बिहार Switch to English
बिहार सरकार ने JP सेनानियों की पेंशन दोगुनी की
चर्चा में क्यों?
बिहार सरकार ने जयप्रकाश (JP) आंदोलन सेनानियों के लिये पेंशन में वृद्धि की घोषणा की है। ये वे व्यक्ति हैं, जिन्हें आपातकाल (1975-77) के दौरान समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के आंदोलन (1974) का समर्थन करने पर कारावास में डाला गया था।
- यह कदम, इन सेनानियों के संघर्ष एवं बिहार के विकास में उनके योगदान को सम्मानित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
नोट: 5 जून, 2025 को जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्वान की 51वीं वर्षगाँठ मनाई गई, जिसे JP आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है। यह आह्वान 5 जून,1974 को पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण द्वारा किया गया था।
मुख्य बिंदु
- पेंशन में वृद्धि:
- छह माह से अधिक अवधि तक जेल में रहने वाले सेनानियों को अब 15,000 रुपए से बढ़ाकर 30,000 रुपए प्रति माह पेंशन दी जाएगी।
- जिन लोगों को छह माह तक जेल में रहना पड़ा, उनकी पेंशन 7,500 रुपए से बढ़ाकर 15,000 रुपए प्रति माह कर दी जाएगी।
- पेंशनभोगी की मृत्यु की स्थिति में उनके जीवित पति या पत्नी को भी समान पेंशन राशि प्राप्त होगी।
- जेपी सेनानी सम्मान पेंशन योजना
- यह समायोजन जेपी सेनानी सम्मान पेंशन योजना के अंतर्गत आता है, जिसे वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा प्रारंभ किया गया था।
- इस योजना का नाम प्रतिष्ठित समाजवादी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम पर रखा गया है।
- लाभार्थी: वर्तमान में ( 2025 तक) बिहार में 3,354 व्यक्ति यह पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पात्र होने के बावजूद कभी इसका लाभ नहीं लिया।
- इस योजना के उल्लेखनीय लाभार्थियों में लालू प्रसाद यादव (बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री) और सुशील कुमार मोदी (बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री) भी शामिल हैं।
- पात्रता की शर्तें:
- भागीदारी की अवधि: 18 मार्च 1974 से 21 मार्च 1977 तक।
- लाभार्थियों को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) या भारत रक्षा नियम (DIR) के तहत कारावास भोगना आवश्यक।
- अवधि श्रेणियाँ:
- श्रेणी 1: 1 से 6 माह का कारावास।
- श्रेणी 2: 6 माह से अधिक का कारावास।
- अतिरिक्त लाभ: पात्र व्यक्तियों को स्वतंत्रता सेनानियों के समान निःशुल्क चिकित्सकीय सुविधा प्रदान की जाती है।
स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना
- स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन योजना वर्ष 1972 में फ्रीडम फाइटर्स पेंशन स्कीम के रूप में प्रारम्भ हुई थी तथा अगस्त 1980 में इसका नाम बदलकर इसे उदारीकृत कर दिया गया।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रशासित यह योजना भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- कुल लाभार्थी (अब तक): 1,71,689 स्वतंत्रता सेनानी एवं उनके आश्रित।
- वर्तमान सक्रिय पेंशनभोगी (जुलाई 2025 तक): 13,212 जीवित स्वतंत्रता सेनानी।
- पेंशन प्राप्त करने वाली विधवाएँ: 9,778।
- वार्षिक बजट (2024-25): 600 करोड़ रुपए।
- कवरेज:
- समय अवधि: वर्ष 1857 से 1947 के मध्य हुए आंदोलनों में भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानी।
- मान्यता प्राप्त आंदोलन: इसमें 40 प्रमुख आंदोलन सम्मिलित हैं, जिनमें भारत छोड़ो आंदोलन, जलियांवाला बाग जैसी घटनाएँ शामिल हैं।
हरियाणा Switch to English
कैप्टन हरद्वारी सिंह अहलावत
चर्चा में क्यों?
