अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ग्लोबल साउथ और पश्चिम के मध्य भारत का सामरिक संतुलन
- 08 Jul 2025
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यह एडिटोरियल 08/07/2025 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “BRICS signals strong Global South, less dependence on West” पर आधारित है। यह लेख BRICS रियो घोषणापत्र 2025 को सामने लाता है, जिसमें पश्चिम के साथ अपने मज़बूत आर्थिक संबंधों को संतुलित करते हुए ग्लोबल साउथ प्रतिनिधित्व की वकालत करने में भारत की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
प्रिलिम्स के लिये:BRICS रियो घोषणापत्र 2025, ग्लोबल साउथ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अफ्रीकी संघ, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट, NATO, पेरिस समझौता, भारत का डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना मुख्य परीक्षा के लिये:ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में भारत की भूमिका को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारक, पश्चिमी आकांक्षाओं के साथ ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं के प्रबंधन में भारत के लिये प्रमुख बाधाएँ। |
BRICS रियो घोषणापत्र 2025 एक महत्त्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ, जो अब विश्व की 40% से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर IMF तक वैश्विक संस्थानों में ग्लोबल साउथ के अधिक प्रतिनिधित्व की मांग करती हैं। भारत इस परिवर्तन के चौराहे पर खड़ा है, जहाँ वह एक ओर 'ग्लोबल साउथ' के हितों का सशक्त पक्षधर बना हुआ है तो दूसरी ओर पश्चिमी देशों, विशेषतः अमेरिका के साथ गहरे आर्थिक संबंध बनाए रखे हुए है, जहाँ केवल अमेरिका के साथ ही उसका व्यापार 130 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। जैसा कि भारत वर्ष 2026 में BRICS की अध्यक्षता करने की तैयारी कर रहा है, इसे पश्चिमी साझेदारियों के साथ अपनी बहुध्रुवीय आकांक्षाओं को सुसंगत बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, ताकि स्वयं को उभरती वैश्विक व्यवस्था में एक विभाजक के बजाय एक सेतु-निर्माता के रूप में स्थापित किया जा सके।
ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत की भूमिका को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
- आर्थिक विकास और व्यापार प्रभाव: भारत की आर्थिक उन्नति ने मज़बूत विकास और विविधीकरण द्वारा प्रेरित होकर ग्लोबल साउथ में एक अग्रणी के रूप में इसकी स्थिति को काफी मज़बूत किया है।
- विश्व स्तर पर 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (संभावित रूप से चौथी) के रूप में, भारत साउथ-साउथ व्यापार और आर्थिक विकास में एक प्रमुख अभिकर्त्ता है, जो आर्थिक पहलों का नेतृत्व करने की इसकी क्षमता पर बल देता है।
- ग्लोबल साउथ के साथ भारत का व्यापार बढ़ गया है, अफ्रीका के साथ व्यापार मात्रा वर्ष 2001 में 5 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 90 बिलियन डॉलर हो गई है।
- इसके अलावा, भारत वर्ष 2024 में 20.22 बिलियन डॉलर के साथ लैटिन अमेरिका को माल का सातवाँ सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता होगा, जो इसकी बढ़ती आर्थिक साझेदारी को दर्शाता है।
- कूटनीतिक और भू-राजनीतिक नेतृत्व: भारत की रणनीतिक स्थिति उसे ग्लोबल साउथ और विकसित विश्व के बीच एक कूटनीतिक सेतु के रूप में कार्य करने में सहायक है, जो बहुपक्षवाद एवं वैश्विक शासन सुधारों पर बल देती है।
- भारत समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी प्रमुख वैश्विक संस्थाओं में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को शामिल करने की सक्रिय रूप से अनुशंसा करता है।
- वर्ष 2023 में G20 की अध्यक्षता के दौरान, भारत अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य बनाने में सफल रहा, जिससे वैश्विक निर्णय लेने में उसका नेतृत्व मज़बूत हुआ।
- BRICS और क्वाड जैसे मंचों में भारत की भूमिका ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करने की इसकी कूटनीतिक क्षमता को रेखांकित करती है।
- सतत् विकास के प्रति प्रतिबद्धता: नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में भारत के नेतृत्व ने इसे ग्लोबल साउथ में सतत् विकास को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देश के रूप में स्थापित किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन जैसी भारत की पहल सतत् विकास एवं ऊर्जा परिवर्तन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- विश्व में पवन और सौर ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते, भारत स्वच्छ ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रहा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्थापित करना है।
