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डेली न्यूज़

  • 06 May, 2023
  • 62 min read
शासन व्यवस्था

राजनीति का अपराधीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

राजनीति का अपराधीकरण, लोकतांत्रिक सुधार संघ, भ्रष्टाचार, कानून की अवमानना, काला धन, RP अधिनियम 1951

मेन्स के लिये:

राजनीति का अपराधीकरण, इसके कारण और निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकतांत्रिक सुधार संघ (Association for Democratic Reforms- ADR) ने खुलासा किया है कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले कर्नाटक के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे को उजागर करता है।

  • ADR ने चुनाव लड़ने के संबंध में गंभीर अपराधों के दोषी उम्मीदवारों की स्थायी अयोग्यता की सिफारिश की है। हालाँकि ऐसी अयोग्यताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।

राजनीति का अपराधीकरण:

  • परिचय:
    • राजनीति के अपराधीकरण को उस स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जब अपराधी सरकार में बने रहने के लिये राजनीति में भाग लेते हैं, यानी चुनाव लड़ते हैं और संसद एवं राज्य विधानसभाओं हेतु चुने जाते हैं।
    • यह बढ़ता हुआ खतरा समाज हेतु एक बड़ी समस्या बन गया है, जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को प्रभावित कर रहा है, जैसे चुनावों में निष्पक्षता, कानून का पालन एवं जवाबदेह होना।
  • वर्तमान स्थिति:
    • ADR के आँकड़ों के अनुसार, भारत में संसद हेतु चुने गए आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या वर्ष 2004 से बढ़ती जा रही है।
    • वर्ष 2004 में 24% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित थे, जो वर्ष 2019 में बढ़कर 43% हो गए।
    • फरवरी 2023 में दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि वर्ष 2009 से घोषित आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 44% की वृद्धि हुई है।
      • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 159 सांसदों ने अपने उपर गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की थी, जिनमें बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल हैं।

राजनीति के अपराधीकरण का कारण:

  • वोट बैंक:
    • उम्मीदवार और राजनीतिक दल अक्सर वोट खरीदने और अन्य गैर-कानूनी प्रथाओं तथा ऐसे लोगों का सहारा लेते हैं, जिन्हें आमतौर पर "गुंडा" कहा जाता है।
    • राजनेताओं और उनके निर्वाचन क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ संबंध एक ऐसा वातावरण तैयार करता है जो व्यक्तिगत लाभ के लिये सत्ता और संसाधनों के दुरुपयोग को प्रोत्साहित करता है तथा भ्रष्टाचार एवं आपराधिक गतिविधियों को जन्म देता है। राजनीतिक अपराध की इस संस्कृति को अक्सर इन संबंधों के कारण बल मिलता है।
  • भ्रष्टाचार:
    • चुनाव लड़ने वाले अधिकांश उम्मीदवारों को धन, निधि और दान की आवश्यकता होती है। यह ध्यान रखना उचित है कि भ्रष्टाचार सीधे तौर पर कानून की अवमानना को जन्म देता है।
    • कानून की अवमानना और राजनीति के अपराधीकरण के बीच सीधा संबंध है। जब कानून की अवमानना ​​राजनीति के अपराधीकरण के साथ जुड़ जाती है, तो यह भ्रष्टाचार को जन्म देती है।
  • निहित स्वार्थ:
    • लोग आमतौर पर सामुदायिक हितों के एक संकीर्ण पूर्वाग्रही दृष्टिकोण के तहत मतदान करते हैं और राजनेताओं की आपराधिक पृष्ठभूमि की अनदेखी कर देते हैं।
    • इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं को केवल इसलिये चुना जाता है क्योंकि वे अपने कार्यों हेतु जवाबदेह होने के बजाय किसी विशेष समुदाय के हितों के साथ संरेखित होते हैं।
  • बाहुबल:
    • राजनेता चुनावों के दौरान भ्रष्टाचार और बाहुबल को खत्म करने के वादे करते हैं परंतु शायद ही कभी पूरा करते हैं।
    • फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP) प्रणाली सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार का पक्ष लेती है। बाहुबल का उपयोग करने के पीछे विचारधारा यह है कि भय और हिंसा दलों को जीतने में मदद कर सकती है यद्यपि वे विश्वास हासिल नहीं कर सकते हैं।
      • FPTP प्रणाली को साधारण बहुमत प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है। इस मतदान पद्धति में किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
    • यह राजनीतिक दलों और अपराधियों के बीच एक गंभीर गठजोड़ बनाता है।
  • धन बल:
    • काला धन और माफिया द्वारा दिया जाने वाला फंड राजनीति के अपराधीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। धन के इन अवैध स्रोतों का उपयोग वोट खरीदने और चुनाव जीतने के लिये किया जाता है, जिससे राजनीति के अपराधीकरण में वृद्धि होती है।
  • अकुशल शासन:
    • देश का अकुशल शासन भी राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करने हेतु उचित कानूनों और नियमों का अभाव होता है।

राजनीति के अपराधीकरण के निहितार्थ:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के खिलाफ: यह एक उपयुक्त उम्मीदवार का चुनाव करने हेतु मतदाताओं की पसंद को सीमित करता है।
    • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लोकाचार के खिलाफ है जो लोकतंत्र का आधार है।
  • सुशासन को प्रभावित करना: प्रमुख समस्या यह है कि कानून तोड़ने वाले कानून निर्माता बन जाते हैं, यह सुशासन प्रदान करने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता को प्रभावित करता है।
    • लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये अस्वास्थ्यकर प्रवृत्तियाँ भारत की सरकारी संस्थाओं की प्रकृति और उसके चुने हुए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता की खराब छवि को दर्शाती है।
  • लोक सेवकों की सत्यनिष्ठा को प्रभावित करना: काले धन के प्रचलन से राजनेताओं के लिये वोट खरीदना और अपने पदों को सुरक्षित करना आसान हो जाता है, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है जहाँ भ्रष्ट आचरण सामान्यतः राजनीतिक प्रणाली का हिस्सा बन जाते हैं।
    • सामाजिक वैमनस्य का कारण: यह समाज में हिंसा की संस्कृति का परिचय देता है और युवाओं के अनुसरण के लिये एक अनुपयुक्त मिसाल कायम करता है तथा शासन प्रणाली के रूप में लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को कम करता है।

आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता के विधायी पहलू:

  • इस संबंध में भारतीय संविधान यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि संसद, विधानसभा या किसी अन्य विधानमंडल के लिये चुनाव लड़ने से किसी व्यक्ति को किन आधारों पर अयोग्य ठहराया जा सकता है?
  • जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम 1951 में विधायिका का चुनाव लड़ने के लिये किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने के मानदंड का उल्लेख है।
    • अधिनियम की धारा 8 कुछ अपराधों के लिये दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने हेतु अयोग्यता प्रदान करती है, जिसके अनुसार दो वर्ष से अधिक सज़ायाफ्ता व्यक्ति कारावास की अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव में खड़ा नहीं हो सकता है।
    • हालाँकि कानून उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इसलिये आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता इन मामलों में उनकी सज़ा पर निर्भर करती है।

राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ पहल/सिफारिशें:

  • वर्ष 1983 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति का गठन राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ की सीमा की पहचान करने और राजनीति के अपराधीकरण से प्रभावी ढंग से निपटने के तरीकों की सिफारिश करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत 244वीं रिपोर्ट (2014) में विधायिका में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर परिणाम पैदा करने वाले आपराधिक राजनेताओं की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर विचार किया गया है।
    • विधि आयोग ने उन लोगों की अयोग्यता की सिफारिश की जिनके खिलाफ पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा के साथ दंडनीय अपराध के लिये नामांकन की जाँच की तारीख से कम-से-कम एक वर्ष पहले आरोप तय किये गए हैं।
  • वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के मुकदमे को तेज़ी से ट्रैक करने हेतु एक वर्ष के लिये 12 विशेष अदालतें स्थापित करने की योजना शुरू की।
    • शीर्ष अदालत ने तब से कई निर्देश जारी किये हैं, जिसमें केंद्र से इन मामलों में जाँच में देरी के कारणों की जाँच के लिये एक निगरानी समिति गठित करने को कहा है।

राजनीति के अपराधीकरण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ (2002):
    • वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को शैक्षिक योग्यता के साथ उसे अपने आपराधिक और वित्तीय रिकॉर्ड की घोषणा करनी होगी।
  • रमेश दलाल बनाम भारत संघ (2005):
    • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि दोषी ठहराए जाने पर मौजूदा सांसद या विधायक को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और कानून की अदालत द्वारा दो साल या उससे अधिक के लिये कारावास की सज़ा सुनाई जाएगी।
  • लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि संसद या राज्य विधानसभा का कोई भी सदस्य जो किसी अपराध के लिये दोषी ठहराया जाता है और दो साल या उससे अधिक की जेल की सज़ा काटता है, उसे पद धारण करने से अयोग्य घोषित किया जाएगा।
  • मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि एक व्यक्ति को केवल इसलिये चुनाव लड़ने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उस पर आपराधिक आरोप लगाया गया है।
    • हालाँकि अदालत ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना चाहिये।
  • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया हैंडल और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने का आदेश दिया है।
    • अदालत ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को यह सुनिश्चित करने के लिये एक ढाँचा तैयार करने का भी निर्देश दिया ताकि उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी प्रभावी ढंग से प्रसारित की जा सके।

आगे की राह

  • ECI को अधिक शक्ति: चुनाव सुधारों पर समितियों ने चुनावों के राज्य वित्तपोषण और काले धन पर अंकुश लगाने तथा राजनीति के अपराधीकरण को सीमित करने के लिये निर्वाचन आयोग को मज़बूत करने की सिफारिश की है।
  • मतदाताओं का कर्तव्य: मतदाताओं को चुनाव के दौरान धन के दुरूपयोग को लेकर भी सतर्क रहना चाहिये। न्यायपालिका को गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करके एक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये।
  • शीघ्र न्यायिक प्रक्रियाएँ: न्यायिक प्रक्रिया में तेज़ी लाने से राजनीतिक व्यवस्था में भ्रष्टता को रोकने के अतिरिक्त आपराधिक तत्त्वों को बाहर निकालने में मदद मिल सकती है। एक समयबद्ध न्याय वितरण प्रणाली ECI द्वारा उठाए गए कड़े कदम और प्रासंगिक कानूनों को उचित रूप से मज़बूत करती है।
  • RPA में संशोधन: राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के लिये RPA 1951 में संशोधन की आवश्यकता है ताकि उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जा सके जिनके खिलाफ कोई गंभीर प्रकृति का अपराध लंबित है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

मेन्स:

प्रश्न. प्राय: कहा जाता है कि 'राजनीति' और 'नैतिकता' साथ-साथ नहीं चल सकते। इस संबंध में आपका क्या मत है? अपने उत्तर का, उदाहरणों सहित आधार बताइये। (2013)

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2023

प्रिलिम्स के लिये:

USCIRF, अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2023

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर नीतियों और देशों की राजनीति का प्रभाव, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (US Commission on International Religious Freedom- USCIRF) की 2023 रिपोर्ट की सिफारिशों को पक्षपाती और प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया है।

