राजस्थान Switch to English
राजस्थान में दुर्लभ मृदा खनिज उत्पादन
चर्चा में क्यों?
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (AMD) द्वारा किये गए सर्वेक्षणों से राजस्थान के बालोतरा स्थित सिवाना तहसील के भाटी खेड़ा में दुर्लभ मृदा खनिजों के बड़े भंडार का पता चला है।
- सर्वेक्षणों, प्रौद्योगिकी तथा आधारभूत ढाँचे में हो रही प्रगति के चलते, राजस्थान निकट भविष्य में वैश्विक दुर्लभ मृदा खनिज बाज़ार का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन सकता है।
मुख्य बिंदु
राजस्थान में दुर्लभ मृदा भंडार के बारे में:
- भारत का पहला हार्ड रॉक दुर्लभ खनिज ब्लॉक:
- बालोतरा के भाटी खेड़ा में दुर्लभ मृदा खनिजों का महत्त्वपूर्ण भंडार है, जो आधुनिक प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण 17 उच्च-मांग वाले तत्त्वों की उपस्थिति की पुष्टि करता है।
- यह देश का पहला ऐसा ब्लॉक बनने जा रहा है, जिसमें कठोर चट्टान ग्रेनाइट में दुर्लभ मृदा खनिज मौजूद होंगे, जो खनिज निष्कर्षण के लिये अधिक चुनौतीपूर्ण माना जाता है।
- जी2 स्तर के सर्वेक्षण से इन खनिजों के बड़े भंडार की पुष्टि होती है, जिससे यह एक महत्त्वपूर्ण खोज बन गई है।
- सर्वेक्षण और खनन प्रक्रिया:
- GSI तथा AMD द्वारा बालोतरा और जालोर ज़िलों में विस्तृत सर्वेक्षण किया गया है। भाटी खेड़ा में सर्वेक्षण लगभग पूर्ण होने के निकट है।
केंद्र सरकार शीघ्र ही इन खनिजों के खनन पट्टों की नीलामी करेगी, जिससे निजी कंपनियों तथा राज्य एजेंसियों के लिये अवसर खुलेंगे। - चूँकि भाटी खेड़ा के आसपास कोई वन्यजीव अभयारण्य या संरक्षित क्षेत्र नहीं है, अतः यहाँ पर्यावरणीय या स्थानीय स्तर की चुनौतियाँ न्यूनतम हैं।
- GSI तथा AMD द्वारा बालोतरा और जालोर ज़िलों में विस्तृत सर्वेक्षण किया गया है। भाटी खेड़ा में सर्वेक्षण लगभग पूर्ण होने के निकट है।
दुर्लभ मृदा खनिजों के बारे में
- दुर्लभ मृदा खनिज वे खनिज हैं, जिनमें एक या एक से अधिक दुर्लभ मृदा तत्त्व (Rare Earth Elements - REEs) प्रमुख धात्विक घटक के रूप में उपस्थित होते हैं।
- दुर्लभ मृदा तत्त्वों में आवर्त सारणी के 15 लैंथनाइड, स्कैन्डियम और यट्रियम शामिल हैं।
- इनका उपयोग उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक्स, मैग्नेट्स, नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों तथा रक्षा क्षेत्र में किया जाता है।
- महत्त्वपूर्ण खनिज:
- वे खनिज जो किसी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति, तकनीकी विकास या राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु आवश्यक होते हैं तथा जिनकी आपूर्ति बाधित हो सकती है, उन्हें 'महत्त्वपूर्ण खनिज' कहा जाता है।
- इनकी आपूर्ति पर संकट उन स्थितियों में उत्पन्न हो सकता है जब इनका खनन या प्रसंस्करण केवल कुछ ही क्षेत्रों में केंद्रित हो या किसी भू-राजनीतिक जोखिम के अधीन हो।
भारत ने 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान की है, जिनमें एंटिमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट और जर्मेनियम प्रमुख हैं। - चीन इन खनिजों के वैश्विक प्रसंस्करण पर प्रभुत्व रखता है तथा दुर्लभ मृदा खनिजों की प्रसंस्करण क्षमता का लगभग 80-90% नियंत्रित करता है।
- भारत इन महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये विशेष रूप से चीन पर निर्भर है।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों पर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये भारत की पहल:
उत्तर प्रदेश Switch to English
आपदा प्रबंधन को प्रभावी बनाने हेतु UNDP के साथ साझेदारी