- देश का हरित विकास पर ध्यान क्लाइमेट जस्टिस का समर्थन करता है तथा पर्यावरणीय चुनौतियों पर विकासशील देशों के बीच सहयोग को सुगम बनाता है।
- तकनीकी और डिजिटल नवाचार: आधार और UPI जैसे नवाचारों द्वारा दर्शाए गए भारत के डिजिटल परिवर्तन ने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत किया है।
- भारत का डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) मॉडल, जिसे अब 50 देशों के साथ साझा किया जा रहा है, इस बात का एक उदाहरण है कि प्रौद्योगिकी किस प्रकार समावेशी विकास को बढ़ावा दे सकती है।
- UPI के माध्यम से वित्तीय समावेशन के विस्तार में भारत की सफलता ने ग्लोबल साउथ के कई देशों को प्रेरित किया है तथा अब 12 से अधिक देश समान प्रणालियाँ अपना रहे हैं।
- यह डिजिटल क्रांति सरकारी सेवाओं तक अधिक न्यायसंगत अभिगम को सक्षम बनाती है, जिससे वैश्विक स्तर पर डिजिटल समानता को बढ़ावा देने में भारत का प्रभाव मज़बूत होता है।
- मानवीय नेतृत्व और विकास सहायता: संकटों के प्रति भारत की मानवीय अनुक्रिया और इसके विकास सहायता कार्यक्रम ग्लोबल साउथ के कल्याण में सुधार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
- भारत की ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल, जिसने 100 से अधिक देशों को कोविड-19 टीके उपलब्ध कराए, ने वैश्विक स्वास्थ्य संकटों में प्रथम मोचनकर्त्ता के रूप में अपनी भूमिका को प्रदर्शित किया।
- वर्ष 2023 में भारत के मानवीय प्रयासों में तुर्की में भूकंप राहत के लिये ऑपरेशन दोस्त, म्याँमार में चक्रवात सितरंग के लिये ऑपरेशन करुणा और सूडान में सहायता के लिये ऑपरेशन कावेरी शामिल हैं।
- भारत ने अफ्रीका में विकास परियोजनाओं के लिये 12.25 बिलियन डॉलर देने का भी वादा किया।
- बहुपक्षीय संस्थाओं में ग्लोबल साउथ के लिये समर्थन: बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधारों के लिये भारत का निरंतर समर्थन, ग्लोबल साउथ के हितों का प्रतिनिधित्व करने में इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को उजागर करती है।
- भारत ने वैश्विक आर्थिक शासन में विकासशील देशों का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये विश्व बैंक और IMF में सुधारों का आह्वान किया है।
- बहुपक्षीय व्यवस्था को नया आकार देने के भारत के प्रयास वर्ष 2024 वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट के दौरान स्पष्ट हुए, जहाँ इसने व्यापार, क्षमता निर्माण और रियायती वित्त पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक ‘वैश्विक विकास समझौता’ का प्रस्ताव रखा।
- मज़बूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध: उत्तर-औपनिवेशिक आंदोलनों में भारत के ऐतिहासिक नेतृत्व और इसकी सांस्कृतिक कूटनीति ने ग्लोबल साउथ में इसके नेतृत्व को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संस्थापक सदस्य के रूप में, नव स्वतंत्र राष्ट्रों की संप्रभुता और आत्मनिर्णय की अनुशंसा करने में भारत की भूमिका आज भी (यहाँ तक कि फिलिस्तीन के साथ भी) कायम है।
- भारत भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) जैसी पहलों के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति में संलग्न है, जो अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंधों को मज़बूत करता है।
- ये सांस्कृतिक आदान-प्रदान गहरी एकजुटता और आपसी समझ को बढ़ावा देते हैं, तथा एक नैतिक एवं कूटनीतिक अभिकर्त्ता के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत करते हैं।
- सामरिक स्वायत्तता के साथ लचीली विदेश नीति: भारत की विदेश नीति, सामरिक स्वायत्तता की विशेषता के कारण, ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करते हुए जटिल भू-राजनीतिक गतिशीलता को समझने में सक्षम है।
- चीन के विपरीत, जो आक्रामक आर्थिक कूटनीति अपनाता है, भारत एक संतुलित दृष्टिकोण रखता है तथा पश्चिम व ग्लोबल साउथ दोनों के साथ संबंधों को बढ़ावा देता है।
- रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे विवादों पर भारत के तटस्थ रुख ने उसे रूस के साथ संबंधों को मज़बूत करने के साथ-साथ पश्चिमी शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने में भी सक्षम बनाया है।
- भारत की विदेश नीति की लचीलापन, इसके आर्थिक कौशल के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करती है कि यह वैश्विक नीतियों को आकार देने में ग्लोबल साउथ की एक मज़बूत आवाज बनी रहे।
पश्चिमी आकांक्षाओं के साथ ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं को प्रबंधित करने में भारत के लिये प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?