USCIRF

  • USCIRF एक स्वतंत्र, द्विदलीय अमेरिकी संघीय सरकारी आयोग है, जो विदेशों में धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकार की रक्षा के लिये समर्पित है।
  • यह अमेरिकी प्रशासन के लिये एक सलाहकार निकाय है।
  • USCIRF’s की वर्ष 2022 की वार्षिक रिपोर्ट विदेशों में धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अमेरिकी सरकार के प्रचार को बढ़ाने के लिये सिफारिशें प्रदान करती है।
  • इसका मुख्यालय वाशिंगटन DC में है।
  • अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA), 1998 की निष्क्रियता के बाद अमेरिकी सरकार द्वारा स्थापित USCIRF की सिफारिशें राज्य विभाग पर गैर-बाध्यकारी हैं।
    • परंपरागत रूप से भारत USCIRF के दृष्टिकोण को मान्यता नहीं देता है।

भारत की चिंताएँ:

  • कुछ कानूनों और नीतियों के बारे में चिंता: रिपोर्ट देश में कुछ कानूनों और नीतियों के बारे में चिंता पर प्रकाश डालती है जिनकी धर्म के आधार पर भेदभाव करने की उनकी क्षमता के कारण आलोचना की गई है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले उपाय: यह उन तथाकथित उपायों के विषय में चिंता जताता है जो महत्त्वपूर्ण आवाज़ों, विशेष रूप से जो धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित हैं, को प्रभावित कर सकते हैं।
  • CPC के रूप में भारत: इसने भारत को विशेष चिंता वाले देशों (CPC) के रूप में नामित नहीं करने के लिये अमेरिकी विदेश विभाग की आलोचना की है तथा भारतीय सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है।
    • USCIRF वर्ष 2020 से भारत को विशेष चिंता वाले देश के रूप में नामित करने की सिफारिश कर रहा है, लेकिन इसे अभी तक अमेरिकी सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है।

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • वर्ष 2022 में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के आधार पर USCIRF वर्ष 2023 के लिये अनुशंसा करता है कि राज्य विभाग:
    • CPC के रूप में पुनः नामित: बर्मा, चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, ईरान, निकारागुआ, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान।
      • अतिरिक्त सीपीसी के रूप में नामित: अफगानिस्तान, भारत, नाइजीरिया, सीरिया और वियतनाम।
    • विशेष निगरानी सूची (SWL) पर बनाए रखना: अल्जीरिया और मध्य अफ्रीकी गणराज्य (सीएआर)।
      • SWL में शामिल करना: अज़रबैजान, मिस्र, इंडोनेशिया, इराक, कज़ाखस्तान, मलेशिया, श्रीलंका, तुर्की और उज़्बेकिस्तान।
    • विशेष चिंता (EPCs) की संस्थाओं के रूप में नया स्वरूप: अल-शबाब, बोको हराम, हयात तहरीर अल-शाम (HTS), हौथिस, इस्लामिक स्टेट इन द ग्रेटर सहारा (ISGS), इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस (ISIS-पश्चिम अफ्रीका के रूप में संदर्भित ISWAP भी) और जमात नस्र अल-इस्लाम वाल मुस्लिमिन (JNIM)।

विभिन्न श्रेणियों में देशों के पदनाम के लिये मानदंड:

  • CPCs: जब देशों की सरकार IRFA 1998 के तहत धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अधिकार के "व्यवस्थित, अविरत और गंभीर उल्लंघन" में शामिल होती है या सहन करती है।
  • SWL: यह धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघनों के प्रति सरकारों के अपराध या सहनशीलता पर आधारित है।
  • EPC: व्यवस्थित, गतिमान एवं गंभीर धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन हेतु।

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति:

  • भारत में धार्मिक स्वतंत्रता भारत के संविधान के अनुच्छेद 25-28 द्वारा सुनिश्चित एक मौलिक अधिकार है।
  • अनुच्छेद 25 (अंतःकरण की स्वतंत्रता और आचरण का अधिकार, अभ्यास और धर्म का प्रचार करने का अधिकार)।
  • अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता)।
  • अनुच्छेद 27 (धर्म की अभिवृद्धि के लिये करों के संदाय से स्वतंत्रता)।
  • अनुच्छेद 28 (धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता)।
  • इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास

प्रिलिम्स के लिये:

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI), संसदीय स्थायी समिति, व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण डिजिटल मध्यस्थ, फिनटेक, प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI)

मेन्स के लिये:

बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास

चर्चा में क्यों?

कुछ स्टार्ट-अप्स ने इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) पर छोटी कंपनियों की तुलना में बिग टेक कंपनियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया है, जो बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास के मुद्दे पर प्रकाश डालती है।

  • IAMAI सोसायटी अधिनियम, 1896 के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी औद्योगिक निकाय है। इसका जनादेश ऑनलाइन और मोबाइल मूल्यवर्द्धित सेवा क्षेत्र का विस्तार एवं वृद्धि करना है।

बिग टेक (Big Tech):

  • ‘बिग टेक’ शब्द का उपयोग वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण कुछ चुनिंदा प्रौद्योगिकी कंपनियों, जैसे- गूगल, फेसबुक, अमेज़न, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट के लिये किया जाता है।
  • कंपनियों के एक स्थिर समुच्चय के बजाय बिग टेक को एक अवधारणा के रूप में बेहतर समझा जाता है। नई कंपनियाँ इस श्रेणी में उसी तरह प्रवेश कर सकती हैं जैसे मौजूदा कंपनियाँ इससे बाहर हो सकती हैं।

