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जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने पर राष्ट्रीय सम्मेलन

  • 03 Feb 2024
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री शैवाल, 21वीं सदी के केल्प वनों का चिकित्सीय भोजन, लाल शैवाल, नीला शैवाल, भारत में प्रमुख समुद्री शैवाल, भारत में समुद्री शैवाल उत्पादों का व्यावसायीकरण।

मेन्स के लिये:

भारत में समुद्री शैवाल, समुद्री शैवाल की खेती का वितरण और महत्त्व।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? .

हाल ही में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने पर राष्ट्रीय सम्मेलन कोटेश्वर (कोरी क्रीक), कच्छ, गुजरात में आयोजित किया गया।

  • इसका उद्देश्य समुद्री उत्पादन में विविधता लाने और मछुआरों की आय बढ़ाने के लिये समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने पर बल देते हुए भारतीय आधार पर समुद्री शैवाल की खेती को लागू करना था।

समुद्री शैवाल क्या हैं?

  • परिचय: समुद्री शैवाल स्थूल, बहुकोशिकीय, समुद्री शैवाल हैं। वे लाल, हरे और भूरे सहित विभिन्न रंगों के होते हैं।
    • इन्हें '21वीं सदी का चिकित्सीय भोजन' कहा जाता है।
  • वितरण: समुद्री शैवाल अधिकतर अंतर्ज्वारीय क्षेत्र में, समुद्र के उथले और गहरे पानी में व मुहाना तथा बैकवाटर में भी पाए जाते हैं।
    • समुद्री शैवाल पानी के नीचे जंगलों का निर्माण करते हैं, जिन्हें केल्प वनों (Kelp Forest) कहा जाता है। ये जंगल मछली, घोंघे आदि के लिये नर्सरी का कार्य करते हैं।
  • भारत में समुद्री शैवाल प्रजातियाँ: भारत के समुद्रों में लगभग 844 समुद्री शैवाल प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • समुद्री शैवाल की अनेक प्रजातियाँ हैं जैसे- गेलिडिएला एकेरोसा,ग्रेसिलिरिया एडुलिस, ग्रेसिलिरिया क्रैसा, ग्रेसिलिरिया वेरुकोसा, सरगस्सुम एसपीपी और टर्बिनारिया एसपीपी आदि।

नोट: आगर को लाल शैवाल से प्राप्त किया जाता है और इसका उपयोग जेली, पुडिंग जैम आदि में गाढ़ा करने तथा जेलिंग एजेंट के रूप में किया जाता है, जबकि एल्गिनेट भूरे शैवाल से प्राप्त किया जाता है एवं आइसक्रीम, सॉस व ड्रेसिंग को गाढ़ा करने तथा स्थिर करने वाले के रूप में उपयोग किया जाता है।

  • भारत में 46 समुद्री शैवाल-आधारित उद्योग होने के बावजूद, विशेष रूप से आगर के लिये 21 और एल्गिनेट उत्पादन के लिये 25, उनकी परिचालन दक्षता कच्चे माल की कमी से बाधित है।
  • भारत में प्रमुख समुद्री शैवाल: प्रचुर मात्रा में समुद्री शैवाल संसाधन तमिलनाडु और गुजरात तटों के साथ-साथ लक्षद्वीप और अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह के आसपास पाए जाते हैं।
    • उल्लेखनीय समुद्री शैवाल बेड मुंबई, रत्नागिरी, गोवा, कारवार, वर्कला, विझिंजम और तमिलनाडु में पुलिकट, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में चिल्का के आसपास मौजूद हैं।
  • महत्त्व:
    • जैव-सूचक: वे अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करके तथा कृषि, उद्योगों एवं घरों से वाहित अपशिष्ट के कारण होने वाले समुद्री रासायनिक क्षति का संकेत देकर जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। उक्त कारण अमूमन शैवाल के पनपने में भूमिका निभाते हैं।
      • वे पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • खाद्य स्रोत: समुद्री शैवाल कई पोषक तत्त्वों जैसे विटामिन, खनिज तथा आहार फाइबर से भरपूर है।
      • इसका उपयोग सुशी, सलाद, स्नैक्स एवं थिकनर सहित विभिन्न खाद्य उत्पादों में किया जाता है।
      • कई समुद्री शैवालों में प्रतिशोथ (Anti-Inflammatory) तथा रोगाणुरोधी तत्त्व मौजूद होते हैं। समुद्री शैवाल आयोडीन का सबसे अच्छा स्रोत है।
    • जैव उत्पाद: समुद्री शैवाल के अर्क का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, औषध तथा बायोप्लास्टिक्स सहित उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला में किया जाता है। वे पारंपरिक विकल्पों के स्थान पर स्थायी विकल्प प्रदान करते हैं।
    • कार्बन कैप्चर: समुद्री शैवाल अपने विकास के दौरान वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है जिससे यह जलवायु परिवर्तन अनुकूलन हेतु संभावित उपकरण की भूमिका निभाता है।
      • अध्ययनों के अनुसार समुद्री शैवाल की खेती तथा उचित प्रयोग से कार्बन को प्रभावी ढंग से संग्रहित किया जा सकता है।
    • आजीविका: समुद्री शैवाल की खेती आय सृजन में सहायता प्रदान करती है तथा तटीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं एवं छोटे किसानों को सशक्त बनाती है।
      • इसमें न्यूनतम निवेश के साथ कम समय से अधिक लाभ मिलता है।
    • अन्य लाभ: समुद्री शैवाल का उपयोग विभिन्न प्रयोजनों के लिये किया जाता है जिसमें लैक्सेटिव, फार्मास्युटिकल कैप्सूल, घेंघा/थायराइड उपचार, कैंसर चिकित्सा, अस्थि प्रतिस्थापन एवं हृदय संबंधी सर्जरी शामिल हैं।
      • उपाख्यानात्मक साक्ष्यों के अनुसार प्राचीन मिस्रवासियों ने इसका उपयोग स्तन कैंसर के उपचार हेतु किया।
  • संबंधित सरकारी पहल:
    • समुद्री शैवाल मिशन: इस पहल का उद्देश्य मूल्य संवर्द्धन के लिये समुद्री शैवाल की खेती तथा उसका वाणिज्यीकरण करना है। इसका लक्ष्य भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर कृषि को विस्तारित करना है।
    • समुद्री शैवाल उत्पादों का वाणिज्यीकरण: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)- केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) ने दो समुद्री शैवाल-आधारित न्यूट्रास्युटिकल उत्पादों, कैडलमिनTM इम्यूनलगिन अर्क (कैडलमिनTM IMe) और कैडलमिनTM एंटीहाइपरकोलेस्ट्रोलेमिक अर्क (कैडलमिनTM IMe) का सफलतापूर्वक वाणिज्यीकरण किया।
      • पर्यावरण-अनुकूल 'हरित' प्रौद्योगिकी से विकसित इन उत्पादों का उद्देश्य एंटी-वायरल प्रतिरक्षा को बढ़ावा देना तथा उच्च कोलेस्ट्रॉल अथवा डिस्लिपिडेमिया (कोलेस्ट्रॉल का असंतुलन) की रोकथाम करना है।
    • तमिलनाडु में स्थित बहुउद्देश्यीय समुद्री शैवाल पार्क समुद्री शैवाल के महत्त्व को उजागर करता है।

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