- पश्चिमी भागीदारी के साथ सामरिक स्वायत्तता को संतुलित करना: सामरिक स्वायत्तता की भारत की कोशिश प्रायः उसे कठिन स्थिति में डाल देती है, क्योंकि इसका उद्देश्य ग्लोबल साउथ के साथ एकजुटता बनाए रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ अपने गहरे होते संबंधों को संतुलित करना है।
- भारत ने अपने गुटनिरपेक्ष रुख के तहत NATO जैसे औपचारिक सुरक्षा गठबंधनों में शामिल होने में तटस्थता दिखाई है, लेकिन अमेरिका और यूरोप के साथ इसके बढ़ते संबंध कभी-कभी ग्लोबल साउथ में इसके नेतृत्व के साथ टकराव उत्पन्न करते हैं।
- उदाहरण के लिये, संयुक्त राष्ट्र में रूस-यूक्रेन युद्ध पर मतदान से दूर रहने का भारत का निर्णय पश्चिमी अपेक्षाओं और ग्लोबल साउथ एकजुटता के बीच संतुलन बनाने वाली कूटनीति को उजागर करता है।
- पश्चिम पर आर्थिक निर्भरता बनाम दक्षिण-दक्षिण सहयोग: पश्चिमी देशों के साथ भारत के व्यापार और आर्थिक संबंध मज़बूत बने हुए हैं, अकेले अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 130 बिलियन डॉलर का है, फिर भी दक्षिण-दक्षिण सहयोग में भारत की बढ़ती भूमिका आत्मनिर्भरता एवं न्यायसंगत साझेदारी की ओर बदलाव की मांग करती है।
- भारत का अफ्रीका के साथ व्यापार वर्ष 2001 में 5 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 90 बिलियन डॉलर हो गया है, लेकिन पश्चिम पर इसकी व्यापार निर्भरता अभी भी अधिक है। चुनौती ग्लोबल साउथ के हितों को आगे बढ़ाते हुए पश्चिम के आर्थिक लाभ को कम करने में है।
- चीन और पश्चिम के साथ भू-राजनीतिक तनाव का सामना करना: चीन के साथ भारत की भौगोलिक निकटता और उसके क्षेत्रीय विवाद, ग्लोबल साउथ एवं पश्चिम के बीच एक तटस्थ सेतु के रूप में कार्य करने के उसके कूटनीतिक प्रयासों को जटिल बनाते हैं।
- यद्यपि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर रहा है, लेकिन इससे बीज़िंग के साथ उसके राजनयिक संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं, जो ग्लोबल साउथ का एक महत्त्वपूर्ण साझेदार है।
- दूसरी ओर, ग्लोबल साउथ में चीन की विकास पहल, जिसे प्रायः बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से सुगम बनाया जाता है, ने महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं और आर्थिक साझेदारियों को जन्म दिया है, जिससे भारत चिंतित है।
- प्रतिस्पर्द्धी स्थायित्व मॉडल: हरित विकास बनाम पश्चिमी दबाव: भारत की हरित विकास रणनीति (कोयले के उपयोग की चरणबद्ध समाप्ति की बजाय चरणबद्ध तरीके से कम करना), औद्योगिक विकास को बढ़ावा देते हुए कठोर पर्यावरणीय मानकों को पूरा करने के पश्चिमी दबाव के विपरीत है।
- यद्यपि भारत और ग्लोबल साउथ के देश जलवायु लक्ष्यों के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने का लक्ष्य रखते हैं, उन्हें कोयले पर अपनी निर्भरता के लिये पश्चिमी देशों की आलोचना का सामना करना पड़ता है, जो उनके ऊर्जा संक्रमण का एक प्रमुख हिस्सा है।
- भारत का वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा को 500 गीगावाट तक विस्तारित करने का लक्ष्य उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, लेकिन कोयले के बढ़ते उपयोग (भारत की 70% से अधिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति कोयले से होती है) से उसकी जलवायु कूटनीति में जटिलता बढ़ती है।
- इससे पश्चिम और ग्लोबल साउथ दोनों के साथ टकराव उत्पन्न होता है, जो तीव्र जलवायु न्याय की अपेक्षा रखते हैं।
