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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘सम्मान का अधिकार’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का अंग है और इसे भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के लिये समाप्त नहीं किया जा सकता। अतः किसी व्यक्ति के सम्मान की रक्षा के लिये मानहानि कानूनों का होना आवश्यक है। आलोचनात्मक विश्लेषण करें।

    23 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • अनुच्छेद तथा अनुच्छेद 19(1) का उल्लेख करें।
    • इससे संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का आदेश क्या है?
    • आदेश (निर्णय) के पक्ष और विपक्ष में तर्क देते हुए निष्कर्ष लिखें।

    हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि कानून की वैधता को बरकरार रखा। सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 499 व 500 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को निरस्त कर दिया।

    आपराधिक कानून के पक्ष में तर्क

    • संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित व्यक्ति की प्रतिष्ठा व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार, अनुच्छेद 19(1) के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के समान ही महत्त्वपूर्ण है।
    • उल्लेखनीय है कि कोई भी मूल अधिकार असीमित नहीं है। अतः मानहानि के कृत्य को आपराधिक कृत्य मानना व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये ‘एक युक्ति-युक्त निर्बंधन’ है।
    • यह कानून 70 से अधिक वर्षों से विधिक कानूनों का हिस्सा रहा है। इस धारा ने न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित किया है न ही हमारे जीवंत लोकतंत्र को कोई क्षति पहुँचाई है।
    • न्यायालय का मानना है कि केवल कानून का दुरुपयोग किसी कानून को अवैध ठहराने का आधार नहीं हो सकता अपितु अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा इन प्रावधानों के दुरुपयोग के संबंध में संवेदनशीलता दिखाई जानी चाहिये।

    आपराधिक कानून के विपक्ष में तर्कः

    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक जीवंत लोकतंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण है तथा किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति के लिये अपराधी ठहराए जाने का भय सत्य का गला घोटने के लिये पर्याप्त है।
    • व्यक्तिगत स्तर पर प्रदान किये गए प्रतिष्ठा के अधिकार को सरकार जैसी सामूहिक स्वरूप की संस्थाओं को प्रदान नहीं किया जा सकता है। ऐसे संस्थान अपनी प्रतिष्ठा को पुनः अर्जित करने में पहले से सक्षम है।
    • श्रीलंका सहित कई पड़ोसी देशों ने मानहानि को अपराध की कोटि से बाहर रखा है।

    वर्ष 2011 में यह देखते हुए कि आपराधिक मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान के कारण लोग व्यवस्था में व्याप्त त्रुटियों की आलोचना करने अथवा उन्हें उद्घाटित करने में भय एवं संकोच का अनुभव करते हैं। इसी कारण नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय से संबंधित मानवाधिकार समिति ने आपराधिक मानहानि को समाप्त करने के लिये देशों से आह्नान किया।

    संविधान में वर्णित मूल अधिकारों में संतुलन स्थापित करने के क्रम में आपराधिक कानून को नागरिक कानून के तहत स्वीकार किया जा सकता है।

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