शासन व्यवस्था
भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में परिवर्तन
- 07 Jul 2025
- 35 min read
यह एडिटोरियल 07/07/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “When government cares, healthcare makes strides” पर आधारित है। यह लेख पिछले 11 वर्षों में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को सामने लाता है, जिसमें 1.77 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, भारतीय चिकित्सा परिषद, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, मेन्स के लिये:भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का विनियमन, भारतीय स्वास्थ्य सेवा से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
पिछले 11 वर्षों में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जो बुनियादी अवसंरचना की कमी और संसाधनों की कमी से ग्रस्त प्रणाली से विकसित होकर सभी नागरिकों के लिये व्यापक, सुलभ देखभाल पर केंद्रित हो गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन इस क्रांति की आधारशिला के रूप में उभरा है, जिसने 1.77 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्थापित किये हैं और देश भर में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाया है। यह फाउंडेशन भारत को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अपने महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये तैयार करता है, जो देश के हर कोने तक सस्ती, न्यायसंगत एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक बदलाव को दर्शाता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की वर्तमान संरचना क्या है?
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा चिकित्सा सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये संपर्क का पहला बिंदु है। यह रोकथाम, स्वास्थ्य शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
- शासन:
- राज्य और ज़िला स्तर: मुख्य रूप से राज्य सरकारों द्वारा ज़िला स्वास्थ्य प्राधिकरणों और पंचायतों जैसे स्थानीय शासन निकायों के माध्यम से प्रबंधित किया जाता है।
- सेवा प्रदाता: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) उप-केंद्र और स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWC)।
- प्रमुख क्षेत्र: टीकाकरण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, बाह्य रोगी देखभाल, मलेरिया जैसी सामान्य बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य शिक्षा।
- द्वितीयक स्वास्थ्य देखभाल: द्वितीयक स्वास्थ्य देखभाल में विशिष्ट चिकित्सा देखभाल शामिल होती है जो आमतौर पर ज़िला अस्पतालों या क्षेत्रीय केंद्रों में प्रदान की जाती है।
- शासन:
- राज्य स्तर: ज़िला और क्षेत्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरणों के माध्यम से राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित। कुछ विशेष अस्पताल कुछ स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- सेवा प्रदाता: ज़िला अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और विशेष क्लिनिक।
- तृतीयक स्वास्थ्य सेवा: तृतीयक स्वास्थ्य सेवा अत्यधिक विशिष्ट सेवाएँ प्रदान करती है, आमतौर पर जटिल स्थितियों के लिये जिनके लिये उन्नत उपचार की आवश्यकता होती है।
- शासन:
- केंद्र और राज्य सरकारें: केंद्रीय और राज्य दोनों मंत्रालयों द्वारा प्रबंधित। AIIMS और PGIMER जैसे प्रमुख संस्थान केंद्रीय शासन के अधीन हैं।
- सेवा प्रदाता: विशिष्ट अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और अनुसंधान संस्थान।
- प्रमुख क्षेत्र: कैंसर, अंग प्रत्यारोपण, जटिल सर्जरी और उच्च स्तरीय निदान जैसे रोगों के लिये उन्नत उपचार।
- नियामक निकाय: भारत में स्वास्थ्य देखभाल के विभिन्न पहलुओं की देखरेख के लिये कई नियामक प्राधिकरण हैं:
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO): भारत में दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और सौंदर्य प्रसाधनों को विनियमित करता है तथा उनकी सुरक्षा, प्रभावकारिता एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
- भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI): आरंभ यह चिकित्सा शिक्षा और पेशेवर अभ्यास मानकों की देखरेख के लिये जिम्मेदार थी, हालाँकि अब इसे भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के तहत राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) का गठन किया गया है। NMC अब चिकित्सा शिक्षा, लाइसेंसिंग और पेशेवर नैतिकता को नियंत्रित करता है।
- फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI): यह भारत में फार्मेसी की शिक्षा और प्रैक्टिस को विनियमित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि फार्मासिस्ट आवश्यक मानकों को पूरा करें।
- अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (NABH): गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों के आधार पर अस्पतालों एवं स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रत्यायन प्रदान करता है।
- भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI): स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों को विनियमित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि वे उपभोक्ताओं के लिये निष्पक्ष और पारदर्शी हों।
