उत्तराखंड
हरेला उत्सव
- 17 Jul 2025
- 5 min read
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड ने हरेला पर्व के अवसर पर राज्य में 8.13 लाख से अधिक पौधे लगाकर एक नया कीर्तिमान बनाया, मुख्यमंत्री ने रुद्राक्ष का पौधा लगाकर अभियान का शुभारंभ किया।
मुख्य बिंदु
हरेला महोत्सव के बारे में:
- परिचय:
- यह उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार है और यह हिंदू माह श्रावण में मानसून के मौसम और बुवाई चक्र की शुरुआत का प्रतीक है।
- कुमाऊँ क्षेत्र और गढ़वाल के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला यह एक धार्मिक एवं कृषि संबंधी त्योहार है, जो प्रकृति तथा कृषि के प्रति आस्था पर आधारित है।
- कृषि महत्त्व:
- राज्य भर के परिवार दस दिन पहले से ही जौ, मक्का और सरसों जैसे बीज बोकर इस त्योहार की तैयारी करते हैं।
- ये बीज अंकुरित होकर हरे अंकुर बनाते हैं जिन्हें हरेला कहा जाता है, जिन्हें प्रतीकात्मक रूप से काटा जाता है और परिवार के सदस्यों के सिर पर समृद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य के आशीर्वाद के रूप में रखा जाता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान:
- यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के दिव्य विवाह का भी स्मरण कराता है तथा कई घरों एवं मंदिरों में अनुष्ठानिक पूजा के लिये मिट्टी की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। भक्त अच्छी फसल, पर्यावरण सद्भाव और सामुदायिक कल्याण के लिये प्रार्थना करते हैं।
- उत्सव और कार्यक्रम:
- पारंपरिक लोकगीत, नृत्य और स्थानीय मेले कस्बों तथा गाँवों में मनाए जाते हैं, जिनमें अल्मोड़ा एवं नैनीताल में हरेला मेला जैसे कार्यक्रम शामिल हैं।
- बच्चे गेडी नामक बाँस के खेल में भाग लेते हैं, जबकि बुज़ुर्ग त्योहार मनाने के लिये सदियों पुरानी परंपराओं को निभाते हैं।
- आधुनिक समय में महत्त्व:
- पहाड़ी क्षेत्रों में मुख्य रूप से हिंदू समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्योहार मानव और प्रकृति के बीच गहरे संबंधों की याद दिलाता है।
- कृषि, धार्मिक और पारिस्थितिक विषयों के मिश्रण के साथ, इस त्योहार का महत्त्व पिछले कुछ वर्षों में एक सांस्कृतिक परंपरा तथा सार्वजनिक पर्यावरण आंदोलन दोनों के रूप में बढ़ गया है।
वृक्षारोपण अभियान के बारे में
- "हरेला मनाओ, धरती माता का ऋण चुकाओ" पौधारोपण अभियान के अंतर्गत 13 ज़िलों में कुल 8.13 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया गया, जो राज्य में किसी एक त्योहार के दौरान अब तक का सबसे बड़ा पौधारोपण प्रयास रहा।
- यह अभियान प्रधानमंत्री की "एक पेड़ माँ के नाम" पहल के अनुरूप आयोजित किया गया।
- इस अभियान में स्थानीय प्रशासन, वन विभाग, स्वयं सेवी संस्थाएँ (NGOs), महिला समूह तथा युवाओं की सक्रिय भागीदारी रही।
- गाँवों, कस्बों, शहरों, विद्यालयों और आँगनवाड़ी केंद्रों में यह पौधारोपण अभियान व्यापक रूप से संचालित किया गया।
"एक पेड़ माँ के नाम" पहल
- शुभारंभ:
- विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 2024) पर, प्रधानमंत्री ने पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी को माताओं के प्रति सम्मान के साथ जोड़ते हुए 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान का शुभारंभ किया।
- इस अभियान का उद्घाटन दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में पीपल का पेड़ लगाकर किया गया।
- वृक्षारोपण का प्रतीकात्मक संकेत:
- यह अभियान लोगों को अपनी माँ के नाम पर एक पेड़ लगाने के लिये प्रोत्साहित करता है, जो पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते हुए माताओं की पोषणकारी भूमिका के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि का प्रतीक है।
- पेड़, माताओं की तरह ही, जीवनयापन, सुरक्षा और भावी पीढ़ियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- सतत् विकास में योगदान:
- यह पहल भारत के सतत् विकास के व्यापक प्रयासों के अनुरूप है तथा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और भावी पीढ़ियों के लिये स्थायी विरासत बनाने में व्यक्तिगत कार्यों तथा सामूहिक प्रयासों दोनों की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।