- घरेलू सामाजिक-राजनीतिक असमानताएँ बनाम वैश्विक नेतृत्व: भारत की घरेलू सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियाँ, विशेष रूप से असमानता, गरीबी और सांप्रदायिक तनाव से संबंधित चुनौतियाँ, विश्व मंच पर ग्लोबल साउथ के लिये एक अग्रणी आवाज़ के रूप में इसकी विश्वसनीयता को कमज़ोर करती हैं।
- यद्यपि भारत समतापूर्ण वैश्विक शासन और दक्षिण-दक्षिण सहयोग का समर्थक है, इसका आंतरिक संघर्ष आर्थिक असमानता के साथ है, जैसा कि ऑक्सफैम इंडिया रिपोर्ट (वर्ष 2021) में देखा गया है, जो दर्शाता है कि भारत के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 953 मिलियन लोगों (जो देश की आबादी के निचले 70 प्रतिशत हिस्से का गठन करते हैं) की तुलना में चार गुना अधिक संपत्ति है।
- गरीबी उन्मूलन के लिये भारत की वैश्विक मांग को तब झटका लगता है जब उसके अपने सामाजिक विकास सूचकांक में स्थिरता दिखती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी नैतिक विश्वसनीयता को चुनौती मिलती है।
- जलवायु परिवर्तन बनाम पश्चिमी वित्तीय प्रतिबद्धताएँ: भारत की जलवायु कार्रवाई रणनीति को पश्चिमी देशों द्वारा विकासशील देशों के प्रति अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफलता के कारण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने में।
- ISA के माध्यम से क्लाइमेट जस्टिस में भारत का नेतृत्व तथा इसके स्वयं के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, ग्लोबल नॉर्थ से पर्याप्त वित्त पोषण की कमी के कारण कमज़ोर हो रहे हैं।
- पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बावजूद, भारत और ग्लोबल साउथ को वित्तपोषण की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- भारत की अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ रही है, लेकिन इन पहलों के लिये वैश्विक वित्तीय सहायता की कमी भारत के हरित लक्ष्यों एवं पश्चिमी वादों के बीच की खाई को और बढ़ा रही है।
ग्लोबल साउथ के नेतृत्व और पश्चिमी संलग्नता के बीच संतुलन बनाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- विदेश नीति में रणनीतिक बहु-संरेखण: भारत को रणनीतिक बहु-संरेखण की अपनी नीति जारी रखनी चाहिये, जहाँ वह किसी एक गुट के प्रति प्रतिबद्ध न हो, बल्कि कई मोर्चों (ग्लोबल साउथ, BRICS, G20 और पश्चिम के साथ साझेदारी) पर सक्रिय भागीदारी बनाए रखे।
- यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि भारत लचीली नीति अपनाए तथा प्रमुख पश्चिमी सहयोगियों को अलग-थलग किये बिना दक्षिण-दक्षिण सहयोग का समर्थन करने के लिये अपनी स्थिति का लाभ उठा सके।
- इन रिश्तों को ‘एक थाली की तरह, न कि एक कटोरे की तरह’ संचालित करके भारत अपने विविध हितों में सामंजस्य स्थापित कर सकता है, ठीक उसी तरह जैसे कि शशि थरूर ने कहा है कि एक ही थाली में विभिन्न तत्त्व एक दूसरे के पूरक होते हैं।
- इस प्रकार भारत की कूटनीति संयुक्त राष्ट्र और G20 जैसे मंचों पर ग्लोबल साउथ के लिये नेतृत्व का दावा करते हुए समावेशी बनी रह सकती है।
- तकनीकी और विकासात्मक नेतृत्व के माध्यम से दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मज़बूत करना: भारत को ग्लोबल साउथ में क्षमता निर्माण पहल और तकनीकी सहायता को प्राथमिकता देकर विकास भागीदार के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ाना चाहिये।
- इसमें दक्षिण-दक्षिण सहयोग को गहन बनाना शामिल होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और डिजिटल बुनियादी अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक समाधान प्रदान करे।
- भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और विकासात्मक अनुभव पर बल देते हुए प्रौद्योगिकी अंतरण और ज्ञान साझाकरण को बढ़ावा देने से ग्लोबल साउथ एवं पश्चिमी शक्तियों के बीच सेतु-निर्माता के रूप में इसकी नैतिक विश्वसनीयता बढ़ेगी।
- बहुपक्षीय संस्थाओं में ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और IMF जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार की मांग कर सकता है तथा ग्लोबल साउथ के लिये अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दे सकता है।
- उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक अग्रणी आवाज़ के रूप में अपनी भूमिका को पश्चिमी शक्तियों के साथ व्यावहारिक गठबंधन के साथ जोड़कर, भारत स्वयं को सुधार के उत्प्रेरक के रूप में स्थापित कर सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि पश्चिमी देशों को नाराज़ किये बिना वैश्विक शासन संरचनाओं में ग्लोबल साउथ के हितों पर विचार किया जाए।
- इसके लिये भारत को आलोचना एवं रचनात्मक सहभागिता के बीच संतुलन बनाना होगा, तथा अधिक समावेशी बहुपक्षीय प्रणाली का लक्ष्य रखना होगा।
- विकास और धारणीयता के बीच सेतु बनाने के लिये समावेशी जलवायु कूटनीति: भारत को जलवायु न्याय की वकालत करते हुए विकास एवं धारणीयता के बीच की खाई को पाटने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ग्लोबल साउथ की आर्थिक विकास आकांक्षाएँ पूरी हों।
- समावेशी जलवायु कूटनीति पर ज़ोर देकर भारत पश्चिम से न्यायसंगत वित्तपोषण के लिये दबाव बना सकता है, साथ ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये हरित प्रौद्योगिकियों में अग्रणी के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है।
- यह दृष्टिकोण भारत को जलवायु परिवर्तन पर अपने नेतृत्व को इस तरह से स्थापित करने की अनुमति देता है जो ग्लोबल साउथ के साथ प्रतिध्वनित होता है, साथ ही वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिये पश्चिमी देशों के साथ सहयोग भी करता है।
- डिजिटल संप्रभुता और वैश्विक साझेदारी के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: भारत को अपनी तकनीकी संप्रभुता को आगे बढ़ाते हुए ग्लोबल साउथ के लिये डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये।
- भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) मॉडल को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देकर, भारत ऐसे समाधान प्रदान कर सकता है जो विशेष रूप से अविकसित क्षेत्रों में कनेक्टिविटी, वित्तीय समावेशन तथा शासन में वृद्धि कर सकते हैं।
- इससे न केवल प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी के रूप में इसकी भूमिका मज़बूत होगी, बल्कि पश्चिमी देशों के साथ संवाद के लिये एक मंच भी तैयार होगा, जिससे ग्लोबल साउथ में इसके नेतृत्व के साथ इसकी प्रौद्योगिकी संबंधी आकांक्षाओं में संतुलन स्थापित होगा।
- ग्लोबल साउथ और पश्चिम के साथ रक्षा और सुरक्षा सहयोग में वृद्धि: भारत ग्लोबल साउथ के भीतर और पश्चिमी शक्तियों के साथ रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देकर वैश्विक शांति व सुरक्षा में अपनी भूमिका में वृद्धि कर सकता है, जिससे हिंद-प्रशांत तथा अफ्रीका जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में धारणीयता/स्थिरता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- इसमें अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ रक्षा संबंधों को मज़बूत करना शामिल होगा, साथ ही ग्लोबल साउथ में शांति स्थापना और संघर्ष समाधान को बढ़ावा देना होगा, जिससे भारत को एक क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित किया जा सके।