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के राहत आयुक्त कार्यालय ने राज्य में आपदा प्रबंधन को अधिक प्रभावी और वैज्ञानिक बनाने के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के साथ एक सहयोग ज्ञापन (MoA) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
मुख्य बिंदु:
सहयोग ज्ञापन (MoA) के बारे में:
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रमों को लागू करना, राज्य की संस्थागत क्षमता को सशक्त बनाना तथा एक तकनीकी दृष्टिकोण पर आधारित बहु-स्तरीय आपदा प्रबंधन प्रणाली का विकास करना है।
- यह समग्र आपदा प्रबंधन कार्यक्रम राज्य को एक मज़बूत जोखिम न्यूनीकरण ढाँचे से सुसज्जित करेगा और संभावित आपदाओं के प्रति तैयारी को बढ़ाएगा।
- इसके अंतर्गत राज्य में आपदा जोखिम न्यूनीकरण उपायों को लागू किया जाएगा, जिससे एक समावेशी, उत्तरदायी तथा प्रभावी आपदा प्रबंधन प्रणाली का निर्माण सुनिश्चित हो सके।
- कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ:
- उत्तर प्रदेश के सभी 75 ज़िलों तथा 15 प्रमुख राज्य विभागों के लिये आपदा प्रबंधन योजनाओं का निर्माण किया जाएगा।
- 20 प्रमुख नगरों के लिये विस्तृत जोखिम मूल्यांकन एवं असुरक्षा अध्ययन किये जाएंगे तथा इन शहरों के लिये शहरी आपदा प्रबंधन योजनाएँ तैयार की जाएंगी।
- 10 राज्य विभागों के लिये विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (DPRs) तैयार किये जाएंगे।
- तकनीकी सुधार:
- राज्य की आपदा सूचना प्रणाली का एकीकरण करके सशक्त किया जाएगा।
- इसके लिये कार्यशालाओं, ICT उपकरणों की उपलब्धता तथा राहत आयुक्त कार्यालय में परियोजना प्रबंधन इकाई (PMU) की स्थापना की जाएगी ताकि समन्वय प्रभावी ढंग से सुनिश्चित हो सके।
- बजट और कार्यान्वयन:
- उत्तर प्रदेश सरकार ने आगामी तीन वर्षों के लिये इस कार्यक्रम के चरणबद्ध क्रियान्वयन हेतु 19.99 करोड़ रुपए के बजट को मंज़ूरी दी है।
- कार्यक्रम का कार्यान्वयन UNDP के तकनीकी प्रस्तावों के अनुसार किया जाएगा तथा इसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की सिफारिशों के अनुरूप संरेखित किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के बारे में
- परिचय:
- यह संयुक्त राष्ट्र का वैश्विक विकास नेटवर्क है, जो परिवर्तन का समर्थन करता है और लोगों को बेहतर जीवन बनाने में मदद करने के लिये देशों को ज्ञान, अनुभव तथा संसाधनों से जोड़ता है।
- स्थापना एवं मुख्यालय:
- UNDP की स्थापना वर्ष 1965 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आधिकारिक रूप से की गई थी।
- इसका गठन संयुक्त राष्ट्र विस्तारित तकनीकी सहायता कार्यक्रम (1949) और संयुक्त राष्ट्र विशेष कोष (1958) को मिलाकर किया गया था।
- इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क शहर में है, लेकिन यह मुख्य रूप से लगभग 170 देशों और क्षेत्रों में स्थित अपने कार्यालयों के माध्यम से कार्य करता है।
- वैश्विक उपस्थिति एवं कार्य पद्धति:
- यह लगभग 170 देशों और क्षेत्रों में ज़मीनी स्तर पर कार्य करता है, जहाँ यह विकास संबंधी चुनौतियों के लिये स्थानीय समाधानों को समर्थन प्रदान करता है तथा ऐसी राष्ट्रीय तथा स्थानीय क्षमताओं का निर्माण करता है, जो उन्हें मानव विकास व सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में सक्षम बनाएँ।
- मुख्य कार्यक्षेत्र: UNDP का कार्य तीन प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है:
उत्तराखंड Switch to English
हरेला उत्सव
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड ने हरेला पर्व के अवसर पर राज्य में 8.13 लाख से अधिक पौधे लगाकर एक नया कीर्तिमान बनाया, मुख्यमंत्री ने रुद्राक्ष का पौधा लगाकर अभियान का शुभारंभ किया।
मुख्य बिंदु
हरेला महोत्सव के बारे में:
- परिचय:
- यह उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार है और यह हिंदू माह श्रावण में मानसून के मौसम और बुवाई चक्र की शुरुआत का प्रतीक है।
- कुमाऊँ क्षेत्र और गढ़वाल के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला यह एक धार्मिक एवं कृषि संबंधी त्योहार है, जो प्रकृति तथा कृषि के प्रति आस्था पर आधारित है।
- कृषि महत्त्व:
- राज्य भर के परिवार दस दिन पहले से ही जौ, मक्का और सरसों जैसे बीज बोकर इस त्योहार की तैयारी करते हैं।
- ये बीज अंकुरित होकर हरे अंकुर बनाते हैं जिन्हें हरेला कहा जाता है, जिन्हें प्रतीकात्मक रूप से काटा जाता है और परिवार के सदस्यों के सिर पर समृद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य के आशीर्वाद के रूप में रखा जाता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान:
- यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के दिव्य विवाह का भी स्मरण कराता है तथा कई घरों एवं मंदिरों में अनुष्ठानिक पूजा के लिये मिट्टी की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। भक्त अच्छी फसल, पर्यावरण सद्भाव और सामुदायिक कल्याण के लिये प्रार्थना करते हैं।
- उत्सव और कार्यक्रम:
- पारंपरिक लोकगीत, नृत्य और स्थानीय मेले कस्बों तथा गाँवों में मनाए जाते हैं, जिनमें अल्मोड़ा एवं नैनीताल में हरेला मेला जैसे कार्यक्रम शामिल हैं।
- बच्चे गेडी नामक बाँस के खेल में भाग लेते हैं, जबकि बुज़ुर्ग त्योहार मनाने के लिये सदियों पुरानी परंपराओं को निभाते हैं।
- आधुनिक समय में महत्त्व:
- पहाड़ी क्षेत्रों में मुख्य रूप से हिंदू समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्योहार मानव और प्रकृति के बीच गहरे संबंधों की याद दिलाता है।
- कृषि, धार्मिक और पारिस्थितिक विषयों के मिश्रण के साथ, इस त्योहार का महत्त्व पिछले कुछ वर्षों में एक सांस्कृतिक परंपरा तथा सार्वजनिक पर्यावरण आंदोलन दोनों के रूप में बढ़ गया है।
वृक्षारोपण अभियान के बारे में
- "हरेला मनाओ, धरती माता का ऋण चुकाओ" पौधारोपण अभियान के अंतर्गत 13 ज़िलों में कुल 8.13 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया गया, जो राज्य में किसी एक त्योहार के दौरान अब तक का सबसे बड़ा पौधारोपण प्रयास रहा।
- यह अभियान प्रधानमंत्री की "एक पेड़ माँ के नाम" पहल के अनुरूप आयोजित किया गया।
- इस अभियान में स्थानीय प्रशासन, वन विभाग, स्वयं सेवी संस्थाएँ (NGOs), महिला समूह तथा युवाओं की सक्रिय भागीदारी रही।
- गाँवों, कस्बों, शहरों, विद्यालयों और आँगनवाड़ी केंद्रों में यह पौधारोपण अभियान व्यापक रूप से संचालित किया गया।
"एक पेड़ माँ के नाम" पहल
- शुभारंभ:
- विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 2024) पर, प्रधानमंत्री ने पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी को माताओं के प्रति सम्मान के साथ जोड़ते हुए 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान का शुभारंभ किया।
- इस अभियान का उद्घाटन दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में पीपल का पेड़ लगाकर किया गया।
- वृक्षारोपण का प्रतीकात्मक संकेत:
- यह अभियान लोगों को अपनी माँ के नाम पर एक पेड़ लगाने के लिये प्रोत्साहित करता है, जो पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते हुए माताओं की पोषणकारी भूमिका के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि का प्रतीक है।
- पेड़, माताओं की तरह ही, जीवनयापन, सुरक्षा और भावी पीढ़ियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- सतत् विकास में योगदान:
- यह पहल भारत के सतत् विकास के व्यापक प्रयासों के अनुरूप है तथा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और भावी पीढ़ियों के लिये स्थायी विरासत बनाने में व्यक्तिगत कार्यों तथा सामूहिक प्रयासों दोनों की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
