भारतीय इतिहास
स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भर भारत
- 09 Aug 2025
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प्रिलिम्स के लिये: स्वदेशी आंदोलन, राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, बंगाल विभाजन, आत्मनिर्भर भारत अभियान, मेक इन इंडिया
मेन्स के लिये: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्वदेशी आंदोलन का महत्त्व और प्रभाव, भारत की आर्थिक नीतियों में स्वदेशी आदर्शों की प्रासंगिकता, मेक इन इंडिया
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 7 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है, जो वर्ष 1905 में इसी दिन शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन की याद में मनाया जाता है।
- इस आंदोलन ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के आर्थिक प्रतिरोध के साधन के रूप में हथकरघा बुनाई पर विशेष ध्यान देते हुए स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस
- हथकरघा समुदाय और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में इस दिवस को आधिकारिक तौर पर घोषित किया गया था।
- इसमें हथकरघा को ग्रामीण अर्थव्यवस्था, महिला सशक्तीकरण और सतत्, पर्यावरण अनुकूल उत्पादन के एक स्तंभ के रूप में रेखांकित किया गया है।
- राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2025 का विषय: “परंपरा में नवाचार को बुनना (Weaving Innovation into Tradition)।”
स्वदेशी आंदोलन क्या था?
- स्वदेशी आंदोलन की उत्पत्ति:
- बंगाल का विभाजन: बंगाल का विभाजन (1905) मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल और हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल में, धार्मिक और राजनीतिक विभाजन पैदा करने तथा राष्ट्रवादी एकता को कमज़ोर करने की ब्रिटिश रणनीति के रूप में देखा गया।
- लॉर्ड कर्जन की नीतियाँ: लॉर्ड कर्जन की दमनकारी नीतियों, जैसे कलकत्ता निगम में सुधार और भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904), ने मध्यम वर्ग के गुस्से तथा असंतोष को बढ़ावा दिया।
- कलकत्ता टाउनहॉल बैठक: अगस्त 1905 में कलकत्ता टाउनहॉल बैठक ने स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक शुरुआत की, जिसमें लोगों से ब्रिटिश वस्तुओं, विशेष रूप से 'मैनचेस्टर निर्मित कपड़े' और 'लिवरपूल नमक' का बहिष्कार करने और भारतीय निर्मित उत्पादों का समर्थन करने का आग्रह किया गया।
- स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख तरीके:
- ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार: स्थानीय उद्योगों और शिल्पों का समर्थन करके आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने हेतु भारतीय जनता को ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने तथा स्वदेशी (घरेलू) उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- राष्ट्रीय शिक्षा: ब्रिटिश स्कूलों के बहिष्कार के परिणामस्वरूप भारतीय मूल्यों पर केंद्रित राष्ट्रीय स्कूलों की स्थापना हुई।
- वर्ष 1905 के कार्लाइल सर्कुलर में प्रदर्शनकारी छात्रों से छात्रवृत्ति वापस लेने की धमकी दी गई, जिसके कारण कई छात्रों को ब्रिटिश संस्थान छोड़ना पड़ा।
- वर्ष 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् का गठन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बाद में बंगाल नेशनल कॉलेज और बंगाल तकनीकी संस्थान की स्थापना हुई।
- समितियों का गठन: स्वदेशी संदेश के प्रचार के लिये विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, जिन्हें समितियाँ कहा जाता है, का गठन किया गया।
- बारिसल में अश्विनी कुमार दत्ता के नेतृत्व में स्वदेश बंधु समिति जन-आंदोलन का एक शक्तिशाली साधन बन गयी।
- पारंपरिक लोकप्रिय त्योहारों और मेलों का उपयोग: गणपति और शिवाजी जैसे त्योहारों का उपयोग बंगाल सहित पूरे भारत में स्वदेशी संदेश फैलाने के लिये किया गया।
- रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1905 के बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिये रक्षाबंधन को एकता के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया।
