उत्तर प्रदेश Switch to English
उत्तर प्रदेश में अग्निवीरों के लिये क्षैतिज आरक्षण
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य पुलिस बल में विभिन्न पदों पर पूर्व अग्निवीरों को 20% क्षैतिज आरक्षण देने की घोषणा की है।
- आरक्षण के अतिरिक्त, सरकार ने उनकी भर्ती को आसान बनाने के लिये आयु में 3 वर्ष की छूट भी प्रदान की है।
प्रमुख बिंदु
- अग्निपथ योजना:
- परिचय:
- "अग्निवीर" शब्द का अर्थ है "अग्नि-योद्धा" और यह एक नई सैन्य रैंक है।
- यह योजना उन सैन्य कर्मियों की भर्ती के लिये लागू की गई है जो अधिकारी रैंक से नीचे के होते हैं, जैसे सैनिक, वायुसैनिक (एयरमैन) और नाविक (सेलर), जो भारतीय सशस्त्र बलों में कमीशन प्राप्त अधिकारी नहीं होते।
- इनकी भर्ती 4 वर्षों की अवधि के लिये की जाती है, जिसके पश्चात् इन अग्निवीरों में से अधिकतम 25% को स्थायी कमीशन (अगले 15 वर्षों के लिये), योग्यता और संगठनात्मक आवश्यकताओं के आधार पर सेवाओं में शामिल किया जा सकता है।
- वर्तमान में, चिकित्सा शाखा के तकनीकी संवर्ग को छोड़कर सभी सैनिक, वायुसैनिक और नाविकों की भर्ती इस योजना के अंतर्गत की जा रही है।
- पात्रता मापदंड:
- इस योजना के लिये 17.5 वर्ष से 23 वर्ष की आयु के अभ्यर्थी आवेदन के पात्र हैं (अधिकतम आयु सीमा को 21 वर्ष से बढ़ाकर 23 वर्ष किया गया है)।
- निर्धारित आयु सीमा के अंतर्गत आने वाली लड़कियाँ भी अग्निपथ प्रवेश के लिये पात्र हैं, हालाँकि इस योजना के तहत महिलाओं के लिये कोई विशेष आरक्षण प्रावधान नहीं है।
- वेतन एवं लाभ:
- ड्यूटी के दौरान मृत्यु: यदि किसी अग्निवीर की मृत्यु ड्यूटी पर होती है, तो उसके परिवार को कुल ₹1 करोड़ की राशि प्रदान की जाती है, जिसमें सेवा निधि पैकेज तथा सेवाकाल के शेष वेतन की राशि सम्मिलित होती है।
- दिव्यांगता: यदि किसी अग्निवीर को सैन्य सेवा के कारण या उसके दौरान दिव्यांगता होती है, तो दिव्यांगता की गंभीरता के आधार पर अधिकतम ₹44 लाख तक का मुआवज़ा दिया जा सकता है। यह राशि केवल उन्हीं मामलों में दी जाती है, जहाँ दिव्यांगता सैन्य सेवा के कारण उत्पन्न हुई हो या उसमें वृद्धि हुई हो।
- पेंशन: परंपरागत प्रणाली के सैनिकों के विपरीत, अग्निवीरों को 4 वर्ष की सेवा के बाद नियमित पेंशन का लाभ नहीं दिया जाता।
- स्थायी कमीशन के लिये चयनित होने वाले केवल 25% लोग ही पेंशन के लिये पात्र होंगे।
- अग्निपथ का लक्ष्य:
- यह योजना सशस्त्र बलों में युवा प्रोफाइल को बनाए रखने, बल संरचना को अनुकूलित करने, संचालन क्षमता को बढ़ाने तथा रक्षा व्यय में दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू की गई है।
- परिचय:
आरक्षण
- आरक्षण एक प्रकार की सकारात्मक कार्यवाही (Affirmative Action) है, जिसे हाशिये पर पड़े वर्गों के मध्य समानता को बढ़ावा देने तथा उन्हें सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय से संरक्षण प्रदान करने के लिये बनाया गया है।
- सामान्यतः इसका अर्थ है समाज के वंचित वर्गों को रोज़गार और शिक्षा की उपलब्धि में प्राथमिकता देना है।
- इसकी शुरुआत ऐतिहासिक भेदभाव के अन्याय को सुधारने और वंचित समुदायों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से की गई थी।
- भारत में लोगों के साथ ऐतिहासिक रूप से जाति के आधार पर भेदभाव किया गया है।
- ऊर्ध्वाधर आरक्षण:
- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण को ऊर्ध्वाधर आरक्षण कहा जाता है।
- यह कानून के अंतर्गत निर्दिष्ट प्रत्येक समूह पर पृथक रूप से लागू होता है।
- उदाहरण: संविधान का अनुच्छेद 16(4) ऊर्ध्वाधर आरक्षण का प्रावधान करता है।
- क्षैतिज आरक्षण:
- यह उन अन्य लाभार्थी वर्गों जैसे महिलाओं, पूर्व सैनिकों, ट्रांसजेंडर समुदाय, और दिव्यांग व्यक्तियों को प्रदान किये जाने वाले समान अवसर को संदर्भित करता है, जो उर्ध्वाधर श्रेणियों (vertical categories) के पार जाकर लागू होता है।
- क्षैतिज आरक्षण प्रत्येक उर्ध्वाधर श्रेणी पर पृथक रूप से लागू किया जाता है, न कि समग्र रूप से।
