरण बना सकते हैं जो छात्रों को अकादमिक एवं भावनात्मक रूप से आगे बढ़ने में मदद कर सकता है तथा आत्महत्याओं को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • खेलों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना:  
    • खेल आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए तनाव की स्थिति में एक सकारात्मक सोच प्रदान कर आत्महत्याओं को रोकने में मदद कर सकते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को संबोधित करना:  
    • छात्रों के समग्र कल्याण में सुधार और तनाव, चिंता एवं अवसाद को कम करने हेतु गरीबी, बेघर तथा बेरोज़गारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जाना चाहिये।
  • कठोर साइबर बुलिंग नीतियाँ:  
    • कठोर साइबर बुलिंग नीतियों को लागू करने और ऑनलाइन उत्पीड़न पर नकेल कसने से छात्र आत्महत्याओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें सोशल मीडिया साइटों की निगरानी करना, साइबर बुलिंग के बारे में शिक्षा प्रदान करना और साइबर बुलिंग करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शामिल हो सकती है।
  • मादक द्रव्यों के सेवन रोकथाम कार्यक्रम:  
    • मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम के कार्यक्रमों को लागू करने से छात्र आत्महत्याओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें छात्रों को मादक द्रव्यों के सेवन के खतरों के बारे में शिक्षित करना, नशे के आदी लोगों को सहायता प्रदान करना एवं ड्रग्स तथा शराब की उपलब्धता को कम करने हेतु कदम उठाना शामिल हो सकता है।
  • सकारात्मक संबंध बनाना:  
    • छात्रों को सकारात्मक संबंध और संपर्क बनाने के लिये प्रोत्साहित करना, संबंध परामर्श सेवाओं की पेशकश करना तथा छात्रों को मदद हेतु प्रोत्साहित करना आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।
  • परिवार का सहयोग:  
    • छात्रों को उनके परिवारों द्वारा सहयोग प्रदान किये जाने से आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें परिवारों के लिये सहायता और संसाधनों की पेशकश करना एवं छात्रों को अपने परिवारों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।

आत्महत्याओं को कम करने हेतु संबंधित पहलें:

  • वैश्विक पहल: 
    • विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD): यह प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है, WSPD की स्थापना वर्ष 2003 में WHO के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी। यह स्टिग्मा को कम करता है और संगठनों, सरकार एवं जनता के बीच जागरूकता बढ़ाता है, साथ ही यह संदेश देता है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है।
      • WSPD का 2021-2023 के लिये "कार्रवाई के माध्यम से आशा पैदा करना" त्रैवार्षिक विषय है। यह विषय एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है इसका उद्देश्य हम सभी में आशा और आशावाद जगाना है।
    • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: 10 अक्तूबर को प्रत्येक वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का समग्र उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। 
      • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 की थीम “मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को सभी के लिये वैश्विक प्राथमिकता बनाना” है
  • भारतीय पहल:
    • मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम (MHA), 2017:
      • MHA 2017 का उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
    • किरण (KIRAN): 
      • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से परेशान लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "किरण" शुरू की है।
    • मनोदर्पण पहल:
      • मनोदर्पण आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
        • इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
    • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति:
      • वर्ष 2023 में घोषित राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति देश में अपनी तरह की पहली योजना है, जो वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग है।
        • यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व-एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।
    • उद्देश्य:  
      • यह रणनीति का लक्ष्य मोटे तौर पर अगले तीन वर्षों के भीतर आत्महत्या के लिये प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करना है।
      • मनोरोग बाह्य रोगी विभाग स्थापित करना, जो अगले पाँच वर्षों के भीतर सभी ज़िलों में ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से आत्महत्या रोकथाम सेवाएँ प्रदान करेगा।
      • इसका उद्देश्य अगले आठ वर्षों के भीतर सभी शैक्षणिक संस्थानों में एक मानसिक विकास पाठ्यक्रम को शामिल करना है।
      • यह आत्महत्या संबंधी मामलों की ज़िम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने की परिकल्पना करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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