ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 04 Dec, 2024
  • 50 min read
शासन व्यवस्था

NMCM और राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन, राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, मेरा गाँव मेरी धरोहर, अनुच्छेद 49, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

सांस्कृतिक संरक्षण और सशक्तीकरण हेतु सरकारी पहल, सांस्कृतिक मानचित्रण पर राष्ट्रीय मिशन, ग्रामीण आर्थिक विकास के लिये एक उपकरण के रूप में सांस्कृतिक मानचित्रण

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिये संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (NMCM) की स्थापना की है।

  • इस मिशन का उद्देश्य देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का दस्तावेज़ीकरण करना, ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करना तथा भावी पीढ़ियों के लिये ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण सुनिश्चित करना है। 

राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (NMCM) क्या है?

  • परिचय: संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया, इसका उद्देश्य संपूर्ण देश में सांस्कृतिक जीवंतता को बढ़ाने के लिये सांस्कृतिक संपत्तियों, कलाकारों और कला रूपों का एक व्यापक डेटाबेस बनाकर भारत की सांस्कृतिक विरासत का दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण और संवर्द्धन करना है।
  • मुख्य उद्देश्य: प्रत्येक गाँव की विशिष्ट सांस्कृतिक विशेषताओं को परिभाषित करना और उनका दस्तावेज़ीकरण करना।
    • "हमारी संस्कृति हमारी पहचान" (हमारी संस्कृति, हमारी पहचान) जैसे सांस्कृतिक जागरूकता कार्यक्रम आरंभ करना।
    • ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक मानचित्रण का उपयोग करना।
    • समस्त कला रूपों में सूचना साझा करने, भागीदारी, प्रदर्शन और पुरस्कार के लिये एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यस्थल (NCWP) पोर्टल स्थापित करना।
    • विचारों के आदान-प्रदान और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये कला ग्राम, शिल्प मेला और अन्य सांस्कृतिक केंद्रों के लिये स्थानों की पहचान करना।
  • कार्यान्वयन: NMCM का प्रशासन संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया जाता है, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के मार्गदर्शन में इसका क्रियान्वयन किया जाता है।
    • सामान्य सेवा केंद्र (CSC) ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड (CSC), इलेक्ट्रॉनिक्स और IT मंत्रालय (MEITY) के तहत एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV), को संस्कृति मंत्रालय द्वारा NMCM को कार्यान्वित करने का कार्य सौंपा गया है।
  • मेरा गाँव मेरी धरोहर (MGMD): वर्ष 2023 में आजादी का अमृत महोत्सव के भाग के रूप में NMCM ने मेरा गाँव मेरी धरोहर (MGMD) पोर्टल लॉन्च किया, जो भारत के 6.5 लाख गाँवों की सांस्कृतिक विरासत का दस्तावेज़ीकरण करता है। 
  • MGMD के अंतर्गत सात व्यापक श्रेणियों में जानकारी एकत्र की जाती है। 
    • कला और शिल्प गाँव, 
    • पारिस्थितिकी उन्मुख गाँव, 
    • भारत की पाठ्य और शास्त्रीय परंपराओं से जुड़ा शैक्षिक गाँव,
    • रामायण, महाभारत और/या पौराणिक कथाओं से जुड़ा महाकाव्य गाँव, 
    • स्थानीय और राष्ट्रीय इतिहास से जुड़ा ऐतिहासिक गाँव, 
    • वास्तुकला विरासत गाँव,
    • कोई अन्य विशेषताएँ जिन पर प्रकाश डालने की आवश्यकता हो सकती है, जैसे मत्स्याग्रह वाले गाँव, बागवानी वाले गाँव, चरवाहा गाँव, आदि।
  • वर्तमान में 4.5 लाख गाँव इस पोर्टल पर मौजूद हैं, जिनमें मौखिक परम्पराएँ, कला रूप, भोजन, त्योहार और स्थानीय स्थल जैसे तत्व प्रदर्शित किये गए हैं। 
  • यह पहल सांस्कृतिक पहचान को मज़बूत करती है, ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाती है, तथा सांस्कृतिक परिसंपत्तियों के दस्तावेज़ीकरण और संवर्द्धन के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है। 

CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड

  • CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड, कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित SPV, CSC योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करता है, तथा नागरिकों को सेवा प्रदान करने के लिये एक ढाँचा प्रदान करता है। 
    • CSC का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सक्षम नेटवर्क का निर्माण करना है, जो स्थानीय आबादी को आवश्यक सेवाओं से जोड़ेगा तथा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक, वित्तीय और डिजिटल रूप से समावेशी समाज को बढ़ावा देगा।

सांस्कृतिक मानचित्रण

  • सांस्कृतिक मानचित्रण किसी क्षेत्र के अद्वितीय सांस्कृतिक पहलुओं को दर्ज करता है, जिसमें स्थानीय कहानियाँ, अनुष्ठान, कला, भाषाएँ, विरासत और व्यंजन शामिल होते हैं, जो स्थानीय संस्कृति को परिभाषित करते हैं। 
    • यह सांस्कृतिक संसाधन मानचित्रण बनाने के लिये मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार की परिसंपत्तियों का दस्तावेज़ीकरण करता है।

राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक क्या हैं?

  • राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक:  स्मारक भारत के समृद्ध अतीत के अवशेष हैं, जो संस्कृति, कला और वास्तुकला को प्रदर्शित करते हैं। 
    • इनमें विभिन्न प्रकार के स्थल शामिल हैं, जैसे प्रागैतिहासिक स्थल, शैलाश्रय, मंदिर, चर्च, मस्जिद, मकबरे, किले आदि, जो देश भर में हमारी विविध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष (AMASR) अधिनियम, 1958 (वर्ष 2010 में संशोधित), राष्ट्रीय महत्त्व के प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातत्व स्थलों और अवशेषों की घोषणा, संरक्षण और सुरक्षा का प्रावधान करता है। 
      • इस स्थिति पर विचार करने के लिये किसी स्मारक या स्थल को कम से कम 100 वर्ष पुराना होना चाहिये।
  • घोषणा की प्रक्रिया: केंद्र सरकार किसी स्थल को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करने के अपने आशय को अधिसूचित करती है, तथा दो महीने के भीतर सार्वजनिक आपत्तियाँ आमंत्रित करती है। आपत्तियों पर विचार करने के बाद, वह राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से आधिकारिक रूप से स्थल की घोषणा कर सकती है।
  • भारत में MNI: वर्तमान में, देश में 3697 प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष राष्ट्रीय महत्त्व के घोषित किये गए हैं।
  • MNI की सुरक्षा के प्रयास: 
    • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 49 में यह प्रावधान है कि राज्य को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं को विनाश, विरूपण, हटाने या निर्यात से बचाना चाहिये।
    • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI): संस्कृति मंत्रालय के अधीन ASI, बहुराष्ट्रीय पुरातत्त्व स्थलों के संरक्षण और रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार है।
      • स्मारक के चारों ओर 100 मीटर का दायरा 'निषिद्ध क्षेत्र' है, जहाँ निर्माण प्रतिबंधित है, जबकि अगले 200 मीटर का दायरा 'विनियमित क्षेत्र' है, जहाँ निर्माण प्रतिबंधित है।
      • ASI उन स्मारकों को सूची से हटा सकता है (AMASR अधिनियम, 1958 की धारा 35 के तहत), यदि वे अब राष्ट्रीय महत्त्व के नहीं रह गए हैं, जिसका अर्थ है कि अब उनका संरक्षण या रखरखाव नहीं किया जाएगा। 
        • एक बार सूची से हटा दिए जाने के बाद, साइट के आसपास निर्माण और शहरीकरण गतिविधियाँ शुरू की जा सकेंगी।
    • राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA): AMASR अधिनियम, 2010 के तहत स्थापित NMA, केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये उनके आसपास के निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत की सांस्कृतिक विरासत और ग्रामीण सशक्तीकरण को बढ़ावा देने में राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन की भूमिका का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न 1. भारतीय कला विरासत का संरक्षण वर्तमान समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2018)

प्रश्न 2. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों एवं उनकी कला की कल्पना को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (2020)


शासन व्यवस्था

वन रैंक वन पेंशन (OROP)

प्रिलिम्स के लिये:

वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना, सर्वोच्च न्यायालय   

मेन्स के लिये:

OROP की मुख्य विशेषताएँ, OROP से संबंधित चुनौतियाँ और इसके निहितार्थ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के कार्यान्वयन की सराहना की। इस योजना को आधिकारिक तौर पर 7 नवंबर 2015 को लागू किया गया था, जिसमें प्राप्त लाभों को 1 जुलाई 2014 से प्रभावी बनाया गया।

  • OROP का उद्देश्य सशस्त्र बलों के कार्मिकों को उनके पद एवं सेवा अवधि के आधार पर एक समान पेंशन लाभ प्रदान करना है, जो सेवानिवृत्त सैनिकों तथा उनके परिवारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