नमस्ते दिवस
चर्चा में क्यों?
‘नेशनल एक्शन फॉर मेकनाइज़्ड सैनीटेशन इकोसिस्टम (NAMASTE) दिवस’ (16 जुलाई) के अवसर पर, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ने लखनऊ में कचरा बीनने वालों के लिये हेल्पलाइन (14473) का उद्घाटन किया, साथ ही सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों (SSWs) तथा कचरा बीनने वालों को PPE किट एवं आयुष्मान कार्ड वितरित किये।
मुख्य बिंदु
नमस्ते योजना के बारे में:
- नमस्ते योजना सरकार द्वारा एक मानव-केंद्रित पहल है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी सफाई कर्मचारी को सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई जैसे खतरनाक मैनुअल काम में शामिल न होना पड़े।
- इस योजना का उद्देश्य सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों (SSWs) की कार्य स्थितियों में सुधार लाना तथा विभिन्न सहायता उपायों के माध्यम से उनके कल्याण को बढ़ावा देना है।
- कार्यान्वयन और अवधि:
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा आवास एवं शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की गई इस योजना का कार्यान्वयन राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम (NSKFDC) द्वारा किया जा रहा है।
- 349.73 करोड़ रुपए के बजट वाली यह योजना वित्त वर्ष 2023-24 से 2025-26 तक चलेगी और देश के 4800 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को कवर करेगी।
- यह योजना हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास की स्वरोज़गार योजना (SRMS) का स्थान लेती है।
- सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों (SSWs) के लिये प्रमुख अधिकार:
- यह योजना SSWs के लिये उनकी सुरक्षा, कल्याण और स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न अधिकार प्रदान करती है:
- डिजिटल प्रोफाइलिंग के माध्यम से कर्मियों की पहचान की जा रही है।
- कार्य के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट का प्रावधान।
- आवश्यक सुरक्षा उपकरणों और संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- श्रमिकों की सुरक्षा और कौशल बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण प्रदान करना।
- SSWs के लिये व्यापक स्वास्थ्य बीमा सुनिश्चित करना।
- इस योजना का उद्देश्य सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों (SSW) के लिये आजीविका के अवसर भी सृजित करना है:
- जिसके तहत स्वच्छता से संबंधित वाहन और मशीनें रियायती दरों पर उपलब्ध कराई जा रही हैं तथा SSWs को क्षमता निर्माण पहलों द्वारा अपने स्वयं के स्वच्छता व्यवसाय शुरू करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- यह योजना SSWs के लिये उनकी सुरक्षा, कल्याण और स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न अधिकार प्रदान करती है:
मैनुअल स्कैवेंजिंग:
- मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) या हाथ से मैला ढोने को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों एवं सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- मैनुअल स्कैवेंजर वह व्यक्ति होता है, जिसे अस्वास्थ्यकर शौचालयों, खुली नालियों, गड्ढों या रेलवे पटरियों से मानव मल को पूरी तरह से सड़ने से पहले हाथ से साफ करने, ले जाने या संभालने के लिये नियुक्त किया जाता है, जैसा कि 'मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोज़गार का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम (PEMSR), 2013' में परिभाषित किया गया है।
