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शासन व्यवस्था

भारत की न्याय वितरण प्रणाली में सुधार

  • 11 Aug 2025
  • 72 min read

प्रिलिम्स के लिये: भारतीय न्यायपालिका, सर्वोच्च न्यायालय, ई-कोर्ट परियोजना, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग, लोक अदालतें, FASTER, न्यायालय कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, ADR तंत्र, मध्यस्थता, जनहित याचिकाएँ

मेन्स के लिये: भारत में न्यायिक बैकलॉग, भारतीय न्यायपालिका में न्यायिक सुधार, भारतीय न्यायपालिका से संबंधित वर्तमान प्रमुख मुद्दे, भारत में न्यायिक सुधारों से संबंधित प्रमुख पहल।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों और ज़िला न्यायालयों में 5 करोड़ से अधिक मामलों के भारी लंबित बोझ के कारण भारतीय न्यायपालिका गंभीर चुनौती का सामना कर रही है, जिससे न्याय वितरण प्रणाली, सुशासन तथा कानूनी व्यवस्था में नागरिकों का विश्वास गहराई से प्रभावित हो रहा है।

न्यायिक लंबित मामलों से जुड़े प्रमुख आँकड़े क्या हैं?

लंबित मामलों की संख्या

वर्ष 2025 के मध्य तक, भारतीय न्यायालयों में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से ज़िला न्यायालय 90% (4.6 करोड़+) मामलों का निपटारा कर रही हैं, इसके बाद उच्च न्यायालय (63.3 लाख+) और सर्वोच्च न्यायालय (86,700+) का स्थान है।

निपटान असमानताएँ (आपराधिक बनाम सिविल  मामले)

आपराधिक मामलों का निपटारा तेज़ी से होता है तथा उच्च न्यायालय में 85.3% मामले एक वर्ष के भीतर निपटा दिये जाते हैं।

  • इसके विपरीत, ज़िला न्यायालयों में केवल 38.7% सिविल मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर होता है, जबकि लगभग 20% मामले 5 वर्ष से अधिक समय तक लंबित रहते हैं।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश ने मामलों की बढ़ती लंबित संख्या पर चिंता व्यक्त की और इसका कारण ज़मानत देने में ज़िला न्यायालयों में व्याप्त ‘भय-जनित मानसिकता’ को बताया।

भारतीय न्यायालयों में मामलों की उच्च लंबित संख्या के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात में कमी: न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात 10 लाख लोगों पर 15 न्यायाधीशों पर स्थिर बना हुआ है, जो विधि आयोग की 50 की सिफारिश से काफी दूर है।
    • हालाँकि निचली न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी 38% है, लेकिन उच्च न्यायालयों में उनका प्रतिनिधित्व मात्र 14% है।
  • बार-बार स्थगन (Adjournments): न्यायालय मामलों में बार-बार स्थगन से सीधे तौर पर न्यायिक लंबितता में वृद्धि होती है, जो अनसुलझे मामलों का संचय है।
    • न्याय प्रदान करने में यह देरी कानूनी प्रणाली में जनता के विश्वास को कमज़ोर करती है।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय में विलंबित मामलों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि 70% मामलों में तीन से अधिक स्थगन हुए थे।
    • यद्यपि स्थगन की सीमा तय करने की प्रक्रियाएँ मौजूद हैं, फिर भी इन्हें प्राय: मंज़ूरी दे दी जाती है, जिससे "तारीख पर तारीख" की संस्कृति विकसित होती है।
  • अल्पप्रयुक्त ADR: मध्यस्थता, पंचाट और सुलह जैसे ADR तंत्र, लंबित मामलों के बोझ को कम करने की क्षमता रखने के बावजूद, अब भी पर्याप्त रूप से उपयोग में नहीं लाए जा रहे हैं।
    • साथ ही, देशभर में सभी ADR तंत्रों के प्रदर्शन से संबंधित केंद्रीकृत, अद्यतन एवं विस्तृत आँकड़ों की कमी के कारण इनके उपयोग और प्रभावशीलता की समग्र एवं राष्ट्रीय स्तर की तस्वीर प्रस्तुत करना कठिन हो जाता है।
  • मुकदमेबाज़ी में वृद्धि: विधिक जागरूकता और जनहित याचिकाओं (PIL) में वृद्धि के साथ-साथ निराधार मामलों के कारण भी मुकदमेबाज़ी में वृद्धि हो रही है।
    • लंबित मामलों में लगभग 50 प्रतिशत मामले सरकारी विभागों से संबंधित हैं, जहाँ निर्णय में विलंब और नियमित अपीलें लंबित मामलों के बोझ को और बढ़ा देती हैं।
  • संरचनात्मक एवं प्रक्रियागत बाधाएँ: अपर्याप्त न्यायालय कक्ष, कार्मिकों की कमी, कमज़ोर सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) अवसंरचना, प्रकरण प्रबंधन प्रणालियों का अभाव, बार-बार स्थगन, गवाहों एवं साक्ष्यों में विलंब।