OROP क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • केपी सिंह देव समिति (1984) ने सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों हेतु स्थापित पेंशन सिद्धांतों के आधार पर 'वन रैंक वन पेंशन' की सिफारिश की थी।
    • चौथे केंद्रीय वेतन आयोग ने पेंशन को समान बनाना चुनौतीपूर्ण बताने के साथ इसके लिये बड़े प्रशासनिक प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • पाँचवें केंद्रीय वेतन आयोग ने 'वन रैंक वन पेंशन' का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पद की भूमिका एवं योग्यता में परिवर्तन के कारण पेंशनभोगियों को अतिरिक्त लाभ नहीं मिलना चाहिये।
    • कैबिनेट सचिव समिति (2009) ने 'वन रैंक वन पेंशन' को अस्वीकार कर दिया लेकिन सेवानिवृत्त लोगों के बीच पेंशन असमानता को कम करने के उपाय सुझाए।
    • राज्यसभा याचिका समिति ने सभी सैन्य बल कार्मिकों हेतु 'वन रैंक वन पेंशन' लागू करने की सिफारिश की।
  • परिभाषा: OROP यह सुनिश्चित करता है कि एक ही रैंक पर सेवानिवृत्त होने वाले सभी सशस्त्र बलों के कर्मियों को नकी सेवानिवृत्ति तिथि की परवाह किये बिना समान पेंशन मिले। उदाहरण के लिये, वर्ष 1980 में सेवानिवृत्त होने वाले जनरल को वर्ष 2015 में सेवानिवृत्त होने वाले जनरल के समान पेंशन मिलेगी।
    • OROP, समान पेंशन वितरण के लिये पूर्व सैनिकों की लंबे समय से चली आ रही मांग को संबोधित करता है, तथा राष्ट्र के प्रति उनके बलिदान और सेवा को मान्यता देता है।
  • OROP की मुख्य विशेषताएँ:
    • पेंशन का निर्धारण रैंक और सेवा की अवधि के आधार पर किया जाता है, जिससे सेवानिवृत्त लोगों के बीच निष्पक्षता सुनिश्चित होती है, साथ ही उन लोगों को भी सुरक्षा मिलती है जो पहले से ही औसत से अधिक राशि प्राप्त कर रहे हैं।
    • पेंशन संशोधन: सेवारत कर्मियों के वेतन और पेंशन में होने वाले बदलावों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक पाँच वर्ष में पेंशन का पुनर्निर्धारण किया जाएगा। पहला संशोधन 1 जुलाई 2019 को हुआ था।
    • वित्तीय निहितार्थ: OROP संशोधनों को लागू करने की अनुमानित लागत लगभग 8,450 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है।
    • लाभार्थी: इस योजना से 25.13 लाख से अधिक सशस्त्र बल पेंशनभोगी और उनके परिवार लाभान्वित होंगे।
      • इसमें पारिवारिक पेंशनभोगियों, युद्ध विधवाओं और विकलांग पेंशनभोगियों के लिये प्रावधान शामिल हैं।
      • उत्तर प्रदेश और पंजाब में OROP लाभार्थियों की संख्या सबसे अधिक है।
  • OROP पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
    • भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने OROP योजना की संवैधानिक वैधता की पुष्टि की तथा यह निर्धारित किया कि एक ही रैंक के कार्मिकों के लिये उनकी सेवानिवृत्ति तिथि के आधार पर अलग-अलग पेंशन देना मनमाना नहीं है।
      • इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि पेंशन में अंतर विभिन्न कारकों जैसे संशोधित सुनिश्चित कैरियर प्रगति (MACP) और आधार वेतन गणना से उत्पन्न होता है।

One_Rank_One_Pension

OROP के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  • कल्याण संवर्धन: OROP से दिग्गजों और उनके परिवारों की वित्तीय सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार होता है, तथा उनके समग्र कल्याण में योगदान मिलता है।
  • आर्थिक प्रभाव: पेंशन में वृद्धि से दिग्गजों की प्रयोज्य आय में वृद्धि हो सकती है, जिससे व्यय में वृद्धि के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • सामाजिक मान्यता: OROP का कार्यान्वयन सशस्त्र बलों के कर्मियों द्वारा किये गए बलिदान की सार्वजनिक स्वीकृति के रूप में कार्य करता है, तथा समाज में गौरव और सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है।
  • एक समान पेंशन: यह समान सेवा अवधि के साथ समान रैंक से सेवानिवृत्त होने वाले कार्मिकों के लिये समान पेंशन सुनिश्चित करता है, चाहे उनकी सेवानिवृत्ति तिथि कुछ भी हो।
  • वर्तमान मानकों के अनुरूप पेंशन का निर्धारण हर पाँच वर्ष में पुनः किया जाता है।

One_Rank_One_Pension

OROP योजना के कार्यान्वयन में क्या मुद्दे हैं?

