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शासन व्यवस्था

उप-श्रेणीकरण की अवधारणा और उप-श्रेणीकरण आयोग

  • 03 Sep 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

आरक्षण का उप-वर्गीकरण, OBC की केंद्रीय सूची, OBC आरक्षण

मेन्स के लिये

OBC का उप-श्रेणीकरण उसका महत्त्व और आवश्यकता, भारत में OBC समुदाय का प्रतिनिधित्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण के उप-श्रेणीकरण पर कानूनी बहस को पुनः शुरू कर दिया है। जहाँ एक ओर SC और ST के आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस हो रही है, वहीं लगभग तीन वर्ष पूर्व गठित एक आयोग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण का भी परीक्षण कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण का परीक्षण करने हेतु गठित आयोग के कार्यकाल को 6 माह के लिये बढ़ा दिया था।

 अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का उप-श्रेणीकरण

  • नियमों के अनुसार, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को केंद्र सरकार के तहत नौकरियों और शिक्षा में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
  • उप-श्रेणीकरण का प्रश्न इस धारणा से उत्पन्न होता है कि OBC की केंद्रीय सूची में शामिल 2,600 से अधिक समुदायों में से केवल कुछ ही संपन्न समुदाय इस 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ प्राप्त कर पाए हैं।
  • जब सरकार ने देश के अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये आरक्षण की व्यवस्था की थी तो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भी अंदर आने वाले कुछ कमज़ोर वर्गों के लिये किसी भी प्रकार की कोई विशिष्ट व्यवस्था नहीं की गई थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का आरक्षण केवल कुछ खास और सामाजिक-आर्थिक रूप से संपन्न समुदायों तक ही सीमित हो कर रह गया।
  • दरअसल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में इतने अधिक समुदाय (2,600 से अधिक) होने के कारण उनके बीच सामाजिक-आर्थिक अंतराल होना स्वाभाविक है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में ऐसे कई समुदाय हैं जो इस वर्ग के तहत आने वाले कुछ अन्य समुदायों की अपेक्षा सामाजिक-आर्थिक तौर पर अधिक संपन्न और उन्नत हैं।
  • यही कारण है कि देश में OBC के उप-श्रेणीकरण अर्थात् सभी तक आरक्षण का लाभ पहुँचाने के लिये OBC के भीतर भी कुछ श्रेणियाँ बनाने की मांग बीते कई वर्षों से की जा रही है।

उप-श्रेणीकरण के परीक्षण हेतु आयोग

  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण के परीक्षण हेतु सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग ने 11 अक्तूबर, 2017 से कार्य करना शुरू किया था।
  • इस आयोग का गठन शुरुआत में 12 सप्ताह के कार्यकाल के लिये किया गया था, जिसे बाद में कई बार विस्तारित किया गया। आँकड़े बताते हैं कि नवंबर 2019 तक सरकार ने वेतन और अन्य खर्चों समेत आयोग पर 1.70 करोड़ रुपए खर्च किये हैं।

आयोग के विचारार्थ विषय (TOR)

आयोग का गठन मुख्यतः तीन विचारार्थ विषयों के साथ किया गया था, किंतु 22 जनवरी, 2020 को आयोग का चौथा विचारार्थ विषय शामिल किया गया।

  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की केंद्रीय सूची में शामिल जातियों/समुदाओं के बीच आरक्षण के लाभ के असमान वितरण की जाँच करना।
  • OBC के भीतर उप-श्रेणीकरण के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक तंत्र, क्रियाविधि, मापदंड और पैरामीटर आदि का निर्माण करना।
  • OBC की केंद्रीय सूची में संबंधित जातियों/समुदायों/उप-जातियों की पहचान करना और उन्हें संबंधित उप-श्रेणी में वर्गीकृत करना।
  • OBC की केंद्रीय सूची में मौजूद विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी पुनरावृत्ति, अस्पष्टता या विसंगति और वर्तनी या प्रतिलेखन की त्रुटियों में सुधार की सिफारिश करना।

आयोग का अब तक का कार्य

  • 30 जुलाई, 2019 को सरकार को लिखे अपने पत्र में आयोग ने कहा था उसने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट का मसौदा तैयार कर लिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस रिपोर्ट के व्यापक राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं और इसे न्यायिक समीक्षा का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • आयोग का वर्तमान कार्यकाल 31 जनवरी, 2021 को समाप्त हो रहा है यानी यदि कार्यकाल का विस्तार नहीं किया गया तो आयोग 31 जनवरी, 2021 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

आयोग के समक्ष चुनौतियाँ

  • आयोग के समक्ष एक सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नौकरियों और दाखिलों में OBC समुदाय के प्रतिनिधित्त्व की तुलना करने के लिये आयोग के पास OBC समुदाय की आबादी से संबंधी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस संबंध में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (Socio Economic and Caste Census-SECC) के आँकड़ों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है।
  • हालाँकि 31 अगस्त, 2018 को तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की थी कि वर्ष 2021 की जनगणना में OBC से संबंधित डेटा एकत्रित किया जाएगा, किंतु इसके बाद से अब तक इस दिशा में कोई घोषणा नहीं हुई है।

आयोग का अब तक का अध्ययन

  • वर्ष 2018 में आयोग ने विगत पाँच वर्षों में OBC कोटे के तहत दी गईं 1.3 लाख केंद्रीय नौकरियों और विगत तीन वर्षों में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, IITs, NITs, IIMs और AIIMS समेत विभिन्न केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में OBC कोटे के लिये गए दाखिले के आँकड़ों का विश्लेषण किया था और विश्लेषण में सामने आया था कि
    • 24.95 प्रतिशत नौकरियाँ और सीटें सिर्फ 10 OBC समुदायों के पास ही हैं;
    • 983 OBC समुदायों यानी कुल OBC समुदायों के 37 प्रतिशत समुदायों का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में शून्य प्रतिनिधित्त्व है;
    • 994 OBC उप-जातियों का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में कुल 2.68 प्रतिशत का प्रतिनिधित्त्व है;
    • 97 प्रतिशत नौकरियाँ और शैक्षणिक संस्थानों की सीटें OBC की केंद्रीय सूची में शामिल 25 प्रतिशत जातियों/समुदायों/उप-जातियों के पास हैं;

केंद्रीय नौकरियों में OBC भर्ती का स्तर 

  • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पास मौजूद आँकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार की ग्रुप-A की सेवाओं में OBC का प्रतिनिधित्त्व 13.01 प्रतिशत, ग्रुप-B में 14.78 प्रतिशत, ग्रुप-C (सफाई कर्मचारियों के अतिरिक्त) में 22.65 प्रतिशत और ग्रुप-C (सफाई कर्मचारी) में 14.46 प्रतिशत है।
  • आँकड़े से पता चला कि 95.2 प्रतिशत प्रोफेसर, 92.9 प्रतिशत एसोसिएट प्रोफेसर और 66.27 प्रतिशत सहायक प्रोफेसर सामान्य श्रेणी से थे, इसमें जिसमें SC, ST और OBC समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं, जो आरक्षण की सीमा में नहीं आते हैं।
    • इस प्रकार उच्च शिक्षण संस्थानों में SC, ST और OBC समुदाय का प्रतिनिधित्त्व काफी कम है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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