अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बढ़ते संरक्षणवाद के बीच उभरते बाज़ार
- 15 Sep 2025
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यह एडिटोरियल 15/09/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Strategies for emerging markets at a time when protectionism is rising” पर आधारित है। इस लेख में बढ़ते संरक्षणवाद के संदर्भ में उभरते बाज़ारों के समक्ष आने वाली बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है जो सतत् एवं सुदृढ़ विकास को बढ़ावा देने के लिये रणनीतिक उपायों के महत्त्व को रेखांकित करता है।
प्रिलिम्स के लिये: भारत का आत्मनिर्भर भारत, यूरोपीयन यूनियन क्रिटिकल रॉ मटेरियल्स एक्ट, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM), RCEP, BRICS, हिंद-प्रशांत आर्थिक कार्यढाँचा (IPEF)
मेन्स के लिये: वैश्वीकृत विश्व में बढ़ते संरक्षणवाद के कारण, बढ़ते संरक्षणवाद में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को कमजोर बनाने वाले कारक, भारत-अमेरिका व्यापार विवाद
उभरते हुए बाज़ार आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं, जिस पर बढ़ते संरक्षणवाद के वैश्विक पुनरुत्थान का गहरा प्रभाव है। जो अर्थव्यवस्थाएँ कभी विस्तृत व्यापार नेटवर्क और विदेशी निवेश के निरंतर प्रवाह के माध्यम से वैश्वीकरण की गति पर विकसित हो रही थीं, वे अब ऐसी स्थिति में हैं जहाँ उन्हें नए अवसरों और गंभीर चुनौतियों, दोनों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कई देश अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक अंतर्मुखी (Inward-looking) रणनीतियों की ओर रुख कर रहे हैं।
वैश्वीकृत विश्व में संरक्षणवाद क्यों बढ़ रहा है?
- आर्थिक राष्ट्रवाद और विऔद्योगीकरण: विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों के नुकसान से जूझ रहे देश पुनर्स्थापन को प्राथमिकता दे रहे हैं।
- यू.एस. इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट अधिनियम, 2022 घरेलू स्वच्छ ऊर्जा विनिर्माण को प्रोत्साहित करता है, जबकि यूरोपीयन यूनियन क्रिटिकल रॉ मटेरियल्स एक्ट आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने और आयात पर निर्भरता कम करने का प्रयास करता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और रणनीतिक अलगाव: अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण ह्यूवई (Huawei) जैसी कंपनियों पर प्रतिबंध एवं उन्नत अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी पर निर्यात नियंत्रण लागू हो गए हैं।
- इसी प्रकार, भारत की आत्मनिर्भर भारत पहल महत्त्वपूर्ण आयातों पर निर्भरता कम करने के प्रयासों को दर्शाती है।
- कोविड-19 के बाद आपूर्ति शृंखला की कमजोरियाँ: महामारी ने फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और चिकित्सा आपूर्ति की नाज़ुक आपूर्ति शृंखलाओं को उजागर किया।
- स्टील और सौर पैनलों के उत्पादन पर चीन के नियंत्रण के कारण अमेरिका, यूरोपीय संघ एवं भारत ने घरेलू उद्योगों को सब्सिडी वाले आयातों से बचाने के उद्देश्य से टैरिफ लगाए हैं।
- इसके जवाब में, जापान की आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता रणनीति चीन से दूर विविधीकरण को बढ़ावा देती है, जबकि अमेरिकी चिप्स अधिनियम घरेलू सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देता है।
- बढ़ती असमानता और जनवाद: ब्रेक्ज़िट यह दर्शाता है कि वैश्वीकरण के विरुद्ध जनवादी प्रतिक्रिया किस प्रकार उभरी, जिसका मुख्य कारण आर्थिक असमानता एवं स्थानीय उद्योगों की रक्षा की माँग रही।
- अमेरिका में, स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ को घरेलू नौकरियों की सुरक्षा के रूप में उचित ठहराया गया था, जो चुनावी दबावों को दर्शाता है।
- ब्राज़ील और अर्जेंटीना जैसे देश कृषि क्षेत्रों की रक्षा के लिये व्यापार अवरोध लगाते हैं, जो खुलेपन के वैश्विक आह्वान के बावजूद व्यापार वार्ता में संप्रभुता का संकेत देते हैं।
- पर्यावरण और जलवायु संबंधी चिंताएँ: यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) उच्च-कार्बन आयातों पर टैरिफ लगाता है, जिससे निर्यातकों को सख्त पर्यावरणीय मानकों को अपनाने के लिये विवश होना पड़ता है।
बढ़ते संरक्षणवाद के बीच उभरती अर्थव्यवस्थाओं को क्या कमज़ोर बनाता है?