  • उच्च लागत: कार्यान्वयन लागत प्रारंभिक अनुमान से काफी अधिक है, जिससे राजकोष पर असर पड़ता है।
    • उदाहरण: प्रारंभ में अनुमानित लागत 500 करोड़ रुपए थी, परंतु वास्तविक लागत 8000-10000 करोड़ रुपए के बीच है।
  • प्रशासनिक चुनौतियाँ: पात्र कार्मिकों के पिछले रिकॉर्ड को पुनः प्राप्त करने और सत्यापित करने में कठिनाइयाँ।
    • उदाहरण: सटीक लाभ प्रदान करने के लिये ऐतिहासिक सेवा रिकॉर्ड तक पहुँच और उसमें आने वाली चुनौतियाँ।
  • जटिल कार्यान्वयन: योजना को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने में प्रशासनिक, वित्तीय और कानूनी जटिलताएँ।
    • उदाहरण: सभी पात्र व्यक्तियों को पेंशन लाभ की निर्बाध डिलीवरी सुनिश्चित करने में कानूनी और तार्किक मुद्दे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के सशस्त्र बल कर्मियों के कल्याण पर वन रैंक वन पेंशन योजना के प्रभाव का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. NSSO के 70वें चक्र द्वारा संचालित “कृषक कुटुम्बों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण” के अनुसार निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजस्थान में ग्रामीण कुटुम्बों में कृषि कुटुम्बों का प्रतिशत सर्वाधिक है।
  2. देश के कुल कृषि कुटुम्बों में 60 प्रतिशत से कुछ अधिक ओबीसी के हैं।
  3. केरल में 60 प्रतिशत से कुछ अधिक कृषि कुटुम्बों ने यह सूचना दी कि उन्होंने अधिकतम आय गैर कृषि स्रोतों से प्राप्त की है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 2 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न: किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत स्तर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणत्ता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


शासन व्यवस्था

भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

सड़क दुर्घटना में मृत्यु, सड़क सुरक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र दशक की कार्रवाई, स्टॉकहोम घोषणा, ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (GBD) स्टडी, मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019, सड़क परिवहन अधिनियम, 2007, राष्ट्रीय राजमार्ग (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2000, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998, वैश्विक लक्ष्य 2030 को प्राप्त करने के लिये सड़क सुरक्षा पर तीसरा उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन

मेन्स के लिये:

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति, कारण और भारत में सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आँकड़ों ने भारत की सड़क सुरक्षा चुनौतियों की गंभीरता को उज़ागर किया है, जिसमें वर्ष 2030 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों को 50% तक कम करने की सरकार की प्रतिबद्धता के बावजूद सड़क दुर्घटनाओं और मृत्यु दर में वृद्धि दर्शाई गई है

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • कुल दुर्घटनाएँ और मौतें: 
    • भारत में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या विश्व स्तर पर सबसे अधिक है, यहाँ प्रति 10,000 किमी पर 250 मौतें होती हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (57), चीन (119) और ऑस्ट्रेलिया (11) की तुलना में अधिक है।
    • वर्ष 2023 में भारत में 4.80 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएँ दर्ज़ की गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप 1.72 लाख से अधिक मौतें हुईं, जो वर्ष 2022 में 1.68 लाख मौतों की तुलना में 2.6% की वृद्धि को दर्शाता है
    • वर्ष 2023 में लगभग 54,000 मौतें दोपहिया वाहन चालकों द्वारा हेलमेट न पहनने के कारण हुईं, 16,000 मौतें सीट बेल्ट का उपयोग न करने से संबंधित थीं, जबकि 12,000 मौतें वाहन में ओवरलोडिंग के कारण हुईं। 
      • इसके अतिरिक्त लगभग 34,000 दुर्घटनाओं में बिना वैध लाइसेंस वाले चालक शामिल थे।
  • दुर्घटना दर: 
    • वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में दुर्घटनाओं की संख्या में 4.2% की वृद्धि होगी।
    • औसतन, भारत में प्रतिदिन 1,317 सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं और 474 मौतें होती हैं, अर्थात हर घंटे 55 दुर्घटनाएँ और 20 मौतें होती हैं।
    • सड़क दुर्घटना की गंभीरता, जिसे प्रति 100 दुर्घटनाओं में मृत्यु दर के रूप में मापा जाता है, वर्ष 2022 में 36.5 से मामूली रूप से घटकर वर्ष 2023 में 36 हो गई।
  • जनसांख्यिकीय अंतर्दृष्टि:
    • वर्ष 2023 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं में  10,000 नाबालिग और 35,000 पैदल यात्रियों की मृत्यु हुई।
    • पैदल यात्रियों और दोपहिया वाहन चालकों की मृत्यु दर क्रमशः 44.8% और 20% है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • भारत में सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में है। 
      • वर्ष 2023 में, UP में 44,000 दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 23,650 मौतें हुईं, जिनमें 1,800 नाबालिग, 10,000 पैदल यात्री और दोपहिया वाहन उपयोगकर्त्ता शामिल थे। 
    • तेज गति से वाहन चलाने के कारण 8,726 लोगों की मृत्यु हुई।

Road_Accidents_in_India

भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के क्या कारण हैं?