- आत्मनिर्भरता पर बल: इस आंदोलन ने 'आत्म शक्ति' (स्वबल) को बढ़ावा दिया, राष्ट्रीय गरिमा को जाति उत्पीड़न, बाल विवाह, दहेज और शराब के दुरुपयोग से लड़ने जैसे सामाजिक सुधारों के साथ जोड़ा गया।
- स्वदेशी आंदोलन के चरण:
- उदारवादी चरण: आंदोलन की प्रारंभिक अवस्था में उदारवादियों ने याचिकाएँ देने और सभाएँ आयोजित करने जैसे शांतिपूर्ण तरीकों को अपनाया, लेकिन जब इन प्रयासों से अपेक्षित सफलता नहीं मिली, तो आंदोलन ने उग्र और प्रतिरोधात्मक उपायों का रूप ले लिया।
- सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे नेताओं ने आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के साधन के रूप में इस आंदोलन का समर्थन किया।
- उग्रवादी चरण: लाल-बाल-पाल त्रिमूर्ति में शामिल बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने अंग्रेज़ों के साथ सीधे टकराव का समर्थन किया।
- उन्होंने आंदोलन को स्वराज (स्वशासन) की मांग तक विस्तार दिया और ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थाओं और सेवाओं के बहिष्कार का आह्वान किया। साथ ही उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध और सशस्त्र संघर्ष दोनों का समर्थन किया।
- उदारवादी चरण: आंदोलन की प्रारंभिक अवस्था में उदारवादियों ने याचिकाएँ देने और सभाएँ आयोजित करने जैसे शांतिपूर्ण तरीकों को अपनाया, लेकिन जब इन प्रयासों से अपेक्षित सफलता नहीं मिली, तो आंदोलन ने उग्र और प्रतिरोधात्मक उपायों का रूप ले लिया।
भारत में स्वदेशी आंदोलन की समकालीन प्रासंगिकता क्या है?
- आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी आंदोलन के आदर्शों को आत्मनिर्भर भारत (आत्मनिर्भर भारत अभियान) मिशन के माध्यम से पुनर्जीवित किया गया है जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर भारतीय वस्तुओं को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
- महामारी के दौरान 20 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का ~ 10%) के प्रोत्साहन के साथ शुरू की गई यह योजना 'लोकल फॉर ग्लोबल' और 'वोकल फॉर लोकल' जैसे विषयों पर केंद्रित है।
- प्रमुख लक्ष्यों में भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला केंद्र बनाना, निजी क्षेत्र का विश्वास बढ़ाना, भारतीय निर्माताओं को समर्थन देना तथा कृषि, वस्त्र, परिधान, आभूषण, फार्मा और रक्षा क्षेत्र में निर्यात का विस्तार करना शामिल है।
- मेक इन इंडिया पहल: यह भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में बढ़ावा देता है, स्थानीय और विदेशी कंपनियों को घरेलू स्तर पर उत्पादन करने के लिये प्रोत्साहित करता है, जो स्वदेशी आंदोलन के आत्मनिर्भरता और स्थानीय उद्योग पर ध्यान केंद्रित करने की भावना को प्रतिध्वनित करता है।
- मेक इन इंडिया से कारोबार करने में आसानी हुई है, जिससे FDI 2015 के 45 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 81.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- वर्ष 2024 में निर्यात 437 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स विश्व के 60% टीकों की आपूर्ति करता है।
- रक्षा निर्यात में वृद्धि हुई और भारत 2024 के वैश्विक नवाचार सूचकांक में 39वें स्थान पर पहुँच गया।
- रूसी सेना के उपकरणों में 'मेड इन बिहार' जूते शामिल किये गये हैं।
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का उद्देश्य 14 प्रमुख क्षेत्रों को कवर करके घरेलू विनिर्माण को बढ़ाना एवं निर्यात को बढ़ावा देना है।
- खादी और कुटीर उद्योगों का पुनरुद्धार: खादी आंदोलन, एक सामाजिक-सांस्कृतिक आख्यान, जिसे गांधीजी ने शुरू किया था, स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आग्रह किया, आज भी प्रासंगिक है, KVIC (खादी और ग्रामोद्योग आयोग) ने कारोबार में उल्लेखनीय वृद्धि हासिल की है।
- पिछले 11 वर्षों (2013–2025) में, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) का उत्पादन 347% और बिक्री 447% बढ़ी। रोज़गार में 49.23% की वृद्धि हुई, जिससे 1.94 करोड़ लोगों को रोजगार मिला।
- आर्थिक राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद: स्वदेशी आंदोलन में निहित यह नीति घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देती है, जिसके तहत आयात प्रतिस्थापन, व्यापार शुल्क, और भारतीय कंपनियों के लिये प्रोत्साहन दिये जाते हैं।