- प्रमुख स्वास्थ्य देखभाल नीतियाँ और अधिनियम: भारत सरकार ने स्वास्थ्य देखभाल वितरण को विनियमित करने के लिये विभिन्न कानून और नीतियाँ बनाई हैं:
- भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम (1956) और उसका उत्तरोत्तर, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम (2019) चिकित्सा पद्धति एवं चिकित्सा शिक्षा मानकों को विनियमित करते हैं।
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम (1940): यह अधिनियम भारत में औषधियों और सौंदर्य प्रसाधनों के आयात, निर्माण, वितरण एवं बिक्री को नियंत्रित करता है।
- नैदानिक प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम (2010): यह अधिनियम स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों के पंजीकरण और विनियमन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल मानकों को सुनिश्चित किया जा सके।
- भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम (1947): नर्सों और दाइयों (प्रसाविकाओं) की शिक्षा एवं अभ्यास को विनियमित करता है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017): भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिये रोडमैप तैयार करती है, जो सभी नागरिकों को सुलभ, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने पर केंद्रित है।
- स्वास्थ्य सेवा विनियमन में हालिया विकास: भारत ने आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) की शुरुआत के साथ स्वास्थ्य सेवा विनियमन में प्रगति की है जिसका उद्देश्य एक एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
- सुरक्षित और वैध ऑनलाइन चिकित्सा लेन-देन सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा ई-फार्मेसियों के संचालन को भी विनियमित किया जा रहा है।
- भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) द्वारा वर्ष 2020 में जारी किये गए टेलीमेडिसिन प्रैक्टिस दिशानिर्देशों के साथ, टेलीमेडिसिन के विनियमन को भी गति मिली है।
भारतीय स्वास्थ्य सेवा से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- ग्रामीण-शहरी स्वास्थ्य देखभाल असमानता: स्वास्थ्य देखभाल में महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, भारत का शहरी-ग्रामीण विभाजन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा संबंधी बुनियादी अवसंरचना के केंद्रित होने से ग्रामीण आबादी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच प्राप्त होती है।
- इससे अंतर स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ाव मिलता है और उपचार में विलंब होता है, जिससे स्वास्थ्य परिणाम गंभीर हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिये, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः विशेषज्ञों की कमी होती है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर-रोगी अनुपात बहुत कम होता है, जिससे देखभाल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- इस वाक्य का अर्थ है कि वर्ष 2022 में भारत के 80% से अधिक स्वास्थ्य-कर्मी (जैसे डॉक्टर, नर्स, तकनीशियन आदि) शहरों में कार्यरत थे, जबकि देश की 68% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
- स्वास्थ्य देखभाल की सामर्थ्य: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सामर्थ्य सबसे अधिक चिंताजनक चिंताओं में से एक है, विशेष रूप से निम्न आय वाले परिवारों के लिये।
- आयुष्मान भारत जैसी पहल के बावजूद जेब से होने वाला खर्च (OOPE) लाखों लोगों पर बोझ बना हुआ है, जिससे स्वास्थ्य पर व्यय भयावह हो रहा है।
- सेवा के लिये शुल्क मॉडल, जिसमें मरीज बीमाकृत होने के बावजूद सेवाओं के लिये भुगतान करते हैं, वित्तीय तनाव को बढ़ाता है।
- वित्त वर्ष 2023 में, भारत का OOPE अभी भी 47.1% पर उच्च था जो PM-JAY जैसी कवरेज योजनाओं के बावजूद स्वास्थ्य लागत को कम करने में चल रही चुनौती को दर्शाता है, जिसने 10 करोड़ से अधिक परिवारों को बीमा किया था।
- आयुष्मान भारत जैसी पहल के बावजूद जेब से होने वाला खर्च (OOPE) लाखों लोगों पर बोझ बना हुआ है, जिससे स्वास्थ्य पर व्यय भयावह हो रहा है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता: सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में देखभाल की गुणवत्ता असंगत बनी हुई है, जिससे समान स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। सरकारी अस्पताल, हालाँकि किफायती हैं, लेकिन पुराने बुनियादी अवसंरचना, भीड़भाड़ और कर्मचारियों की कमी से पीड़ित हैं।
- बुनियादी अवसंरचना में सुधार के बावजूद, गुणवत्ता असमान बनी हुई है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में मरीजों का विश्वास कम हो रहा है।
- इसके अलावा, फार्मास्युटिकल क्षेत्र में, वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान ₹16.88 करोड़ से अधिक मूल्य की दवाओं के 1,394 बैचों को वापस कर दिया गया।
- वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 3,053 दवाएँ निम्नस्तरीय पाई गईं।
- गैर-संचारी रोगों (NCD) का बोझ: मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसे गैर-संचारी रोगों (NCD) का बढ़ता बोझ एक अन्य गंभीर मुद्दा है।
- जीवनशैली में बदलाव के कारण भारत में गैर-संचारी रोगों में वृद्धि देखी जा रही है, जो शहरी और ग्रामीण दोनों आबादी को प्रभावित कर रहा है।
- अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष 5.8 मिलियन भारतीय गैर-संचारी रोगों से मरते हैं तथा लगभग चार में से एक भारतीय को 70 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले गैर-संचारी रोगों से मरने का खतरा रहता है।
- NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार भारत में 23% महिलाएँ और 22.1% पुरुष BMI मानदंड के अनुसार अधिक वज़न वाले हैं, जो बढ़ते सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का संकेत है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं का कम उपयोग: स्वास्थ्य सेवा कवरेज का विस्तार करने के सरकारी प्रयासों के बावजूद, आयुष्मान भारत जैसी योजनाएँ अभी भी पहुँच एवं उपयोग में समस्याओं का सामना कर रही हैं।
- ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में कई पात्र व्यक्ति इन कार्यक्रमों के बारे में नहीं जानते हैं या उन्हें इन तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- आयुष्मान भारत योजना पर कैग की रिपोर्ट में अवैध मोबाइल नंबर और संभावित धोखाधड़ी सहित अनियमितताएँ उजागर हुई हैं।
- CAG ने 4,761 पंजीकरणों की पहचान की जो केवल सात आधार संख्याओं से जुड़े थे, जो संभावित अनियमितताओं का संकेत है।
- स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना में अंतराल: यद्यपि स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना में सुधार हुआ है, फिर भी भारत को अभी भी बड़ी खामियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से दूरदराज़ और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में।
- यद्यपि 1.77 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्थापित किये गए, फिर भी स्वास्थ्य सुविधाएँ अपर्याप्त उपकरणों, कर्मियों और सेवाओं के कारण अविकसित बनी हुई हैं।
- स्वास्थ्य बीमा का प्रसार: यद्यपि स्वास्थ्य बीमा का प्रसार काफी बढ़ गया है, फिर भी लाखों लोग अभी भी बीमा रहित हैं, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में।
- चिकित्सा बीमा प्रीमियम में वृद्धि तथा परामर्श, निदान और दवाओं के लिये उच्च लागत के कारण पहुँच में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- भारत में बीमा का एक्सेस विश्व में सबसे कम है। बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के अनुसार, देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वार्षिक प्रीमियम के अनुपात के रूप में आकलन किया गया, बीमा एक्सेस सत्र 2022-23 में 4% से घटकर सत्र 2023-24 में 3.7% हो गया।
- निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का विनियमन: यद्यपि निजी स्वास्थ्य सेवा उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएँ प्रदान करती है, लेकिन यह बहुत हद तक अनियमित है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च लागत और असंगत देखभाल होती है।
- कड़े नियमों के अभाव में निजी अस्पतालों को न्यूनतम जवाबदेही के साथ काम करने की अनुमति मिल जाती है तथा वे प्रायः आवश्यक सेवाओं के लिये अत्यधिक दरें वसूलते हैं।
- भारत में सार्वजनिक अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों की संख्या लगभग दोगुनी है और 70% जनसंख्या निजी क्षेत्र के अस्पतालों से स्वास्थ्य देखभाल करवाना पसंद करती है, जिसके लिये प्रायः भारी शुल्क देना पड़ता है।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- एकीकृत मॉडल के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत बनाना: भारत को निवारक, उपचारात्मक और उपशामक देखभाल को संयोजित करने वाले एकीकृत मॉडल को बढ़ावा देकर अपने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण करना चाहिये।
- यह लक्ष्य आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्रों (HWC) को उन्नत करके प्राप्त किया जा सकता है, यह सुनिश्चित करके कि वे नवीनतम चिकित्सा प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित हों तथा उनमें प्रशिक्षित पेशेवर कार्यरत हों।
- एक अधिक समेकित प्राथमिक देखभाल प्रणाली, द्वितीयक और तृतीयक देखभाल अस्पतालों पर दबाव को कम कर सकती है जिससे शीघ्र हस्तक्षेप सुनिश्चित होगा तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य देखभाल लागत में कमी आएगी।
- स्वास्थ्य कार्यबल प्रशिक्षण और तैनाती में तेज़ी लाना: स्वास्थ्य पेशेवरों की तीव्र कमी को दूर करने के लिये, भारत को न केवल मेडिकल स्कूलों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, बल्कि देश भर में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदाता सुनिश्चित करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी सुधार करना चाहिये।
- प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और चिकित्सा अधिकारियों के बीच की खाई को पाटने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (CHO) के लिये विशेष प्रशिक्षण को बढ़ाया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, वित्तीय लाभ और कॅरियर विकास के अवसरों के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को वंचित ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने के लिये प्रोत्साहित करने से स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के वितरण में सुधार हो सकता है।
- टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्मों का लाभ उठाना: टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्मों को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में पूरी तरह से एकीकृत किया जाना चाहिये ताकि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती एवं सुलभ देखभाल प्रदान की जा सके।
- भारत निजी एवं गैर-लाभकारी संगठनों के साथ सहयोग के माध्यम से एक मज़बूत टेलीमेडिसिन कार्यढाँचा स्थापित कर सकता है, साथ ही ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्मों को बढ़ा सकता है।
- इससे वर्चुअल परामर्श, डिजिटल नुस्खे और दीर्घकालिक रोग के बेहतर प्रबंधन की सुविधा मिलेगी, साथ ही भौतिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ भी कम होगा।
- बुनियादी अवसंरचना के विस्तार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी: बुनियादी अवसंरचना के अंतर को पाटने के लिये, भारत को स्वास्थ्य सुविधाओं के निर्माण एवं रखरखाव को बढ़ाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का उपयोग बढ़ाना चाहिये।
- सरकार, वंचित क्षेत्रों में निर्माण करने के इच्छुक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये कर छूट एवं नियमों में रियायत देकर निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है।
- सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) से ज़िला अस्पतालों में देखभाल की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है, ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष केंद्र स्थापित किये जा सकते हैं तथा पूरी तरह सरकारी वित्तपोषण पर निर्भर हुए बिना उन्नत चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
- सार्वभौमिक कवरेज प्राप्त करने के लिये स्वास्थ्य बीमा में सुधार: भारत को अपनी स्वास्थ्य बीमा प्रणालियों का विस्तार और सुधार करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनौपचारिक क्षेत्र सहित सभी के लिये सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा सुलभ हो।
- आयुष्मान भारत जैसी बीमा योजनाओं को सरल बनाने तथा बाह्य रोगी सेवाओं और नैदानिक प्रक्रियाओं को कवर करने के लिये उनके दायरे का विस्तार करने से स्वास्थ्य सेवा अधिक किफायती हो जाएगी।
- सरकार को बीमा प्रीमियम को अधिक किफायती बनाने और इन योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिये, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ जागरूकता और पहुँच कम है।
- निवारक और स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर देना: स्वास्थ्य सेवा का ध्यान उपचार से हटकर रोकथाम पर केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है। भारत को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, नियमित जाँच को प्रोत्साहित करने और डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं स्थानीय स्वास्थ्य सेवा पहलों के माध्यम से स्वस्थ आदतों को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने चाहिये।
- स्कूलों, समुदायों और कार्यस्थलों के साथ साझेदारी के माध्यम से निवारक देखभाल के लिये एक अनिवार्य राष्ट्रीय कार्यढाँचे का निर्माण करने से गैर-संचारी रोगों (NCD) के बोझ में उल्लेखनीय कमी आएगी तथा दीर्घावधि में स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम होगी।
- स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण तंत्र को मज़बूत करना: स्थायी स्वास्थ्य देखभाल वितरण सुनिश्चित करने के लिये, भारत को अपने स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण तंत्र को बढ़ाने की आवश्यकता है तथा स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2.5% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखना होगा।
- यह मौजूदा संसाधनों के पुनर्आवंटन, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय की दक्षता में सुधार तथा लक्षित प्रोत्साहनों के माध्यम से निजी क्षेत्र के योगदान को प्रोत्साहित करके प्राप्त किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, विशेषीकृत स्वास्थ्य देखभाल बॉण्ड बनाने या स्वास्थ्य देखभाल नवाचार निधि की स्थापना करने से इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित हो सकता है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित हो सकेगी।
- निजी स्वास्थ्य सेवा के लिये नियामक कार्यढाँचे में सुधार: भारत को पारदर्शिता, सामर्थ्य और देखभाल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिये एक मज़बूत नियामक कार्यढाँचा स्थापित करना चाहिये।
- इसमें निजी संस्थानों में चिकित्सा मूल्य निर्धारण को मानकीकृत करना, नैतिक प्रथाओं के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करना और आवश्यक सेवाओं की लागत को विनियमित करना शामिल है।
- पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा का एकीकरण: भारत आयुर्वेद, होम्योपैथी और सिद्ध जैसी पारंपरिक चिकित्सा को मुख्यधारा की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एकीकृत कर सकता है, जिससे स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण विकसित हो सकेगा।
- इन प्रथाओं के लिये मानक निर्धारित करके और आधुनिक चिकित्सा देखभाल के साथ उनका एकीकरण सुनिश्चित करके, देश किफायती, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक स्वास्थ्य देखभाल विकल्पों की एक व्यापक शृंखला प्रदान कर सकता है।