आज़ाद हिंद फौज के कैप्टन हरद्वारी सिंह अहलावत ने झाँसी रेजिमेंट (झाँसी की रानी रेजिमेंट) को ब्रिटिश घेराबंदी से मुक्त कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- झाँसी की रानी रेजिमेंट, कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन के नेतृत्व वाली महिला योद्धाओं की एक सशस्त्र इकाई थी। ऐसा माना जाता है कि यह सैन्य इतिहास की पहली महिला पैदल सेना थी।
मुख्य बिंदु
कैप्टन हरद्वारी सिंह अहलावत के बारे में
- झाँसी रेजिमेंट की मुक्ति:
- वर्ष 1945 में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदेश पर, कैप्टन अहलावत ने झाँसी रेजिमेंट को ब्रिटिश सेना से मुक्त कराने के लिये एक सफल अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें 4,000 से अधिक राउंड फायरिंग की गई और लगभग 300 ब्रिटिश सैनिकों को मार डाला गया।
- INA में भूमिका:
- कैप्टन अहलावत, जिनका जन्म देघल गाँव (झज्जर, हरियाणा) में हुआ था, वर्ष 1942 में अपने गाँव के 32 सैनिकों के साथ आज़ाद हिंद फौज में शामिल हुए।
- नेताजी बोस ने उनके साहस के लिये उन्हें प्रतिष्ठित “शेर-ए-हिंद” पुरस्कार से सम्मानित किया और उन्हें अपना निजी स्टाफ अधिकारी (PSO) नियुक्त किया।
- सैन्य उपलब्धियाँ:
- अहलावत के नेतृत्व में, INA बलों ने बर्मा के पास लेपोप्पा हिल्स क्षेत्र को मुक्त कराया, ब्रिटिश सेनाओं को हराया और पहाड़ी चौकी (7,000-8,000 फीट की ऊँचाई) पर भारत का झंडा फहराया।
- युद्धोत्तर जीवन:
- वर्ष 1945 में आज़ाद हिंद फौज के आत्मसमर्पण के बाद, अहलावत को 17,000 INA सैनिकों के साथ दिल्ली के लाल किले में कैद कर लिया गया था।
- उन्हें 31 दिसंबर, 1945 को ब्रिटिश सरकार द्वारा रिहा कर दिया गया (INA परीक्षणों या लाल किला परीक्षणों के बाद)।
उत्तर प्रदेश Switch to English
उत्तर प्रदेश में बर्ड फ्लू अलर्ट
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बर्ड फ्लू (H5N1) के बढ़ते खतरे के कारण राज्यव्यापी अलर्ट जारी किया है, जिसमें संबंधित विभागों को जानवरों और पक्षियों, विशेष रूप से चिड़ियाघरों और वन्यजीव अभयारण्यों में सुरक्षा हेतु सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करने के निर्देश दिये गए हैं।
मुख्य बिंदु
बर्ड फ्लू के बारे में
- परिचय: बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) एक अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग है, जो एवियन इन्फ्लूएंजा ए वायरस, विशेष रूप से उपप्रकार H5N1 और H5N8 के कारण होता है तथा जंगली तथा घरेलू दोनों प्रकार के पक्षियों को प्रभावित करता है।
- मानव पर इसके प्रभाव के मामले: मानव पर इसका पहला संक्रमण वर्ष 1997 (हांगकांग) में दर्ज किया गया था। इसके अधिकांश मामले एशिया में दर्ज किये गए और इसका कारण संक्रमित पक्षियों के साथ निकट संपर्क था।
- संचरण: H5N1 मुख्य रूप से संक्रमित जीवित अथवा मृत पक्षियों अथवा दूषित वातावरण (जैसे, जीवित पक्षियों का बाज़ार) के साथ प्रत्यक्ष संपर्क होने के माध्यम से संचरित होता है।
- इसलिये, H5N1 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसंधान एवं विकास ब्लूप्रिंट के तहत प्राथमिकता वाली बीमारी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- H5N1 का मानव संक्रमण दुर्लभ है, किंतु इसकी मृत्यु दर (~60%) बहुत अधिक है, जो कोविड-19 (~3%) से कहीं अधिक है।
- स्तनधारियों से मनुष्यों में संचरण देखा गया है, परंतु वायु जनित एवं निरंतर मानव-से-मानव संचरण की पुष्टि नहीं हुई है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसंधान एवं विकास ब्लूप्रिंट के अंतर्गत H5N1 को प्राथमिकता वाली बीमारी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- लक्षण: सामान्य लक्षणों में तेज़ बुखार, खाँसी, गले में खराश तथा मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं।
- गंभीर मामलों में श्वसन विफलता या तंत्रिका संबंधी जटिलताएँ हो सकती हैं।
- कुछ व्यक्ति संक्रमण के बावजूद लक्षणहीन भी रह सकते हैं।
- उपचार: वर्तमान मौसमी फ्लू के टीके H5N1 से सुरक्षा प्रदान नहीं करते।
- ओसेल्टामिविर जैसी एंटीवायरल दवाएँ प्रभावी होती हैं, विशेषकर जब उच्च जोखिम वाले या गंभीर मामलों में इन्हें प्रारंभ में ही दिया जाए।
इन्फ्लूएंजा वायरस के प्रकार
छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ में विश्व जैव ईंधन दिवस मनाया गया
चर्चा में क्यों?
10 अगस्त, 2024 को छत्तीसगढ़ जैव ईंधन विकास प्राधिकरण (CBDA) ने दुर्ग ज़िले के गोरही गाँव में विश्व जैव ईंधन दिवस मनाया।
- इस कार्यक्रम में हरित ऊर्जा, ग्रामीण सहभागिता और जैव ईंधन संवर्द्धन पर प्रकाश डाला गया, जिसमें CBDA ने गैर-खाद्य तिलहनों तथा प्रयुक्त खाना पकाने के तेल से सफलतापूर्वक जैव-डीज़ल का उत्पादन किया तथा जैव-जेट ईंधन, बायो-इथेनॉल और हरित हाइड्रोजन के लिये भविष्य की योजनाओं पर भी प्रकाश डाला गया।
मुख्य बिंदु
विश्व जैव ईंधन दिवस के बारे में:
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य गैर-जीवाश्म ईंधनों को सतत् ऊर्जा विकल्प के रूप में प्रोत्साहित करने तथा जैव ईंधन उद्योग को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहलों को उजागर करना है।
- यह दिन 9 अगस्त,1893 में को जर्मन इंजीनियर सर रुडोल्फ डीज़ल द्वारा मूंगफली के तेल पर इंजन के सफल संचालन की याद में मनाया जाता है।
- वर्ष 2025 का विषय: "जैव ईंधन : नेट ज़ीरो की ओर एक सतत् मार्ग"
जैव ईंधन:
- परिचय:
- जैव ईंधन पौधों के बायोमास या पशु अपशिष्ट से प्राप्त ईंधन हैं, जो अक्षय ऊर्जा स्रोत माने जाते हैं। सामान्य जैव ईंधनों में शामिल हैं:
- इथेनॉल: मक्का एवं गन्ने जैसे फसल अवशेषों के किण्वन से तैयार किया जाता है, जिसे पेट्रोल के साथ मिलाकर उत्सर्जन कम किया जाता है। सामान्य मिश्रण E-10 (10% एथेनॉल) है।
- जैव-डीज़ल: प्रयुक्त खाना पकाने के तेल, पुनर्नवीनीकृत ग्रीस या पशु वसा से उत्पादित एक जैव-निम्नीकरणीय ईंधन, जो तेल या वसा को अल्कोहल और उत्प्रेरक के साथ अभिक्रिया करके बनाया जाता है।
- जैव ईंधन पौधों के बायोमास या पशु अपशिष्ट से प्राप्त ईंधन हैं, जो अक्षय ऊर्जा स्रोत माने जाते हैं। सामान्य जैव ईंधनों में शामिल हैं:
- महत्त्व:
- पर्यावरणीय लाभ: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, संसाधनों का संरक्षण एवं अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार।
- ऊर्जा सुरक्षा: 85% से अधिक तेल आयातित होने के कारण जैव ईंधन भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ा सकता है।
- आर्थिक लाभ: जैव ईंधन तेल आयात को कम कर सकता है तथा कृषि आय में वृद्धि कर सकता है, विशेष रूप से मक्का और गन्ना जैसी अधिशेष फसलों से।
- प्रचुर उपलब्धता: जैव ईंधन का उत्पादन फसलों, अपशिष्ट और शैवाल से किया जा सकता है।
नोट:
- भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता (अमेरिका और चीन के बाद) है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण हासिल करना है।
- पहली 2G इथेनॉल परियोजना का उद्घाटन वर्ष 2022 में हरियाणा के पानीपत में किया गया।
- 2G इथेनॉल एक जैव ईंधन है, जो कृषि अवशेषों और अपशिष्ट जैसे गैर-खाद्य स्रोतों से उत्पादित होता है।
उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025 को मंज़ूरी दे दी है, जिसमें बलपूर्वक, धोखाधड़ी या जबरदस्ती से धर्म-परिवर्तन के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
- नए संशोधनों में आजीवन कारावास, भारी जुर्माना तथा अवैध धर्मांतरण के पीड़ितों की सुरक्षा के लिये विस्तृत प्रावधान शामिल किये गए हैं।
मुख्य बिंदु
विधेयक के बारे में:
- कठोर दंड प्रावधान:
- संशोधित विधेयक में बलपूर्वक धर्मांतरण के गंभीर मामलों में आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रस्ताव है।
- सामान्य अपराधों के लिये 3 से 10 वर्ष का कारावास, जबकि नाबालिगों या महिलाओं जैसे संवेदनशील वर्गों से जुड़े मामलों में 5 से 14 वर्ष का कारावास का प्रावधान है।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रचार:
- यह विधेयक सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप और अन्य ऑनलाइन चैनलों के माध्यम से धर्मांतरण को बढ़ावा देने को अपराध घोषित करता है।
- प्रलोभन की विस्तारित परिभाषा:
- विधेयक में "प्रलोभन" की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है, जिसमें अब उपहार, नकदी, सामान, रोज़गार प्रस्ताव, विवाह का वादा या किसी अन्य धर्म को नकारात्मक रूप से चित्रित करना शामिल है।
- पीड़ितों की सुरक्षा:
- विधेयक में पीड़ितों की सुरक्षा, पुनर्वास, चिकित्सा देखभाल और यात्रा के लिये वित्तीय सहायता, साथ ही बलपूर्वक धर्मांतरण के पीड़ितों के लिये कानूनी सहायता के प्रावधान शामिल हैं।
- विवाह और झूठी पहचान:
- यह झूठे बहाने से विवाह करने को अपराध मानता है, जहाँ कोई व्यक्ति अपना धर्म छुपाता है।
- इसके लिये 3 से 10 वर्ष की जेल और 3 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
- संपत्ति ज़ब्ती और वारंट:
- अधिकारियों को अवैध धर्मांतरण के माध्यम से अर्जित संपत्ति को ज़ब्त करने का अधिकार होगा। इन मामलों (संज्ञेय अपराध) में बिना वारंट गिरफ्तारी की जा सकेगी और ज़मानत केवल तभी दी जाएगी जब अभियुक्त दोषी न पाया जाए या उसके द्वारा अपराध दोहराने की संभावना न हो।