प्रारंभिक परीक्षा
ऑपरेशन सिंधु: ईरान से सुरक्षित निकासी
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत ने ईरान पर इज़रायली-अमेरिकी सैन्य हमलों की आशंका बढ़ने के बीच आर्मेनिया के रास्ते भारतीय नागरिकों को ईरान से निकालने के लिये 'ऑपरेशन सिंधु' शुरू करने की घोषणा की है।
- इसमें सामरिक और व्यवहार्य निकासी मार्ग के रूप में आर्मेनिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया, जिसका श्रेय इसकी भौगोलिक स्थिति और भारत के साथ दृढ़ राजनयिक संबंधों को जाता है।
- ईरान की सीमा उत्तर में अर्मेनिया, अज़रबैजान और तुर्कमेनिस्तान से लगती है। इसकी सीमा पूर्व में अफगानिस्तान और पाकिस्तान, पश्चिम में इराक, उत्तर-पश्चिम में तुर्की से लगती है और इसकी दक्षिणी तटरेखा फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के साथ है।
ऑपरेशन सिंधु के लिये आर्मेनिया रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- भू-रणनीतिक स्थिति: ईरान के साथ आर्मेनिया की 44 किलोमीटर लंबी सीमा और नूरदुज-अगारक क्रॉसिंग, जो 730 किलोमीटर लंबे राजमार्ग द्वारा तेहरान से जुड़ी है, तीव्र भारतीय निकासी के लिये सबसे व्यावहारिक तथा सुरक्षित भूमि मार्ग प्रदान करती है।
- सीमित विकल्प: अन्य सीमाएँ चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं :
- पाकिस्तान: भू-राजनीतिक तनाव (ऑपरेशन सिंदूर के बाद ) ने ईरान-पाकिस्तान सीमा को दुर्गम बना दिया।
- तुर्की और अज़रबैजान: दोनों ही देश पाकिस्तान का समर्थन करते हैं, जिससे ईरान के साथ उनकी सीमाएँ भारत के लिये प्रतिकूल हो जाती हैं ।
- अफगानिस्तान: तालिबान शासित अफगानिस्तान के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं।
- इराक और तुर्कमेनिस्तान: इराक एक सक्रिय संघर्ष क्षेत्र हैं, जहाँ हवाई अड्डे बंद हैं, जबकि तुर्कमेनिस्तान की सीमा दूरस्थ और अविकसित है।
- मज़बूत राजनयिक संबंध: अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को आर्मेनिया का समर्थन (जैसे कश्मीर मुद्दा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता)।
- वर्ष 2022 में, भारत ने पिनाका रॉकेट लॉन्चर, आकाश-1S वायु रक्षा प्रणाली और अन्य हथियारों के लिये 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे के साथ आर्मेनिया के शीर्ष सैन्य आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस को पीछे छोड़ दिया।
- क्षेत्रीय संपर्क: आर्मेनिया अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जो भारत की इस व्यापक रणनीति के अनुरूप है । वह काकेशस- क्षेत्र के माध्यम से व्यापार और आपातकालीन निकासी मार्गों को सुरक्षित कर सके।
भारतीयों की निकासी हेतु अन्य प्रमुख ऑपरेशन क्या हैं?