- इससे भारत की समृद्ध चिकित्सा विरासत को संरक्षित रखते हुए पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव भी कम होगा।
- भारत को भी ‘वन हेल्थ अप्रोच’ पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल नवाचार को बढ़ावा देना: भारत को स्वास्थ्य-तकनीक स्टार्टअप के लिये समर्पित इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर के निर्माण के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल में नवाचार को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये।
- तकनीकी नवप्रवर्तकों, अनुसंधान संस्थानों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने से लागत प्रभावी, स्केलेबल समाधानों जैसे कि AI-आधारित निदान, वियरेबल स्वास्थ्य उपकरण एवं व्यक्तिगत चिकित्सा का विकास हो सकता है।
- इन स्टार्टअप्स के लिये सरकारी अनुदान और उद्यम पूंजी वित्तपोषण स्वास्थ्य सेवा में तकनीकी प्रगति के आगामी चरण को बढ़ावा देगा तथा सभी नागरिकों के लिये पहुँच एवं सामर्थ्य में सुधार करेगा।
भारत अपने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सुधार के लिये अन्य देशों से क्या सीख सकता है?
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल (UK): भारत यूके की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) से सीख सकता है जो करों के माध्यम से वित्त पोषित सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करती है।
- ये प्रणालियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि उपयोग के समय स्वास्थ्य सेवा निशुल्क या कम लागत वाली हो, जिससे जेब से होने वाला खर्च कम हो और समानता को बढ़ावा मिले।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान (ब्राज़ील): ब्राज़ील के परिवार स्वास्थ्य कार्यक्रम ने वंचित क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को तैनात करके प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में उल्लेखनीय सुधार किया है।
- भारत अपने स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों (HWC) को मज़बूत करके तथा अधिक सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (CHO) को प्रशिक्षित करके इस दृष्टिकोण को अपना सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार हो सके तथा रोकथाम एवं शीघ्र हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण (एस्टोनिया): ई-स्वास्थ्य रिकॉर्ड और टेलीमेडिसिन सहित एस्टोनिया का उन्नत डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी अवसंरचना स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन के लिये एक सुव्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान करती है।
- भारत कार्यकुशलता बढ़ाने, रोगी देखभाल समन्वय में सुधार लाने तथा प्रशासनिक लागत कम करने के लिये समान डिजिटल प्रणालियों को एकीकृत कर सकता है।
- ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्मों का देशव्यापी विस्तार करने से दूरस्थ परामर्श की सुविधा मिल सकती है तथा स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार हो सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (सिंगापुर): सिंगापुर ने विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के निर्माण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है।
- भारत अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने, सुविधाओं को आधुनिक बनाने तथा विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये इसी प्रकार के सहयोग को बढ़ावा देकर अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बेहतर बना सकता है।
- निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर (जापान): नियमित जाँच, स्वास्थ्य शिक्षा और जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर जापान के फोकस के परिणामस्वरूप उच्च जीवन प्रत्याशा एवं कम रोग का बोझ हुआ है।
- भारत गैर-संचारी रोगों (NCD) के बोझ को कम करने के लिये अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में नियमित स्वास्थ्य जाँच और जागरूकता कार्यक्रमों को एकीकृत करके रोकथाम पर अधिक ज़ोर दे सकता है।
निष्कर्ष:
भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सार्वभौमिक पहुँच, गुणवत्तापूर्ण देखभाल और डिजिटल एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुज़र रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करना, बीमा कवरेज का विस्तार करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना इन अंतरालों को पाटने के लिये महत्त्वपूर्ण है। इन प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र के SDG3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली) और हाल ही में जारी वैश्विक महामारी संधि के साथ जोड़ना सभी के लिये संधारणीय, समान स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने की कुंजी होगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. पिछले दशक में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में हुए परिवर्तन पर चर्चा कीजिये, प्रमुख विनियामक सुधारों, अवसंरचनात्मक चुनौतियों और समान स्वास्थ्य सेवा पहुँच सुनिश्चित करने में डिजिटल प्लेटफॉर्मों की भूमिका को रेखांकित कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021) |