पृष्ठभूमि

  • वित्त पर संसदीय स्थायी समिति ने बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-रोधी अभ्यास को रोकने के लिये नए नियमों को प्रस्तावित किया।
    • इनमें पूर्व नियम शामिल थे जिसमें कंपनियों को कुछ अभ्यासों में संलग्न होने और बिग टेक कंपनियों को व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण डिजिटल मध्यस्थों (SIDI) के रूप में नामित करने से पहले अभ्यास के कुछ मानकों का पालन करने की आवश्यकता होती है।
    • SIDI अपने राजस्व, बाज़ार पूंजीकरण और सक्रिय उपयोगकर्त्ताओं की संख्या के आधार पर डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्द्धा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता वाली अग्रणी संस्था होगी।
  • हालाँकि IAMAI ने तर्क दिया कि ये नियम नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को रोक सकते हैं।
    • इसके सदस्यों में मेटा, एप्पल, अमेज़ॅन, ट्विटर और गूगल जैसी अन्य बिग टेक कंपनियों ने भी इसी तरह की टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीं।
  • इस कदम ने कुछ भारतीय स्टार्ट-अप्स की आलोचना की है, जिन्होंने IAMAI पर विदेशी बड़ी टेक कंपनियों के पक्ष में विचारों को बढ़ावा देने और डिजिटल इकोसिस्टम में प्रतिस्पर्द्धी आचरण को प्रभावित करने का आरोप लगाया है।

भारत के डिजिटल स्पेस में बिग टेक की भूमिका:

  • राजस्व स्रोत: वे फिनटेक बाज़ार में, जो राजस्व का एक आकर्षक स्रोत है (विशेष रूप से भारत में प्रति उपयोगकर्त्ता विज्ञापन राजस्व कम होने के कारण), एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • साक्षरता से जुड़ी बाधाओं को दूर करना: बिग टेक कंपनियों द्वारा नए उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँच बनाने और साक्षरता से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिये वॉइस-बेस्ड और क्षेत्रीय भाषा इंटरफेस की पेशकश की जा रही है।
  • अवसंरचनात्मक और रोज़गार अंतराल को दूर करना: नए कारोबार के कार्यक्षेत्र वेयरहाउसिंग, वितरण सुविधाएँ और रोज़गार अवसर प्रदान करने के रूप में मौजूदा अवसंरचनात्मक एवं रोज़गार अंतराल को दूर करते हुए भारत को अपने घरेलू बाज़ारों की बेहतर सेवा करने में मदद कर रहे हैं।
  • सामाजिक और राजनीतिक प्रगति: अधिकांश भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता सूचनाओं तक पहुँच बनाने, संवाद करने और राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में भागीदारी करने के लिये एक या एक से अधिक बिग टेक प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं।

बिग टेक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मक आचरण का प्रभाव:

  • अधिग्रहण और विलय:
    • विलय नियंत्रण नियमों के अधीन हुए बिना अत्यधिक मूल्यवान स्टार्ट-अप खरीदने वाली बड़ी फर्में डिजिटल बाज़ारों में एक समस्या है।
    • इस समिति ने कहा कि CCI (भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग) कुछ विलय और अधिग्रहण पर कब्ज़ा करने में सक्षम नहीं है क्योंकि वह संयोजन के लिये आवश्यक संपत्ति एवं टर्नओवर की सीमा को पूरा नहीं करता है।
  • स्व-अधिमान:
    • स्व-अधिमान तब होता है जब कोई कंपनी अपनी सेवाओं या अपनी सहायक कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर बढ़ावा देती है, जबकि उसी प्लेटफॉर्म पर अन्य सेवा प्रदाताओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा भी करती है।
      • उदाहरण के लिये कोई कंपनी किसी एप स्टोर में अपने स्वयं के एप्लीकेशन को रैंकिंग में प्राथमिकता दे सकती है। तटस्थता की यह कमी अन्य व्यवसायों को नुकसान पहुँचा सकती है और उनके लाभ को कम कर सकती है।
  • प्रयुक्त आँकड़े:
    • डिजिटल कंपनियाँ ग्राहकों के ऐसे आँकड़ों को एकत्र करती हैं जो उन्हें लाभ प्रदान करते हैं, जिससे नई कंपनियों के लिये प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो सकता है।
    • हालाँकि ग्राहकों को ट्रैक करने के लिये इन आँकड़ों का दुरुपयोग भी किया जा सकता है।
  • तृतीय-पक्ष को प्रतिबंधित करना:
    • कुछ कंपनियाँ अपने प्लेटफॉर्म पर थर्ड-पार्टी एप्लीकेशन के उपयोग को प्रतिबंधित करती हैं, जो उपयोगकर्त्ता की पसंद को सीमित कर सकती हैं।
      • उदाहरण के लिये एक ऑपरेटिंग सिस्टम उपयोगकर्त्ताओं को अपने स्वयं के अतिरिक्त किसी एप्लीकेशन की सेवाओं का उपयोग करने से रोक सकता है, जैसे कि Apple किसी भी तृतीय-पक्ष एप्लीकेशन को आई-फोन पर स्थापित करने की अनुमति नहीं देता है।
  • संलग्नता:
    • डिजिटल फर्म कभी-कभी ग्राहकों को उनके मुख्य उत्पाद से संबंधित अतिरिक्त सेवाओं को क्रय करने के लिये मजबूर करती हैं, जो प्रतिस्पर्द्धा को न्यूनतम रखने के साथ साथ मूल्य निर्धारण विषमता उत्पन्न करती है।
  • एंटी-स्टीयरिंग:
    • व्यापार उपयोगकर्त्ताओं को अन्य विकल्पों का उपयोग करने से रोकने के लिये संस्थाओं द्वारा एंटी-स्टीयरिंग प्रावधानों का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा में कमी आती है।
      • उदाहरण के लिये एप्लीकेशन स्टोर अपने स्वयं के भुगतान सिस्टम के उपयोग को अनिवार्य करते हैं। इन क्रियाओं का परिणाम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बहिष्करण जैसी क्रियाओं के रूप में होता है।