भारत में न्यायिक सुधारों से संबंधित प्रमुख पहल क्या हैं?

  • न्याय प्रदायगी और विधिक सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन (2011): न्याय तक पहुँच, दक्षता एवं जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से सुधारात्मक उपायों को लागू करना। 
  • ई-कोर्ट परियोजना: न्यायालयों का डिजिटलीकरण, जिसमें पेपरलेस फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई और मामलों के शीघ्र निपटारे की सुविधा शामिल है।
  • भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण: देशभर में एक समान न्यायिक अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण हेतु प्रस्तावित संस्था।
  • फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट: चुनिंदा प्रकार के मामलों के त्वरित सुनवाई एवं निपटारे के लिये समर्पित न्यायालय।
  • वैकल्पिक विवाद निपटान (ADR) तंत्र: मुकदमेबाज़ी के तेज़ और किफायती विकल्प के रूप में मध्यस्थता, पंचाट और सुलह की सुविधा प्रदान करता है।
  • टेली-लॉ: तकनीक के माध्यम से हाशिये पर स्थित लोगों को दूरस्थ कानूनी परामर्श से जोड़ता है।
  • न्याय बंधु (प्रो बोनो): स्वैच्छिक वकीलों द्वारा ज़रूरतमंदों को निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करना।
  • न्यायिक रिक्तियों की पूर्ति: वर्ष 2014 से 2024 के बीच सर्वोच्च न्यायालय में 62 तथा उच्च न्यायालयों में 976 न्यायाधीश नियुक्त किये गए, जिनमें से 745 को स्थायी नियुक्ति दी गई। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या 906 से बढ़कर 1,114 हो गई, जबकि ज़िला न्यायालयों में यह संख्या 19,518 से बढ़कर 25,609 हो गई, जो न्यायिक क्षमता बढ़ाने और लंबित मामलों को कम करने के प्रयासों को दर्शाता है।

वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र क्या हैं?