ऑपरेशन |
वर्ष |
स्थान |
संदर्भ |
ऑपरेशन कावेरी |
2023 |
सूडान |
सैन्य संघर्ष के दौरान निकासी |
ऑपरेशन अजय |
2023 |
इज़रायल |
इज़रायल-हमास संघर्ष के दौरान निकासी |
ऑपरेशन गंगा |
2022 |
यूक्रेन |
रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान निकासी |
ऑपरेशन देवी शक्ति |
2021 |
अफगानिस्तान |
तालिबान के कब्जे के बाद निकासी |
ऑपरेशन समुद्र सेतु |
2020 |
विविध (समुद्र मार्ग से) |
कोविड-19 महामारी के दौरान निकासी (वंदे भारत मिशन) |
ऑपरेशन राहत |
2015 |
यमन |
नागरिक संघर्ष के दौरान निकासी |
ऑपरेशन सेफ होमकमिंग |
2011 |
लीबिया |
अरब स्प्रिंग में नागरिक संघर्ष के दौरान निकासी |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न . भूमध्य सागर निम्नलिखित में से किस देश की सीमा है? (2017)
निम्नलिखित कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है? (2018) (a) चीन उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
हाइड्रोलिक्स प्रणाली एवं इसके अनुप्रयोग
स्रोत: TH
भारी-भरकम क्रेनों से लेकर वायुयान के लैंडिंग गियर तक, हाइड्रॉलिक प्रणालियाँ कई महत्त्वपूर्ण यांत्रिक क्रियाओं को संचालित करती हैं, जहाँ छोटी-सी प्रविष्टि (input) को अत्यधिक बल (force) में परिवर्तित किया जाता है।
- परिचय: हाइड्रॉलिक प्रणाली एक ऐसी तकनीक है, जिसमें अपसंपीड्य द्रव (अर्थात् जिसे संपीडित नहीं किया जा सकता — सामान्यतः तेल) के माध्यम से बल एवं गति का संचरण किया जाता है।
- इस प्रणाली में एक सिरे पर लगाया गया छोटा बल, संपर्क क्षेत्र (contact area) को बढ़ाकर दूसरे सिरे पर अधिक बल उत्पन्न करता है, जबकि दबाव (pressure) स्थिर बना रहता है।
- कार्यप्रणाली: यह प्रणाली पास्कल के नियम (Pascal's Law) पर कार्य करती है, जिसके अनुसार किसी द्रव पर लगाया गया दबाव सभी दिशाओं में समान रूप से संचरित होता है। इस सिद्धांत के कारण बहुत कम बल लगाकर भी भारी वस्तुओं को सरलता से गति दी जा सकती है।
- दबाव उस बल को दर्शाता है, जो किसी वस्तु की सतह पर प्रति इकाई क्षेत्रफल में लगाया जाता है। यह इस बात का संकेत है कि किसी विशेष क्षेत्र पर कितना बल कार्य कर रहा है। इसका एस.आई. मात्रक पास्कल (Pa) होता है, जहाँ 1 पास्कल = 1 न्यूटन प्रति वर्ग मीटर (N/m²)
- अनुप्रयोग:
- हाइड्रॉलिक प्रणालियों का व्यापक उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में होता है, जैसे:
- निर्माण उपकरणों में (उदाहरण: खुदाई मशीनें, बुलडोज़र, क्रेन आदि)
- वाहनों में (ब्रेक, क्लच आदि)
- विमानन क्षेत्र में (लैंडिंग गियर)
- औद्योगिक मशीनों में (प्रेस, लिफ्ट)
- कृषि में (ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि)
- लाभ:
- संतुलित गति एवं सहजता
- बल-से-वजन अनुपात अत्यधिक
- उष्मा का बेहतर अपसारण
- संचालन में उच्च सटीकता (प्रिसीजन)
और पढ़ें: भारत की डीप ड्रिल मिशन
रैपिड फायर
लैमार्कियन वंशागति और एपिजेनेटिक्स विकास
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में चावल के पौधों में एपिजेनेटिक परिवर्तन के माध्यम से वंशागत शीत सहनशीलता की खोज जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क के उस सिद्धांत की ऐतिहासिक पुष्टि है, जिसमें कहा गया था कि पर्यावरणीय प्रभाव आनुवंशिकता को प्रभावित कर सकते हैं — यद्यपि इस अवधारणा पूर्व में खारिज किया गया था, लेकिन अब आधुनिक विज्ञान द्वारा समर्थित है।
- एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) का तात्पर्य जीन अभिव्यक्ति में आने वाले उन वंशानुगत परिवर्तनों से है जो बाह्य कारकों के कारण होते हैं। ये कारक जीन को सक्रिय या निष्क्रिय कर देते हैं, लेकिन DNA अनुक्रम (DNA sequence) में कोई परिवर्तन नहीं करते।
- लैमार्क का सिद्धांत (1809): इस सिद्धांत में प्रस्तावित किया गया था कि किसी जीव द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग, अनुपयोग या पर्यावरण के प्रभाव से प्राप्त लक्षण अगली पीढ़ी को विरासत में मिल सकते हैं।