- उदाहरण: संविधान का अनुच्छेद 15(3) क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान करता है।
छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ होमस्टे नीति 2025-30
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ सरकार ने ग्रामीण और जनजातीय बहुल क्षेत्रों, जिसमें माओवाद प्रभावित बस्तर संभाग भी शामिल है, में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये ‘छत्तीसगढ़ होमस्टे नीति 2025-30’ को मंजूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- नीति के बारे में:
- यह नीति बस्तर क्षेत्र में जारी नक्सल-विरोधी अभियानों के बीच मंज़ूर की गई है, जो एक जनजातीय बहुल और माओवाद प्रभावित क्षेत्र है।
- यह नीति छत्तीसगढ़ के दो प्रमुख जनजातीय बहुल क्षेत्रों—बस्तर और सरगुजा—पर केंद्रित है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जैवविविधता के लिये प्रसिद्ध हैं।
- उद्देश्य और सांस्कृतिक संवर्द्धन:
- होमस्टे आगंतुकों को ग्रामीण जीवन का गहन अनुभव प्रदान करेगा, जिसमें जनजातीय संस्कृति, स्थानीय कला और हस्तशिल्प तथा अद्वितीय क्षेत्रीय विशेषताएँ प्रदर्शित होंगी।
- स्थानीय लोगों के लिये सामाजिक-आर्थिक लाभ:
- इस नीति का उद्देश्य स्थानीय निवासियों को होमस्टे चलाने में सक्षम बनाकर उनके लिये आय के अवसर सृजित करना है।
- यह 'वोकल फॉर लोकल' पहल का समर्थन करता है और इससे ग्रामीण पर्यटन और स्थानीय उद्यमिता को मज़बूती मिलने की उम्मीद है।
माओवाद
- परिचय:
- माओवाद माओ त्से तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है। यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य सत्ता पर कब्ज़ा करने का सिद्धांत है।
- माओ ने इस प्रक्रिया को 'दीर्घकालिक जनयुद्ध' कहा, जिसमें सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिये 'सैन्य लाइन' पर ज़ोर दिया जाता है।
- माओवादी विचारधारा:
- माओवादी उग्रवाद सिद्धांत के अनुसार, 'हथियार रखने पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता'।
- माओवादी विचारधारा का केंद्रीय विषय राज्य सत्ता पर कब्ज़ा करने के साधन के रूप में हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का प्रयोग करना है।
- माओवादी उग्रवाद सिद्धांत के अनुसार, 'हथियार रखने पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता'।
- भारतीय माओवादी:
- भारत में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक माओवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) है जिसका गठन वर्ष 2004 में हुआ था।
- CPI (माओवादी) और उसके अग्रणी संगठनों को विधिविरुद्ध गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया।
- फ्रंट ऑर्गनाइजेशन मूल माओवादी पार्टी की शाखाएँ हैं, जो कानूनी उत्तरदायित्व से बचने के लिये अलग अस्तित्व का दावा करती हैं।
वोकल फॉर लोकल पहल
- नीति आयोग ने अपने एस्पिरेशनल ब्लॉक्स प्रोग्राम (ABP) के तहत 'वोकल फॉर लोकल' पहल शुरू की।
- इस पहल का उद्देश्य नागरिकों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना तथा सतत् विकास और समावेशी समृद्धि को बढ़ावा देना है।
- इस पहल के एक भाग के रूप में, 500 आकांक्षी ब्लॉकों के स्वदेशी स्थानीय उत्पादों को आकांक्षा के तहत मैप और समेकित किया गया है।
- आकांक्षा एक व्यापक ब्रांड के रूप में कार्य करता है, जिसे वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश की क्षमता के साथ विभिन्न उप-ब्रांडों में विस्तारित किया जा सकता है।
- इन स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) पोर्टल पर आकांक्षा ब्रांड के तहत एस्पिरेशनल ब्लॉक कार्यक्रम के लिये एक समर्पित विंडो शुरू की है।
- साझेदार संगठन से सहायता:
- साझेदार संगठन निम्नलिखित के लिये तकनीकी और परिचालन सहायता प्रदान करेंगे:
- ई-कॉमर्स ऑनबोर्डिंग
- बाज़ार संपर्क विकास
- वित्तीय और डिजिटल साक्षरता
- दस्तावेज़ीकरण और प्रमाणन
- कौशल विकास एवं क्षमता वृद्धि
हरियाणा Switch to English
अरावली ग्रीन वॉल पहल
चर्चा में क्यों?
