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प्रश्न :
एक दुखद घटना में, राज्य के एक ज़िले में बीस से अधिक बच्चों ने एक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली कफ सिरप पीने से अपनी जान गँवा दी, जो बाद में मिलावटी पाई गई। राज्य के औषधि नियंत्रण विभाग में तैनात एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अनन्या को इस मामले की जाँच एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है।
जब वह रिकॉर्ड की जाँच करती हैं, तो उन्हें औषधि परीक्षण प्रक्रियाओं में गंभीर लापरवाहियाँ, निरीक्षणों में विलंब तथा कुछ स्थानीय वितरकों और निर्माताओं के बीच मिलीभगत जैसी चिंताजनक बातें पता चलती हैं। अभिभावक और नागरिक समाज संगठन जाँच रिपोर्ट को तुरंत सार्वजनिक करने, दोषियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई करने तथा भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिये तंत्रगत सुधारों की माँग कर रहे हैं।
इस दौरान, राज्य के स्वास्थ्य विभाग पर जनता के आक्रोश को नियंत्रित करने और नकारात्मक मीडिया कवरेज को रोकने का भारी राजनीतिक दबाव है। कुछ वरिष्ठ अधिकारी डॉ. अनन्या को सरकार और प्रभावशाली हितधारकों की प्रतिष्ठा को नुकसान से बचाने के लिये ‘मामले को चुपचाप निपटाने’ की सलाह देते हैं, साथ ही यह चेतावनी भी देते हैं कि सख्त प्रवर्तन उनके कॅरियर को खतरे में डाल सकता है।
नमूना परीक्षण और रिपोर्टिंग में शामिल कनिष्ठ अधिकारियों को डर है कि अगर वे तथ्यों का पूरा खुलासा करते हैं तो उन्हें उत्पीड़न, स्थानांतरण या कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। साथ ही, न्यायालय ने स्वप्रेरणा से संज्ञान (Suo motu cognisance) लिया है, जिनमें जाँच में पारदर्शिता, प्रभावित परिवारों को मुआवज़ा एवं औषधि सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी में सुधार की माँग करते हुए कई जनहित याचिकाएँ दायर की गई हैं।
प्रश्न:
A. इस परिप्रेक्ष्य में डॉ. अनन्या के समक्ष कौन-सी नैतिक दुविधाएँ हैं?
B. उनके पास उपलब्ध विकल्पों का मूल्यांकन कीजिये तथा उनके संभावित परिणामों का विश्लेषण कीजिये।
C. प्रशासनिक उत्तरदायित्व और नागरिक कल्याण के बीच संतुलन के आधार पर डॉ. अनन्या के लिये सबसे उपयुक्त कार्रवाई का सुझाव दीजिये।
D. औषधि सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधारों को प्रस्तावित कीजिये।
24 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संदर्भ स्थापित करने के लिये स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- इस परिदृश्य में डॉ. अनन्या के समक्ष आने वाली नैतिक दुविधाओं का अभिनिर्धारण कर उन पर चर्चा कीजिये।
- उनके लिये उपलब्ध विकल्पों और प्रत्येक विकल्प के संभावित परिणामों का मूल्यांकन कीजिये।
- प्रशासनिक उत्तरदायित्व और नागरिक कल्याण के बीच संतुलन के आधार पर डॉ. अनन्या के लिये सबसे उपयुक्त कार्यवाही प्रस्तावित कीजिये।
- औषधि सुरक्षा पर्यवेक्षण को सुदृढ़ करने के लिये दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधारों का प्रस्ताव कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
इस दुखद मामले में, मिलावटी कफ सिरप पीने से बीस से अधिक बच्चों की जान चली गई। राज्य औषधि नियंत्रण विभाग की एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी, डॉ. अनन्या को इस घटना की जाँच का काम सौंपा गया है। जाँच में लापरवाह परीक्षण प्रोटोकॉल, विलंबित निरीक्षण और वितरकों व निर्माताओं के बीच मिलीभगत जैसी गंभीर खामियाँ सामने आई हैं। बढ़ते जन आक्रोश के बीच, मामले को दबाने के लिये राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है, जबकि कनिष्ठ अधिकारियों को बोलने पर प्रतिशोध का डर है। अदालतों ने स्वतः हस्तक्षेप करते हुए औषधि सुरक्षा पर्यवेक्षण में पारदर्शिता और सुधार की माँग की है।
मुख्य भाग:
A. डॉ. अनन्या के समक्ष नैतिक दुविधाएँ
- सत्यनिष्ठा बनाम संस्थागत निष्ठा: सत्य और जन कल्याण के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना या उन उच्च अधिकारियों की आज्ञा का पालन करना जो राजनीतिक कारणों से तथ्यों को छिपाना चाहते हैं।
- पारदर्शिता बनाम प्रशासनिक दबाव: निष्कर्षों का पूर्ण प्रकटीकरण करने और ‘मामले को शांतिपूर्वक निपटाने’ के आदेशों का पालन करने के बीच निर्णय लेना।
- जनहित बनाम व्यक्तिगत जोखिम: सख्त कार्रवाई से नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित होगी, लेकिन यह अनन्या के कॅरियर, सुरक्षा और पेशेवर प्रतिष्ठा को खतरे में डाल सकती है।