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र

भारत की न्यायिक प्रणाली को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • न्यायिक क्षमता एवं नियुक्तियों को मज़बूत करना: उच्च न्यायालयों और ज़िला न्यायालयों में त्वरित नियुक्तियाँ करना तथा वर्ष 1987 के विधि आयोग की सिफारिश के अनुसार न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात को 50 प्रति मिलियन तक बढ़ाना।
    • कोलेजियम की पारदर्शिता में सुधार, सेवानिवृत्ति आयु में वृद्धि, न्यायाधीशों की संख्या में विस्तार, और विशेषीकृत न्यायालयों का गठन।
    • द्वितीय (ARC) के राष्ट्रीय न्यायिक परिषद के प्रस्तावों को लागू करना, जिससे सरल विधानों का निर्माण, समयबद्ध सुनवाई, मामलों का शीघ्र निपटारा, न्यायालयों का विस्तार, तथा सूचना प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण का उन्नत उपयोग संभव हो सके।
  • अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकी सुधार: राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIA) की स्थापना से न्यायालय सुविधाओं का मानकीकरण किया जा सकेगा।
    • ई-कोर्ट परियोजना के विस्तार, FASTER जैसे उपकरणों के उपयोग, तथा कार्मिकों के निरंतर प्रशिक्षण से डिजिटलीकरण, आभासी सुनवाई, और वाद प्रबंधन की दक्षता में वृद्धि होगी।
  • प्रक्रियात्मक एवं केस प्रबंधन सुधार: स्थगनों की सीमा तय करना, संक्षिप्त मुकदमों को बढ़ावा देना, पूर्व-वाद सम्मेलन आयोजित करना, तथा समयबद्ध सुनवाई सुनिश्चित करना, इन उपायों से न्याय प्रक्रिया में तीव्रता लाई जा सकती है।
    • परिभाषित समय-सीमा के साथ मामलों के वर्गीकरण, सूचीकरण और अनुवर्तन हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) उपकरणों का एकीकरण न्यायपालिका में दक्षता और पारदर्शिता को सुदृढ़ करेगा।
  • ADR और विधिक पहुँच को बढ़ावा देना: मध्यस्थता, पंचाट और सुलह जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्रों का विस्तार न्यायालयों का बोझ कम करने में सहायक हो सकता है। 
    • मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के प्रभावी क्रियान्वयन तथा लोक अदालतों का विस्तार, जिन्होंने वर्ष 2021 से वर्ष 2025 के बीच 27.5 करोड़ मामलों का निपटान किया, न्यायालय के बाहर विवाद समाधान की संभावनाओं को रेखांकित करता है।
    • टेली-लॉ, मोबाइल क्लीनिक तथा NALSA की व्यापक पहुँच के माध्यम से निःशुल्क विधिक सहायता को मज़बूत करना वंचित वर्गों के लिये न्याय तक पहुँच को सुदृढ़ करेगा।

निष्कर्ष:

भारतीय न्यायपालिका एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है, जहाँ सुधारों को परिणामों में परिवर्तित करना आवश्यक है। न्याय में विलंब जन-विश्वास और संवैधानिक मूल्यों को निरंतर क्षीण करता रहता है। वादों में निरंतर वृद्धि और क्षमता के बीच के अंतराल को कम करना, ADR तंत्र को मज़बूत करना, तथा बुनियादी ढाँचे और प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करना केवल नीतिगत विकल्प नहीं हैं, अपितु विधि के शासन को बनाए रखने और समय पर, सुलभ न्याय सुनिश्चित करने के लिये संवैधानिक दायित्व हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. न्यायिक लंबितता भारत की विधिक प्रणाली में गंभीर विकृति के लक्षण हैं। लंबित मामलों की उच्च संख्या के लिये उत्तरदायी संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक बाधाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा इस चुनौती से निपटने के लिये व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा  विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत के संविधान के 44वें संशोधन द्वारा लाए गए एक अनुच्छेद ने प्रधानमंत्री के निर्वाचन को न्यायिक पुनर्विलोकन के परे कर दिया।
  2. भारत के संविधान के 99वें संशोधन को भारत के उच्चतम न्यायालय ने अभिखंडित कर दिया क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करता था।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. इसका उद्देश्य समान अवसरों के आधार पर समाज के कमज़ोर वर्गों को निःशुल्क एवं सक्षम विधिक सेवाएँ उपलब्ध कराना है।
  2. यह देश-भर में विधिक कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देश जारी करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोगअधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न.  निःशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त करने के हकदार कौन है? निःशुल्क कानूनी सहायता के प्रतिपादन में राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (NALSA) की भूमिका का आकलन कीजिये। (2023)

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