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून, 2025) पर प्रधानमंत्री ने ‘अरावली ग्रीन वॉल परियोजना’ के तहत ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान पहल को आगे बढ़ाया, जिसका उद्देश्य दिल्ली से गुजरात तक अरावली पर्वत शृंखला में वनीकरण को प्रोत्साहित करना है।
- इस पहल के तहत, हरियाणा सरकार 25,000 हेक्टेयर बंजर वन भूमि को पुनः बहाल करेगी।
विश्व पर्यावरण दिवस (WED)
- इतिहास एवं परिचय:
- विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- उसी वर्ष बाद में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में घोषित किया।
- पहला उत्सव 1973 में “ओनली वन अर्थ” थीम के साथ मनाया गया, जो पर्यावरण जागरूकता के लिये सबसे बड़े वैश्विक मंच की शुरुआत थी।
- वर्ष 2021 में WED समारोह ने पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) की शुरुआत की, जो वनों से लेकर खेतों तक, पहाड़ों की चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई तक अरबों हेक्टेयर भूमि को पुनर्जीवित करने का एक वैश्विक मिशन है।
- विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- WED 2025:
- कोरिया गणराज्य विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की मेज़बानी कर रहा है जिसका फोकस वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर है।
- वर्ष 2025 की थीम है "बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन", जो प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करता है।
- भारत ने वर्ष 2018 में 'बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन' थीम के अंतर्गत विश्व पर्यावरण दिवस के 45 वें समारोह की मेज़बानी की थी।
प्रमुख बिंदु
- अरावली ग्रीन वॉल परियोजना के बारे में:
- अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल पहल से प्रेरित होकर, अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य है-
- वर्ष 2027 तक 1.1 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षरित भूदृश्यों को पुनः स्थापित करना।
- स्थानिक प्रजातियों के साथ वनरोपण, मृदा स्वास्थ्य सुधार और भूजल पुनःपूर्ति पर ध्यान केंद्रित करना।
- नगरीय ऊष्मा द्वीपों को कम करने के लिये एक "पारिस्थितिक दीवार" विकसित करना तथा NCR के लिये कार्बन सिंक के रूप में कार्य करना।
- अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल पहल से प्रेरित होकर, अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य है-
- अरावली के लिये पर्यावरणीय खतरे:
- अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक है, जो दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली हुई है।
- यह क्षेत्र अवैध खनन और तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण गंभीर पर्यावरणीय गिरावट का सामना कर रहा है।
- नर्सरी विकास योजना:
- सरकार अरावली ग्रीन वॉल परियोजना के तहत बड़े पैमाने पर वनरोपण को बढ़ावा देने के लिये अरावली पर्वतमाला के 29 ज़िलों में 1,000 नर्सरियाँ विकसित करेगी।
- क्षरण को कम करने के लिये सरकार ने वृक्षारोपण बढ़ाने और पर्वतमाला पर हरित आवरण का विस्तार करने की योजना बनाई है।
- इस पहल का उद्देश्य जैवविविधता को बहाल करना, मृदा को स्थिर करना और पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्जीवित करना है।
- अवक्रमित क्षेत्रों का वितरण:
- राजस्थान में सर्वाधिक 81% अवक्रमित भूमि है।
- गुजरात का हिस्सा 15.8% है।
- हरियाणा में 1.7% है।
- दिल्ली में कुल अवक्रमित क्षेत्र का 1.6% हिस्सा है।
अरावली पर्वत शृंखला
- परिचय:
- अरावली विश्व की सबसे प्राचीन भ्रंश पर्वतमाला है। भूवैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, इसकी आयु लगभग तीन अरब वर्ष आंकी गई है।
- यह पर्वतमाला गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है (राजस्थान और हरियाणा होते हुए)।
- अरावली शृंखला की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थित गुरु शिखर है।
- जलवायु पर प्रभाव:
- अरावली पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम भारत और उससे आगे के क्षेत्रों की जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।
- मानसून के दौरान, पर्वत शृंखला मानसून के बादलों को धीरे-धीरे पूर्व की ओर शिमला और नैनीताल की ओर ले जाती है, जिससे उप-हिमालयी नदियों को पोषण मिलता है और उत्तर भारतीय मैदानों की सिंचाई संभव होती है।
- सर्दियों के महीनों में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों (सिंधु और गंगा) को मध्य एशिया से ठंडी पश्चिमी हवाओं के हमले से बचाती है।
- अरावली पर्वतमाला की पारिस्थितिक भूमिका:
- अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल के पूर्व की ओर विस्तार को रोककर मरुस्थलीकरण के विरुद्ध एक प्राकृतिक ढाल का कार्य करती है।
- यह दिल्ली, जयपुर और गुरुग्राम जैसे प्रमुख शहरों को मरुस्थली अतिक्रमण और बढ़ती शुष्कता से संरक्षित रखती है।
- नदियाँ:
- यह शृंखला चंबल, साबरमती और लूनी सहित कई महत्त्वपूर्ण नदियों का उद्गम स्थल है।
- ये नदियाँ उत्तर-पश्चिमी भारत में कृषि, पेयजल और क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- अरावली पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरे:
- अवैध खनन, अत्यधिक चारण और मानव अधिवास पूरे क्षेत्र में भूमि क्षरण को तेज़ कर रही हैं।
- ये गतिविधियाँ भूमिगत जलभृतों को क्षति पहुँचा रही हैं, झीलों को शुष्क बना रही हैं, तथा वन्यजीवों और जैवविविधता को सहारा देने की पर्वत शृंखला की क्षमता को कमज़ोर कर रही हैं।
एक पेड़ माँ के नाम' अभियान
- परिचय: इसका उद्देश्य माताओं को सम्मानित करना है, जिसके तहत उनके नाम पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण को मातृत्व को समर्पित एक श्रद्धांजलि के रूप में जोड़ती है, जो इस बात का प्रतीक है कि जैसे वृक्ष जीवन को पोषण और सहारा प्रदान करते हैं, वैसे ही माँ भी जीवन का पालन-पोषण करती हैं।
- इसे विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून, 2024 को प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्य: पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना, वन क्षेत्र में वृद्धि करना और माताओं को सम्मान देते हुए सतत् विकास का समर्थन करना।
- विश्व रिकॉर्ड उपलब्धि: 22 सितंबर 2024 को, प्रादेशिक सेना की 128 इन्फैंट्री बटालियन और पारिस्थितिक कार्य बल ने जैसलमेर में एक घंटे में 5 लाख से अधिक पौधे लगाए।
राजस्थान Switch to English
रामसर स्थल और विश्व पर्यावरण दिवस
चर्चा में क्यों?
विश्व पर्यावरण दिवस पर भारत ने दो और आर्द्रभूमियाँ—फालोदी के खीचन और उदयपुर के मेनार—को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की रामसर सूची में शामिल किया।
- इन सम्मिलनों के साथ भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्या 91 हो गई है।
विश्व पर्यावरण दिवस (WED)
- इतिहास एवं परिचय:
- विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- उसी वर्ष बाद में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में घोषित किया।
- पहला उत्सव 1973 में “ओनली वन अर्थ” थीम के साथ मनाया गया, जो पर्यावरण जागरूकता के लिये सबसे बड़े वैश्विक मंच की शुरुआत थी।
- वर्ष 2021 में WED समारोह ने पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) की शुरुआत की, जो वनों से लेकर खेतों तक, पहाड़ों की चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई तक अरबों हेक्टेयर भूमि को पुनर्जीवित करने का एक वैश्विक मिशन है।
- विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- WED 2025:
- कोरिया गणराज्य विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की मेज़बानी कर रहा है जिसका फोकस वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर है।
- वर्ष 2025 की थीम है "बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन", जो प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करता है।
- भारत ने वर्ष 2018 में 'बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन' थीम के अंतर्गत विश्व पर्यावरण दिवस के 45 वें समारोह की मेज़बानी की थी।
प्रमुख बिंदु