- यह सिद्धांत तब तक प्रमुख था जब तक डार्विन के प्राकृतिक चयन (1859) और मेंडल के वंशागति के नियमों ने इसे गलत साबित नहीं कर दिया।
- एक अध्ययन में पाया गया कि चावल के पौधों को शीत के संपर्क में लाने से उनके जीन में एपिजेनेटिक परिवर्तन हुए, जिससे शीत सहनशीलता विकसित हुई और यह लक्षण पाँच पीढ़ियों तक वंशागत रहा।
- लैमार्क के लिये वैज्ञानिक चुनौतियाँ:
- डार्विन का प्राकृतिक चयन (1859): इसमें तर्क दिया गया कि आनुवंशिक विविधताएँ (अर्जित लक्षण नहीं), ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ के माध्यम से विकास को निर्देशित करती हैं।
- वाइज़मैन का प्रयोग (1890 के दशक): बिना पूँछ वाले चूहों से सामान्य पूँछ वाले चूहों को जन्म दिया, जिससे अर्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत गलत साबित हुआ।
- ग्रेगर जॉन मेंडल: इन्होंने दिखाया कि जीन (DNA) आनुवंशिकता के स्थिर इकाई हैं, न कि पर्यावरणीय अनुकूलन।
- एपिजेनेटिक्स का विकास:
- रॉयल ब्रिंक का मक्का अध्ययन (1956): इसने दर्शाया कि केवल DNA अनुक्रम ही नहीं, बल्कि जीन अभिव्यक्ति भी वंशागत हो सकती है, जो गैर-DNA आधारित आनुवंशिकता को प्रदर्शित करता है।
- आर्थर रिग्स की परिकल्पना (1975): इसने प्रस्तावित किया कि एपिजेनेटिक मार्क (DNA पर रासायनिक टैग) DNA अनुक्रम को बदले बिना भी लक्षणों को पीढ़ियों तक पहुँचा सकते हैं। DNA में उत्परिवर्तन की तुलना में एपिजेनेटिक मार्क्स को बदलना आसान होता है।
और पढ़ें: eDNA चुनौतीपूर्ण आनुवंशिकी सिद्धांत
रैपिड फायर
जंपिंग स्पाइडर
स्रोत: द हिंदू
कर्नाटक में खोजी गई नई जंपिंग स्पाइडर (कूदने वाली मकड़ी) प्रजाति स्पार्टेयस करिगिरी, भारत में स्पार्टेयस और सोनोइटा जेनेरा (साल्टिसिडे परिवार के स्पार्टेइनी उपपरिवार का हिस्सा) की पहली दर्ज उपस्थिति को चिह्नित करती है, जिसे पहले केवल दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका से ही जाना जाता था।
- इस प्रजाति का नाम कर्नाटक के करिगिरी या हाथी पहाड़ी (Elephant Hill) के नाम पर रखा गया है।
- सोनोइटा सीएफ. लाइटफुटी, जिसे पहले अफ्रीका तक ही सीमित माना जाता था, कर्नाटक में खोजा गया था, यह खोज इस प्रजाति के विस्तारित क्षेत्र या भारत में इसके प्रवेश की संभावना को दर्शाती है।
जंपिंग स्पाइडर (स्पार्टेयस करिगिरी)
- वितरण: विश्व स्तर पर अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है तथा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है।
- जैवविविधता: साल्टिसिडे सबसे बड़ा मकड़ी परिवार हैं, जिसमें आर्डर एरेनी और क्लास एराक्निडा के अंतर्गत 5,000 से अधिक प्रजातियाँ हैं।
- शारीरिक विशेषताएँ: छोटी रोएँदार मकड़ियाँ (<0.5 इंच), जिनमें 8 आँखें होती हैं, दो बड़ी सामने वाली आँखें शिकार करने, पथप्रदर्शन/नेविगेशन और प्रणय निवेदन के लिये हाई-रिज़ॉल्यूशन दृष्टि प्रदान करती हैं।
- दौड़ने, चढ़ने और कूदने में सक्षम, सुरक्षित लैंडिंग के लिये रेशम ड्रैगलाइन का उपयोग करती हैं।
- शिकार व्यवहार: सक्रिय मांसाहारी जो पीछा करके, नकल करके (जैसे, चींटी जैसा दिखकर) और छलावरण का उपयोग करके सूक्ष्म कीटों का शिकार करते हैं।
- कुछ प्रजातियाँ सुविधानुसार पराग और फूलों के रस का भी उपभोग करती हैं।
- कूदने की प्रक्रिया: हाइड्रॉलिक लेग प्रेशर के माध्यम से शरीर की लंबाई से 50 गुना अधिक दूरी तक कूद सकती हैं, मांसपेशियों से नहीं।
- प्रजनन: मादाएँ रेशम से ढके अंडा-कोषों की रक्षा करती हैं, स्पाइडरलिंग्स (शिशु मकड़ियाँ) निरंतर केंचुली उतारकर वयस्क बनती हैं।
- प्रमुख प्रजातियाँ: युफ्रिस ओम्निसुपरस्टेस (हिमालयन जंपिंग स्पाइडर), माउंट एवरेस्ट पर 22,000 फीट की ऊँचाई पर पाई जाती हैं, यह मकड़ियों का ज्ञात सर्वोच्च निवास स्थान है।
और पढ़ें: जंपिंग स्पाइडर की नई प्रजाति