- इन नीतियों का उद्देश्य विशेष रूप से रक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम करना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में हथकरघा क्षेत्र की भूमिका
- आर्थिक महत्त्व: हथकरघा क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा कुटीर उद्योग है, जिसमें 35 लाख से अधिक श्रमिक कार्यरत हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ हैं।
- 72% हथकरघा बुनकर महिलाएँ हैं, जो उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।
- सतत् जीवन: हथकरघा उत्पाद पर्यावरण अनुकूल हैं, ग्रामीण आजीविका को समर्थन देते हैं तथा महिलाओं को सशक्त बनाते हैं और साथ ही भारत की सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित रखते हैं।
- निर्यात: भारत विश्व में हाथ से बुने कपड़े का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक हथकरघा उत्पादन का 95% हिस्सा है।
- भारत के प्रमुख हथकरघा निर्यातों में चटाई (mats), कालीन (carpets), गलीचे (rugs), चादरें (bedsheets), कुशन कवर और सिल्क स्कार्फ शामिल हैं।
- भारत ने वित्त वर्ष 23 में लगभग 10.94 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के हथकरघा सूती धागे, कपड़े और मेड-अप का निर्यात किया। वित्त वर्ष 24 में, निर्यात 20 से ज़्यादा देशों को हुआ, जिसमें अमेरिका सबसे बड़ा आयातक था, उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, स्पेन, ब्रिटेन, फ्राँस और इटली का स्थान था।
हथकरघा संबंधी भारत की पहल
- राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (National Handloom Development Programme- NHDP): कच्चा माल, डिज़ाइन समर्थन, प्रौद्योगिकी उन्नयन, विपणन सहायता और शहरी हाट जैसी बुनियादी संरचना प्रदान करके सतत् विकास को बढ़ावा देता है।
- कच्चा माल आपूर्ति योजना (Raw Material Supply Scheme- RMSS): यह सब्सिडी दरों पर गुणवत्तापूर्ण धागा सुनिश्चित करती है, माल ढुलाई शुल्क की प्रतिपूर्ति करती है तथा हथकरघा बुनकरों को पावर-लूम के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सहायता करने के लिये 15% धागा सब्सिडी प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): बुनकरों को कम ब्याज पर ऋण प्रदान करती है।
- वर्कशेड योजना: बुनकरों के घर के पास पूरे परिवार के लिये समर्पित कार्यस्थल उपलब्ध कराती है। प्रत्येक इकाई की लागत 1.2 लाख रुपए है। हाशिये पर रह रहे बुनकरों को 100% वित्तीय सहायता और अन्य को 75% सहायता मिलती है।
- पारंपरिक डिज़ाइनों का संरक्षण: भौगोलिक संकेत (GI) अधिनियम, 1999 के तहत कुल 104 हथकरघा उत्पादों को जीआई के लिये पंजीकृत किया गया है।
- GeM: लगभग 1.8 लाख बुनकर सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) से जुड़े।
- कल्याणकारी उपाय: प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) और एकीकृत महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना (MGBBY) के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत की वर्तमान आर्थिक रणनीतियों में स्वदेशी आंदोलन के विचारों की समकालीन प्रासंगिकता क्या है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
कथन-1: 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में घोषित किया गया है।
कथन-II: 1905 में, इसी दिन स्वदेशी आंदोलन शुरू किया गया था।
उपर्युक्त कथनों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?
(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है
(b) कथन- I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है
(c) कथन- I सही है किन्तु कथन-II गलत है
(d) कथन- I गलत है किन्तु कथन-II सही है
उत्तर: (a)
प्रश्न. स्वदेशी आंदोलन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
1. इसने देशी शिल्पकारों के कौशल तथा उद्योगों को पुनर्जीवित करने में योगदान किया।
2. स्वदेशी आंदोलन के एक अवयव के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् की स्थापना हुई थी।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. लॉर्ड कर्जन की नीतियों एवं राष्ट्रीय आंदोलन पर उनके दूरगामी प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये। (2020)