बिग टेक को विनियमित करने हेतु भारत का वर्तमान दृष्टिकोण:

  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: भारत में अविश्वास संबंधी मुद्दे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 द्वारा शासित होते हैं, जबकि CCI एकाधिकार प्रथाओं पर जाँच करता है।
    • वर्ष 2022 में CCI ने 'प्रतिस्पर्द्धात्मक विरोधी प्रथाओं' हेतु कई बाज़ारों में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिये Google पर 1,337.76 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया।
  • प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022: सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022 में प्रतिस्पर्द्धा कानून में संशोधन प्रस्तावित किया है। विधेयक को अप्रैल 2023 में राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई है।
    • CCI यह आकलन करने हेतु आवश्यकताओं को निर्धारित करने के लिये विनियम तैयार करेगा कि क्या किसी उद्यम का भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन है।
    • यह आयोग की मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार करेगा, विशेष रूप से डिजिटल और बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों में जहाँ अधिकांश मामलों का पहले खुलासा नहीं किया गया था क्योंकि संपत्ति या टर्नओवर राशि मूल्य क्षेत्राधिकार सीमा आवश्यकताओं से कम हो गई थी।

आगे की राह

  • वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति बिना टर्नओवर वाले डिजिटल मार्केटप्लेस की विशेषताओं को समायोजित करने के लिये सौदे के मूल्य पर आधारित एक प्रणाली का सुझाव देती है।
  • वह यह भी अनुशंसा करती है कि डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने वाली अथवा डेटा एकत्र करने वाली संस्थाओं से संबंधित किसी भी संकेंद्रण को कार्यान्वयन से पहले CCI को सूचित किया जाना चाहिये, चाहे वह अधिसूचना के निर्दिष्ट सीमा के अनुरूप हो अथवा न हो।
  • सरकार को इंटरनेट जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त कदम उठाने की आवश्यकता है, जैसे किसी भी लेन-देन से पहले वेबसाइटों की प्रामाणिकता की जाँच करना और अनधिकृत अनुप्रयोगों तक पहुँच प्रदान न करना।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-इज़रायल संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-इज़रायल संबंध, CSIR, AI, सतत् ऊर्जा, FTA, I4F, AWACS, ISA, अब्राहम समझौते

मेन्स के लिये:

भारत-इज़रायल संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) तथा इज़रायल के रक्षा अनुसंधान और विकास (DDR&D) ने औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

समझौता ज्ञापन की मुख्य विशेषताएँ:

  • इसका उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वांटम और सेमीकंडक्टर, सिंथेटिक बायोलॉजी, सतत् ऊर्जा, स्वास्थ्य तथा कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं पर एक साथ कार्य करना है। वे पारस्परिक रूप से सहमत क्षेत्रों में विशिष्ट परियोजनाओं को कार्यान्वित करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
  • सहयोग में एयरोस्पेस, रसायन और बुनियादी ढाँचे जैसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र शामिल होंगे।
  • पारस्परिक रूप से लाभकारी औद्योगिक और प्रौद्योगिकी सहयोग को आगे बढ़ाने के लिये CSIR एवं DDR&D के प्रमुखों के नेतृत्व वाली एक संयुक्त संचालन समिति द्वारा समझौता ज्ञापन की निगरानी की जाएगी।

भारत-इज़रायल संबंध:

  • कूटनीतिक:
    • हालाँकि भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी, लेकिन दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध 29 जनवरी, 1992 को स्थापित हुए।
    • दिसंबर 2020 तक भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) के 164 सदस्य देशों में से एक था, उसके इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध थे।
  • आर्थिक और वाणिज्यिक:
    • भारत और इज़राइल के बीच व्यापार कोविड-19 महामारी से पहले के 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 जनवरी तक लगभग 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
      • हीरे का व्यापार द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 50% है।
    • भारत एशिया में इज़रायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और विश्व स्तर पर सातवाँ सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
      • इज़रायली कंपनियों ने भारत में ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट, जल प्रौद्योगिकियों में निवेश किया है और भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र या उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
    • भारत मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने के लिये इज़राइल के साथ भी बातचीत कर रहा है।
  • रक्षा:
    • भारत, इज़राइल से हथियारों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है, जो इसके वार्षिक हथियारों के निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देता है।
    • भारतीय सशस्त्र बलों ने पिछले कुछ वर्षों में इज़रायली हथियार प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल किया है, जिसमें फाल्कन AWACS (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम्स), हेरॉन, सर्चर- II, हारोप ड्रोन से लेकर बराक मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली और स्पाइडर क्विक-रिएक्शन विमान भेदी मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
      • द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर 15वें संयुक्त कार्य समूह (JWG 2021) की बैठक में देशों ने सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने हेतु एक व्यापक दस-वर्षीय रोडमैप तैयार करने के लिये टास्क फोर्स बनाने पर सहमति व्यक्त की।
  • कृषि:
    • मई 2021 में कृषि सहयोग में विकास के लिये "तीन वर्ष के कार्य कार्यक्रम समझौते" पर हस्ताक्षर किये गए।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CoE) को विकसित करना, नए केंद्र स्थापित करना, CoE की मूल्य शृंखला में वृद्धि करना, उत्कृष्टता केंद्रों को आत्मनिर्भर बनाना और निजी क्षेत्र की कंपनियों तथा उनके सहयोग को प्रोत्साहित करना है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
    • हाल के वर्षों में इज़रायल के स्टार्ट-अप नेशनल सेंट्रल तथा iCreate और TiE (टेक्नोलॉजी बिज़नेस इन्क्यूबेटर्स) जैसे भारतीय उद्यमिता केंद्रों के बीच कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • वर्ष 2022 में दोनों देशों ने भारत-इज़रायल औद्योगिक R&D और नवाचार निवेश (I4F) के दायरे को बढ़ाया, जिसमें अक्षय ऊर्जा तथा ICT (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) जैसे क्षेत्रों के शिक्षा तथा व्यावसायिक संस्थाओं की भागीदारी में वृद्धि शामिल है।
      • I4F नामित "लक्षित क्षेत्र (Focus Sectors)" में समस्याओं का समाधान करने के लिये इज़रायल एवं भारतीय उद्यमों के बीच संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान और विकास पहल को प्रोत्साहित करने, सुविधा प्रदान करने व समर्थन करने हेतु दोनों देशों के बीच साझेदारी है।
  • अन्य:
    • इज़रायल भी भारत के नेतृत्त्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में शामिल हो रहा है, जो नवीकरणीय ऊर्जा में अपने सहयोग को बढ़ाने एवं स्वच्छ ऊर्जा में भागीदार बनाने के दोनों देशों के उद्देश्यों के साथ बहुत अच्छी तरह से मेल खाता है।

आगे की राह

  • भारतीय इज़रायल के प्रति सहानुभूति रखते हैं, साथ ही सरकार अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित के आधार पर अपनी पश्चिम एशिया नीति को संतुलित एवं पुनर्गठित कर रही है।
  • भारत और इज़रायल को अपने धार्मिक चरमपंथी पड़ोसियों की भेद्यता को दूर करने एवं जलवायु परिवर्तन, जल संकट, जनसंख्या विस्फोट तथा खाद्य सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर उत्पादक रूप से काम करने की आवश्यकता है।
  • भारत को अब्राहम समझौते द्वारा किये गए भू-राजनीतिक पुनर्गठन के लाभ उठाने हेतु अधिक मुखर और सक्रिय मध्य पूर्वी नीति की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है? (2018)

(a) चीन
(b) इज़रायल
(c) इराक
(d) यमन

उत्तर: (b)

  • "टू स्टेट सॉल्यूशन" इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष से संबंधित है। इसका उद्देश्य दो स्वतंत्र राज्यों - इज़रायल और फिलिस्तीन के निर्माण के माध्यम से इस संघर्ष का समाधान करना है।
  • ओस्लो समझौते 1993 के बाद इसने लोकप्रियता हासिल की और कई लोगों द्वारा इसे इस आसन्न संकट के एकमात्र व्यवहार्य समाधान के रूप में देखा जाता है।
  • समाधान की रूपरेखा 1974 में "फिलिस्तीन के प्रश्न के शांतिपूर्ण समाधान" पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में निर्धारित की गई है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2018)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

मैतेई समुदाय, अनुसूचित जनजाति, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, कोई कुकी और नगा जनजाति।

मेन्स के लिये:

ST की स्थिति हेतु मैतेई की मांग। 371 के तहत विशेष प्रावधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऑल-ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने मैतेई समुदाय को राज्य की अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूची में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिये एकजुटता मार्च निकाला है।

  • यह मार्च मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद हिंसक झड़पों में बदल गया, जिसमें राज्य को गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को ST का दर्जा देने की 10 वर्ष पुरानी सिफारिश को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया था।

मैतेई समुदाय को ST दर्जा क्यों चाहता है?

  • मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM) के नेतृत्व में मैतेई समुदाय वर्ष 2012 से ST स्थिति की मांग कर रहा है, उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा और पहचान को संरक्षित करने हेतु संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये कह रहा है।
  • मैतेई का तर्क है कि 1949 में मणिपुर के भारत में विलय से पहले उन्हें एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन भारत में विलय के बाद उनकी पहचान समाप्त हो गई।
  • अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर रहने के परिणामस्वरूप, मैतेई समुदाय बिना किसी संवैधानिक संरक्षण के स्वयं को हाशिए पर महसूस करता है।
    • STDCM के अनुसार मैतेई/मीतेई धीरे-धीरे अपनी पुश्तैनी जमीन पर ही हाशिये पर आ गए हैं।
    • उनकी जनसंख्या, जो वर्ष 1951 में मणिपुर की कुल जनसंख्या का 59% थी, अब 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार घटकर 44% रह गई है।
  • उनका मानना है कि ST का दर्जा देने से उनकी पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने में मदद मिलेगी और बाहरी लोगों से उनकी रक्षा होगी।

ST सूची में शामिल करने की प्रक्रिया:

  • ST की सूची में एक समुदाय को शामिल करने की प्रक्रिया वर्ष 1999 में स्थापित तौर-तरीकों के एक सेट का अनुसरण करती है।
  • संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश सरकार को समावेशन के प्रस्ताव को शुरू करना चाहिये, जो तब केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय और बाद में भारत के रजिस्ट्रार जनरल (ORGI) के कार्यालय में जाता है।
  • यदि ORGI समावेशन को मंजूरी देता है, तो प्रस्ताव को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजा जाता है, और यदि वे सहमत होते हैं, तो प्रस्ताव संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन के लिये कैबिनेट को भेजा जाता है।
  • सितंबर 2022 में, सरकार ने अनुसूचित जनजातियों की सूची में कुछ समुदायों को शामिल करने की मंजूरी दी। इसमे शामिल है:
    • छत्तीसगढ़ में बिंझिअ
    • तमिलनाडु में नारिकोरावण एंड कुरीविक्कारन
    • कर्नाटक में ‘बेट्टा-कुरुबा’
    • हिमाचल प्रदेश से हत्ती
    • उत्तर प्रदेश में गोंड समुदाय

मणिपुर में अन्य जनजातीय समूह मैतेई की मांग का विरोध:

  • मैतेई पहले से ही बहुमत में: इसका एक कारण यह है कि जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व के मामले में मैतेई समुदाय पहले से ही प्रभावी है, क्योंकि अधिकांश विधानसभा क्षेत्र घाटी में हैं जहाँ मैतेई रहते हैं।
    • अनुसूचित जनजाति समुदायों को डर है कि मैतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से उन्हें नौकरी के अवसर और अनुसूचित जनजातियों के लिये अन्य सकारात्मक कार्यों से हाथ धोना पड़ेगा।
  • मैतेई संस्कृति की मान्यता है: मैतेई भाषा पहले से ही संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल है, और मैतेई समुदाय के कुछ वर्गों को पहले से ही अनुसूचित जाति (SC) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत वर्गीकृत किया गया है, जो उन्हें कुछ अवसरों तक पहुँच प्रदान करता है।
  • अधिक राजनीतिक प्रभाव: वे यह भी सोचते हैं कि अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग घाटी क्षेत्र के प्रमुख मैतेई समुदाय हेतु कुकी एवं नगा जैसे अन्य आदिवासी समूहों की राजनीतिक मांगों से ध्यान हटाकर राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों पर राजनीतिक प्रभाव तथा नियंत्रण हासिल करने का एक तरीका है।
    • कुकी एक जातीय समूह है जिसमें मूल रूप से मणिपुर, मिज़ोरम और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाली कई जनजातियाँ शामिल हैं; बर्मा (अब म्याँमार) के कुछ हिस्से और सिलहट ज़िला एवं बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी इलाके।
    • इन क्षेत्रों में व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के प्रयास में कुकी एवं नगाओं ने अक्सर हिंसक गतिरोध में भाग लिया, जिसमें गाँवों को आग लगा दी गई, नागरिकों को मार दिया गया, साथ ही ऐसी अन्य घटनाएँ हुईं।
  • जनजातीय समूहों का निष्कासन: अगस्त 2022 से राज्य सरकार की चेतावनियों में कहा गया है कि चूराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र के 38 गाँव "अवैध बस्तियाँ" हैं एवं इसमें रहने वाले "अतिक्रमणकारी" हैं, जो अशांति के अन्य कारणों में से एक है।
    • इसके बाद सरकार ने एक बेदखली अभियान शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप झड़पें हुईं।
    • कुकी समूहों ने दावा किया है कि सर्वेक्षण और निष्कासन अनुच्छेद 371C का उल्लंघन है, जो मणिपुर के आदिवासी बहुल पहाड़ी क्षेत्रों को कुछ प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करता है।

मणिपुर की जातीय संरचना:

  • परिचय:
    • मैतेई मणिपुर में सबसे बड़ा समुदाय है और वहाँ 34 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ हैं जिन्हें प्रमुख रूप से 'एनी कुकी ट्राइब्स' और 'एनी नगा ट्राइब्स' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • मैतेई और मैतेई पंगल, जो राज्य की आबादी का लगभग 64.6% हैं, मुख्य रूप से इम्फाल घाटी में रहते हैं, जो मणिपुर के भूभाग के लगभग 10% हिस्से पर पाए जाते हैं।
      • राज्य के शेष 90% भौगोलिक क्षेत्र में घाटी के आसपास की पहाड़ियाँ शामिल हैं जो चिह्नित्त जनजातियों का आवास है, ये जनजातियाँ राज्य की आबादी का लगभग 35.4% हैं।
    • अधिकांश मैतेई हिंदू हैं, इनके बाद मुस्लिम (8%) हैं, 33 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ है, बड़े पैमाने पर ईसाईयों को 'अन्य नगा जनजाति' और 'अन्य कुकी जनजाति' में वर्गीकृत किया गया है।
    • नगालैंड के दीमापुर ज़िले के साथ मणिपुर को दिसंबर 2019 में ILP प्रणाली के दायरे में लाया गया था। ILP एक विशेष परमिट है जो देश के अन्य क्षेत्रों से "बाहरी लोगों" द्वारा अधिसूचित राज्यों में प्रवेश करने के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
  • मैतेई समुदाय से संबंधित प्रमुख बिंदु:
    • मैतेई लोगों को मणिपुरी लोग भी कहा जाता है।
    • उनकी प्राथमिक भाषा मैतेई है, जिसे मणिपुरी भी कहा जाता है और मणिपुर की एकमात्र आधिकारिक भाषा है।
    • वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में बसे हुए हैं, हालाँकि एक बड़ी आबादी अन्य भारतीय राज्यों, जैसे- असम, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम में निवास करती है।
    • म्याँमार और बांग्लादेश के पड़ोसी देशों में भी पर्याप्त मैतेई निवास करते हैं।
    • मैतेई लोग गोत्रों में विभाजित हैं, और एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं करते हैं।

अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान:

  • संविधान का अनुच्छेद 371 पूर्वोत्तर के छह राज्यों (त्रिपुरा और मेघालय को छोड़कर) सहित 11 राज्यों के लिये "विशेष प्रावधान" प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 369-392 (कुछ हटाए गए अनुच्छेद सहित) संविधान के भाग XXI में है, जिसका शीर्षक 'अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान' है।
    • अनुच्छेद 370 'जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान' से संबंधित है;
  • अनुच्छेद 371 और 371A-371J दूसरे राज्य (या राज्यों) के संबंध में विशेष प्रावधानों को परिभाषित करते हैं।
    • अनुच्छेद 371I गोवा से संबंधित है, लेकिन इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है जिसे 'विशेष' माना जा सके।
अनुच्छेद (संशोधन) संबंधित राज्य प्रावधान
अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र और गुजरात राज्यपाल के पास "विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र" तथा गुजरात में सौराष्ट्र और कच्छ के लिये "अलग विकास बोर्ड" स्थापित करने की "विशेष ज़िम्मेदारी" है।
अनुच्छेद 371A (तेरहवाँ संशोधन अधिनियम, 1962) नगालैंड नगा धर्म या सामाजिक प्रथाओं, नगा प्रथागत कानून एवं प्रक्रिया, नगा प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में संसद कानून नहीं बना सकती है।
अनुच्छेद 371B (22वाँ संशोधन अधिनियम, 1969) असम इसके अंतर्गत भारत का राष्ट्रपति राज्य विधानसभा के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों से या ऐसे सदस्यों से जिन्हें वह उचित समझता है, एक समिति का गठन कर सकता है।
अनुच्छेद 371C (27वाँ संशोधन अधिनियम, 1971) मणिपुर राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से मणिपुर विधानसभा के लिये चुने गए सदस्यों से एक समिति का गठन कर सकता है एवं इस समिति का उचित संचालन सुनिश्चित करने हेतु राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व सौंप सकता है।
अनुच्छेद 371D (32वाँ संशोधन अधिनियम, 1973; आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 द्वारा प्रतिस्थापित) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