- उच्च व्यापार निर्भरता: वियतनाम, थाईलैंड और बांग्लादेश जैसे उभरती अर्थव्यवस्थाओं (EM) की वृद्धि मुख्यतः निर्यात पर आधारित है। ऐसे में शुल्क और गैर-शुल्कीय बाधाएँ उनके लिये विशेष रूप से हानिकारक सिद्ध होती हैं।
- अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिससे व्यापार प्रवाह बाधित हुआ है और वस्त्र, दवा एवं इंजीनियरिंग घटक जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
- ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये शुल्क 60.2 बिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय निर्यात को प्रभावित करेंगे, जिसमें वस्त्र, रत्न-आभूषण, झींगा, कालीन एवं फर्नीचर शामिल हैं।
- जब तेल, तांबा या कृषि निर्यात की वैश्विक माँग गिरती है, तो लैटिन अमेरिकी व अफ्रीकी उभरते बाज़ारों को नुकसान होता है।
- अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिससे व्यापार प्रवाह बाधित हुआ है और वस्त्र, दवा एवं इंजीनियरिंग घटक जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
- व्यापार विचलन और चीन शॉक 2.0: चीन पर अमेरिकी टैरिफ ने चीन को भारत, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे अन्य उभरते बाज़ारों में अतिरिक्त निर्यात को पुनर्निर्देशित करने के लिये प्रेरित किया है, जिससे घरेलू उद्योगों पर सस्ते आयातों से प्रतिस्पर्द्धा करने का दबाव बढ़ रहा है।
- तकनीकी व्यवधान: स्वचालन और AI श्रम बाज़ार को बदल रहे हैं। भारत जैसे श्रम-समृद्ध देशों को बढ़ते पूँजी-श्रम अनुपात की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिससे ब्लू-कॉलर एवं व्हाइट-कॉलर, दोनों क्षेत्रों में नौकरियों के विस्थापन का खतरा है।
- NASSCOM की एक रिपोर्ट (2023) बताती है कि AI और स्वचालन वर्ष 2030 तक भारत में 69 मिलियन नौकरियों को खत्म कर सकते हैं, विशेषकर विनिर्माण एवं ग्राहक सेवा जैसे पुनरावृत्ति वाले कार्यों वाले क्षेत्रों में।
- आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरी: कोविड-19 व्यवधानों ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को उजागर किया। चीनी API (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट) पर निर्भर भारत का दवा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ।
- कमज़ोर घरेलू बाज़ार: विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, उभरते बाज़ारों में प्रायः बाहरी झटकों को कम करने के लिये सुदृढ़ आंतरिक माँग का अभाव होता है।
- उभरते बाज़ारों में बड़ी युवा आबादी को रोज़गार सृजन और कौशल विकास की आवश्यकता है; इस पर ध्यान न देने से सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है, जैसा कि दक्षिण एशिया में हाल ही में युवाओं के विरोध प्रदर्शनों में देखा गया है।
भारत-अमेरिका व्यापार विवादों का भारत के उभरते बाज़ारों के विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- उच्च शुल्क लगाना: अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 25% शुल्क लगाया है और आगे 25% की और बढ़ोतरी तय की है। इससे कुछ भारतीय वस्तुओं पर कुल शुल्क 50% हो जायेगा।
- इससे निर्यात लागत में तेज़ी से वृद्धि होती है, जिससे भारतीय उत्पाद महत्त्वपूर्ण अमेरिकी बाज़ार में कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाते हैं, जहाँ वर्ष 2024 में लगभग 48.2 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ था।
- प्रमुख भारतीय निर्यात क्षेत्र जैसे सी-फूड (झींगा), जैविक रसायन, कालीन, परिधान, आभूषण और औद्योगिक वस्तुओं पर 50% से अधिक शुल्क दरें लागू हैं, जिससे राजस्व एवं बाज़ार हिस्सेदारी पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
- व्यापार वार्ता में गतिरोध: व्यापार वार्ता के कई दौर मुख्य रूप से अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिये बाज़ार अभिगम्यता और रूस से भारत के निरंतर कच्चे तेल के आयात पर असहमति के कारण रुके हुए हैं।
- इससे अनिश्चितता बढ़ती है और निर्यात वृद्धि योजनाएँ बाधित होती हैं।
- आर्थिक विकास का दबाव: टैरिफ और चल रहे व्यापार तनाव भारतीय निर्यातकों के लिये अनिश्चितता बढ़ा रहे हैं, जिससे निर्यात-उन्मुख उद्योगों की वृद्धि धीमी पड़ सकती है तथा निर्यात आपूर्ति शृंखलाओं से जुड़े रोज़गार, MSME एवं किसानों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
- रणनीतिक और राजनीतिक परिणाम: व्यापार विवाद ने द्विपक्षीय संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है, जिससे भविष्य के रणनीतिक सहयोग को लेकर अमेरिका में चिंताएँ बढ़ गई हैं तथा निवेशकों का विश्वास और व्यापारिक साझेदार प्रभावित हुए हैं।
- यह तनाव रूस और पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंधों के बीच संतुलन बनाने की प्रक्रिया को जटिल बना रहा है।
वर्ष 2025 में बढ़ते अमेरिकी टैरिफ और व्यापार तनाव के प्रत्युत्तर में भारत ने क्या कदम उठाए हैं?