- सॉफ्ट पॉवर विस्तार के लिये अंतर-सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देना: ग्लोबल साउथ और पश्चिम के बीच सेतु बनाने के लिये भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को मज़बूत किया जाना चाहिये, जिसमें लोकतंत्र, बहुलवाद तथा आपसी सम्मान के साझा मूल्यों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- इस दृष्टिकोण के तहत भारत अपनी सांस्कृतिक संपत्तियों- जैसे बॉलीवुड, योग और अपनी समृद्ध विरासत- का उपयोग लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिये करेगा, साथ ही मज़बूत आर्थिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देगा।
- ग्लोबल साउथ और पश्चिम दोनों के लिये एक सांस्कृतिक राजदूत के रूप में खुद को स्थापित करके, भारत वैश्विक धारणाओं को आकार देने और सहयोग के लिये साझा आधार तैयार करने में केंद्रीय भूमिका निभा सकता है।
- वैश्विक ढाँचे के साथ व्यापार और निवेश साझेदारी को बढ़ाना: भारत को एक व्यापक, समावेशी व्यापार और निवेश ढाँचा विकसित करना चाहिये जो पश्चिमी बाज़ारों की मांगों के साथ ग्लोबल साउथ की आवश्यकताओं को भी संतुलित कर सके।
- इसमें अधिक न्यायसंगत व्यापार समझौतों की मांग करना शामिल हो सकता है जो पारस्परिक लाभ सुनिश्चित करें, विकासात्मक चुनौतियों का समाधान करें और अंततः सतत् विकास को बढ़ावा दें।
- वैश्विक आर्थिक ढाँचे के निर्माण, जो ग्लोबल साउथ के विकास लक्ष्यों और पश्चिम के बाज़ारोन्मुख दृष्टिकोण दोनों का सम्मान करे, में अग्रणी भूमिका निभाते हुए भारत वैश्विक व्यापार वार्ताओं में स्वयं को एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।
निष्कर्ष:
पश्चिम के साथ रणनीतिक या कूटनीतिक संबंध को बनाए रखते हुए ग्लोबल साउथ में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभाते हुए, भारत को कई वैश्विक रिश्तों को कुशलता के साथ संतुलित करना होगा। जैसा कि भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने सटीक रूप से कहा है — “यह समय है अमेरिका से जुड़ने का, चीन को संतुलित करने का, यूरोप से समन्वय का, रूस को आश्वस्त करने का, जापान को भागीदार बनाने का, पड़ोसियों से सहयोग बढ़ाने का, पड़ोस के दायरे को विस्तारित करने का और पारंपरिक सहयोग क्षेत्रों को नए आयाम देने का। " अपनी कूटनीतिक चपलता का लाभ उठाकर, भारत स्वयं को विविध वैश्विक हितों के बीच एक सेतु के रूप में स्थापित कर सकता है, जिससे एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था को साकार किया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. ग्लोबल साउथ में नेतृत्व की भूमिका निभाते हुए भारत को पश्चिमी देशों के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी और अपनी वैश्विक आकांक्षाओं के बीच संतुलन स्थापित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। इस संदर्भ में, उन उपायों पर चर्चा कीजिये जिनके माध्यम से भारत पश्चिमी शक्तियों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखते हुए ग्लोबल साउथ में अपने नेतृत्व को प्रभावी रूप से आगे बढ़ा सकता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. "यदि विगत कुछ दशक एशिया की विकास की कहानी के रहे, तो परवर्ती कुछ दशक अफ्रीका के हो सकते हैं।" इस कथन के आलोक में, हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारत के प्रभाव की परीक्षण कीजिये। (2021) प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016) |