- भारत ने PEMSR अधिनियम, 2013 के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है, जो मैनुअल स्कैवेंजिंग को एक "अमानवीय प्रथा" मानता है और इसका उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजरों द्वारा सहन किये गए ऐतिहासिक अन्यायों को दूर करना है।
- सरकारी पहल और योजनाएँ:
- सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज
- स्वच्छता अभियान ऐप
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
- स्वच्छता उद्यमी योजना
- पूर्व शिक्षा की मान्यता (RPL)
- स्वच्छ भारत मिशन 2.0
हरियाणा Switch to English
हरियाणा में 2,000 वर्ष पुराना बौद्ध स्थल
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर की एक टीम ने हरियाणा के यमुनानगर ज़िले में मिट्टी के नीचे दबे प्राचीन बौद्ध स्तूपों और संरचनात्मक अवशेषों के संकेत खोजे हैं।
मुख्य बिंदु
शोध निष्कर्षों के बारे में:
- प्राचीन संरचनाओं की खोज:
- उन्नत ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक का उपयोग करके सतह से लगभग 6 से 7 फीट नीचे गोलाकार संरचनाओं, दीवारों और कक्ष जैसे कमरों सहित प्राचीन संरचनाओं के संकेत पाए गए।
- यह लगभग 2,000 वर्ष पुराने बौद्ध स्थल की संभाव्यता की ओर संकेत करता है।
- सर्वेक्षण और स्थान:
- हरियाणा राज्य पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्रारंभ किये गए इस सर्वेक्षण का उद्देश्य टोपरा कलाँ और आस-पास के गाँवों जैसे क्षेत्रों में ऐतिहासिक अवशेषों को उजागर करना था, जहाँ कभी-कभी पुरानी ईंटें प्राप्त होती हैं, जो संभावित पुरातात्त्विक महत्त्व की ओर संकेत करती हैं।
- बौद्ध स्तूप के साक्ष्य:
- जी.पी.आर. रीडिंग से अर्द्ध -वृत्ताकार संरचनाओं का पता चला, जिससे शोधकर्त्ताओं ने प्राचीन स्तूप की उपस्थिति की परिकल्पना की।
- पुरातत्त्व अधिकारियों ने इस परिकल्पना की पुष्टि करते हुए स्तूप की संभावित खोज को भी प्रमाणित किया है।
- महत्व:
- स्थानीय मौखिक परंपराओं के अनुसार, ये निष्कर्ष बौद्ध युग या महाभारत काल से संबंधित हो सकते हैं।
- ये उपमहाद्वीप में प्राचीन व्यापार मार्गों, धार्मिक नेटवर्कों तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
- यदि आगे की खुदाई में इसी प्रकार की संरचनाएँ प्राप्त होती हैं, तो यह इस प्राचीन संस्कृति के व्यापक प्रभाव को प्रमाणित कर सकती है।
भारत के अन्य प्रमुख बौद्ध स्थल
- बिहार:
- बोधगया वह स्थान है, जहाँ सिद्धार्थ गौतम को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- महाबोधि मंदिर, जो वर्ष 2002 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, वह स्थान है, जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- वैशाली में बुद्ध ने अपने महापरिनिर्वाण की घोषणा की थी और अंतिम उपदेश दिया था।
- नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रसिद्ध प्राचीन शिक्षा केंद्र था, जहाँ दुनियाभर से बौद्ध विद्वान एकत्र होते थे।
- बोधगया वह स्थान है, जहाँ सिद्धार्थ गौतम को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- उत्तर प्रदेश:
- सारनाथ में बुद्ध ने अपने प्रथम पाँच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था, जिसमें उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का वर्णन किया था।
- धमेख स्तूप (सारनाथ) वह स्थल है, जहाँ बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था।
- कुशीनगर वह स्थान है जहाँ बुद्ध ने महापरिनिर्वाण (अंतिम निर्वाण) प्राप्त किया था।
- रामभर स्तूप (कुशीनगर) को वह स्थान माना जाता है जहाँ बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था।
- हिमाचल प्रदेश:
- धर्मशाला, विशेषकर मैक्लॉडगंज, तिब्बती निर्वासित सरकार और दलाई लामा का मुख्यालय है। यह तिब्बती बौद्धों का प्रमुख केंद्र है।