- संयमित गैर-प्रतिशोधी दृष्टिकोण: भारत ने टैरिफ के साथ जवाबी कार्रवाई न करने का विकल्प चुना, बल्कि तात्कालिक हितों की रक्षा करते हुए दीर्घकालिक आर्थिक संबंध बनाए रखने के लिये एक रणनीतिक और शांत रुख अपनाया।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना: आत्मनिर्भर भारत के माध्यम से, सरकार ने अस्थिर बाह्य बाज़ारों पर निर्भरता कम करने के लिये घरेलू विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी आत्मनिर्भरता पहल को गति दी।
- संरचनात्मक सुधार और GST सरलीकरण: घरेलू खपत को बढ़ावा देने और बढ़ते टैरिफ के बीच निर्यातकों को प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखने में सहायता करने के लिये कई वस्तुओं पर GST में कटौती सहित कर सुधार लागू किये गए।
- निर्यात संवर्द्धन मिशन शुरू करना: झींगा, परिधान, आभूषण, हस्तशिल्प और कालीन जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को लक्षित ऋण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करने तथा टैरिफ के प्रभावों को कम करने के लिये ₹25,000 करोड़ का निर्यात संवर्द्धन मिशन शुरू किया गया।
- MSME और प्रमुख क्षेत्रों के लिये सहायता: उच्च टैरिफ से प्रभावित MSME की सहायता के लिये विशेष वित्तीय उपाय जैसे कि संपार्श्विक-मुक्त ऋण, रियायती ब्याज दरें और निर्यात बीमा शुरू किये गए।
- व्यापार साझेदारी का विविधीकरण: भारत ने वैश्विक बाज़ारों और BRICS जैसे क्षेत्रीय समूहों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के प्रयासों को तेज़ किया, जिससे अमेरिकी बाज़ार पर निर्भरता कम हुई।
- वित्तीय सहायता और ऋण समर्थन: सरकार ने टैरिफ-संबंधी अनिश्चितताओं के खिलाफ निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को मज़बूत करने के लिये कार्यशील पूंजी तक अभिगम्यता एवं निर्यात ऋण की सुविधा प्रदान की।
- उत्पाद-विशिष्ट छूट और व्यापार वार्ता: चल रही वार्ता में उद्योगों को असंगत टैरिफ भार से बचाने के लिये संवेदनशील उत्पादों पर छूट या टैरिफ में कमी की मांग की गई।
भारत जैसे उभरते बाज़ारों को आगे बढ़ने के लिये कौन-से रणनीतिक कदम उठाने चाहिये?
- व्यापार साझेदारों का विविधीकरण: RCEP और हिंद-प्रशांत आर्थिक कार्यढाँचा (IPEF) जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की संभावना तलाशकर एकल बाज़ारों पर निर्भरता कम किया जाना चाहिये।
- घरेलू उद्योगों को मज़बूत करना: मेक इन इंडिया जैसी पहलों, अवसंरचना के विकास और लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) को समर्थन देने वाली नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये ताकि समुत्थानशीलता को बढ़ाया जा सके।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश: श्रम को असमान रूप से विस्थापित किये बिना उत्पादकता बढ़ाने के लिये अनुसंधान एवं विकास, डिजिटल साक्षरता और AI एडॉप्शन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- सामाजिक सुरक्षा संजाल: कमज़ोर आबादी की सुरक्षा के लिये बेरोज़गारी लाभ, कल्याणकारी कार्यक्रम और पुनर्कौशल पहलों को लागू किया जाना चाहिये।
- सक्रिय बहुपक्षीय जुड़ाव: नियम-आधारित व्यापार प्रणाली सुनिश्चित करने, उभरते बाज़ारों के हितों की रक्षा करने और विवादों को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं को मज़बूत किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत जैसे उभरते हुए बाज़ार आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ उन्हें बढ़ते संरक्षणवाद और तेज़ी से बदलते तकनीकी परिवर्तन की दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अर्थशास्त्री दानी रॉड्रिक के शब्दों में, “वैश्वीकरण और व्यापार नीतियों का प्रभाव मूलतः अनिश्चित है तथा संरक्षणवाद का बढ़ना इस जटिलता को दर्शाता है कि किस प्रकार राष्ट्रीय प्राथमिकताओं एवं वैश्विक आर्थिक एकीकरण के बीच संतुलन बनाया जाये।”
इसका संकेत है कि खंडित वैश्विक व्यवस्था में आगे बढ़ने के लिये भारत जैसे देशों को धारणीय और व्यावहारिक रणनीतियों की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “बढ़ता संरक्षणवाद भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।” इस संदर्भ में भारत के निर्यात क्षेत्र की कमज़ोरियों पर चर्चा कीजिये और हाल की नीतिगत प्रतिक्रियाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत में 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद घटित हुआ/हुए है/हैं ? (2017)
- GDP में कृषि का अंश बृहत् रूप से बढ़ गया।
- विश्व व्यापार में भारत के निर्यात का अंश बढ़ गया।
- FDI का अंतर्वाह (इनफ्लो) बढ़ गया।
- भारत का विदेशी विनिमय भण्डार बृहत् रूप से बढ़ गया।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. क्या आपको लगता है कि वैश्वीकरण का परिणाम केवल आक्रामक उपभोक्ता संस्कृति ही है? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (2025)