  • मानव व्यवहार: भारत में सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण मानवीय भूल है, विशेषकर लापरवाही से वाहन चलाना और तेज गति से वाहन चलाना।
    • वर्ष 2023 में 68.1% मौतों के लिये तेज़ गति ज़िम्मेदार थी।
    • इसके अतिरिक्त, यातायात नियमों का पालन न करने, जैसे हेलमेट न पहनना और सीट बेल्ट न लगाना, के कारण हज़ारों लोगों की मृत्यु हुई है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: सड़क डिजाइन की खामियाँ, जैसे गड्ढे, उचित अंडरपास, फुट ओवरब्रिज की कमी और खराब रखरखाव वाली सड़कें दुर्घटनाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। 
  • दुर्घटना निगरानी प्रणाली का अभाव: भारत में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा डेटा प्रणालियाँ सार्वजनिक नीति को सूचित करने के लिये अपर्याप्त हैं। वर्तमान में, दुर्घटनाओं का पता लगाने के लिये दुर्घटना स्तर पर कोई राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं है।
  • वाहन-संबंधी मुद्दे: वाहनों में अपर्याप्त सुरक्षा सुविधाएँ, जैसे निम्नस्तरीय इंजीनियरिंग और पुरानी तकनीक, भी उच्च मृत्यु दर में योगदान करती हैं। 
  • जागरूकता और प्रवर्तन का अभाव: हस्तक्षेप के बावजूद, भारत में सड़क सुरक्षा नियमों के प्रवर्तन में अभी भी महत्त्वपूर्ण अंतराल है। 
    • कई भारतीयों को एयरबैग, एँटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम और सीट बेल्ट के उचित उपयोग जैसी सुरक्षा सुविधाओं के महत्त्व के बारे में सीमित जानकारी है ।
    • यद्यपि जन जागरूकता अभियान जारी हैं, लेकिन वे सड़क सुरक्षा की सुसंगत संस्कृति विकसित करने में सक्षम नहीं हैं।

भारत में सड़क सुरक्षा के लिये क्या पहल की गई हैं?

  • सरकारी पहल:
  • सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2014 में सड़क सुरक्षा पर तीन सदस्यीय न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन पैनल का गठन किया था, जिसने नशे में वाहन चलाने पर रोक लगाने के लिये राजमार्गों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
      • इसने राज्यों को हेलमेट पहनने संबंधी कानून लागू करने का भी निर्देश दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में सड़क सुरक्षा के संबंध में कई निर्देश जारी किये थे, जिनमें राज्य सड़क सुरक्षा परिषद का गठन, सड़क सुरक्षा कोष, जिला सड़क सुरक्षा समिति का गठन और स्कूलों के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में सड़क सुरक्षा शिक्षा को शामिल करना जैसे उपाय शामिल थे।
  • वैश्विक पहल:
    • सड़क सुरक्षा पर ब्रासीलिया घोषणा (2015): इस घोषणा का उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal- SDG) 3.6 को प्राप्त करना है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौतों और चोटों में 50% की कमी लाना है।
    • भारत ने इस पर वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किये थे।
    • सड़क सुरक्षा के लिये कार्रवाई का दशक 2021-2030: सड़क सुरक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई का दूसरा दशक 2021-2030 सड़क सुरक्षा में सुधार हेतु वैश्विक संकल्प के माध्यम से वर्ष 2030 तक सड़क यातायात मौतों और चोटों को कम-से-कम 50% तक कम करने पर केंद्रित है।
    • वैश्विक योजना स्टॉकहोम घोषणा के अनुरूप है, जो सड़क सुरक्षा के लिये समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर बल देती है।
  • ब्लूमबर्ग इनिशिएटिव फॉर ग्लोबल रोड सेफ्टी (BIGRS) 2020-2025: इस पहल का लक्ष्य सिद्ध, जीवन रक्षक उपायों की एक श्रृंखला को लागू करके निम्न और मध्यम आय वाले देशों और शहरों में सड़क यातायात से होने वाली मौतों और चोटों को कम करना है।

सड़क सुरक्षा पर सुंदर समिति की सिफारिशें

सुंदर समिति ने भारत में सड़क सुरक्षा में सुधार के लिये कई प्रमुख उपायों की सिफारिश की:

  • राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन बोर्ड: संसदीय अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वोच्च निकाय का निर्माण, जिसमें सड़क इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, यातायात कानून और चिकित्सा देखभाल के विशेषज्ञ शामिल होंगे
  • राज्य सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन बोर्ड: सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन पर स्थानीय प्राधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिये राज्य और केंद्रशासित प्रदेश स्तर पर समान बोर्डों की स्थापना।
  • राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा योजना: दुर्घटनाओं और मृत्यु दर को कम करने के लिये लक्ष्य, रणनीति तथा कार्रवाई के साथ एक व्यापक योजना का विकास।
  • दुर्घटना-पश्चात् देखभाल: आघात प्रबंधन में सुधार तथा डेटा संग्रहण और विश्लेषण के लिये राष्ट्रीय दुर्घटना डेटाबेस की स्थापना।
  • वित्तपोषण: डीजल और पेट्रोल से प्राप्त कुल उपकर में से 1% को सड़क सुरक्षा कोष हेतु निर्धारित किया जाए।

आगे की राह

  • सुरक्षित ड्राइविंग तकनीक: यातायात नियमों का पालन करना, सुरक्षित दूरी बनाए रखना तथा नियमित वाहन रखरखाव सुनिश्चित करना सड़क सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। सुरक्षात्मक ड्राइविंग, चौराहों पर सावधानी एवं सड़क की स्थिति के अनुकूल होने से दुर्घटनाओं में काफी कमी आ सकती है।
    • ऑस्ट्रेलिया में तीन-सेकंड नियम के तहत आगे चल रहे वाहन से उचित दूरी बनाए रखने का सुझाव दिया जाता है ताकि सुरक्षित रूप से रुकने हेतु पर्याप्त समय मिल सके एवं पीछे से होने वाली टक्कर से बचा जा सके।
  • जागरूकता बढ़ाना एवं नियमों का प्रवर्तन: सड़क सुरक्षा पर व्यापक जन जागरूकता अभियान के साथ-साथ यातायात नियमों का उचित प्रवर्तन भी महत्त्वपूर्ण है।
    • मानकीकृत ड्राइविंग लाइसेंस, नियमों के उल्लंघन हेतु जुर्माना तथा यातायात कानूनों के बारे में लोगों की बेहतर समझ से सुरक्षित ड्राइविंग को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
    • इसमें के.एस. राधाकृष्णन पैनल की सिफारिशों के अनुसार हेलमेट का अनिवार्य उपयोग, वाहन रखरखाव एवं राज्य सरकारों द्वारा नियमित सड़क सुरक्षा ऑडिट भी शामिल है।
  • बुनियादी ढाँचे में सुधार: सड़क के बुनियादी ढाँचे को उन्नत करना (जैसे गड्ढों को ठीक करना), यातायात संकेतों में सुधार करना एवं विभिन्न वाहनों हेतु अलग-अलग लेन बनाना आवश्यक है। 
    • वाहनों द्वारा वैश्विक सुरक्षा मानकों (जैसे कि यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित मानकों को) का अनुपालन किया जाए जिसमें आपातकालीन ब्रेकिंग प्रणाली जैसी उन्नत सुविधाएँ शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय डाटाबेस और प्रौद्योगिकी एकीकरण: सड़क दुर्घटनाओं की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग के लिये राष्ट्रीय दुर्घटना डाटाबेस के साथ AI-संचालित यातायात निगरानी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने से डाटा-संचालित नीति-निर्माण एवं प्रवर्तन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • सड़क सुरक्षा हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देना: परिवहन, स्वास्थ्य एवं विधि प्रवर्तन क्षेत्रों में समन्वित दृष्टिकोण अपनाते हुए सड़क सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • राज्य सरकार की सक्रिय भूमिका: चूंकि अधिकांश सड़कें राज्य, ज़िला और ग्रामीण सड़कें हैं, इसलिये राज्य सरकारों को सड़क रखरखाव सुनिश्चित करने, यातायात नियमों को लागू करने एवं सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढाँचे में सुधार करने के साथ सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के क्रम में आघात देखभाल को महत्त्व देना चाहिये।

निष्कर्ष

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है जिसके लिये सरकार एवं आम लोगों को तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 4E - शिक्षा, इंजीनियरिंग (सड़कों और वाहनों की), नियम प्रवर्तन तथा आपातकालीन देखभाल को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने से इसके मूल कारणों का समाधान किये जाने के साथ सड़क सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार किया जा सकता है। इन उपायों को प्राथमिकता देकर भारत में सड़क दुर्घटनाओं की उच्च दर को कम करने के साथ सभी के लिये सुरक्षित सड़क यातायात सुनिश्चित किया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

Q. भारत में सड़क दुर्घटनाओं में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा करते हुए सड़क यातायात की सुरक्षा में सुधार हेतु प्रभावी उपाय बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न: राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति वाहनों के संचालन के बजाय लोगों को ले जाने पर केंद्रित है। इस संबंध में सरकार की विभिन्न रणनीतियों की सफलता की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये। (2014)


भारतीय राजव्यवस्था

संसद सत्र को दिल्ली से बाहर आयोजित करने की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, संसद, संसद सदस्य (MP), भारत का संविधान, भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री 

मेन्स के लिये:

दिल्ली के बाहर संसद सत्र आयोजित करने संबंधी मुद्दा, संबंधित चिंताएँ, निहितार्थ एवं आगे की राह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में YSR कॉन्ग्रेस के एक सांसद ने दिल्ली की भीषण सर्दियों और गर्मियों में सांसदों के समक्ष आवागमन एवं जलवायु संबंधी चुनौतियों का हवाला देते हुए दक्षिण भारत में प्रतिवर्ष दो संसद सत्र आयोजित करने का प्रस्ताव रखा।

  • यह विचार (जिसे बी.आर. अंबेडकर और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रसिद्ध नेतृत्वकर्त्ताओं का ऐतिहासिक समर्थन प्राप्त है) अब नए सिरे से चर्चा का केंद्र बन गया है।

संसद सत्र को दिल्ली से बाहर आयोजित करने के संबंध में पूर्व में क्या मांग थी?

  • डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा समर्थित विचार:
    • संसदीय सत्रों के विकेंद्रीकरण का विचार डॉ. बी.आर. अंबेडकर (जिन्होंने दिल्ली के बाहर सत्र आयोजित करने का सुझाव दिया था) ने दिया था। 
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अपनी पुस्तक "भाषाई राज्यों पर विचार" में दो राजधानियों का प्रस्ताव दिया, जिसमें तर्क दिया गया कि दिल्ली ठंड और दूरी के कारण दक्षिण के लोगों हेतु सबसे असुविधाजनक है जिससे उन्हें उत्तर द्वारा शासित होने का एहसास होता है।
    • उन्होंने पड़ोसी देशों की बमबारी की सीमा में होने के कारण दिल्ली पर हमलों की आशंका को भी एक गंभीर रक्षा संबंधी मुद्दा बताया।
    • उन्होंने हैदराबाद को भारत की दूसरी राजधानी (विशेष रूप से गर्मियों के महीनों के लिये) के रूप में प्रस्तावित किया, क्योंकि यहाँ दिल्ली की तुलना में अनुकूल जलवायु होने से यह वर्ष भर संसदीय सत्रों हेतु उपयुक्त है। 
  • निजी सदस्य का प्रस्ताव:
    • नवंबर 1959 में गुड़गाँव के निर्दलीय सांसद प्रकाश वीर शास्त्री ने एक निजी प्रस्ताव पेश किया जिसमें दक्षिण भारत में लोकसभा का सत्र आयोजित करने का प्रस्ताव था, जिसमें हैदराबाद या बैंगलोर का सुझाव दिया गया था।
    • अटल बिहारी वाजपेयी, जो उस समय पहली बार सांसद बने थे, ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि यह “देश की एकता को मज़बूत करने के लिये बनाया गया है” और इसे “राजनीतिक चश्मे” से नहीं देखा जाना चाहिये।

संसद सत्र आयोजित करने की संवैधानिक स्थिति

  • भारत के संविधान में संसदीय सत्र आयोजित करने के लिये किसी विशिष्ट स्थान का प्रावधान नहीं है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85 राष्ट्रपति को संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर बुलाने का अधिकार देता है, जिसे वह उचित समझे, तथा यह सुनिश्चित करता है कि दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का समय का अंतराल न हो। 
  • हालाँकि, परंपरागत रूप से, सभी सत्र राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली स्थित संसद भवन में आयोजित किये जाते हैं।

संसद सत्र दिल्ली से बाहर आयोजित करने के पीछे क्या तर्क हैं?

  • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में वृद्धि: दक्षिण भारत में सत्र आयोजित करने से राष्ट्रीय नीति निर्माण में दक्षिणी राज्यों की दृश्यता और प्रतिनिधित्व में वृद्धि हो सकती है।
    • यह समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा, तथा यह सुनिश्चित करेगा कि सभी क्षेत्रों की आवाज सुनी जाए तथा उस पर विचार किया जाए।
  • जलवायु संबंधी विचार: दिल्ली में खराब मौसम की स्थिति प्रभावी शासन में बाधा डाल सकती है। अधिक अनुकूल जलवायु से सांसदों के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार हो सकता है, जिससे विधायी दक्षता में सुधार होगा।
  • सत्ता का विकेंद्रीकरण: यह पहल राजनीतिक सत्ता के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक कदम हो सकता है, जो इस लोकतांत्रिक सिद्धांत के अनुरूप है कि शासन सभी नागरिकों के लिये सुलभ होना चाहिये, चाहे उनकी भौगोलिक स्थिति कुछ भी हो।
  • ऐतिहासिक मिसाल: इसी तरह के प्रस्तावों के लिये ऐतिहासिक हस्तियों से प्राप्त समर्थन वर्तमान पहल को विश्वसनीयता प्रदान करता है, तथा यह सुझाव देता है कि यह एक दीर्घकालिक चिंता का विषय है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये।

बदलाव से क्या चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं?

  • रसद संबंधी बाधाएँ: संसदीय तंत्र, बुनियादी ढाँचे और कार्मिकों को दूसरे क्षेत्र में हस्तांतरित करना जटिल और संसाधन-गहन होगा।
    • आलोचकों ने इसे "थकाऊ" तथा समय एवं संसाधनों की बर्बादी बताया है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: आलोचकों का तर्क है कि यह कदम राष्ट्रीय एकता पर क्षेत्रीय पहचान को सुदृढ़ करके उत्तर-दक्षिण विभाजन को और गहरा कर सकता है।
  • संस्थागत इतिहास: संसद 75 वर्षों से अधिक समय से दिल्ली में संचालित हो रही है, लेकिन दक्षिणी राज्यों के संघ में एकीकरण पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। आलोचकों का सुझाव है कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के लिये मौजूदा तंत्र पर्याप्त हैं।

विभिन्न राजधानियों वाले देश कौन-से हैं?

  • दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका तीन राजधानियों के साथ संचालित होता है- प्रिटोरिया (प्रशासनिक), केप टाउन (विधायी) और ब्लोमफोंटेन (न्यायिक)। यह विभाजन भौगोलिक दृष्टि से सत्ता का विकेंद्रीकरण करता है, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता है और देश के विविध सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों को दर्शाता है।
  • मलेशिया की दोहरी राजधानियाँ: मलेशिया की प्रशासनिक राजधानी कुआलालंपुर है, प्रशासनिक एवं न्यायिक केंद्र पुत्रजय है। एक नियोजित शहर के रूप में पुत्रजय के विकास ने कुआलालंपुर में भीड़भाड़ को कम किया है, जो सरकारी कार्यों के लिये अधिक संगठित वातावरण प्रदान किया है।
  • स्विट्ज़रलैंड का विकेंद्रीकृत मॉडल: स्विट्ज़रलैंड ने विकेंद्रीकृत राजनीतिक संरचना को बनाए रखते हुए बर्न को अपना संघीय शहर घोषित किया है। यह प्रणाली महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय स्वायत्तता सुनिश्चित करती है, जो अपने विविध भाषाई और सांस्कृतिक समूहों के हितों को संतुलित करती है तथा राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देती है।
  • ऑस्ट्रेलिया की उद्देश्यपूर्ण राजधानी: कैनबरा उद्देश्यपूर्ण रूप से निर्मित और सिडनी एवं मेलबर्न के बीच रणनीतिक रूप से स्थित, ऑस्ट्रेलिया की राजधानी के रूप में कार्य करता है। इस निर्णय ने दो सबसे बड़े शहरों के बीच तटस्थता और एकता सुनिश्चित की, जो राष्ट्रीय शासन के लिये विचारशील योजना को दर्शाता है।

आगे की राह 

  • पायलट क्षेत्रीय सत्र: रसद संबंधी चुनौतियों और जनता की प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिये बंगलूरू या हैदराबाद जैसे दक्षिणी शहरों में कभी-कभी संसदीय समिति की बैठकें या शीतकालीन सत्र आयोजित करने की आवश्यकता है।
    • दिल्ली के बाहर आयोजित सत्रों की आवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ाई जाए।
  • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को सुदृढ़ करना: जनगणना सुधारों के बाद दक्षिणी राज्यों के लिये संसदीय सीटों में वृद्धि के माध्यम से अल्प प्रतिनिधित्व की समस्या को दूर करने से, बिना किसी व्यवधान के क्षेत्रीय समता को संतुलित किया जा सकता है।
  • सुगम्यता में वृद्धि: बेहतर संचार प्रौद्योगिकी और सुव्यवस्थित लॉजिस्टिक्स में निवेश से सभी क्षेत्रों के सांसदों के लिये सुगम एकीकरण सुनिश्चित हो सकता है, जिससे यात्रा और जलवायु संबंधी चुनौतियों में कमी आएगी।

निष्कर्ष

दक्षिण भारत में संसदीय सत्र आयोजित करने का प्रस्ताव क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और राजनीतिक विकेंद्रीकरण से संबंधित चल रही परिचर्चा को रेखांकित करता है। हालाँकि यह समावेशिता और जलवायु संबंधी चुनौतियों के बारे में वैध चिंताओं को उज़ागर करता है, लेकिन इसकी व्यवहार्यता पर सवाल उठाए जाते हैं। मौज़ूदा प्रणालियों को सुदृढ़ करने, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने और क्षेत्रीय पायलट सत्रों के आयोजन के साथ एक संतुलित दृष्टिकोण दक्षता से समझौता किये बगैर इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकता है। यह परिचर्चा एक समावेशी और लचीले भारत के लिये प्रशासनिक संरचनाओं की पुनः कल्पना करने का अवसर है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: दक्षिण भारत में संसद सत्र आयोजित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का मूल्यांकन कीजिये। इससे राष्ट्रीय एकीकरण और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी लोकसभा की अनन्य शक्तियाँ हैं? (2022)

  1. आपात की उद्घोषणा का अनुसमर्थन करना।
  2. मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करना।
  3. भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1 और 2 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 3 
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. आपकी दृष्टि में भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2