राष्ट्रपति को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के लिये शिक्षा एवं रोज़गार के समान अवसर सुनिश्चित करने होंगे।

राष्ट्रपति को राज्य सरकार के सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे राज्य के विभिन्न भागों में स्थानीय काडर के लिये लोक सेवाओं को संगठित किया जा सके तथा किसी भी स्थानीय काडर में आवश्यकतानुसार सीधी भर्ती की जा सके।

किसी भी शैक्षिक संस्थान में राज्य के किस भाग के छात्रों को प्रवेश में वरीयता दी जाएगी, यह निर्धारित करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के पास है।

राष्ट्रपति, राज्य में सिविल सेवा के पदों पर कार्यरत अधिकारियों की शिकायतों एवं विवादों के निपटान हेतु विशेष प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकता है। यह अधिकरण लोक सेवाओं में भर्ती, आवंटन, पदोन्नति आदि से संबंधित शिकायतों एवं विवादों की सुनवाई करेगा।

अनुच्छेद 371E संसद को आंध्र प्रदेश राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करने का अधिकार देता है लेकिन वास्तव में यह संविधान के इस भाग में अन्य उपबंधों के अर्थ में एक 'विशेष उपबंध' नहीं है।

अनुच्छेद 371F (36वाँ संशोधन अधिनियम, 1975) सिक्किम

सिक्किम विधानसभा के सदस्य लोकसभा में सिक्किम के प्रतिनिधियों का चयन करेंगे।

सिक्किम की जनसंख्या के विभिन्न अनुभागों के अधिकार एवं हितों की रक्षा के लिये संसद को यह अधिकार दिया गया है कि सिक्किम विधानसभा में कुछ सीटें इन्हीं अनुभागों से आने वाले व्यक्तियों द्वारा भरी जाएँ, ऐसा प्रावधान कर सके।

राज्य के राज्यपाल का विशेष दायित्व है कि वह सिक्किम में शांति स्थापित करने की व्यवस्था करे तथा राज्य की जनसंख्या के समान सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये संसाधनों एवं अवसरों का उचित आवंटन सुनिश्चित करे।

पूर्व के सभी कानून जिनसे सिक्किम का गठन हुआ, जो जारी रहेंगे और किसी भी अदालत में किसी भी रूपांतरण या संशोधन के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।

अनुच्छेद 371G (53वाँ संशोधन अधिनियम, 1986) मिज़ोरम

इस प्रावधान के अनुसार, संसद ‘मिज़ो’, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, धार्मिक एवं सामाजिक न्याय के कानून, मिज़ो प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में भूमि के स्वामित्व एवं हस्तांतरण संबंधी मुद्दों पर कानून नहीं बना सकती जब तक कि राज्य विधानसभा ऐसा करने हेतु प्रस्ताव न दे।

अनुच्छेद 371H (55वाँ संशोधन अधिनियम, 1986) अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पर राज्य में कानून एवं व्यवस्था सुनिश्चित करने का विशेष दायित्व है। अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में राज्यपाल, राज्य मंत्री परिषद से परामर्श कर व्यक्तिगत निर्णय ले सकता है तथा उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा और इसके प्रति वह जवाबदेह नहीं होगा।

अनुच्छेद 371J (98वाँ संशोधन अधिनियम, 2012) कर्नाटक

हैदरबाद-कर्नाटक क्षेत्र हेतु पृथक् विकास बोर्ड की स्थापना करने का प्रावधान है, जिसकी कार्यप्रणाली से संबंधित रिपोर्ट प्रतिवर्ष राज्य विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

उक्त क्षेत्रों में विकासात्मक व्यय हेतु समान मात्रा में धन आवंटित किया जाएगा और सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में इस क्षेत्र के लोगों को समान अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।

हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नौकरियों और शैक्षिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों तथा राज्य सरकार के संगठनों में संबंधित व्यक्तियों के लिये जो जन्म या मूल-निवास के संदर्भ में उस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, आनुपातिक आधार पर सीटें आरक्षित करने हेतु एक आदेश दिया जा सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के उपबंध निम्नलिखित में से किसके लिये किये गए हैं?

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण के लिये
(b) राज्यों के बीच सीमाओं के निर्धारण के लिये
(c) पंचायतों की शक्तियों, प्राधिकारों और उत्तरदायित्त्वों के निर्धारण के लिये
(d) सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों के संरक्षण के लिये

उत्तर: (a)


प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (मुख्य परीक्षा- 2017)

प्रश्न. भारत में आदिवासियों को 'अनुसूचित जनजाति' क्यों कहा जाता है? उनके उत्थान के लिये भारत के संविधान में निहित प्रमुख प्रावधानों को इंगित करें। (मुख्य परीक्षा- 2016)

स्रोत : द हिंदू


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