- महाराष्ट्र:
- एलोरा गुफाएँ एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल हैं, जिनमें बौद्ध, हिंदू और जैन परंपराओं से संबंधित शिलानिर्मित मंदिर तथा प्रतिमाएँ हैं।
- अजंता गुफाएँ अपनी प्राचीन बौद्ध विहारों और बुद्ध के जीवन पर आधारित भित्ति चित्रों के लिये प्रसिद्ध हैं।
- मध्य प्रदेश:
- साँची स्तूप एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है, जो अपने बौद्ध स्तूपों, विहारों और स्तंभों के लिये जाना जाता है।
हरियाणा Switch to English
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय ने गुरुग्राम में भारत परिसर खोला
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ मिलकर हरियाणा के गुरुग्राम में साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के भारत परिसर का उद्घाटन किया।
मुख्य बिंदु
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के परिसर के बारे में:
- भारत के शिक्षा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि:
- QS शीर्ष 100 वैश्विक संस्थानों में शामिल तथा ब्रिटेन के रसेल समूह का संस्थापक सदस्य साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के (भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम, 2023 के अंतर्गत भारत में परिसर संचालित करने वाला पहला विदेशी विश्वविद्यालय बन गया है।
- गुरुग्राम में विश्वविद्यालय के परिसर का उद्घाटन भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण क्षण को चिह्नित करता है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के पाँच वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक स्मरणीय उपलब्धि के रूप में मनाया जा रहा है।
- NEP 2020 के तहत शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण:
- केंद्रीय मंत्री ने इस कार्यक्रम को भारत-UK सहयोग के शिक्षा स्तंभ को मज़बूत करने वाला बताया, जो भारत-UK रोडमैप 2030 के अनुरूप है।
- परिसर की पेशकश और कार्यक्रम:
- गुरुग्राम परिसर में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम संचालित किये जाएंगे, जिनके अंतर्गत विद्यार्थियों को UK या मलेशिया स्थित विश्वविद्यालय के परिसरों में एक वर्ष तक अध्ययन करने का अवसर मिलेगा।
नोट:
- भारत भी वैश्विक उपस्थिति का विस्तार कर रहा है, जैसे कि IIT मद्रास द्वारा ज़ांज़ीबार में और IIT दिल्ली द्वारा अबू धाबी में परिसर स्थापित किया गया है।
UGC (FHEI) विनियम, 2023 के बारे में:
- UGC (FHEI) विनियम, 2023 ने विश्व के शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी शाखाएँ स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
- यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के अनुरूप है, जो भारत में शीर्ष वैश्विक विश्वविद्यालयों के लिये एक विधायी ढाँचा प्रस्तुत करती है।
- NEP 2020 में उल्लेख किया गया है कि विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में से चयनित संस्थानों को भारत में संचालन की सुविधा प्रदान की जाएगी।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC):
- UGC भारत का एक संवैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना वर्ष 1953 में उच्च शिक्षा के समन्वय, निर्धारण और गुणवत्ता बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी।
- यह आयोग UGC अधिनियम, 1956 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था।
- UGC के प्रमुख कार्यों में विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करना, वित्तीय सहायता देना तथा उच्च शिक्षा से संबंधित मामलों में सरकार को परामर्श देना शामिल है।
- UGC का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।