- उत्तरदायित्व बनाम सहकर्मी-सद्भाव: लापरवाही या भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने से सहकर्मियों या वरिष्ठ अधिकारियों का नाम उजागर हो सकता है।
- नैतिक साहस बनाम प्रशासनिक अनुरूपता: ऐसी व्यवस्था में दृढ़ विश्वास का साहस दिखाने की नैतिक परीक्षा का सामना करना पड़ सकता है जो प्रायः सच्चाई की बजाय चुप्पी को महत्त्व देती है।
B. विकल्पों का मूल्यांकन एवं संभावित परिणाम
- विकल्प 1: दबाव में निष्कर्षों को दबाना या कमज़ोर करना।
- पक्ष: तत्काल राजनीतिक तुष्टिकरण, कॅरियर सुरक्षा और संस्थागत सद्भाव।
- विपक्ष: सत्यनिष्ठा का उल्लंघन करता है, जनता के विश्वास को कम करता है, व्यवस्थागत भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और पीड़ितों को न्याय से वंचित करता है।
- विकल्प 2: शक्तिशाली हितों की रक्षा करते हुए निष्कर्षों का आंशिक रूप से खुलासा करना।
- पक्ष: बाह्य रूप से संतुलित प्रतीत होता है और पूर्ण मतभेद से बचाव सुनिश्चित करता है।
- विपक्ष: नैतिक उत्तरदायित्व से समझौता करता है, जनता को भ्रमित करता है और बाद में न्यायिक या मीडिया जाँच को आमंत्रित करता है।
- विकल्प 3: पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखना।
- पक्ष: पेशेवर नैतिकता को बनाए रखता है, जनहित में काम करता है तथा निष्पक्षता और न्याय के संवैधानिक कर्त्तव्य के अनुरूप है।
- विपक्ष: राजनीतिक प्रतिक्रिया, प्रशासनिक अलगाव और संभावित स्थानांतरण या अनुशासनात्मक कार्रवाई का जोखिम।
C. सबसे उपयुक्त कार्यवाही
- डॉ. अनन्या को विकल्प 3 अपनाना चाहिये— विधि के शासन और नैतिक शासन के अनुरूप पारदर्शी, साक्ष्य-आधारित जाँच करनी चाहिये।
- डॉ. अनन्या को सभी निष्कर्षों का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करना चाहिये, ताकि कानूनी रूप से बचाव योग्य रिपोर्ट सुनिश्चित हो सके।
- जाँच की शुचिता की रक्षा के लिये न्यायिक और पर्यवेक्षण निकायों (जैसे: लोकायुक्त, मानवाधिकार आयोग) के साथ सहयोग करना चाहिये।
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत अपने वैधानिक दायित्व पर बल देते हुए, वरिष्ठों के साथ पेशेवर संवाद बनाए रखना चाहिये।
- कनिष्ठ अधिकारियों को संस्थागत सहायता प्रदान की जानी चाहिये, व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहिये।
- प्रशासनिक ज़िम्मेदारी और नागरिक कल्याण, दोनों को बनाए रखने के लिये प्रक्रियात्मक औचित्य के साथ दृढ़ता का संतुलन बनाए रखना चाहिये।
D. औषधि सुरक्षा पर्यवेक्षण के लिये दीर्घकालिक प्रणालीगत सुधार
- नियामक ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: राज्य औषधि प्रयोगशालाओं का उन्नयन, आवधिक ऑडिट सुनिश्चित करना चाहिये और WHO-GMP (अच्छे विनिर्माण अभ्यास) मानकों को अपनाना चाहिये।
- डिजिटल ट्रांसपेरेंसी: आपूर्ति शृंखलाओं के पर्यवेक्षण और मिलावट को रोकने के लिये वास्तविक काल में औषधि परीक्षण एवं ट्रैकिंग प्रणालियाँ लागू की जानी चाहिये।
- स्वतंत्र औषधि प्राधिकरण: राज्यों में समन्वित प्रवर्तन के लिये एक स्वायत्त राष्ट्रीय औषधि सुरक्षा और गुणवत्ता प्राधिकरण का गठन जाना चाहिये।
- व्हिसलब्लोअर संरक्षण और नैतिकता प्रशिक्षण: कदाचार की रिपोर्ट करने वाले अधिकारियों के लिये नैतिक क्षमता-निर्माण और सुरक्षा तंत्र को संस्थागत बनाया जाना चाहिये।
- सार्वजनिक जवाबदेही: औषधि परीक्षण, रिकॉल, एवं प्रवर्तन कार्यवाहियों पर वार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट अनिवार्य की जानी चाहिये।
- न्यायिक और विधायी पर्यवेक्षण: औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत लापरवाह निर्माताओं और भ्रष्ट अधिकारियों के लिये दंडात्मक प्रावधानों को सख्त किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
डॉ. अनन्या का नैतिक दायित्व केवल प्रशासनिक आदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा में निहित है। पारदर्शिता, साहस और न्याय के मूल्यों का पालन करके वह न केवल इस प्रकरण में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करेंगी, बल्कि जनविश्वास को भी पुनर्स्थापित करेंगी। औषधि नियमन, नैतिक शासन और संस्थागत निष्ठा को सुदृढ़ करना ऐसी त्रासदियों की पुनरावृत्ति रोकने तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये अत्यंत आवश्यक है।
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