- खीचन आर्द्र्भूमि:
- परिचय:
- यह राजस्थान के जैसलमेर शहर से लगभग 171 किमी दूर खीचन गाँव में स्थित है।
- इसमें दो जल निकाय, रात्रि नदी और विजयसागर तालाब, तटवर्ती आवास और झाड़ीदार भूमि शामिल हैं।
- प्रवासी पक्षी आवास:
- अभयारण्य में तीन प्रवासी पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं: कुरजन, करकरा और कुंच, जिन्हें स्थानीय रूप से डेमोइसेल क्रेन के नाम से जाना जाता है ।
- खीचन पक्षी अभयारण्य विश्व स्तर पर "डेमोइसेल क्रेन गाँव" के रूप में प्रसिद्ध है, जो विश्व भर से पक्षी प्रेमियों और शोधकर्त्ताओं को आकर्षित करता है।
- ये पक्षी दक्षिण-पश्चिम यूरोप, काला सागर, पोलैंड, यूक्रेन, कज़ाकिस्तान, मंगोलिया और उत्तरी तथा दक्षिणी अफ्रीका के कुछ हिस्सों से खीचन की ओर प्रवास करते हैं।
- अभयारण्य में तीन प्रवासी पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं: कुरजन, करकरा और कुंच, जिन्हें स्थानीय रूप से डेमोइसेल क्रेन के नाम से जाना जाता है ।
- परिचय:
- मेनार आर्द्र्भूमि:
- परिचय:
- मेनार आर्द्र्भूमि राजस्थान के उदयपुर में स्थित एक मीठे जल की मानसून आर्द्रभूमि परिसरों में से एक है।
- यह आर्द्रभूमि तीन आपस में जुड़े तालाबों—ब्रह्म तालाब, धंद तालाब, और खेड़ोड़ा तालाब—के साथ-साथ धंद और खेड़ोड़ा को जोड़ने वाली कृषि भूमि से मिलकर बनती है।
- मानसून के दौरान, आसपास के खेतों में बाढ़ आ जाती है, जिससे जल पक्षियों के लिये अतिरिक्त आवास बन जाता है।
- परिचय:
- जैवविविधता और प्रमुख प्रजातियाँ:
- यह स्थल विविध पक्षी जीवन का समर्थन करता है, जिसमें अति संकटग्रस्त व्हाइट बैक्ड वल्चर (Gyps bengalensis) और लॉन्ग-बिल्ड वल्चर (Gyps indicus) शामिल हैं।
- इसमें 70 से अधिक पादप प्रजातियाँ भी हैं, जिनमें ब्रह्म तालाब के पास आम के वृक्ष (मैंगीफेरा इंडिका) भी शामिल हैं
- आम के वृक्ष इंडियन फ्लाइंग फॉक्स (Pteropus giganteus) की एक बड़ी कॉलोनी के लिये आश्रय स्थल के रूप में काम करते हैं, जिससे आर्द्रभूमि की पारिस्थितिक समृद्धि में वृद्धि होती है।
- समुदाय-प्रेरित संरक्षण का मॉडल:
- इसे राजस्थान में समुदाय-संचालित संरक्षण के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है।
- मेनार गाँव के निवासी वन्यजीवों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा क्षेत्र में अवैध शिकार और मत्स्यन को रोकने के लिये सक्रिय रूप से काम करते हैं।
- रामसर अभिसमय
- परिचय:
- रामसर अभिसमय एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिस पर वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में यूनेस्को के तत्वावधान में हस्ताक्षर किये गये थे, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों का संरक्षण करना है।
- भारत में यह अधिनियम 1 फरवरी 1982 को लागू हुआ, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल घोषित किया गया।
- अगस्त 2024 तक, तमिलनाडु (18) में रामसर स्थलों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद उत्तर प्रदेश (10) का स्थान है।
- मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के उन आर्द्रभूमि स्थलों का रजिस्टर है, जहाँ तकनीकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक चरित्र में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं या होने की संभावना है।
- इसे रामसर सूची के भाग के रूप में रखा गया है।
- रामसर अभिसमय एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिस पर वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में यूनेस्को के तत्वावधान में हस्ताक्षर किये गये थे, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों का संरक्षण करना है।
- रामसर स्थलों की पहचान के लिये मानदंड:
- वर्तमान में, अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की पहचान के लिये नौ मानदंड हैं, जिनमें प्रतिनिधि, दुर्लभ या अद्वितीय आर्द्रभूमि प्रकार वाले स्थल; जैवविविधता के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल; जलपक्षियों, मछलियों आदि पर आधारित विशिष्ट मानदंड शामिल हैं।
- परिचय: